तकनीकी वस्त्र के लिये एक समर्पित निर्यात संवर्धन परिषद
चर्चा में क्यों?
वस्त्र मंत्रालय ने एक समर्पित निर्यात संवर्धन परिषद (Export Promotion Council- EPC) के गठन हेतु प्रस्ताव आमंत्रित किये हैं।
प्रमुख बिंदु
- तकनीकी वस्त्रों के लिये निर्यात संवर्धन परिषद का गठन राष्ट्रीय तकनीकी वस्त्र मिशन का एक भाग है।
- परिषद अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को बढ़ावा देने और उसके विकास के संबंध में केंद्र सरकार के सभी निर्देशों का पालन करेगी।
राष्ट्रीय तकनीकी वस्त्र मिशन:
- इसे फरवरी 2020 में 1480 करोड़ रु के कुल परिव्यय के साथ अनुमोदित किया गया था। ।
- इसका उद्देश्य देश को तकनीकी वस्त्रों में एक वैश्विक नेता के रूप में स्थान देना है और घरेलू बाज़ार में तकनीकी वस्त्रों के उपयोग को बढ़ाना है।
- इसका उद्देश्य वर्ष 2024 तक घरेलू बाज़ार के व्यापार को 40 बिलियन अमरीकी डॉलर से बढ़ाकर 50 बिलियन अमरीकी डॉलर तक ले जाना है।
- यह वर्ष 2020-2021 से चार वर्षों के लिये लागू किया जाएगा तथा इसके चार घटक हैं:
- प्रथम घटक: यह 1,000 करोड़ रुपए के परिव्यय के साथ अनुसंधान, विकास और नवाचार पर केंद्रित है।
- जियो-टेक्सटाइल, कृषि- टेक्सटाइल, चिकित्सा-टेक्सटाइल, मोबाइल-टेक्सटाइल और खेल- टेक्सटाइल एवं जैवनिम्नीकरण तकनीकी टेक्सटाइल के विकास पर आधारित अनुसंधान अनुप्रयोग दोनों पर आधारित होगा।
- अनुसंधान गतिविधियों में स्वदेशी मशीनरी और प्रक्रिया उपकरणों के विकास पर भी ध्यान केंद्रित किया जाएगा।
- द्वितीय घटक: इसका उद्देश्य तकनीकी वस्त्रों के लिये बाज़ार में प्रचार और विकास करना है।
- तृतीय घटक: इसका उद्देश्य तकनीकी वस्त्रों के निर्यात को बढ़ाकर वर्ष 2021-22 तक 20,000 करोड़ रुपए करना है जो वर्तमान में लगभग 14,000 करोड़ रुपए है साथ ही प्रतिवर्ष निर्यात में 10 प्रतिशत औसत वृद्धि सुनिश्चित करना है।
- चतुर्थ घटक: यह शिक्षा, प्रशिक्षण और कौशल विकास पर केंद्रित है।
- प्रथम घटक: यह 1,000 करोड़ रुपए के परिव्यय के साथ अनुसंधान, विकास और नवाचार पर केंद्रित है।
- मिशन के कार्यान्वयन के लिये वस्त्र मंत्रालय में ‘मिशन निदेशालय’ (Mission Directorate) क्रियाशील है।
भारतीय तकनीकी वस्त्र संबंधी डेटा:
- भारतीय तकनीकी वस्त्र खंड का अनुमानित आकार 16 बिलियन अमरीकी डॉलर का है जो 250 बिलियन अमरीकी डॉलर के वैश्विक तकनीकी वस्त्र बाज़ार का लगभग 6% है।
- विकसित देशों में 30% से 70% के स्तर के मुकाबले भारत में तकनीकी वस्त्रों का प्रवेश स्तर 5% से 10% तक कम होता है।
तकनीकी वस्त्र
- तकनीकी वस्त्र ऐसे वस्त्र सामग्री और उत्पाद हैं जो मुख्य रूप से सौंदर्य संबंधी विशेषताओं के बजाय तकनीकी प्रदर्शन तथा कार्यात्मक गुणों के लिये बनाए जाते हैं।
- तकनीकी वस्त्र वे कार्यमूलक वस्त्र हैं जिन्हें वस्त्रों के विभिन्न क्षेत्रों जैसे- ऑटोमोबाइल, सिविल इंजीनियरिंग और निर्माण, कृषि, स्वास्थ्य, औद्योगिक सुरक्षा (फायर प्रूफ जैकेट), व्यक्तिगत सुरक्षा (बुलेट प्रूफ जैकेट, हाई एल्टीट्यूड कॉम्बैट गियर) और अंतरिक्ष अनुप्रयोगों के साथ-साथ विभिन्न उद्योगों में उपयोग किया जाता है।
- प्रयोग के आधार पर, 12 तकनीकी वस्त्र खंड हैं:
- एग्रोटेक, मेडिटेक, बिल्डटेक, मोबिल्टेक, क्लोथेक, ओईटेक, जियोटेक, पैकटेक, हॉमटेक, प्रोटेक, इंडुटेक और स्पोर्टेक।
उदाहरण
- मोबिलटेक (Mobiltech) वाहनों में सीट बेल्ट और एयरबैग, हवाई जहाज की सीटों जैसे उत्पादों को संदर्भित करता है।
- जियोटेक (Geotech), जो संयोगवश सबसे तेजी से उभरता हुआ खंड है, जिसका उपयोग मृदा आदि को जोड़े रखने में किया जाता करता है।
स्रोत: पी,आई.बी.
नगर निगम बॉण्ड
चर्चा में क्यों?
हाल ही में लखनऊ नगर निगम (Lucknow Municipal Corporation) ने 200 करोड़ रुपए के बॉण्ड को बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (Bombay Stock Exchange) में सूचीबद्ध किया है।
- लखनऊ ऐसा करने वाला भारत का नौवाँ शहर (उत्तर भारत का पहला) बन गया है, इसे आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय (Ministry of Housing and Urban Affairs) ने अमृत मिशन के तहत प्रोत्साहित किया गया है।
- BSE भारत के साथ-साथ एशिया में भी सबसे पुराना स्टॉक एक्सचेंज है।
प्रमुख बिंदु
नगर निगम बॉण्ड :
- नगर निगम बॉण्ड (मुनि) एक प्रकार की ऋण सुरक्षा होती है जिसे राज्य, नगर निगम या प्रबंध मंडल (County) द्वारा राजमार्गों, पुलों या स्कूलों के निर्माण जैसे कार्यों के चलते अपने पूंजीगत व्यय के वित्तपोषण के लिये जारी किया जाता है।
- मुनि बॉण्ड के माध्यम से नगर निगम एक निर्दिष्ट ब्याज राशि पर व्यक्तियों या संस्थानों से धन जुटाता है और एक निर्धारित परिपक्वता तिथि पर मूल राशि लौटा देता है।
- ऐसे बॉण्ड प्रायः संघीय, राज्य और स्थानीय करों से मुक्त होते हैं, जिस वजह से उच्च आय वाले लोग इसकी तरफ आकर्षित होते हैं।
भारत में नगर निगम बॉण्ड का इतिहास:
- भारत में 74वें संवैधानिक संशोधन द्वारा शहरी स्थानीय निकायों को विकेंद्रीकृत और स्वायत्तता देने के 5 साल बाद पहली बार 1997 में नगर निगम बॉण्ड जारी हुए थे इसके बाद नागरिकों के प्रति निगमों की जवाबदेहिता के साथ ही उनकी वित्तीय स्थिति में सुधार हुआ और इनकी पहुँच पूंजी बाज़ार तथा वित्तीय संस्थानों तक हो गई।
- बंगलूरू, अहमदाबाद और नासिक के नगर निगमों ने 1997-2010 के बीच ऐसे बॉण्ड जारी किये लेकिन बड़ी मुश्किल से 1,400 करोड़ रुपए ही इकट्ठा हो पाए।
- निवेशकों के आकर्षण में कमी का प्रमुख कारण बॉण्ड की व्यापारिक दक्षता और नियामक स्पष्टता में कमी थी।
- मार्च 2015 में सेबी (Securities and Exchange Board of India-SEBI) ने नगर निगम बॉण्डों को जारी और सूचीबद्ध करने के लिये विस्तृत दिशा-निर्देश जारी किये, इससे उनकी नियामक स्थिति स्पष्ट हुई और इन्हें निवेशकों के लिये सुरक्षित माना गया।
- 2017 में पुणे नगर निगम ने अपनी 24x7 जल आपूर्ति परियोजना के वित्तपोषण के लिये मुनि बॉण्ड के माध्यम से 7.59% ब्याज पर 200 करोड़ रुपए जुटाए।
- देश में उस समय सबसे बड़े नगर निगम बॉण्ड कार्यक्रम से 5 साल में 2,264 करोड़ रुपये जुटाने की योजना थी।
नगर निगम बॉण्ड बाज़ार का महत्त्व:
- नगर निगम राजस्व का एकमात्र प्रमुख स्रोत संपत्ति कर होने के कारण यह बॉण्ड शहरी स्थानीय निकायों (Urban Local Bodies) को बजटीय परियोजनाओं को पूरा करने के लिये राजस्व जुटाने में मदद कर सकता है।
- भारत के बड़े शहरों और कस्बों के खराब हो रहे आधारभूत संरचना लिये नगर पालिका बॉण्ड बाज़ार का विकास किया जाना महत्त्वपूर्ण है।
- स्मार्ट शहर और अमृत जैसी केंद्रीय परियोजनाओं की सफलता के लिये भी नगर निकायों का आत्मनिर्भर होना ज़रूरी है।
निवेशकों के लिये नगर निगम बॉण्ड के लाभ:
पारदर्शिता:
- जनता को जारी किये जाने वाले नगर निगम बॉण्ड का मूल्यांकन CRISIL (Credit Rating Information Services of India Limited) जैसी प्रसिद्ध एजेंसियों द्वारा किया जाता है, जिससे निवेशकों को निवेश विकल्पों से संबंधित पारदर्शिता की सुविधा उपलब्ध हो पाती है।
कर लाभ:
- भारत में यदि निवेशक कुछ निर्धारित नियमों के अनुरूप निवेश करते हैं तो नगर निगम बॉण्ड को कराधान से छूट दी जाती है। इसके अलावा निवेश पर मिलने वाले ब्याज दरों को भी कराधान से छूट दी जाती है।
न्यूनतम जोखिम:
- नगर निगम के प्राधिकारियों द्वारा इन प्रतिभूतियों में न्यूनतम जोखिम को शामिल करने के बाद नगर निगम बॉण्ड को जारी किया जाता है।
- सरकारी बॉण्ड को आमतौर पर कम जोखिम वाले निवेश के रूप में देखा जाता है क्योंकि सरकार के ऋण के भुगतान में चूक की संभावना कम होती है।
चुनौतियाँ:
- निवेशकों के भरोसे और आत्मविश्वास में कमी: शहरी एजेंसियों की कमज़ोर वित्तीय स्थिति, खराब अभिशासन और प्रबंधन से बॉण्ड जारी करने की उनकी क्षमता सीमित हो गई है जिसने निवेशकों के भोरेसे तथा आत्मविश्वास को कम किया है।
- प्रामाणिक वित्तीय डेटा की अनुपलब्धता: प्रामाणिक वित्तीय डेटा उपलब्ध नहीं होने से निवेशकों को स्थानीय निकायों पर संदेह होने लगता है।
- अन्य मुद्दे: शहरी एजेंसियों की जवाबदेहिता और स्वायत्तता में कमी के कारण एक उचित वातावरण का अभाव बना रहता है।
आगे की राह
- कोरोना वायरस महामारी के कारण राज्य सरकारों की वित्तीय स्थिति पर काफी गंभीर प्रभाव पड़ा है, जिससे शहरी स्थानीय निकायों के वित्तपोषण में भी बाधा उत्पन्न हुई है। हालाँकि ‘आत्मनिर्भर भारत अभियान’ पैकेज के तहत राज्य सरकारों को उनके द्वारा किये गए सुधारों के आधार पर अधिक उधार प्राप्त करने की छूट देने की पेशकश की गई है।
- अभी भी अधिकांश शहरी स्थानीय निकायों के पास धन जुटाने, लेखांकन प्रणाली और विश्वसनीय परियोजनाओं को प्रभावी रूप से संचालित करने के लिये संस्थागत एजेंसी नहीं है। इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए 15वें वित्त आयोग में सूचीबद्ध सुधारों (जो शहरी स्थानीय निकायों के लिये यह अनिवार्य बनाते हैं कि वे अनुदान वितरण को अपने लेखा परीक्षण खातों के साथ जोड़ें) को लागू किया जाना चाहिये।
- ULBs की पारदर्शिता से उनकी ऋण दक्षता बढ़ेगी,साथ ही मुनि बॉण्ड के कार्यान्वयन में सुधार होगा, जिससे वे आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत बुनियादी ढाँचे के निर्माण में योगदान कर पाएंगे।
स्रोत: पी.आई.बी.
वैश्विक जलवायु स्थिति पर अनंतिम रिपोर्ट
चर्चा में क्यों?
विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) की हालिया वैश्विक जलवायु स्थिति अनंतिम रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 2020 अब तक के तीन सबसे गर्म वर्षों में से एक बनने वाला है। इसके अलावा 2011-2020 का दशक अब तक का सबसे गर्म दशक होगा।
- ध्यातव्य है कि यह केवल अनंतिम रिपोर्ट (Provisional Report) है और अंतिम रिपोर्ट (Final Report) मार्च 2021 में प्रस्तुत की जाएगी। वैश्विक तापमान में हो रही वृद्धि की गंभीरता को जाँचने के लिये प्रत्येक वर्ष वैश्विक जलवायु स्थिति का प्रकाशन किया जाता है।
- विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) संयुक्त राष्ट्र (UN) की विशिष्ट एजेंसियों में से एक है, जिसका मुख्यालय जिनेवा (Geneva) में स्थित है।
प्रमुख बिंदु
वैश्विक तापमान में वृद्धि
- अनंतिम रिपोर्ट के मुताबिक, जनवरी-अक्तूबर 2020 की अवधि में वैश्विक औसत सतह तापमान पूर्व-औद्योगिक स्तर (1850-1900) से 1.2 डिग्री सेल्सियस अधिक था।
- वैज्ञानिकों ने संभावना व्यक्त की है कि तापमान में यह अंतर वर्ष 2024 तक अस्थायी रूप से 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक हो सकता है।
- पेरिस समझौते का उद्देश्य वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को काफी हद तक कम करना है, ताकि इस सदी में वैश्विक तापमान वृद्धि को पूर्व-औद्योगिक स्तर से 2 डिग्री सेल्सियस कम रखा जा सके। इसके साथ ही आगे चलकर तापमान वृद्धि को और 1.5 डिग्री सेल्सियस तक कम रखने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
- रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2016 और वर्ष 2019 के बाद वर्ष 2020 अब तक के तीन सबसे गर्म वर्षों में से एक होगा।
- अगस्त और अक्तूबर माह में भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर में ला-नीना की स्थिति के बावजूद वर्ष 2020 में इतनी अधिक गर्मी रिकॉर्ड की गई है।
- ला-नीना, अल-नीनो दक्षिणी दोलन (ENSO) की घटना का एक चरण है जो कि सामान्य तौर पर विश्व के विभिन्न हिस्सों में ठंडा प्रभाव छोड़ता है और इससे समुद्र की सतह का तापमान बहुत अधिक बढ़ जाता है।
महासागरीय सतह का उच्च तापमान
- वर्ष 2020 में अब तक तकरीबन 80 प्रतिशत महासागरीय सतह (Ocean Surfaces) में कम-से-कम एक बार समुद्री हीट वेव (Marine Heat Wave-MHW) दर्ज की गई है।
- हीट वेव असामान्य रूप से उच्च तापमान की वह स्थिति है, जिसमें तापमान सामान्य से अधिक रहता है और यह मुख्यतः देश के उत्तर-पश्चिमी भागों को प्रभावित करता है।
- समुद्री हीट वेव (MHW) के दौरान समुद्र की सतह (300 फीट या उससे अधिक की गहराई तक) का औसत तापमान सामान्य से 5-7 डिग्री अधिक बढ़ जाता है।
- यह घटना या तो वातावरण और महासागर के बीच स्थानीय रूप से निर्मित ऊष्मा प्रवाह के कारण या अल-नीनो दक्षिणी दोलन (ENSO) के कारण हो सकती है।
- वर्ष 2020 में मज़बूत समुद्री हीट वेव (Strong MHW) की घटनाएँ अधिक (43 प्रतिशत) थीं, जबकि मध्यम समुद्री हीट वेव (Moderate MHW) की घटनाएँ तुलनात्मक रूप से कम (28 प्रतिशत) थीं।
- वर्ष 2020 में वैश्विक समुद्री स्तर की वृद्धि भी वर्ष 2019 के समान ही रही। ग्रीनलैंड और अंटार्कटिका में बर्फ का पिघलना इसका मुख्य कारण है।
कारण: वैज्ञानिक प्रमाण से पता चलता है कि वैश्विक स्तर पर लगातार तापमान में हो रही बढ़ोतरी ग्लोबल वार्मिंग का प्रत्यक्ष परिणाम है, जो कि ग्रीनहाउस गैसों (GHH) के उत्सर्जन, भूमि के उपयोग में परिवर्तन और शहरीकरण आदि का प्रभाव है।
- वर्ष 2019 में ग्रीनहाउस गैसों (GHH) के रिकॉर्ड उत्सर्जन के बाद वर्ष 2020 के शुरुआती महीनों में कोरोना वायरस महामारी से मुकाबले के लिये अपनाए गए उपायों जैसे- देशव्यापी लॉकडाउन आदि के कारण ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कुछ कमी आई थी।
- हालाँकि मौना लोआ (हवाई) और केप ग्रिम (तस्मानिया) समेत विशिष्ट स्थानों के वास्तविक समय के आँकड़ों से संकेत मिलता है कि वर्ष 2020 में कार्बन डाआक्साइड (CO2), मीथेन (CH4) और नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (N2O) के स्तर में वृद्धि जारी रही है।
वर्ष 2020 में ग्लोबल वार्मिंग का प्रभाव
- वर्ष 2020 में ग्लोबल वार्मिंग के प्रभावस्वरूप उष्णकटिबंधीय चक्रवातों, बाढ़, भारी वर्षा और सूखे जैसी मौसमी घटनाओं ने दुनिया के अधिकांश हिस्सों को प्रभावित किया है, साथ ही इस वर्ष वनाग्नि की घटनाओं में भी बढ़ोतरी देखने को मिली है।
- अटलांटिक हरिकेन मौसम: वर्ष 2020 में अटलांटिक हरिकेन मौसम में जून से नवंबर माह तक 30 तूफान आए हैं, जो कि अब तक की सबसे अधिक संख्या है। अटलांटिक हरिकेन मौसम की अवधि 1 जून से 30 नवंबर के मध्य होती है।
- भारी वर्षा: एशिया और अफ्रीका के कई हिस्सों में भारी वर्षा और बाढ़ की घटनाएँ दर्ज की गईं।
- सूखा: इस वर्ष दक्षिण अमेरिका में गंभीर सूखे का अनुभव किया गया और उत्तरी अर्जेंटीना, ब्राज़ील एवं पराग्वे के पश्चिमी क्षेत्र इससे सबसे अधिक प्रभावित हुए।
- समुद्र स्तर में बढ़ोतरी: बर्फ के पिघलने से समुद्र स्तर में वृद्धि हुई है, जो कि छोटे द्वीप राष्ट्रों के अस्तित्त्व के लिये एक गंभीर चिंता का विषय बन गया है।
- यदि सदी के अंत तक समुद्र स्तर में इसी तरह की वृद्धि जारी रहती है तो इसके कारण ये छोटे द्वीप राष्ट्र समुद्र में डूब जाएंगे और वहाँ रहने वाली आबादी बेघर हो जाएगी।
- मानवता को नुकसान
- जनसंख्या की आवाजाही में वृद्धि: तापमान में हो रही वृद्धि ने न केवल लोगों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने के लिये मजबूर किया है, बल्कि इसके कारण पलायन करने वाले लोगों की चुनौतियाँ भी काफी बढ़ गई हैं।
- कृषि क्षेत्र को नुकसान: इस वर्ष अकेले ब्राज़ील में 3 बिलियन अमेरिकी डॉलर का कृषि घाटा दर्ज किया गया है।
- जान-माल और आजीविका का नुकसान: तापमान में लगातार हो रही बढ़ोतरी के कारण अफ्रीका और एशिया के विभिन्न देशों को काफी अधिक जान-माल एवं आजीविका के नुकसान का सामना करना पड़ा है।
आगे की राह
- आवश्यक है कि पर्यावरणीय मुद्दों को राष्ट्रीय और रणनीतिक हित अथवा आर्थिक हित जैसे मुद्दों की तुलना में अधिक वरीयता दी जाए।
- संयुक्त राष्ट्र के आकलन के मुताबिक, पेरिस समझौते के लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये सभी देशों को अपने गैस, तेल और कोयले के उत्पादन में प्रतिवर्ष छह प्रतिशत की गिरावट करनी होगी।
- ग्रीनहाउस गैसों (GHH) के उत्सर्जन और ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव को कम करने के लिये हमें पेरिस समझौते के तहत उल्लिखित राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित अंशदान (INDC) से कहीं अधिक प्रतिबद्धता की आवश्यकता है।
- हालाँकि इसका उपयोग विकासशील देशों पर उनके ग्लोबल वार्मिंग से संबंधित लक्ष्यों को पूरा करने के लिये दबाव डालने हेतु नहीं किया जाना चाहिये।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
शहद में मिलावट
चर्चा में क्यों?
विज्ञान और पर्यावरण केंद्र (Centre for Science and Environment) द्वारा की गई एक जाँच से भारत में कई प्रमुख ब्रांडों द्वारा बेचे जाने वाले शहद में चीनी के सिरप की मिलावट के बारे में पता चला है।
- CSE एक गैर-लाभकारी संगठन है, जो कि मुख्यतः सार्वजनिक हित के विषयों पर अनुसंधान करता है।
प्रमुख बिंदु
जाँच- परिणाम:
- विज्ञान और पर्यावरण केंद्र (CSE) द्वारा किये गए परमाणु चुंबकीय अनुनाद (Nuclear Magnetic Resonance) परीक्षण में 13 में से 10 ब्रांडों के नमूने फेल हो गए।
- अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृत परमाणु चुंबकीय अनुनाद (NMR) परीक्षण में डाबर, पतंजलि, बैद्यनाथ, हितकारी और एपिस हिमालय जैसे भारत के ब्रांडों के शहद के नमूने फेल हो गए।
- परीक्षण के मुताबिक, शहद का कारोबार करने वाली भारतीय कंपनियाँ शहद में मिलावट के लिये चीन से संश्लेषित चीनी सिरप (Sugar Syrups) का आयात कर रही हैं।
- CSE ने अपनी जाँच में चीन के ऐसे कई वेब पोर्टल्स का पता लगाया जो फलों के रस से निर्मित ऐसे चीनी सिरप का प्रचार कर रहे थे, जिसे मिलावट के परीक्षण के दौरान पकड़ना काफी मुश्किल होता है।
- चीन की कंपनियों ने CSE को सूचित किया कि भले ही शहद में 50 से 80 प्रतिशत तक मिलावट क्यों न की जाए वह शहद फिर भी भारतीय नियमों के तहत निर्धारित मानकों पर खरा उतरेगा और परीक्षण में सफल हो जाएगा।
- मौजूदा भारतीय नियमों के मुताबिक, शहद के परीक्षण के दौरान यह जाँच की जाती है कि शहद में C4 चीनी (गन्ने से प्राप्त चीनी) या C3 चीनी (चावल से प्राप्त चीनी) के साथ मिलावट की गई है अथवा नहीं।
- ज्ञात हो कि इस प्रकार की मिलावट ने उन मधुमक्खी पालकों की आजीविका को भी नष्ट कर दिया जो शुद्ध शहद बनाते हैं, क्योंकि चीनी-सिरप शहद प्रायः आधे मूल्य पर उपलब्ध हो जाता है।
प्रभाव:
- रोगाणुरोधी और सूजनरोधी (Antimicrobial and Antiinflammatory) गुण के कारण लोगों द्वारा शहद का अधिक सेवन किया जाता है।
- इस जाँच के अनुसार, बाज़ार में बिकने वाले अधिकांश शहद में चीनी की मिलावट की जाती है। इसलिये शहद के बजाय लोग अधिक चीनी खा रहे हैं, जो कोविड-19 के जोखिम के साथ ही मोटापे के को भी बढ़ाएगा।
परमाणु चुंबकीय अनुनाद
- यह एक ऐसा परीक्षण है जो आणविक स्तर पर किसी उत्पाद की संरचना का पता लगा सकता है।
- यह रसायन विज्ञान की एक विश्लेषणात्मक तकनीक है जिसका उपयोग नमूने की सामग्री और शुद्धता के साथ-साथ इसकी आणविक संरचना को निर्धारित करने तथा गुणवत्ता नियंत्रण और अनुसंधान में किया जाता है।
- भारतीय कानून के तहत ऐसे शहद के लिये NMR परीक्षण आवश्यक नहीं है जिसका विपणन स्थानीय स्तर पर किया जाता है, लेकिन निर्यात के मामले में यह परीक्षण आवश्यक है।
- हाल के NMR परीक्षण योगज (Additive) का पता लगाने में सक्षम होने के बावजूद मिलावट की मात्रा का पता लगाने में असफल रहे।
आगे की राह
- सुदृण मानकों, परीक्षण और ट्रेसबिलिटी के माध्यम से भारत में इसके प्रवर्तन को मज़बूत करने की आवश्यकता है।
- सरकार को उन्नत तकनीकों का उपयोग कर नमूनों का परीक्षण करवाना चाहिये और इस जानकारी को सार्वजनिक करना चाहिये ताकि उपभोक्ता जागरूक हों और उनके स्वास्थ्य को नुकसान न हो।
- चीन से शुगर सिरप और शहद का आयात बंद कर देना चाहिये तथा अन्य देशों (सिरप लॉन्ड्रिंग) के माध्यम से भी इसके आयात की अनुमति नहीं दी जानी चाहिये।
- आवश्यक है कि कंपनियों द्वारा शहद के पारंपरिक स्रोतों जैसे- मधुमक्खी पालन आदि के माध्यम से शहद की प्राप्ति पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिये, जिससे मधुमक्खी पालकों को भी लाभ प्राप्त होगा और इस क्षेत्र को एक नया स्वरूप दिया जा सकेगा।
स्रोत: द हिंदू
न्यूनतम समर्थन मूल्य और उसका निर्धारण
चर्चा में क्यों?
पंजाब और हरियाणा समेत देश भर के विभिन्न राज्यों के किसानों द्वारा राजधानी दिल्ली की सीमाओं पर हालिया कृषि कानूनों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया जा रहा है। प्रदर्शनकारी किसानों की प्रमुख मांगों में से एक मांग यह है कि सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) प्रणाली को लेकर लिखित गारंटी प्रदान करे, जो उन्हें उनकी फसलों के लिये निश्चित मूल्य का आश्वासन देती है।
- किसानों द्वारा हाल ही में अधिनियमित तीन कृषि कानूनों और विद्युत (संशोधन) विधेयक 2020 के खिलाफ प्रदर्शन किया जा रहा है।
प्रमुख बिंदु
न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP)
- न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) किसी भी फसल का वह ‘न्यूनतम मूल्य’ होता है, जिसे सरकार द्वारा किसानों के पारिश्रमिक के तौर पर स्वीकार किया जाता है।
- इस तरह ‘न्यूनतम समर्थन मूल्य’ कृषि मूल्य में किसी भी प्रकार की तीव्र गिरावट के खिलाफ कृषि उत्पादकों को सुरक्षा प्रदान करने हेतु भारत सरकार द्वारा अपनाई जाने वाली बाज़ार हस्तक्षेप की एक प्रणाली है।
- यह किसी भी फसल की वह कीमत होती है, जो कि सरकारी एजेंसी द्वारा फसल की खरीद करते समय भुगतान की जाती है।
- वित्तीय वर्ष 2018-19 के केंद्रीय बजट में सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) को किसानों की उत्पादन लागत का डेढ़ गुना करने की घोषणा की थी।
किन फसलों पर दिया जाता है MSP
- ‘कृषि लागत और मूल्य आयोग’ द्वारा सरकार को 22 अधिदिष्ट फसलों (Mandated Crops) के लिये ‘न्यूनतम समर्थन मूल्य’ (MSP) तथा गन्ने के लिये 'उचित और लाभकारी मूल्य' (FRP) की सिफारिश की जाती है।
- कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (CACP): यह भारत सरकार के कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय का एक संलग्न कार्यालय है।
- यह जनवरी 1965 में अस्तित्त्व में आया था।
- यह एक सलाहकारी निकाय है, जिसकी सिफारिशें सरकार के लिये बाध्यकारी नहीं हैं।
- कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (CACP): यह भारत सरकार के कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय का एक संलग्न कार्यालय है।
- अधिदिष्ट फसलों में 14 खरीफ की फसलें, 6 रबी फसलें और दो अन्य वाणिज्यिक फसलें शामिल हैं।
- इसके अलावा तोरिया (लाही) और नारियल के न्यूनतम समर्थन मूल्यों (MSPs) का निर्धारण क्रमशः सरसों और सूखे नारियल के न्यूनतम समर्थन मूल्यों (MSPs) के आधार पर किया जाता है।
- फसलों की सूची:
- अनाज (7): धान, गेहूँ, जौ, ज्वार, बाजरा, मक्का और रागी
- दाल (5): चना, अरहर, मूँग, उड़द और मसूर की दाल
- तिलहन (8): मूँगफली, सरसों, तोरिया (लाही), सोयाबीन, सूरजमुखी के बीज, तिल, कुसुम का बीज, रामतिल का बीज
- कच्ची कपास, कच्चा जूट, नारियल, सूखा नारियल
- गन्ना (उचित और लाभकारी मूल्य)
- न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) का निर्धारण करते समय कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (CACP) द्वारा खेती की लागत समेत विभिन्न कारकों पर विचार किया जाता है।
- आयोग द्वारा खेती की लागत के अलावा उत्पाद की मांग और आपूर्ति, घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार मूल्य रुझान, उपभोक्ता के लिये मूल्य के निहितार्थ (मुद्रास्फीति), वातावरण (मिट्टी और पानी का उपयोग) तथा कृषि एवं गैर-कृषि क्षेत्रों के बीच व्यापार की शर्तों आदि पर भी विचार किया जाता है।
वर्ष 2018-19 के केंद्रीय बजट में परिवर्तन
- वर्ष 2018-19 के बजट में तत्कालीन वित्त मंत्री ने कहा था कि एक ‘पूर्व निर्धारित सिद्धांत’ के रूप में न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP), फसलों की उत्पादन लागत से डेढ़ गुना अधिक तय किया जाएगा।
- इस तरह कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (CACP) का कार्य अब केवल एक सीज़न के लिये फसल के उत्पादन लागत का अनुमान लगाना और 1.5 गुना फॉर्मूला लागू करके MSPs की सिफारिश करना है।
उत्पादन लागत निर्धारण का तरीका
- कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (CACP) द्वारा ज़मीनी स्तर पर सर्वेक्षण के माध्यम से फसल की उत्पादन लागत का निर्धारण नहीं किया जाता है।
- बल्कि आयोग फसलों की उत्पादन लागत का निर्धारण करने के लिये कृषि मंत्रालय के तहत आर्थिक एवं सांख्यिकी निदेशालय द्वारा प्रदान किये गए राज्य-वार और फसल-विशिष्ट उत्पादन लागत अनुमानों से संबंधित आँकड़ों का प्रयोग किया जाता है।
- हालाँकि ये आँकड़े तीन वर्ष के अंतराल पर ही उपलब्ध हो पाते हैं।
- CACP द्वारा राज्य और अखिल भारतीय दोनों स्तरों पर प्रत्येक फसल के लिये तीन प्रकार की उत्पादन लागतों का अनुमान लगाया जाता है।
- ‘A2’
- इसके तहत किसान द्वारा बीज, उर्वरकों, कीटनाशकों, श्रम, पट्टे पर ली गई भूमि, ईंधन, सिंचाई आदि पर किये गए प्रत्यक्ष खर्च को शामिल किया जाता है।
- ‘A2+FL’
- इसके तहत ‘A2’ के साथ-साथ अवैतनिक पारिवारिक श्रम का एक अधिरोपित मूल्य शामिल किया जाता है।
- ‘C2’
- यह एक अधिक व्यापक अवधारणा है क्योंकि इसके अंतर्गत ‘A2+FL’ में किसान की स्वामित्त्व वाली भूमि और अचल संपत्ति के किराए तथा ब्याज को भी शामिल किया जाता है।
- ‘A2’
मूल्य निर्धारण से संबंधित मुद्दे:
- वर्ष 2018-19 के केंद्रीय बजट भाषण में सरकार ने उस उत्पादन लागत को निर्दिष्ट नहीं किया था, जिस पर 1.5 गुना फाॅर्मूला की गणना की जानी थी।
- CACP की ‘खरीफ फसलों के लिये मूल्य नीति: विपणन सत्र 2018-19’ रिपोर्ट में कहा गया था कि उसकी सिफारिशें ‘A2+FL’ लागत पर आधारित हैं।
- विरोध प्रदर्शन कर रहे किसानों की मांग है कि कृषि वैज्ञानिक एम.एस. स्वामीनाथन की अध्यक्षता वाले राष्ट्रीय किसान आयोग द्वारा अनुशंसित 1.5 गुना MSP फॉर्मूला ‘C2’ लागतों पर लागू किया जाना चाहिये।
- सरकार का पक्ष
- कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (CACP) एक व्यापक तरीके से सभी लागतों पर विचार करता है, जो कि समय-समय पर विशेषज्ञ समितियों द्वारा सुझाई गई पद्धति पर आधारित होती है।
- न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की सिफारिश करते समय CACP द्वारा ‘A2+FL’ और ‘C2’ दोनों लागतों पर विचार किया जाता है।
- कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (CACP) द्वारा ‘A2+FL’ लागत पर MSP की गणना प्रतिफल के लिये की जाती है, जबकि ‘C2’ लागत पर MSP की गणना बेंचमार्क लागत के लिये की जाती है।