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मानसूनी वर्षा की मात्रा में विविधता

  • 01 Nov 2019
  • 13 min read

प्रीलिम्स के लिये:

भारतीय मानसून को प्रभावित करने वाले कारक, अल-नीनो, हिंद महासागर द्विध्रुव

मेन्स के लिये:

भारतीय मानसून को प्रभावित करने वाले कारक, पूर्वानुमान से संबंधित मुद्दे, अल-नीनो और हिंद महासागर द्विध्रुव के विकसित होने की प्रक्रिया, दशाएँ एवं भारतीय मानसून पर इनका प्रभाव

चर्चा में क्यों?

जून के महीने में कम वर्षा के बाद अगस्त और सितंबर महीने में मौसम वैज्ञानिकों के पूर्वानुमानों के विपरीत भारी वर्षा हुई।

महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • इस वर्ष के मानसून में जून माह की सामान्य औसत वर्षा में 30% की कमी देखी गई, इसके विपरीत पूरे मानसून में औसतन 10% अधिक वर्षा हुई। इस प्रकार की घटना वर्ष 1931 के बाद पहली बार देखी गई है।
  • सितंबर महीने की वर्षा की औसत दीर्घावधि (Long Period Average- LPA) 152%, वर्ष 1917 के बाद सबसे अधिक और अगस्त की वर्षा का LPA 115%, वर्ष 1996 के बाद सबसे अधिक था। इसके अतिरिक्त समग्र मानसूनी वर्षा का LPA 110%,वर्ष 1994 के बाद सबसे अधिक रहा।
  • सितंबर के पहले सप्ताह के अंत में भारत के मौसम विभाग ने यह बताया था कि इस मानसूनी वर्ष में वर्षा LPA के 96-104% तक होगी।
  • भारत में मानसूनी वर्षा को प्रभावित करने वाले कारकों में से एक प्रशांत क्षेत्र का अल-नीनो दक्षिणी दोलन (El Nino Southern Oscillation- ENSO) इस वर्ष सामान्य रहा, इसके बाद भी भारत में हुई अप्रत्याशित वर्षा के कारणों की मौसम वैज्ञानिक जाँच कर रहे हैं।

हिंद महासागर द्विध्रुव

(Indian Ocean Dipole- IOD)

  • हिंद महासागर द्विध्रुव अल-नीनो के समान ही एक महासागर-वायुमंडल अंतर्संबंध (Ocean-Atmosphere Interaction) की परिघटना है।
  • IOD पश्चिमी हिंद महासागर (अरब सागर) और पूर्वी हिंद महासागर (इंडोनेशियाई तट का दक्षिण भाग) के समुद्र सतह के तापमान में अंतर के कारण उत्पन्न होता है।
  • इस परिघटना में पश्चिमी हिंद महासागर का जल पूर्वी हिंद महासागर की तुलना में गर्म होता है तो इसे सकारात्मक IOD और इसकी विपरीत स्थिति को नकारात्मक IOD कहते हैं।
  • भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर में अल-नीनो के समान ही IOD भी मौसम और जलवायु की घटनाओं को प्रभावित करता है, हालाँकि इसका प्रभाव कमज़ोर होता है क्योंकि हिंद महासागर का क्षेत्रफल प्रशांत महासागर की तुलना में कम है, इसके अतिरिक्त हिंद महासागर प्रशांत महासागर की तुलना में उथला भी है।
  • IOD भी भारतीय मानसून को प्रभावित करता है। सकारात्मक IOD के दौरान मानसून की वर्षा पर सकारात्मक और नकारात्मक IOD के दौरान मानसून की वर्षा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

इस वर्ष की असामान्य वर्षा:

  • इस वर्ष IOD की शुरुआत जून के आसपास हुई और यह अगस्त के बाद अधिक मज़बूत हुआ। इस वर्ष का IOD सामान्य से कुछ अधिक मज़बूत था।
  • IOD के रिकॉर्ड बहुत पुराने नहीं हैं। ऑस्ट्रेलियाई मौसम ब्यूरो के अनुसार इसकी सटीक माप वर्ष 1960 के बाद से उपलब्ध है। वर्तमान वर्ष में IOD + 2.15°C (सकारात्मक) के स्तर पर रहा जो वर्ष 2001 के बाद से सबसे अधिक मज़बूत है।
  • इस प्रकार IOD के इस परिवर्तन को अभी तक मौसम वैज्ञानिक भारत में इस वर्ष की अप्रत्याशित वर्षा हेतु एक संभावना मान रहे हैं क्योंकि पिछले वर्षों में सकारात्मक IOD की स्थिति में मानसून में उच्च वर्षा हुई थी।
  • वर्तमान वर्ष के पहले वर्ष 1997 और वर्ष 2006 में सकारात्मक IOD की स्थिति देखी गई थी, दोनों ही वर्षों में भारत में दक्षिण-पश्चिम मानसून की वर्षा सामान्य से अधिक देखी गई थी।

इस वर्ष का पूर्वानुमान:

  • वास्तव में भारतीय मानसून की वर्षा पर IOD के प्रभाव को पूरी तरह से समझा नहीं गया है। मौसम पूर्वानुमान का गलत होना इसका एक कारण हो सकता है।
  • सामान्यतः यहाँ माना जाता है कि अल-नीनो की तुलना में IOD का प्रभाव भारत की वर्षा पर कम पड़ता है लेकिन इस मत को भी लेकर कोई विशिष्ट अध्ययन उपलब्ध नहीं है।
  • IOD सामान्यतः मानसूनी वर्षा के उत्तरार्द्ध यानि अगस्त और सितंबर में विकसित होता है एवं मौसम वैज्ञानिकों के अनुसार, इस संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है कि मानसून IOD की उत्पत्ति में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
  • इस वर्ष सुमात्रा तट (पूर्वी हिंद महासागर) पर ठंडी हवाओं की उपस्थिति के कारण समुद्री सतह का तापमान सामान्य से कम रहा परंतु अरब सागर (पश्चिमी हिंद महासागर) में तापमान सामान्य देखा गया था। इस कारण से भी मौसम वैज्ञानिकों द्वारा व्यक्त किये गए पूर्वानुमान सटीक नहीं रहे।
  • ऑस्ट्रेलियाई मौसम विज्ञान ब्यूरो के अनुसार, वर्ष 1960 के बाद से अब तक मात्र 10 बार मज़बूत सकारात्मक IOD की घटनाएँ हुई हैं। इनमें से चार वर्षों में मानसूनी वर्षा में कमी, चार वर्षों में वृद्धि और शेष दो वर्षों में सामान्य वर्षा की प्रवृत्ति देखी गई थी।

दीर्घावधिक औसत

(Long Period Average- LPA)

  • LPA दक्षिण-पश्चिम मानसून के दौरान पूरे देश में 50 वर्ष की अवधि की औसत वर्षा है।
  • वर्तमान में भारत का LPA 89 सेमी. है जो वर्ष 1951-2000 की अवधि की औसत वर्षा पर आधारित है।
  • यह एक मानदंड के रूप में कार्य करता है जिसके आधार पर किसी भी मानसून के मौसम में वर्षा को मापा जाता है।
  • मौसम वैज्ञानिकों के अनुसार, देश में अगर किसी वर्ष वर्षा का LPA 90% से कम है तो वर्षा को औसत से कम माना जाता है इसके विपरीत LPA के 110% होने की स्थिति में औसत वर्षा से अधिक वर्षा की स्थिति होती है।
  • इस प्रकार अगर किसी वर्ष वर्षा का प्रतिशत LPA से अधिक होता है तो अधिक वर्षा और यदि वर्षा का प्रतिशत LPA से कम होता है तो कम वर्षा मानी जाती है।
  • भारत में मानसूनी वर्षा का LPA सामान्यतः 96-104 % के बीच होता है।

LPA का महत्त्व:

  • इसके माध्यम से 50 वर्षों की औसत वर्षा का उपयोग किया जाता है क्योंकि भारत की वार्षिक वर्षा में अत्यधिक परिवर्तनशीलता होती है।
  • भारत की मानसूनी वर्षा पर प्रत्येक तीन या चार वर्षों में एक बार अल-नीनो और ला-नीना जैसी मौसमी घटनाओं का प्रभाव देखा जाता है।
  • प्रशांत महासागर के जल की सतह के असामान्य तापमान से व्युत्पन्न अल-नीनो और ला-नीना जैसी मौसमी घटनाओं के कारण भारत में भयंकर सूखे, बाढ़ एवं तूफानों की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
  • LPA के माध्यम से भारतीय मौसम विभाग का वर्षा का पूर्वानुमान कई बार गलत भी हो जाता है जैसे वर्ष 2013 में सामान्य वर्षा की भविष्यवाणी की गई थी लेकिन वास्तविक वर्षा LPA के स्तर से 106% रही जो सामान्य वर्षा के औसत से काफी ऊपर है।
  • LPA के माध्यम से वर्षा के कई पूर्वानुमान गलत तो साबित हुए हैं लेकिन इस प्रकार के पूर्वानुमानों से सरकार और किसानों को बेहतर रणनीति बनाने में सहायता मिलती है सरकार इसके माध्यम से सूखा या बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों के लिये सुरक्षात्मक दृष्टिकोण अपनाते हुए बेहतर तैयारियाँ कर सकती है।

भारतीय मौसम विभाग द्वारा वर्षा आँकड़ों का संग्रहण:

  • भारतीय मौसम विभाग द्वारा एकत्र वर्षा के आँकड़े 3,500 रेन-गेज स्टेशनों के माध्यम से 2,412 स्थलों पर दर्ज किये गए वास्तविक वर्षा पर आधारित हैं।
  • इन रेन-गेज स्टेशनों से प्राप्त दैनिक वर्षा के आँकड़ों के आधार पर, मानसून के आँकड़े प्रशासनिक क्षेत्रों जैसे- ज़िलों, राज्यों और देश के लिये तैयार किये जाते हैं।
  • ये आँकड़े 36 मौसम संबंधी उपखंडों, चार व्यापक क्षेत्रों- दक्षिण प्रायद्वीप, उत्तर-पश्चिम भारत, मध्य भारत एवं उत्तर-पूर्व भारत से प्राप्त आँकड़ों के संकलन के बाद समग्र देश के स्तर पर जारी किये जाते हैं।

वर्षा का क्षेत्रवार विवरण:

  • देशव्यापी आँकड़े के समान ही भारतीय मौसम विभाग देश के प्रत्येक सजातीय क्षेत्रों (Homogeneous Regions) के लिये एक स्वतंत्र LPA जारी करता है इन क्षेत्रों का औसत 71.6-143.83 सेमी. के मध्य होता है।
  • क्षेत्रवार LPA के आँकड़े इस प्रकार हैं-
    • पूर्व और पूर्वोत्तर भारत के लिये 143.83 सेमी.
    • मध्य भारत के लिये 97.55 सेमी.
    • दक्षिण प्रायद्वीपीय भारत के लिये 71.61 सेमी.
    • उत्तर-पश्चिम भारत के लिये 61.50
  • मानसून के सीज़न में LPA के माहवार आँकड़े इस प्रकार हैं-
    • जून 16.36 सेमी.
    • जुलाई 28.92 सेमी.
    • अगस्त 26.13 सेमी.
    • सितंबर 17.34 सेमी.
  • किसी क्षेत्र की औसत वर्षा के लिये उन क्षेत्रों की सामान्य वर्षा का पिछले 50 वर्षों की वर्षा के आँकड़ों के साथ तुलना की जाती है। इस प्रकार प्राप्त आँकड़ों के आउटपुट के अनुसार, वर्षा के स्तर को श्रेणीबद्ध किया जाता है।
  • भारतीय मौसम विभाग के अनुसार भारत में सामान्य वर्षा प्रतिरूप के आधार पर निम्न श्रेणियों में विभाजित किया गया है-
    • सामान्य या निकट सामान्य (Normal or Near Normal): वास्तविक वर्षा सामान्य LPA से +/- 10% या 96-104%।
    • सामान्य से नीचे (Below Normal) : वास्तविक वर्षा सामान्य LPA से 10% कम या 90-96%।
    • सामान्य से ऊपर (Above Normal): वास्तविक वर्षा 104-110% के मध्य।
    • कमी (Deficient): वास्तविक वर्षा 90% से कम।
    • अतिरिक्त (Excess): वास्तविक वर्षा 110% से अधिक।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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