डेली न्यूज़ (05 Apr, 2022)



नियर फील्ड कम्युनिकेशन टेक्नोलॉजी

चर्चा में क्यों?

 हाल ही में Google pay ने पाइन लैब्स (Pine Labs) के सहयोग से भारत में एक नई सुविधा 'यूपीआई हेतु भुगतान करने के लिये टैप करें’ (Tap to pay for UPI) शुरू की है। इसमें नियर फील्ड कम्युनिकेशन (NFC) तकनीक का उपयोग किया जाता है।

  • यह एनएफसी-सक्षम एंड्रॉइड स्मार्टफोन (NFC-enabled Android Smartphones) और Google pay से जुड़े UPI (यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस) खातों वाले उपयोगकर्त्ताओं को देश भर में किसी भी पाइन लैब्स एंड्रॉइड पॉइंट-ऑफ-सेल (POS) टर्मिनल पर अपने फोन को टैप कर लेन-देन करने की अनुमति देगी।
  • क्यूआर कोड को स्कैन करने या यूपीआई-लिंक्ड मोबाइल नंबर दर्ज करने, जो कि अब तक का पारंपरिक तरीका रहा है, की तुलना में यह प्रक्रिया काफी तीव्रता के साथ कार्य करती है।
  •  Apple द्वारा iPhone पर ‘Tap to Pay’ को फरवरी 2022 में शुरू किया गया था।

NFC क्या है और यह कैसे कार्य करता है?

  • NFC एक छोटी दूरी की वायरलेस कनेक्टिविटी तकनीक है जो एनएफसी-सक्षम उपकरणों (NFC-enabled devices) को एक-दूसरे के साथ संवाद करने तथा स्पर्श के माध्यम से जल्दी और आसानी से जानकारी स्थानांतरित करने की अनुमति देती है- चाहे बिलों का भुगतान करना हो, बिज़नेस कार्ड का आदान-प्रदान करना हो, कूपन डाउनलोड करना हो या कोई दस्तावेज़ साझा करना हो।
  • NFC दो उपकरणों के बीच संचार को सक्षम करने के लिये विद्युत चुंबकीय रेडियो क्षेत्रों के माध्यम से डेटा प्रसारित करता है। इसके लिये दोनों उपकरणों में एनएफसी चिप्स होना आवश्यक है क्योंकि लेन-देन एक निकटतम दूरी पर होता है।
    • डेटा ट्रांसफर के लिये एनएफसी-सक्षम डिवाइस का एक-दूसरे के साथ स्पर्श कराना या एक-दूसरे को कुछ सेंटीमीटर की दूरी पर रखना ज़रूरी होता है।
  • वर्ष 2004 में उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनियों- नोकिया, फिलिप्स और सोनी ने मिलकर एनएफसी फोरम का गठन किया, जिसने शक्तिशाली नए उपभोक्ता-संचालित उत्पादों को बनाने के लिये एनएफसी प्रौद्योगिकी हेतु रूपरेखा तैयार की।
  • नोकिया ने 2007 में पहला एनएफसी-सक्षम फोन (NFC-enabled phone) जारी किया था।

 NFC प्रौद्योगिकी के अन्य अनुप्रयोग:

  • इसका उपयोग संपर्क रहित बैंकिंग कार्ड्स (Contactless Banking Cards) में पैसे का लेन-देन करने या सार्वजनिक परिवहन हेतु कॉन्टैक्ट-लेस टिकट जेनरेट करने के लिये किया जाता है।
    • संपर्क रहित कार्ड और रीडर्स नेटवर्क तथा इमारतों को सुरक्षित करने से लेकर इन्वेंट्री एवं बिक्री की निगरानी, ऑटो चोरी की घटना को रोकने तथा मानव रहित टोल बूथ चलाने तक कई अनुप्रयोगों में NFC का उपयोग किया जाता है।
  • स्पीकर, घरेलू उपकरणों तथा कई अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में इसका प्रयोग होता है जिन्हें स्मार्टफोन के माध्यम से नियंत्रित किया जाता है।
  • एनएफसी-सक्षम रिस्टबैंड के माध्यम से रोगी के आँकड़ों की निगरानी हेतु स्वास्थ्य सेवा में भी इसका प्रयोग किया जाता है, साथ ही वायरलेस चार्जिंग में भी NFC का इस्तेमाल किया जाता है।

कितनी सुरक्षित है यह तकनीक?

  • NFC तकनीक को एक-दूसरे से कुछ सेंटीमीटर के भीतर उपकरणों के बीच संचालन के लिये डिज़ाइन किया गया है। इससे हमलावरों के लिये अन्य वायरलेस तकनीकों की तुलना में उपकरणों के बीच संचार रिकॉर्ड करना मुश्किल हो जाता है, जिनमें कई मीटर की कार्य दूरी होती है।
  • एनएफसी-सक्षम डिवाइस का उपयोगकर्त्ता टच जेस्चर द्वारा यह निर्धारित करता है कि एनएफसी संचार किस इकाई के साथ होना चाहिये, जिससे हमलावर के लिये कनेक्ट होना अधिक कठिन हो जाता है।
  • अन्य वायरलेस संचार प्रोटोकॉल की तुलना में एनएफसी संचार का सुरक्षा स्तर डिफॉल्ट रूप से अधिक है।
  • NFC मानवीय त्रुटि की संभावना को कम करता है क्योकि प्राप्त करने वाला उपकरण डेटा को तुरंत भेजता है।

अन्य वायरलेस तकनीकों से तुलना: 

इरडा (इन्फ्रारेड) तकनीक डेटा के आदान-प्रदान के लिये इन्फ्रारेड लाइट पर आधारित एक छोटी दूरी (कुछ मीटर) का कनेक्शन है जहांँ दो संचार उपकरणों को दृष्टि की सीधी रेखा के भीतर स्थित होना चाहिये। वर्तमान में इस तकनीक का उपयोग मुख्य रूप से रिमोट कंट्रोल उपकरणों हेतु किया जाता है।

  • कंप्यूटर उपकरणों के साथ बड़े डेटा संचार हेतु इस तकनीक को ब्लूटूथ या वाईफाई कनेक्शन से प्रतिस्थापित कर दिया गया था।
    • हालाँकि इन तकनीकों के लिये रिसीवर डिवाइसेस (Receiver Devices) को लंबी कार्य दूरी के कारण अपनी स्वयं की विद्युत आपूर्ति की आवश्यकता होती है।
    • अत: रिसीविंग डिवाइस को NFC की तरह रेडियोफ्रीक्वेंसी (Radiofrequency- RF) क्षेत्र द्वारा संचालित नहीं किया जा सकता है।
    • लंबी कार्य दूरी का एक अन्य परिणाम यह है कि उपयोगकर्त्ता द्वारा अपने डिवाइस को समरूप या कन्फिग्यर (Configure) बनाने तथा संचार हेतु उन्हें एक साथ जोड़ने की आवश्यकता होती है। NFC की तरह एक सामान्य संपर्क द्वारा कनेक्शन को शुरू नहीं किया जा सकता है।

नोट: 

ब्लूटूथ: 1990 के दशक के अंत में विकसित, यह एक ऐसी तकनीक है जिसे इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के बीच कम दूरी के वायरलेस संचार को सक्षम करने हेतु डिज़ाइन किया गया है जैसे- लैपटॉप और स्मार्टफोन के बीच या कंप्यूटर और टेलीविज़न के बीच संचार।

  • ब्लूटूथ पारंपरिक रिमोट कंट्रोल द्वारा उपयोग किये जाने वाले इन्फ्रारेड स्पेक्ट्रम के बजाय रेडियो फ्रीक्वेंसी के उपयोग पर कार्य करता है। नतीजतन ब्लूटूथ न केवल वायर कनेक्शन की आवश्यकता को समाप्त करता है, बल्कि उपकरणों के बीच संचार हेतु स्पष्ट दूरी बनाए रखने की आवश्यकता को भी समाप्त करता है।

वाई-फाई (वायरलेस फिडेलिटी): यह ब्लूटूथ के समान है जिसमें यह वायर कनेक्शन की आवश्यकता के बिना कम दूरी पर हाई-स्पीड डेटा ट्रांसफर के लिये रेडियो तरंगों का भी उपयोग करता है।

  • वाई-फाई सिग्नल को टुकड़ों में तोड़कर और उन टुकड़ों को कई रेडियो फ्रीक्वेंसी पर ट्रांसमिट करके काम करता है। यह तकनीक सिग्नल को प्रति आवृत्ति कम शक्ति पर प्रसारित करने में सक्षम बनाती है और कई उपकरणों को एक ही वाई-फाई ट्रांसमीटर का उपयोग करने की अनुमति देती है।
  • प्रारंभ में 1990 के दशक में विकसित, वाई-फाई डेटा ट्रांसफर द्वारा अधिक बैंडविड्थ के प्रयोग हेतु इंस्टीट्यूट ऑफ इलेक्ट्रिकल एंड इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियर्स (आईईईई) द्वारा अनुमोदित कई मानकीकरण प्रक्रियाओं को पूरा किया गया है।

यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न: 

प्रश्न: हाल ही में सुर्खियों में रहे 'Li-Fi' के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2016)

  1. यह उच्च गति डेटा संचरण हेतु माध्यम के रूप में प्रकाश का उपयोग करता है।
  2. यह एक वायरलेस तकनीक है और 'वाई-फाई' से कई गुना तीव्र है।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 
(b) केवल 2 
(c) 1 और 2 दोनों 
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (c)

  • Li-Fi का मतलब है लाइट फिडेलिटी जो एक विज़िबल लाइट कम्युनिकेशंस (VLC) सिस्टम है जो वायरलेस संचार है, यह बहुत तीव्र गति से कार्य करता है। वर्ष 2011 में एडिनबर्ग विश्वविद्यालय के प्रोफेसर हेराल्ड हास ने एक टेड वार्ता के दौरान इस शब्द को गढ़ा था। हास ने ऐसे प्रकाश बल्बों की कल्पना की थी जो वायरलेस राउटर के रूप में कार्य करने में सक्षम हो। 
  • Wi-Fi तकनीक प्रसारण के लिये रेडियो तरंगों का उपयोग करती है, जबकि Li-Fi प्रकाश तरंगों का उपयोग करती है। Wi-Fi भवन/परिसर/परिसर के भीतर सामान्य वायरलेस कवरेज़ हेतु अच्छी तरह से कार्य करता है और Li-Fi एक सीमित क्षेत्र या कमरे में उच्च घनत्व वाले वायरलेस डेटा कवरेज के लिये  आदर्श है तथा इसके विपरीत हस्तक्षेप जैसे मुद्दों से मुक्त है, Wi-Fi के विपरीत Li-Fi के लिये डेटा ट्रांसमिशन की गति लगभग 1 Gbps है और Wi-Fi के लिये- IEEE 802.11n जो लगभग 150 Mbps है। अत: कथन 1 और 2 सही हैं।
  • अत: विकल्प (C) सही उत्तर है।

प्रश्न: ब्लूटूथ और वाई-फाई डिवाइस में क्या अंतर है? (2011)

(a) ब्लूटूथ 2.4 गीगाहर्ट्ज़ रेडियो फ़्रीक्वेंसी बैंड का उपयोग करता है, जबकि वाई-फाई 2.4 गीगाहर्ट्ज़ या 5 गीगाहर्ट्ज़ फ्रीक्वेंसी बैंड का उपयोग कर सकता है।
(b) ब्लूटूथ का उपयोग केवल वायरलेस लोकल एरिया नेटवर्क (WLAN) के लिये किया जाता है, जबकि वाई-फाई का उपयोग केवल वायरलेस वाइड एरिया नेटवर्क (WWAN) के लिये किया जाता है।
(c) जब ब्लूटूथ तकनीक का उपयोग करके दो उपकरणों के बीच सूचना प्रसारित की जाती है, तो दोनों उपकरणों को एक-दूसरे की सीध में होना चाहिये, लेकिन जब वाई-फाई तकनीक का उपयोग किया जाता है, तो उपकरणों को एक-दूसरे की सीध में रखने की आवश्यकता नहीं होती है।
(d) इस संदर्भ में ऊपर दिये गए कथन (a) और (b) सही हैं

उत्तर: (a)


प्रश्न: निम्नलिखित पर विचार कीजिये: (2010)

  1. ब्लूटूथ डिवाइस
  2. कार्डलेस फोन 
  3. माइक्रोवेव ओवन
  4. वाई-फाई डिवाइस

उपर्युक्त में से कौन 2.4 और 2.5 GHz रेंज के रेडियो फ्रीक्वेंसी बैंड के बीच कार्य कर सकता है?

(a) केवल 1 और 2  
(b) केवल 3 और 4 
(c) केवल 1, 2 और 4  
(d) 1, 2, 3 और 4

उत्तर: (d)

  • ब्लूटूथ कम दूरी पर स्थिर और मोबाइल उपकरणों के बीच डेटा का आदान-प्रदान करने के लिये एक वायरलेस तकनीक है। इसकी कार्य आवृत्ति बैंड 2.400 से 2.485 GHz के मध्य है। अत: विकल्प 1 सही है।
  • एक ताररहित/कार्डलेस टेलीफोन 2.4 GHz और 5.8 GHz के फ्रीक्वेंसी बैंड में कार्य करता है। अत: विकल्प 2 सही है।
  • माइक्रोवेव ओवन 2.45 GHz की फ्रीक्वेंसी का उपयोग करता है। अत विकल्प 3 सही है।
  • वाई-फाई, उपकरणों के रेडियो वायरलेस लोकल एरिया नेटवर्किंग हेतु एक तकनीक है। वाई-फाई सामान्यत: 2.4 गीगाहर्ट्ज़ बैंड का उपयोग करता है। अत: विकल्प 4 सही है।
  • अत: विकल्प (D) सही उत्तर है।

स्रोत: द हिंदू 


नेपाल के प्रधानमंत्री की भारत यात्रा

प्रिलिम्स के लिये:

काली नदी, 1950 की शांति और मित्रता की भारत-नेपाल संधि, धारचूला ब्रिज।

मेन्स के लिये:

भारत-नेपाल संबंधों का महत्त्व और चुनौतियाँ।

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में नेपाल के प्रधानमंत्री ने भारत का दौरा किया और भारत के प्रधानमंत्री के साथ एक शिखर बैठक की।

Nepal

यात्रा की मुख्य विशेषताएंँ:

  • कनेक्टिविटी:
    • बिहार के जयनगर को नेपाल के कुर्था से जोड़ने वाली 35 किलोमीटर लंबी सीमा पार रेलवे लाइन का शुभारंभ किया गया।
      • यह दोनों पक्षों के बीच पहला ब्रॉड-गेज यात्री रेल लिंक है जिसे 548 करोड़ रुपए के भारतीय अनुदान द्वारा समर्थित एक परियोजना के तहत नेपाल में बर्दीबास तक विस्तारित किया जाएगा।
  • सोलू कॉरिडोर:
    • भारत द्वारा 200 करोड़ रुपए के भारतीय लाइन ऑफ क्रेडिट के तहत निर्मित सोलू कॉरिडोर जो कि 90 किमी. लंबी 132 kV विद्युत पारेषण लाइन है, को नेपाल को सौंप दिया गया है।
    • यह लाइन पूर्वोत्तर नेपाल के कई दूरदराज़ के ज़िलों को देश के राष्ट्रीय ग्रिड से जोड़कर बिजली प्राप्त करने में मदद करेगी।
  • रुपे कार्ड:
    • नेपाल में भारत का रुपे (RuPay) कार्ड लॉन्च किया गया।
    • RuPay कार्ड का घरेलू संस्करण अब नेपाल में 1,400 पॉइंट-ऑफ-सेल मशीनों पर कार्य  करेगा और इस कदम से दोनों देशों में पर्यटकों के बढने की उम्मीद है।
    • भूटान, सिंगापुर और यूएई के बाद नेपाल चौथा देश है, जहांँ RuPay कार्ड मौजूद है।
  • समझौता ज्ञापन:
    • नेपाल द्वारा भारत के नेतृत्व वाले अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (105वांँ सदस्य देश बनने) में शामिल होने हेतु एक रूपरेखा समझौते पर हस्ताक्षर किये गए हैं।
    • तीन और समझौतों पर हस्ताक्षर किये गए हैं जिनमें शामिल हैं- रेलवे क्षेत्र में तकनीकी सहयोग बढ़ाने पर एक समझौता ज्ञापन (एमओयू), पांँच वर्ष  के लिये पेट्रोलियम उत्पादों की आपूर्ति और तकनीकी विशेषज्ञता को साझा करने हेतु इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन व नेपाल ऑयल कॉर्पोरेशन के बीच दो समझौते।
  • विद्युत क्षेत्र में सहयोग पर संयुक्त वक्तव्य:
    • भारत ने नेपाल में बिजली उत्पादन परियोजनाओं के संयुक्त विकास और सीमा पार पारेषण बुनियादी ढांँचे के विकास सहित बिजली क्षेत्र में अवसरों का पूरा लाभ उठाने का आह्वान किया है।
      • भारत क्षमता निर्माण और उत्पादन तथा पारेषण से संबंधित बुनियादी ढांँचा परियोजनाओं को सीधे समर्थन के माध्यम से नेपाल के बिजली क्षेत्र को विकसित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
    • नेपाल ने भारत के हाल के सीमा पार उन बिजली व्यापार नियमों की भी सराहना की है जिन्होंने इसे भारत के बाज़ार और भारत के साथ व्यापार शक्ति तक पहुंँचने में सक्षम बनाया है। नेपाल अपनी अतिरिक्त बिजली भारत को निर्यात करता है।
    • दोनों देश विलंबित पंचेश्वर बहुउद्देशीय बाँध परियोजना (महाकाली नदी पर) पर काम में तेज़ी लाने पर सहमत हुए, जिसे क्षेत्र के विकास के लिये काफी निर्णायक माना जाता है।
  • सीमा का मुद्दा:
    • नेपाल के प्रधानमंत्री द्वारा भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से दोनों देशों के मध्य सीमा विवाद को सुलझाने हेतु कदम उठाने का आग्रह किया गया।
      • भारतीय पक्ष ने यह स्पष्ट किया कि दोनों देशों को बातचीत के माध्यम से सीमा मुद्दे को हल करने और ऐसे मुद्दों के राजनीतिकरण किया जाने से बचने की ज़रूरत है।
    • इससे पहले भारत ने वर्ष 2020 में नेपाल द्वारा कालापानी क्षेत्र को अपने हिस्से के रूप में दिखाने के लिये किये गये संविधान संशोधन को खारिज कर दिया था।

भारत-नेपाल संबंधों के प्रमुख बिंदु:

  • ऐतिहासिक संबंध:
    • नेपाल, भारत का एक महत्त्वपूर्ण पड़ोसी देश है और सदियों से चले आ रहे भौगोलिक, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक एवं आर्थिक संबंधों  के कारण अपनी विदेश नीति में विशेष महत्त्व  रखता है।
    • भारत व नेपाल दोनों ही देशों में हिंदू व बौद्ध धर्म को मानने वाले लोग हैं।
    • रामायण सर्किट की योजना दोनों देशों के मज़बूत सांस्कृतिक व धार्मिक संबंधों की प्रतीक है। 
    • दोनों देशों के नागरिकों के बीच आजीविका के साथ-साथ विवाह और पारिवारिक संबंधों की मज़बूत नींव है। इस नींव को ही ‘रोटी-बेटी का रिश्ता’ नाम दिया गया है।
    • वर्ष 1950 की भारत-नेपाल शांति और मित्रता संधि’ दोनों देशों के बीच मौजूद विशेष संबंधों का आधार है।
    • नेपाल से उद्गम होने वाली नदियाँ पारिस्थितिकी और जलविद्युत क्षमता के संदर्भ में भारत की बारहमासी नदी प्रणालियों को पोषित करती हैं।
  • व्यापार और अर्थव्यवस्था:
    • भारत, नेपाल का सबसे बड़ा व्यापार भागीदार होने के साथ-साथ विदेशी निवेश का सबसे बड़ा स्रोत भी है।

कनेक्टिविटी:

  • नेपाल एक लैंडलॉक देश है जो तीन तरफ से भारत और एक तरफ तिब्बत से घिरा हुआ है।
  • भारत-नेपाल ने अपने नागरिकों के मध्य संपर्क बढ़ाने और आर्थिक वृद्धि एवं विकास को बढ़ावा देने के लिये विभिन्न कनेक्टिविटी कार्यक्रम शुरू किये हैं।
  • रक्षा सहयोग:
    • इसमें द्विपक्षीय रक्षा सहयोग के तहत उपकरण और प्रशिक्षण के माध्यम से नेपाल की सेना का आधुनिकीकरण शामिल है।
    • भारतीय सेना की गोरखा रेजीमेंट का गठन आंशिक रूप से नेपाल के पहाड़ी ज़िलों से युवाओं की भर्ती करके किया जाता है।
    • भारत वर्ष 2011 से हर वर्ष नेपाल के साथ संयुक्त सैन्य अभ्यास करता रहा है जिसे सूर्य किरण के नाम से जाना जाता है।
  • सांस्कृतिक:
    • नेपाल के विभिन्न स्थानीय निकायों के साथ कला और संस्कृति, शिक्षाविदों तथा मीडिया के क्षेत्र में लोगों से लोगों के संपर्क को बढ़ावा देने हेतु पहल की गई है।
    • भारत ने काठमांडू-वाराणसी, लुंबिनी-बोधगया और जनकपुर-अयोध्या को जोड़ने के लिये तीन ‘सिस्टर-सिटी’ समझौतों पर हस्ताक्षर किये हैं।
      • ‘सिस्टर-सिटी’ संबंध दो भौगोलिक और राजनीतिक रूप से अलग स्थानों के बीच कानूनी या सामाजिक समझौते का एक रूप है
  • मानवीय सहायता:
    • नेपाल एक संवेदनशील पारिस्थितिक क्षेत्र में स्थित है, जहाँ भूकंप, बाढ़ से जीवन और धन दोनों का  भारी नुकसान होता है, जिसकी वजह से यह भारत की मानवीय सहायता का सबसे बड़ा प्राप्तकर्त्ता बना हुआ है।
  • बहुपक्षीय साझेदारी:
    • भारत और नेपाल कई बहुपक्षीय मंचों जैसे- BBIN (बांग्लादेश, भूटान, भारत व नेपाल), बिम्सटेक (बहुक्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग के लिये बंगाल की खाड़ी पहल), गुटनिरपेक्ष आंदोलन एवं सार्क (क्षेत्रीय सहयोग के लिये दक्षिण एशियाई संघ) को साझा करते हैं।
  • मुद्दे और चुनौतियाँ:
    • चीन का हस्तक्षेप:
      • एक भूमि से घिरे राष्ट्र के रूप में नेपाल कई वर्षों तक भारतीय आयात पर निर्भर रहा और भारत ने नेपाल के मामलों में सक्रिय भूमिका निभाई।
      • हालाँकि हाल के वर्षों में नेपाल, भारत के प्रभाव से दूर हो गया है और चीन ने धीरे-धीरे नेपाल में निवेश, सहायता और ऋण प्रदान करने में वृद्धि की है।
      • चीन, नेपाल को अपने बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) में एक प्रमुख भागीदार मानता है और वैश्विक व्यापार को बढ़ावा देने की अपनी योजनाओं के हिस्से के रूप में नेपाल की  बुनियादी अवसंरचना में निवेश करना चाहता है।       
      • नेपाल और चीन का बढ़ता सहयोग भारत तथा चीन के बीच नेपाल की ‘बफर स्टेट’ की स्थिति को कमज़ोर कर सकता है।
      • दूसरी ओर चीन नेपाल में रहने वाले तिब्बतियों के बीच किसी भी चीन विरोधी भावना को रोकना चाहता है।
    • सीमा विवाद:
      • यह मुद्दा नवंबर 2019 में तब उठा जब नेपाल ने एक नया राजनीतिक नक्शा जारी किया था, जो कि उत्तराखंड के कालापानी, लिंपियाधुरा और लिपुलेख को नेपाल के हिस्से के रूप में प्रस्तुत करता है। नए नक्शे में ‘सुस्ता’ (पश्चिम चंपारण ज़िला, बिहार) को भी नेपाल के क्षेत्र के रूप में दिखाया गया है।

आगे की राह

  • भारत को सीमा पार जल विवादों पर अंतर्राष्ट्रीय कानून के तत्त्वावधान में नेपाल के साथ सीमा विवाद को हल करने हेतु कूटनीतिक रूप से वार्ता करनी चाहिये। इस मामले में भारत और बांग्लादेश के बीच सीमा विवाद समाधान एक मॉडल के रूप में काम कर सकता है।
  • भारत को लोगों से लोगों के जुड़ाव, नौकरशाही के जुड़ाव के साथ-साथ राजनीतिक वार्ता के मामले में नेपाल के साथ अधिक सक्रिय रूप से जुड़ना चाहिये।
  • कहीं मतभेद विवाद में न बदल जाए, अतः ऐसे में दोनों देशों को शांति से सभी मुद्दों को सुलझाने का प्रयास करना चाहिये।

यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न (PYQs):

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2020)

  1. पिछले दशक में भारत-श्रीलंका व्यापार का मूल्य लगातार बढ़ा है।
  2. "वस्त्र और वस्त्र संबंधी उत्पाद" भारत एवं बांग्लादेश के बीच व्यापार की महत्त्वपूर्ण वस्तुएँ हैं।
  3. पिछले पाँच वर्षों में नेपाल दक्षिण एशिया में भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार रहा है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 और 2 
(b) केवल 2
(c) केवल 3 
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (b)


प्रश्न. निम्नलिखित युग्मों पर विचार कीजिये: (2016)

कभी-कभी सामाचारों में उल्लिखित समुदाय 

संबंधित देश

कुर्द

बांग्लादेश

मधेसी

नेपाल

रोहिंग्या

म्याँमार

उपर्युक्त युग्मों में से कौन-सा/से सही सुमेलित है/हैं?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2
(c) केवल 2 और 3
(d) केवल 3

उत्तर: (c)

  • कुर्द: ये मेसोपोटामिया के मैदानी इलाकों और अब दक्षिण-पूर्वी तुर्की, उत्तर-पूर्वी सीरिया, उत्तरी इराक, उत्तर-पश्चिमी ईरान, आर्मेनिया तथा दक्षिण-पश्चिमी क्षेत्रों के स्वदेशी लोगों में से एक हैं। अत: युग्म 1 सुमेलित नहीं है।
  • मधेसी: यह एक जातीय समूह है जो मुख्य रूप से भारतीय सीमा के करीब नेपाल के दक्षिणी मैदानों में रहता है। अत: युग्म 2 सही सुमेलित है।
  • रोहिंग्या: यह एक जातीय समूह है, जिसमें बड़े पैमाने पर मुस्लिम शामिल हैं तथा जो मुख्य रूप से पश्चिमी म्याँमार प्रांत रखाइन में रहते हैं। अत: युग्म 3 सही सुमेलित है।
  • अतः विकल्प (c) सही उत्तर है।

IPCC: छठी आकलन रिपोर्ट का भाग तीन

प्रिलिम्स के लिये:

जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैन पैनल (IPCC), क्योटो प्रोटोकॉल, पेरिस समझौता, ग्रीनहाउस गैसों की छठी आकलन रिपोर्ट।

मेन्स के लिये:

जलवायु परिवर्तन (आईपीसीसी) पर अंतर-सरकारी पैनल की छठी आकलन रिपोर्ट, जलवायु परिवर्तन, अनुकूलन उपाय, जलवायु परिवर्तन का प्रभाव।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में संयुक्त राष्ट्र के जलवायु विज्ञान निकाय, जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (IPCC) ने अपनी छठी आकलन रिपोर्ट (AR6) का तीसरा भाग प्रकाशित किया।

  • रिपोर्ट का दूसरा भाग मार्च 2022 में प्रकाशित हुआ था जो जलवायु परिवर्तन के प्रभावों, ज़ोखिमों और कमज़ोरियों एवं अनुकूलन विकल्पों से संबंधित है।
  • इस रिपोर्ट का पहला भाग वर्ष 2021 में जलवायु परिवर्तन के भौतिक विज्ञान से संबंधित था। इसमें यह बताया गया था कि वर्ष 2040 से पहले ही वैश्विक तापमान में 1.5 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि की संभावना है।

रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्ष:

  • ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन:
    • वर्ष 2019 में वैश्विक शुद्ध मानवजनित ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन 59 गीगाटन कार्बन डाइऑक्साइड समकक्ष (Gigatonnes of Carbon Dioxide Equivalent- GtCO2e) था, जो वर्ष 1990 की तुलना में 54% अधिक था।
      • शुद्ध उत्सर्जन से तात्पर्य दुनिया के जंगलों और महासागरों द्वारा अवशोषित किये गए उत्सर्जन में कटौती के बाद होने वाले उत्सर्जन से है।
      • मानवजनित उत्सर्जन से तात्पर्य ऐसे उत्सर्जन से है जो ऊर्जा के लिये कोयले को जलाने या जंगलों को काटने जैसी मानव गतिविधियों के कारण होता है।
    • यह उत्सर्जन वृद्धि मुख्य रूप से जीवाश्म ईंधन के जलने और औद्योगिक क्षेत्र से CO2 उत्सर्जन के साथ-साथ मीथेन उत्सर्जन से प्रेरित है।
    • लेकिन वर्ष 2010-19 की अवधि में विकास की औसत वार्षिक दर 1.3% प्रतिवर्ष हो गई, जबकि वर्ष 2000-09 की अवधि में यह 2.1% प्रतिवर्ष थी।
    • कम-से-कम 18 देशों ने अपनी ऊर्जा प्रणाली के डीकार्बोनाइज़ेशन, ऊर्जा दक्षता उपायों और कम ऊर्जा मांग के कारण लगातार 10 वर्षों से अधिक समय तक GHG उत्सर्जन को कम किया है।

Global-net-anthropogenic

  • सबसे कम विकसित देशों द्वारा उत्सर्जन:
    • वर्ष 2019 में वैश्विक उत्सर्जन का केवल 3.3% उत्सर्जन करने वाले सबसे कम विकसित देशों (LDCs) के साथ कार्बन असमानता हमेशा की तरह व्याप्त है।
    • वर्ष 1990-2019 की अवधि में उनका औसत प्रति व्यक्ति उत्सर्जन केवल 1.7 टन CO2 था, जबकि वैश्विक औसत 6.9 tCO2e था।
    • वर्ष 1850 से वर्ष 2019 की अवधि में LDC ने जीवाश्म ईंधन और उद्योग से कुल ऐतिहासिक CO2 उत्सर्जन में 0.4% से कम का योगदान दिया।
    • विश्व स्तर पर विश्व की 41% आबादी वर्ष 2019 में प्रति व्यक्ति 3 tCO2e से कम उत्सर्जन करने वाले देशों में रहती थी।

image

  • पेरिस समझौते की प्रतिज्ञा:
    • अक्तूबर 2021 तक देशों द्वारा घोषित NDC को जोड़ने पर आईपीसीसी ने पाया कि इस सदी में ग्लोबल वार्मिंग 1.5 डिग्री सेल्सियससे अधिक होने की संभावना है जो पेरिस समझौते के जनादेश को विफल कर देगा।
      • पेरिस समझौते पर हस्ताक्षर करने वाले देशों द्वारा की गई वर्तमान प्रतिज्ञाओं को राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (Nationally Determined Contributions- NDCs) के रूप में जाना जाता है।
    • इस योजना के विफल होने में कोयला, तेल और गैस जैसे मौजूदा और नियोजित जीवाश्म ईंधन के बुनियादी ढाँचों का योगदान ज़्यादा होगा।
    • सबसे बेहतर परिदृश्य के रूप में, जिसे C1 मार्ग के तौर पर जाना जाता है,आईपीसीसी इस बात की रूपरेखा तैयार करता है कि तापमान को सीमित या बिना किसी 'ओवरशूट' के 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लिये दुनिया को क्या करने की आवश्यकता है।
      • ओवरशूट से तात्पर्य वैश्विक तापमान से है जो अस्थायी रूप से 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा को पार कर सकता है, लेकिन फिर उन तकनीकों का उपयोग करके वापस लाया जाता है जो वातावरण से CO2अवशोषित करते हैं।
    • C1 मार्ग को प्राप्त करने के लिये वैश्विक GHG उत्सर्जन में वर्ष 2030 तक 43% की गिरावट होनी चाहिये।

Median-Global-Warning

  • कम उत्सर्जन प्रौद्योगिकियाँ:
    • 1.5 डिग्री सेल्सियस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये ऊर्जा, भवन, परिवहन, भूमि और अन्य क्षेत्रों में व्यापक 'सिस्टम ट्रांसफॉर्मेशन' की आवश्यकता है तथा इसमें प्रत्येक क्षेत्र में विकास के कम उत्सर्जन या शून्य कार्बन के मार्ग को अपनाना और सस्ती कीमत पर समाधान उपलब्ध कराना शामिल होगा।
    • कम उत्सर्जन प्रौद्योगिकियों की लागत में वर्ष 2010 से लगातार गिरावट आई है। एक इकाई लागत के आधार पर सौर ऊर्जा में 85%, पवन में 55% और लिथियम-आयन बैटरी में 85% की गिरावट दर्ज की गई है।
    • उनकी तैनाती या उपयोग वर्ष 2010 के बाद से कई गुना बढ़ गया है अर्थात् सौर ऊर्जा के लिये 10 गुना तथा इलेक्ट्रिक वाहनों के लिये 100 गुना
    • ऊर्जा क्षेत्र में जीवाश्म ईंधन के उपयोग को कम करना, औद्योगिक क्षेत्र में मांग प्रबंधन और ऊर्जा दक्षता तथा भवनों के निर्माण में 'पर्याप्तता' एवं दक्षता के सिद्धांतों को अपनाना समाधानों में से एक है।
  • मांग-पक्ष शमन:
    • रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि मांग-पक्ष शमन (Demand-Side Mitigation) अर्थात् व्यवहार परिवर्तन जैसे पौधे-आधारित आहार को अपनाना या पैदल चलना और साइकिल चलाना "आधारभूत परिदृश्यों की तुलना में वर्ष 2050 तक वैश्विक जीएचजी उत्सर्जन के अंतिम उपयोग क्षेत्रों में 40-70% तक कमी ला सकता है।
      • वर्तमान में मांग-पक्ष शमन की अधिकांश संभावनाएंँ विकसित देशों में निहित हैं।
  • सकल घरेलू उत्पाद पर प्रभाव:
    • IPCC के अनुसार, कम लागत वाले जलवायु शमन विकल्प वर्ष 2030 तक वैश्विक जीएचजी उत्सर्जन को आधा कर सकते हैं। वास्तव में वार्मिंग को सीमित करने के दीर्घकालिक लाभ, लागत से कहीं अधिक हैं।
    • डीकार्बोनाइज़ेशन (Decarbonisation) में निवेश का वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) पर न्यूनतम प्रभाव पड़ेगा।
  • सूक्ष्म स्तर पर वित्त में कमी: 
    • हालांँकि महत्त्वाकांक्षी शमन लक्ष्यों को प्राप्त करने हेतु आवश्यक स्तरों पर वित्तीय प्रवाह में कमी देखी जाती है।
    • यह अंतराल कृषि, वानिकी और अन्य भूमि उपयोग (Agriculture, Forestry and Other Land Uses- AFOLU) क्षेत्र तथा  विकासशील देशों के लिये सबसे अधिक है।
      • लेकिन वैश्विक वित्तीय प्रणाली काफी बड़ी है और इन अंतरालों को समाप्त करने के लिये "पर्याप्त वैश्विक पूंजी और तरलता" मौजूद है।
    • विकासशील देशों के लिये यह सार्वजनिक अनुदानों को बढ़ाने की सिफारिश करता है, साथ ही "सार्वजनिक वित्त के स्तर में वृद्धि और सार्वजनिक रूप से जुटाए गए निजी वित्तीय प्रवाह को विकसित देशों द्वारा विकासशील देशों में 100 बिलियन अमेंरिकी डालर के लक्ष्य को संदर्भित करता है जिसके द्वारा जोखिम को कम करने, कम लागत पर निजी प्रवाह का लाभ उठाने हेतु सार्वजनिक गारंटी के उपयोग में वृद्धि, स्थानीय पूंजी बाज़ार का विकास और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग प्रक्रियाओं में अधिक विश्वास उत्पन्न किया जाता है।

जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल:

  • यह जलवायु परिवर्तन से संबंधित विज्ञान का आकलन करने वाली अंतर्राष्ट्रीय संस्था है।
  • IPCC की स्थापना संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) और विश्व मौसम विज्ञान संगठन (World Meteorological Organisation- WMO) द्वारा वर्ष 1988 में की गई थी। यह जलवायु परिवर्तन पर नियमित वैज्ञानिक आकलन, इसके निहितार्थ और भविष्य के संभावित जोखिमों के साथ-साथ अनुकूलन तथा शमन के विकल्प भी उपलब्ध कराता है।
  • IPCC आकलन जलवायु संबंधी नीतियों को विकसित करने हेतु सभी स्तरों पर सरकारों के लिये एक वैज्ञानिक आधार प्रदान करते हैं और वे संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन- जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क (United Nations Framework Convention on Climate Change- UNFCCC) में इस पर परिचर्चा करते हैं।

IPCC आकलन रिपोर्ट:

  • आकलन रिपोर्ट, जो कि पहली बार वर्ष 1990 में सामने आई थी, पृथ्वी की जलवायु की स्थिति का सबसे व्यापक मूल्यांकन है।
    • प्रत्येक सात वर्षों में IPCC मूल्यांकन रिपोर्ट तैयार करता है।
  • बदलती जलवायु को लेकर एक सामान्य समझ विकसित करने हेतु सैकड़ों विशेषज्ञ प्रासंगिक, प्रकाशित वैज्ञानिक जानकारी के हर उपलब्ध स्रोत का अध्ययन करते हैं।
  • अन्य चार मूल्यांकन रिपोर्ट्स वर्ष 1995, वर्ष 2001, वर्ष 2007 और वर्ष 2015 में प्रकाशित हुईं।
    • ये रिपोर्ट्स जलवायु परिवर्तन के प्रति वैश्विक प्रतिक्रिया का आधार हैं।
  • प्रत्येक मूल्यांकन रिपोर्ट में पिछली रिपोर्ट के काम पर अधिक सबूत, सूचना और डेटा एकत्रित किया जाता है।
    • ताकि जलवायु परिवर्तन और उसके प्रभावों के विषय में अधिक स्पष्टता, निश्चितता और नए साक्ष्य मौजूद हों।
  • इन्हीं वार्ताओं ने पेरिस समझौते और क्योटो प्रोटोकॉल को जन्म दिया था।
    • पाँचवीं आकलन रिपोर्ट के आधार पर पेरिस समझौते पर वार्ता हुई थी।
  • आकलन रिपोर्ट- वैज्ञानिकों के निम्नलिखित तीन कार्यकरी समूहों द्वारा तैयार की जाती है:
    • कार्यकारी समूह- I: जलवायु परिवर्तन के वैज्ञानिक आधार से संबंधित है। 
    • कार्यकारी समूह- II : संभावित प्रभावों, कमज़ोरियों और अनुकूलन मुद्दों को देखता है।
    • कार्यकारी समूह-III: जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये की जा सकने वाली कार्रवाइयों से संबंधित है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 


वायु गुणवत्ता डेटाबेस 2022: डब्‍ल्‍यूएचओ

प्रिलिम्स के लिये:

विश्व स्वास्थ्य संगठन, डब्ल्यूएचओ के नए वायु गुणवत्ता दिशा-निर्देश, पार्टिकुलेट मैटर।

मेन्स के लिये:

वायु प्रदूषण, पर्यावरण प्रदूषण और गिरावट के प्रभाव।

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organisation- WHO) द्वारा विश्व स्वास्थ्य दिवस (7 अप्रैल) से पहले वायु गुणवत्ता डेटाबेस 2022 (Air Quality Database 2022) जारी किया गया है, जो दर्शाता है कि लगभग पूरी वैश्विक आबादी (99%) डब्ल्यूएचओ द्वारा निर्धारित वायु गुणवत्ता सीमा से अधिक हवा में सांँस लेती है।

  • WHO द्वारा पहली बार नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (NO2) की वार्षिक औसत सांद्रता की ज़मीनी स्तर पर माप की गई है। इसमें 10 माइक्रोन (PM10) या 2.5 माइक्रोन (PM2.5) के बराबर या छोटे व्यास वाले पार्टिकुलेट मैटर का माप भी शामिल है।
  • प्राप्त निष्कर्षों ने डब्ल्यूएचओ को जीवाश्म ईंधन के उपयोग पर अंकुश लगाने और वायु प्रदूषण के स्तर को कम करने के लिये अन्य ठोस कदम उठाने के महत्त्व को उजागर करने हेतु प्रेरित किया है।
  • इससे पहले विश्व वायु गुणवत्ता रिपोर्ट 2021 में मध्य और दक्षिण एशिया के 15 सबसे प्रदूषित शहरों में से 11 शहर भारत के थे।

प्रमुख बिंदु 

  • प्रमुख निष्कर्ष: 
  • हानिकारक वायु: 117 देशों के 6,000 से अधिक शहर अब वायु गुणवत्ता की निगरानी कर रहे हैं लेकिन उनके नागरिक अभी भी सूक्ष्म कणों और नाइट्रोजन डाइऑक्साइड के अस्वास्थ्यकर स्तर में सांँस ले रहे हैं, जबकि निम्न एवं मध्यम आय वाले देशों में लोग सबसे अधिक जोखिम का सामना करते हैं।
  • डेटा का बढ़ा हुआ संग्रह: पिछले अपडेट (वर्ष 2018) की तुलना में 2,000 से अधिक शहर और मानव बस्तियांँ अब पार्टिकुलेट मैटर, PM10 और/ या PM2.5 के लिये  ग्राउंड मॉनीटरिंग डेटा रिकॉर्ड कर रही हैं।
    • वर्ष 2011 में पहली बार डेटाबेस बनाए जाने के बाद से यह रिपोर्टिंग में लगभग छह गुना वृद्धि का प्रतीक है।
  • वायु प्रदूषण का प्रभाव: इस बीच वायु प्रदूषण से मानव शरीर को होने वाले नुकसान के साक्ष्यों के आधार में तेज़ी से वृद्धि हो रही  है जो कई प्रकार के वायु प्रदूषकों के निम्न स्तर के कारण होने वाले नुकसान की ओर इशारा करता है।
    • पार्टिकुलेट मैटर, विशेष रूप से पीएम 2.5, फेफड़ों में प्रवेश करने और रक्तप्रवाह में प्रवेश करने में सक्षम होते हैं जिससे कार्डियोवैस्कुलर, सेरेब्रोवास्कुलर (स्ट्रोक) और रेस्पिरेटरी की समस्या उत्पन्न होती है। 
    • NO2 श्वसन रोगों से संबंधित है, विशेष रूप से अस्थमा, जिसके कारण श्वसन संबंधी लक्षण (जैसे- खाँसी, घरघराहट या साँस लेने में कठिनाई) के कारण अस्पतालों में भर्ती होना तथा एमरजेंसी रूम्स में एडमिट होना शामिल है।
  • डब्ल्यूएचओ के वायु गुणवत्ता दिशा-निर्देशों का अनुपालन: वायु गुणवत्ता की निगरानी करने वाले 117 देशों में से उच्च आय वाले देशों के 17% शहरों में PM2.5 और PM10 का स्तर डब्ल्यूएचओ द्वारा तय वायु गुणवत्ता दिशा-निर्देशों के भीतर है।
    • निम्न और मध्यम आय वाले देशों में 1% से कम शहरों में वायु गुणवत्ता डब्ल्यूएचओ द्वारा अनुशंसित थ्रेसहोल्ड का अनुपालन करती है।

WHO के नए वायु गुणवत्ता दिशा-निर्देश:

  • वर्ष 2021 के दिशा-निर्देश प्रमुख वायु प्रदूषकों के स्तर को कम करके विश्व आबादी के स्वास्थ्य की रक्षा के लिये नए वायु गुणवत्ता स्तरों की सिफारिश करते हैं, जिनमें से कुछ जलवायु परिवर्तन को कम करने में भी महत्त्वपूर्ण योगदान करते हैं।
  • इन दिशा-निर्देशों के तहत अनुशंसित स्तरों को प्राप्त करने का प्रयास कर सभी देशों को अपने नागरिकों के स्वास्थ्य की रक्षा करने के साथ-साथ वैश्विक जलवायु परिवर्तन को कम करने में मदद मिलेगी।
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन का यह कदम सरकार द्वारा नए सख्त मानकों को विकसित करने की दिशा में नीति में अंतिम बदलाव के लिये मंच तैयार करता है।
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन के नए दिशा-निर्देश उन 6 प्रदूषकों के लिये वायु गुणवत्ता के स्तर की अनुशंसा करते हैं, जिनके कारण स्वास्थ्य पर सबसे अधिक जोखिम उत्पन्न होता है।
    • इन 6 प्रदूषकों में पार्टिकुलेट मैटर (PM2.5 और PM10), ओज़ोन (O₃), नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (NO₂) सल्फर डाइऑक्साइड (SO₂) तथा कार्बन मोनोऑक्साइड (CO) शामिल हैं।

Global-Air-Quality

वायु गुणवत्ता और स्वास्थ्य में सुधार के लिये सुझाव:

  • नवीनतम डब्ल्यूएचओ वायु गुणवत्ता दिशा-निर्देशों के अनुसार, राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता मानकों को अपनाना या संशोधित करना और उन्हें लागू करने की आवश्यकता है।
  • वायु गुणवत्ता की निगरानी तथा वायु प्रदूषण के स्रोतों की पहचान करना।
  • खाना पकाने, हीटिंग और प्रकाश की व्यवस्था हेतु स्वच्छ घरेलू ऊर्जा के अनन्य उपयोग के लिये संक्रमण का समर्थन करना।
  • सुरक्षित और किफायती सार्वजनिक परिवहन प्रणाली तथा पैदल यात्री एवं साइकिल के अनुकूल नेटवर्क बनाना।
  • सख्त वाहन उत्सर्जन और दक्षता मानकों को लागू करना और वाहनों के लिये अनिवार्य निरीक्षण व रखरखाव की व्यवस्था को लागू करना।
  • ऊर्जा कुशल आवास और बिजली उत्पादन में निवेश करना।
  • उद्योग और नगरपालिका अपशिष्ट प्रबंधन में सुधार करना। 
  • कृषि अपशिष्ट पदार्थ, जंगल की आग तथा कुछ कृषि-वानिकी गतिविधियों (जैसे लकड़ी से कोयला उत्पादन) को कम करना।
  • स्वास्थ्य पेशेवरों के लिये पाठ्यक्रम में वायु प्रदूषण को शामिल करने तथा स्वास्थ्य क्षेत्र को संलग्न करने के लिये उपकरण प्रदान करना।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस