शासन व्यवस्था
इज़राइली तकनीकी कंपनी एनएसओ (NSO) ग्रुप द्वारा कोरोना ट्रैकर का परीक्षण
प्रीलिम्स के लिये:कोरोना ट्रैकर, पेगासस स्पाइवेयर मेन्स के लिये:COVID-19 के वैश्विक प्रभाव, COVID-19 पर नियंत्रण के लिये तकनीकी का प्रयोग |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में स्पाइवेयर पेगासस का निर्माण करने वाली इज़राइल की तकनीकी कंपनी एनएसओ (NSO) ग्रुप ने कोरोनावायरस के प्रसार की निगरानी के लिये एक सॉफ्टवेयर के परीक्षण की जानकारी दी है।
मुख्य बिंदु:
- NSO समूह के मुख्य कार्यकारी अधिकारी के अनुसार, कोरोनावायरस के संक्रमण की निगरानी के लिये तकनीकी के प्रयोग से निजता (या निजी जानकारी की सुरक्षा) के बारे में आशंकाएँ उठ सकती हैं परंतु तकनीकी के सही और अनुपातित प्रयोग से निजता से कोई समझौता किये बगैर लोगों का जीवन बचाया जा सकता है।
- NSO समूह के मुख्य कार्यकारी अधिकारी के अनुसार, इस सॉफ्टवेयर के परीक्षण के लिये इज़राइल सरकार ने अपनी अनुमति दे दी है, इस सॉफ्टवेयर के माध्यम से इज़राइली स्वास्थ्य मंत्रालय को दो महत्त्वपूर्ण जानकारियों (संक्रमित व्यक्ति की लोकेशन और उसके संपर्क में आए लोगों की जानकारी) के आधार पर कोरोनावायरस के प्रसार को नियंत्रित करने में सहायता मिलेगी।
- ध्यातव्य है कि नवंबर 2019 में लोकप्रिय मेसेजिंग प्लेटफोर्म व्हाट्सएप ने दावा किया कि NSO द्वारा निर्मित ‘पेगासस’ (Pegasus) नामक स्पाइवेयर के माध्यम से विश्व के कई देशों (जिनमें भारत भी शामिल है) में व्हाट्सएप का प्रयोग करने वाले लोगों की जासूसी की गई थी
- NSO के अनुसार, कंपनी केवल सरकारों और संस्थागत खरीदारों को ही अपनी तकनीक बेचती है।
कैसे काम करता है यह साफ्टवेयर?
- NSO के अनुसार, एक विश्वसनीय और सरल महामारी-विज्ञान जाँच के लिये दो चीज़ों की आवश्यक है:
- व्यक्ति की जानकारी की आवश्यकता है, जिससे सेलुलर कंपनी से उसका डेटा को प्राप्त किया जा सके
- यह जानने की आवश्यकता है कि संक्रमित व्यक्ति पिछले 14 दिनों में कहाँ-कहाँ गया था।
- NSO समूह के मुख्य कार्यकारी अधिकारी के अनुसार, हमारे लिये यह अच्छी बात यह कि वर्तमान में प्रत्येक मोबाइल के लोकेशन की जानकारी सेलुलर कंपनी के पास नियमित रूप से उपलब्ध होती है।
- किसी व्यक्ति के कोरोनावायरस संक्रमित होने की पुष्टि होने के बाद इस जानकारी के आधार पर पिछले 14 दिनों में मरीज़ द्वारा यात्रा की गई जगहों और उससे एक निश्चित दूरी में रहे लोगों की पहचान की जा सकती है।
- मरीज़ के संपर्क में आए लोगों की जानकारी के आधार पर ऐसे लोग जिनके संक्रमित होने की संभावना अधिक हो, को सेल्फ-आइसोलेशन (Self-Isolation) में रहने के लिये निर्देशित किया जा सकता है।
- साथ ही इसके माध्यम से चिकित्सकों को संक्रमण के स्रोत और संभावित संक्रमित लोगों की विश्वसनीय जानकारी उपलब्ध कराई जा सकेगी।
- इस जानकारी में केवल मोबाइल की सेलुलर लोकेशन (Cellular Location) का डेटा होता है, अतः इस प्रक्रिया में लोकेशन के अतिरिक्त व्यक्ति की कॉल की रिकार्डिंग या मैसेज अथवा अन्य कोई व्यक्तिगत जानकारी नहीं ली जा सकती।
स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस
शासन व्यवस्था
संसद सदस्य स्थानीय क्षेत्र विकास योजना स्थगित
प्रीलिम्स के लिये:संचित निधि, संसद सदस्य स्थानीय क्षेत्र विकास योजना मेन्स के लिये:COVID-19 की चुनौती से निपटने हेतु सरकार के प्रयास |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने COVID-19 की चुनौती से निपटने हेतु फंड जुटाने के लिये अगले दो वर्षों तक ‘संसद सदस्य स्थानीय क्षेत्र विकास योजना’ (Members of Parliament Local Area Development Scheme- MPLADS) को स्थगित करने और अगले एक वर्ष के लिये सभी संसद सदस्यों के वेतन में 30% की कटौती करने का निर्णय लिया है।
मुख्य बिंदु:
- केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा 6 मार्च, 2020 को ‘संसद सदस्य वेतन, भत्ता और पेंशन अधिनियम, 1954’ में संशोधन के लिये एक अध्यादेश जारी किया गया था।
- केंद्रीय सूचना प्रसारण मंत्री के अनुसार, इस अध्यादेश के माध्यम से संसद सदस्यों के वेतन से कटौती के पश्चात प्राप्त राशि और MPLADS फंड (लगभग 8000 करोड़ रुपए) को ‘भारत की संचित निधि’ (Consolidated Fund of India) में जमा किया जाएगा, जिसका उपयोग COVID-19 से निपटने के लिये किया जाएगा।
‘भारत की संचित निधि’
(Consolidated Fund of India):
- संचित निधि सभी सरकारी खातों में सबसे महत्त्वपूर्ण है।
- सरकार को मिलने वाले सभी प्रकार के राजस्व (सीमा शुल्क, उत्पाद शुल्क, आयकर, सम्पदा शुल्क आदि) और सरकार द्वारा किये गए खर्च (कुछ विशेष खर्च को छोड़कर) संचित निधि का हिस्सा हैं।
- संचित निधि की स्थापना भारतीय संविधान के अनुच्छेद 266 के तहत की गई थी।
- संसद के अनुमोदन के बिना इस निधि से कोई धनराशि नहीं निकाली जा सकती है।
- कुछ विशेष खर्च (जिनके लिये आकस्मिक निधि या सार्वजनिक निधि का प्रयोग किया जाता है) को छोड़कर सरकार के सभी खर्चों का वहन संचित निधि से ही किया जाता है।
- केंद्र की ही तरह सभी राज्यों की अपनी संचित निधि होती है।
- इस अध्यादेश के अनुसार, अगले एक वर्ष (वित्तीय वर्ष 2020-21) के लिये सभी संसद सदस्यों (प्रधानमंत्री और केंद्रीय मंत्रियों सहित) के वेतन से 30 प्रतिशत की कटौती की जाएगी। साथ ही संसद सदस्यों को अपने संसदीय क्षेत्रों में विकास कार्यों के लिये में प्राप्त होने वाले MPLADS को भी अगले दो वर्षों (वित्तीय वर्ष 2020-21 और 2021-22) के लिये स्थगित कर दिया गया है।
- MPLADS के स्थगन और सांसदों के वेतन में कटौती के संदर्भ में यह परिवर्तन 1 अप्रैल, 2020 को शुरू होने वाले वित्तीय वर्ष से लागू होंगे।
- सरकार के इस प्रयास में सहयोग देने के लिये राष्ट्रपति, उप-राष्ट्रपति और राज्यों के राज्यपालों ने अपने वेतन में 30% की कटौती करने का निर्णय लिया है।
- हालाँकि सरकार ने यह स्पष्ट किया कि इसके तहत केवल संसद सदस्यों के वेतन से कटौती की जाएगी, सदस्यों के अन्य भत्तों और पूर्व सांसदों की पेंशन से कोई कटौती नहीं की जाएगी।
- ध्यातव्य है कि हाल ही में केंद्र सरकार के कर्मचारियों ने COVID-19 से निपटने में अपने सहयोग के रूप में स्वेच्छा से अपने एक दिन के वेतन सरकार को देने का फैसला किया था।
- केंद्रीय सूचना प्रसारण मंत्री के अनुसार, सरकार द्वारा MPLADS को स्थगित किये जाने से पहले ही कई संसद सदस्यों ने अपने फंड से COVID-19 के लिये सहयोग किया था।
- राज्यसभा सचिवालय द्वारा पिछले सप्ताह दी गई जानकारी के अनुसार, राज्यसभा के 74 सदस्यों ने कुल 100 करोड़ रुपए और 265 लोकसभा सदस्यों ने 265 करोड़ रुपए का योगदान दिया था।
- संसद सदस्यों के वेतन में वृद्धि के संदर्भ में वर्ष 2018 की घोषणा के अनुसार, वर्तमान में संसद सदस्यों को प्रति माह वेतन के रूप में 1 लाख रुपए, 70 हजार रुपए (निर्वाचन क्षेत्र भत्ता), 60 हजार रुपए (कार्यालय चलने के लिये) के साथ कुछ अन्य सुविधाएँ प्रदान की जाती हैं।
‘संसद सदस्य स्थानीय क्षेत्र विकास योजना’
(Members of Parliament Local Area Development Scheme- MPLADS):
- MPLADS की शुरुआत 23 दिसंबर, 1993 को हुई थी।
- MPLADS पूर्ण रूप से भारत सरकार द्वारा वित्त पोषित योजना है, इस योजना के तहत एक संसदीय क्षेत्र के लिये वार्षिक रूप से दी जाने वाली राशि की अधिकतम सीमा 5 करोड़ रुपए हैं।
- इस योजना के माध्यम से संसद सदस्य अपने संसदीय क्षेत्रों में स्थानीय ज़रूरतों के आधार पर विकास कार्यों को शुरू करने के लिये सुझाव दे सकते हैं।
- इस योजना की शुरुआत के बाद से ही देश में राष्ट्रीय प्राथमिकता जैसे- पेयजल, शिक्षा, सार्वजनिक स्वास्थ्य, स्वच्छता, सड़क आदि के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण कार्य किये गए हैं।
- इसके तहत योजनाओं के कार्यान्वयन हेतु नीति निर्माण, धनराशि जारी करने और निगरानी तंत्र के निर्धारण का कार्य ‘केंद्रीय सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय’ द्वारा किया जाता है।
स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस
शासन व्यवस्था
कोरोनावायरस रोकथाम- साबुन और सैनिटाइज़र
प्रीलिम्स के लियेCOVID-19, अल्कोहल आधारित सैनिटाइज़र मेन्स के लियेकोरोनावायरस के रोकथाम से संबंधित मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
साबुन और पानी से हाथ धोना अथवा अल्कोहल आधारित सैनिटाइज़र (Alcohol-Based Sanitizer) का उपयोग करना कोरोनावायरस (COVID-19) के रोकथाम हेतु काफी महत्त्वपूर्ण साबित हो सकता है। किंतु जैसे-जैसे कोरोनावायरस का प्रसार होता जा रहा है वैसे-वैसे अल्कोहल आधारित सैनिटाइज़र की मांग भी बढ़ती जा रही है।
प्रमुख बिंदु
- विशेषज्ञों के अनुसार, वायरस को खत्म करने के लिये आवश्यक है कि 70 से 80 प्रतिशत अल्कोहॉल की मात्रा वाले सैनिटाइज़र का उपयोग करना चाहिये।
- वायरस को खत्म करने में अल्कोहल-आधारित सैनिटाइज़र की भूमिका भी सामान्य साबुन के समान ही है। ध्यातव्य है कि सैनिटाइज़र की सीमित उपलब्धता के कारण COVID -19 के विरुद्ध जंग में सामान्य साबुन सबसे बड़े हथियार के रूप में सामने आया है।
- शोध के अनुसार, कोरोनावायरस (COVID-19) में एक लिपिड एनवलप (Lipid Envelope) और एक अपमार्जक द्रव्य (Detergent) होने के कारण सामान्य साबुन तथा सैनिटाइज़र में इस लिपिड एनवलप को समाप्त करने की क्षमता होती है।
- कोरोनावायरस केवल कोशिकाओं के अंदर ही प्रतिकृत (Replicate) हो सकते हैं, किंतु कई अध्ययनों से यह सामने आया है कि यह वायरस सतह पर भी लंबे समय तक जीवित रह सकता है।
- ऐसी स्थिति में सामान्य साबुन और अल्कोहल-आधारित सैनिटाइज़र की भूमिका काफी महत्त्वपूर्ण हो जाती है, क्योंकि ये सतह पर मौजूद वायरस को समाप्त करने में सक्षम होते हैं।
कोरोनावायरस का स्ट्रक्चर
- यू.एस. नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ हेल्थ (US National Institutes of Health) के अनुसार, अन्य कोरोनावायरस की तरह, SARS-CoV-2 के कण भी गोलाकार होते हैं और इनमें प्रोटीन होते हैं जिन्हें स्पाइक्स कहा जाता है।
- SARS-CoV-2 उस वायरस का नाम है जिसके कारण कोई व्यक्ति COVID-19 से प्रभावित होता है।
- ये स्पाइक मानव कोशिकाओं में प्रवेश करते हैं, जिसके पश्चात् इनमें संरचनात्मक परिवर्तन होते हैं जो वायरस की झिल्ली (Virus Membrane) को कोशिका की झिल्ली (Cell Membrane) के साथ एकरूप करने में मदद करता है।
कोरोनावायरस
- COVID-19 वायरस मौजूदा समय में भारत समेत दुनिया भर में स्वास्थ्य और जीवन के लिये गंभीर चुनौती बना है। अब संपूर्ण विश्व में इसका प्रभाव स्पष्ट तौर पर दिखने लगा है।
- WHO के अनुसार, COVID-19 में CO का तात्पर्य कोरोना से है, जबकि VI विषाणु को, D बीमारी को तथा संख्या 19 वर्ष 2019 (बीमारी के पता चलने का वर्ष ) को चिह्नित करता है।
- कोरोनावायरस (COVID -19) का प्रकोप तब सामने आया जब 31 दिसंबर, 2019 को चीन के हुबेई प्रांत के वुहान शहर में अज्ञात कारण से निमोनिया के मामलों में हुई अत्यधिक वृद्धि के कारण विश्व स्वास्थ्य संगठन को सूचित किया गया।
- ध्यातव्य है कि इस खतरनाक वायरस के कारण चीन में अब तक 75000 लोगों की मृत्यु हो चुकी है और यह वायरस धीरे-धीरे संपूर्ण विश्व में फैल गया है।
स्रोत: द हिंदू
भारतीय इतिहास
तब्लीगी जमात
प्रीलिम्स के लिये:तब्लीगी जमात मेन्स के लिये:धार्मिक चरमपंथ |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में इस्लामिक संगठन तब्लीगी जमात संगठन उस समय चर्चा में रहा, जब इस संगठन के दिल्ली मुख्यालय में आयोजित एक धार्मिक मंडली के एक दर्जन से अधिक लोग COVID-19 से पाज़िटिव पाए गए।
मुख्य बिंदु:
- निजामुद्दीन (दिल्ली) में मार्च के शुरुआत में होने वाली तब्लीगी जमात की सभा में इंडोनेशिया और मलेशिया जैसे देशों से कम-से-कम 2,000 लोग शामिल हुए थे।
- समूह के नेता के खिलाफ दिल्ली पुलिस ने ‘महामारी रोग अधिनियम’ (Epidemic Disease Act- EDA) के तहत मामला दर्ज किया है।
तब्लीगी जमात का उद्भव:
- तब्लीगी जमात (अर्थात धर्म प्रचारकों की सोसाइटी) की स्थापना देवबंद इस्लामिक विद्वान मोहम्मद इलियास अल-कंधलावी ने मेवात (भारत) में वर्ष 1926 में की थी।
- मेवात उत्तर-पश्चिमी भारत में हरियाणा और राजस्थान राज्यों का एक ऐतिहासिक क्षेत्र है।
संगठन का लक्ष्य:
- भारत ने 19 वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में ‘देवबंद विचारधारा’ तथा 20 वीं शताब्दी की शुरुआत में भारत में हिंदू धर्म में पुनरुत्थानवादी आंदोलनों जैसे- ‘शुद्धि आंदोलन’ आदि देखने को मिले। इसी समय एक धार्मिक पुनरुत्थानवादी संगठन के रूप में तब्लीगी जमात की स्थापना की गई।
- इस संगठन का लक्ष्य मुस्लिम समाज के पुनरुत्थान के लिये समर्पित प्रचारकों का एक समूह स्थापित करना था जो 'सच्चे' इस्लाम को पुनर्जीवित करने की दिशा में कार्य करें।
- संगठन ने स्थापना के शुरुआती समय में अपने नेताओं की मुख्य शिक्षाओं तथा जीवन शैली के आधार पर इस्लाम में विश्वास जगाने की दिशा में कार्य किया।
संगठन का विस्तार:
- तब्लीगी जमात की स्थापना मेवात क्षेत्र में की गई थी। वहाँ मुस्लिमों में ‘मेव समुदाय’ (जो की मूलत: राजपूत जातीय समूह से संबंधित थे) ने इस संगठन की परंपराओं का पालन किया।
- ब्रिटिश भारत में संगठन का तेज़ी से विस्तार हुआ तथा नवंबर 1941 में आयोजित इस संगठन के वार्षिक सम्मेलन में लगभग 25,000 लोगों ने भाग लिया।
- विभाजन के बाद पाकिस्तान तथा पूर्वी पाकिस्तान (बाद में बांग्लादेश निर्माण) में यह संगठन काफी मज़बूत हुआ। वर्तमान समय मे बांग्लादेश में तब्लीगी जमात की सबसे बड़ी राष्ट्रीय शाखा है।
- वर्तमान में यह संगठन 150 से अधिक देशों में कार्य कर रहा है तथा इन देशों में इसके लाखों अनुयायी हैं।
संगठन की विचारधारा:
- तब्लीगी जमात ने मुस्लिमों से पैगंबर की तरह जीवन जीने को कहा। वे सूफी इस्लाम की विचारधारा का धार्मिक आधार पर विरोध करते हैं। वे अपने सदस्यों को पैगंबर की तरह कपड़े पहनने (पतलून जो टखने से ऊपर होने चाहिये) का समर्थन करते हैं। पुरुष आमतौर पर अपने ऊपरी होंठ की मूँछों को साफ तथा लंबी दाढ़ी रखते हैं।
- इस संगठन का मुख्य कार्य मुस्लिम धर्म के 'शुद्धिकरण' पर केंद्रित था न कि अन्य धर्मों के लोगों को इस्लाम में परिवर्तित करने पर।
संगठन की संरचना:
- संगठनात्मक ढाँचा बहुत ही सामान्य है। संगठन के अंतर्राष्ट्रीय आंदोलन का नेतृत्त्व आमिर नामक नेता द्वारा किया जाता है, जो हमेशा समूह के संस्थापक मोहम्मद इलियास अल-कांधलावी से संबंधित होते हैं। वर्तमान नेता मौलाना साद कांधलवि है जो इस संगठन के संस्थापक के पोते हैं।
- समूह में एक शूरा परिषद (Shura Council) भी होती है, जो की एक सलाहकार परिषद का कार्य करती है।
संगठन की गतिविधियाँ:
- तब्लीगी जमात खुद को एक गैर-राजनीतिक तथा धार्मिक हिंसा का समर्थन न करने वाले संस्थान के रूप में देखती है। इस समुदाय का मानना है कि पैगंबर मोहम्मद ने सभी मुसलमानों को अल्लाह का संदेश देने की आज्ञा दी है तथा तब्लीगी लोग इसका अपने कर्तव्य के रूप में पालन करते हैं।
- वे खुद को छोटे जमातों (समाज) में विभाजित करते हैं और इस्लाम के संदेश को मुस्लिमों तक पहुँचाने के लिये दुनिया भर की यात्रा करते हैं। इस यात्रा के दौरान वे स्थानीय मस्जिदों में ठहरते हैं।
राष्ट्रीय सुरक्षा संबंधी मुद्दे:
- समूह शांतिपूर्ण तरीके से कार्य करता है और यह मुख्यत: मुस्लिम समुदाय के लिये कार्य करता है। भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (National Security Advise- NSA) के अनुसार संगठन में रहस्यवाद की संस्कृति है, जो इस संगठन के प्रति संदेह पैदा करता है।
- आंदोलन को सरकार द्वारा कभी नकारात्मक दृष्टि से नहीं देखा गया लेकिन तब्लीगी जमात को कुछ मध्य एशियाई देशों जैसे कि उज़्बेकिस्तान, ताजिकिस्तान और कज़ाकिस्तान में प्रतिबंधित कर दिया गया है, उनका मानना है कि इस संगठन द्वारा चलाया जाने वाला शुद्धतावादी आंदोलन, चरमपंथी को बढ़ावा देता है।
स्रोत: द हिंदू
जैव विविधता और पर्यावरण
वायु प्रदूषण में बढ़ोतरी
प्रीलिम्स के लियेPM2.5, कोरोनावायरस, वायु प्रदूषण मेन्स के लियेवायु प्रदूषण से संबंधित विषय |
चर्चा में क्यों?
कोरोनावायरस (COVID-19) के विरुद्ध जंग में एकजुटता प्रदर्शित करने के लिये हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आह्वान पर लोगों ने न केवल मिट्टी के दीपक और मोमबत्तियाँ जलाए बल्कि कई लोगों ने पटाखे भी फोड़े जिसके कारण राजधानी दिल्ली का प्रदूषण स्तर अचानक से दोगुना हो गया है।
प्रमुख बिंदु
- दरअसल वैश्विक चुनौती के रूप में उभर रहे कोरोनावायरस के प्रसार को रोकने भारत सरकार ने 21-दिवसीय देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा की थी, जिसके कारण राजधानी दिल्ली समेत देश भर में सभी गतिविधियों पर पूर्ण रूप से रोक लगा दी गई थी।
- इन गतिविधियों पर पूरी तरह से रोक के कारण देश भर के सभी शहरों में प्रदूषण का स्तर काफी नीचे आ गया था।
- आँकड़ों के अनुसार, पटाखे फूटने से पूर्व दिल्ली का PM2.5 स्तर 48.6 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर (µg/m3) था, जो कि पटाखों के फूटने के पश्चात् 90.9 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर (µg/m3) पर पहुँच गया था।
- कुछ समय पश्चात् यह 101 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर (µg/m3) पर पहुँच गया।
- NCR के प्रदूषण स्तर में भी इसी प्रकार की वृद्धि देखी गई, जहाँ गाज़ियाबाद में सबसे अधिक प्रदूषण दर्ज किया गया।
- आँकड़ों के अनुसार, पटाखों के फूटने के पश्चात् गाज़ियाबाद में PM2.5 का स्तर 131.3 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर (µg/m3) पर पहुँच गया था।
- पटाखों का प्रभाव शहरों के दैनिक वायु गुणवत्ता सूचकांक (Air Quality Index-AQI) पर भी देखने को मिला है।
- केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (Central Pollution Control Board-CPCB) के अनुसार, दिल्ली का AQI रविवार को 102 (मध्यम) के स्तर से बढ़कर सोमवार को 142 (मध्यम) पर पहुँच गया।
- सबसे अधिक बढ़ोतरी गाज़ियाबाद में दर्ज की गई, जो रविवार को 124 (मध्यम) के स्तर से बढ़कर सोमवार को 181 (मध्यम) पर पहुँच गया।
PM2.5
PM2.5 का आशय उन कणों या छोटी बूँदों से होता है जिनका व्यास 2.5 माइक्रोमीटर (0.000001 मीटर) या उससे कम होता है और इसीलिये इसे PM2.5 के नाम से भी जाना जाता है।
आगे की राह
- लगातार बढ़ता वायु प्रदूषण आधुनिक समाज के समक्ष सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है, जिसे जल्द-से-जल्द सुलझाए बिना समाज का समावेशी विकास सुनिश्चित नहीं किया जा सकता है।
- प्रधानमंत्री द्वारा मिट्टी के दीपक और मोमबत्तियों के माध्यम से एकजुटता प्रदर्शित करने की बात की गई थी, किंतु कुछ लोगों द्वारा इसे गलत रूप में लिया, जिसके प्रभावस्वरूप प्रदूषण का स्तर बढ़ गया है।
- आवश्यक है कि आम लोगों को प्रदूषण और सामाजिक उत्तरदायित्त्व जैसे विषय के प्रति जागरूक किया जाए।
स्रोत: द हिंदू
भारतीय अर्थव्यवस्था
भारतीय सेवा क्षेत्र पर COVID-19 का प्रभाव
प्रीलिम्स के लिये:क्रय प्रबंधक सूचकांक मेन्स के लिये:भारतीय अर्थव्यवस्था पर COVID-19 के प्रभाव |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में जारी एक मासिक सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार, COVID-19 के कारण भारतीय सेवा क्षेत्र (Service Sector) के व्यापार में भारी गिरावट देखने को मिली है।
मुख्य बिंदु:
- 6 मार्च 2020 को जारी एक सर्वेक्षण के अनुसार, COVID-19 के कारण स्थानीय तथा अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों में मांग में कमी से मार्च 2020 में भारतीय सेवा क्षेत्र में भारी गिरावट देखने को मिली है।
- मार्च 2020 में ‘द आईएचएस मार्किट इंडिया सर्विसेज़ बिज़नेस एक्टिविटी इंडेक्स’ (The IHS Markit India Services Business Activity Index) अर्थात भारतीय सेवा क्षेत्र के लिये क्रय प्रबंधक सूचकांक 49.3 रहा, जो फरवरी 2020 में 57.5 (लगभग 7 वर्षों में सबसे अधिक) था।
- मार्च 2020 के लिये समग्र पीएमआई उत्पादन सूचकांक (The Composite PMI Output Index) गिरकर 50.6 तक पहुँच गया जो फरवरी 2020 में 56.7 दर्ज़ किया गया था, जो हाल के दिनों में निजी क्षेत्र के मज़बूत उर्ध्वगामी विस्तार के विपरीत उत्पादन वृद्धि में मंदी का संकेत देता है।
- IHS के एक अर्थशास्त्री के अनुसार, वर्तमान में भारतीय सेवा क्षेत्र पर COVID-19 के प्रभाव को पूर्णरूप से नहीं समझा जा सकता क्योंकि इस सर्वेक्षण में केवल 12-27 मार्च तक के ही आँकड़ों को शामिल किया गया है।
सेवा क्षेत्र में गिरावट के कारण:
- भारतीय सेवा क्षेत्र स्थानीय व्यापार के अतिरिक्त बड़ी मात्रा में अन्य देशों से होने वाले व्यापार पर निर्भर करता है।
- वर्ष 2017 के आँकड़ों के अनुसार, अमेरिका के 185-190 बिलियन अमेरिकी डॉलर के ग्लोबल सोर्सिंग मार्केट (Global Sourcing Market) में भारत की सॉफ्टवेयर कंपनियों की भागीदारी 55% थी।
- अप्रैल 2000 से सितंबर 2019 में भारतीय सेवा क्षेत्र सबसे अधिक विदेशी निवेश (78.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर) प्राप्त करने वाला क्षेत्र रहा।
- वर्तमान में COVID-19 के कारण वैश्विक स्तर पर विभिन्न क्षेत्रों में व्यावसायिक गतिविधियों में कमी देखी गई है।
- सर्वेक्षण के अनुसार, COVID-19 के प्रसार को रोकने के लिये किये गए कड़े प्रावधानों से सार्वजनिक खर्च में भी कमी आई है।
- मांग में कमी के कारण व्यापार में गिरावट को देखते हुए बहुत से संस्थानों को अपने कर्मचारियों की संख्या में भी कमी करनी पड़ी है।
- कुछ व्यावसायिक संस्थाओं के अनुसार, व्यावसायिक गतिविधियों में कमी का एक कारण बाज़ार में तरलता की कमी भी है।
क्रय प्रबंधक सूचकांक
(Purchasing Manager's Index- PMI):
- क्रय प्रबंधक सूचकांक विनिर्माण तथा सेवा क्षेत्र में व्यावसायिक गतिविधियों का सूचक है।
- इसके तहत विश्व के 40 से अधिक देशों में व्यावसायिक गतिविधियों के मासिक आँकड़े जारी किये जाते हैं।
- इस सूचकांक में आँकड़ों को 0 से 100 के बीच दर्शाया जाता है।
- जहाँ 50 से अधिक का अर्थ है व्यावसायिक गतिविधि में बीते माह की तुलना में विस्तार/सुधार जबकि आँकड़ों का 50 से कम होना गिरावट को दर्शाता है।
- इस सूचकांक में विनिर्माण तथा सेवा क्षेत्र के लिये आंकड़ों की गणना अलग-अलग की जाती है, जिससे एक समग्र सूचकांक (Composite Index) तैयार किया जाता है।
स्रोत: द हिंदू
जैव विविधता और पर्यावरण
पेंच टाइगर रिज़र्व में बाघ की मौत: COVID-19 संबंधी आशंका
प्रीलिम्स के लिये:पेंच टाइगर रिज़र्व, पशु स्वास्थ्य संस्थान मेन्स के लिये:बाघ संरक्षण |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में ‘पेंच टाइगर रिज़र्व’ में (Pench Tiger Reserve) में 10 वर्षीय बाघ की मौत के बाद ‘राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण’ (National Tiger Conservation Authority- NTCA) के अधिकारी इस बात को लेकर चिंतित है कि क्या बाघ में COVID- 19 महामारी का परीक्षण किया जाना चाहिये।
मुख्य बिंदु:
- एक रिपोर्ट के अनुसार, संयुक्त राज्य अमेरिका के एक चिड़ियाघर में बाघ की मौत निश्चित रूप से COVID- 19 महामारी के संक्रमण के कारण हुई है।
- इसके बाद ‘केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण’ (Central Zoo Authority- CZA) और NTCA ने दिशा-निर्देश जारी किये है कि चिड़ियाघरों में अधिकतम सतर्कता बरती जाए तथा बाघ के व्यवहार और लक्षणों पर 24/7 बंद सर्किट कैमरों से निगरानी रखी जाए।
बाघ की मौत के संभावित कारण:
- बाघ को तेज़ बुखार होने के बाद एंटीबायोटिक्स दी गई, लेकिन उसकी सेहत में सुधार नहीं हुआ तथा बाद में बाघ की मृत्यु हो गई। यद्यपि अभी भी बाघ की मौत के वास्तविक कारणों की पुष्टि नहीं हुई है।
- अभी बाघ के सैंपल का राइनोट्रेकाइटिस (Rhinotracheitis) का परीक्षण किया जाएगा जो बाघ में वायरल संक्रमण तथा श्वसन संबंधी विकार का कारण बनता है।
- जो लोग मृत बाघ को संभालने तथा इसके पोस्टमार्टम में शामिल थे, उनका COVID- 19 संक्रमण का परीक्षण किया जाएगा।
आगे की राह:
- कैट फैमिली के मांसाहारी जानवरों, गंधबिलाव (Ferret), प्राइमेट्स जैसे स्तनधारियों की सावधानीपूर्वक निगरानी की जानी चाहिये।
- बीमार जानवरों का सैंपल लेकर COVID- 19 संक्रमण का परीक्षण किया जाना चाहिये।
- COVID-19 के लक्षणों के अनुरूप बाघों का अवलोकन किया जाना चाहिये जैसे कि नाक से पानी बहना, खांसी आना और सांस फूलना आदि।
- बाघों को संभालने वाले कर्मियों का भी नियमित परीक्षण किया जाना चाहिये ताकि उनमें COVID- 19 संक्रमण का पता लग सके।
पशु स्वास्थ्य संस्थान:
पशु स्वास्थ्य संस्थान | अवस्थिति |
राष्ट्रीय उच्च सुरक्षा पशु रोग संस्थान (National Institute of High Security Animal Disease) | भोपाल (मध्य प्रदेश) |
राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र (National Research Centres on Equines) | हिसार (हरियाणा) |
रोग अनुसंधान और निदान केंद्र (Centre for Animal Disease Research And Diagnosis (CADRAD) | इज्जतनगर, (उत्तर प्रदेश) |
पेंच टाईगर रिज़र्व:
संरक्षित क्षेत्र का नाम |
• पेंच टाईगर रिज़र्व (मध्य प्रदेश) |
वनमंडल का नाम |
• कोर जोन (इंदिरा प्रियदर्शनी पेंच राष्ट्रीय उद्यान, पेंच मोगली अभयारण्य) एवं बफर जोन (पेंच टाइगर रिज़र्व) |
जैव विविधता संरक्षण का इतिहास |
• पेंच टाईगर रिज़र्व एवं इसके आसपास का क्षेत्र रूडियार्ड किपलिंग के प्रसिद्ध ‘द जंगल बुक’ का वास्तविक कथा क्षेत्र है। |
वनों के प्रकार |
• पेंच टाइगर रिज़र्व में पाये जाने वाले वनों को निम्नानुसार तीन भागों में बाँटा गया है : |
स्रोत: द हिंदू
भारतीय अर्थव्यवस्था
सर्वाधिक राष्ट्रीय राजमार्ग का निर्माण
प्रीलिम्स के लिये:भारतमाला परियोजना मेन्स के लिये:आधारभूत संरचना के विकास हेतु केंद्र सरकार द्वारा किये गए प्रयास |
चर्चा में क्यों?
भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (National Highways Authority of India-NHAI) द्वारा वित्तीय वर्ष 2019-20 में सर्वाधिक राष्ट्रीय राजमार्गों का निर्माण किया गया है।
प्रमुख बिंदु:
- NHAI द्वारा किसी भी वित्तीय वर्ष में किये गए राजमार्गों का निर्माण तुलनात्मक रूप से वित्तीय वर्ष 2019-20 में सबसे अधिक है। वित्तीय वर्ष 2019-20 में NHAI ने 3,979 किलोमीटर राष्ट्रीय राजमार्गों का निर्माण किया है।
- जबकि वित्तीय वर्ष 2018-19 में 3,380 किलोमीटर राष्ट्रीय राजमार्गों का निर्माण हुआ था।
- सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय (Ministry of Road Transport and Highways) के राजमार्ग विकास कार्यक्रमों में से एक ‘भारतमाला परियोजना’ (Bharatmala Pariyojana) है।
भारतमाला परियोजना (Bharatmala Pariyojana):
- सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय द्वारा वर्ष 2017-18 से भारतमाला कार्यक्रम चलाया जा रहा है।
- सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय की महत्त्वाकांक्षी ‘भारतमाला परियोजना’ के प्रथम चरण के तहत 5,35,000 करोड़ रुपये की लागत से 34,800 किलोमीटर राष्ट्रीय राजमार्गों का निर्माण किया जाएगा।
- इसके अंतर्गत आर्थिक कॉरीडोर, फीडर कॉरीडोर और इंटर कॉरीडोर, राष्ट्रीय कॉरीडोर, तटवर्ती सड़कें, बंदरगाह संपर्क सड़कें आदि का निर्माण किया जाएगा।
- इस कार्यक्रम की अवधि वर्ष 2017-18 से वर्ष 2021-22 तक है। चरण-1 में कुल 34,800 किलोमीटर सड़कों का निर्माण किया जाना है, जिसमें शामिल हैं:
- 5,000 किलोमीटर राष्ट्रीय कॉरीडोर।
- 9,000 किलोमीटर आर्थिक कॉरीडोर।
- 6,000 किलोमीटर फीडर कॉरीडोर और इंटर कॉरीडोर।
- 2,000 किलोमीटर सीमावर्ती सड़कें।
- 2,000 किलोमीटर तटवर्ती सड़कें एवं बंदरगाह संपर्क सड़कें।
- 800 किलोमीटर हरित क्षेत्र एक्सप्रेस वे।
- 10,000 किलोमीटर अधूरे सड़क निर्माण कार्य।
- इस परियोजना के तहत निर्माण कार्य करने वाली मुख्य एजेंसियाँ इस प्रकार हैं:
- भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग, राष्ट्रीय राजमार्ग और औद्योगिक विकास निगम तथा लोक निर्माण विभाग।
- लाभ:
- पूरे देश में सड़क संपर्क में सुधार।
- आर्थिक गलियारों से कार्गो की त्वरित आवाजाही में वृद्धि।
- अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में वृद्धि।
- निवेश में तेज़ी एवं रोज़गार सृजन में वृद्धि होने की संभावना।
राजमार्गों के निर्माण में तेज़ी लाने हेतु निम्नलिखित कदम उठाए गए हैं:
- भूमि अधिग्रहण के नियम को सरल बनाना।
- भूमि अधिग्रहण तथा परियोजनाओं से संबंधित विभिन्न मंज़ूरियों प्राप्त होने के बाद ही परियोजनाएँ देने की अनुमति होनी चाहिये।
- अन्य मंत्रालयों और राज्य सरकारों के साथ निकट समन्वय बनाना।
- एकमुश्त (One Time) धन उपलब्ध कराना।
- विभिन्न स्तरों पर नियमित समीक्षा और परियोजना के कार्यान्वयन में रुकावटों की पहचान कर उन्हें दूर करना।
- सड़क क्षेत्र के ऋणों का प्रतिभूतिकरण।
स्रोत: पीआईबी
विविध
Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 07 अप्रैल, 2020
सेना चिकित्सा कोर
हाल ही में भारतीय सेना की सेना चिकित्सा कोर ने अपनी 256वीं वर्षगांठ मनाई। सेना चिकित्सा कोर अपनी स्थापना के बाद से ही सशस्त्र कर्मियों के लिये स्क्रीनिंग और उपचार सुविधाओं की उपलब्धता सुनिश्चित कर रही है। मौजूदा कोरोनावायरस (COVID-19) संकट में भी सेना चिकित्सा कोर अपने दायित्त्वों का निर्वाह कर रही है। प्राकृतिक आपदाओं में भी सेना चिकित्सा कोर ने आम नागरिकों की मदद के लिये चिकित्सा सेवाएँ प्रदान की हैं। सेना चिकित्सा कोर की स्थापना वर्ष 1764 को बंगाल मेडिकल सर्विस के रूप में की गई थी। इसके पश्चात् वर्ष 1943 में इसे इंडियन आर्मी मेडिकल कोर के नाम से पुनः स्थापित किया गया। इंडियन आर्मी मेडिकल कोर को 3 अप्रैल, 1943 को तीन सेवाओं, इंडियन मेडिकल सर्विस, इंडियन मेडिकल डिपार्टमेंट और इंडियन हॉस्पिटल कोर को समेकित करके बनाया गया था। स्वतंत्रता के पश्चात् इंडियन आर्मी मेडिकल कोर का नाम बदलकर सेना चिकित्सा कोर कर दिया गया। सेना चिकित्सा कोर वर्तमान में देश की सशस्त्र सेनाओं को देशव्यापी स्तर पर उत्कृष्ट चिकित्सा सेवाएँ प्रदान कर रही है। सेना चिकित्सा कोर का आदर्श वाक्य है: 'सर्वे संतु निरामय:'।
‘प्राण वायु’ वेंटिलेटर
कोरोनावायरस (COVID-19) के मामलों में हो रही बढ़ोतरी के कारण देश में प्रतिदिन वेंटिलेटरों की मांग भी बढ़ती जा रही है। अभी देश में उपलब्ध वेंटिलेटरों की अधिकतम संख्या तकरीबन 57000 है, किंतु यदि कोरोनावायरस संक्रमण तेज़ी से फैलता रहा तो स्थिति काफी खराब हो सकती है और हमें देश में लगभग 1.10 लाख से 2.20 लाख वेंटिलेटर तक की ज़रूरत पड़ सकती है। ऐसे में वेंटिलेटरों की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिये IIT रुड़की ने ‘प्राण वायु’ नामक कम लागत वाला पोर्टेबल वेंटिलेटर विकसित किया है। यह वेंटिलेटर सभी आयु समूहों के लिये प्रयोग किया जा सकता है। इसकी एक प्रमुख विशेषता यह भी है कि इसे काफी कम लागत और कम समय में बनाया जा सकता है। भारतीय उद्योग परिसंघ (Confederation of Indian Industry-CII) द्वारा आयोजित वेबिनार में 450 कंपनियों को ‘प्राण वायु’ वेंटिलेटर का डिज़ाइन प्रस्तुत किया गया है। यह पोर्टेबल वेंटिलेटर मॉडिफाइड रेलवे डिब्बों के लिये सर्वाधिक अनुकूल हैं। ध्यातव्य है कि अब तक 20,000 से अधिक रेलवे कोचों को अस्पताल के बिस्तरों में परिवर्तित किया गया है। इसके अलावा लगभग 70 रेलवे कोचों को आइसोलेशन वार्डों में बदला जाएगा।
प्रवीण राव
हाल ही में IT उद्योग की संस्था नासकॉम (NASSCOM) ने इंफोसिस के मुख्य परिचालन अधिकारी (COO) प्रवीण राय को वित्तीय वर्ष 2020-21 के लिये अपना नया अध्यक्ष नियुक्त किया है। वह WNS ग्लोबल सर्विसेज़ के CEO केशव मुरुगेश का स्थान लेंगे। इसके अलावा एसेंचर्स (Accenture) की भारत में अध्यक्ष और वरिष्ठ प्रबंध निदेशक रेखा मेनन को वित्तीय वर्ष 2020-21 के लिए उपाध्यक्ष नियुक्त किया गया है। प्रवीण राय और रेखा मेनन की नियुक्तियों की घोषणा नासकॉम की कार्यकारी परिषद की बैठक में की गई, जिसका आयोजन COVID-19 संकट के कारण वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से किया गया था। ध्यातव्य है कि यह समय भारतीय IT उद्योग समेत तमाम उद्योगों के लिये एक चुनौतीपूर्ण समय है, क्योंकि भारत एक संकटपूर्ण स्थिति का मुकाबला कर रहे हैं।
एम.के. अर्जुन
प्रसिद्ध मलयालम संगीतकार एम.के. अर्जुन का हाल ही में कोची के पल्लुरूथी में 84 वर्ष की उम्र में निधन हो गया है। संगीतकार एम.के. अर्जुन ने अपने पाँच दशक लंबे कैरियर में 700 से अधिक गानों को संगीत दिया था। उन्होंने नाटकों में भी बड़े पैमाने पर काम किया था। वे मशहूर संगीतकार जी. देवराजन के शिष्य थे। एम.के. अर्जुन ने वर्ष 1968 में करुथापूर्णमी में एक संगीतकार के रूप में अपनी शुरुआत की। उन्होंने गीतकार श्रीकुमारन थम्पी के साथ लगभग 50 फिल्मों के लिये संगीत तैयार किया था। एम.के. अर्जुन का जन्म 1 मार्च, 1936 को केरल में हुआ था। ध्यातव्य है कि प्रसिद्ध संगीतकार ए.आर. रहमान ने भी अपना संगीत कैरियर की शुरुआत वर्ष 1981 में एम.के. अर्जुन के साथ ही की थी।