जलवायु इंजीनियरिंग के नैतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक जोखिम
प्रिलिम्स के लिये:जलवायु इंजीनियरिंग, जलवायु परिवर्तन, सूर्य के प्रकाश को प्रतिबिंबित करना, ग्रीनहाउस गैसें, कार्बन डाइऑक्साइड निष्कासन (CDR), सौर विकिरण संशोधन (SRM)। मेन्स के लिये:न्यूट्रॉन स्टार्स का संलयन और तेज़ रेडियो विस्फोट (FRB) का उत्सर्जन। |
स्रोत: डाउन टू अर्थ
चर्चा में क्यों?
जलवायु इंजीनियरिंग की नैतिकता पर अपनी रिपोर्ट में संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (United Nations Educational, Scientific and Cultural Organization- UNESCO) ने महिलाओं, युवाओं और स्वदेशी लोगों के साथ-साथ समाज के कमज़ोर, उपेक्षित तथा बहिष्कृत लोगों को महत्त्वपूर्ण हितधारकों के रूप में जलवायु इंजीनियरिंग के विवादास्पद क्षेत्र के संबंध में नीतिगत निर्णयों में शामिल करने के महत्त्व पर ज़ोर दिया है।
जलवायु इंजीनियरिंग क्या है?
- जलवायु इंजीनियरिंग से आशय जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने के लिये पृथ्वी की जलवायु में जान-बूझकर किये गए बदलावों से है।
- इसमें विभिन्न तकनीकें शामिल हो सकती हैं जिनमें सौर विकिरणों को परावर्तित करना अथवा वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को सीमित करना शामिल है।
- जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने संबंधी लक्ष्यों और वायुमंडलीय ग्रीनहाउस गैस सांद्रता में आवश्यक कटौती के बीच मौजूदा अंतर को देखते हुए जलवायु इंजीनियरिंग तकनीकों के उपयोग को लेकर चर्चाएँ चल रही हैं।
- जलवायु इंजीनियरिंग को तकनीकों के दो समूहों में वर्गीकृत किया गया है:
- कार्बन डाइऑक्साइड निष्कासन (CDR):
- यह वायुमंडल से उत्सर्जित कार्बन डाइऑक्साइड को निष्काषित और संग्रहीत करती है। CDR में पाँच तकनीकों का उपयोग किया जाता है:
- सीधे वायु से कार्बन का संग्रहण
- वनरोपण/पुनर्वनीकरण के माध्यम से भूमि-उपयोग प्रबंधन
- बायोमास द्वारा उत्पादित कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) पृथक्करण, जिसका उपयोग ऊर्जा स्रोत के रूप में भी किया जा सकता है, से समुद्र द्वारा CO2 के अवशोषण तथा प्राकृतिक मौसम प्रक्रियाओं में वृद्धि होती है जिससे वायुमंडल में CO2 की मात्रा में कमी आती है।
- नेचर जर्नल की एक रिपोर्ट के अनुसार, नई CDR प्रौद्योगिकियों के उपयोग से लक्षित प्रतिवर्ष लगभग 2.3 मिलियन टन कार्बन निष्कासन में से केवल 0.1% ही लक्ष्य पूरा किया जा सका है।
- सौर विकिरण संशोधन (SRM):
- इसमें पृथ्वी की धरातल परावर्तन क्षमता में वृद्धि करना शामिल है।
- परावर्तक पेंट से संरचनाओं की रंगाई
- उच्च परावर्तनशीलता वाले फसलों की बुवाई
- समुद्री मेघों की परावर्तनशीलता को बढ़ाना
- इन्फ्रारेड-अवशोषित मेघों को हटाना
- अन्य SRM रणनीतियों में ज्वालामुखी विस्फोटों के कारण होने वाली शीतलन का अनुकरण करने के लिये निचले समताप मंडल में एरोसोल मुक्त करना और पृथ्वी की कक्षा में रिफ्लेक्टर अथवा ढाल स्थापित कर पृथ्वी तक पहुँचने वाले सौर विकिरण की मात्रा को कम करना शामिल है।
- इसमें पृथ्वी की धरातल परावर्तन क्षमता में वृद्धि करना शामिल है।
रिपोर्ट में जलवायु इंजीनियरिंग से संबंधित किन मुद्दों पर प्रकाश डाला गया है?
- नैतिक मुद्दे:
- जलवायु इंजीनियरिंग तकनीक हितधारकों को जीवाश्म ईंधन के उपयोग में कटौती न करने का कारण प्रदान करते हुए "नैतिक जोखिम" उत्पन्न कर सकती है। ऐसे में नैतिक जोखिम के परिप्रेक्ष्य से आगे बढ़ते हुए जलवायु नीति की व्यापक शृंखला के हिस्से के रूप में जलवायु इंजीनियरिंग रणनीतियों का आकलन करना आवश्यक है।
- "संगठित गैर-ज़िम्मेदारी", जलवायु इंजीनियरिंग के समक्ष एक अन्य समस्या है, जिसमें अनिश्चितताओं और पर्यावरणीय चिंताओं के कारण एकल संस्थानों पर दोष आरोपित करना कठिन हो जाता है। इसका प्रमुख कारण यह है कि सभी संस्थान अंतर्संबंधित हैं तथा उनमें व्यक्तिगत जवाबदेही का अभाव है।
- आर्थिक मुद्दे:
- व्यावसायिक निवेश और आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के साथ-साथ ग्लोबल वार्मिंग से निपटने के लिये निगम जलवायु इंजीनियरिंग को एक पसंदीदा समाधान के रूप में प्रोत्साहित कर सकते हैं।
- जलवायु इंजीनियरिंग प्रौद्योगिकी के कार्यान्वयन के लिये विभिन्न वित्तीय उद्देश्यों वाले देशों के बीच अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता है। इन प्रौद्योगिकियों द्वारा अन्य को खतरे में न डालते हुए कमज़ोर देशों की मदद करना एक बड़ी चुनौती हो सकती है।
- शासन और विनियमन संबंधी मुद्दे:
- वर्तमान में जलवायु परिवर्तन पर कार्रवाई में आवश्यक वैश्विक दृष्टिकोण और वर्तमान राष्ट्र-आधारित कानूनी व्यवस्था के बीच सामंजस्य की कमी है।
- जलवायु इंजीनियरिंग के प्रशासन हेतु गैर-राज्य अभिकर्त्ताओं और बहु-स्तरीय दृष्टिकोण के बीच समन्वय की आवश्यकता होती है। ऐसे अभिकर्त्ताओं की भागीदारी जोखिमपूर्ण हो सकती है, हालाँकि संस्थानों पर उनके दायित्वों को पूरा करने के लिये दबाव बनाने हेतु नागरिक समाज कानूनी अभियोग का भी सहारा ले सकता है।
यूनेस्को की रिपोर्ट की सिफारिशें क्या हैं?
- यूनेस्को ने अपने सदस्य राज्यों से जलवायु कार्रवाई को विनियमित करने और मानव तथा पारिस्थितिक तंत्रों पर लिये गए उनके निर्णयों का अन्य राज्यों पर पड़ने वाले प्रभाव का आकलन करने हेतु कानून पेश करने की सिफारिश की है।
- प्रभावों के असमान भौगोलिक वितरण की संभावना को कम करने के लिये देशों को क्षेत्रीय समझौतों पर विचार करना चाहिये।
- इसमें जलवायु इंजीनियरिंग तकनीकों को शीर्ष प्राथमिकता प्रदान करने पर प्रतिबंध लगाने का आह्वान किया गया।
- इसमें आगे कहा गया है कि जलवायु इंजीनियरिंग पर शोध के लिये राजनीतिक अथवा व्यावसायिक उद्देश्यों हेतु हस्तक्षेप नहीं किया जाना चाहिये।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित में से किसके संदर्भ में कुछ वैज्ञानिक पक्षाभ मेघ विरलन तकनीक तथा समताप मंडल में सल्फेट वायुविलय अंतःक्षेपण के उपयोग का सुझाव देते हैं? (2019) (a) कुछ क्षेत्रों में कृत्रिम वर्षा करवाने के लिये उत्तर: (d) |
तेजस जेट और प्रचंड हेलीकॉप्टर
प्रिलिम्स के लिये:तेजस जेट और और प्रचंड हेलीकॉप्टर, रक्षा अधिग्रहण परिषद (DAC), हल्के लड़ाकू विमान तेजस (मार्क 1A), हल्के लड़ाकू हेलीकॉप्टर प्रचंड (LCH) मेन्स के लिये:तेजस जेट और प्रचंड हेलीकॉप्टर, विभिन्न सुरक्षा बल और एजेंसियाँ तथा उनके कार्यक्षेत्र |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में रक्षा अधिग्रहण परिषद (DAC) ने 97 हल्के लड़ाकू विमान तेजस (मार्क 1A) तथा 156 हल्के लड़ाकू हेलीकॉप्टर प्रचंड (LCH) की खरीद के लिये 2.23 लाख करोड़ रुपए मंज़ूर किये हैं, जो अपने सशस्त्र बलों की परिचालन क्षमताओं को बढ़ाने के लिये भारत की प्रतिबद्धता को रेखांकित करता है।
- इस खरीद का लक्ष्य अपनी कुल राशि का 98% घरेलू उद्योगों से प्राप्त करना है, जिससे भारतीय रक्षा उद्योग को 'आत्मनिर्भरता' की दिशा में अधिक बढ़ावा मिलेगा।
- DAC ने सरकारी एयरोस्पेस प्रमुख हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) द्वारा अपने सुखोई-30 लड़ाकू बेड़े के उन्नयन के लिये भारतीय वायु सेना के प्रस्ताव को भी मंज़ूरी दी है।
हल्का लड़ाकू विमान (LCA) क्या है?
- परिचय:
- LCA कार्यक्रम भारत सरकार द्वारा वर्ष 1984 में तब शुरू किया गया था जब उसने LCA कार्यक्रम के प्रबंधन हेतु वैमानिकी विकास एजेंसी (Aeronautical Development Agency- ADA) की स्थापना की थी।
- विशेषताएँ:
- इसे वायु से वायु, वायु से सतह, सटीक निर्देशित हथियारों की एक शृंखला ले जाने हेतु डिज़ाइन किया गया।
- यह हवा में ही ईंधन भरने की क्षमता से युक्त है।
- तेजस के विभिन्न प्रकार:
- तेजस ट्रेनर: यह वायु सेना के पायलटों के प्रशिक्षण के लिये 2-सीटर परिचालन ट्रेनर विमान है।
- LCA नेवी: भारतीय नौसेना के लिये दो और एकल-सीट वाहक को ले जाने में सक्षम विमान।
- LCA तेजस नेवी MK2: यह LCA नेवी वैरिएंट का दूसरा संस्करण है।
- LCA तेजस Mk-1A: यह LCA तेजस Mk1 का एक हाई थ्रस्ट इंजन के साथ अद्यतन रूप है।
हल्का लड़ाकू हेलीकाप्टर क्या है?
- परिचय:
- LCH विश्व का एकमात्र लड़ाकू हेलीकॉप्टर है जो 5,000 मीटर की ऊँचाई पर हथियारों और ईंधन के काफी भार के साथ उड़ान भरने एवं उतरने में सक्षम है।
- यह हेलीकॉप्टर रडार संकेतकों (सिग्नेचर) से बचाव के लिये रडार-अवशोषित तकनीकी का उपयोग करता है जिसमें क्रैश-प्रूफ संरचना एवं लैंडिंग गियर मौजूद होता है।
- दबावयुक्त केबिन आणविक, जैविक और रासायनिक (NBC) आकस्मिक/फुटकर व्यय से सुरक्षा प्रदान करता है।
- यह हेलीकॉप्टर काउंटर मेजर डिस्पेंसिंग सिस्टम से लैस है जो इसे दुश्मन के रडार अथवा दुश्मन की मिसाइलों से बचाता है।
- LCH हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) द्वारा निर्मित दो फ्राँसीसी मूल के शक्ति इंजनों द्वारा संचालित है।
- उत्पत्ति (Genesis):
- वर्ष 1999 के कारगिल युद्ध के दौरान पहली बार एक स्वदेशी लाइट वेट असाॅल्ट वाले हेलीकॉप्टर की आवश्यकता महसूस हुई जो सभी भारतीय युद्धक्षेत्र परिदृश्यों में सटीक हमले कर सके।
- इसका मतलब एक ऐसे यान से था जो बहुत गर्म रेगिस्तान और ऊँचाई वाले ठंडे प्रदेशों में भी उग्रवाद विरोधी परिदृश्यों से लेकर पूर्ण पैमाने पर युद्ध स्थितियों में काम कर सकता था।
- भारत, हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) द्वारा देश में निर्मित उप 3 टन श्रेणी के फ्राँसीसी मूल के लिगेसी हेलीकॉप्टर, चेतक और चीता का संचालन कर रहा है।
- ये एकल इंजन मशीनें, मुख्य रूप से यूटिलिटी हेलीकॉप्टर थीं। भारतीय सेनाएँ चीता का एक सशस्त्र संस्करण, लांसर भी संचालित करती हैं।
- इसके अलावा भारतीय वायु सेना वर्तमान में रूसी मूल के Mi-17 और इसके वेरिएंट Mi-17 IV और Mi-17 V5 का संचालन करती है, जिनका अधिकतम टेक-ऑफ वज़न 13 टन है, जिनकी वर्ष 2028 से चरणबद्ध तरीके से सेवा अवधि को समाप्त करना है।
- सरकार ने अक्तूबर 2006 में LCH परियोजना को मंज़ूरी दी और HAL को इसे विकसित करने का काम सौंपा गया।
- वर्ष 1999 के कारगिल युद्ध के दौरान पहली बार एक स्वदेशी लाइट वेट असाॅल्ट वाले हेलीकॉप्टर की आवश्यकता महसूस हुई जो सभी भारतीय युद्धक्षेत्र परिदृश्यों में सटीक हमले कर सके।
- महत्त्व:
- HAL में दुश्मन की वायु रक्षा को नष्ट करने, उग्रवाद विरोधी युद्ध, युद्ध खोज और बचाव, टैंक रोधी एवं काउंटर सतह बल संचालन जैसी लड़ाकू भूमिकाओं की क्षमताएँ हैं।
भारत के पास कितने प्रकार के विमान हैं?
- बहुउद्देश्यीय लड़ाकू विमान (MRFA):
- इसे हवा से हवा में मार, हवा से ज़मीन पर हमला और इलेक्ट्रॉनिक युद्ध जैसे विभिन्न मिशनों के लिये डिज़ाइन किया गया है।
- भारतीय वायुसेना सोवियत काल के MiG-21 के पुराने बेड़े को बदलने के लिये 114 MRFA की खरीद पर काम कर रही है।
- खरीद मेक इन इंडिया पहल के तहत की जाएगी।
- चयनित विक्रेता को भारत में एक उत्पादन लाइन स्थापित करनी होगी और स्थानीय भागीदारों को प्रौद्योगिकी हस्तांतरित करनी होगी।
- मिग- 21:
- सुपरसोनिक जेट लड़ाकू और इंटरसेप्टर विमान वर्ष 1950 के दशक में तत्कालीन USSR द्वारा डिज़ाइन किया गया था।
- इतिहास में व्यापक रूप से इस्तेमाल किये जाने वाले लड़ाकू विमान के 11,000 से अधिक इकाइयों के निर्माण के साथ 60 से अधिक देश इसे संचालित करते हैं।
- IAF ने 1963 में अपना पहला मिग-21 हासिल किया और तब से विमान के 874 प्रकार शामिल किये हैं।
- इसने भारत से जुड़े कई युद्धों और संघर्षों में भूमिका निभाई है। कई दुर्घटनाओं एवं हादसों के कारण इसे "उड़ता हुआ ताबूत (flying coffin)" उपनाम दिया गया है।
- IAF की योजना वर्ष 2024 तक MiG-21 के प्रयोग को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने और इसकी जगह अत्याधुनिक लड़ाकू विमानों को लाने की है।
- सुपरसोनिक जेट लड़ाकू और इंटरसेप्टर विमान वर्ष 1950 के दशक में तत्कालीन USSR द्वारा डिज़ाइन किया गया था।
- उन्नत मध्यम लड़ाकू विमान (AMCA):
- यह भारतीय वायुसेना और भारतीय नौसेना के लिये 5वीं पीढ़ी का स्टील्थ, बहुउद्देशीय लड़ाकू विमान विकसित करने का एक भारतीय कार्यक्रम है।
- इसे हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) और अन्य सार्वजनिक एवं निजी भागीदारों के सहयोग से DRDO के ADA द्वारा डिज़ाइन और विकसित किया गया है।
- इसमें स्टील्थ एयरफ्रेम, आंतरिक हथियार बे, उन्नत सेंसर, डेटा फ्यूज़न, सुपरक्रूज़ क्षमता और स्विंग-रोल प्रदर्शन जैसी सुविधाएँ होने की उम्मीद है।
- वर्ष 2008 में सुखोई Su-30MKI के अनुवर्ती के रूप में इसकी शुरुआत की गई।
- इसकी पहली उड़ान वर्ष 2025 के लिये योजनाबद्ध है और उत्पादन वर्ष 2030 के बाद शुरू होने की उम्मीद है।
- सुखोई Su-30MKI:
- ट्विन-इंजन, दो-सीट, बहुउद्देश्यीय लड़ाकू विमान रूस के सुखोई द्वारा विकसित और भारतीय वायुसेना के लिये भारत के HAL द्वारा लाइसेंस के तहत निर्मित किया गया है।
- हवाई श्रेष्ठता, ज़मीनी हमले, इलेक्ट्रॉनिक युद्ध और समुद्री हमले जैसे मिशनों को पूरा करने के लिये डिज़ाइन किया गया।
- इसे वर्ष 2002 में भारतीय वायुसेना के तहत सेवा में शामिल किया और तब से कई संघर्षों व अभ्यासों में तैनात किया जा चुका है।
- ट्विन-इंजन डेक आधारित लड़ाकू विमान (TEDBF)
- नौसेना के मिग-29K को प्रतिस्थापित करने के लिये नौसेना के लिये निर्मित।
- समर्पित वाहक-आधारित संचालन के लिये भारत में पहली जुड़वाँ इंजन (ट्विन-इंजन डेक) वाली विमान परियोजना।
- मुख्यतः घरेलू हथियारों से सुसज्जित।
- अधिकतम मशीन संख्या 1.6, सर्विस सीलिंग 60,000 फीट, अधिकतम टेकऑफ वज़न 26 टन, खुला पंख।
- राफेल:
- फ्रेंच ट्विन (जुड़वाँ) इंजन और मल्टीरोल लड़ाकू विमान।
- भारत ने 2016 में 59,000 करोड़ रुपए में 36 राफेल जेट खरीदे।
- हवाई वर्चस्व, अंतर्विरोध, हवाई टोही, ज़मीनी समर्थन, तीव्र प्रहार, जहाज़-रोधी हमला और परमाणु निरोध मिशनों के लिये सुसज्जित।
- राफेल जेट के हथियार पैकेज में उल्का मिसाइल, स्कैल्प क्रूज़ मिसाइल और एमआईसीए मिसाइल प्रणाली शामिल हैं।
- उल्का मिसाइल हवा से हवा में मार करने वाली मिसाइल की अगली पीढ़ी है, जिसे हवा से हवा में युद्ध में क्रांति लाने के लिये निर्मित किया गया है, जो 150 किमी. दूर से दुश्मन के विमानों को निशाना बनाने में सक्षम है।
- SCALP क्रूज़ मिसाइलें 300 किमी. दूर तक लक्ष्य को भेदने में सक्षम हैं, जबकि MICA मिसाइल प्रणाली एक बहुमुखी हवा से हवा में मार करने वाली मिसाइल है जो 100 किमी. दूर तक लक्ष्य को भेदने में सक्षम है।
- परिचालन उड़ान क्षमता 30,000 घंटे।
BSF के क्षेत्राधिकार का विस्तार
प्रिलिम्स के लिये:सीमा सुरक्षा बल (BSF), भारत का मुख्य न्यायाधीश, पासपोर्ट अधिनियम, 1967, भारतीय दंड संहिता (IPC), गृह मंत्रालय, सर्वोच्च न्यायालय मेन्स के लिये:सीमा सुरक्षा बल के अधिकार क्षेत्र के विस्तार का संघीय ढाँचे और देश की आंतरिक सुरक्षा पर प्रभाव |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि केंद्र की वर्ष 2021 की अधिसूचना, जो पंजाब में सीमा सुरक्षा बल (BSF) के अधिकार क्षेत्र को 15 से 50 किलोमीटर तक बढ़ाती है, BSF को केवल समबद्ध सीमाओं के भीतर विशिष्ट अपराधों को रोकने हेतु परस्पर कार्य करने का अधिकार देती है तथा यह राज्य पुलिस के जाँच अधिकार को कम नहीं करती है।
- वर्ष 2021 में पंजाब सरकार ने BSF के अधिकार क्षेत्र का विस्तार करने वाले केंद्र के निर्णय को चुनौती देते हुए सर्वोच्च न्यायालय का रुख किया।
BSF के क्षेत्राधिकार को विस्तारित करने के संबंध में केंद्र की अधिसूचना क्या है?
- परिचय:
- इस अधिसूचना ने BSF अधिनियम, 1968 के तहत वर्ष 2014 के आदेश को प्रतिस्थापित किया, जिसमें मणिपुर, मिज़ोरम, त्रिपुरा, नगालैंड और मेघालय राज्य भी शामिल थे।
- इसमें असम, पश्चिम बंगाल तथा पंजाब समेत दो नव निर्मित केंद्रशासित प्रदेश- जम्मू-कश्मीर एवं लद्दाख का भी विशेष रूप से उल्लेख किया गया है।
- जिन उल्लंघनों के मामले में सीमा सुरक्षा बल तलाशी और ज़ब्ती की कार्यवाही कर सकता है, उनमें नशीले पदार्थों की तस्करी, अन्य प्रतिबंधित वस्तुओं की तस्करी, विदेशियों का अवैध प्रवेश और किसी अन्य केंद्रीय अधिनियम के तहत दंडनीय अपराध आदि शामिल हैं।
- किसी संदिग्ध को हिरासत में लेने या निर्दिष्ट क्षेत्र के भीतर एक खेप ज़ब्त किये जाने के बाद BSF केवल ‘प्रारंभिक पूछताछ’ कर सकती है और 24 घंटे के भीतर संदिग्ध को स्थानीय पुलिस को सौंपना आवश्यक है।
- संदिग्धों पर मुकदमा चलाने का अधिकार BSF के पास नहीं है।
- इस अधिसूचना ने BSF अधिनियम, 1968 के तहत वर्ष 2014 के आदेश को प्रतिस्थापित किया, जिसमें मणिपुर, मिज़ोरम, त्रिपुरा, नगालैंड और मेघालय राज्य भी शामिल थे।
- BSF की विशेष शक्तियाँ:
- सभी सीमावर्ती राज्यों में, जहाँ तक अपराधों पर विचार किया जाता है, बीएसएफ के अधिकार क्षेत्र को बढ़ाने के लिये सीमा सुरक्षा बल अधिनियम, 1968 के तहत शक्ति प्रदान की गई है। 1969 से अब तक गुजरात में 80 किमी. और कुछ राज्यों में यह कम था जो अब यह एक समान 50 किमी. हो गया है। इसका मतलब केवल यह होगा कि दंड प्रक्रिया संहिता 1973, पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) अधिनियम, 1920 और पासपोर्ट अधिनियम, 1967 आदि के तहत कुछ अपराधों के संबंध में बीएसएफ के पास भी अधिकार क्षेत्र होगा।
- स्थानीय पुलिस का अधिकार क्षेत्र बना रहेगा। बीएसएफ को समवर्ती क्षेत्राधिकार भी प्रदान किया गया है।
- सभी सीमावर्ती राज्यों में, जहाँ तक अपराधों पर विचार किया जाता है, बीएसएफ के अधिकार क्षेत्र को बढ़ाने के लिये सीमा सुरक्षा बल अधिनियम, 1968 के तहत शक्ति प्रदान की गई है। 1969 से अब तक गुजरात में 80 किमी. और कुछ राज्यों में यह कम था जो अब यह एक समान 50 किमी. हो गया है। इसका मतलब केवल यह होगा कि दंड प्रक्रिया संहिता 1973, पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) अधिनियम, 1920 और पासपोर्ट अधिनियम, 1967 आदि के तहत कुछ अपराधों के संबंध में बीएसएफ के पास भी अधिकार क्षेत्र होगा।
क्षेत्राधिकार के विस्तार में शामिल विभिन्न मुद्दे क्या हैं?
- बड़े मुद्दे:
- सार्वजनिक व्यवस्था बनाम राज्य की सुरक्षा: सार्वजनिक व्यवस्था और सुरक्षा बनाए रखना पुलिस का कार्य है, सार्वजनिक सुरक्षा और शांति मुख्य रूप से राज्य सरकार की ज़िम्मेदारी है (क्रमशः राज्य सूची की प्रविष्टि 1 और प्रविष्टि 2)।
- हालाँकि जब कोई गंभीर सार्वजनिक अव्यवस्था उत्पन्न होती है जिससे राज्य या देश की सुरक्षा या रक्षा को खतरा हो सकता है (संघ सूची की प्रविष्टि 1), तो स्थिति केंद्र सरकार के लिये भी चिंता का विषय बन जाती है।
- संघवाद की कमज़ोर होती भावना: राज्य सरकार की सहमति प्राप्त किये बिना, अधिसूचना राज्यों की शक्तियों पर अतिक्रमण के समान है।
- पंजाब सरकार ने कहा है कि यह अधिसूचना सुरक्षा या विकास की आड़ में केंद्र का अतिक्रमण है।
- बीएसएफ की कार्यप्रणाली पर असर: भीतरी इलाकों में पुलिसिंग सीमा सुरक्षा बल की भूमिका नहीं है, बल्कि यह अंतर्राष्ट्रीय सीमा की रक्षा करने के अपने प्राथमिक कर्त्तव्य के निर्वहन में बीएसएफ की क्षमता को कमज़ोर कर देगी।
- सार्वजनिक व्यवस्था बनाम राज्य की सुरक्षा: सार्वजनिक व्यवस्था और सुरक्षा बनाए रखना पुलिस का कार्य है, सार्वजनिक सुरक्षा और शांति मुख्य रूप से राज्य सरकार की ज़िम्मेदारी है (क्रमशः राज्य सूची की प्रविष्टि 1 और प्रविष्टि 2)।
- पंजाब से संबंधित मुद्दे:
- इसके तहत 50 किमी. तक के आसपास के क्षेत्र पर राज्य पुलिस के साथ-साथ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के तहत हर संज्ञेय अपराध पर हर शक्ति का प्रयोग करने की समवर्ती शक्ति है।
- पंजाब जैसे अपेक्षाकृत छोटे राज्य में जब इसे 15 से बढ़ाकर 50 कर दिया जाता है, तो सभी प्रमुख शहर इसके अंतर्गत आ जाते हैं।
- जहाँ तक अन्य राज्यों गुजरात और राजस्थान की बात है तो गुजरात में काफी बड़े हिस्से में दलदली भूमि है। वहाँ इसे बढ़ाना उचित हो सकता है क्योंकि इसके अंतर्गत कोई भी प्रमुख शहरी केंद्र नहीं आता है, जैसे- राजस्थान, जहाँ रेगिस्तान है।
राज्यों में सैन्य बलों की तैनाती पर संवैधानिक दृष्टिकोण:
- अनुच्छेद 355 के तहत केंद्र किसी राज्य को "बाहरी आक्रमण और आंतरिक अशांति" से बचाने के लिये अपनी सेना तैनात कर सकता है, तब भी जब संबंधित राज्य केंद्र की सहायता की मांग नहीं करता है और केंद्रीय बलों की सहायता प्राप्त करने का अनिच्छुक है।
- संघ के सशस्त्र बलों की तैनाती के लिये किसी राज्य के विरोध के मामले में केंद्र के लिये सही रास्ता पहले संबंधित राज्य को अनुच्छेद 355 के तहत निर्देश जारी करना है।
- राज्य द्वारा केंद्र सरकार के निर्देश का पालन नहीं करने की स्थिति में केंद्र अनुच्छेद 356 (राष्ट्रपति शासन) के तहत आगे की कार्रवाई कर सकता है।
BSF क्या है?
- BSF की स्थापना वर्ष 1965 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद की गई थी।
- यह गृह मंत्रालय (MHA) के प्रशासनिक नियंत्रण के तहत भारत संघ के पाँच केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों में से एक है।
- अन्य केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल हैं: असम राइफल्स (AR), भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP), केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (CISF), केंद्रीय रिज़र्व पुलिस बल (CRPF), राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (NSG) और सशस्त्र सीमा बल (SSB)।
- 2.65 लाख पुलिस बल पाकिस्तान और बांग्लादेश सीमा पर तैनात हैं।
- इसे भारत-पाकिस्तान अंतर्राष्ट्रीय सीमा, भारत-बांग्लादेश अंतर्राष्ट्रीय सीमा, नियंत्रण रेखा (LoC) पर भारतीय सेना के साथ तथा नक्सल विरोधी अभियानों में तैनात किया जाता है।
- BSF अपने जलयानों के अत्याधुनिक बेड़े के साथ अरब सागर में सर क्रीक और बंगाल की खाड़ी में सुंदरबन डेल्टा की रक्षा कर रहा है।
- यह प्रत्येक वर्ष अपनी प्रशिक्षित जनशक्ति की एक बड़ी टुकड़ी भेजकर संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन में समर्पित सेवाओं का योगदान देता है।
आगे की राह
- राज्य की सहमति वांछनीय है: भारत के पड़ोस में सुरक्षा स्थिति को देखते हुए संघ सशस्त्र बलों और राज्य नागरिक अधिकारियों के बीच मौजूदा संबंधों में किसी बदलाव की आवश्यकता नहीं है।
- हालाँकि केंद्र सरकार द्वारा अपने सशस्त्र बलों को तैनात करने से पहले यह वांछनीय है कि जहाँ भी संभव हो, राज्य सरकार से परामर्श किया जाना चाहिये।
- राज्य के आत्मनिर्भर बनने की स्थिति: प्रत्येक राज्य सरकार, केंद्र सरकार के परामर्श से अपनी सशस्त्र पुलिस को मज़बूत करने के लिये अल्पकालिक और दीर्घकालिक व्यवस्था पर काम कर सकती है।
- इसका उद्देश्य सशस्त्र पुलिस के मामले में काफी हद तक आत्मनिर्भर बनना होगा ताकि बहुत गंभीर गड़बड़ी की स्थिति में ही केंद्रीय सशस्त्र बलों की सहायता लेना आवश्यक हो।
- क्षेत्रीय व्यवस्था: पड़ोसी राज्यों के एक समूह की आम सहमति से ज़रूरत पड़ने पर एक-दूसरे की सशस्त्र पुलिस के उपयोग की स्थायी व्यवस्था हो सकती है।
- क्षेत्रीय परिषद ऐसी व्यवस्था तैयार करने के लिये एक क्षेत्र के भीतर राज्यों की सहमति प्राप्त करने हेतु सबसे अच्छे मंच के रूप में कार्य कर सकती है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. सीमा प्रबंधन विभाग निम्नलिखित में से किस केंद्रीय मंत्रालय का एक विभाग है? (2008) (a) रक्षा मंत्रालय उत्तर: (b) मेन्स:प्रश्न. भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिये बाह्य राज्य और गैर-राज्य कारकों द्वारा प्रस्तुत बहुआयामी चुनौतियों का विश्लेषण कीजिये। इन संकटों का मुकाबला करने के लिये आवश्यक उपायों पर भी चर्चा कीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2021) |