बाल सैनिकों को भर्ती करने वाले देशों की सूची
प्रिलिम्स के लिये:संयुक्त राष्ट्र, जिनेवा कन्वेंशन, अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय मेन्स के लिये:CRC से संबद्ध मुद्दे, बाल अधिकारों के संरक्षण हेतु भारत सरकार द्वारा उठाए गए कदम |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में अमेरिका ने पाकिस्तान सहित 14 अन्य देशों को चाइल्ड सोल्जर रिक्रूटर लिस्ट यानी बाल सैनिकों को भर्ती करने वाले देशों की सूची में शामिल किया है, जो उन विदेशी सरकारों की पहचान करती है जिनके पास सरकार समर्थित सशस्त्र समूह हैं तथा जो बाल सैनिकों की भर्ती या उनका उपयोग करते हैं।
- चाइल्ड सोल्जर में 18 वर्ष से कम आयु के व्यक्ति शामिल होते हैं जिन्हें सशस्त्र बल या सशस्त्र समूह में भर्ती किया जाता है या फिर उनकी क्षमता का भर्ती में उपयोग किया जाता है।
- चाइल्ड सोल्जर में लडकें,लडकियाँ और बच्चे शामिल होते हैं, लेकिन यह उन बच्चों, लड़कों और लड़कियों तक सीमित नहीं है, जिनका उपयोग लड़ाकों, रसोइयों, कुलियों, जासूसों या यौन उद्देश्यों हेतु किया जाता है (सशस्त्र संघर्ष में बच्चों की भागीदारी पर पेरिस सिद्धांत 2007)।
प्रमुख बिंदु:
चाइल्ड सोल्जर रिक्रूटर लिस्ट के बारे में:
- यूएस चाइल्ड सोल्जर्स प्रिवेंशन एक्ट (US Child Soldiers Prevention Act -CSPA), 2008 को वार्षिक ट्रैफिकिंग इन पर्सन्स (Trafficking in Persons- TIP) रिपोर्ट में प्रकाशित किये जाने की आवश्यकता है, जिसमें उन विदेशी सरकारों की सूची/लिस्ट शामिल होती है जिन्होंने बाल सैनिकों की भर्ती की है या उनका इस्तेमाल किया है।
- इस लिस्ट में जोड़े गए कुछ देशों में पाकिस्तान, तुर्की, अफगानिस्तान, म्याँमार, ईरान, इराक, नाइजीरिया, यमन आदि हैं।
- संयुक्त राष्ट्र (United Nations-UN) द्वारा इस बात की पुष्टि की गई है कि अकेले वर्ष 2019 में 7,000 से अधिक बच्चों को भर्ती किया गया तथा सैनिकों के रूप में इस्तेमाल किया गया।
- CSPA अमेरिकी सरकार को बाल सैनिकों की भर्ती और उनका उपयोग करने वाले देशों को सैन्य सहायता प्रदान करने से रोकता है, जिसमें धन, सैन्य शिक्षा और प्रशिक्षण या सैन्य उपकरणों की प्रत्यक्ष बिक्री शामिल है।
संबंधित वैश्विक सम्मेलन:
- सैनिकों के रूप में 15 वर्ष से कम उम्र के बच्चों की भर्ती या उपयोग बाल अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन (CRC) और जिनेवा कन्वेंशन के अतिरिक्त प्रोटोकॉल दोनों द्वारा निषिद्ध है।
- CRC के अनुसार, बचपन की अवस्था वयस्कता से अलग होती है तथा 18 वर्ष तक रहती है; यह एक विशेष संरक्षण अवधि होती है, जिसमें बच्चों को गरिमा के साथ बढ़ने, सीखने, खेलने, विकसित होने और वृद्धि की अनुमति दी जानी चाहिये।
- जिनेवा कन्वेंशन और अन्य अतिरिक्त प्रोटोकॉल अंतर्राष्ट्रीय मानवीय कानून के केंद्र हैं, जो सशस्त्र संघर्ष को नियंत्रित करते हैं और इसके प्रभावों को सीमित करने का प्रयास करते हैं। वे उन लोगों की रक्षा करते हैं जो लंबे समय से या वर्तमान में संघर्ष में भाग नहीं कर रहे हैं।
- सशस्त्र संघर्ष में बच्चों की भागीदारी को लेकर CRC, वैकल्पिक प्रोटोकॉल के तहत 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को अनिवार्य रूप से राज्य या गैर-राज्य सशस्त्र बलों में भर्ती होने या सीधे संघर्ष में शामिल होने से रोकता है।
- मानवाधिकार संधियों के वैकल्पिक प्रोटोकॉल स्वयं में अनेक संधियाँ हैं तथा उन देशों द्वारा हस्ताक्षर, परिग्रहण या अनुसमर्थन के लिये खुले हैं जो मुख्य संधि के पक्षकार हैं।
- अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (ICC) के रोम कानून के तहत बाल सैनिकों की भर्ती को भी युद्ध अपराध माना जाता है।
- इसके अतिरिक्त संयुक्त राष्ट्र ने बाल सैनिकों की भर्ती और उनके उपयोग की पहचान छह "गंभीर उल्लंघनों" के रूप में की है। अन्य पाँच उल्लंघन इस प्रकार हैं:
- बच्चों की हत्या करना या उन्हें अपंग बनाना।
- बच्चों के खिलाफ यौन हिंसा।
- बच्चों का अपहरण।
- स्कूलों या अस्पतालों पर हमले करना।
- बच्चों के लिये मानवीय पहुँच से इनकार करना।
CRC से संबद्ध मुद्दे:
- ये संधियाँ कार्यक्षेत्र और प्रकृति में सीमित हैं तथा ये व्यावहारिक होने के बजाय आदर्शवादी हैं।
- संयुक्त राष्ट्र का तंत्र केवल उन राज्य दलों को बाध्य करता है जो संधियों की पुष्टि करते हैं। इसलिये उन देशों पर इसका कोई अधिकार नहीं है जो सम्मेलन के पक्षकार नहीं हैं या गैर-राज्य संस्थाएँ हैं, जैसे कि विद्रोही मिलिशिया (Militia) जो कि बाल सैनिकों की भर्ती करते हैं।
- यह अपने सिद्धांतों को लागू करने और पूरे विश्व में मानवाधिकारों के हनन को रोकने के लिये हस्ताक्षरकर्त्ताओं पर निर्भर करता है।
- इसलिये इस तरह के दुरुपयोग को रोकने की अधिकांश ज़िम्मेदारी स्वयं अलग-अलग देशों की होती है।
- जबकि संयुक्त राष्ट्र अपनी संधियों और सम्मेलनों को राज्य दलों के लिये बाध्यकारी मानता है, इसके पास अपने निर्णयों को लागू करने हेतु कोई पुलिस शक्ति तंत्र नहीं है।
- सीआरसी और इसके वैकल्पिक प्रोटोकॉल, हस्ताक्षरकर्त्ताओं की अनुपालन करने की इच्छा पर निर्भर हैं। उदाहरण के लिये सोमालिया एक हस्ताक्षरकर्त्ता है लेकिन उसने सम्मेलन की पुष्टि नहीं की है।
भारतीय परिदृश्य:
- हालाँकि भारत में बाल सैनिकों को भर्ती करना निषिद्ध है, फिर भी इन्हें कुछ गैर-राज्य बलों जैसे- पूर्वोत्तर क्षेत्र (मुख्य रूप से असम, मणिपुर, नगालैंड) में विद्रोही संगठनों और कश्मीर क्षेत्र में आतंकवादी गुटों में देखा जा सकता है।
- इसके अलावा इन्हें आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, कर्नाटक और महाराष्ट्र के माओवाद प्रभावित क्षेत्रों में देखा जा सकता है।
- कुछ वैश्विक मानवाधिकार संगठन भारतीय सुरक्षा बलों पर बच्चों को जासूसों और दूतों के रूप में इस्तेमाल करने का आरोप लगाते हैं, हालाँकि भारत सरकार इस आरोप से इनकार करती है।
- रक्षा मंत्रालय द्वारा संचालित राष्ट्रीय कैडेट कोर (National Cadet Corps- NCC) का उद्देश्य 13 वर्ष की आयु से युवाओं को सशस्त्र बलों (सेना, नौसेना और वायु सेना) तथा प्रादेशिक सेना में भविष्य बनाने के लिये प्रेरित करना है।
- इनकी तुलना बाल सैनिकों से नहीं की जा सकती।
- भारत सरकार द्वारा उठाए गए कदम:
- भारत बाल अधिकारों पर अभिसमय (CRC) का पक्षकार है और नवंबर 2005 में वैकल्पिक प्रोटोकॉल में शामिल हुआ।
- संविधान में मूल अधिकारों और राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों के रूप में सीआरसी में शामिल अधिकांश अधिकार शामिल हैं।
- अनुच्छेद 39 (f) में कहा गया है कि बच्चों को स्वस्थ तरीके से स्वतंत्रता एवं सम्मान की स्थिति में विकसित होने का अवसर और सुविधाएँ दी जाती हैं तथा शोषण व नैतिक, भौतिक परित्याग के खिलाफ बच्चों एवं युवाओं को संरक्षण प्रदान किया जाता है।
- भारतीय दंड संहिता राज्य सशस्त्र बलों या गैर-राज्य सशस्त्र समूहों द्वारा 18 वर्ष से कम आयु के व्यक्तियों की भर्ती या उपयोग को अपराध बनाती है।
- 18 वर्ष से अधिक आयु के वयस्कों की भर्ती केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों (CAPF) में की जा सकती है।
- भारत बाल अधिकारों पर अभिसमय (CRC) का पक्षकार है और नवंबर 2005 में वैकल्पिक प्रोटोकॉल में शामिल हुआ।
आगे की राह:
- अंतर्राष्ट्रीय संधियाँ और उपकरण, जैसे कि CRC और इसके वैकल्पिक प्रोटोकॉल, बच्चों की बेहतरी सुनिश्चित करने के लिये मूल्यवान और आवश्यक उपकरण हैं लेकिन इन्हें सभी पक्षों द्वारा ईमानदारी के साथ लागू किया जाना चाहिये।
- वर्ष 2014 में यूनिसेफ ने बाल सैनिकों को संघर्ष में इस्तेमाल नहीं किये जाने के लिये एक वैश्विक आम सहमति बनाने हेतु "चिल्ड्रन, नॉट सोल्जर्स’" अभियान शुरू किया।
- राजनीतिक इच्छाशक्ति और अंतर्राष्ट्रीय समर्थन सुनिश्चित करने के लिये ऐसे और अभियानों (वैश्विक और राष्ट्रीय) को गति प्रदान करने की आवश्यकता है।
- साथ ही हमारे सामूहिक प्रयासों का केंद्र बिंदु पूर्व बाल सैनिकों का पुन: एकीकरण होना चाहिये।
स्रोत-इंडियन एक्सप्रेस
मंगल के ‘असतत् औरोरा’
प्रिलिम्स के लिये:होप अंतरिक्षयान, मंगल के ‘असतत् औरोरा’ मेन्स के लिये:औरोरा की उपस्थिति तथा इसका वैज्ञानिक महत्त्व |
चर्चा में क्यों
हाल ही में संयुक्त अरब अमीरात के होप अंतरिक्षयान ने मंगल ग्रह पर रात के दौरान आकाश में चमकती वायुमंडलीय रोशनी की छवियों को कैप्चर किया है, जिसे ‘असतत् औरोरा’ (Discrete Aurora) के रूप में जाना जाता है।
- होप प्रोब, अरब दुनिया का पहला मंगल ग्रह आधारित मिशन है जो जुलाई 2020 में पृथ्वी से रवाना हुआ और फरवरी 2021 से लाल ग्रह (मंगल) की परिक्रमा कर रहा है। इसके द्वारा मंगल ग्रह के वायुमंडल का पहला पूर्ण चित्र बनाए जाने की उम्मीद है।
प्रमुख बिंदु:
औरोरा:
- ऑरोरा आकाश में एक प्रकाशदीप्ति है जिसे मुख्य रूप से उच्च अक्षांश क्षेत्रों (आर्कटिक और अंटार्कटिक) में देखा जाता है। इसे ध्रुवीय प्रकाश के रूप में भी जाना जाता है।
- ये आमतौर पर उच्च उत्तरी और दक्षिणी अक्षांशों पर घटित होते हैं, यह मध्य अक्षांशों पर कम पाए जाते हैं, और कभी-कभी भूमध्य रेखा के पास देखे जाते हैं।
- आमतौर पर एक औरोरा दूधिया हरा रंग, लाल, नीला, बैंगनी, गुलाबी और सफेद भी दिख सकता है। ये रंग लगातार बदलते आकार की एक किस्म के रूप में दिखाई देते हैं।
- औरोरा केवल पृथ्वी पर ही नहीं बल्कि यदि किसी ग्रह में वातावरण और चुंबकीय क्षेत्र मौजूद है, तो संभवतः वहाँ पर भी औरोरा की उपस्थिति होती है।
पृथ्वी पर औरोरा का कारण:
- औरोरा (Auroras) तब उत्पन्न होता है जब सूर्य की सतह से निकले आवेशित कण (जिन्हें सौर वायु कहा जाता है) पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करते हैं ।
- कुछ औरोरा पृथ्वी के ऊपरी वायुमंडल में ऑक्सीजन और नाइट्रोजन के साथ अंतरिक्ष से आवेशित कणों के बीच घर्षण के कारण होता है।
- इलेक्ट्रॉन - जो पृथ्वी के मैग्नेटोस्फीयर (पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र द्वारा नियंत्रित अंतरिक्ष क्षेत्र) से आते हैं, यह अपनी ऊर्जा को ऑक्सीजन और नाइट्रोजन परमाणुओं तथा अणुओं में स्थानांतरित करते हैं, जिससे वे "उत्सर्जित" हो जाते हैं।
- जब वायुमंडल पर विस्फोटक के रूप में मैग्नेटोस्फीयर से बड़ी संख्या में इलेक्ट्रॉन आते हैं, तो ऑक्सीजन और नाइट्रोजन कणों का पता लगाने के लिये पर्याप्त प्रकाश उत्सर्जित कर सकते हैं, जिससे हमें सुंदर औरोरा दिखाई देते हैं।
- हमारे ग्लोब के उत्तरी भाग में ध्रुवीय रोशनी को औरोरा बोरेलिस या उत्तर ध्रुवीय ज्योति कहा जाता है और इसे यूएस (अलास्का), कनाडा, आइसलैंड, ग्रीनलैंड, नॉर्वे, स्वीडन तथा फिनलैंड से देखा जाता है।
- दक्षिण में उन्हें औरोरा ऑस्ट्रेलिया या दक्षिण ध्रुवीय ज्योति कहा जाता है तथा अंटार्कटिका, चिली, अर्जेंटीना, न्यूज़ीलैंड और ऑस्ट्रेलिया जैसे उच्च अक्षांशों में दिखाई देते हैं।
मंगल के असतत् औरोरा:
- पृथ्वी पर औरोरा के विपरीत जो केवल उत्तरी और दक्षिणी ध्रुवों के पास देखा जाता है, मंगल ग्रह पर असतत् औरोरा (Discrete Aurora) को रात के समय ग्रह के चारों ओर देखा जाता है।
- इन असतत् औरोराओं का पता वहाँ लगाया जाता है जहाँ ऊर्जावान कण मंगल की सतह पर खनिजों से उत्पन्न होने वाले चुंबकीय क्षेत्रों के एक पैची नेटवर्क (Patchy Network) द्वारा वातावरण को उत्तेजित करते हैं।
मंगल ग्रह के औरोरा अलग हैं:
- पृथ्वी के विपरीत जिसमें एक मज़बूत चुंबकीय क्षेत्र है, मंगल ग्रह का चुंबकीय क्षेत्र काफी हद तक समाप्त हो गया है। ऐसा इसलिये है क्योंकि ग्रह के आंतरिक भाग में पिघला हुआ लोहा जो चुंबकत्व पैदा करता है, ठंडा हो गया है।
- हालाँकि मंगल ग्रह की भूपर्टी, जो अरबों वर्ष पहले कठोर हो गई थी, में कुछ चुंबकत्व है।
- पृथ्वी के विपरीत मंगल ग्रह पर चुंबकत्व असमान रूप से वितरित है।
- ये असंबद्ध क्षेत्र सौर हवा को मंगल ग्रह के वायुमंडल के विभिन्न हिस्सों में प्रसारित करते हैं, ग्रह की पूरी सतह पर "असतत्” औरोरा बनाते हैं क्योंकि आवेशित कण आकाश में परमाणुओं और अणुओं के साथ मेल करते हैं, जैसा कि वे पृथ्वी पर करते हैं।
महत्त्व:
- मंगल ग्रह के औरोरा का अध्ययन वैज्ञानिकों के लिये महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह इस बात का सुराग दे सकता है कि जीवन को बनाए रखने हेतु आवश्यकताओं के बीच लाल ग्रह ने अपना चुंबकीय क्षेत्र और घने वातावरण को क्यों खो दिया।
- संयुक्त अरब अमीरात के मंगल मिशन के दौरान एकत्रित जानकारी के साथ वैज्ञानिकों को मंगल के वायुमंडल की विभिन्न परतों की जलवायु गतिशीलता की बेहतर समझ प्राप्त होगी।
अन्य मंगल मिशन
- नासा का मंगल 2020 मिशन (पर्सिवरेंस रोवर): इस मिशन को मंगल ग्रह के भू-विज्ञान को बेहतर ढंग से समझने तथा जीवन के प्राचीनतम संकेतों की तलाश के लिये डिज़ाइन किया गया है।
- तियानवेन -1: चीन का मंगल मिशन: इसे वर्ष 2019 में ग्रह की मिट्टी, भूवैज्ञानिक संरचना, पर्यावरण, वायुमंडल और पानी की वैज्ञानिक जाँच करने के उद्देश्य से लॉन्च किया गया था।
- भारत का मंगल ऑर्बिटर मिशन (MOM) या मंगलयान: इसे नवंबर 2013 में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन द्वारा आंध्र प्रदेश के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से लॉन्च किया गया था।
स्रोत: इंडियन एक्स्प्रेस
किंग कोबरा एवं तिलारी रिज़र्व
प्रीलिम्स के लिये:तिलारी संरक्षण रिज़र्व, संरक्षण रिज़र्व, IUCN रेड लिस्ट मेन्स के लिये:वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 के तहत भारत में जीव जंतुओं का संरक्षण |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में महाराष्ट्र के सिंधुदुर्ग ज़िले के तिलारी संरक्षण रिज़र्व (Tillari Conservation Reserve) में एक किंग कोबरा (Ophiophagus Hannah) देखा गया।
- उल्लेखनीय है कि जुलाई 2020 में महाराष्ट्र सरकार ने सिंधुदुर्ग ज़िले में स्थित डोडामर्ग वन क्षेत्र के लगभग 29.53 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को 'तिलारी संरक्षण रिज़र्व' (Tillari Conservation Reserve) घोषित किया था।
प्रमुख बिंदु:
किंग कोबरा के बारे में:
- वे पृथ्वी पर सबसे ज़हरीले साँपों में से एक हैं और सभी ज़हरीले साँपों में सबसे लंबे हैं।
- ज़हरीले साँपों में उनका ज़हर सबसे अधिक घातक नहीं है, लेकिन एक बार काटते समय वे इतनी मात्रा में (एक तरल औंस के दो-दसवें हिस्से तक) न्यूरोटॉक्सिन मुक्त कर सकते हैं जो 20 लोगों या यहाँ तक कि एक हाथी को मारने के लिये पर्याप्त होता है।
- ये विश्व में एकमात्र ऐसे साँप हैं जो अपने अंडों को रखने के लिये घोंसले का निर्माण करते हैं, जिनकी वे तब तक रक्षा करते हैं जब तक कि साँप के बच्चे अंडों से बाहर नहीं निकल आते हैं।
- आवास:
- ये मुख्य रूप से भारत, दक्षिणी चीन और दक्षिण-पूर्व एशिया के वर्षा वनों तथा मैदानी क्षेत्रों में निवास करते हैं।
- ये विभिन्न प्रकार के आवासों में निवास करते हैं जिनमें जंगल, बांँस की झाड़ियाँ, मैंग्रोव दलदल, अधिक ऊंँचाई वाले घास के मैदान और नदियाँ शामिल हैं।
- खतरा:
- विभिन्न प्रकार की मानवीय गतिविधियांँ इनके अस्तित्व के लिये खतरनाक साबित हो सकती हैं जैसे:
- वनों की कटाई।
- पालतू जानवरों का अंतर्राष्ट्रीय व्यापार।
- मनुष्यों द्वारा उत्पीड़न।
- केंचुल (साँप के शरीर पर पाई जाने वाली एक महीन झिल्ली), भोजन और औषधीय प्रयोजनों हेतु उपयोग किया जाना।
- विभिन्न प्रकार की मानवीय गतिविधियांँ इनके अस्तित्व के लिये खतरनाक साबित हो सकती हैं जैसे:
- संरक्षण स्थित:
- IUCN रेड लिस्ट: सुभेद्य (Vulnerable)
- CITES: परिशिष्ट II
- वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972: अनुसूची II
तिलारी संरक्षण रिज़र्व:
- तिलारी महाराष्ट्र राज्य का सातवाँ वन्यजीव गलियारा है जिसे 'संरक्षण रिज़र्व' के रूप में घोषित किया गया है।
- तिलारी पश्चिमी घाट में स्थित एक रिज़र्व है।
- अपने वन क्षेत्र में नौ गाँवों को कवर करने वाले इस रिज़र्व को मुख्यतः एक गलियारे के रूप में जाना जाता है और साथ ही यह तीन राज्यों यथा- गोवा, कर्नाटक और महाराष्ट्र के मध्य विचरण करने वाले बाघों और हाथियों की आबादी के लिये निवास स्थान के रूप में भी कार्य करता है।
- यह गोवा के महादेई अभयारण्य को कर्नाटक के भीमगढ़ से जोड़ता है।
- यहाँ अर्द्ध-सदाबहार वन, उष्णकटिबंधीय नम पर्णपाती वन और कई विशिष्ट वृक्ष, तितलियाँ व फूल पाए जाते हैं।
भारत में संरक्षण रिज़र्व
- संरक्षण रिज़र्व या सामुदायिक रिज़र्व देश के उन संरक्षित क्षेत्रों को संदर्भित करते हैं, जो आमतौर पर स्थापित राष्ट्रीय उद्यानों, वन्यजीव अभयारण्यों और आरक्षित तथा संरक्षित वनों के मध्य बफर ज़ोन के रूप में या कनेक्टर्स के रूप में कार्य करते हैं।
- प्रायः ऐसे क्षेत्रों को संरक्षण क्षेत्रों के रूप में नामित किया जाता है जो निर्जन (Uninhabited) होते हैं और पूरी तरह से भारत सरकार के स्वामित्व में हैं, किंतु यदि ऐसे क्षेत्रों में भूमि का हिस्सा निजी स्वामित्व में है तो उसे समुदायों और सामुदायिक क्षेत्रों द्वारा निर्वाह के लिये उपयोग किया जाता है।
- संरक्षित क्षेत्र की इन श्रेणियों को पहली बार वन्यजीव (संरक्षण) संशोधन अधिनियम, 2002 (वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 में संशोधन) के माध्यम से पेश किया गया था।
- इन श्रेणियों को भूमि और भूमि के उपयोग के निजी स्वामित्व के कारण मौजूदा और प्रस्तावित संरक्षित क्षेत्रों में कम सुरक्षा के कारण जोड़ा गया था।
- राष्ट्रीय वन्यजीव डेटाबेस (दिसंबर 2020) के मुताबिक, भारत में वर्तमान में 97 संरक्षण रिज़र्व हैं, ये 44483 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को कवर करते हैं, जो कि देश के भौगोलिक क्षेत्र का 0.14% है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
एंटी-डंपिंग ड्यूटी
प्रिलिम्स के लिये:एंटी-डंपिंग ड्यूटी, काउंटर वेलिंग ड्यूटी और एंटी-डंपिंग ड्यूटी के बीच अंतर मेन्स के लिये:एंटी-डंपिंग ड्यूटी’ से संबंधित विश्व व्यापार संगठन के प्रावधान |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत सरकार ने चीन, थाईलैंड, कोरिया और तीन अन्य देशों से तांबे के कुछ उत्पादों के आयात पर एंटी-डंपिंग ड्यूटी (Anti-Dumping Duty- ADD) नहीं लगाने का फैसला किया है।
प्रमुख बिंदु:
संदर्भ:
- अप्रैल में व्यापार उपचार महानिदेशालय (DGTR) ने एक जाँच के बाद चीन, कोरिया, मलेशिया, नेपाल, श्रीलंका और थाईलैंड से "कॉपर और कॉपर अलॉय फ्लैट-रोल्ड उत्पादों" के आयात पर शुल्क लगाने की सिफारिश की।
- हालाँकि वित्त मंत्रालय इन सिफारिशों को लागू करने के लिये अंतिम निर्णय लेता है और उसी के आधार पर अधिसूचना जारी करता है।
डंपिंग:
- एंटी-डंपिंग ड्यूटी (अवधारणा):
- डंपिंग का अभिप्राय किसी देश के निर्माता द्वारा किसी उत्पाद को या तो इसकी घरेलू कीमत से नीचे या उत्पादन लागत से कम कीमत पर किसी दूसरे देश में निर्यात करने से है।
- यह एक अनुचित व्यापार प्रथा है जिसका अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर विकृत प्रभाव पड़ सकता है।
- उद्देश्य:
- एंटी-डंपिंग शुल्क डंपिंग को रोकने और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार व्यवस्था में समानता स्थापित करने के लिये लगाया जाता है।
- लंबी अवधि में एंटी-डंपिंग ड्यूटी समान वस्तुओं का उत्पादन करने वाली घरेलू कंपनियों की अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्द्धा को कम कर सकती है।
- यह एक संरक्षणवादी टैरिफ है जिसे एक देश की सरकार द्वारा विदेशी आयातों पर लगाया जाता है, जिसका अर्थ है कि इसकी कीमत उचित बाज़ार मूल्य से कम है।
- विश्व व्यापार संगठन द्वारा उचित प्रतिस्पर्द्धा के साधन के रूप में डंपिंग-रोधी उपायों के उपयोग की अनुमति दी गई है।
- एंटी-डंपिंग शुल्क डंपिंग को रोकने और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार व्यवस्था में समानता स्थापित करने के लिये लगाया जाता है।
- काउंटर वेलिंग ड्यूटी और एंटी-डंपिंग ड्यूटी के बीच अंतर:
- ‘एंटी-डंपिंग ड्यूटी’ आयात पर अधिरोपित वह सीमा शुल्क है, जो सामान्य मूल्य से काफी कम कीमतों पर माल की डंपिंग के विरुद्ध सुरक्षा प्रदान करती है, जबकि ‘काउंटर वेलिंग ड्यूटी’ ऐसी वस्तुओं पर अधिरोपित की जाती है, जिन्हें मूल या निर्यात करने वाले देश में सरकारी सब्सिडी प्राप्त हुई है।
- ‘एंटी-डंपिंग ड्यूटी’ से संबंधित विश्व व्यापार संगठन के प्रावधान:
- वैधता: एक एंटी-डंपिंग शुल्क इसके लागू होने की तारीख से पाँच वर्ष की अवधि के लिये वैध रहता है, यदि इसे वैधता अवधि से पूर्व रद्द नहीं किया गया हो।
- ‘सनसेट रिव्यू’: इसे सनसेट या समाप्ति समीक्षा जाँच के माध्यम से पाँच वर्ष की अवधि के लिये और बढ़ाया जा सकता है।
- सनसेट रिव्यू या समाप्ति समीक्षा का अभिप्राय किसी एक विशिष्ट कार्यक्रम, गतिविधि या एक एजेंसी के निरंतर अस्तित्व में रहने की आवश्यकता और उसके मूल्यांकन से है। यह प्रक्रिया उस विशिष्ट कार्यक्रम या एजेंसी की प्रभावशीलता एवं प्रदर्शन का आकलन करने की अनुमति देती है।
- इस प्रकार की ‘स्वतः संज्ञान’ के माध्यम से या घरेलू उद्योग अथवा उस घरेलू उद्योग की ओर से प्राप्त विधिवत प्रमाणित अनुरोध के आधार पर इसे शुरू किया जा सकता है।
व्यापार उपचार महानिदेशालय (DGTR)
- यह सभी डंपिंग-रोधी, काउंटरवेलिंग शुल्क और अन्य व्यापार सुधारात्मक उपायों को लागू करने के लिये वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के तहत सर्वोच्च राष्ट्रीय प्राधिकरण है।
- यह घरेलू उद्योग और निर्यातकों को अन्य देशों द्वारा उनके खिलाफ लागू किये गए व्यापार उपायों की जाँच के बढ़ते मामलों से निपटने में सहायता प्रदान करता है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
सर चेट्टूर शंकरन नायर
प्रीलिम्स के लिये:मोंटेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार, लॉर्ड कर्ज़न, भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस मेन्स के लिये:सर चेट्टूर शंकरन नायर का स्वतंत्रता आंदोलन में योगदान |
चर्चा में क्यों?
शीघ्र ही सर चेट्टूर शंकरन नायर (Sir Chettur Sankaran Nair) के जीवन पर आधारित एक बायोपिक का निर्माण किया जाएगा।
- यह वर्ष 2019 में रघु पलत और पुष्पा पलत द्वारा लिखित पुस्तक 'द केस दैट शुक द एम्पायर' (The case that shook the Empire ) पर आधारित होगी।
प्रमुख बिंदु:
संक्षिप्त परिचय:
- इनका जन्म वर्ष 1857 में मालाबार क्षेत्र में पालक्काड़ ज़िले के मनकारा गांँव में हुआ।
- इन्हें सामाजिक सुधारों के समर्थक और भारत के आत्मनिर्णय में दृढ़ विश्वास हेतु जाना जाता है।
- वे मद्रास उच्च न्यायालय में एक प्रशंसित वकील और न्यायाधीश थे।
उपलब्धियांँ:
- INC के अध्यक्ष: ये वर्ष 1885 में गठित भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस (Indian National Congress- INC) के शुरुआती निर्माताओं में से एक थे।
- वर्ष 1885 में कॉन्ग्रेस पार्टी के इतिहास में वे सबसे कम उम्र के अध्यक्ष बने और इस पद को संभालने वाले एकमात्र मलयाली थे।
- रैले विश्वविद्यालय आयोग के सदस्य: वर्ष 1902 में लॉर्ड कर्ज़न (Lord Curzon) ने उन्हें रैले विश्वविद्यालय आयोग का सदस्य नियुक्त किया।
- नाइटहुड: वर्ष 1904 में ब्रिटेन की महारानी द्वारा इन्हें कम्पैनियन ऑफ द इंडियन एम्पायर (Companion of The Indian Empire) के रूप में नियुक्त किया गया था तथा वर्ष 1912 में उन्हें नाइटहुड की उपाधि दी गई थी।
- मद्रास उच्च न्यायालय में न्यायाधीश: उन्हें वर्ष 1908 में मद्रास उच्च न्यायालय में स्थायी न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया था।
- वायसराय परिषद का हिस्सा: वर्ष 1915 में वे वायसराय की परिषद का हिस्सा बने, जिसे शिक्षा विभाग का प्रभारी बनाया गया था।
स्वतंत्रता आंदोलन में भूमिका:
- एक उत्कट स्वतंत्रता सेनानी के रूप में भारत के स्वशासन के अधिकार में इनका दृढ़ विश्वास था।
- मोंटेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार: वर्ष 1919 में वायसराय की कार्यकारी परिषद में शामिल होकर उन्होंने मोंटेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधारों (Montagu-Chelmsford reforms) में प्रावधानों के विस्तार में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- इससे प्रांतों में द्वैध शासन प्रणाली की शुरुआत हुई और प्रशासन में भारतीयों की भागीदारी में वृद्धि हुई।
- वायसराय की परिषद से इस्तीफा: जलियाँवाला बाग नरसंहार (13 अप्रैल, 1919) के पश्चात् सर चेट्टूर शंकरन नायर ने विरोध स्वरूप वायसराय की परिषद से इस्तीफा दे दिया था।
- उनके इस्तीफे ने ब्रिटिश सरकार को झकझोर कर रख दिया था और इस इस्तीफे के तुरंत बाद पंजाब में प्रेस सेंसरशिप हटा दी गई तथा मार्शल लॉ समाप्त कर दिया गया।
- इसके अलावा पंजाब में गड़बड़ी की जाँच के लिये लॉर्ड विलियम हंटर की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया था।
- गांधीवादी पद्धति के आलोचक: अपनी पुस्तक 'गांधी एंड एनार्की' में उन्होंने गांधी जी के तरीकों, विशेष रूप से अहिंसा, सविनय अवज्ञा और असहयोग आदि की व्यापक आलोचना की थी।
- उनका मानना था कि ये सभी तरीके अंततः दंगों और रक्तपात को ही जन्म देंगे।
माइकल ओ'डायर के खिलाफ कानूनी लड़ाई:
- मानहानि का मुकदमा: सर चेट्टूर शंकरन नायर ने पंजाब के लेफ्टिनेंट गवर्नर माइकल ओ'डायर को अपनी पुस्तक 'गांधी एंड एनार्की' में जलियाँवाला बाग हत्याकांड में हुए अत्याचारों के लिये उत्तरदायी ठहराया था।
- इसके लिये उन्हें माइकल ओ'डायर द्वारा इंग्लैंड में दायर मानहानि के मुकदमे का भी सामना करना पड़ा था।
- मुकदमे का प्रभाव: यद्यपि सर शंकरन नायर यह मामला हार गए थे, किंतु मुकदमे का भारत में ब्रिटिश साम्राज्य पर गहरा प्रभाव पड़ा था।
- ऐसे समय में जब राष्ट्रवादी आंदोलन ज़ोर पकड़ रहा था, तो तमाम भारतीयों ने इस मामले के तहत दिये गए निर्णय को ब्रिटिश सरकार के स्पष्ट पूर्वाग्रह और अपने लोगों के विरुद्ध अत्याचार करने वालों को बचाने के एक प्रयास के रूप में देखा।
- यह निर्णय इस लिहाज़ से काफी महत्त्वपूर्ण था कि इसने स्वशासन के लिये लड़ने हेतु राष्ट्रवादियों के दृढ़ संकल्प को मज़बूत किया।
समाज सुधार:
- मद्रास उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में उनके प्रसिद्ध निर्णय सामाजिक सुधारों के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को स्पष्ट रूप से दर्शाते हैं।
- बुडासना बनाम फातिमा (वर्ष 1914) वाद में उन्होंने महत्त्वपूर्ण निर्णय देते हुए कहा कि जो लोग हिंदू धर्म में परिवर्तित हो गए हैं उन्हें बहिष्कृत नहीं माना जा सकता है।
- कुछ अन्य मामलों में उन्होंने अंतर्जातीय और अंतर-धार्मिक विवाहों को भी मान्यता दी।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
OECD/G20 इन्क्लूसिव फ्रेमवर्क टैक्स डील में शामिल हुआ भारत
प्रिलिम्स के लिये:बेस इरोज़न एंड प्रॉफिट शिफ्टिंग, टू पिलर प्लान मेन्स के लिये:अंतर्राष्ट्रीय कराधान नियमों में सुधार की आवश्यकता |
चर्चा में क्यों:
हाल ही में भारत और OECD/G2 इन्क्लूसिव फ्रेमवर्क ऑन बेस इरोज़न एंड प्रॉफिट शिफ्टिंग (OECD/G20 Inclusive Framework on Base Erosion and Profit Shifting) के अधिकांश सदस्य अंतर्राष्ट्रीय कराधान नियमों में सुधार के लिये एक नए टू पिलर प्लान (Two Pillar Plan) में शामिल हो गए हैं।
- दो स्तंभ योजना- बेस इरोज़न एंड प्रॉफिट शिफ्टिंग (Base Erosion and Profit Shifting) पर इन्क्लूसिव टैक्स डील अंतर्राष्ट्रीय कर नियमों में सुधार करना चाहता है और यह सुनिश्चित करता है कि बहुराष्ट्रीय उद्यम जहाँ भी काम करते हैं, अपने उचित हिस्से का भुगतान करें।
प्रमुख बिंदु
बेस इरोज़न एंड प्रॉफिट शिफ्टिंग के विषय में:
- इस योजना के हस्ताक्षरकर्त्ता 130 देश हैं, जो वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद के 90% से अधिक का प्रतिनिधित्व करते हैं।
- नया ढाँचा अर्थव्यवस्थाओं के डिजिटलीकरण से उत्पन्न होने वाली कर चुनौतियों का समाधान करेगा।
- यह सीमा पार लाभ स्थानांतरण पर चिंताओं को दूर करने और ट्रीटी शॉपिंग (Treaty Shopping) को रोकने के लिये इसे कर नियम के अधीन लाने का भी प्रयास करता है।
- ट्रीटी शॉपिंग एक व्यक्ति द्वारा दो देशों (इनमें से किसी के निवासी होने के बिना) के बीच कर संधि के लाभों को अप्रत्यक्ष रूप सेउपयोग करने का एक प्रयास है।
टू पिलर प्लान:
-
वन पिलर:
- यह डिजिटल कंपनियों सहित सबसे बड़े एमएनई के संबंध में देशों के बीच मुनाफे और कर अधिकारों का उचित वितरण सुनिश्चित करेगा।
- यह उन बहुराष्ट्रीय उद्यमों (Introduction Multinational enterprises- MNE) को उनके घरेलू देशों से उन बाज़ारों में कुछ कर अधिकार फिर से आवंटित करेगा जहाँ उनकी व्यावसायिक गतिविधियाँ हैं।
- ऑर्गेनाइज़ेशन फार इकॉनमिक को-ऑपरेशन एंड डेवलपमेंट (OECD) के अनुसार, प्रत्येक वर्ष बाज़ार के अधिकार क्षेत्र में 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक के लाभ का पुन: आवंटन होने की उम्मीद है।
- टू पिलर: यह न्यूनतम कर के विषय में है और कर नियमों के अधीन है (आय के सभी स्रोत कर भत्तों को ध्यान में रखे बिना कर के लिये उत्तरदायी हैं)।
- यह वैश्विक न्यूनतम कॉर्पोरेट कर दर के माध्यम से देशों के बीच न्यूनतम मानक कर दर निर्धारित करना चाहता है, जो वर्तमान में 15% प्रस्तावित है।
- इससे कर राजस्व में अतिरिक्त 150 बिलियन अमेरिकी डॉलर उत्पन्न होने की उम्मीद है।
महत्त्व:
- यह सुनिश्चित करेगा कि बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ प्रत्येक स्थान के कर के अनुसार अपने उचित हिस्से का भुगतान करें।
- टू पिलर प्लान सरकारों को आवश्यक सार्वजनिक सेवाओं, बुनियादी ढाँचे तथा कोविड-पूर्व रिकवरी क्षमता और गुणवत्ता को अनुकूलित करने में मदद के लिये आवश्यक उपायों में निवेश करते हुए अपने बजट एवं बैलेंसशीट को दुरुस्त करने हेतु आवश्यक राजस्व जुटाने के लिये उचित सहायता प्रदान करेगा।
भारत का रुख :
- भारत को वैश्विक कर व्यवस्था लागू होने पर Google, Amazon और Facebook जैसी कंपनियों पर लगाए जाने वाले समान उगाही (Levy) को वापस लेना होगा।
- इसका उद्देश्य उन विदेशी कंपनियों पर कर लगाना है, जिनके पास भारत में एक महत्त्वपूर्ण स्थानीय ग्राहक आधार है, लेकिन देश की कर प्रणाली से प्रभावी रूप से बचने के लिये वह अपनी अपतटीय इकाइयों के माध्यम से बिलिंग कर रहे हैं।
- वर्ष 2016 से ऑनलाइन विज्ञापनों के लिये एक अनिवासी सेवा प्रदाता द्वारा प्रतिवर्ष 1 लाख रुपए से अधिक के भुगतान पर 6% की दर से समान कर लागू है।
- भारत यह सुनिश्चित करने के लिये कानून के व्यापक आवेदन/अनुप्रयोग का समर्थन करता है कि देश प्रस्तावित ढाँचे के तहत समान कर के माध्यम से प्राप्त होने वाली राशि से कम संग्रह नहीं करेगा।
- भारत एक सर्वसम्मत समाधान के पक्ष में है जो लागू करने और पालन करने में आसान हो।
- समाधान का परिणाम बाज़ार क्षेत्राधिकारों, विशेष रूप से विकासशील और उभरती अर्थव्यवस्थाओं के लिये सार्थक एवं टिकाऊ राजस्व के आवंटन के रूप में होना चाहिये।
- टू पिलर प्लान (Two Pillar Plan) बाज़ार हेतु मुनाफे के अधिक हिस्से के लिये भारत के रुख को सही ठहराता है और लाभ आवंटन में मांग पक्ष कारकों पर विचार करता है।
आधार क्षरण और लाभ स्थानांतरण
(Base Erosion and Profit Shifting- BEPS):
- BEPS का तात्पर्य ऐसी टैक्स प्लानिंग रणनीतियों से है जिनके तहत टैक्स नियमों में अंतर और विसंगतियों का लाभ उठाकर कंपनियाँ अपने लाभ को किसी ऐसे स्थान या क्षेत्र में हस्तांतरित कर देती हैं जहाँ या तो टैक्स होता ही नहीं और यदि होता भी है तो बहुत कम अथवा नाम-मात्र।
- सामान्य तौर पर BEPS रणनीतियाँ अवैध नहीं होती हैं; बल्कि वे विभिन्न न्यायिक क्षेत्र में संचालित विभिन्न कर नियमों का लाभ उठाते हैं।
- विकासशील देशों के बहुराष्ट्रीय उद्यमों (MNEs) के कारण कॉर्पोरेट आयकर पर भारी निर्भरता के कारण BEPS का इनके लिये प्रमुख महत्त्व है।
- BEPS पहल एक आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन (OECD) पहल है, जिसे G20 द्वारा अनुमोदित किया गया है, ताकि विश्व स्तर पर अधिक मानकीकृत कर नियम प्रदान करने के तरीकों की पहचान की जा सके।
- OECD: यह एक अंतर-सरकारी आर्थिक संगठन है, जिसकी स्थापना आर्थिक प्रगति और विश्व व्यापार को प्रोत्साहित करने के लिये की गई है।
- अधिकांश OECD सदस्य उच्च आय वाली अर्थव्यवस्थाएँ हैं और उन्हें विकसित देश माना जाता है।
- G20: यह बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के आर्थिक, वित्तीय और राजनीतिक सहयोग के लिये अग्रणी अंतर्राष्ट्रीय मंच है।
- भारत G20 का सदस्य है, सदस्य ही नहीं बल्कि OECD का एक प्रमुख भागीदार है
- OECD: यह एक अंतर-सरकारी आर्थिक संगठन है, जिसकी स्थापना आर्थिक प्रगति और विश्व व्यापार को प्रोत्साहित करने के लिये की गई है।
- OECD/G20 समावेशी ढाँचा वर्ष 2016 में स्थापित किया गया था।
- भारत ने आधार क्षरण और लाभ स्थानांतरण ("बहुपक्षीय साधन" या "MLI") को रोकने के लिये कर संधि से संबंधित उपायों को लागू करने हेतु बहुपक्षीय सम्मेलन की पुष्टि की है।
स्रोत: द हिंदू
निपुण भारत मिशन
प्रिलिम्स के लियेनिपुण भारत मिशन तथा भारत में शिक्षा से संबंधित अन्य पहलें मेन्स के लियेनिपुण भारत मिशन : परिचय, उद्देश्य, लक्ष्य तथा महत्त्व; भारत में शिक्षा तथा नवीन शिक्षा नीति का महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
शिक्षा मंत्रालय ने ‘बेहतर समझ और संख्यात्मक ज्ञान के साथ पढ़ाई में प्रवीणता के लिये राष्ट्रीय पहल- निपुण’ (National Initiative for Proficiency in Reading with Understanding and Numeracy- NIPUN) भारत मिशन की शुरुआत की है।
- इसका उद्देश्य 3 से 9 वर्ष के आयु वर्ग के बच्चों की सीखने की आवश्यकताओं को पूरा करना है।
प्रमुख बिंदु
NEP 2020 का हिस्सा:
- यह पहल NEP (राष्ट्रीय शिक्षा नीति) 2020 के एक भाग के रूप में शुरू की जा रही है।
- इस नीति का उद्देश्य देश में स्कूल और उच्च शिक्षा प्रणालियों में परिवर्तनकारी सुधारों का मार्ग प्रशस्त करना है। इस नीति ने 34 वर्षीय राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NPE), 1986 को प्रतिस्थापित किया।
उद्देश्य:
- आधारभूत साक्षरता और संख्यात्मकता के सार्वभौमिक अधिग्रहण को सुनिश्चित करने के लिये एक सक्षम वातावरण बनाना ताकि ग्रेड 3 का प्रत्येक बच्चा वर्ष 2026-27 तक पढ़ने, लिखने और अंकगणित में वांछित सीखने की क्षमता प्राप्त कर सके।
केंद्रबिंदु के क्षेत्र:
- यह स्कूली शिक्षा के मूलभूत वर्षों में बच्चों तक शिक्षा की पहुँच प्रदान करने और उन्हें बनाए रखने पर ध्यान केंद्रित करेगा जैसे- शिक्षक क्षमता निर्माण, उच्च गुणवत्ता और छात्र एवं शिक्षक संसाधनों/शिक्षण सामग्री का विकास तथा सीखने के परिणामों को लेकर प्रत्येक बच्चे की प्रगति पर नज़र रखना।
कार्यान्वयन:
- स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता विभाग द्वारा NIPUN को भारत में कार्यान्वित किया जाएगा।
- समग्र शिक्षा की केंद्र प्रायोजित योजना के तहत सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में राष्ट्रीय, राज्य, ज़िला, ब्लॉक, स्कूल स्तर पर एक पाँच स्तरीय कार्यान्वयन तंत्र स्थापित किया जाएगा।
- 'समग्र शिक्षा' कार्यक्रम तीन मौजूदा योजनाओं- सर्व शिक्षा अभियान (SSA), राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान (RMSA) और शिक्षक शिक्षा (TE) को मिलाकर शुरू किया गया था।
- इस योजना का उद्देश्य पूर्व-विद्यालय से बारहवीं कक्षा तक स्कूली शिक्षा को समग्र रूप से सुनिश्चित करना है।
- निष्ठा (National Initiative for School Heads and Teachers Holistic Advancement- NISHTHA) के तहत बुनियादी साक्षरता और संख्यात्मक ज्ञान (Foundational Literacy and Numeracy- FLN) के लिये एक विशेष पैकेज NCERT द्वारा विकसित किया जा रहा है।
- इस वर्ष प्री-प्राइमरी से प्राइमरी कक्षा तक पढ़ाने वाले लगभग 25 लाख शिक्षकों को FLN का प्रशिक्षण प्रदान किया जाएगा।
- निष्ठा "एकीकृत शिक्षक प्रशिक्षण के माध्यम से स्कूली शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार" के लिये एक क्षमता निर्माण कार्यक्रम है।
- पूर्व-प्राथमिक या बालवाटिका कक्षाओं के क्रम में चरण-वार लक्ष्य निर्धारित किये जा रहे हैं।
अपेक्षित परिणाम:
- प्राथमिक कौशल बच्चों को कक्षा में रखने में सक्षम बनाते हैं जिससे बीच में पढ़ाई छोड़ने वाले बच्चों को कम किया जा सकता है तथा इससे प्राथमिक से उच्च प्राथमिक व माध्यमिक चरणों में पढ़ाई छोड़ने की दर में कमी आएगी।
- गतिविधि आधारित लर्निंग और सीखने के अनुकूल माहौल से शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार होगा।
- खिलौना आधारित और अनुभवात्मक लर्निंग जैसी अभिनव अध्यापन कला कक्षा कार्य में इस्तेमाल की जाएगी जिससे लर्निंग (सीखना) एक आनंदमय और आकर्षक गतिविधि बनेगी।
- शिक्षकों का उच्च क्षमता निर्माण उन्हें सशक्त बनाता है और अध्यापन कला चुनने के लिये अधिक स्वायत्ता प्रदान करता है।
- शारीरिक, सामाजिक एवं भावनात्मक विकास, साक्षरता व संख्यात्मक विकास, संज्ञानात्मक विकास, जीवन कौशल आदि जैसे परस्पर संबंधित और निर्भर विकास के विभिन्न क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित कर बच्चे का समग्र विकास किया जाएगा जो उसके प्रगति कार्ड में परिलक्षित होगा।
- इस प्रकार बच्चे तेज़ी से सीखने की क्षमता हासिल करेंगे जो उनकी शिक्षा के बाद के जीवन परिणामों और रोज़गार पर सकारात्मक प्रभाव डाल सकता है।
- चूँकि शिक्षा ग्रहण हेतु हर बच्चा प्रारंभिक ग्रेड में प्रवेश लेता है, इसलिये उस स्तर पर ध्यान देने से सामाजिक-आर्थिक व अलाभकारी समूह को भी लाभ होगा, इस प्रकार समान तथा समावेशी गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक पहुँच सुनिश्चित होगी।
भारत में शिक्षा
संवैधानिक प्रावधान:
- भारतीय संविधान के भाग IV- राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों (DPSP) के अनुच्छेद 45 और अनुच्छेद 39 (f) में राज्य द्वारा वित्तपोषण के साथ-साथ समान और सुलभ शिक्षा का प्रावधान है।
- 42वें संविधान संशोधन 1976 ने शिक्षा को राज्य सूची से समवर्ती सूची में स्थानांतरित कर दिया।
- केंद्र सरकार की शिक्षा नीतियाँ एक व्यापक दिशा प्रदान करती हैं और राज्य सरकारों से इनका पालन करने की अपेक्षा की जाती है लेकिन यह अनिवार्य नहीं है, उदाहरण के लिये तमिलनाडु राज्य वर्ष 1968 की प्रथम शिक्षा नीति द्वारा निर्धारित त्रि-भाषा फार्मूले का पालन नहीं करता है।
- 86वें संशोधन अधिनियम, 2002 ने शिक्षा को अनुच्छेद 21-A के तहत लागू किये जाने योग्य अधिकार बना दिया।
संबंधित कानून:
- शिक्षा का अधिकार (RTE) अधिनियम, 2009 का उद्देश्य 6 से 14 वर्ष की आयु के सभी बच्चों को प्राथमिक शिक्षा प्रदान करना और शिक्षा को मौलिक अधिकार के रूप में लागू करना है।
- यह गैर-अल्पसंख्यक निजी गैर-सहायता प्राप्त स्कूलों को अधिक एकीकृत तथा समावेशी स्कूली शिक्षा प्रणाली बनाने हेतु अपनी प्रवेश स्तर की सीटों में से कम-से-कम 25% सीटें वंचित वर्गों के बच्चों के लिये आरक्षित रखने का आदेश देता है।
सरकार द्वारा की गई पहल:
- सर्व शिक्षा अभियान, मध्याह्न भोजन योजना, नवोदय विद्यालय, केंद्रीय विद्यालय तथा शिक्षा में सूचना प्रौद्योगिकी का उपयोग वर्ष 1986 की राष्ट्रीय शिक्षा नीति का परिणाम है।
स्रोत: द हिंदू
उत्पादन समझौता: ओपेक+
प्रिलिम्स के लिये:OPEC तथा OPEC+ मेन्स के लिये:उत्पादन समझौता तथा संयुक्त अरब अमीरात की आपत्ति |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में संयुक्त अरब अमीरात (UAE) ने ‘पेट्रोलियम निर्यातक देशों के संगठन प्लस’ (ओपेक+) समूह द्वारा अप्रैल 2022 के बाद तेल उत्पादन में कटौती करने हेतु वैश्विक समझौते का विस्तार करने की योजना को अनुचित ठहराते हुए इसे समाप्त करने पर ज़ोर दिया है।
प्रमुख बिंदु
उत्पादन समझौता और तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव:
- ‘पेट्रोलियम निर्यातक देशों के संगठन प्लस’ (ओपेक+) समूह ने अप्रैल 2020 में दो वर्षीय उत्पादन समझौता (आउटपुट पैक्ट) किया था, जिसमें कोविड-19 महामारी के परिणामस्वरूप तेल की कीमत में तीव्र गिरावट से निपटने के लिये कच्चे तेल के उत्पादन में भारी कटौती की बात की गई थी।
- अप्रैल 2020 में ब्रेंट क्रूड ऑइल की कीमत 18 वर्ष के सबसे निचले स्तर पर 20 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल से भी कम हो गई थी, क्योंकि महामारी के कारण दुनिया भर में आर्थिक गतिविधियाँ काफी प्रभावित हुई थीं और तमाम देश महामारी से निपटने का प्रयास कर रहे थे।
- इसके पश्चात् नवंबर 2020 में कीमतें बढ़ने लगीं और जुलाई 2021 में वे 76.5 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल पर पहुँच गई, इसके लिये मुख्य तौर से दुनिया भर में टीकाकरण कार्यक्रमों के स्थिर रोलआउट को उत्तरदायी माना जा सकता है।
- हालाँकि ओपेक+ समूह में शामिल देशों ने कच्चे तेल की कीमतें पूर्व-कोविड स्तर तक पहुँचने के बावजूद उत्पादन के निचले स्तर को बनाए रखा, साथ ही सऊदी अरब ने विशेष तौर पर फरवरी से अप्रैल की अवधि के बीच उत्पादन में प्रतिदिन 1 मिलियन बैरल की और अधिक कटौती करने की घोषणा कर दी, जिससे कीमतों में और अधिक वृद्धि हुई।
- इसके पश्चात् ओपेक+ समूह को भारत सहित तमाम विकासशील अर्थव्यवस्थाओं से कीमतों को बढ़ाने के लिये जान-बूझकर कम आपूर्ति स्तर बनाए रखने हेतु आलोचना का सामना करना पड़ा।
- अप्रैल माह में ओपेक+ समूह ने कच्चे तेल के उत्पादन में धीरे-धीरे वृद्धि करने पर सहमति व्यक्त की थी, जिसमें जुलाई तक उत्पादन में सऊदी अरब के 1 मिलियन बैरल प्रतिदिन की कटौती का चरणबद्ध अंत भी शामिल है।
संयुक्त अरब अमीरात (UAE) की आपत्ति:
- UAE ने सहमति व्यक्त की है कि अगस्त 2021 से कच्चे तेल का उत्पादन बढ़ाने की आवश्यकता है, परंतु वह ओपेक की संयुक्त मंत्रिस्तरीय निगरानी समिति (JMMC) की दो वर्ष के उत्पादन समझौते को छह महीने तक बढ़ाए जाने वाली शर्त से सहमत नहीं था।
- मौजूदा समझौते पर UAE की प्रमुख आपत्ति प्रत्येक तेल-निर्यातक देश के लिये कुल उत्पादन की गणना हेतु उपयोग किया जाने वाला संदर्भ आउटपुट है।
- मौजूदा समझौते में प्रयोग किया गया बेसलाइन उत्पादन स्तर संदर्भ संयुक्त अरब अमीरात की उत्पादन क्षमता को प्रतिबिंबित नहीं करता था और इसलिये संयुक्त अरब अमीरात को कच्चे तेल के कुल उत्पादन का कम हिस्सा बाँटना पड़ा।
- यदि सभी पक्षों हेतु उचित आधारभूत उत्पादन स्तरों की समीक्षा की जाती है तो UAE समझौते का विस्तार करने के लिये तैयार होगा।
भारत पर OPEC+ संघर्ष का प्रभाव:
- विलंबित राहत:
- यदि संयुक्त अरब अमीरात और अन्य ओपेक+ राष्ट्र अगस्त में उत्पादन बढ़ाने के लिये एक समझौते पर नहीं पहुँचते हैं तो कच्चे तेल की कम कीमतों के रूप में अपेक्षित राहत में देरी हो सकती है।
- उच्च घरेलू कीमतें:
- भारत वर्तमान में पेट्रोल व डीज़ल की रिकॉर्ड उच्च कीमतों का सामना कर रहा है। कच्चे तेल की उच्च कीमतों के कारण भारतीय तेल विपणन कंपनियों ने वर्ष 2021 की शुरुआत से पेट्रोल की कीमत में लगभग 19.3% और डीज़ल की कीमत में लगभग 21% की बढ़ोतरी की है।
- धीमी रिकवरी:
- कच्चे तेल की उच्च कीमत महामारी के बाद विकासशील अर्थव्यवस्थाओं की आर्थिक सुधार को धीमा कर रही थी।
- मुद्रास्फीति:
- ऊँची कीमतों से चालू खाता घाटा भी बढ़ सकता है और भारतीय अर्थव्यवस्था पर मुद्रास्फीति का दबाव भी बढ़ सकता है।
पेट्रोलियम निर्यातक देशों का संगठन
ओपेक के विषय में:
- यह एक स्थायी, अंतर-सरकारी संगठन है, जिसकी स्थापना वर्ष 1960 में बगदाद सम्मेलन में ईरान, इराक, कुवैत, सऊदी अरब और वेनेज़ुएला द्वारा की गई थी।
- इस संगठन का उद्देश्य अपने सदस्य देशों की पेट्रोलियम नीतियों का समन्वय और एकीकरण करना तथा उपभोक्ता को पेट्रोलियम की कुशल, आर्थिक व नियमित आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिये तेल बाज़ारों का स्थिरीकरण सुनिश्चित करना है।
मुख्यालय:
- वियना (आस्ट्रिया)।
सदस्यता:
- ओपेक की सदस्यता ऐसे किसी भी देश के लिये खुली है जो तेल का एक बड़ा निर्यातक है और संगठन के आदर्शों को साझा करता है।
- ओपेक के कुल 14 देश (ईरान, इराक, कुवैत, संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, अल्जीरिया, लीबिया, नाइजीरिया, गैबॉन, इक्वेटोरियल गिनी, कांगो गणराज्य, अंगोला, इक्वाडोर और वेनेजुएला) सदस्य हैं।
ओपेक प्लस
- यह ओपेक सदस्यों और विश्व के 10 प्रमुख गैर-ओपेक तेल निर्यातक देशों का गठबंधन हैं:
- अज़रबैजान, बहरीन, ब्रुनेई, कज़ाखस्तान, मलेशिया, मैक्सिको, ओमान, रूस, दक्षिण सूडान और सूडान।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
मुख्यमंत्री
प्रिलिम्स के लिये:अविश्वास प्रस्ताव, मुख्यमंत्री से संबंधित विभिन्न प्रावधान मेन्स के लिये:मुख्यमंत्री की नियुक्ति और कार्यकाल, राज्यपाल और उसकी विवेकाधीन शक्तियाँ, राज्यपाल पद संबंधी विवाद |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में पुष्कर सिंह धामी ने उत्तराखंड के 11वें मुख्यमंत्री (CM) के रूप में शपथ ग्रहण की।
- उन्होंने वर्ष 2022 की शुरुआत में होने वाले विधानसभा चुनावों से कुछ महीने पहले ही पदभार ग्रहण किया है।
प्रमुख बिंदु
नियुक्ति:
- संविधान के अनुच्छेद 164 यह प्रावधान करता है कि मुख्यमंत्री की नियुक्ति राज्यपाल करेगा।
- विधानसभा चुनावों में पार्टी के एक बहुमत प्राप्त नेता को राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में नियुक्त किया जाता है।
- राज्यपाल के पास नाममात्र का कार्यकारी अधिकार है, लेकिन वास्तविक कार्यकारी अधिकार मुख्यमंत्री के पास है।
- हालाँकि राज्यपाल द्वारा प्राप्त विवेकाधीन शक्तियाँ राज्य प्रशासन में मुख्यमंत्री की शक्ति, अधिकार, प्रभाव, प्रतिष्ठा और भूमिका को कुछ हद तक कम कर देती हैं।
- एक व्यक्ति जो राज्य विधानसभा का सदस्य नहीं है, उसे छह महीने के लिये मुख्यमंत्री के रूप में नियुक्त किया जा सकता है, उस समयसीमा के भीतर उसे राज्य विधानसभा की सदस्यता ग्रहण करनी होगी, ऐसा न करने पर उसे मुख्यमंत्री पद का त्याग करना होता है।
CM का कार्यकाल:
- मुख्यमंत्री का कार्यकाल निश्चित नहीं होता है और वह राज्यपाल के प्रसादपर्यंत पद धारण करता है।
- राज्यपाल द्वारा उसे तब तक बर्खास्त नहीं किया जा सकता जब तक कि विधानसभा में बहुमत प्राप्त होता है।
- यदि वह विधानसभा में विश्वास मत खो देता है तो उसे त्यागपत्र दे देना चाहिये अन्यथा राज्यपाल उसे बर्खास्त कर सकता है।
शक्तियाँ एवं कार्य:
- मंत्रिपरिषद के संबंध में:
- राज्यपाल केवल उन्हीं व्यक्तियों को मंत्री के रूप में नियुक्त करता है जिनकी सिफारिश मुख्यमंत्री द्वारा की जाती है।
- वह मंत्रियों के बीच विभागों का आवंटन और फेरबदल करता है।
- वह पद से इस्तीफा देकर मंत्रिपरिषद का विघटन कर सकता है, क्योंकि मुख्यमंत्री मंत्रिपरिषद का प्रमुख होता है।
- राज्यपाल के संबंध में:
- संविधान के अनुच्छेद 167 के तहत राज्यपाल और राज्य मंत्रिपरिषद के बीच मुख्यमंत्री एक कड़ी के रूप में कार्य करता है।
- मुख्यमंत्री द्वारा महाधिवक्ता, राज्य लोक सेवा आयोग, राज्य चुनाव आयोग आदि के अध्यक्ष और सदस्यों जैसे महत्त्वपूर्ण अधिकारियों की नियुक्ति के संबंध में राज्यपाल को सलाह दी जाती है।
- राज्य विधानमंडल के संबंध में:
- सभी नीतियों की घोषणा उसके द्वारा सदन के पटल पर की जाती है।
- वह राज्यपाल को विधानसभा भंग करने की सिफारिश करता है।
- अन्य कार्य:
- वह राज्य योजना बोर्ड का अध्यक्ष होता है।
- वह संबंधित क्षेत्रीय परिषद के क्रमवार उपाध्यक्ष के रूप में कार्य करता है और एक समय में इसका कार्यकाल एक वर्ष का होता है।
- वह अंतर-राज्य परिषद और नीति आयोग का सदस्य होता है, इन दोनों परिषदों की अध्यक्षता प्रधानमंत्री द्वारा की जाती है।
- वह राज्य सरकार का मुख्य प्रवक्ता होता है।
- आपातकाल के दौरान राजनीतिक स्तर पर वह मुख्य प्रबंधक होता है।
- राज्य के एक नेता के रूप में वह लोगों के विभिन्न वर्गों से मिलता है और उनकी समस्याओं के बारे में ज्ञापन प्राप्त करता है।
- वह सेवाओं का राजनीतिक प्रमुख है।