भारतीय अर्थव्यवस्था
वैश्विक नवाचार सूचकांक- 2020
प्रिलिम्स के लियेवैश्विक नवाचार सूचकांक- 2020, विश्व बौद्धिक संपदा संगठन मेन्स के लियेदेश के विकास में नवाचार की भूमिका और वैश्विक नवाचार सूचकांक- 2020 संबंधी मुख्य बिंदु |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में जारी वैश्विक नवाचार सूचकांक- 2020 (Global Innovation Index-GII) में भारत को 48वाँ स्थान प्राप्त हुआ है, जिससे भारत पहली बार वैश्विक नवाचार सूचकांक (GII) में शीर्ष 50 देशों के समूह में शामिल हो गया है।
प्रमुख बिंदु
- विश्व बौद्धिक संपदा संगठन (World Intellectual Property Organization-WIPO) द्वारा जारी वैश्विक नवाचार सूचकांक का यह 13वाँ संस्करण है।
- वैश्विक नवाचार सूचकांक- 2020 में स्विट्ज़रलैंड को पहला स्थान प्राप्त हुआ है, जबकि स्वीडन और अमेरिका को क्रमशः दूसरा और तीसरा स्थान प्राप्त हुआ है। वहीं ब्रिटेन और नीदरलैंड इस सूचकांक में क्रमशः चौथे और पाँचवे स्थान पर मौजूद हैं।
- शीर्ष 10 स्थानों पर उच्च आय वाले देशों के वर्चस्व है।
- आय समूह के आधार पर शीर्ष 3 नवाचार अर्थव्यवस्थाओं में शामिल हैं:
- हाई इनकम: स्विट्ज़रलैंड, स्वीडन और अमेरिका
- अपर मिडिल इनकम: चीन, मलेशिया, बुल्गेरिया
- लोअर मिडिल इनकम: वियतमान, यूक्रेन, इंडिया
- लो इनकम: तंज़ानिया, रवांडा, नेपाल
- इस सूचकांक में चीन को 14वाँ, नेपाल को 95वाँ, श्रीलंका को 101वाँ, पाकिस्तान को 107वाँ, बांग्लादेश को 116वाँ और म्याँमार को 129वाँ स्थान प्राप्त हुआ है।
- 131 देशों के इस सूचकांक में सबसे अंतिम स्थान यमन को प्राप्त है।
भारत के संदर्भ में
- भारत ने बीते एक दशक में देश के नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र के निर्माण में महत्त्वपूर्ण प्रगति हासिल की है। लगभग 50000 स्टार्ट-अप्स के साथ भारत, अमेरिका और ब्रिटेन के बाद विश्व की तीसरी सबसे बड़ी स्टार्ट-अप अर्थव्यवस्था है।
- इस वर्ष वैश्विक नवाचार सूचकांक (GII) में भारत की रैंकिंग में 4 स्थानों का सुधार हुआ है और बीते वर्ष 2019 की रैंकिंग में भारत को 52वाँ स्थान प्राप्त हुआ था।
- ध्यातव्य है कि वर्ष 2015 में इस सूचकांक में भारत को 81वाँ स्थान प्राप्त हुआ था।
- रिपोर्ट के अनुसार, लोअर मिडिल इनकम समूह में भारत नवाचार के क्षेत्र में कार्य करने वाला तीसरा सबसे बेहतरीन देश बन गया है, इस प्रकार बीते कुछ वर्षों में नवाचार के संदर्भ में भारत की स्थिति में काफी सुधार हुआ है।
- भारत, सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी (ITC) सेवाओं के निर्यात, सरकारी ऑनलाइन सेवाओं और विज्ञान एवं इंजीनियरिंग में स्नातक जैसे नवाचार संकेतकों में शीर्ष 10 देशों में शामिल है।
- भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) और भारतीय विज्ञान संस्थान-बंगलूरू (IIS-Bengaluru) जैसे उच्च शिक्षण संस्थानों द्वारा प्रकाशित वैज्ञानिक अध्ययनों का ही नतीजा है कि भारत लोअर मिडिल इनकम वाले समूह में उच्चतम नवाचार गुणवत्ता वाला देश है।
- इस संबंध में विश्व बौद्धिक संपदा संगठन (WIPO) द्वारा जारी आधिकारिक सूचना के अनुसार, भारत सरकार के तहत आने वाले विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग, जैव प्रौद्योगिकी विभाग और अंतरिक्ष विभाग जैसे निकायों ने राष्ट्रीय नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र को समृद्ध बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
वैश्विक नवाचार सूचकांक (GII)
- वैश्विक नवाचार सूचकांक (GII) की शुरुआत वर्ष 2007 में ऐसे तरीकों को खोजने के उद्देश्य से हुई थी, जो समाज में नवाचार की समृद्धि को बेहतर ढंग से समझाने में समर्थ हों।
- वैश्विक नवाचार सूचकांक (GII) का प्रकाशन प्रत्येक वर्ष कॉर्नेल यूनिवर्सिटी (Cornell University), इन्सीड बिज़नेस स्कूल (INSEAD Business School) और संयुक्त राष्ट्र के विश्व बौद्धिक संपदा संगठन (WIPO) द्वारा किया जाता है।
- इस सूचकांक के अंतर्गत विश्व के तमाम देशों की अर्थव्यवस्थाओं को नवाचार क्षमता और परिणामों के आधार पर रैंकिंग दी जाती है।
- महत्त्व
- विभिन्न देशों के नीति निर्माता अपनी आर्थिक नीति के निर्माण के लिये नवाचार को भी एक कारक के रूप में देखते हैं।
- वैश्विक नवाचार सूचकांक (GII) विभिन्न अर्थव्यवस्थाओं को उनके नवाचार प्रदर्शन का आकलन करने की अनुमति देता है और साथ ही प्रदर्शन में सुधार करने के लिये एक प्रतिस्पर्द्धी माहौल भी तैयार करता है।
आगे की राह
- विश्व बौद्धिक संपदा संगठन (WIPO) द्वारा जारी रिपोर्ट में नीति आयोग द्वारा बीते वर्ष जारी भारत नवाचार सूचकांक को देश के सभी राज्यों में नवाचार के विकेंद्रीकरण की दिशा में एक प्रमुख कदम के रूप में व्यापक तौर पर स्वीकार किया गया है।
- भारत को वैश्विक नवाचार सूचकांक में अपनी रैंकिंग में सुधार लाने के लिये ऊँचे लक्ष्य के साथ अपने प्रयास बढ़ाने की आवश्यकता है।
- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा निर्धारित ‘आत्मनिर्भर भारत’ के लक्ष्य को तभी पूरा किया जा सकता है, जब भारत अपनी स्थिति को बेहतर करते हुए वैज्ञानिक हस्तक्षेपों को विकसित करने में वैश्विक महाशक्तियों के साथ प्रतिस्पर्द्धा करेगा।
- अतः आवश्यक है कि भारत के नीति-निर्माता देश में नवाचार को लेकर उल्लेखनीय बदलाव लाने का प्रयास करें और अगले वैश्विक नवाचार सूचकांक में शीर्ष 25 देशों में शामिल होने का लक्ष्य निर्धारित किया जाए।
स्रोत: बिज़नेस स्टैंडर्ड
भारतीय राजनीति
मानसून सत्र में 'प्रश्नकाल' और 'शून्यकाल' पर प्रतिबंध
प्रिलिम्स के लिये:प्रश्नकाल और शून्यकाल मेन्स के लिये:प्रश्नकाल और शून्यकाल का महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में लोकसभा और राज्यसभा के सचिवों ने अधिसूचित किया है कि COVID-19 महामारी के चलते संसद के मानसून सत्र के दौरान 'प्रश्नकाल' नहीं होगा तथा 'शून्यकाल' प्रतिबंधों के साथ दोनों सदनों में होगा।
प्रमुख बिंदु:
- ये अधिसूचनाएँ 14 सितंबर से 1 अक्तूबर के बीच लागू रहेगी।
- विपक्षी सांसदों ने इस कदम की आलोचना करते हुए कहा है कि इससे वे सरकार से प्रश्न करने का अधिकार खो देंगे।
प्रश्नकाल:
- संसदीय प्रक्रिया नियमों में प्रश्नकाल उल्लिखित नहीं है।
- संसदीय कार्यवाही का पहला एक घंटा प्रश्नकाल के लिये निर्धारित होता है। इस अवधि के दौरान संसद सदस्यों द्वारा मंत्रियों से प्रश्न पूछे जाते हैं। मंत्री सामान्यत: इन प्रश्नों का उत्तर देते हैं।
- वर्ष 1991 के बाद से प्रश्नकाल के प्रसारण के साथ, प्रश्नकाल संसदीय कार्यप्रणाली का सबसे महत्त्वपूर्ण साधन बन गया है।
- ‘प्रश्नकाल’ में पूछे गए प्रश्न निम्नलिखित श्रेणी के होते हैं:
तारांकित प्रश्न:
- ऐसे प्रश्नों का उत्तर मंत्री द्वारा मौखिक रूप में दिया जाता है एवं इन प्रश्नों पर अनुपूरक प्रश्न पूछे जाने की अनुमति होती है।
अतारांकित प्रश्न:
- ऐसे प्रश्नों का उत्तर मंत्री द्वारा लिखित रूप में दिया जाता है एवं इन प्रश्नों पर अनुपूरक प्रश्न पूछने का अवसर नहीं मिलता है।
अल्पसूचना प्रश्न:
- इस प्रकार के प्रश्नों को कम-से-कम 10 दिन का पूर्व नोटिस देकर पूछा जाता है, तथा प्रश्नों का उत्तर मंत्री द्वारा मौखिक रूप से दिया जाता है।
शून्यकाल:
- संसदीय प्रक्रिया नियमों में प्रश्नकाल के समान ‘शून्यकाल’ भी उल्लिखित नहीं है।
- यह संसदीय कार्यप्रणाली का अनौपचारिक साधन है, संसद सदस्य बिना किसी पूर्व सूचना के किसी भी मामले को उठा सकते हैं।
- शून्यकाल का समय प्रश्नकाल के तुरंत बाद अर्थात दोपहर 12 बजे से 1 बजे तक होता होता है।
- संसदीय प्रक्रिया में यह ‘नवाचार’ भारत की देन है।
प्रश्नकाल और शून्यकाल का महत्त्व:
- पिछले 70 वर्षों में सांसदों ने सरकारी कामकाज पर प्रकाश डालने के लिये इन संसदीय साधनों का सफलतापूर्वक उपयोग किया है।
- सांसदों द्वारा इन साधनों का प्रयोग करके सरकार की अनेक वित्तीय अनियमितताओं को उजागर किया गया है।
- प्रश्नकाल के दौरान पूछे गए प्रश्नों से सरकारी कामकाज के बारे में आँकड़ों और जानकारी की सार्वजनिक डोमेन में उपलब्धता सुनिश्चित हुई है।
- संसदीय नियम पुस्तिका में ये संसदीय प्रक्रिया साधन उल्लिखित नहीं होने के बावज़ूद इन्हें नागरिकों, मीडिया, सांसदों और पीठासीन अधिकारियों का व्यापक समर्थन प्राप्त है।
आगे की राह:
- सरकार संसद के प्रति जवाबदेह है, इसलिये सरकार की जवाबदेहिता सुनिश्चित करने के लिये संसदीय कार्यवाही को निलंबित या बंद नहीं किया जाना चाहिये क्योंकि यह संविधान की भावना के विरुद्ध होगा
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
जैव विविधता और पर्यावरण
पर्यावरण प्रभाव आकलन मसौदा: महत्त्व और निहित समस्याएँ
प्रिलिम्स के लियेपर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA) अधिसूचना, 2020 मेन्स के लियेपर्यावरणीय प्रभाव आकलन व उससे संबंधित विभिन्न पहलुओं |
चर्चा में क्यों?
संयुक्त राष्ट्र (UN) द्वारा नियुक्त स्वतंत्र विशेषज्ञों ने पर्यावरण प्रभाव आकलन (Environmental Impact Assessment-EIA) अधिसूचना, 2020 के प्रस्तावित मसौदे पर चिंता ज़ाहिर करते हुए केंद्र सरकार से प्रश्न किया है कि किस प्रकार इस मसौदे के प्रावधान अंतर्राष्ट्रीय कानूनों के तहत भारत के दायित्त्व के अनुरूप हैं।
प्रमुख बिंदु
- संयुक्त राष्ट्र के स्वतंत्र विशेषज्ञों द्वारा लिखे गए पत्र में कहा गया है कि अधिसूचना के कुछ प्रावधान भारत में पर्यावरण नियामक ढाँचे की प्रभावशीलता और पारदर्शिता को प्रभावित कर सकते हैं।
- संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञों द्वारा मुख्यतः तीन मुद्दे उठाए गए हैं:
- सरकार द्वारा जारी अधिसूचना के मसौदे में कई बड़ी उद्योग परियोजनाओं और गतिविधियों को पर्यावरण प्रभाव आकलन प्रक्रिया के हिस्से के तौर पर सार्वजनिक परामर्श से छूट प्रदान की गई है, विशेषज्ञों के मुताबिक पर्यावरण और मानवाधिकार पर इन परियोजनाओं के नकारात्मक प्रभाव को देखते हुए इस प्रकार की छूट अनुचित प्रतीत होती है।
- राष्ट्रीय रक्षा और सुरक्षा से जुड़ीं परियोजनाओं को रणनीतिक माना जाता है, हालाँकि सरकार अब इस अधिसूचना के ज़रिये अन्य परियोजनाओं के लिये भी ‘रणनीतिक’ शब्द का प्रयोग कर रही है। अधिसूचना के मसौदे में ‘रणनीतिक’ शब्द को सही ढंग से परिभाषित नहीं किया गया है, जिससे इसकी किसी भी प्रकार से व्याख्या की जा सकती है।
- विशेषज्ञों ने ‘पोस्ट-फैक्टो प्रोजेक्ट क्लीयरेंस’ के प्रावधान की भी आलोचना की है।
पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA)
- पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA) का अभिप्राय किसी एक प्रस्तावित परियोजना के संभावित पर्यावरणीय प्रभाव के मूल्यांकन हेतु निर्धारित की गई प्रक्रिया से होता है।
- इस प्रक्रिया के ज़रिये किसी परियोजना जैसे- खनन, सिंचाई बांध, औद्योगिक इकाई या अपशिष्ट उपचार संयंत्र आदि के संभावित प्रभावों का वैज्ञानिक तरीके से अनुमान लगाया जाता है।
- इस प्रक्रिया के तहत किसी भी विकास परियोजना या गतिविधि को अंतिम मंज़ूरी देने के लिये उस परियोजना से प्रभावित हो रहे आम लोगों के मत को भी ध्यान में रखा जाता है।
- संक्षेप में हम कह सकते हैं कि यह निर्णय लेने का एक ऐसा उपकरण होता है जिसके माध्यम से यह तय किया जा सकता है कि किसी परियोजना को मंज़ूरी दी जानी चाहिये अथवा नहीं।
भारत में पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA)
- वर्ष 1984 में हुई भोपाल गैस त्रासदी में हज़ारों लोगों की मौत हो गई। इस घटना के मद्देनज़र देश ने वर्ष 1986 में पर्यावरण संरक्षण के लिये एक अम्ब्रेला अधिनियम बनाया गया।
- पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के तहत सर्वप्रथम वर्ष 1994 में पहले पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA) मानदंडों को अधिसूचित किया गया।
- इस अधिसूचना के माध्यम से प्राकृतिक संसाधनों तक पहुँच, उनके उपयोग और उन पर पड़ने वाले प्रभाव से संबंधित गतिविधियों को विनियमित करने के लिये एक कानूनी ढाँचा स्थापित किया गया।
- वर्ष 1994 के पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA) को वर्ष 2006 में संशोधित मसौदे के साथ परिवर्तित कर दिया गया और वर्ष 2006 की पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA) अधिसूचना अब तक कार्य कर रही है।
पर्यावरण प्रभाव आकलन- 2020 के मसौदे संबंधी मुख्य बिंदु
- सरकार के अनुसार, पर्यावरण प्रभाव आकलन- 2020 के मसौदे को मुख्यतः प्रक्रियाओं को और अधिक पारदर्शी बनाने के उद्देश्य से प्रस्तावित किया गया है, किंतु वास्तव में यह मसौदा कई गतिविधियों को सार्वजनिक परामर्श के दायरे से बाहर करने का प्रस्ताव करता है।
- इस मसौदे के तहत सामाजिक और आर्थिक प्रभाव और उन प्रभावों के भौगोलिक विस्तार के आधार पर सभी परियोजनाओं और गतिविधियों को तीन श्रेणियों- ‘A’, ‘B1’ और ‘B2’ में विभाजित किया गया है।
- कई परियोजनाओं जैसे- सभी B2 परियोजनाओं, सिंचाई, रासायनिक उर्वरक, एसिड निर्माण, जैव चिकित्सा अपशिष्ट उपचार सुविधाएँ, भवन निर्माण और क्षेत्र विकास, एलिवेटेड रोड और फ्लाईओवर, राजमार्ग या एक्सप्रेसवे आदि को सार्वजनिक परामर्श से छूट दी गई है।
संबंधित समस्याएँ
- नए मसौदे के तहत उन कंपनियों या उद्योगों को भी क्लीयरेंस प्राप्त करने का मौका दिया जाएगा जो इससे पहले पर्यावरण नियमों का उल्लंघन करती आ रही हैं। इसे ‘पोस्ट-फैक्टो प्रोजेक्ट क्लीयरेंस’ कहते हैं।
- ध्यातव्य है कि मार्च 2017 में पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने एक अधिसूचना जारी करते हुए कहा था कि अब तक पर्यावरणीय मंज़ूरी के बिना कार्य कर रही परियोजनाओं को पर्यावरणीय मंज़ूरी (EC) के लिये आवेदन करने का अवसर दिया जाएगा।
- अब सरकार ने नए मसौदे के माध्यम से इसे एक स्थायी रूप दे दिया है।
- इस प्रकार अब तक बिना पर्यावरणीय मंज़ूरी के अवैध रूप से संचालित होने वाली सभी औद्योगिक इकाइयों और परियोजनाओं को एक नई योजना प्रस्तुत करके तथा निर्धारित दंड का भुगतान करके नए प्रावधान के तहत वैध इकाइयों में बदलने का अवसर दिया जा रहा है।
- परंतु यहाँ प्रश्न यह है कि क्या एक नई योजना और निर्धारित दंड का भुगतान करके पर्यावरण को हुए नुकसान की भरपाई की जा सकती है?
- B2 श्रेणी तथा कई अन्य क्षेत्रों की परियोजनाओं और गतिविधियों को सार्वजनिक परामर्श से छूट दी गई है, जिससे पर्यावरण पर गंभीर प्रभाव पड़ने की आशंका है, क्योंकि ऐसी परियोजनाओं को बिना किसी निरीक्षण के पूरा किया जाएगा।
- पर्यावरणीय प्रभाव आकलन मसौदा, 2020 EIA प्रक्रिया पर लालफीताशाही और नौकरशाही के लिये कोई ठोस उपाय नहीं करता है। इसके अतिरिक्त, यह पर्यावरण सुरक्षा में सार्वजनिक सहभागिता को सीमित करते हुए सरकार की विवेकाधीन शक्ति को बढ़ाने का प्रस्ताव करता है।
- अधिसूचना के मसौदे में ये कहा गया है कि सरकार किसी भी तरह के पर्यावरणीय उल्लंघनों का संज्ञान लेगी, हालाँकि ऐसे पर्यावरणीय उल्लंघन की रिपोर्ट या तो सरकार या फिर स्वयं कंपनी द्वारा ही की जा सकती है, इसमें आम जनता को किसी भी उल्लंघन की शिकायत करने का कोई विकल्प नहीं दिया गया है।
- विशेषज्ञों के अनुसार, पर्यावरणीय प्रभाव आकलन, पर्यावरण के अनुकूल होना चाहिये, किंतु सरकार द्वारा जारी किया गया मसौदा उद्योग-समर्थक और जन-विरोधी प्रतीत होता है।
- मौजूदा नियमों के अनुसार, उद्योगों को वर्ष में दो बार अनुपालन रिपोर्ट (Compliance Reports) प्रस्तुत करनी होती है, किंतु नए मसौदे के तहत अब उद्योगों को केवल वर्ष में केवल एक ही बार अपनी अनुपालन रिपोर्ट प्रस्तुत करनी होगी। इसे एक उद्योग-समर्थित प्रावधान के तौर पर देखा जा सकता है जो उन पर निरीक्षण के दायरे को सीमित करता है।
- कई जानकारों ने इस ओर भी ध्यान आकर्षित किया है कि इस प्रस्तावित मसौदे को केवल हिंदी और अंग्रेज़ी में ही प्रकाशित किया गया है, जिससे अन्य स्थानीय भाषी समुदायों को सार्वजनिक भागीदारी से बाहर कर दिया गया है।
स्रोत: द हिंदू
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
लोगों की समन्वित सीमा-पार आवाजाही पर G-20 सिद्धांत
प्रिलिम्स के लिये:G-20 समूह, ‘वंदे भारत मिशन’ मेन्स के लिये:G-20 और भारत, COVID-19 महामारी से निपटने में G-20 की भूमिका |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सऊदी अरब की अध्यक्षता में आयोजित ‘G-20 विदेश मंत्रियों की बैठक’ में भारत ने ‘लोगों की समन्वित सीमा-पार आवाजाही पर G-20 सिद्धांत’ (G20 Principles on Coordinated Cross-Border Movement of People) के स्वैच्छिक विकास का प्रस्ताव रखा है।
प्रमुख बिंदु:
- सऊदी अरब की अध्यक्षता में आयोजित इस वर्चुअल बैठक में चर्चा का मुख्य विषय COVID-19 महामारी के दौरान सीमा-पार अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को मज़बूत करने पर रहा ।
- इस बैठक में भारतीय विदेश मंत्री ने तीन बिंदुओं को ध्यान में रखते हुए ‘लोगों की समन्वित सीमा-पार आवाजाही पर G-20 सिद्धांत’ के स्वैच्छिक विकास का प्रस्ताव रखा।
- परीक्षण प्रक्रियाओं का मानकीकरण और परीक्षण परिणामों की सार्वभौमिक स्वीकार्यता।
- क्वारंटीन प्रक्रियाओं का मानकीकरण।
- आवाजाही और पारगमन प्रोटोकॉल का मानकीकरण।
- इसके साथ ही भारतीय विदेश मंत्री ने विश्व के सभी देशों से विदेशी छात्रों के हितों की रक्षा सुनिश्चित करने और विदेशों में फंसे हुए समुद्री नाविकों को उनके देश पहुँचाने की सुविधा उपलब्ध करने का आग्रह किया।
- इस बैठक में शामिल सभी विदेश मंत्रियों ने COVID-19 महामारी के दौरान सीमा-पार गतिविधियों के प्रबंधन से प्राप्त अपने राष्ट्रीय अनुभवों को भी साझा किया।
- भारतीय विदेश मंत्री ने COVID-19 महामारी से निपटने के लिये G-20 देशों को एक साथ लाने में सऊदी अरब के प्रयासों की सराहना की।
- बैठक के दौरान भारतीय विदेश मंत्री ने समूह के देशों को ‘वंदे भारत मिशन’ (Vande Bharat Mission) और भारत में फंसे विदेशी नागरिकों तथा विदेशों में भारतीय नागरिकों की सुरक्षा एवं कल्याण के लिये ‘ट्रैवल बबल’ (Travel Bubble) सहित भारत सरकार द्वारा उठाए गए अन्य कदमों से अवगत कराया।
वैश्विक यातायात पर COVID-19 का प्रभाव:
- COVID-19 महामारी के प्रसार को रोकने के लिये विश्व के अधिकांश देशों द्वारा अंतर्राष्ट्रीय और अंतर्देशीय यातायात तथा माल परिवहन पर बड़े पैमाने पर रोक लगा दी गई थी।
- COVID-19 के प्रसार के नियंत्रण हेतु वैश्विक स्तर पर लागू लॉकडाउन का प्रभाव अर्थव्यवस्था के साथ-साथ वैश्विक खाद्य आपूर्ति श्रृंखला पर भी देखने को मिला है।
लाभ:
- G-20 देशों के बीच COVID-19 परीक्षण के मानकीकरण और सार्वभौमिक स्वीकार्यता से देशों के बीच पारदर्शिता तथा परस्पर आत्मविश्वास बढ़ाने में सहायता प्राप्त होगी।
- साथ ही आवाजाही और पारगमन प्रोटोकॉल के मानकीकरण से देशों के बीच COVID-19 के प्रसार के खतरे को कम करते हुए नियंत्रित रूप में लोगों का आवागमन तथा व्यावसायिक गतिविधियों का संचालन सुनिश्चित किया जा सकेगा।
COVID-19 और G-20:
- COVID-19 महामारी की शुरुआत के समय से ही G-20 द्वारा इस चुनौती से निपटने हेतु कई महत्त्वपूर्ण कदम उठाए गए हैं।
- मार्च 2020 में आयोजित G-20 की वर्चुअल बैठक में समूह के देशों ने ‘COVID- 19 एकजुटता प्रतिक्रिया कोष’ (COVID-19 Solidarity Response Fund) में 5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर जमा करने की प्रतिबद्धता ज़ाहिर की थी।
- इसके साथ ही मई और जुलाई में अलग-अलग बैठकों में समूह के देशों के बीच खाद्य सुरक्षा, स्वास्थ्य प्रतिक्रिया और अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय समन्वय जैसे महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर सहयोग बढ़ाने पर सहमति व्यक्त की गई।
आगे की राह:
- वर्तमान में COVID-19 की किसी प्रमाणिक वैक्सीन की अनुपस्थिति में स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करने हेतु सहयोग के साथ व्यक्तिगत सुरक्षा और जागरूकता पर भी विशेष ध्यान दिया जाना चाहिये।
- COVID-19 महामारी के कारण विश्व स्तर पर आपूर्ति श्रृंखला को गंभीर क्षति हुई है, G-20 देशों को वैश्विक अर्थव्यवस्था को पुनः गति प्रदान करने के लिये सीमापार व्यापार के संचालन हेतु सहयोग बढ़ाना चाहिये।
- COVID-19 के कारण हुई आर्थिक क्षति के प्रभावों को कम करने के लिये छोटे उद्यमों को वित्तीय सहायता उपलब्ध कराने पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिये।
G-20 समूह:
- G-20 समूह विश्व की प्रमुख उन्नत और उभरती हुई अर्थव्यवस्था वाले 20 देशों का समूह है।
- G-20 की स्थापना वर्ष 1997 के पूर्वी एशियाई वित्तीय संकट के बाद वर्ष 1999 में यूरोपीय संघ और विश्व की 19 अन्य प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं के केंद्रीय बैंकों गवर्नरों तथा वित्त मंत्रियों के एक फोरम के रूप में की गई थी।
- इस समूह में अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, ब्राज़ील, कनाडा, चीन, यूरोपीय संघ, फ्राँस, जर्मनी, भारत, इंडोनेशिया, इटली, जापान, मैक्सिको, रूस, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, दक्षिण कोरिया, तुर्की, ब्रिटेन और संयुक्त राज्य अमेरिका शामिल हैं।
- G-20 एक फोरम मात्र है, यह किसी स्थायी सचिवालय या स्थायी कर्मचारी के बिना कार्य करता है, प्रति वर्ष G-20 सदस्य देशों के बीच से इसके अध्यक्ष का चुनाव किया जाता है।
- वर्तमान में G-20 की अध्यक्षता सऊदी अरब (1 दिसंबर, 2019 से 30 नवंबर, 2020 तक) के पास है।
उद्देश्य:
- वैश्विक आर्थिक स्थिरता, सतत् विकास के लक्ष्य की प्राप्ति हेतु समूह के सदस्यों के बीच नीतिगत समन्वय स्थापित करना।
- आर्थिक जोखिम को कम करने और भविष्य के वित्तीय संकटों को रोकने के लिये वित्तीय विनियमन (Financial Regulations) को बढ़ावा देना।
- एक नए अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय ढांचे (New International Financial Architecture) का निर्माण करना।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
जैव विविधता और पर्यावरण
‘मृत प्रवाल’ भित्तियों का महत्त्व
प्रिलिम्स के लिये:प्रवाल भित्तियाँ, तीन वृहद ब्लीचिंग की घटनाएँ मेन्स के लिये:‘मृत प्रवाल’ भित्तियों का महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में 'क्वींसलैंड विश्वविद्यालय' ( University of Queensland- UQ) की एक अनुसंधान टीम ने एक अध्ययन में पाया कि ‘जीवित प्रवालों’ की तुलना में ‘मृत प्रवालों’ के मलबे द्वारा अधिक जीवों को संरक्षण तथा समर्थन दिया जाता है।
प्रमुख बिंदु:
- शोधकर्त्ताओं ने प्रवाल भित्तियों में जीवों के सर्वेक्षण के लिये 'मलबे में जैव विविधता के नमूना एकत्रीकरण (RUbble Biodiversity Samplers- RUBS) नामक एक त्रि-आयामी मुद्रित प्रवाल स्तंभ (एक प्रकार का कृत्रिम प्रवाल) का उपयोग किया।
- RUBS की द्वारा एकत्रित जानकारी के आधार पर वैज्ञानिकों की टीम ने समय के साथ प्रवाल भित्तियों की जैव-विविधता में आए बदलाव का अध्ययन किया।
प्रवाल भित्तियाँ (Coral Reefs):
- प्रवाल भित्तियाँ समुद्र के भीतर स्थित चट्टान हैं जो प्रवालों द्वारा छोड़े गए कैल्सियम कार्बोनेट से निर्मित होती हैं।
- वस्तुतः ये प्रवाल भित्तियाँ मूँगों सहित अनेक छोटे फ्लोरा तथा फौना की बस्तियाँ होती हैं।
जीवित प्रवाल भित्तियाँ (Live Coral Reefs):
- प्रवाल कठोर संरचना वाले चूना प्रधान जीव (कोरल पॉलिप) होते हैं। इन प्रवालों का शैवाल जूजैंथिली (Zooxanthellae) के साथ सहजीवी संबंध पाया जाता है, अत: प्रवाल भित्तियाँ रंगीन होती है। इन प्रवाल भित्तियों को 'जीवित प्रवाल भित्ति' के रूप में जाना जाता है।
- ‘जीवित प्रवाल भित्तियों' (Live Coral Reefs) को पृथ्वी पर सर्वाधिक विविधता वाले पारिस्थितिक तंत्र के रूप में माना जाता है।
मृत प्रवाल भित्तियाँ (Dead Coral Reefs):
- जीवित प्रवाल भित्तियाँ तापमान परिवर्तन के प्रति बहुत अधिक संवेदनशील होती हैं, अत: वैश्विक तापन से कोरल अर्थात मूँगों के अस्तित्व पर खतरा उत्पन्न हो जाता है।
- प्रदूषण, वैश्विक तापन या अन्य किसी प्रकार की आवासीय परिस्थितियों में परिवर्तन होने पर प्रवाल तनावग्रस्त हो जाते हैं तथा ये सहजीवी शैवाल को निष्कासित कर देते हैं, जिसे 'कोरल ब्लीचिंग' अथवा मृत प्रवाल के रूप में जाना जाता है।
अध्ययन के प्रमुख निष्कर्ष:
- 'जीवित' प्रवाल भित्तियाँ मत्स्य सहित अन्य समुद्री जीवों को संरक्षण और पोषण प्रदान करती हैं। अब तक ऐसा माना जाता रहा है कि 'जीवित प्रवाल' के 'मृत प्रवाल' में बदलने के साथ प्रवाल भित्तियों द्वारा समुद्री जैव-विविधता के संरक्षण में निभाई जाने वाली भूमिका कम हो जाती है।
- शोध कार्य के अनुसार, मृत प्रवाल भित्तियों के मलबे द्वारा भी समुद्री जैव-विविधता के संरक्षण में व्यापक भूमिका निभाई जाती है, अत: इसे नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिये।
प्रवाल भित्तियों में जैव-विविधता:
- प्रवाल भित्तियों में व्यापक जैवविधता पाई जाती है अत: इन्हें 'समुद्री वर्षावन' (Rainforests of the Sea) भी कहा जाता है।
- महासागरों की लगभग 25% मत्स्य प्रजातियाँ स्वस्थ प्रवाल भित्तियों पर निर्भर होती हैं।
- मत्स्य और अन्य जीवों की अनेक प्रजातियाँ आश्रय, भोजन, प्रजनन आदि के लिये प्रवाल भित्तियों पर निर्भर रहती है।
- सामान्यत: एक प्रवाल भित्ति पर मत्स्य, अकशेरुकी, पौधों, समुद्री कछुओं, पक्षियों और समुद्री स्तनधारियों की 7,000 से अधिक प्रजातियाँ निर्भर रहती है।
प्रमुख प्रवाल विरंजन की घटनाएँ:
- वर्ष 1998, वर्ष 2010 और वर्ष 2016 में हुई वृहद स्तरीय 'कोरल ब्लीचिंग' की घटनाओं को 'तीन वृहद ब्लीचिंग की घटनाओं' (Three Mass Bleaching Events) के रूप में जाना जाता है।
- 'कोरल ब्लीचिंग' की इन घटनाओं से भारत के पाँच प्रमुख भारतीय भित्तियों के क्षेत्र; अंडमान एवं निकोबार, लक्षद्वीप, मन्नार की खाड़ी और कच्छ की खाड़ी, बहुत अधिक प्रभावित हुए हैं।
- यहाँ ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि भारतीय तटरेखा एक प्राचीन और वृहद प्रवाल विविधता का क्षेत्र है, जो वृहद पारिस्थितिकी तंत्र के लिये एक प्राकृतिक आवास प्रदान करती है।
निष्कर्ष:
- प्रवाल भित्तियों के संबंध में 'मृत प्रवालों' की भूमिका का अध्ययन 'प्रवाल भित्तियों' के प्रबंधन तथा संरक्षण में मदद करेगा तथा पर्यावरणविदों के बीच प्रवालों के प्रति जागरूकता बढ़ाने का एक नया अवसर प्रदान करती है।
स्रोत: द हिंदू
भारतीय अर्थव्यवस्था
मर्चेंडाइज़ एक्सपोर्ट्स फ्रॉम इंडिया स्कीम
प्रिलिम्स के लिये:मर्चेंडाइज़ एक्सपोर्ट्स फ्रॉम इंडिया स्कीम, आयात निर्यात कोड, फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोर्ट ऑर्गेनाइज़ेशन मेन्स के लिये:भारतीय अर्थव्यवस्था में निर्यात से संबंधित रणनीति |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत सरकार ने ‘मर्चेंडाइज़ एक्सपोर्ट्स फ्रॉम इंडिया स्कीम’ (Merchandise Exports from India Scheme- MEIS) के तहत प्राप्त कुल लाभों की उच्चतम सीमा लागू करने का निर्णय लिया है।
प्रमुख बिंदु:
- MEIS योजना के तहत किसी आयात निर्यात कोड (Import Export Code- IEC) धारक को दिया जाने वाला कुल लाभ 01 सितंबर, 2020 से 31 दिसंबर, 2020 तक की अवधि के दौरान किये गए निर्यातों के प्रति IEC पर 2 करोड़ रुपए से अधिक नहीं होगा।
आयात निर्यात कोड (Import Export Code- IEC):
- यह कोड केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय (Union Ministry of Commerce and Industry) के विदेश व्यापार महानिदेशक (Director General of Foreign Trade) द्वारा जारी किया जाता है।
- IEC एक 10-अंकीय कोड है जिसकी वैधता जीवन भर की है।
- मुख्य रूप से आयातक, आयात निर्यात कोड के बिना माल आयात नहीं कर सकते हैं और इसी तरह, निर्यातक व्यापारी IEC के बिना निर्यात योजना आदि के लिये DGFT से लाभ नहीं प्राप्त कर सकते हैं।
- कोई भी IEC धारक जिसने 01 सितंबर, 2020 से पहले एक वर्ष की अवधि के दौरान कोई निर्यात नहीं किया है या एक सितंबर या उसके बाद नई IEC प्राप्त की है, वे MEIS के तहत कोई भी दावा प्रस्तुत करने के हकदार नहीं होंगे।
- उपरोक्त उच्चतम सीमा अधोमुखी संशोधन के अधीन होगी ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि 01 सितंबर, 2020 से 31 दिसंबर, 2020 तक की अवधि के दौरान MEIS के तहत कुल दावा राशि भारत सरकार द्वारा निर्धारित 5000 करोड़ रुपए के निर्धारित आवंटन से अधिक न हो।
- MEIS, विश्व व्यापार संगठन (WTO) की अनुपालक नहीं है और MEIS योजना के वापस आने से एक नई योजना का मार्ग प्रशस्त होगा।
- भारत सरकार ने एक नई डब्ल्यूटीओ-अनुपालन योजना (WTO-Compliant Scheme) की घोषणा की है जिसका नाम निर्यात किये जाने वाले उत्पादों को निर्यात शुल्क और कर में छूट (Remission of Duties or Taxes on Export Product-RoDTEP) है।
‘मर्चेंडाइज़ एक्सपोर्ट्स फ्रॉम इंडिया स्कीम’
(Merchandise Exports from India Scheme- MEIS):
- MEIS को विदेशी व्यापार नीति: 2015-20 के तहत 1 अप्रैल, 2015 को शुरू किया गया था।
- इसका उद्देश्य MSME क्षेत्र द्वारा उत्पादित/निर्मित उत्पादों सहित भारत में उत्पादित/निर्मित वस्तुओं/उत्पादों के निर्यात में शामिल अवसंरचनात्मक अक्षमताओं एवं संबंधित लागतों की भरपाई करना है।
- MEIS के तहत, भारत सरकार उत्पाद एवं देश के आधार पर शुल्क लाभ प्रदान करती है।
- इस योजना के तहत पुरस्कार वास्तविक रूप से मुक्त बोर्ड मूल्य (2%, 3% एवं 5%) के प्रतिशत मूल्य के रूप में देय हैं और मूल सीमा शुल्क सहित कई शुल्कों के भुगतान के लिये ‘MEIS ड्यूटी क्रेडिट पत्रक’ (MEIS Duty Credit Scrip) को स्थानांतरित या उपयोग किया जा सकता है।
- MEIS ने विदेश व्यापार नीति 2009-14 में मौजूद अन्य पाँच समान प्रोत्साहन योजनाओं को प्रतिस्थापित किया है:
- फोकस प्रोडक्ट स्कीम (FPS)
- फोकस मार्केट स्कीम (FMS)
- मार्केट लिंक्ड फोकस मार्केट स्कीम (MLFMS)
- अवसंरचना प्रोत्साहन योजना
- विशेष कृषि ग्रामीण योजना (VKGUY)
चिंताएँ:
- MEIS की जगह नई योजना लाने के लिये डेटा की कमी: RoDTEP के तहत दरों को अंतिम रूप देने के लिये वित्त मंत्रालय ने पूर्व वाणिज्य एवं गृह सचिव जी. के. पिल्लई (G. K. Pillai) की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया है किंतु लगातार स्थानीय लॉकडाउन, परिवहन की अनुपलब्धता एवं लेखा परीक्षकों के गैर-कामकाज के कारण डेटा प्रदान करने में उद्योग को चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
- ‘फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोर्ट ऑर्गेनाइज़ेशन’ (Federation of Indian Export Organisations- FIEO) का मानना है कि सितंबर-दिसंबर, 2020 के दौरान निर्यात उन आदेशों पर आधारित है जिन्हें मौजूदा MEIS लाभ में फैक्टरिंग के बाद पहले ही अपनाया गया था।
- ये लाभ निर्यात प्रतिस्पर्द्धा का हिस्सा हैं और इसलिये अचानक परिवर्तन निर्यातकों के वित्तीय हितों को प्रभावित करेगा क्योंकि खरीदार अपनी कीमतों में संशोधन नहीं करेंगे।
‘फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोर्ट ऑर्गेनाइज़ेशन’ (FIEO):
- यह वैश्विक बाज़ार के उद्यम क्षेत्र में भारतीय उद्यमियों की भावना का प्रतिनिधित्त्व करता है। इसकी स्थापना वर्ष 1965 में हुई थी।
- यह भारत में निर्यात संवर्द्धन परिषदों, सामुदायिक बोर्डों एवं विकास प्राधिकरणों का एक सर्वोच्च निकाय है।
- यह भारत के अंतर्राष्ट्रीय व्यापारिक समुदाय तथा केंद्र एवं राज्य सरकारों, वित्तीय संस्थानों, बंदरगाहों, रेलवे एवं सभी निर्यात व्यापार सुविधाओं में लगे हुए समुदायों के बीच महत्त्वपूर्ण इंटरफेस प्रदान करता है।
स्रोत: पीआईबी
शासन व्यवस्था
आंध्रप्रदेश में शिक्षा के माध्यम के रूप में अंग्रेज़ी
प्रिलिम्स के लियेशिक्षा का अधिकार (RTE) अधिनियम मेन्स के लियेशिक्षा के माध्यम के रूप में अंग्रेज़ी और स्थानीय भाषा का महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने आंध्रप्रदेश उच्च न्यायालय के उस आदेश को खारिज करने से इनकार कर दिया, जिसमें उच्च न्यायालय ने वाई.एस. जगनमोहन रेड्डी सरकार के कक्षा 1 से 6 तक के सरकारी स्कूल के छात्रों के लिये अंग्रेज़ी को शिक्षा का माध्यम बनाने के निर्णय पर रोक लगा दी गई थी।
प्रमुख बिंदु
- जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ के नेतृत्त्व में तीन न्यायाधीशों की खंडपीठ ने उल्लेख किया कि शिक्षा का अधिकार (RTE) अधिनियम की धारा 29(2) (F) के अनुसार, शिक्षा का माध्यम, जहाँ तक संभव हो, बच्चे की मातृभाषा में होना चाहिये।
- हालाँकि सर्वोच्च न्यायालय, आंध्रप्रदेश उच्च न्यायालय के निर्णय पर अंतरिम रोक लगाने की याचिका पर पुनः अगले माह 25 सितंबर को सुनवाई करेगा।
पृष्ठभूमि
- सर्वप्रथम बीते वर्ष नवंबर माह में मुख्यमंत्री वाई.एस. जगन मोहन रेड्डी ने शैक्षणिक वर्ष 2020-21 से अनिवार्य रूप से राज्य के सभी सरकारी स्कूलों में अंग्रेज़ी माध्यम शुरू करने का प्रस्ताव रखा था।
- जिसके बाद इस आदेश में कुछ संशोधन किया गया, जिसके मुताबिक पहले चरण में केवल कक्षा 1 से 6 को अंग्रेज़ी माध्यम में पढाए जाने की बात की गई।
- 23 जनवरी, 2020 को भविष्य के छात्रों के लिये इस कदम को क्रांतिकारी बताते हुए इस संबंध में एक विधेयक पारित कर दिया गया।
- इसके पश्चात् सरकार के इस विधेयक को चुनौती देते हुए आंध्रप्रदेश उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की गई और इस मामले की सुनवाई के पश्चात् 15 अप्रैल, 2020 को, मुख्य न्यायाधीश जे.के. माहेश्वरी के नेतृत्त्व में आंध्रप्रदेश उच्च न्यायालय की एक खंडपीठ ने सरकारी आदेशों को रद्द कर दिया।
- आंध्रप्रदेश उच्च न्यायालय में याचिका दायर करते हुए तर्क दिया गया था कि कई अध्ययन दर्शाते हैं कि प्राथमिक स्तर पर बच्चे तभी अधिक सीख पाते हैं जब उन्हें उनकी मातृभाषा में शिक्षा प्रदान की जाए।
आंध्रप्रदेश उच्च न्यायालय का मत
- आंध्रप्रदेश उच्च न्यायालय ने स्वीकार किया कि स्कूली शिक्षा में शिक्षा का माध्यम चुनने का विकल्प एक मौलिक अधिकार है। खंडपीठ ने माना कि नागरिक को शिक्षित करने के लिये शिक्षा के माध्यम का चयन भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का अभिन्न हिस्सा है।
- उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने कहा कि आंध्रप्रदेश सरकार का निर्णय भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19(1)(G) का भी उल्लंघन करता है, चूँकि यह भाषाई अल्पसंख्यक संस्थानों के ‘किसी भी पेशे को स्वतंत्रतापूर्वक अपनाने के अधिकार' का उल्लंघन करता है।
- सर्वोच्च न्यायलय ने टीएमए पाई फाउंडेशन बनाम कर्नाटक राज्य वाद में भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19(1)(G) के तहत शैक्षणिक संस्थान चलाने को एक पेशे के रूप में स्वीकार किया था।
- आंध्रप्रदेश शिक्षा अधिनियम, 1982 की धारा 7 के तहत भी मातृभाषा में शिक्षा प्रदान करने और कला-कौशल आदि के महत्त्व के बारे में बात की गई है।
- इसके अलावा आंध्रप्रदेश उच्च न्यायालय ने यह भी रेखांकित किया कि प्राथमिक स्तर पर स्कूलों में शिक्षा के माध्यम को बदलने की शक्ति केवल राज्य सरकार के पास नहीं है।
- बल्कि आंध्रप्रदेश शिक्षा अधिनियम, 1982 की धारा 7(3) और 7(4) के मुताबिक राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (SCERT) वह शैक्षणिक प्राधिकरण होगा, जो निर्धारित प्राधिकारी के साथ परामर्श करने के पश्चात् राज्य के विद्यालयों में बच्चों के सतत् व्यापक मूल्यांकन के साथ-साथ उसके पाठ्यक्रम, रूपरेखा और मूल्यांकन तंत्र का निर्धारण करेगा।
अंग्रेज़ी भाषा के पक्ष में तर्क
- कई लोग मानते हैं कि अंग्रेज़ी भाषा बोलने और समझने की क्षमता एक व्यक्ति ऐसी कई नौकरियों के लिये योग्य बना देती है, जो अभी तक स्थानीय भाषी लोगों के लिये उपलब्ध नहीं हैं।
- प्रायः अंग्रेज़ी के ज्ञान की कमी के कारण सरकारी स्कूल के छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं में अंग्रेज़ी माध्यम के निजी स्कूल के छात्रों की तुलना में कमतर आंका जाता है।
- अधिकांश तकनीक और विज्ञान से संबंधित पुस्तकें अंग्रेज़ी भाषा में ही उपलब्ध हैं, साथ ही उच्च शिक्षा के अधिकांश विषय भी अंग्रेज़ी भाषा में ही पढाए जाते हैं। ऐसे में हिंदी अथवा किसी अन्य स्थानीय भाषा के विद्यार्थियों को उच्च शिक्षा प्राप्त करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
- वैश्विक भाषा होने के कारण अंग्रेज़ी छात्रों को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्द्धा करने में सक्षम बनाती है।
स्थानीय भाषा के पक्ष में तर्क
- प्रायः मातृभाषा अथवा स्थानीय भाषा का उपयोग छात्रों के लिये सीखने की प्रक्रिया को अधिक परिचित, समझने योग्य तथा स्वीकार्य बना देता है। इससे छात्र सीखने की प्रकिया से अधिक जुड़ाव महसूस करते हैं और उनके आत्मविश्वास में वृद्धि होती है।
- मातृभाषा का उपयोग करके छात्र स्वयं को बेहतर ढंग से अभिव्यक्त कर सकते हैं और अपनी मातृभाषा में अपने अनुभवों, अपनी पहचान और अपनी संस्कृति को अन्य लोगों के साथ साझा कर सकते हैं।
- अंग्रेज़ी भाषा का उपयोग प्रायः उच्च वर्ग और निम्न वर्ग के बीच एक अंतर पैदा कर देता है, कई बार यह भी देखने को मिलता है कि भाषाई विकलांगता (Linguistic Disability) के कारण वास्तविक प्रतिभा और योग्यता दबकर रह जाती है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
यूएस-इंडिया स्ट्रेटजिक पार्टनरशिप फोरम
प्रिलिम्स के लिये:यूएस-इंडिया स्ट्रेटजिक पार्टनरशिप फोरम, ‘साउथ एशिया वीमेन इन एनर्जी’ प्लेटफॉर्म, यू.एस. एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट मेन्स के लिये:भारत- अमेरिका के प्रगाढ़ होते संबंध |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय प्रधानमंत्री ने यूएस-इंडिया स्ट्रेटजिक पार्टनरशिप फोरम (US-India Strategic Partnership Forum- USISPF) के तीसरे वार्षिक नेतृत्व शिखर सम्मेलन (Annual Leadership Summit) को संबोधित किया।
प्रमुख बिंदु:
- यूएस-इंडिया स्ट्रेटजिक पार्टनरशिप फोरम (US-India Strategic Partnership Forum- USISPF), एक गैर लाभकारी संगठन है जिसकी स्थापना वर्ष 2017 में की गई थी।
- इस संगठन का मुख्य उद्देश्य संयुक्त राज्य अमेरिका और भारत के मध्य द्विपक्षीय एवं रणनीतिक साझेदारी को मज़बूत करना है।
- इस संगठन का मुख्य लक्ष्य नीतिगत तरीके से दोनों देशों के बीच आर्थिक एवं वाणिज्यिक संबंधों को मज़बूत करना है जो आर्थिक विकास, उद्यमशीलता, रोज़गार-सृजन एवं नवाचार को बढ़ावा देने के साथ-साथ एक अधिक समावेशी समाज बनाने के लिये प्रेरित करेगा।
- इसके अतिरिक्त व्यापारिक एवं आपसी सहयोग को बढ़ावा देना एवं सार्थक अवसर उत्पन्न करने में सक्षम बनाना जिससे नागरिकों के जीवन को सकारात्मक रूप से बदला जा सके।
- 31 अगस्त, 2020 से शुरू हुए इस 5 दिवसीय सम्मेलन की थीम ‘संयुक्त राज्य अमेरिका-भारत के सामने मौजूद नई चुनौतियाँ’ (US-India Navigating New Challenges) है।
- वर्ष 2019 में माल एवं सेवाओं के संदर्भ में समग्र यूएसए-भारत द्विपक्षीय व्यापार 149 बिलियन अमेरिकी डाॅलर तक पहुँच गया है।
- यूएसए ऊर्जा निर्यात, दोनों देशों के मध्य व्यापारिक संबंधों में वृद्धि का एक महत्त्वपूर्ण क्षेत्र है।
- रक्षा, व्यापार, वाणिज्यिक विमान सेवाएँ, तेल और कोयला, मशीनरी और इलेक्टॉनिक जैसे क्षेत्रों में भारत में अमेरिकी निवेश के लिये प्रचुर संभावनाएँ हैं, जबकि भारत के लिये अमेरिकी बाज़ार में मोटर-वाहन, फार्मा, समुद्री उत्पाद, सूचना प्रौद्योगिकी तथा यात्रा सेवाओं को बढ़ावा देने के अवसर हैं।
यूएस-इंडिया स्ट्रेटजिक पार्टनरशिप फोरम के 6 स्तंभ:
- व्यावसायिक नीति की सिफारिश (BUSINESS POLICY ADVOCACY)
- विधायी संबंध (LEGISLATIVE AFFAIRS)
- बी-बी-जी अवसर (B-B-G OPPORTUNITIES)
- समावेशी विकास (INCLUSIVE DEVELOPMENT)
- सामरिक सहयोग (STRATEGIC ENGAGEMENT)
- शिक्षा, नवाचार एवं उद्यम (EDUCATION INNOVATION & ENTREPRENEURSHIP)
‘साउथ एशिया वीमेन इन एनर्जी’ प्लेटफॉर्म
[South Asia Women in Energy (SAWIE) Platform]:
- यू.एस. एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट (U.S. Agency for International Development- USAID) और यू.एस. इंडिया स्ट्रेटेजिक पार्टनरशिप फोरम (U.S. India Strategic Partnership Forum- USISPF) ने दक्षिण एशिया में ऊर्जा क्षेत्र में महिलाओं के सशक्तीकरण एवं लैंगिक सुग्राहीकरण (Gender Sensitization) को बढ़ावा देने के लिये आधिकारिक तौर पर ‘साउथ एशिया वीमेन इन एनर्जी’ (South Asia Women in Energy- SAWIE) प्लेटफॉर्म लॉन्च किया है।
यू.एस. एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट
(U.S. Agency for International Development- USAID):
- USAID संयुक्त राज्य अमेरिका के संघीय सरकार की एक स्वतंत्र एजेंसी है जो मुख्य रूप से नागरिक विदेशी सहायता एवं विकास सहायता के लिये ज़िम्मेदार है।
- यह दुनिया की सबसे बड़ी आधिकारिक सहायता एजेंसियों में से एक है।
- अमेरिकी काॅन्ग्रेस ने 4 सितंबर, 1961 को विदेशी सहायता अधिनियम (Foreign Assistance Act) पारित किया जिसने अमेरिकी विदेशी सहायता कार्यक्रमों को पुनर्गठित किया एवं आर्थिक सहायता के लिये एक एजेंसी के निर्माण को अनिवार्य बनाया और 3 नवंबर, 1961 को USAID अस्तित्त्व में आई।
- यह पहला अमेरिकी विदेशी सहायता संगठन है जिसका प्राथमिक लक्ष्य दीर्घकालिक सामाजिक आर्थिक विकास पर ध्यान देना था।
स्रोत: पीआईबी
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
पूर्वी भू-मध्य सागर में रूस का नौसैनिक अभ्यास
प्रिलिम्स के लिये:भू-मध्य सागर क्षेत्र की भौगोलिक अवस्थिति मेन्स के लिये:मध्य-पूर्व राजनीतिक अस्थिरता और तुर्की, वैश्विक राजनीति और प्राकृतिक ऊर्जा संसाधन |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में तुर्की ने पूर्वी भू-मध्य सागर में रूस द्वारा एक नौसैनिक अभ्यास के आयोजन की घोषणा की है।
प्रमुख बिंदु:
- गौरतलब है कि वर्तमान में पूर्वी भू-मध्य सागर क्षेत्र में ऊर्जा संसाधनों की खोज करने के अधिकार को लेकर तुर्की और इसके तटीय पड़ोसियों ग्रीस तथा साइप्रस के बीच तनाव की स्थिति बनी हुई है।
- तुर्की की तरफ से जारी नौवहन नोटिस के अनुसार, इस रूसी नौसैनिक अभ्यास का आयोजन 8-22 सितंबर, 2020 और 17-28 सितंबर के बीच भू-मध्य सागर के क्षेत्रों में किया जाएगा।
- तुर्की की यह घोषणा अमेरिका के उस बयान के बाद आई है जिसमें उसने साइप्रस पर लगे 33 वर्ष पुराने हथियार प्रतिबंध को आंशिक रूप से हटाने की घोषणा की थी।
- तुर्की की इस घोषणा पर रूस ने अभी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है।
कारण:
- विशेषज्ञों के अनुसार, रूस पूर्वी भू-मध्य सागर में एक मज़बूत नौसैनिक उपस्थिति रखता है और समय-समय पर नौसैनिक गतिविधियों का आयोजन करता रहता है।
- रूस द्वारा पूर्वी भू-मध्य सागर में नौसैनिक अभ्यास के इस कदम को अमेरिका द्वारा साइप्रस पर हथियार प्रतिबंध हटाने के निर्णय के जवाब क्षेत्र में अपने प्रभुत्त्व और हस्तक्षेप की शक्ति के प्रदर्शन के रूप में देखा जा सकता है।
हथियार प्रतिबंध पर आंशिक छूट:
- अमेरिका के अनुसार, साइप्रस को गैर-घातक उपकरणों की खरीद की अनुमति प्रदान करने के लिये इस प्रतिबंध को एक वर्ष (नवीनीकरण के विकल्प के साथ) के लिये हटाया जा रहा है।
- ध्यातव्य है कि अमेरिका द्वारा साइप्रस पर वर्ष 1987 में लगाए गए इस प्रतिबंध का उद्देश्य हथियारों की होड़ को रोकना था, जो संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा साइप्रस के पुनः एकीकरण के प्रयासों के लिये बाधा उत्पन्न कर सकता था।
- यह प्रतिबंध ग्रीक बाहुल्य आबादी वाले दक्षिणी साइप्रस पर लागू था।
तुर्की का पक्ष :
- तुर्की ने अमेरिका द्वारा साइप्रस पर हथियार प्रतिबंध हटाए जाने के संदर्भ में असंतोष व्यक्त किया है।
- तुर्की के अनुसार, अमेरिका का यह कदम तुर्की-अमेरिका ‘गठबंधन की भावना’ (spirit of alliance) के खिलाफ है।
- तुर्की ने यह भी चेतावनी दी है कि अमेरिका के इस निर्णय से साइप्रस के पुनः एकीकरण के प्रयासों को क्षति पहुँचेगी।
पृष्ठभूमि:
- पिछले कुछ वर्षों में तुर्की इस क्षेत्र खनिज तेल और प्राकृतिक गैस की खोज को लेकर काफी आक्रामक हुआ है, जो क्षेत्र के अन्य देशों के साथ तुर्की के तनाव का सबसे बड़ा कारण बन गया है।
- हाल ही में इस विवादित क्षेत्र में तुर्की-ग्रीस गतिरोध में हुई वृद्धि के बीच दोनों देशों के युद्दपोतों की सक्रियता भी बढ़ गई है।
- पिछले दिनों तनाव को बढ़ता हुआ देख फ्राँस ने भी इस क्षेत्र में ग्रीस के समर्थन में अपने युद्ध पोत तैनात कर दिये थे।
रूस-तुर्की संबंध:
- हाल के वर्षों में तुर्की और रूस के बीच सैन्य, राजनीतिक और आर्थिक क्षेत्र में द्विपक्षीय संबंधों में काफी प्रगति हुई है।
- सीरिया में सैन्य उपस्थिति के मामले में दोनों देशों के बीच समन्वय देखने को मिला है।
- तुर्की ने रूस से ‘एस-400 मिसाइल प्रणाली’ (S-400 Missile System) की खरीद की है साथ ही वह एक रूस निर्मित परमाणु उर्जा संयंत्र की स्थापना की योजना पर कार्य कर रहा है।
- गौरतलब है कि तुर्की ‘उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन’ या नाटो (NATO) समूह का सक्रिय सदस्य है।
भारत पर प्रभाव:
- भू-मध्य सागर क्षेत्र में अस्थिरता का प्रभाव यहाँ रह रहे अप्रवासी भारतीयों के दैनिक जीवन और उनकी आजीविका पर पड़ सकता है, जो वर्तमान में COVID-19 महामारी के बीच एक बड़ी समस्या हो सकती है।
- वित्तीय वर्ष 2019-20 में भारत द्वारा कुल आयातित खनिज तेल में लगभग 4.5% भू-मध्य सागर क्षेत्र से था, ऐसे में भारत की ऊर्जा ज़रूरतों पर वर्तमान गतिरोध का अधिक प्रभाव नहीं पड़ेगा।
- परंतु भारत के लिये तेल आयात के दौरान किसी एक देश पर निर्भरता को कम करने और तेल आयात स्रोतों के विकेंद्रीकरण की दृष्टि से क्षेत्र की स्थिरता बहुत ही महत्त्वपूर्ण है।
- पिछले कुछ वर्षों में तुर्की कश्मीर में अनुच्छेद 370 के हटाए जाने और भारत के कई अन्य आतंरिक मामलों में अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भारत के खिलाफ खड़ा हुआ है।
- वर्तमान क्षेत्र के तनाव में रूस की भागीदारी से भारत के लिये किसी पक्ष का समर्थन का निर्णय और अधिक जटिल हो जाएगा।
तुर्की-साइप्रस विवाद और साइप्रस विभाजन :
- वर्ष 1974 में साइप्रस में ग्रीस समर्थक समूह के तख्तापलट के बाद तुर्की ने ग्रीस पर हमला कर दिया और तबसे यह द्वीपीय देश दो हिस्सों में विभाजित है।
- दक्षिण के ग्रीक बाहुल्य भाग की सरकार को ही अंतर्राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त है जबकि उत्तर के तुर्क बाहुल्य क्षेत्र को सिर्फ तुर्की से एक स्वतंत्र देश की मान्यता प्राप्त है।
- वर्तमान में उत्तरी साइप्रस में तुर्की के 35,000 से अधिक सैनिक तैनात हैं।
निष्कर्ष:
भू-मध्य सागर के इस विवादित क्षेत्र की जटिल भौगोलिक अवस्थिति, सीमाओं के निर्धारण में स्पष्टता के अभाव और ऊर्जा संसाधनों पर अधिकार की होड़ के बीच यह क्षेत्र वर्तमान में वैश्विक राजनीति में विवाद का एक नया केंद्र बन गया है। इस विवाद में अन्य देशों के शामिल होने के साथ-साथ यह समस्या और अधिक जटिल होती जा रही है। ऐसे में इस क्षेत्र के साथ-साथ वैश्विक स्तर पर शांति और स्थिरता को बनाए रखने के लिये इस विवाद के समाधान हेतु अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बहुपक्षीय प्रयासों को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।