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डेली न्यूज़

  • 04 Aug, 2020
  • 43 min read
आंतरिक सुरक्षा

रक्षा निर्यात को बढ़ाने के लिये मसौदा नीति

प्रीलिम्स के लिये: 

मेक इन इंडिया, मिशन रक्षा ज्ञान शक्ति, व्यापार सुगमता सूचकांक

मेन्स के लिये: 

DPEPP, 2020 उसके उद्देश्य तथा रणनीतियाँ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में रक्षा मंत्रालय (Ministry of Defence- MoD) ने सार्वजनिक प्रतिक्रिया (FeedBack) के लिये रक्षा उत्पादन और निर्यात संवर्द्धन नीति (Defence Production & Export Promotion Policy- DPEPP) 2020 का मसौदा तैयार किया है।

  • DPEPP 2020 को आत्मनिर्भर बनने और निर्यात के लिये देश की रक्षा उत्पादन क्षमताओं पर ध्यान केंद्रित करने के लिये एक अतिव्यापी मार्गदर्शक दस्तावेज़ के रूप में परिकल्पित किया गया है।

लक्ष्य एवं उद्देश्य: 

  • इसका उद्देश्य वर्ष 2025 तक एयरोस्पेस और रक्षा वस्तुओं तथा सेवाओं के $5 बिलियन के निर्यात सहित 1,75,000 करोड़ रुपए का विनिर्माण कारोबार सुनिश्चित करना है
  • इसके अलावा सशस्त्र बलों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये उत्तम उत्पादों के निर्माण के साथ-साथ एयरोस्पेस और नौसेना के जहाज़ निर्माण उद्योग को शामिल करते हुए एक गतिशील, मज़बूत तथा प्रतिस्पर्द्धी रक्षा उद्योग विकसित करना है।
  • आयात पर निर्भरता कम करने और घरेलू डिज़ाइन तथा विकास के माध्यम से "मेक इन इंडिया" पहल को आगे बढ़ाना।
  • रक्षा उत्पादों के निर्यात को बढ़ावा देना और वैश्विक रक्षा मूल्य शृंखलाओं का हिस्सा बनना।
  • एक ऐसे वातावरण का निर्माण करना जो अनुसंधान और विकास तथा नवाचार को प्रोत्साहित करता है एवं एक मज़बूत व आत्मनिर्भर रक्षा उद्योग को बढ़ावा देता है।

नीति में उल्लिखित रणनीतियाँ:

  • खरीद संबंधी सुधार-
    • रक्षा उत्पादों के विकास और उत्पादन से संबंधित विनिर्देशों और प्रौद्योगिकियों के आकलन के लिये एक परियोजना प्रबंधन इकाई (Project Management Unit) स्थापित की जाएगी।
    • स्वदेशी डिज़ाइन, विकास और उत्पादन के लिये लाइसेंस प्राप्ति की प्रक्रिया को खत्म करने पर केंद्रित।
    • इसका उद्देश्य दीर्घकालिक एकीकृत परिप्रेक्ष्य योजना (Long Term Integrated Perspective Plan- LTIPP) में अनुमानित प्रणालियों के डिज़ाइन अधिकारों और बौद्धिक संपदा अधिकारों को अपनाना है।
      • इसके अलावा एक प्रौद्योगिकी मूल्यांकन सेल (Technology Assessment Cell-TAC) भी बनाया जाएगा।
  • स्वदेशीकरण और MSMEs/स्टार्टअप को सहायता-
    • स्वदेशीकरण नीति का उद्देश्य भारत में निर्मित रक्षा उपकरणों और प्लेटफार्मों के लिये आयातित घटकों तथा उप-संयोजकों का स्वदेशी स्तर पर निर्माण करने के लिये एक उद्योग परिवेशविकसित करना है। 
      • वर्ष 2025 तक इस प्रकार के लगभग 5,000 उपकरणों का भारत में ही निर्माण करना प्रस्तावित है।
    • वर्तमान में 50 से अधिक स्टार्टअप नए 'फिट-फॉर-मिलिटरी-यूज़' तकनीकों/उत्पादों का निर्माण कर रहे हैं।
  • संसाधनों के आवंटन का अनुकूलन करना-
    • मसौदे में कहा गया है कि घरेलू उद्योग की खरीद को बढ़ावा देने के लिये यह अनिवार्य है कि वर्ष 2025 तक मौजूदा खरीद को 70,000 करोड़ रुपए से दोगुना करके 1,40,000 करोड़ रुपए किया जाए।
      • कुल रक्षा खरीद में घरेलू खरीद का हिस्सा लगभग 60% है।
  • निवेश को बढ़ावा देना और व्यापार सुगमता सूचकांक में सुधार करना-
    • भारत पहले से ही बढ़ते यात्री, यातायात और सैन्य व्यय के साथ एक बड़ा एयरोस्पेस बाज़ार है  जिसके परिणामस्वरूप हवाई जहाज़ों की मांग बढ़ रही है।
    • विमान निर्माण कार्य, विमान रखरखाव, मरम्मत और आमूलचूल परिवर्तन, हेलिकाप्टर,  इंजन निर्माण और लाइन रिप्लेसमेंट इकाइयाँ, मानव रहित हवाई वाहन और उन्नयन तथा रेट्रोफिट्स जैसे क्षेत्रों में एयरोस्पेस उद्योग के अवसरों की पहचान की गई है।
      • यह विश्व बैंक द्वारा जारी  व्यापार सुगमता सूचकांक में बाज़ार के आकार में सुधार, जनसांख्यिकीय विभाजन आदि संकेतकों में भारत की रैंकिंग से स्पष्ट है।
    • माँग की नियमित आपूर्ति को बनाए रखने के लिये रक्षा क्षेत्र में निवेश नियमित आधार पर होना चाहिये।
  • नवाचार और अनुसंधान एवं विकास-
    • रक्षा क्षेत्र में स्टार्टअप्स को आवश्यक ऊष्मायन और बुनियादी ढाँचा सहायता प्रदान करने के लिये रक्षा उत्कृष्टता के लिये नवाचारों (Innovations for Defence Excellence -iDEX) का संचालन किया गया है।
      •  iDEX को अगले पाँच वर्षों के दौरान 300 और स्टार्टअप के साथ जुड़ने तथा 60 नई तकनीकों/उत्पादों को विकसित करने के लिये बढ़ावा दिया जाएगा।
    • मिशन रक्षा ज्ञान शक्ति को नवाचार और प्रौद्योगिकी विकास को बढ़ावा देने और DPSUs, आयुध निर्माण बोर्ड (Ordnance Factory Board (OFB) में अधिक से अधिक पेटेंट फाइल करने के लिये शुरू किया गया था।
      • इस क्षेत्र में बौद्धिक संपदा के निर्माण और इसके व्यावसायिक उपयोग को बढ़ावा देने के लिये इसे बढ़ावा दिया जाएगा।

अन्य प्रमुख बिंदु:

  • यह नीति रक्षा निर्यात बढ़ाने के लिये, रक्षा अटैच (Attachés) को अनिवार्य बनाती है और विदेशों में स्वदेशी रक्षा उपकरणों के निर्यात को बढ़ावा देने के लिये समर्थित है।
    • यह प्रयास चयनित रक्षा सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रमों (Defence Public Sector Undertakings- DPSUs) द्वारा पूरा किया जाएगा।
  • रणनीतिक विचारों के अधीन, घरेलू रूप से निर्मित रक्षा उत्पादों को सरकार के माध्यम से सरकारी समझौतों और क्रेडिट/फंडिंग के माध्यम से प्रोत्साहन दिया जाएगा।

Indian-Defence-sector

आगे की राह:

  • रक्षा विनिर्माण में आत्मनिर्भरता, प्रभावी रक्षा क्षमता और राष्ट्रीय संप्रभुता को बनाए रखने तथा सैन्य श्रेष्ठता हासिल करने के लिये यह एक महत्त्वपूर्ण घटक साबित होगी।
  • इसे प्राप्त करने से रणनीतिक स्वतंत्रता सुनिश्चित होगी साथ ही लागत प्रभावी रक्षा उपकरण और रक्षा आयात से संबंधित व्यय पर बचत हो सकेगी जो बाद में भौतिक और सामाजिक बुनियादी ढाँचे को सशक्त बनाने में प्रयुक्त हो सकती है।

स्रोत: द हिंदू


भारतीय राजनीति

बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिकाएँ और जम्मू-कश्मीर

प्रीलिम्स के लिये

बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका, निवारक निरोध

मेन्स के लिये

बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिकाएँ और इनका महत्त्व

चर्चा में क्यों?

उपलब्ध आँकड़ों के अनुसार, 5 अगस्त, 2019 को तत्कालीन जम्मू-कश्मीर की विशेष स्थिति समाप्त होने के बाद से जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय ने अगस्त 2019 से दिसंबर 2019 के बीच दायर लगभग 160 बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिकाओं का निपटारा किया और कम-से-कम 270 बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिकाएँ लंबित हैं।

प्रमुख बिंदु

  • मामलों को निपटाने की प्रक्रिया के दौरान लगभग 61 प्रतिशत मामलों को 3-4 सुनवाई तक खींचा गया।
  • आँकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि अगस्त 2019 से दिसंबर 2019 के बीच दायर लगभग 160 बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिकाओं में से अधिकांश का निपटान मार्च-जुलाई 2020 के बीच किया गया है, यह विश्लेषण दर्शाता है कि जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिकाओं को निपटाने की प्रक्रिया कितनी लंबी थी।
  • कई बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिकाकर्त्ताओं ने कहा कि इन मामलों को निपटाने के दौरान उच्च न्यायालय ने सरकारी वकीलों को अनुचित समय दिया, जिससे मामलों के निपटान में देरी हुई। ऐसे कई मामले देखे गए, जहाँ न्यायालय ने सरकारी वकीलों को आपत्ति दर्ज कराने अथवा अपना पक्ष प्रस्तुत करने के लिये 1 माह अथवा उससे भी अधिक समय दिया था।
  • जम्मू और कश्मीर उच्च न्यायालय बार एसोसिएशन की कार्यकारी समिति ने भारत के मुख्य न्यायाधीश को एक पत्र में सूचित किया है कि बीते वर्ष अगस्त माह में जम्मू-कश्मीर की विशेष स्थिति समाप्त होने के बाद से लगभग 99 प्रतिशत बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिकाएँ उच्च न्यायालय में लंबित हैं। 

  • जम्मू-कश्मीर में निवारक निरोध
    • 5 अगस्त, 2019 को केंद्र सरकार ने एक ऐतिहासिक निर्णय लेते हुए जम्मू-कश्मीर राज्य से संविधान का अनुच्छेद 370 हटाने और राज्य का विभाजन दो केंद्रशासित क्षेत्रों- जम्मू-कश्मीर एवं लद्दाख के रूप में विभाजित करने का निर्णय लिया था। 
    • 5 अगस्त और उसके पश्चात् कश्मीर घाटी में हज़ारों लोगों को हिरासत में लिया गया, इनमें से कई लोगों को सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम (Public Safety Act-PSA) के तहत हिरासत में लिया गया, जिसमें पहली बार राज्य के मुख्य धारा के नेता भी शामिल थे।
    • इसी वर्ष मार्च माह में राज्यसभा में एक सवाल का जवाब देते हुए केंद्रीय गृह राज्य मंत्री जी. किशन रेड्डी ने बताया था कि ‘रिपोर्ट के अनुसार, शांति भंग करने वाले अपराधों को रोकने और राज्य की सुरक्षा और सार्वजनिक व्यवस्था का रखरखाव करने के उद्देश्य से पत्थलगड़ी, उपद्रवियों और अलगावादियों समेत कुल मिलाकर 7,357 लोगों को निवारक हिरासत में लिया गया।
    • गौरतलब है कि ‘निवारक निरोध’, राज्य को यह शक्ति प्रदान करता है कि वह किसी व्यक्ति को कोई संभावित अपराध करने से रोकने के लिये हिरासत में ले सकता है।  
    • संविधान के अनुच्छेद 22(3) के तहत यह प्रावधान है कि यदि किसी व्यक्ति को ‘निवारक निरोध’ के तहत गिरफ्तार किया गया है या हिरासत में लिया गया है तो उसे अनुच्छेद 22(1) और 22(2) के तहत प्राप्त ‘गिरफ्तारी और हिरासत के खिलाफ संरक्षण’ का अधिकार प्राप्त नहीं होगा।
  • बंदी प्रत्यक्षीकरण
    • बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका के मामले में सर्वोच्च न्यायालय के पास संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत रिट जारी करने का अधिकार होता है।
    • यह उस व्यक्ति के संबंध में न्यायलय द्वारा जारी आदेश होता है, जिसे दूसरे द्वारा हिरासत में रखा गया है। यह किसी व्यक्ति को जबरन हिरासत में रखने के विरुद्ध होता है।
    • बंदी प्रत्यक्षीकरण वह रिट है जिसकी कल्पना एक ऐसे व्यक्ति को त्वरित न्याय प्रदान करने के लिये एक प्रभावी साधन के रूप में की गई थी जिसने बिना किसी कानूनी औचित्य के अपनी व्यक्तिगत स्वतंत्रता खो दी है।
    • भारत में बंदी प्रत्यक्षीकरण की रिट जारी करने की शक्ति केवल सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय में निहित है।
    • बंदी प्रत्यक्षीकरण की रिट सार्वजनिक प्राधिकरणों या व्यक्तिगत दोनों के विरुद्ध जारी की जा सकती है।
  • बंदी प्रत्यक्षीकरण का महत्त्व
    • बंदी प्रत्यक्षीकरण का अधिकार किसी व्यक्ति को गैर-कानूनी तरीके से उसके निजी अधिकारों से वंचित करने की सभी स्थितियों में एक उपाय के रूप में उपलब्ध है।
    • यह गैर-कानूनी या अनुचित नज़रबंदी से तत्काल रिहाई के प्रभावी साधनों की पुष्टि करता है।
  • बंदी प्रत्यक्षीकरण कब जारी नहीं की जा सकती है?
    • यदि व्यक्ति को कानूनी प्रक्रिया के अंतर्गत हिरासत में लिया गया हो।
    • यदि कार्यवाही किसी विधानमंडल या न्यायालय की अवमानना के तहत हुई हो।
    • न्यायालय के आदेश द्वारा हिरासत में लिया गया हो।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय अर्थव्यवस्था

क्रय प्रबंधक सूचकांक में गिरावट

प्रीलिम्स के लिये

क्रय प्रबंधक सूचकांक

मेन्स के लिये 

क्रय प्रबंधक सूचकांक में गिरावट के कारण और इसके निहितार्थ

चर्चा में क्यों?

आईएचएस मार्किट इंडिया (IHS Markit India) द्वारा जारी मासिक सर्वेक्षण के अनुसार, जुलाई 2020 में विनिर्माण क्षेत्र के ‘क्रय प्रबंधक सूचकांक’ (Purchasing Manager's Index- PMI) में गिरावट दर्ज की गई है।

प्रमुख बिंदु

  • ध्यातव्य है कि लगातार 32 महीने तक विस्तार करने के पश्चात् अप्रैल माह में सूचकांक संकुचन की ओर बढ़ना शुरू हो गया था।
  • हालाँकि जून माह में क्रय प्रबंधक सूचकांक’ (PMI) में कुछ बढ़ोतरी देखने को मिली थी, जहाँ मई 2020 में क्रय प्रबंधक सूचकांक’ (PMI) 30.8 अंक पर था, वहीं जून माह में यह बढ़कर 47.2 पर पहुँच गया था।
  • आईएचएस मार्किट इंडिया (IHS Markit India) द्वारा जारी ‘क्रय प्रबंधक सूचकांक’ (PMI) जुलाई 2020 में 47.2 अंक से गिरकर जून, 2020 में 46 अंक पर पहुँच गया है।
    • ध्यातव्य है कि इस सूचकांक में 50 से अधिक अंक विस्तार का संकेत देते हैं, जबकि 50 से कम अंक संकुचन का संकेत देते हैं।
    • यह लगातार चौथी बार है जब भारतीय विनिर्माण क्षेत्र में संकुचन देखने को मिला है।
  • निहितार्थ:
    • गौरतलब है कि भारतीय विनिर्माण क्षेत्र से संबंधित ये आँकड़े COVID-19 महामारी से बुरी तरह प्रभावित देशों में से एक भारत की आर्थिक स्थिति पर अधिक प्रकाश डालते हैं। 
    • इस सर्वेक्षण के परिणामों ने उत्पादन और नए आदेशों में हुई गिरावट की पुष्टि की है।

  • कारण
    • COVID-19 के मद्देनज़र देशभर में लॉकडाउन की वज़ह से विनिर्माण क्षेत्र की गतिविधियों पर व्यापक प्रभाव पड़ा है। 
    • आईएचएस मार्किट इंडिया द्वारा जारी रिपोर्ट बताती है कि भारत के निर्यात में भारी गिरावट दर्ज की गई है।
    • ध्यातव्य है कि केंद्र सरकार ने कोरोना वायरस (COVID-19) के प्रसार को रोकने के लिये 25 मार्च को देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा की थी।
      • इसके परिणामस्वरूप देश भर में सभी प्रकार की आर्थिक और गैर-आर्थिक गतिविधियाँ पूरी तरह से रुक गई थीं और उत्पादन भी लगभग बंद हो गया था।
      • हालाँकि मई माह से शुरू होने वाले चरणों में लॉकडाउन के प्रतिबंधों में कुछ छूट दी जाने लगी, किंतु कई राज्य सरकारों ने राज्य में वायरस के प्रसार को रोकने के लिये लॉकडाउन को और अधिक बढ़ाने का निर्णय लिया, जिससे मई माह में शुरू हुई आर्थिक गतिविधियों पर प्रभाव पड़ा।
    • जून माह में सुधार के संकेत देने वाले बेरोज़गारी दर जैसे संकेतक राज्यों द्वारा लागू किये गए लॉकडाउन के कारण जुलाई में फिर खराब स्थिति के संकेत देने लगे।
    • आँकड़ों के अनुसार, जुलाई माह के दौरान खुदरा व्यापार काफी सुस्त बना रहा, ऋण वृद्धि कम थी और डीज़ल की मांग में गिरावट देखने को मिली।
    • मांग में कमी के कारण व्यापार में गिरावट को देखते हुए विभिन्न औद्योगिक संस्थानों को अपने कर्मचारियों की संख्या में भी कमी करनी पड़ी है। इसके अलावा भारत के निर्यात में भी कमी देखने को मिली है।
  • क्रय प्रबंधक सूचकांक (PMI)
    • PMI विनिर्माण और सेवा क्षेत्रों में व्यावसायिक गतिविधियों का एक संकेतक है। यह एक सर्वेक्षण-आधारित प्रणाली है।
    • इसकी गणना विनिर्माण और सेवा क्षेत्रों के लिये अलग-अलग की जाती है और फिर एक समग्र सूचकांक का निर्माण किया जाता है।
    • क्रय प्रबंधक सूचकांक (PMI) के दौरान विभिन्न संगठनों से कुछ प्रश्न पूछे जाते हैं, जिसमें आउटपुट, नए ऑर्डर, व्यावसायिक अपेक्षाएँ और रोज़गार जैसे महत्त्वपूर्ण संकेतक शामिल होते हैं, साथ ही सर्वेक्षण में भाग लेने वाले लोगों से इन संकेतकों को रेट करने के लिये भी कहा जाता है।
    • PMI को 0 से 100 तक के सूचकांक पर मापा जाता है।

स्रोत: द हिंदू


भारतीय विरासत और संस्कृति

राम मंदिर में टाइम कैप्सूल

प्रीलिम्स के लिये:

टाइम कैप्सूल

मेन्स के लिये:

टाइम कैप्सूल

चर्चा में क्यों?

अयोध्या में राम मंदिर निर्माण स्थल पर ज़मीन के नीचे एक ‘टाइम कैप्सूल’ (Time Capsule) या काल पत्र (Kaal Patra) रखे जाने की खबरों को लेकर विभिन्न प्रकार के दावे पेश किये जा रहे हैं। 

प्रमुख बिंदु:

  • यद्यपि ‘राम जन्मभूमि तीर्थक्षेत्र ट्रस्ट’ द्वारा टाइम कैप्सूल रखे जाने की बात का खंडन किया गया है, परंतु ट्रस्ट के कुछ सदस्यों के अनुसार, टाइम कैप्सूल रखा जा रहा है तथा यह भगवान राम और उनके जन्मस्थान के बारे में एक संदेश लेकर जाएगा और इसे हज़ारों वर्षों तक संरक्षित रखा जाएगा। 

Time-Capsule

टाइम कैप्सूल (Time Capsule):

  • यह किसी भी आकार या आकृति का एक कंटेनर होता है, जिसमें वर्तमान समय के दस्तावेज़, फोटो और कलाकृतियों को रखा जाता है तथा आने वाली पीढ़ियों की खोज के लिये इसे भूमिगत दफन किया जाता है।
  • टाइम कैप्सूल के निर्माण के लिये विशेष इंजीनियरिंग की आवश्यकता होती है ताकि लंबी समयावधि के बाद भी कैप्सूल में रखी गई सामग्री का क्षय न हो।
  • कैप्सूल के निर्माण के लिये एल्यूमीनियम, स्टेनलेस स्टील जैसी सामग्री तथा अम्लता रहित पेपरों का प्रयोग किया जाता है।

वैश्विक स्तर पर टाइम कैप्सूल:

  • यद्यपि ‘टाइम कैप्सूल’ शब्द का प्रयोग 20वीं शताब्दी से प्रयुक्त किया जाने लगा है, परंतु इसका प्रारंभिक उदाहरण वर्ष 1777 का है, जिसे दिसंबर 2017 में पुनर्बहाली कार्य के दौरान स्पेन के एक चर्च से प्राप्त किया गया। 
  • नियोजित 'टाइम कैप्सूल' का प्रारंभ वर्ष 1876 से माना जाता है,  जब न्यूयॉर्क पत्रिका के प्रकाशक द्वारा फिलाडेल्फिया में 'सेंचुरी सेफ' (Century Safe) नाम से टाइम कैप्सूल को दफन किया गया।
  •  इंटरनेशनल टाइम कैप्सूल सोसाइटी (ITCS); जो दुनिया में 'टाइम कैप्सूल' की संख्या का अनुमान लगाती रहती है, के अनुसार संपूर्ण विश्व में अभी भी 10,000-15,000 'टाइम कैप्सूल' हैं।

भारत में टाइम कैप्सूल:

लाल किला:

  • भारत मे टाइम  कैप्सूल के कई प्रमुख उदाहरण देखने को मिलते हैं। एक ‘टाइम  कैप्सूल’ लाल किले के बाहर वर्ष 1972 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा भूमिगत रखा गया था। जिसको लेकर सरकार और अन्य पार्टियों के बीच काफी विरोध-प्रदर्शन देखने को मिला तथा जनता पार्टी की सरकार द्वारा इसे खोदकर निकाल लिया गया।

आईआईटी कानपुर:

  • 6 मार्च, 2010 को राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल द्वारा IIT कानपुर के कैंपस में टाइम कैप्सूल दफन किया गया था।
  • इसमें संस्थान का एक हवाई नक्शा, वार्षिक रिपोर्ट, हॉस्टल मेस का मेनू जैसी कुछ सामग्री रखी गई थी।  

अन्य टाइम कैप्सूल:  

  • मुंबई के एक स्कूल, जालंधर में लवली पब्लिक यूनिवर्सिटी, गांधी नगर के महात्मा मंदिर आदि में भी टाइम कैप्सूल दफन किये गए हैं।

टाइम कैप्सूल का महत्त्व:

  • 'टाइम कैप्सूल' का उपयोग भविष्य की पीढ़ियों के साथ संचार स्थापित करने की एक विधि के रूप में किया जाता है।
  • 'टाइम कैप्सूल' भविष्य के पुरातत्त्वविदों, मानवविज्ञानी, या इतिहासकारों को अतीत की मानव-सभ्यता के बारे में जानकारी प्राप्त करने में मदद करते हैं।

टाइम कैप्सूल की आलोचना:

  • कुछ इतिहासकारों का मानना है कि यह अनिवार्य रूप से एक 'व्यक्तिपरक अभ्यास' है, जिसे वर्तमान में महिमामंडन के रूप में पेश किया जा रहा है।
  • 'टाइम कैप्सूल' में पर्याप्त जानकारी का अभाव होता है, कई स्थानों से प्राप्त 'टाइम कैप्सूल' में उस समय के लोगों के बारे में बहुत कम जनकारी प्राप्त हुई है।

निष्कर्ष:

  • 'टाइम कैप्सूल' इतिहास को दर्शाने का एक मान्य तरीका नहीं है। टाइम कैप्सूल  में रखे जाने वाले दस्तावेज़ों का प्रमाणन नहीं किया जाता है, अत: टाइम कैप्सूल में प्रदान की जाने वाली जानकारी को अन्य स्रोतों के साथ सत्यापित किया जाना चाहिये।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


शासन व्यवस्था

कोविशील्ड: नैदानिक परीक्षण के चरण

प्रीलिम्स के लिये:

COVID-19, ग्रैंड चैलेंज इंडिया प्रोग्राम, राष्ट्रीय बायोफार्मा मिशन

मेन्स के लिये:

नैदानिक परीक्षण का चिकित्सीय क्षेत्र में महत्त्व 

चर्चा में क्यों?

हाल ही मेंड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया’ (Drugs Controller General of India-DCGI) द्वारा भारत में कोविशील्ड के द्वितीय और तृतीय चरण के नैदानिक परीक्षण (Clinical Trials) करने के लिये  सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (Serum Institute of India-SII), पुणे को मंजूरी दे दी गई है।

प्रमुख बिंदु:

  • SII विश्व में वैक्सीन का सबसे बड़ा निर्माता है इसके द्वारा निम्न और मध्यम आय वाले देशों के लिये COVID-19 वैक्सीन बनाने हेतु, स्वीडिश-ब्रिटिश फार्मा एस्ट्राज़ेनेका (AstraZeneca) के साथ टाई-अप किया गया है।
  • कोविशील्ड(Covishield)
    • यह ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राज़ेनेका COVID-19 वैक्सीन के निर्माता को दिया गया नाम है जिसे तकनीकी रूप से AZD1222 या ChAdOx 1 nCoV-19 कहा जाता है।
    • COVID-19 वैक्सीन के निर्माण के लिये पहले से ही यूनाइटेड किंगडम, दक्षिण अफ्रीका और ब्राजील में परीक्षण किये जा रहे हैं, जहाँ परीक्षण में शामिल प्रतिभागियों को लगभग एक माह में दो खुराक दी जा रही है।
    • कोविशील्ड द्वारा अपने प्रारंभिक परीक्षण में कोरोनवायरस के खिलाफ मनुष्यों में प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया विकसित की गई थी। प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को वैश्विक रूप से COVID-19 वैक्सीन के लिये प्राथमिक आवश्यकता माना जाता है।

पृष्ठभूमि:

  • ‘केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन’ (Central Drugs Standard Control Organisation-CDSCO) द्वारा स्थापित COVID-19 से संबंधित चिकित्सा के लिये विषय विशेषज्ञ समिति (Subject Expert Committee (SEC) ने महसूस किया है कि SII के परीक्षण स्थलों पर 'पैन इंडिया' दृष्टिकोण (pan India approach) को ध्यान में रखने की आवश्यकता है।

परीक्षण:

  • SII, अब भारत बायोटेक (Covaxin) और ज़ाइडस कैडिला (ZyCov-D) जैसे अन्य वैक्सीन निर्माताओं से आगे बढ़ते हुए व्यापक तौर पर द्वितीय और तृतीय चरण के लिये परीक्षणों को शुरू कर सकता है, जो अभी प्रथम और द्वितीय चरण के परीक्षणों के स्तर पर हैं।
    • हालाँकि, परीक्षण की शुरुआत का सटीक समय अभी तक स्पष्ट नहीं है। परीक्षण शुरू करने से पहले नैतिकता समिति की मंजूरी मिलने में कम से कम एक सप्ताह का समय लगेगा। यदि निर्धारित समय में प्रक्रियाएँ पूर्ण हुई तो वर्ष 2020 के अंत तक वैक्सीन का निर्माण संभव है।
  • कोविशिल्ड के परीक्षण में देश भर की 18-विषम साइटों (odd sites) से लगभग 1,600 प्रतिभागी शामिल होंगे, जिनकी पहचान राष्ट्रीय बायोफार्मा मिशन (National Biopharma Mission) और ग्रैंड चैलेंज इंडिया प्रोग्राम (Grand Challenges India Programme) द्वारा की गई हैं।

भारत में वर्तमान स्थिति: 

  • भारत में प्रति केस मृत्यु दर (Case Fatality Rate-CFR) की स्थिति अर्थात प्रति COVID-19 सकारात्मक केस पर मृत्यु की संख्या में सुधार हो रहा है तथा भारत वैश्विक स्तर पर COVID-19 में सबसे कम मृत्यु दरों वाले देश की स्थिति में बना हुआ है।
    • भारत में प्रति केस मृत्यु दर (Case Fatality Rate-CFR) 2.11 प्रतिशत है।

ग्रैंड चैलेंज इंडिया प्रोग्राम:

  • ग्रैंड चैलेंज इंडिया प्रोग्राम (Grand Challenges India Programm) भारत में ‘जैव प्रौद्योगिकी विभाग के जैव प्रौद्योगिकी उद्योग अनुसंधान सहायता परिषद’ (Biotechnology Industry Research Assistance Counci- BIRAC) तथा ‘बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन’ (Bill and Melinda Gates Foundation) के मध्य एक भागीदारी तंत्र है।
    • BIRAC एक सार्वजनिक क्षेत्र का उद्यम है, जिसे DBT द्वारा स्थापित किया गया है।
  • उद्देश्य: भारत में नवीन स्वास्थ्य और विकास अनुसंधान को प्रेरित करने के उद्देश्य से संयुक्त पहल शुरू करना।

राष्ट्रीय बायोफार्मा मिशन

  • यह देश में बायोफार्मास्यूटिकल विकास में तेजी लाने के लिये एक उद्योग-अकादमिक सहयोगी मिशन है।
  • इसे वर्ष 2017 में कुल 1500 करोड़ की लागत के साथ शुरू किया गया था जो कुल 50 प्रतिशत की सह-लगात (Co-Funded) के साथ विश्व बैंक द्वारा वित्त पोषित है।
  • इस मिशन को BIRAC द्वारा कार्यान्वित किया जा रहा है।

स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

चतुष्पक्षीय संवाद

प्रीलिम्स के लिये:

बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव, दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन

मेन्स के लिये:

चतुष्पक्षीय संवाद का भारत के हितों पर प्रभाव 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, चीन द्वारा अफगानिस्तान, नेपाल और पाकिस्तान के विदेश मंत्रियों के साथ चतुष्पक्षीय संवाद/वार्ता (Quadrilateral Dialogue) का आयोजन किया गया।

प्रमुख बिंदु:

चार सूत्री योजना:

  • इस वार्ता में चीन ने COVID-19 महामारी को रोकने, आर्थिक सुधार को बढ़ावा देने और बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (Belt and Road Initiative-BRI) बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं को फिर से शुरू करने के लिये चार-सूत्रीय योजना का प्रस्ताव रखा।
  • चार सूत्री योजना में शामिल हैं-
    • अच्छे पड़ोसियों के रूप में महामारी से लड़ने में आम सहमति साझा करना।
    • चीन और पाकिस्तान के महामारी के संयुक्त रोकथाम और नियंत्रण मॉडल से सीखना।
    • चारों देशों द्वारा शीघ्र ग्रीन चैनल  खोलने पर विचार करना। ग्रीन चैनल एक मार्ग है, जिसके माध्यम से यात्री हवाई अड्डे में सीमा शुल्क आदि देने के बाद यह दावा करते हैं कि उनके पास कोई भी आपत्तिजनक/संदिग्ध सामान नहीं है।
    • चीन को तीन देशों (पाकिस्तान, अफगानिस्तान, नेपाल) में COVID-19 महामारी से बचाव के संदर्भ में विशेषज्ञता हासिल है जिसमें वो टीके भी शामिल हैं जिनको चीन द्वारा विकसित किया जा रहा है तथा जो इन देशों के साथ साझा किये जाएंगे।
  • पाकिस्तान, नेपाल और अफगानिस्तान द्वारा इस वार्ता में चीन की प्रस्तावित चार-सूत्री सहयोग पहल का सक्रिय रूप से समर्थन किया गया।
  • वार्ता में शामिल अन्य चर्चित मुद्दे: 
    • चीन द्वारा अफगानिस्तान में चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) का विस्तार करने का भी प्रस्ताव रखा गया, साथ ही नेपाल के साथ एक आर्थिक गलियारे की योजना को आगे बढ़ाते हुए ट्रांस-हिमालयन मल्टी-डायमेंशनल कनेक्टिविटी नेटवर्क (Trans-Himalayan Multi-dimensional Connectivity Network) पर भी बात की गई।
    • चारों देशों द्वारा महामारी के दौरान विश्व स्वास्थ्य संगठन की बहुपक्षीय मदद अर्थात WHO द्वारा अफगानिस्तान में संघर्ष विराम की स्थिति का समर्थन करना तथा अफगानिस्तान में शांति और सुलह प्रक्रिया का समर्थन आदि का समर्थन किया गया।
  • भारत की चिंता:
  • चीन द्वारा इस चतुष्पक्षीय बैठक में तीन देशों से अपने भौगोलिक हितों का लाभ उठाने, चार देशों एवं मध्य एशियाई देशों के मध्य आदान-प्रदान एवं संपर्क को मजबूत करने तथा  क्षेत्रीय शांति एवं स्थिरता की रक्षा करने के लिये कहा गया।
  • चीन की यह टिप्पणी उस समय और अधिक महत्त्वपूर्ण हो जाती है जब भारत और चीन के मध्य सीमा पर तनाव की स्थिति विद्यमान है।
  • यह वार्ता उस समय आयोजित हुई है जब कालापानी क्षेत्र (Kalapani Region) में सीमा विवाद के कारण भारत-नेपाल संबंध चिंताजनक स्थिति में है।
  • नेपाल के प्रधानमंत्री के.पी. ओली द्वारा भारत पर अपनी सरकार को अस्थिर करने की कोशिश करने का  आरोप भी लगाया गया है।

आगे की राह:

चीन दक्षिण एशिया में एक ठोस अतिक्रमण रणनीति को अपना रहा है जो निश्चित रूप से भारत के हितों को प्रभावित करेगा। विशेषज्ञों की ऐसी राय है कि दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन ( South Asian Association for Regional Cooperation-SAARC) समूह के तीन सदस्यों को भारत की सहमति के बिना चीन द्वारा एक साथ लाना भारत के प्रति चीन का एक भड़काऊ कदम है अतः भारत द्वारा इसे एक संदेश के रूप में देखे जाने की आवश्यकता है।

स्रोत: द हिंदू


भारतीय इतिहास

लोकमान्य तिलक की 100वीं पुण्यतिथि

प्रीलिम्स के लिये:

भारतीय होम रूल आंदोलन,लखनऊ पैक्ट

मेन्स के लिये:

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में तिलक की भूमिका तथा वर्तमान समय में तिलक के विचारों का महत्त्व 

चर्चा में क्यों?

1अगस्त, 2020 को ‘भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद’ (Indian Council for Cultural Relations-ICCR) द्वारा लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक की 100वीं पुण्यतिथि मनाने के लिये एक वेबिनार का आयोजन किया गया।

प्रमुख बिंदु

  • पृष्ठभूमि:
    • लोकमान्य तिलक का जन्म 23 जुलाई, 1856 को महाराष्ट्र के रत्नागिरी में हुआ था।
    • ये पेशे से वकील थे, इन्हें लोकमान्य तिलक के रूप में भी जाना जाता हैं।
    • भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के समय इन्होंने ‘स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूँगा’ का नारा दिया। 
    • इनकी मृत्यु 1 अगस्त, 1920 को हुई।
  • भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में इनका योगदान:
    • लोकमान्य तिलक पूर्ण स्वतंत्रता या स्वराज्य (स्व-शासन) के सबसे प्रारंभिक एवं सबसे मुखर प्रस्तावकों में से एक है।
    • लाला लाजपत राय तथा बिपिन चंद्र पाल के साथ ये लाल-बाल-पाल की तिकड़ी (गरम दल/उग्रपंथी दल) का हिस्सा थे।
    • एक अंग्रेज़ी पत्रकार वेलेंटाइन चिरोल द्वारा लिखित पुस्तक 'इंडियन अनरेस्ट' में तिलक को 'भारतीय अशांति का जनक' कहा गया है।
    • लोकमान्य तिलक, वर्ष 1890 में भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस (Indian National Congress-INC) में शामिल हुए।
    • इन्होंने स्वदेशी आंदोलन का प्रचार किया तथा लोगों को विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार के लिये प्रोत्साहित किया।
    • तिलक ने अप्रैल 1916 में बेलगाम में अखिल भारतीय होम रूल लीग (All India Home Rule League) की स्थापना की।
      • इसका कार्य क्षेत्र महाराष्ट्र (बॉम्बे को छोड़कर), मध्य प्रांत, कर्नाटक और बरार था।
    • राष्ट्रवादी संघर्ष में हिंदु-मुस्लिम एकता के लिये भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस के प्रतिनिधित्व के तौर पर तिलक तथा अखिल भारतीय मुस्लिम लीग की तरफ से मोहम्मद अली जिन्ना ने लखनऊ पैक्ट (Lucknow Pact, 1916) पर हस्ताक्षर किये।
    • इन्होंने मराठी भाषा में केसरी तथा अंग्रेज़ी भाषा में मराठा नामक समाचार पत्रों का प्रकाशन किया तथा वेदों पर ‘गीता रहस्य’ और ‘आर्कटिक होम’ नामक पुस्तकें लिखीं।

भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद:

  • भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद (Indian Council for Cultural Relations-ICCR), भारत सरकार का एक स्वायत्त संगठन है, जो अन्य देशों तथा उनके निवासियों के साथ भारत के बाहर सांस्कृतिक संबंधों (सांस्कृतिक कूटनीति) के सांस्कृतिक आदान-प्रदान से संबंधित गतिविधियों को देखता है।
  • इसकी स्थापना वर्ष 1950 में स्वतंत्र भारत के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आज़ाद द्वारा की थी।
  • ICCR को वर्ष 2015 से भारतीय मिशनों/पोस्टों द्वारा अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस (21 जून) को आयोजित करने की ज़िम्मेदारी सौंपी गई है।
  • सामाजिक योगदान:
    • तिलक डेक्कन एजुकेशन सोसाइटी के संस्थापक (1884) थे, इसके संस्थापक सदस्यों में गोपाल गणेश अगरकर और अन्य भी शामिल थे।
    • महाराष्ट्र में गणेश चतुर्थी त्योहार को लोकप्रिय बनाया।
    • सम्राट छत्रपति शिवाजी की जयंती पर शिव जयंती मनाने का प्रस्ताव रखा।
    • हिंदू धर्म के लोगों को अत्याचार से लड़ने के लिये हिंदू धर्मग्रंथों के इस्तेमाल पर बल दिया।

वर्तमान समय में तिलक के विचारों की प्रासंगिकता: 

  • स्वदेशी उत्पादों और स्वदेशी आंदोलन के प्रति तिलक का रूख आज के भारत की ‘आत्मनिर्भर भारत’ की संकल्पना को आगे बढ़ाने में मदद कर सकता है। इस प्रकार, आर्थिक राष्ट्रवाद के पुनरुद्धार में तिलक की विचारधारा को समाहित किया जा सकता है।
  • कॉन्ग्रेस की स्थानीय बैठकों में तिलक सदस्यों से अपनी मातृभाषा में बोलने की वकालत करते थे। हाल ही में भारत सरकार ने भी ‘नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति’ (2020) के माध्यम से संस्कृत और स्थानीय भाषाओं को अपनाने पर बल दिया है।
  • तिलक अस्पृश्यता के कट्टर विरोधी थे, यही कारण था कि उन्होंने जाति और संप्रदायों के आधार पर विभाजित समाज को एकजुट करने के लिये एक बड़ा आंदोलन चलाया। वर्तमान समय में भी इस तरह के व्यवहार को अपनाने की ज़रूरत है ताकि भारतीय समाज को एकजुट किया जा सके।

स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस


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