बीमा लोकपाल नियमों में संशोधन, 2017
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्र सरकार ने बीमा लोकपाल नियम (Insurance Ombudsman Rules), 2017 में संशोधन किया है। इस संशोधन के माध्यम से बीमा लोकपाल के दायरे में बीमा दलालों को लाया गया है और पॉलिसीधारकों को ऑनलाइन शिकायत दर्ज करने की भी अनुमति दी गई है।
प्रमुख बिंदु
संशोधित बीमा लोकपाल नियम के विषय में:
- शिकायतों का दायरा बढ़ाया गया: संशोधित नियमों द्वारा बीमाकर्त्ताओं, एजेंटों, दलालों आदि को भी कवर किया जाएगा।
- प्रस्तावित आईसीटी सक्षम शिकायत निवारण:
- यह इलेक्ट्रॉनिक रूप से शिकायत करने में सक्षम बनाता है।
- पॉलिसीधारक द्वारा अपनी शिकायत की स्थिति को ऑनलाइन ट्रैक करने हेतु शिकायत प्रबंधन प्रणाली का उपबंध है।
- सुनवाई के लिये वीडियो-कॉन्फ्रेंसिंग की सुविधा।
- यह संशोधन तंत्र की समयबद्धता और लागत-प्रभावशीलता को मज़बूत करेगा।
लोकपाल को सशक्त बनाना:
- लोकपाल की चयन प्रक्रिया की स्वतंत्रता और अखंडता को सुरक्षित रखने के लिये कई संशोधन किये गए हैं, साथ ही लोकपाल के रूप में सेवा करने हेतु नियुक्त व्यक्तियों की स्वतंत्रता तथा निष्पक्षता को सुरक्षित करने के लिये सुरक्षा उपाय किये गए हैं।
- चयन समिति अब बीमा क्षेत्र में उपभोक्ता अधिकारों को बढ़ावा देने के ट्रैक रिकॉर्ड वाले एक व्यक्ति को शामिल करेगी।
बीमा लोकपाल
बीमा लोकपाल के विषय में:
- केंद्र सरकार द्वारा बीमा लोकपाल (Insurance Ombudsman) की स्थापना बीमा नियामक और विकास प्राधिकरण अधिनियम (Insurance Regulatory and Development Authority Act), 1999 तथा लोक शिकायत निवारण नियम (Redressal of Public Grievances Rules), 1998 के अंतर्गत की गई।
- इसकी शक्तियाँ, कार्य, कार्यालय की शर्तें आदि बीमा लोकपाल नियम, 2017 द्वारा निर्धारित किये गए थे।
अहर्ता:
- लोकपाल को बीमा उद्योग, सिविल सेवा, प्रशासनिक सेवा या न्यायिक सेवा का अनुभव रखने वाले व्यक्तियों में से चुना जाएगा।
चयन:
- लोकपाल का चयन एक चयन समिति द्वारा किया जाएगा, जिसमें निम्नलिखित शामिल हैं:
- बीमा नियामक और विकास प्राधिकरण (IRDA) का अध्यक्ष, जिसे चयन समिति का भी अध्यक्ष चुना जाएगा।
- जीवन बीमा परिषद (Life Insurance Council) और बीमा कंपनियों के कार्यकारी परिषद के सामान्य बीमा परिषद से एक-एक प्रतिनिधि।
- भारत सरकार का एक प्रतिनिधि जिसको संयुक्त सचिव पद से नीचे का नहीं होना चाहिये।
कार्यालय की अवधि:
- इसका कार्यकाल तीन साल और अधिकतम 70 वर्ष की आयु तक होगा, इसकी पुनर्नियुक्ति की जा सकती है।
कर्तव्य और कार्य:
- मध्यस्थता और परामर्श: लोकपाल उन मामलों में परामर्शदाता और मध्यस्थ के रूप में कार्य करेगा जहाँ विवादों में मध्यस्थता के लिये संबंधित पक्षों ने लिखित सहमति व्यक्त की हो।
- शिकायत निवारण: IRDA किसी भी समय बीमा से संबंधित किसी भी शिकायत या विवाद का उल्लेख बीमा लोकपाल से कर सकता है।
स्रोत: द हिंदू
CBI निदेशक की नियुक्ति
चर्चा में क्यों?
सर्वोच्च न्यायालय में एक रिट याचिका दायर की गई जिसमें केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) के एक नियमित निदेशक की नियुक्ति की मांग की गई है।
- CBI के निदेशक को वर्ष 1946 के दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना (DSPE) अधिनियम की धारा 4A के अनुसार नियुक्त किया जाता है।
प्रमुख बिंदु:
CBI का निदेशक:
- सीबीआई का नेतृत्व एक निदेशक द्वारा किया जाता है।
- DSPE के तहत पुलिस महानिरीक्षक के रूप में CBI का निदेशक संगठन के प्रशासन के लिये ज़िम्मेदार होता है।
- हालाँकि भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम (Prevention of Corruption Act) के तहत अपराधों के अन्वेषण के मामले में अधीक्षण की शक्ति केंद्रीय सतर्कता आयोग (Central Vigilance Commission) के पास है।
- CBI के निदेशक को CVC अधिनियम, 2003 के तहत दो वर्ष के कार्यकाल की सुरक्षा प्रदान की गई है।
नियुक्ति:
- लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम (2013) ने दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम (1946) में संशोधन किया और CBI के निदेशक की नियुक्ति के संबंध में निम्नलिखित बदलाव किये:
- केंद्र सरकार CBI के निदेशक को तीन सदस्यीय समिति की सिफारिश पर नियुक्त करेगी जिसमें प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष का नेता और भारत के मुख्य न्यायाधीश या उनके द्वारा नामित सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश होंगे।
- बाद में दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना (संशोधन) अधिनियम, 2014 ने CBI के निदेशक की नियुक्ति से संबंधित समिति की संरचना में बदलाव किया।
- इसमें कहा गया है कि अगर लोकसभा में विपक्ष का कोई मान्यता प्राप्त नेता नहीं है, तो लोकसभा में सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी का नेता उस समिति का सदस्य होगा।
केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI):
- CBI की स्थापना वर्ष 1963 में गृह मंत्रालय के एक प्रस्ताव द्वारा की गई थी
- अब CBI कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन मंत्रालय के कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (DoPT) के प्रशासनिक नियंत्रण में आता है।
- CBI की स्थापना भ्रष्टाचार निवारण पर संथानम समिति (1962–1964) द्वारा की गई थी।
- CBI एक सांविधिक निकाय नहीं है। यह दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम, 1946 से अपनी शक्तियों को प्राप्त करता है।
- CBI केंद्र सरकार की मुख्य जाँच एजेंसी है।
- यह केंद्रीय सतर्कता आयोग और लोकपाल को भी सहायता प्रदान करता है।
- यह भारत की नोडल पुलिस एजेंसी भी है जो इंटरपोल सदस्य देशों की ओर से जाँच का समन्वय करती है।
आगे की राह:
- एक नियमित नियुक्ति के बजाय सरकार ने हाल ही में एक अंतरिम/कार्यवाहक CBI निदेशक नियुक्त किया है। 1946 के DSPE अधिनियम की वैधानिक योजना में कार्यकारी आदेश के माध्यम से अंतरिम नियुक्ति की परिकल्पना नहीं की गई थी।
- प्रमुख जाँच एजेंसी को कार्यकारी या राजनीतिक शक्तियों के प्रभाव के बाहर स्वतंत्र रूप से कार्य करना चाहिये। यह सुनिश्चित करने के लिये एक तंत्र होना चाहिये कि CBI निदेशक के चयन की प्रक्रिया वर्तमान निदेशक की सेवानिवृत्ति से एक या दो महीने पहले पूरी हो जाए।
स्रोत- द हिंदू
ईपीएफओ: वर्ष 2020-21 के लिये ब्याज दर
चर्चा में क्यों?
हाल ही में कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (Employees Provident Fund Organisation- EPFO) ने सिफारिश की है कि अंशधारकों को वर्ष 2020-2021 के लिये भविष्य निधि योगदान (कर्मचारी भविष्य निधि योजना के तहत) हेतु 8.5% की दर से ब्याज दिया जाए।
कर्मचारी भविष्य निधि योजना
- EPFO कर्मचारी भविष्य निधि और विविध प्रावधान अधिनियम (Miscellaneous Provisions Act), 1952 को लागू करता है।
- EPFO अधिनियम, 1952 कारखानों और अन्य प्रतिष्ठानों में कार्य करने वाले कर्मचारियों को संस्थागत भविष्य निधि प्रदान करता है।
- कर्मचारी के मूल वेतन और महँगाई भत्ते का 12% कर्मचारी और नियोक्ता दोनों ही ईपीएफ में जमा करते हैं।
- आर्थिक सर्वेक्षण वर्ष 2016-17 में सुझाव दिया गया था कि कर्मचारियों को अपने वेतन का 12% EPFO में जमा करने या इसे वेतन के रूप में प्राप्त करने का विकल्प को चुनने की अनुमति दी जाए।
- EPFO योजना उन कर्मचारियों के लिये अनिवार्य है जिनका मूल वेतन प्रतिमाह 15,000 रुपए तक है।
प्रमुख बिंदु
ब्याज दर:
- ब्याज दर को पिछले वर्ष के समान ही रखा गया है।
- EPFO ने मार्च 2020 में वर्ष 2019-2020 के लिये भविष्य निधि जमा पर ब्याज दर घटाकर 8.5% कर दी थी।
- वर्ष 2018-19 में ब्याज दर 8.65% और वर्ष 2017-18 में 8.55% थी।
उच्च रिटर्न:
- EPFO ने वर्ष 2020 में कोविड-19 महामारी के कारण उत्पन्न आर्थिक मंदी के दौरान ब्याज दरों में गिरावट के बीच चालू वर्ष में 8.5% की उच्च ब्याज दर को बनाए रखा है।
उच्च रिटर्न का कारण:
- EPFO ने एक्सचेंज ट्रेडेड फंड (Exchange Traded Fund) के ज़रिये इक्विटी में निवेश को समाप्त करने का फैसला लिया, जिसे वर्ष 2015-2016 में शुरू किया गया था।
- इसने EPFO को अपने अंशधारकों को उच्च रिटर्न प्रदान करने में सक्षम बनाया है और भविष्य में भी EPFO को अच्छे अधिशेष के साथ अपने अंशधारकों को उच्च रिटर्न प्रदान करने की अनुमति दी है।
- अनुशंसित ब्याज दर ऋण निवेश (Debt Investment) के ब्याज से प्राप्त आय और इक्विटी निवेश (Equity Investment) से प्राप्त आय का परिणाम है।
प्रमुख शब्दावलियाँ
- ऋण निवेश:
- यह शब्द एक ऐसे निवेशक को संदर्भित करता है जो एक फर्म या परियोजना प्रायोजक को इस उम्मीद के साथ पैसा उधार देता है कि वह ब्याज के साथ मूलधन का भुगतान कर देगा।
- इक्विटी निवेश:
- यह वह पैसा है जिसे शेयर बाज़ार (Stock Market) में किसी कंपनी के शेयर खरीदकर निवेश किया जाता है।
कर्मचारी भविष्य निधि संगठन
- यह एक सरकारी संगठन है जो भारत में संगठित क्षेत्र में लगे कर्मचारियों के लिये भविष्य निधि और पेंशन खातों का प्रबंधन करता है।
- यह कर्मचारी भविष्य निधि और विविध प्रावधान अधिनियम, 1952 को लागू करता है।
- वर्ष 1952 का यह अधिनियम कारखानों और अन्य प्रतिष्ठानों में काम करने वाले कर्मचारियों के लिये भविष्य निधि संस्थान (Provident Fund Institution) के रूप में काम करता है।
- यह संगठन भारत सरकार के श्रम और रोज़गार मंत्रालय द्वारा प्रशासित है।
- यह सदस्यों और वित्तीय लेन-देन के मामले में विश्व में सबसे बड़ा संगठन है।
स्रोत: द हिंदू
‘ईज़ ऑफ लिविंग’ सूचकांक और नगर पालिका कार्य प्रदर्शन सूचकांक
चर्चा में क्यों:
हाल ही में आवासन और शहरी कार्य मंत्रालय ने ‘ईज़ ऑफ लिविंग’ सूचकांक, 2020 (Ease of Living Index-EoLI, 2020) और ‘नगर पालिका कार्य प्रदर्शन सूचकांक’, 2020 (Municipal Performance Index- MPI, 2020) की अंतिम रैंकिंग जारी की।
प्रमुख बिंदु:
‘नगर पालिका कार्य प्रदर्शन सूचकांक’, 2020:
- इसे ‘ईज़ ऑफ लिविंग’ सूचकांक, 2020 के साथ संयुक्त रूप से जारी किया गया है।
- यह सेवाओं, वित्त, नीति, प्रौद्योगिकी और शासन के विभिन्न क्षेत्रों में नगरपालिकाओं के स्थानीय सरकारी कार्यों की जाँच करता है।
- यह स्थानीय शासन प्रणाली में जटिलताओं को सरल बनाने, उनका मूल्यांकन करने, पारदर्शिता और जवाबदेही में लोकाचार को बढ़ावा देने का प्रयास भी करता है।
- कवरेज:
- MPI में 111 नगर पालिकाओं के क्षेत्रीय प्रदर्शन की जाँच की गई (दिल्ली में NDMC और तीनों नगर निगमों का अलग-अलग मूल्यांकन किया जा रहा है)।
- प्रयुक्त मापदंड:
- MPI में पाँच मापदंडों- सेवा (Service), वित्त (Finance), नीति (Policy), प्रौद्योगिकी (Technology) और शासन (Governance) के आधार पर नगर पालिकाओं के कार्य प्रदर्शन का आकलन किया जाएगा। इन पाँच क्षेत्रों को 20 विभिन्न क्षेत्रों तथा 100 संकेतकों में बाँटा गया है।
- श्रेणियाँ:
- MPI 2020 के तहत मूल्यांकन की रूपरेखा में नगर पालिकाओं को उनकी जनसंख्या के आधार पर वर्गीकृत किया गया है:
- मिलियन प्लस (एक मिलियन से अधिक आबादी वाली नगरपालिका)।
- एक मिलियन से कम जनसंख्या।
- MPI 2020 के तहत मूल्यांकन की रूपरेखा में नगर पालिकाओं को उनकी जनसंख्या के आधार पर वर्गीकृत किया गया है:
MPI 2020 प्रदर्शन:
- मिलियन प्लस श्रेणी:
- इसमें इंदौर को सर्वोच्च स्थान प्राप्त है, इसके बाद सूरत और भोपाल हैं।
- एक मिलियन से कम जनसंख्या श्रेणी:
- NDMC शीर्ष स्थान पर रही, इसके बाद तिरुपति और गांधीनगर का स्थान रहा।
‘ईज़ ऑफ लिविंग’ सूचकांक:
- यह एक मूल्यांकन उपकरण है जो जीवन की गुणवत्ता और शहरी विकास की विभिन्न पहलों के प्रभावों का मूल्यांकन करता है।
- यह इस सूचकांक में शामिल शहरों के जीवन स्तर, आर्थिक क्षमता, स्थिरता और लचीलेपन के आधार पर व्यापक समझ प्रदान करता है।
- लक्ष्य:
- इसका उद्देश्य शहरों को वैश्विक और राष्ट्रीय मानदंडों के अनुसार व्यवस्थित रूप से खुद को आँकने और उन्हें शहरी नियोजन एवं प्रबंधन हेतु परिणाम आधारित ’दृष्टिकोण की ओर स्थानांतरण के लिये प्रोत्साहित करना है।
- मापदंड:
- नागरिक अवधारणा:
- EoLI, 2020 में ‘सिटीज़न परसेप्शन सर्वे’ (CPS) को फ्रेमवर्क में शामिल करके मज़बूत बनाया गया है, इस सर्वेक्षण का भारांक 30 प्रतिशत रखा जाता है।
- सिटीज़न परसेप्शन सर्वे:
- सिटीज़न परसेप्शन सर्वे (सीपीएस) को सेवा की आपूर्ति के संदर्भ में अपने शहर के नागरिकों का अनुभव जानने तथा उनकी सहायता करने के लिये शुरू किया गया था।
- भुवनेश्वर का CPS स्कोर सबसे अधिक था, उसके बाद सिलवासा, दावणगेरे, काकीनाडा, बिलासपुर और भागलपुर का स्थान रहा।
- नागरिक अवधारणा:
- मौजूदा जीवन गुणवत्ता की स्थिति:
- यह उन परिणामों की भी जाँच करता है जो मौजूदा जीवन गुणवत्ता की स्थिति को दर्शाते हैं।
- शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास और आश्रय, भवन, ऊर्जा की खपत तथा शहर के लचीलेपन जैसी कुल 13 श्रेणियों का सूचकांक के कुल परिणाम में 70% हिस्सा है।
EoLI, 2020 में प्रदर्शन:
- मिलियन प्लस श्रेणी:
- शीर्ष प्रदर्शक:
- बंगलूरु के बाद पुणे और अहमदाबाद का स्थान है।
- सबसे खराब प्रदर्शक:
- अमृतसर, गुवाहाटी, बरेली, धनबाद और श्रीनगर।
- शीर्ष प्रदर्शक:
- एक मिलियन से कम जनसंख्या श्रेणी:
- शीर्ष प्रदर्शक:
- शिमला और उसके बाद भुवनेश्वर तथा सिलवासा का स्थान है।
- सबसे खराब प्रदर्शक:
- अलीगढ़, रामपुर, नामची, सतना और मुजफ्फरपुर।
- शीर्ष प्रदर्शक:
महत्त्व:
- समग्र मूल्यांकन प्रदान करना:
- ये सूचकांक शहरों का समग्र मूल्यांकन प्रदान करते हैं, जो कि जीवन की बेहतर गुणवत्ता विकसित करने, बुनियादी ढाँचे का निर्माण और शहरीकरण की चुनौतियों का समाधान करने के प्रयासों के आधार पर तैयार किये जाते हैं।
- कमियों से उबरने में सहायता:
- इन सूचकांकों से प्राप्त जानकारी के माध्यम से सरकार को अंतरालों की पहचान करने, संभावित अवसरों को पहचानने, नागरिकों के जीवन में सुधार लाने और व्यापक विकास परिणामों प्राप्त कर स्थानीय शासन में दक्षता बढ़ाने में मदद मिल सकती है।
- सतत् विकास लक्ष्यों से संबंधित:
- ये संकेतक सतत् विकास लक्ष्यों से जुड़े हुए हैं, विशेष रूप से SDG-11 (सतत् शहर और समुदाय) से।
स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस
नए आईटी नियमों पर आपत्ति
चर्चा में क्यों?
नए आईटी नियम 2021 में सोशल मीडिया मध्यस्थों के लिये निर्धारित नवीनतम मानदंडों पर विशेषज्ञों और वकीलों ने अपनी आपत्ति व्यक्त की है।
- गौरतलब है कि वर्ष 2015 में सर्वोच्च न्यायालय ने सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 66A पर रोक लगा दी थी, जिसे न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद 19 (मुक्त भाषण) और अनुच्छेद 21 (जीवन का अधिकार) दोनों के विपरीत पाया था।
प्रमुख बिंदु:
सभी पर संशय:
- 'महत्त्वपूर्ण सोशल मीडिया मध्यस्थों से स्वचालित रूप से कुछ विशेष शब्दों की निगरानी या ट्रैक (Track) करने के लिये कहना "एक्टिव हंटिंग" (Active Hunting) के समान है और यह "लोगों को संदिग्ध बना देगा।"
- उदाहरण: अंतर-धार्मिक विवाह (Interfaith Marriage) या लव जिहाद (Love Jihad) जैसे शब्दों को ट्रैक करना एक प्रकार से पूरी आबादी का अपराधीकरण करने जैसा है क्योंकि अधिकांश लोग अपनी सामान्य चर्चाओं में इन शब्दों का उपयोग कर रहे होंगे। इस तरह एक पूरी आबादी को संदिग्ध बनाया जा रहा है।
गोपनीयता के अधिकार के खिलाफ:
- वर्ष 2021 के नए आईटी नियमों के अनुसार, मुख्य रूप से संदेश भेजने संबंधी सेवाएँ प्रदान करने वाले सोशल मीडिया मध्यस्थों को सूचना के पहले प्रवर्तक की पहचान करने की प्रणाली को संभव बनाना चाहिये।
- यह प्रावधान समग्र सुरक्षा को कमज़ोर करने के साथ गोपनीयता को क्षति पहुँचाएगा और आईटी मंत्रालय द्वारा जारी डेटा संरक्षण विधेयक 2019 के मसौदे में समर्थित डेटा न्यूनीकरण के सिद्धांतों के विपरीत होगा।
डेटा न्यूनीकरण
- डेटा न्यूनीकरण का सिद्धांत बताता है कि एकत्र किये गए और संसाधित डेटा को एक निर्धारित समय के बाद रखा या उपयोग नहीं किया जाना चाहिये जब तक कि यह उन उद्देश्यों/कारणों जिन्हें डेटा गोपनीयता का समर्थन के लिये पहले से स्पष्ट कर दिया गया था, के लिये आवश्यक न हो।
- किसी संदेश के पहले प्रवर्तक/लेखक की पहचान के लिये एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन को तोड़ने की आवश्यकता होगी, जिसके लिये उस मौलिक तकनीक से समझौता करना होगा, जिस पर अधिकांश एप आधारित हैं।
- इसके अतिरिक्त डेटा की अत्यधिक मात्रा के कारण एन्क्रिप्शन करना अब और अधिक महत्वपूर्ण हो गया है क्योंकि वर्तमान में बड़े पैमाने पर अधिक-से-अधिक व्यक्तिगत डेटा को एकत्र और विश्लेषित किया जा रहा है जो पहले कभी संभव नहीं था।
- यह प्रावधान समग्र सुरक्षा को कमज़ोर करने के साथ गोपनीयता को क्षति पहुँचाएगा और आईटी मंत्रालय द्वारा जारी डेटा संरक्षण विधेयक 2019 के मसौदे में समर्थित डेटा न्यूनीकरण के सिद्धांतों के विपरीत होगा।
- यह "मुक्त और सुलभ इंटरनेट के सिद्धांतों तथा विशेष रूप से एक मज़बूत डेटा संरक्षण कानून की अनुपस्थिति के कारण संविधान में प्रदत्त गोपनीयता के मौलिक अधिकार को कमज़ोर करेगा।"
- उदाहरण:
- इसके एक प्रावधान के तहत महत्त्वपूर्ण मध्यस्थों को उपयोगकर्त्ताओं द्वारा स्वेच्छा से अपनी पहचान सत्यापित करने का विकल्प प्रदान करने की आवश्यकता होगी।
- इसके तहत संभवत: उपयोगकर्त्ताओं के लिये कंपनियों को फोन नंबर साझा करना या सरकार द्वारा जारी आईडी पर तस्वीरें भेजना अपरिहार्य हो जाएगा।
- यह प्रावधान सत्यापन के लिये प्रेषित संवेदनशील व्यक्तिगत डेटा के संग्रह को प्रोत्साहित करेगा, जो उपयोगकर्त्ताओं की प्रोफाइलिंग और उन्हें लक्षित करने के लिये भी उपयोग किया जा सकता है
- गोपनीयता का अधिकार:
- सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2017 में के.एस. पुत्तास्वामी बनाम भारतीय संघ ऐतिहासिक निर्णय में गोपनीयता और उसके महत्त्व का वर्णन किया। सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार, निजता का अधिकार एक मौलिक और अविच्छेद्य अधिकार है तथा इसके तहत व्यक्ति से जुड़ी सभी सूचनाओं के साथ उसके द्वारा लिये गए निर्णय शामिल हैं।
- निजता के अधिकार को अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के आंतरिक भाग के रूप में तथा संविधान के भाग-III द्वारा गारंटीकृत स्वतंत्रता के हिस्से के रूप में संरक्षित किया गया है।
- उदाहरण:
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के खिलाफ:
- स्वचालित सेंसरशिप और निगरानी उपयोगकर्त्ताओं की रचनात्मकता को दबाने के साथ ही उनकी वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती है।
- भारतीय संविधान का अनुच्छेद 19 (1) (a) वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की गारंटी देता है।
अत्यधिक सेंसरशिप:
- नए नियम सामग्री की सक्रिय निगरानी के लिये मध्यस्थों पर कठोर और व्यापक दायित्व लागू करने का प्रावधान करते हैं।
- कानूनी जवाबदेही या कार्रवाई के भय से कंटेंट की अति-सेंसरशिप को बढ़ावा मिल सकता है।
जवाबदेही और पारदर्शिता का अभाव:
- नए नियमों में सोशल मीडिया कंपनियों को "बाल यौन शोषण जैसी आपत्तिजनक सामग्री को फिल्टर करने के लिये "प्रौद्योगिकी आधारित उपायों (जिसमें स्वचालित उपकरण जैसे-कृत्रिम बुद्धिमत्ता या एआई शामिल हैं) को तैनात करने का निर्देश दिया गया है।
- हालाँकि पूर्व के उदाहरणों से पता चलता है कि ऐसे उपकरणों में न सिर्फ सटीकता की गंभीर समस्याएँ होती हैं, बल्कि पूर्व-निर्धारित उद्देश्यों के विपरीत ये प्रौद्योगिकी के दुरुपयोग को बढ़ावा देते हैं।
- इससे पहले वर्ष 2020 में एक एआई-चालित टूल 'जेंडरीफाई' (Genderify) जिसे उपभोक्ताओं के नाम या ईमेल पते का विश्लेषण करके एक व्यक्ति के लिंग की पहचान करने के लिये डिज़ाइन किया गया था, को लॉन्च किये जाने के एक हफ्ते बाद ही पक्षपाती होने के आरोपों के कारण बंद कर दिया गया था।
- एआई के विकास में कोडिंग पक्षपात अक्सर भेदभाव, अशुद्धि और जवाबदेही तथा पारदर्शिता की कमी का कारण बनता है।
ऑनलाइन समाचार मीडिया पर नियंत्रण:
- ये नियम निगरानी में वृद्धि के साथ-साथ अनुपालन की लागत को बढ़ाने हेतु रास्ता खोलते हैं और स्वतंत्र तथा निर्बाध समाचार रिपोर्टिंग पर नियंत्रण को बढ़ावा दे सकते हैं।
स्रोत : इंडियन एक्सप्रेस
प्रौद्योगिकी और नवाचार रिपोर्ट, 2021: UNCTAD
चर्चा में क्यों?
प्रौद्योगिकी और नवाचार रिपोर्ट, 2021 के हालिया ‘कंट्री रेडीनेस इंडेक्स’ के अनुसार, भारत प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद (GDP) की तुलना में सीमांत प्रौद्योगिकियों में सबसे बड़े 'ओवर परफॉर्मर' के रूप में उभरा।
- इस रिपोर्ट को ‘व्यापार और विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन’ (UNCTAD) द्वारा जारी किया गया।
प्रमुख बिंदु:
रिपोर्ट के संबंध में:
- रिपोर्ट को व्यापार और विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (UNCTAD) द्वारा जारी किया गया।
- यह उन राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय नीतियों, साधनों और संस्थागत सुधारों को भी संबोधित करता है जिनकी आवश्यकता सभी के लिये एक समान दुनिया बनाने के लिये होती है, जो किसी को भी पीछे नहीं छोड़ते।
महत्त्वपूर्ण बिंदु:
- सीमांत तकनीकी बाज़ार: रिपोर्ट बताती है कि सीमांत प्रौद्योगिकियाँ पहले से ही 350 बिलियन अमेरिकी डॉलर के बाज़ार का प्रतिनिधित्त्व कर रही हैं, जो कि वर्ष 2025 तक 3.2 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर तक बढ़ सकता है।
- अंतर्राष्ट्रीय सहयोग: यह विकासशील देशों में नवाचार क्षमता के निर्माण के लिये मज़बूत अंतर्राष्ट्रीय सहयोग का आह्वान के साथ-साथ प्रौद्योगिकी हस्तांतरण की सुविधा देता है।
- समावेशन: इस रिपोर्ट में परिकल्पना की गई है कि यह डिजिटल क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ाती है, तकनीकी मूल्यांकन करती है और सतत् विकास पर सीमांत प्रौद्योगिकियों के प्रभाव पर एक समावेशी बहस को बढ़ावा देती है।
- मनुष्य और मशीनों के कार्यों की तुलना: तकनीकी परिवर्तन के माध्यम से नौकरियों, मज़दूरी और निम्न तरीकों से असमानताओं में वृद्धि होती है:
- ऑटोमेशन क्षेत्र की नौकरियाँ।
- रोज़गार विस्थापन के साथ रोज़गार का ध्रुवीकरण भी हो सकता है, जो मध्य स्तरीय वेतन वाली नौकरियों में संकुचन के साथ संयुक्त रूप से उच्च और निम्न स्तरीय वेतन वाली नौकरियों में विस्तार को संदर्भित करता है।
- सीमांत प्रौद्योगिकियों का उपयोग डिजिटल प्लेटफॉर्म के माध्यम से उन सेवाओं को प्रदान करने के लिये किया जा रहा है, जिन्होंने ’गिग अर्थव्यवस्था’ के निर्माण को प्रेरित किया है।
भारत संबंधी निष्कर्ष:
- भारत की वास्तविक सूचकांक रैंकिंग 43 है, जबकि अनुमानित प्रति व्यक्ति आय पर आधारित रैंक 108 है।
- इसका मतलब यह है कि भारत ने 65 देशों से अच्छा प्रदर्शन किया। फिलीपींस के बाद भारत का स्थान था जिसने 57 देशों से अच्छा प्रदर्शन किया।
- भारत ने अनुसंधान और विकास में अच्छा प्रदर्शन किया।
- यह तुलनात्मक रूप से कम लागत पर उपलब्ध योग्य और उच्च कुशल मानव संसाधनों की प्रचुर आपूर्ति के रूप में परिलक्षित होता है।
- हालाँकि संयुक्त राज्य अमेरिका, स्विट्ज़रलैंड और यूनाइटेड किंगडम जैसे देश सीमांत प्रौद्योगिकियों के लिये "बेस्ट प्रिपेयर्ड" श्रेणी में थे।
विकसित देशों के सम्मुख चुनौतियाँ:
- जननांकिकीय परिवर्तन: निम्न आय और निम्न-मध्यम आय वाले देशों में विस्तार और युवा आबादी है जो श्रम की आपूर्ति में वृद्धि करेगी और ऑटोमेशन क्षेत्र के प्रभाव को कम करते हुए मज़दूरी को कम करेगी।
- कम तकनीकी और नवाचार क्षमताएँ: कम आय वाले देशों में कम कुशल लोग होते हैं और कृषि पर काफी हद तक निर्भर होते हैं जो नई तकनीकों का लाभ उठाने में अपेक्षाकृत धीमे होते हैं।
- कम विविधीकरण: विकासशील देश आमतौर पर औद्योगिक देशों का अनुकरण कर उनकी अर्थव्यवस्थाओं में विविधता लाने और स्थानीय उपयोग के लिये नई तकनीकों को गृहण करते हैं, लेकिन यह प्रक्रिया सबसे गरीब देशों में सबसे धीमी है।
- कमज़ोर वित्तपोषण तंत्र: अधिकांश विकासशील देशों ने अपने अनुसंधान एवं विकास व्यय में वृद्धि की है, लेकिन ये अभी भी अपेक्षाकृत कम है।
- बौद्धिक संपदा अधिकार और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण: सख्त बौद्धिक संपदा संरक्षण सीमांत प्रौद्योगिकियों के उपयोग को प्रतिबंधित करेगा जो कृषि, स्वास्थ्य और ऊर्जा जैसे SDG से संबंधित क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण हो सकते हैं।
सुझाव:
- रिपोर्ट का तर्क है कि सतत् विकास के लिये सीमांत प्रौद्योगिकियाँ आवश्यक हैं, वे प्रारंभिक असमानताओं को भी कम कर सकती हैं।
- यह जोखिम को कम करने के लिये नीतियों पर निर्भर है, साथ ही सीमांत प्रौद्योगिकियाँ समानता बढ़ाने में योगदान करती हैं।
- एक मज़बूत औद्योगिक आधार का निर्माण और सीमावर्ती प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा देने के लिये एक संतुलित दृष्टिकोण इक्कीसवीं सदी में सफलता प्राप्त करने हेतु ज़रूरी है।
सीमांत प्रौद्योगिकियाँ:
- सीमांत प्रौद्योगिकियों को संभावित विघटनकारी प्रौद्योगिकियों के रूप में परिभाषित किया जाता है जो बड़े पैमाने पर चुनौतियों या अवसरों को संबोधित कर सकती हैं।
- इनमें कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI), इंटरनेट ऑफ थिंग्स, बिग डेटा, ब्लॉकचेन, 5जी, 3-डी प्रिंटिंग, रोबोटिक्स, ड्रोन, जीन एडिटिंग, नैनो टेक्नोलॉजी और सोलर फोटोवोल्टिक शामिल हैं।
व्यापार और विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (UNCTAD)
- वर्ष 1964 में स्थापित व्यापार और विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (United Nations Conference on Trade and Development- UNCTAD) विकासशील देशों के विकास के अनुकूल उनके एकीकरण को विश्व अर्थव्यवस्था में बढ़ावा देता है।
- यह एक स्थायी अंतर-सरकारी निकाय है।
- इसका मुख्यालय जिनेवा, स्विट्ज़रलैंड में है।
- इसके द्वारा प्रकाशित कुछ रिपोर्ट हैं:
- व्यापार और विकास रिपोर्ट (Trade and Development Report)
- विश्व निवेश रिपोर्ट (World Investment Report)
- न्यूनतम विकसित देश रिपोर्ट (The Least Developed Countries Report)
- सूचना एवं अर्थव्यवस्था रिपोर्ट (Information and Economy Report)
- प्रौद्योगिकी एवं नवाचार रिपोर्ट (Technology and Innovation Report)
- वस्तु तथा विकास रिपोर्ट (Commodities and Development Report)
स्रोत- डाउन टू अर्थ
भारत-बांग्लादेश द्विपक्षीय वार्ता
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत के विदेश मंत्री ने द्विपक्षीय वार्ता के लिये बांग्लादेश का दौरा किया।
- यह बैठक मार्च 2021 में निर्धारित भारतीय प्रधानमंत्री की बांग्लादेश यात्रा से पहले आयोजित की जाएगी।
- इससे पूर्व वर्ष 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के 50 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष में बांग्लादेश के सशस्त्र बलों की 122 सदस्यीय टुकड़ी ने 72वें गणतंत्र दिवस परेड में हिस्सा लिया था।
प्रमुख बिंदु
बांग्लादेश का पक्ष
- समस्याओं का समाधान
- बांग्लादेश के मुताबिक, पड़ोसी देशों की समस्याओं को चर्चा और वार्ता के माध्यम से हल किया जाना चाहिये।
- एक-दूसरे के लाभ को प्राथमिकता
- दोनों देशों को अपनी प्रतिबद्धताओं को पूरा करने के लिये संभावित तरीकों पर ध्यान देना होगा और एक-दूसरे की प्राथमिकताओं को परस्पर लाभकारी तरीके से समायोजित करने पर ज़ोर देना होगा।
- महामारी के दौरान सहयोग
- इस दौरान बांग्लादेश ने मौजूदा कोरोना वायरस महामारी के विरुद्ध टीकाकरण कार्यक्रम को लागू करने में दोनों देशों की सहयोगात्मक पहल के महत्त्व को भी रेखांकित किया।
- बांग्लादेश ने भारत के सीरम इंस्टीट्यूट से वैक्सीन खरीदी है।
- भारत में बनी वैक्सीन की 9 मिलियन खुराक के साथ बांग्लादेश इसका सबसे बड़ा प्राप्तकर्त्ता है।
- बहुआयामी संबंध
- दोनों देश सुरक्षा, व्यापार, परिवहन और कनेक्टिविटी, संस्कृति, ऊर्जा, साझा संसाधनों और रक्षा समेत सभी आयामों में संबंधों का विस्तार करने के लिये प्रतिबद्ध हैं।
भारत का पक्ष
- भारत ने बांग्लादेश को ‘विकासशील’ देशों की श्रेणी से संबंधित सभी मापदंड पूरे करने पर बधाई दी।
- ज्ञात हो कि बांग्लादेश वर्ष 1975 से ही संयुक्त राष्ट्र (UN) के‘सबसे कम विकसित’ देशों (LDC) की श्रेणी में शामिल था।
- किंतु वर्ष 2018 में बांग्लादेश ने ‘विकासशील’ देशों की श्रेणी से संबंधित सभी आवश्यक मापदंडों को पूरा कर लिया है।
- इसलिये संयुक्त राष्ट्र ने बांग्लादेश को ‘सबसे कम विकसित’ देश की श्रेणी से ‘विकासशील’ देश की श्रेणी में शामिल करने की सिफारिश की है।
- एक बार अंतिम सिफारिश प्राप्त होने पर बांग्लादेश वर्ष 2026 में औपचारिक रूप से विकासशील राष्ट्र की श्रेणी में शामिल हो जाएगा।
- रणनीतिक साझेदार:
- भारत-बांग्लादेश रणनीतिक साझेदारी, दोनों देशों के बीच मैत्रीपूर्ण संबंध शांतिपूर्ण, समृद्ध और प्रगतिशील दक्षिण एशिया के सपने को साकार करने के लिये काफी महत्त्वपूर्ण हैं।
- महामारी के दौरान निरंतर वार्ता
- कोरोना वायरस महामारी के बावजूद दोनों देशों के बीच बातचीत और परामर्श जारी रहा:
- भारत और बांग्लादेश ने दिसंबर 2020 में एक वर्चुअल समिट का आयोजन किया।
- सितंबर 2020 में दोनों देशों के विदेश मंत्रियों के बीच एक संयुक्त सलाहकार आयोग का गठन किया गया।
- कोरोना वायरस महामारी के बावजूद दोनों देशों के बीच बातचीत और परामर्श जारी रहा:
- तीस्ता नदी विवाद
- तीस्ता नदी विवाद पर चर्चा के लिये भारत एवं बांग्लादेश के जल संसाधन सचिवों के बीच बैठक का आयोजन किया जाएगा।
- कनेक्टिविटी का विकास
- भारत ने दक्षिण एशिया क्षेत्र के भू-आर्थिक परिदृश्य को बदलने के लिये बांग्लादेश के साथ आगामी 20 वर्षों के लिये कनेक्टिविटी के विकास पर ध्यान केंद्रित करने की इच्छा ज़ाहिर की है।
- भारत की विदेश नीति के केंद्र में बांग्लादेश
- बांग्लादेश सदैव ही भारत की ‘नेबरहुड फर्स्ट’ नीति के केंद्र में रहा है, साथ ही वह भारत की ‘एक्ट ईस्ट’ नीति के लिये भी प्रासंगिक है।
- बांग्लादेश न केवल दक्षिण एशिया में बल्कि व्यापक इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में भारत का एक महत्त्वपूर्ण पड़ोसी और भागीदार देश है।
- ज़मीनी स्थिति में सुधार
- दोनों देशों के बीच ज़मीनी स्तर पर महत्त्वपूर्ण प्रगति हासिल की गई है।
- अगरतला में छत्रोग्राम बंदरगाह के माध्यम से कंटेनर कार्गो के ट्रायल रन का संचालन करना।
- त्रिपुरा को राष्ट्रीय जलमार्ग से जोड़ने वाले अंतर्देशीय जलमार्गों में दो नए प्रोटोकॉल मार्गों को जोड़ना।
- बांग्लादेश को 10 ब्रॉड गेज इंजन प्रदान करना।
- ऊर्जा क्षेत्र में एक संयुक्त उद्यम का विकास।
- दोनों देशों के बीच ज़मीनी स्तर पर महत्त्वपूर्ण प्रगति हासिल की गई है।
आगे की राह
- नागरिकता संशोधन अधिनियम और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर के कारण भारत और बांग्लादेश के संबंधों में बीते वर्ष कुछ तनाव देखने को मिला था, हालाँकि लगभग एक वर्ष बाद अब दोनों देशों के संबंधों में सुधार होता दिखाई दे रहा है, जो कि प्रायः ‘क्विट’ कूटनीति का एक परिणाम प्रतीत होता है। भारत को ऐसी साझेदारी के विकास पर ज़ोर देना चाहिये जो आर्थिक विकास और विकासात्मक मापदंडों में सुधार करने में सहायक हो।
- जियो-इकोनॉमिक में हो रहे परिवर्तनों को देखते हुए बांग्लादेश के साथ संबंधों को मज़बूत करना भारत के लिये काफी महत्त्वपूर्ण है। बांग्लादेश अपनी लगातार बढ़ती अर्थव्यवस्था और आर्थिक सफलता के साथ दक्षिण एशिया क्षेत्र में एक महत्त्वपूर्ण भागीदार के रूप में उभर सकता है।
- दोनों देश 54 ट्रांस-बाउंड्री नदियों को साझा करते हैं और इसलिये जल प्रबंधन काफी महत्त्वपूर्ण विषय है।
- भारत-बांग्लादेश संबंध महत्त्वपूर्ण स्तर पर पहुँच गए हैं, हालाँकि अभी भी सहयोग, समन्वय और समेकन के आधार पर दोनों देशों के संबंधों को अगले स्तर तक ले जाने की गुंजाइश शेष है।
- तीस्ता नदी जैसे विशिष्ट मुद्दों को हल करना और रोहिंग्या मुद्दे पर बांग्लादेश के आह्वान पर प्रतिक्रिया देना काफी महत्त्वपूर्ण है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
अस्वीकृत चेक से संबंधित मामलों के लिये फास्ट-ट्रैक कोर्ट
चर्चा में क्यों?
सर्वोच्च न्यायालय की एक संवैधानिक पीठ ने सीमित समय के लिये अस्वीकृत चेक से संबंधित मामलों की सुनवाई के लिये फास्ट-ट्रैक कोर्ट स्थापित करने का प्रस्ताव दिया है।
- इससे पहले सर्वोच्च न्यायालय ने चेक बाउंस/अस्वीकृत चेक से संबंधित मामलों की पेंडेंसी की समस्या को हल करने के लिये एक समिति के गठन का सुझाव दिया।
प्रमुख बिंदु
- सर्वोच्च न्यायालय का प्रस्ताव: न्यायालय ने परक्राम्य लिखत अधिनियम, 2018 की धारा 138 के तहत फास्ट-ट्रैक कोर्ट स्थापित करने का सुझाव दिया है।
- अतिरिक्त न्यायालय स्थापित करने की शक्ति: भारतीय संविधान के अनुच्छेद 247 के तहत सरकार के पास संसद द्वारा अधिनियमित कानूनों के बेहतर प्रशासन के लिये ‘अतिरिक्त न्यायालय’ स्थापित करने की शक्ति है, जिसमें चेक से संबंधित परक्राम्य लिखत अधिनियम भी शामिल है।
- अनुच्छेद 247: यह अनुच्छेद संसद को संघ सूची में शामिल किसी भी विषय के संबंध में उसके द्वारा बनाए गए कानूनों या किसी मौजूदा कानूनों के बेहतर प्रशासन के लिये कुछ ‘अतिरिक्त न्यायालयों’ को स्थापित करने की शक्ति देता है।
- अतिरिक्त न्यायालय स्थापित करने की शक्ति: भारतीय संविधान के अनुच्छेद 247 के तहत सरकार के पास संसद द्वारा अधिनियमित कानूनों के बेहतर प्रशासन के लिये ‘अतिरिक्त न्यायालय’ स्थापित करने की शक्ति है, जिसमें चेक से संबंधित परक्राम्य लिखत अधिनियम भी शामिल है।
- अस्वीकृत चेक मामलों की पेंडेंसी: चेक बाउंस/अस्वीकृत चेक के मामलों की पेंडेंसी ट्रायल कोर्ट में 30 प्रतिशत से 40 प्रतिशत बैकलॉग के लिये उत्तरदायी है, साथ ही उच्च न्यायालयों में ऐसे मामलों की बड़ी संख्या लंबित है।
परक्राम्य लिखत
- ये एक प्रकार के हस्ताक्षरित दस्तावेज़ होते हैं, जिनके तहत किसी निर्दिष्ट व्यक्ति या हस्ताक्षर करने वाले व्यक्ति को एक विशिष्ट राशि के भुगतान का वादा किया जाता है।
- यह हस्तांतरण योग्य होते हैं यानी ये धारक को नकदी के रूप में धन लेने अथवा लेनदेन के लिये उपयुक्त तरीके से या उनकी पसंद के अनुसार इसका उपयोग करने की अनुमति देते हैं।
- प्रतिज्ञा पत्र (Promissory Note), बिल और चेक आदि को परक्राम्य लिखत के रूप में वर्गीकृत किया जाता है।
अस्वीकृत चेक
- दूसरे शब्दों में, चेक बाउंस/अस्वीकृत चेक एक ऐसी स्थिति है, जिसमें बैंक भुगतानकर्त्ता को चेक की राशि का भुगतान करने से इनकार कर देता है।
- चेक बाउंस होना एक दंडनीय अपराध है और ऐसी स्थिति में दो वर्ष तक की कैद या मौद्रिक जुर्माना अथवा दोनों सज़ा दी जा सकती है।
- यदि बैंक भुगतानकर्त्ता को राशि का भुगतान कर देता है तो उस चेक को स्वीकृत चेक कहा जाता है। वहीं यदि बैंक आदाता को राशि का भुगतान करने से इनकार करता है, तो चेक को अस्वीकृत माना जाता है।
- चेक: यह एक परक्राम्य लिखत है। चेक भुगतानकर्त्ता के अलावा किसी भी व्यक्ति द्वारा परक्राम्य नहीं होते हैं। चेक को आदाता के बैंक खाते में जमा करना आवश्यक होता है।
- चेक के लेखक को आहर्ता (Drawer), जिसके पक्ष में चेक जारी किया जाता है उसे आदाता (Payee) तथा भुगतान के लिये जिस बैंक को निर्देशित किया जाता है उसे आहर्ती (drawee) कहा जाता है।
न्यायालय में मामलों की पेंडेंसी
- आर्थिक सर्वेक्षण 2018-19 के अनुसार, न्यायिक प्रणाली में लगभग 3.5 करोड़ मामले लंबित हैं, खासकर ज़िला और अधीनस्थ अदालतों में।
- पेंडिंग मामलों में लगभग 87.54 प्रतिशत मामले ज़िला और अधीनस्थ न्यायालयों में हैं।
- 64 प्रतिशत से अधिक मामले 1 वर्ष से अधिक समय से लंबित हैं।
- वर्ष 2018 में भारतीय ज़िला एवं अधीनस्थ न्यायालयों में दीवानी और फौजदारी मामलों के लिये औसत निपटान समय यूरोपीय परिषद के सदस्यों की तुलना में क्रमशः 4.4 और 6 गुना अधिक था।
- निचली अदालतों में महज़ 2,279, उच्च न्यायालयों में 93 और सर्वोच्च न्यायालय में केवल एक अतिरिक्त पद के साथ, शत-प्रतिशत निपटान दर प्राप्त की जा सकती है।
- सुधार
- कार्य दिवसों की संख्या में वृद्धि।
- कानूनी प्रणाली के प्रशासनिक पहलुओं पर ध्यान केंद्रित करने के लिये ‘भारतीय न्यायालय और अधिकरण सेवा’ की स्थापना की जा सकती है।
- न्यायालयों की दक्षता में सुधार के लिये प्रौद्योगिकी का प्रयोग किया जा सकता है, उदाहरण के लिये ‘ई-कोर्ट मिशन मोड प्रोजेक्ट’ और इसके अलावा कानून एवं न्याय मंत्रालय द्वारा ‘राष्ट्रीय न्यायिक डेटा ग्रिड’ को चरणों में लागू किया जा रहा है।
- बेहतर न्यायालय प्रबंधन: 13वें वित्त आयोग द्वारा सुझाए गए पेशेवर न्यायालय प्रबंधकों की नियुक्ति की जा सकती है। न्यायालय प्रबंधक या समकक्ष पेशेवर वर्तमान परिदृश्य में अत्यंत उपयोगी हो सकते हैं और न्याय वितरण में तभी सुधार आ सकता है जब न्यायालय अपने प्रशासन में पेशेवरों की सहायता स्वीकार करें और उन्हें अपनाएँ।
- अधिक से अधिक महत्वपूर्ण मामलों को जल्द निपटाने के लिये ट्रिब्यूनल, फास्ट ट्रैक कोर्ट और स्पेशल कोर्ट की स्थापना की जा सकती है।
- वैकल्पिक विवाद समाधान (ADR), लोक अदालत, ग्राम न्यायालय जैसे तंत्रों का प्रभावी ढंग से उपयोग किया जाना चाहिये।
आगे की राह
- न्याय वितरण प्रणाली में देरी के मूल कारणों की पहचान करने और न्याय वितरण प्रणाली में सुधार के लिये सार्थक समाधान प्रदान करने हेतु व्यापक विचार-विमर्श, बहस और परामर्श के माध्यम से व्यापक आत्मनिरीक्षण किये जाने की आवश्यकता है।
- न्यायिक सुधार को यदि गंभीरता से लिया जाए, तो शीघ्र और प्रभावी न्याय प्रदान करने में मदद साबित हो सकता है और वैश्विक न्यायिक प्रक्रियाओं से संबंधित विश्व बैंक और अन्य संस्थानों एवं संगठनों की रिपोर्टों में भारत की स्थिति में सुधार कर सकता है।
स्रोत: द हिंदू
फूड वेस्ट इंडेक्स रिपोर्ट 2021: यूएनईपी
चर्चा में क्यों?
हाल ही में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (United Nations Environment Programme- UNEP) ने फूड वेस्ट इंडेक्स रिपोर्ट (Food Waste Index Report), 2021 जारी की।
- इस रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2019 में खाने के लिये उपलब्ध भोजन का 17% (घरों में 11%, खाद्य सेवा में 5% और खुदरा क्षेत्र में 2%) बर्बाद हो गया और लगभग 69 करोड़ लोगों को खाली पेट सोना पड़ा था।
प्रमुख बिंदु
फूड वेस्ट इंडेक्स रिपोर्ट के विषय में:
- इस रिपोर्ट में वैश्विक खाद्य अपव्यय का सबसे व्यापक और विश्लेषित डेटा प्रस्तुत होता है।
- यह देशों के लिये घरेलू खाद्य सेवा और खुदरा स्तर पर खाद्य अपशिष्ट को मापने हेतु एक पद्धति भी प्रकाशित करता है।
- फूड लॉस इंडेक्स (Food Loss Index) के विपरीत फूड वेस्ट इंडेक्स कुल खाद्य अपशिष्ट (विशिष्ट वस्तुओं से जुड़े नुकसान या कचरे के बजाय) को मापता है।
परिणाम:
- खाद्य अपव्यय:
- इस रिपोर्ट का अनुमान है कि वर्ष 2019 में लगभग 931 मिलियन टन खाद्य अपशिष्ट उत्पन्न हुआ था।
- जिसमें से 61% घरों से, 26% खाद्य सेवा से और 13% खुदरा स्तर पर उत्पन्न हुआ।
- सभी आय वर्ग द्वारा अपव्यय:
- खाद्य अपव्यय निम्न, मध्यम और उच्च सभी प्रकार की आय वाले देशों में पाया जाता है।
- ऑस्ट्रिया जैसे विकसित देश 39 किलोग्राम/प्रति व्यक्ति/वर्ष खाद्य अपव्यय करते हैं। दूसरी ओर नाइज़ीरिया जैसे देश 189 किलोग्राम/प्रति व्यक्ति/वर्ष खाद्य अपव्यय किया जा रहा है। भारत 50 किलोग्राम/प्रति व्यक्ति/वर्ष खाद्य अपव्यय करता है।
- यह पूर्व की उस धारणा के विपरीत है, जिसके तहत माना जाता था कि विकसित देशों में उपभोक्ता खाद्य की बर्बादी अधिक होती है और विकासशील देशों में खाद्य उत्पादन, भंडारण एवं परिवहन नुकसान अधिक होता है।
- डेटा उपलब्धता का अभाव:
- वर्तमान में वैश्विक खाद्य अपव्यय डेटा की उपलब्धता कम है और इसे मापने का दृष्टिकोण भी अत्यधिक परिवर्तनशील है।
खाद्य अपव्यय में कमी का महत्त्व:
- भूख में कमी: खाद्य अपव्यय में कमी से भूमि रूपांतरण और प्रदूषण के माध्यम से प्रकृति का विनाश को रोका जा सकता है, भोजन की उपलब्धता बढ़ सकती है तथा इस वैश्विक मंदी के समय भूख को कम कर पैसा बचाया जा सकता है।
- SDGs के साथ संरेखित: फूड वेस्ट इंडेक्स रिपोर्ट का उद्देश्य सतत् विकास लक्ष्यों (SDG 12.3) पर प्रगति को आगे बढ़ाना है, अर्थात् वर्ष 2030 तक खुदरा और उपभोक्ता स्तरों पर प्रति व्यक्ति वैश्विक खाद्य अपशिष्ट को आधा करना तथा उत्पादन एवं आपूर्ति शृंखलाओं के साथ खाद्य नुकसान को कम करना है।
- जीएचजी उत्सर्जन में कमी: वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का लगभग 8-10% उन खाद्य पदार्थों से जुड़ा होता है जिनका सेवन नहीं किया जाता है। इस प्रकार खाद्य अपव्यय के मुद्दों से निपट कर पेरिस समझौते (Paris Agreement) के लक्ष्यों को प्राप्त किया जा सकता है।
रिपोर्ट के सुझाव:
- खाद्य प्रणालियों के लिये NDC (राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान) को बढ़ाना: खाद्य हानि और कचरे को एकीकृत करके तथा खाद्य सुरक्षा को मज़बूत करके राष्ट्रीय जलवायु रणनीतियों संबंधी महत्त्वाकांक्षा को बढ़ाना।
- संयुक्त राष्ट्र खाद्य प्रणाली शिखर सम्मेलन के माध्यम से खाद्य अपव्यय के लिये गेम चेंजिंग समाधानों को अपनाना।
- क्षेत्रीय खाद्य अपशिष्ट कार्य समूह: यह कार्य समूह सदस्य राज्यों को खाद्य अपव्यय को मापने, राष्ट्रीय आधार रेखा विकसित करने और खाद्य अपव्यय की रोकथाम के लिये राष्ट्रीय रणनीतियों को डिज़ाइन करने में प्रशिक्षण प्रदान करेंगे।
संयुक्त राष्ट्र खाद्य प्रणाली शिखर सम्मेलन
- संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस वर्ष 2021 में सतत् विकास लक्ष्यों को वर्ष 2030 तक प्राप्त करने के लिये एक फूड सिस्टम समिट (Food Systems Summit) का आयोजन करेंगे।
- यह शिखर सम्मेलन सभी 17 SDG पर प्रगति के लिये साहसिक नए कार्य शुरू करेगा, जिनमें से प्रत्येक स्वस्थ और अधिक स्थायी तथा न्यायसंगत खाद्य प्रणालियों पर कुछ हद तक निर्भर करता है।
फूड लॉस इंडेक्स
- फूड लॉस इंडेक्स (The Food Loss Index) उन खाद्य हानियों पर ध्यान केंद्रित करता है जो उत्पादन से लेकर खुदरा स्तर तक होती है।
- यह सूचकांक एक आधार अवधि में देश की 10 मुख्य वस्तुओं में हुए घाटे के प्रतिशत को मापता है।
- SDG लक्ष्य 12.3 की प्रगति को मापने के लिये FLI सहायता करता है।