अंतर्राष्ट्रीय संबंध
‘एनरिका लेक्सी’ विवाद का अंतिम निर्णय
प्रीलिम्स के लियेपरमानेंट कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन, ‘एनरिका लेक्सी’ विवाद मेन्स के लियेPCA के निर्णय का भारत पर प्रभाव, अंतर्राष्ट्रीय समुद्री सीमा से संबंधित विवादों की निपटान प्रणली |
चर्चा में क्यों?
हेग स्थित ‘परमानेंट कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन’ (Permanent Court of Arbitration-PCA) ने ‘एनरिका लेक्सी’ (Enrica Lexie Case) मामले में निर्णय देते हुए इटली के दो नौसेनिकों पर भारतीय मछुआरों की हत्या का आपराधिक मुकदमा चलाने को लेकर भारत के तर्क को खारिज़ कर दिया है।
प्रमुख बिंदु
- पाँच सदस्यों वाले ‘परमानेंट कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन’ (PCA) ने भारत को इटली के दोनों नौसेनिकों के विरुद्ध सभी प्रकार की आपराधिक कार्यवाहियों को रोकने का आदेश दिया है।
- PCA ने स्पष्ट किया है कि भारत के पास इटली के नौसेनिकों पर आपराधिक मुकदमा चलाने का क्षेत्राधिकार नहीं है।
‘एनरिका लेक्सी’ विवाद की पृष्ठभूमि
- दरअसल वर्ष 2012 में भारतीय नौसेना और तटरक्षक बल ने ‘एनरिका लेक्सी’ नामक तेल टैंकर जहाज़ पर तैनात इटली के दो नौसैनिकों को हिरासत में लिया था, जिन पर आरोप था कि उन्होंने दो भारतीय मछुआरों को गोली मार कर हत्या कर दी थी।
- इस संबंध में इटली के नौसेनिकों ने अपना पक्ष स्पष्ट करते हुए कहा कि उन्हें यह गलतफहमी हुई कि वे दोनों मछुआरे समुद्री लुटेरे हैं और इसलिये दोनों ने उन पर गोली चला दी, जिससे उनकी चली गई थी।
- इस घटना की खबर होते ही भारतीय नौसेना और तटरक्षक बल ने इटली के दोनों सैनिकों को हिरासत में लिया, हालाँकि उन पर उस समय कोई मुकदमा दायर नहीं किया।
- भारतीय नौसेना के अनुसार, जब यह घटना हुई तब इटली का ‘एनरिका लेक्सी’ तेल टैंकर भारत के तट से लगभग 20.5 नॉटिकल माइल (Nautical Miles) दूर था।
- इस घटना के तीन वर्षों बाद इटली ने ‘इंटरनेशनल ट्रिब्यूनल फॉर लॉ ऑफ द सी’ (International Tribunal for Law of the Sea-ITLOS) के समक्ष याचिका दायर की और यह अनुरोध किया कि भारत इस संबंध में इटली के दोनों सैनिकों के विरुद्ध चल रहे सभी मुकदमों को तुरंत रोक दे और दोनों लोगों को वापस इटली भेज दे।
- तब तक भारत सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिये गए आदेश के अनुरूप आपराधिक न्यायालय क्षेत्र के निर्धारण हेतु एक विशेष रूप से नामित अदालत की स्थापना कर दी थी।
- वहीं राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (NIA) ने भी दोनों लोगों के विरुद्ध हत्या से संबंधित मामले में मुकदमा दर्ज कर लिया था।
- वर्ष 2015 में ITLOS ने अपना निर्णय दिया और भारत तथा इटली को ‘एनरिका लेक्सी’ मामले के संबंध में घरेलू स्तर पर चल रहे सभी मामलों को निलंबित करने का आदेश दिया। इसके साथ ही ITLOS ने दोनों देशों को इस मामले में कोई और कदम न उठाने का भी आदेश दिया था।
- ITLOS के निर्णय के बाद इटली इस मामले को ‘परमानेंट कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन’ (PCA) के समक्ष लेकर गया।
- गौरतलब है कि इस विवाद ने भारत और इटली दोनों देशों के बीच कुछ समय के लिये राजनयिक तनाव को काफी अधिक बढ़ा दिया था।
PCA का निर्णय
- PCA ने अपने निर्णय में कहा कि भारत के पास इटली के दोनों नौसेना पर ‘एनरिका लेक्सी’ मामले में किसी भी प्रकार का आपराधिक मुकदमा चलाने का अधिकार नहीं है, क्योंकि वे दोनों नौसैनिक एक राष्ट्र की ओर से कार्य कर रहे थे, न कि व्यक्तिगत तौर पर।
- PCA ने माना कि इटली के सैन्य अधिकारियों की कार्यवाही ने भारत के नेविगेशन की स्वतंत्रता से संबंधित अधिकार का उल्लंघन किया है, जिसके कारण भारत मुआवज़े का हकदार है, क्योंकि इटली के सैन्य अधिकारियों की कार्यवाही के कारण भारत को जान-माल का नुकसान हुआ है।
भारत के लिये इस निर्णय के निहितार्थ
- PCA के हालिया निर्णय को भारत के लिये आंशिक जीत और आंशिक हार के तौर पर देखा जा सकता है, जहाँ एक ओर भारत को इस संबंध में मुआवज़े प्राप्त करने का अधिकार है, वहीं अब भारतीय नागरिकों की मृत्यु के लिये उत्तरदायी लोगों को भारतीय न्याय क्षेत्र में सज़ा नहीं दी जा सकेगी।
- भारत सरकार ने PCA के निर्णय को स्वीकार करते हुए, सर्वोच्च न्यायालय को ‘एनरिका लेक्सी’ विवाद से संबंधित सभी मामलों को निलंबित करने को लेकर सूचित किया है।
- विशेषज्ञ मानते हैं कि PCA के हालिया निर्णय का प्रभाव आने वाले समय में ऐसे ही किसी अन्य मामले पर देखने को मिल सकता है और अपराधी इसी प्रकार PCA के हालिया निर्णय का सहारा लेकर आसानी से बच सकते हैं।
परमानेंट कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन (PCA)
- परमानेंट कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन (PCA) राज्यों के बीच मध्यस्थता एवं विवाद समाधान के लिये समर्पित एक अंतर-सरकारी संगठन है।
- परमानेंट कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन (PCA) की स्थापना वर्ष 1899 में हुई थी और इसका मुख्यालय हेग, नीदरलैंड्स में स्थित है।
- PCA में एक प्रशासनिक परिषद होती है जो नीतियों और बजट का प्रबंधन करती है और साथ ही इसमें स्वतंत्र मध्यस्थों का पैनल भी होता है जिन्हें न्यायालय के सदस्य के रूप में जाना जाता है।
स्रोत: द हिंदू
शासन व्यवस्था
इंडिया टीबी रिपोर्ट- 2020
प्रीलिम्स के लिये:इंडिया टीबी रिपोर्ट- 2020 के प्रमुख बिंदु मेन्स के लिये:टीबी के उन्मूलन के लिये सरकार द्वारा किये जा रहे प्रयास |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में ‘स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय’ ( Ministry of Health and Family Welfare) द्वारा वर्चुअल कार्यक्रम के माध्यम से वार्षिक तपेदिक (टीबी) रिपोर्ट, 2020 (Annual Tuberculosis Report, 2020) जारी की गई है।
प्रमुख बिंदु:
- इंडिया टीबी रिपोर्ट, 2020 के अनुसार, वर्ष 2019 में लगभग 24.04 लाख टीबी (क्षय) मरीज़ों को अधिसूचित/चिन्हित किया गया है जो वर्ष 2018 की तुलना में 14% अधिक हैं।
- रिपोर्ट के अनुसार, विश्व में टीबी-एचआईवी से एक साथ होने वाली मौतों की संख्या में भारत विश्व में दूसरे स्थान पर है जिसमे कुल 9% मरीज़ शामिल हैं।
- इंडिया टीबी की रिपोर्ट, 2020 के अनुसार, हर वर्ष देश में टीबी-एचआईवी सह-संक्रमण से लगभग 9,700 लोगों की मृत्य हो जाती है।
- इंडिया टीबी रिपोर्ट, 2020 के अनुसार, देश में कुल 92000 ऐसे लोगों को अधिसूचित किया गया है जिन्हें टीबी-एचआईवी एक साथ है।
- सभी अधिसूचित टीबी रोगियों में एचआईवी जाँच को लेकर जागरूकता का स्तर वर्ष 2019 में 81% हो गया जो वर्ष 2018 में 67% था।
- पिछले दो वर्षों में टीबी रोगियों में उपचार की सफलता दर 70-73% के आसपास रही है। जबकि वर्ष 2014-2016 में यह 76 और 77 % के बीच रही थी।
- रिपोर्ट के अनुसार भारत में टीबी के कुल मामलों में से 20 % मधुमेह से पीड़ित लोगों के भी हैं।
- वर्ष 2019 में, संशोधित राष्ट्रीय टीबी नियंत्रण कार्यक्रम के तहत अधिसूचित टीबी रोगियों में 64 प्रतिशत रोगियों की रक्त शर्करा की जाँच की गई थी।
- रिपोर्ट के अनुसार, तम्बाकू के उपयोग के कारण 8% टीबी मामलों में वृद्धि देखी गई है जबकि वर्ष 2018 में यह 4 % थी।
- रिपोर्ट के अनुसार देश में अभी भी 0.54 मिलियन टीबी की आबादी को अधिसूचित नहीं किया गया है जो एक चिंता का विषय है।
राज्य तपेदिक/टीबी सूचकांक:
- तपेदिक के कुल मामलों में आधे से अधिक वाले पाँच शीर्ष राज्य:
- उत्तर प्रदेश (20%), महाराष्ट्र (9%), मध्यप्रदेश (8%) राजस्थान (7%) और बिहार (7%) हैं।
- रिपोर्ट के अनुसार, देश में तपेदिक के कुल आधे से अधिक मामले उपर्युक्त पाँच राज्यों में देखे गए हैं।
- तपेदिक नियंत्रण में बेहतर प्रदर्शन करने वाले बड़े राज्य:
- गुजरात, आंध्र प्रदेश और हिमाचल प्रदेश 50 लाख आबादी वाले राज्यों की श्रेणी में तपेदिक नियंत्रण के लिये शीर्ष तीन सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाले राज्य हैं।
- तपेदिक नियंत्रण में बेहतर प्रदर्शन करने वाले छोटे राज्य:
- नागालैंड और त्रिपुरा 50 लाख से कम आबादी वाले शीर्ष राज्यों की श्रेणी में तपेदिक नियंत्रण के लिये सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाले राज्य हैं।
- तपेदिक नियंत्रण में बेहतर प्रदर्शन करने वाले केंद्रशासित प्रदेश:
- दादरा और नगर हवेली तथा दमन और दीव तपेदिक नियंत्रण के लिये सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाले शीर्ष केंद्रशासित प्रदेश की सूची में शामिल हैं ।
टीबी/क्षय:
- टीबी या क्षय रोग बैक्टीरिया (माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस) के कारण होता है जो फेफड़ों को सबसे अधिक प्रभावित करता है।
- टीबी एक संक्रामक रोग है जो एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में खांसी, छींकने या थूकने के दौरान हवा के माध्यम से या फिर संक्रमित सतह को छूने से फैलता है।
- इस रोग से पीड़ित व्यक्ति में बलगम और खून के साथ खांसी, सीने में दर्द, कमज़ोरी, वजन कम होना, तथा बुखार इत्यादि के लक्षण देखे जाते हैं।
सरकार द्वारा इस दिशा में प्रयास:
- भारत सरकार द्वारा ‘राष्ट्रीय टीबी कार्यक्रम’ (National TB Programme- NTP) की शुरूआत वर्ष 1962 में बीसीजी टीकाकरण (BCG vaccination) और टीबी उपचार से जुड़े ज़िला टीबी मॉडल केंद्र के रूप में की गई थी।
- वर्ष 1978 में बीसीजी टीकाकरण को टीकाकरण विस्तारित कार्यक्रम के अंतर्गत स्थानांतरित कर दिया गया।
- वर्ष 1993 में ‘राष्ट्रीय टीबी कार्यक्रम’ को ‘संशोधित राष्ट्रीय टीबी नियंत्रण कार्यक्रम’ (Revised National TB Control Program-RNTCP) के रूप में लागू किया गया।
- वर्ष 1997 में ‘संशोधित राष्ट्रीय टीबी नियंत्रण कार्यक्रम’ के तहत टीबी/क्षय रोग के इलाज़ के लिये ‘डॉट्स’ पद्धति को शामिल किया गया जिसके अंतर्गत वर्ष 2005 तक पूरे देश को कवर किया गया।
- डॉट्स का पूरा नाम ‘डायरेक्टली ऑब्ज़र्व्ड थेरेपी शार्टटर्म कोर्सेज़’ (Directly Observed Treatment, Short Course-DOTS) है।
- इसके माध्यम से टी.बी के रोगियों का इलाज़ किया जाता है।
- इस विधि को ‘विश्व स्वास्थय संगठन’ (World Health Organization-WHO) द्वारा विश्व स्तर पर टी.बी. को नियंत्रित करने के लिये अपनाया गया है।
- इसके अंतर्गत रोगी को एक-दिन छोड़कर हफ्ते में तीन दिन डॉट्स कार्यकर्त्ता के द्वारा दवाई का सेवन कराया जाता है।
- वर्ष 2006 से वर्ष 2011 तक ‘संशोधित राष्ट्रीय टीबी नियंत्रण कार्यक्रम’ के दूसरे चरण में गुणवत्ता एवं सेवाओं की पहुँच में सुधार करना तथा देश में टीबी से संबंधित सभी मामलों का पता लगाने तथा उन्हें उपचारित करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया।
- आरएनटीसीपी द्वारा वर्ष 2025 तक भारत में टीबी नियंत्रण और उन्मूलन के लिये 'क्षय रोग वर्ष 2017-2025' के लिये 'राष्ट्रीय रणनीतिक योजना' जारी की गई है जो चार रणनीतिक स्तंभों (DTPB) अर्थात पता लगाना (Detect), उपचार करना (Treat), रोकथाम (Prevent) एवं निर्माण (Build)पर आधारित है
- इसके अलावा ‘पुनरीक्षित राष्ट्रीय क्षय रोग नियंत्रण कार्यक्रम’ को अब ‘राष्ट्रीय क्षय रोग उन्मूलन कार्यक्रम’ (National Tuberculosis Elimination Program-NTEP) के नाम से जाना जाएगा।
- वर्तमान में ‘विश्व स्वास्थ्य संगठन’ (World Health Organization-WHO) द्वारा वर्ष 2030 तक विश्व को टीबी/क्षय/तपेदिक के मुक्त करने का लक्ष्य रखा गया है परंतु वर्तमान में भारत सरकार वर्ष 2025 तक देश से क्षय रोग को खत्म करने के लिये प्रतिबद्ध है।
- वर्तमान में टीबी के उपचार के लिये 4.5 लाख से अधिक डॉट सेंटर देश के लगभग हर गाँव में उपचार प्रदान करते हैं।
- ‘निक्षय पोषण योजना’ (Nikshay Poshan Yojana- NPY) के माध्यम से टीबी रोगियों को उनके पोषण के लिये वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है।
- वर्ष 2019 में ‘टीबी हारेगा देश जीतेगा अभियान’ (TB Harega Desh Jeetega Campaign) की शुरुआत की गई है जो देश में टीबी के उन्मूलन से संबंधित कार्यक्रम है।
स्रोत: डाउन टू अर्थ
भारतीय अर्थव्यवस्था
‘एमएसएमई आपातकालीन उपाय कार्यक्रम’
प्रीलिम्स के लिये:विश्व बैंक, सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम, विश्व बैंक, अंतर्राष्ट्रीय पुनर्निर्माण और विकास बैंक मेन्स के लिये:‘एमएसएमई आपातकालीन उपाय कार्यक्रम’ का सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों के संदर्भ में महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत सरकार द्वारा ‘विश्व बैंक’ (World Bank ) के साथ ‘एमएसएमई आपातकालीन उपाय कार्यक्रम’ (MSME Emergency Response Programme) के लिये 750 मिलियन डॉलर के समझौते पर हस्ताक्षर किये गए हैंI
प्रमुख बिंदु:
- इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य COVID-19 महामारी के चलते बुरी तरह प्रभावित ‘सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों’ (Micro, Small, and Medium Enterprises- MSMEs) में वित्त का प्रवाह बढ़ाने में आवश्यक सहयोग प्रदान करना है।
- इस कार्यक्रम के माध्यम से लगभग 1.5 मिलियन MSMEs की नकदी एवं ऋण संबंधी तात्कालिक आवश्यकताओं को पूरा किया जाएगा ताकि मौजूदा प्रभावों को कम करने के साथ-साथ लाखों नौकरियों को सुरक्षित किया जा सके।
- विश्व बैंक की ऋण प्रदान करने वाली शाखा ‘अंतर्राष्ट्रीय पुनर्निर्माण और विकास बैंक' (International Bank for Reconstruction and Development -IBRD) से मिलने वाले 750 मिलियन डॉलर के इस ऋण की परिपक्वता अवधि 19 वर्ष है, जिसमें 5 वर्ष की छूट अवधि भी शामिल है।
- COVID-19 महामारी से MSME क्षेत्र बुरी तरह प्रभावित है जिसके चलते यह क्षेत्र आजीविका एवं रोज़गार दोनों ही मोर्चों पर व्यापक नुकसान उठा रहा है।
- भारत सरकार का प्रयास यह सुनिश्चित करने पर है कि वित्तीय क्षेत्र में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध तरलता का प्रवाह ‘गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों’ (Non-Banking Financial Companys -NBFCs) की तरफ बना रहे।
- इसके लिये बैंकिंग क्षेत्र जो जोखिम लेने के डर से बच रहा है वह NBFCs को ऋण देकर अर्थव्यवस्था में निरंतर धनराशि का प्रवाह बनाए रखेगा।
- विश्व बैंक समूह अपनी ‘अंतर्राष्ट्रीय वित्त निगम’ (International Finance Corporation-IFC) शाखा के माध्यम से MSMEs क्षेत्र में तरलता को बनाए रखने के लिये भारत सरकार को निम्नलिखित प्रकार से सहयोग प्रदान करेगा-
1. तरलता को उन्मुक्त करके (Unlocking liquidity)
- इसके तहत बैंकों और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (NBFCs) की ओर से MSMEs को दिये जाने वाले ऋणों में अंतर्निहित जोखिम को ऋण गारंटी सहित विभिन्न प्रपत्रों की एक श्रृंखला के माध्यम से समाप्त करने की कोशिश की जाएगी।
2. NBFCs तथाऔर MSMEs को मज़बूत करना (Strengthening NBFCs and SFBs)
- NBFCs तथा ‘स्मॉल फाइनेंस बैंक’ की वित्त पोषण (फंडिंग) क्षमता बढ़ाने से उन्हें MSMEs की तात्कालिक एवं विविध आवश्यकताओं का पूरा करने में मदद मिलेगी।
- इसमें MSMEs के लिये सरकार की पुनर्वित्त सुविधा द्वारा आवश्यक सहयोग देना भी शामिल होगा।
3. वित्तीय नवाचारों को मज़बूत करना (Enabling financial innovations)
- इसके माध्यम से MSMEs को ऋण देने और भुगतान में फिनटेक एवं डिजिटल वित्तीय सेवाओं के उपयोग को प्रोत्साहित कर उन्हें मुख्यधारा में शामिल किया जाना है।
‘एमएसएमई आपातकालीन उपाय कार्यक्रम’ का महत्त्व:
- MSMEs क्षेत्र भारत के विकास एवं रोज़गार सृजन के महत्त्वपूर्ण केंद्र हैं जो COVID-19 के बाद भारत में आर्थिक विकास की गति को तीव्र करने में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
- यह कार्यक्रम लक्षित गारंटी/ऋण प्रदान करने में सरकार को आवश्यक सहयोग देगा, जिसके माध्यम से लाभप्रद MSMEs को उधार देने के लिये NBFCs तथा बैंकों को प्रोत्साहित किया जा सकेगा।
- इससे लाभप्रद MSMEs को मौजूदा आर्थिक संकट का सामना करने में मदद मिलेगी।
- यह MSMEs क्षेत्र को समय के साथ आगे बढ़ाने के लिये आवश्यक सुधारों के बीच एक महत्त्वपूर्ण कदम साबित होगा।
स्रोत: पीआईबी
कृषि
राज्यों द्वारा खाद्यान्नों की कुल खरीद में वृद्धि
प्रीलिम्स के लियेभारतीय खाद्य निगम, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम-2013 मेन्स के लियेCOVID-19 और खाद्यान्नों की कुल खरीद में आई तेज़ी |
चर्चा में क्यों?
COVID-19 महामारी के मद्देनज़र राहत उपायों के कारण राज्यों द्वारा खाद्यान्न की खरीद में तेज़ी आई है।
- केंद्र की विभिन्न योजनाओं के तहत भारतीय खाद्य निगम (Food Corporation of India- FCI) द्वारा राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों से खरीदे जाने वाले चावल की कुल मात्रा वर्ष 2019 में 90.71 लाख टन की तुलना में वर्ष 2020 में 192.34 लाख टन है।
प्रमुख बिंदु:
- COVID-19 महामारी के कारण केंद्र सरकार द्वारा यह घोषणा की गई थी कि देश में प्राथमिक परिवारों (Priority Household- PHH) एवं अंत्योदय अन्न योजना (Antyodaya Anna Yojana- AAY) कार्डधारकों को प्रति व्यक्ति के हिसाब से प्रति माह 5 किलोग्राम मुफ्त अनाज मिलेगा। शुरू में यह घोषणा सिर्फ तीन महीने (अप्रैल से जून) तक के लिये की गई थी किंतु अब इसे नवंबर, 2020 तक बढ़ा दिया गया।
- यह कार्डधारकों को ‘राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 (National Food Security Act, 2013) के तहत मिलने वाले अनाज के अलावा दिया गया अधिकार था।
- केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 के तहत कवर नहीं किये गए राशन कार्डधारकों या गैर-प्राथमिकता वाले परिवारों (Non-Priority Household- NPHH) को 21 रुपए प्रति किलोग्राम गेहूँ और 22 रुपए प्रति किलोग्राम चावल प्रदान करने की भी घोषणा की है।
- केंद्र सरकार की इस घोषणा का उपयोग तमिलनाडु सरकार ने लगभग 85.99 लाख ऐसे कार्डधारकों को चावल का अतिरिक्त अधिकार प्रदान करने के लिये किया है।
- प्रवासी मज़दूरों की आवश्यकताओं को पूरा करने के उद्देश्य से जिन्हें NFSA या राज्यों की किसी भी योजना के तहत लाभ नहीं मिल रहा था उनके लिये केंद्र सरकार ने एक अन्य योजना (मई एवं जून महीने के लिये प्रति माह 5 किलो. प्रति व्यक्ति मुफ्त अनाज का वितरण) की घोषणा की है।
- FCI के आँकड़ों से पता चला है कि सात राज्यों अर्थात् उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु एवं कर्नाटक ने COVID-19 महामारी के दौरान चावल की कुल मात्रा का 60% से अधिक उपयोग किया।
- गेहूँ के संदर्भ में कुल खरीद की वृद्धि दर इतनी अधिक नहीं थी। वर्ष 2019 के शुरुआती तीन महीनों में यह 59.45 लाख टन की तुलना में वर्ष 2020 में 78.16 लाख टन थी।
- राज्यों के संदर्भ में राजस्थान ने सबसे अधिक 14.84 लाख टन गेहूँ की खरीद की इसके बाद उत्तर प्रदेश ने 14.01 लाख टन गेहूँ की खरीद की।
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013:
- राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 के तहत गरीबों को 2 रुपए प्रति किलो. गेहूँ और 3 रुपए प्रति किलो. चावल देने की व्यवस्था की गई है। इस कानून के तहत व्यवस्था है कि लाभार्थियों को उनके लिये निर्धारित खाद्यान्न हर हाल में मिले, इसके लिये खाद्यान्न की आपूर्ति न होने की स्थिति में खाद्य सुरक्षा भत्ते के भुगतान के नियम को जनवरी 2015 में लागू किया गया।
- समाज के अति निर्धन वर्ग के हर परिवार को हर महीने अंत्योदय अन्न योजना में इस कानून के तहत सब्सिडी दरों पर यानी तीन रुपए, दो रुपए, एक रुपए प्रति किलो. क्रमशः चावल, गेहूँ और मोटा अनाज मिल रहा है।
- पूरे देश में इस कानून के लागू होने के बाद 81.34 करोड़ लोगों को 2 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से गेहूँ और 3 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से चावल दिया जा रहा है।
- जुलाई 2016 तक वैध एनएफएसए के तहत निर्दिष्ट खाद्यान्नों की कीमत – चावल 3 रुपए प्रति किग्रा, गेहूँ 2 रुपए प्रति किग्रा और मोटा अनाज 1 रुपए प्रति किग्रा को जून 2018 तक जारी रखा गया।
- वित्त वर्ष 2017-18 (13-12-2017 तक) के दौरान खाद्यान्नों के अंतर-राज्य आवागमन पर किये गए व्यय और उचित दर दुकानों के डीलरों के मार्जिन को पूरा करने के लिये केंद्र सरकार द्वारा राज्य सरकारों को केन्द्रीय सहायता के रूप में 2959.22 करोड़ रुपए जारी किये गए। एनएफएसए के अंतर्गत इस तरह की व्यवस्था पहली बार की गई।
स्रोत: द हिंदू
भारतीय अर्थव्यवस्था
CBDT और EBIC का विलय नहीं
प्रीलिम्स के लिये:केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड, केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर और सीमा शुल्क बोर्ड मेन्स के लिये:CBDT और EBIC का विलय |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में एक प्रमुख समाचार पत्र में 'केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड' (Central Board of Direct Taxes- CBDT) और 'केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर और सीमा शुल्क बोर्ड' (Central Board of Indirect Taxes and Customs- CBIC) के विलय का अप्रमाणित समाचार प्रकाशित होने के बाद केंद्र सरकार को मामलें में स्पष्टीकरण देना पड़ा।
प्रमुख बिंदु:
- केंद्र सरकार ने स्पष्ट किया है कि इन दो बोर्डों के विलय का अभी तक कोई प्रस्ताव नहीं है।
- CBDT और CBIC बोर्डों का गठन 'केंद्रीय राजस्व बोर्ड अधिनियम' (Central Board of Revenue Act)- 1963 के तहत किया गया है।
- प्रकाशित अप्रमाणित न्यूज़, पत्रकारिता में निम्न स्तरीय गुणवत्ता को दर्शाता है।
क्या था मामला?
- एक प्रमुख समाचार पत्र ने अपनी रिपोर्ट को प्रकाशित करने के लिये 'कर प्रशासनिक सुधार आयोग' (Tax Administrative Reforms Commission- TARC) की सिफारिशों को आधार बनाया तथा न्यूज़ से जुड़े तथ्यों को वित्त मंत्रालय के आवश्यक सत्यापन के बिना मुख्य पेज पर प्रकाशित किया।
- यहाँ ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि सरकार द्वारा TARC के दोनों बोर्डों के विलय की सिफारिश को पहले ही अस्वीकार कर दिया गया था।
TARC की सिफरिशें:
- वर्ष 2014 में ‘कर प्रशासनिक सुधार आयोग’ (TARC) ने CBDT तथा CBEC (वर्ष 2014 में CBIC को CBEC के रूप में जाना जाता था) के विलय की सिफारिश की थी।
- TARC द्वारा CBDT और CBEC को अगले 10 वर्षों में पूरी तरह से एकीकृत किये जाने की सिफारिश की गई थी।
- TARC ने अगले 5 वर्षों में केंद्रीय प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष करों के तहत एक एकीकृत प्रबंधन संरचना को अपनाने की भी सिफारिश की थी।
TARC का अवलोकन:
- वर्तमान संगठनात्मक संरचना में 'केंद्रीय प्रशासन प्रत्यक्ष कर बोर्ड' (CBDT) और 'केंद्रीय उत्पाद एवं सीमा शुल्क बोर्ड' (CBEC) में शीर्ष कर प्रशासक राजस्व सचिव होता है। राजस्व सचिव एक कर प्रशासन विशेषज्ञ न होकर समान्यज्ञ होता है।
- प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कर प्रशासन के बीच एक कृत्रिम अलगाव है। CBDT और CBEC के बीच सहयोग का अभाव है।
- भारत में कर प्रशासन और करदाताओं के बीच सबसे अधिक कर विवाद देखने को मिलते हैं जिसमें बकाया कर की वसूली का अनुपात बहुत कम है।
- CBDT और CBEC सदस्यों का चयन विशेषज्ञता, नीति अनुभव आदि पर विचार किये बिना वरिष्ठता के आधार पर किया जाता है।
सरकार का पक्ष:
- सरकार द्वारा दोनों बोर्डों के विलय के प्रस्ताव को अस्वीकृत कर दिया गया तथा करदाताओं के लिये अन्य मैत्रीपूर्ण सुधारों जैसे इलेक्ट्रॉनिक सत्यापन या लेन-देन को लागू करना आदि के कार्यान्वयन पर बल दिया गया।
CBIC और CBDT:
- 'केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड' और 'केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर और सीमा शुल्क बोर्ड' का गठन वर्ष 1963 में 'केंद्रीय राजस्व बोर्ड अधिनियम'- 1963 के माध्यम से केंद्रीय वित्त मंत्रालय के राजस्व विभाग के अधीन किया गया था।
- ये दोनों ही संस्थाएँ सांविधिक निकाय (Statutory Body) हैं।
- CBIC के कार्य:
- ‘केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर और सीमा शुल्क बोर्ड’ (CBIC) को पूर्व में 'केंद्रीय उत्पाद और सीमा शुल्क बोर्ड' (CBEC) के रूप में जाना जाता था।
- CBIC के कार्यों में लेवी और सीमा शुल्क संग्रहण, केंद्रीय उत्पाद शुल्क, ‘केंद्रीय माल और सेवा कर’ (CGST) और ‘एकीकृत माल और सेवा कर’ (IGST) के संग्रह तथा संबंधित कार्यों के संबंध में नीति तैयार करना शामिल है।
- CBDT के कार्य:
- CBDT प्रत्यक्ष करों से संबंधित नीतियों एवं योजनाओं के संबंध में महत्त्वपूर्ण इनपुट प्रदान करने के साथ-साथ आयकर विभाग की सहायता से प्रत्यक्ष करों से संबंधित कानूनों को प्रशासित करता है।
स्रोत: पीआईबी
भारतीय अर्थव्यवस्था
मनरेगा: कार्य दिवसों में वृद्धि की आवश्यकता
प्रीलिम्स के लियेमनरेगा और उससे संबंधित आँकड़े मेन्स के लियेग्रामीण गरीब परिवारों की आजीविका में मनरेगा की भूमिका |
चर्चा में क्यों?
मनरेगा से संबंधित नवीनतम आँकड़ों के अनुसार, देश भर के लगभग 1.4 लाख ग्रामीण गरीब परिवारों ने मौज़ूदा वर्ष के शुरुआती महीनों में ही मनरेगा के तहत 100 दिनों के कार्य का कोटा पूरा कर लिया है, जिसके कारण वे अब शेष वर्ष में योजना का लाभ प्राप्त करने के पात्र नहीं रह गए हैं।
- प्रमुख बिंदु
- वहीं देश भर के तकरीबन 7 लाख ग्रामीण गरीब परिवार ऐसे हैं, जिन्होंने मौज़ूदा वर्ष के शुरुआती महीनों में अपने कोटे के कुल 80 दिन पूरे कर लिये हैं और अब उनके पास पूरे वर्ष के लिये तकरीबन 20 दिन ही शेष बचे हैं।
- आँकड़ों के अनुसार, मनरेगा के तहत 100 दिन के कार्य का कोटा पूरा करने वाले परिवारों की संख्या में पहले स्थान पर छत्तीसगढ़ है, जहाँ कुल 60000 परिवार ऐसे हैं जिन्होंने अपने 100 दिन के कार्य का कोटा पूरा कर लिया है और वे इस योजना के लाभ हेतु पात्र नहीं है।
- इसके पश्चात् आंध्रप्रदेश का स्थान है जहाँ कुल 24,500 परिवारों ने अपना 100-दिवस का कोटा पूरा कर लिया है।
कारण
- गौरतलब है कि COVID-19 महामारी और लॉकडाउन के कारण लाखों की संख्या में बेरोज़गार प्रवासी श्रमिक अपने गाँवों में लौट रहे हैं और वे अब पूर्ण रूप से मनरेगा मज़दूरी पर निर्भर हैं।
- मानसून अभी तक सही दिखाई दे रहा है और जो लोग कृषि कार्य कर सकते हैं, उनके लिये यह आगामी कुछ महीनों में कार्य का एक विकल्प हो सकता है।
- हालाँकि सबसे गंभीर और चिंताजनक स्थिति दिसंबर माह के आस-पास उत्पन्न होगी जब ग्रामीण गरीब परिवारों के पास न तो कृषि कार्य होगा और न ही मनरेगा कार्य।
प्रभाव
- यदि महामारी के दौरान ग्रामीण गरीब परिवारों को इस आधार पर मनरेगा के तहत कार्य प्रदान करना बंद कर दिया जाता है कि उन्होंने अपना 100 दिन का कोटा पूरा कर लिया है, तो उन परिवारों के समक्ष एक बड़ा आर्थिक संकट उत्पन्न हो जाएगा।
- 1.4 लाख परिवारों की संख्या मनरेगा के तहत लाभ प्राप्त करने वाले कुल परिवारों की संख्या की अपेक्षा काफी कम है, किंतु वर्तमान समय में इन परिवारों के पास मनरेगा के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं है।
कार्य दिवस में वृद्धि की आवश्यकता
- मनरेगा योजना के अंतर्गत सूखे अथवा अन्य प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित ज़िलों के लिये प्रावधान है कि वे अपने क्षेत्र में प्रति दिन 150 दिनों के कार्य की अनुमति देने के लिये संबंधित प्राधिकरण से योजना के विस्तार का अनुरोध कर सकते हैं।
- यह देखते हुए कि देश में COVID-19 को राष्ट्रीय आपदा घोषित किया जा चुका है, सामाजिक कार्यकर्त्ताओं ने मनरेगा के उपरोक्त प्रावधान को तत्काल प्रभाव से लागू करने की मांग की है।
- स्थिति को मद्देनज़र रखते हुए तमाम सामाजिक कार्यकर्त्ता सरकार से आग्रह कर रहे हैं कि ग्रामीण गरीब परिवारों की सहायता करने के लिये कार्य दिवस की सीमा को प्रति परिवार कम-से-कम 200 दिन तक बढ़ाया जाए।
- इसके अलावा सरकार से यह भी मांग की जा रही है कि मनरेगा के तहत प्रतिदिन मिलने वाली मज़दूरी दर में भी बढ़ोतरी की जाए।
मनरेगा (MGNREGA)
- महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम अर्थात् मनरेगा को भारत सरकार द्वारा वर्ष 2005 में राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम, 2005 (NREGA-नरेगा) के रूप में प्रस्तुत किया गया था। वर्ष 2010 में नरेगा (NREGA) का नाम बदलकर मनरेगा (MGNREGA) कर दिया गया।
- मनरेगा कार्यक्रम के तहत प्रत्येक परिवार के अकुशल श्रम करने के इच्छुक व्यस्क सदस्यों के लिये 100 दिवस के गारंटीयुक्त रोज़गार का प्रावधान किया गया है।
- वहीं सूखाग्रस्त क्षेत्रों और जनजातीय इलाकों में मनरेगा के तहत 150 दिनों के रोज़गार का प्रावधान है।
आगे की राह
- मौजूदा COVID-19 महामारी का देश की अर्थव्यवस्था खास तौर पर ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर काफी गहरा प्रभाव पड़ा है, जिसके कारण देश के ग्रामीण गरीब परिवारों के समक्ष आजीविका का संकट उत्पन्न हो गया है।
- इस स्थिति में अधिकांश ग्रामीण गरीब परिवार मनरेगा को आय के एक विकल्प के रूप में देख रहे हैं, किंतु चूँकि मनरेगा के तहत केवल 100 दिवस के कार्य की ही मांग की जा सकती है, इसलिये जिन परिवारों ने अपने 100 दिवस पूरे कर लिये हैं उन्हें आने वाले समय में संकट का सामना करना पड़ सकता है।
- आवश्यक है कि एक संतुलित उपाय खोजने का प्रयास किया जाए और इस प्रक्रिया में सभी हितधारकों का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित किया जाए।
- इसके अलावा सरकार को देश के शहरी गरीबों और निजी क्षेत्र में कार्य करने वाले लोगों की ओर भी ध्यान देना चाहिये और यह सुनिश्चित करना चाहिये कि शहरों में भी किसी व्यक्ति को रोज़गार के संकट का सामना न करना पड़े।
स्रोत: द हिंदू
भारतीय अर्थव्यवस्था
भारतीय रेलवे का 'नेट ज़ीरो’ उत्सर्जन लक्ष्य
प्रीलिम्स के लिये:रेलवे की 'नेट ज़ीरो’ योजना मेन्स के लिये:रेलवे का विद्युतीकरण |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय रेलवे ने ‘भारतीय रेल परिवहन नेटवर्क’ को वर्ष 2030 'नेट ज़ीरो' (Net Zero) कार्बन उत्सर्जन वाली इकाई बनाने की दिशा में अनेक कदम उठाए हैं।
प्रमुख बिंदु:
- भारतीय रेलवे द्वारा पूरे रेल नेटवर्क को वर्ष 2024 तक पूरी तरह से विद्युत से संचालित करने तथा वर्ष 2030 तक नेट-शून्य उत्सर्जन नेटवर्क बनाने का लक्ष्य रखा गया है।
- सरकार इन पहलों को ‘मिशन मोड कार्यक्रम’ के तहत क्रियान्वित कर रही है।
- भारत इसके लिये ब्राज़ील जैसे देशों के सहयोग स्थापित करेगा ताकि स्वच्छ ऊर्जा, स्टार्टअप, मूल्य श्रृंखला आदि में निवेश बढ़ाने में मदद मिल सके।
भारतीय रेलवे से संबंधित महत्त्वपूर्ण जानकारी:
- भारतीय रेलवे लाइनों की कुल लंबाई लगभग 125,000 किमी. तथा रेलमार्गों की कुल लंबाई लगभग 68,000 किमी. है।
- मार्च 2019 तक केवल 35,488 किमी. लंबाई के रेलवे मार्ग का विद्युतीकरण हो पाया है।
पहल के उद्देश्य:
- ‘अत्मानिर्भार भारत अभियान’ इस पहल में मुख्य प्रेरक की भूमिका निभाएगा।
- भारतीय रेलवे को पूरी तरह से हरित परिवहन बनाने के लिये सौर ऊर्जा को बढ़ावा दिया जाएगा।
रेलवे द्वारा उठाए गए कदम:
- हरित ऊर्जा खरीद:
- भारतीय रेलवे हरित ऊर्जा खरीद के मामले में अग्रणी रहा है। इसने विभिन्न सौर परियोजनाओं यथा रायबरेली (उत्तर प्रदेश ) में स्थापित 3 मेगावाट के सौर संयंत्र से ऊर्जा खरीद शुरू कर दी है।
- सौर परियोजनाओं की स्थापना:
- भारतीय रेलवे के विभिन्न स्टेशनों और भवनों पर लगभग 100 मेगावाट वाले सौर पैनल स्थापित करने का कार्य प्रगति पर है।
- खाली पड़ी भूमि का उपयोग:
- भारतीय रेलवे की विद्युत ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये भूमि आधारित सौर संयंत्रों के निर्माण पर भी कार्य कर रहा है। ऐसी दो पायलट परियोजनाएँ भिलाई (छत्तीसगढ़) तथा दीवाना (हरियाणा) में कार्यान्वित की जा रही हैं। जिनके 31 अगस्त, 2020 तक शुरू होने की उम्मीद है।
डायरेक्ट करंट (DC) को अल्टरनेटिंग करंट (AC) में बदलने की विशेष तकनीक:
- बीना (मध्य प्रदेश) में ओवरहेड ट्रैक्शन सिस्टम पर आधारित विशेष संयत्र स्थापित किया गया है। इसके 15 दिनों के भीतर चालू होने की संभावना है।
- यह 'भारत हेवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड' तथा भारतीय रेलवे की पहल है।
- रेलवे के ओवरहेड ट्रैक्शन सिस्टम को सीधे फीड करने के लिये DC को सिंगल फेज़ AC में बदलने के लिये अभिनव तकनीक को अपनाया गया है।
- यह परियोजना BHEL द्वारा अपनी कॉर्पोरेट सोशल रिस्पांसबिलिटी के तहत शुरू की गई थी।
- इसे BHEL द्वारा ‘कॉर्पोरेट सोशल रिस्पांसबिलिटी’ (CSR) योजना के तहत शुरू किया गया है।
रेलवे के समक्ष चुनौतियाँ:
- रूफटॉप सोलर मॉड्यूल को बारिश, धूल भरी आँधी और बर्फ जैसी चरम मौसम स्थितियों में सुरक्षित रख पाना बहुत मुश्किल है।
- उत्पादित सौर ऊर्जा के भंडारण तथा इसके उपयोग करने के समक्ष अनेक तकनीकी चुनौतियाँ हैं।
- ‘नेट शून्य’ उत्सर्जन एक दूरगामी लक्ष्य है, वर्तमान में रेलवे लाइनों का 100%विद्युतीकरण ही एक प्रमुख चुनौती बना हुआ है।
पहल का महत्त्व:
- भारतीय रेलवे द्वारा प्रारंभ 'नेट शून्य' उत्सर्जन पहल भारत की जलवायु परिवर्तन की चुनौती के खिलाफ प्रारंभ पहलों में से एक है।
- रेलवे की पहल से भारत के ‘राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान’ (INDCs) लक्ष्यों की प्राप्ति में मदद मिलेगी।
- रेलवे लाइनों के साथ सौर परियोजनाओं की स्थापना रेलवे लाइनों के अतिक्रमण को रोकने, गाड़ियों की गति और सुरक्षा को बढ़ाने में मदद मिलेगी।
स्रोत: पीआईबी
विविध
Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 07 जुलाई, 2020
संजीवनी सेवा
हाल ही में अहमदाबाद नगर निगम (AMC) ने कोरोना वायरस (COVID-19) से संक्रमित उन रोगियों के लिये ‘संजीवनी वैन सेवा’ (Sanjivani Van Seva) शुरू की, जो होम आइसोलेशन के तहत उपचार कर रहे हैं। संजीवनी वैन में प्रशिक्षित पैरामेडिकल स्टाफ की एक टीम होगी, जो कि प्रत्येक दिन संक्रमित लोगों के निवास स्थान पर जाएगी और होम आइसोलेशन में मौजूद रोगी की नियमित जाँच करेगी। वहीं पैरामेडिकल टीम के पास विटामिन-C और विटामिन-D की गोलियों समेत कई अन्य आवश्यक दवाएँ होंगी। अहमदाबाद के प्रत्येक शहरी स्वास्थ्य केंद्र के पास अपनी एक संजीवनी वैन होगी। समग्र रूप से पूरे शहर में इस प्रकार की कुल 75 टीमों का संचालन किया जाएगा। इस संबंध में सूचना जारी करते हुए AMC ने कहा कि ‘प्रत्येक टीम में कुल दो पैरामेडिकल स्टाफ होंगे और एक डॉक्टर के नेतृत्त्व में कुल 10 टीमें कार्य करेंगी।’ गौरतलब है कि इससे पूर्व अहमदाबाद नगर निगम (AMC) ने कोरोना वायरस (COVID-19) महामारी के प्रकोप का सामना कर रहे अहमदाबाद में संक्रमण पर काबू पाने के लिये धन्वंतरी रथ (Dhanvantari Rath) की शुरुआत की थी। धन्वंतरी रथ एक प्रकार का एंबुलेंस है जिसमें एक डॉक्टर, पैरामेडिकल व फार्मा स्टाफ तथा आवश्यक दवाएँ आदि उपलब्ध हैं। धन्वंतरी रथ की शुरुआत मुख्य रूप से सामान्य बुखार, सर्दी-खांसी के चलते अस्पताल पहुँचने वाले लोगों के लिये की है। ये रथ अहमदाबाद के विभिन्न क्षेत्रों में घूम-घूम कर सामान्य बीमारी से प्रभावित लोगों का उपचार कर रहे हैं।
श्री सप्तमी गुरुकुल संस्कृत विद्यालय
भारत और नेपाल के मध्य सीमा विवाद के बीच हाल ही में नेपाल के इलाम ज़िले में ‘श्री सप्तमाई गुरुकुल संस्कृत विद्यालय’ के नए भवन का उद्घाटन किया गया। इस भवन का उद्घाटन वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से किया गया, जिसमें नेपाल के अधिकारी, स्कूल प्रबंधन समिति और नेपाल में भारतीय दूतावास के सदस्य शामिल थे। विद्यालय के नए भवन का निर्माण कुल 3 करोड़ 11 लाख नेपाली रुपए (लगभग 1.94 करोड़ भारतीय रुपए) की लागत से किया गया है। इसमें कक्षाओं के लिये 10 कमरे, छात्रों के लिये छात्रावास ब्लॉक और चार अध्ययन कक्ष आदि शामिल हैं। नेपाल के इलाम ज़िले में इस संस्कृत विद्यालय का निर्माण वर्ष 2009 में नेपाल-भारत मैत्री विकास सहयोग कार्यक्रम के तहत 31.13 मिलियन नेपाली रुपए की लागत से किया गया था। इस विद्यालय की शुरुआत एक प्राथमिक विद्यालय के तौर पर की गई थी, किंतु वर्ष 2014 में इसे माध्यमिक स्तर के स्कूल के रूप में परिवर्तित कर किया गया। ध्यातव्य है कि यह विद्यालय अपने छात्रों को संस्कृत में वैदिक शिक्षा के साथ-साथ आधुनिक शिक्षा प्रदान करने की इसकी अद्वितीय योग्यता के लिये पहचाना जाता है।
‘बलराम’ योजना
हाल ही में ओडिशा सरकार ने राज्य के भूमिहीन किसानों को कृषि ऋण प्रदान करने के लिये ‘बलराम’ योजना की शुरुआत की है। यह योजना मुख्य तौर पर राज्य के भूमिहीन किसानों को वित्तीय सहायता प्रदान करने के उद्देश्य से शुरुआत की गई है, जिसके तहत कोरोना वायरस (COVID-19) महामारी के कारण समस्याओं का सामना कर रहे राज्य के तकरीबन 7 लाख भूमिहीन किसानों को कृषि ऋण प्रदान किया जाएगा। राज्य में इस योजना का कार्यान्वयन राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक (NABARD) के सहयोग से किया जाएगा, वहीं गाँव के कृषि कार्यकर्त्ता इस कार्यक्रम को ज़मीनी स्तर पर लागू करेंगे। गौरतलब है कि कृषि क्षेत्र में उत्पादकता बढ़ाने के लिये काश्तकारों को ऋण प्रदान करना एक महत्त्वपूर्ण कदम साबित होगा। बलराम योजना के तहत ऋण संयुक्त देयता समूहों के माध्यम से वितरित किया जाएगा। इसके लिये किसानों के कुल 1,40,000 समूहों का गठन किया गया है, जिसमें से 70,000 किसान संगठन इस योजना का लाभ प्राप्त कर सकेंगे, जबकि शेष समूहों को इस योजना का लाभ अगले वित्तीय वर्ष के दौरान मिलेगा।
जी. आकाश
तमिलनाडु के जी. आकाश (G Akash) देश के 66वें शतरंज ग्रैंडमास्टर बन गए हैं। हाल ही में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय शतरंज संघ (International Chess Federation-FIDE) की हालिया बैठक में 23 वर्षीय जी. आकाश ग्रैंडमास्टर के खिताब की पुष्टि की गई। चेन्नई के इस खिलाड़ी की FIDE रेटिंग 2495 है। चेन्नई के इस खिलाड़ी ने पूर्व राष्ट्रीय चैंपियन के. विश्वेश्वरन (K Visweswaran) से प्रशिक्षण लिया है। ग्रैंडमास्टर वह सर्वोच्च खिताब होता है जिसे एक शतरंज खिलाड़ी द्वारा अपने कैरियर में प्राप्त किया जा सकता है। यह खिताब विश्व में शतरंज के सर्वोच्च शासी निकाय यानी अंतर्राष्ट्रीय शतरंज संघ (FIDE) द्वारा प्रदान किया जाता है। एक बार यह खिताब प्राप्त करने के पश्चात् यह जीवन भर व्यक्ति के साथ रहता है, हालाँकि कुछ विशेष परिस्थितियों में इसे खिलाड़ी से वापस लिया जा सकता है।