स्टेट ऑफ फाइनेंस फॉर नेचर रिपोर्ट
प्रिलिम्स के लिये:संयुक्त राष्ट्र, रियो सम्मेलन मेन्स के लिये:स्टेट ऑफ फाइनेंस फॉर नेचर रिपोर्ट से संबंधित प्रमुख तथ्य |
चर्चा में क्यों?
संयुक्त राष्ट्र की ‘स्टेट ऑफ फाइनेंस फॉर नेचर रिपोर्ट’ प्रकृति-आधारित समाधानों (NBS) में निवेश प्रवाह का विश्लेषण करती है और जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता और भूमि क्षरण लक्ष्यों (तीन रियो सम्मेलनों में निर्धारित) को पूरा करने के लिये भविष्य के आवश्यक निवेश की पहचान करती है।
- यह रिपोर्ट संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP), विश्व आर्थिक मंच और भूमि क्षरण के अर्थशास्त्र द्वारा संयुक्त रूप से तैयार की गई थी।
प्रमुख बिंदु:
प्रकृति आधारित समाधान (NbS):
- इस प्रकार NbS सतत् विकास लक्ष्यों को रेखांकित करता है, क्योंकि वे महत्त्वपूर्ण पारिस्थितिक तंत्र सेवाओं, जैव विविधता और ताजे पानी तक पहुँच, बेहतर आजीविका, स्वस्थ आहार तथा स्थायी खाद्य प्रणालियों से खाद्य सुरक्षा (जैविक कृषि) का समर्थन करते हैं।
- साथ ही NbS जलवायु परिवर्तन पर पेरिस समझौते के लक्ष्यों को प्राप्त करने के समग्र वैश्विक प्रयास का एक अनिवार्य घटक है।
- NbS सामाजिक-पर्यावरणीय चुनौतियों से निपटने के लिये स्थायी प्रबंधन और प्रकृति के उपयोग को संदर्भित करता है, जो आपदा जोखिम में कमी, जलवायु परिवर्तन और जैव विविधता के नुकसान से लेकर खाद्य और जल सुरक्षा के साथ-साथ मानव स्वास्थ्य को कवर करता है।
- NbS लोगों और प्रकृति के बीच सामंजस्य बनाता है, पारिस्थितिक विकास को सक्षम बनाता है और जलवायु परिवर्तन के प्रति समग्र जन-केंद्रित प्रतिक्रिया का प्रतिनिधित्व करता है।
रिपोर्ट के प्रमुख बिंदु:
- वर्तमान निवेश:
- वर्तमान में लगभग 133 बिलियन अमेरिकी डॉलर वार्षिक प्रकृति-आधारित समाधानों के माध्यम से व्यय होते हैं (2020 को आधार वर्ष के रूप में उपयोग करते हुए)। इसमें वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 0.10% शामिल है।
- स्थायी वानिकी जैसी गतिविधियों के साथ मिश्रित जैव विविधता और परिदृश्य की रक्षा के लिये धन का उपयोग होता है।
- NbS वित्त जलवायु वित्त की तुलना में बहुत कम है और सार्वजनिक वित्त पर अधिक निर्भर करता है।
- लोक बनाम निजी वित्त:
- इन निवेशों में सार्वजनिक कोष 86% और निजी वित्त 14% है।
- सार्वजनिक वित्तीय सेवा प्रदाताओं में सरकार, विकास वित्त संस्थान (DFIs), पर्यावरण/जलवायु निधि शामिल हैं।
- शीर्ष व्ययकर्त्ता:
- इसके लिये सार्वजनिक क्षेत्र के खर्च में संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन का वर्चस्व है, इसके बाद जापान, जर्मनी और ऑस्ट्रेलिया का स्थान है।
- ब्राज़ील, भारत और सऊदी अरब जैसे देश भी बड़ी मात्रा में पैसा खर्च कर रहे हैं, लेकिन वे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर तुलनीय डेटा की रिपोर्ट नहीं करते हैं।
सिफारिशें:
- अधिक निवेश:
- भविष्य की जलवायु, जैव विविधता और भूमि क्षरण लक्ष्यों को पूरा करने के लिये सार्वजनिक और निजी अभिकर्त्ताओं को अपने वार्षिक निवेश को कम से कम चार गुना बढ़ाने की आवश्यकता होगी।
- वर्ष 2050 तक वार्षिक निवेश को 536 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच जाना चाहिये।
- निवेश के लिये नकदी प्रवाह बढ़ाना:
- कर सुधार, कृषि नीतियों और व्यापार से संबंधित शुल्कों का पुन: उपयोग करना और कार्बन बाज़ारों की क्षमता का दोहन करना।
- निवेश:
- अंतर्राष्ट्रीय लक्ष्यों को पूरा करने के लिये प्राकृतिक वनस्पतियों की बहाली और वनरोपण आवश्यक है।
- वार्षिक निवेश आवश्यकताओं का सबसे महत्त्वपूर्ण घटक नए वनों की स्थापना लागत है, क्योंकि यह कुल लागत का 80% हिस्सा है।
- अंतर्राष्ट्रीय लक्ष्यों को पूरा करने के लिये प्राकृतिक वनस्पतियों की बहाली और वनरोपण आवश्यक है।
- प्रकृति आधारित समाधान को सरकारी नीतियों का हिस्सा बनाना:
- वर्तमान राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान संशोधनों, राष्ट्रीय अनुकूलन योजनाओं और घरेलू क्षेत्रीय कानूनों में प्रकृति-आधारित समाधानों को शामिल करने का समर्थन करना।
- प्रकृति में पूंजी प्रवाह को उस स्तर तक बढ़ाने के लिये सार्वजनिक नीति के साथ निजी वित्त को संरेखित करना जो तीनों रियो सम्मेलनों के लक्ष्यों को पूरा कर सके।
- वित्त निगरानी तंत्र:
- NbS के लिये वित्तीय स्थिति की लेबलिंग, ट्रैकिंग, रिपोर्टिंग और सत्यापन के लिये एक व्यापक प्रणाली और ढाँचे की आवश्यकता है।
- यह भविष्य के निर्णय लेने के लिये एक इनपुट के रूप में डेटा तुलनीयता और गुणवत्ता में सुधार करेगा।
- इसके अलावा,जोखिम को कम करके और हानिकारक वित्तीय प्रवाह को कम करने और प्रोत्साहित करने तथा सकारात्मक वित्तीय प्रवाह को बढ़ाने की आवश्यकता है।
स्रोत-डाउन टू अर्थ
पीएम-केयर फॉर चिल्ड्रन
प्रिलिम्स के लियेपीएम-केयर फॉर चिल्ड्रन, ‘बाल स्वराज’ पोर्टल, राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग मेन्स के लियेकोरोना महामारी के दौरान बाल तस्करी की समस्या और इससे संबंधित उपाय |
चर्चा में क्यों?
सरकार ने कोविड-19 के कारण अनाथ हुए सभी बच्चों के लिये एक विशेष ‘पीएम-केयर फॉर चिल्ड्रन’ योजना की घोषणा की है।
- साथ ही सर्वोच्च न्यायालय ने ज़िला अधिकारियों को ‘राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग’ (NCPCR) द्वारा निर्मित ‘बाल स्वराज’ पोर्टल पर ऐसे बच्चों का विवरण प्रदान करने का आदेश दिया है, जिन्हें देखभाल और सुरक्षा की आवश्यकता है।
प्रमुख बिंदु
‘पीएम-केयर फॉर चिल्ड्रन’ योजना
- योग्यता
- जिन बच्चों ने कोविड-19 के कारण अपने माता-पिता या कानूनी अभिभावक या दत्तक माता-पिता को खो दिया है, वे इस योजना के लिये पात्र होंगे।
- देश भर में कुल 577 कोविड-19 अनाथ बच्चों की पहचान की गई है। साथ ही बाल तस्करी के मामले भी बढ़ रहे हैं।
- जिन बच्चों ने कोविड-19 के कारण अपने माता-पिता या कानूनी अभिभावक या दत्तक माता-पिता को खो दिया है, वे इस योजना के लिये पात्र होंगे।
- योजना की विशेषताएँ
- 10 लाख रुपए का कोष
- इनमें से प्रत्येक बच्चे को पीएम केयर फंड से 10 लाख रुपए का कोष आवंटित किया जाएगा।
- इस कोष का उपयोग 18 वर्ष की आयु के बाद अगले पाँच वर्षों तक उच्च शिक्षा की अवधि के दौरान बच्चों की व्यक्तिगत आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये मासिक वित्तीय सहायता/छात्रवृत्ति हेतु उपयोग किया जाएगा और 23 वर्ष की आयु पूरी करने पर, व्यक्तिगत एवं व्यावसायिक उपयोग के लिये उसे एकमुश्त के रूप में कोष की राशि मिलेगी।
- बच्चों की शिक्षा
- छोटे बच्चों की शिक्षा का खर्च केंद्रीय विद्यालयों और निजी स्कूलों में उच्चतर माध्यमिक स्तर तक प्रवेश के माध्यम से वहन किया जाएगा।
- इन बच्चों को उनकी उच्च शिक्षा के दौरान ट्यूशन फीस या शैक्षिक ऋण के बराबर छात्रवृत्ति या आर्थिक सहायता भी प्रदान की जाएगी, जहाँ ऋण पर ब्याज का भुगतान पीएम-केयर्स फंड द्वारा किया जाएगा।
- स्वास्थ्य बीमा
- आयुष्मान भारत योजना के तहत ऐसे सभी बच्चों को एक लाभार्थी के रूप में नामांकित किया जाएगा, जिसमें 5 लाख रुपए तक का स्वास्थ्य बीमा कवर शामिल होगा।
- ऐसे बच्चों के 18 वर्ष के होने तक प्रीमियम राशि का भुगतान पीएम-केयर्स फंड द्वारा किया जाएगा।
- 10 लाख रुपए का कोष
पीएम-केयर्स फंड
- सरकार ने कोविड-19 महामारी द्वारा उत्पन्न किसी भी प्रकार की आपातकालीन या संकटपूर्ण स्थिति से निपटने हेतु ‘आपात स्थितियों में प्रधानमंत्री नागरिक सहायता और राहत कोष’ (PM CARES) की स्थापना की है।
- पीएम-केयर्स फंड एक सार्वजनिक धर्मार्थ ट्रस्ट है, जिसके अध्यक्ष प्रधानमंत्री हैं। अन्य सदस्यों के रूप में रक्षा मंत्री, गृह मंत्री और वित्त मंत्री शामिल हैं।
- यह कोष सूक्ष्म-दान को सक्षम बनाता है यानी इसमें राशि की सीमा निर्धारित नहीं की गई है, जिसके परिणामस्वरूप बड़ी संख्या में लोग योगदान करने में सक्षम होते हैं।
- यह कोष आपदा प्रबंधन क्षमताओं को मज़बूत करने एवं नागरिकों की सुरक्षा हेतु अनुसंधान को प्रोत्साहित करेगा।
- पीएम-केयर्स फंड में किया गया योगदान ‘कॉर्पोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी’ (CSR) के रूप में योग्य है।
बाल स्वराज कोविड-केयर
- ‘राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग’ ने देखभाल और सुरक्षा की आवश्यकता वाले बच्चों की पहचान करने के लिये एक ऑनलाइन ट्रैकिंग पोर्टल ‘बाल स्वराज’ (कोविड-केयर) पोर्टल तैयार किया है।
- यह उन बच्चों की ऑनलाइन ट्रैकिंग और डिजिटल रियल टाइम मॉनीटरिंग के उद्देश्य से बनाया गया है, जिन्हें देखभाल और सुरक्षा की आवश्यकता है।
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR)
- यह बाल अधिकार संरक्षण आयोग (CPCR) अधिनियम, 2005 के तहत मार्च 2007 में स्थापित एक सांविधिक निकाय है।
- यह महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण में है।
- आयोग का प्राथमिक कार्य यह सुनिश्चित करना है कि सभी देशों में बन रहे सभी कानून, नीतियाँ, कार्यक्रम और प्रशासनिक तंत्र, बाल अधिकारों के परिप्रेक्ष्य में भारतीय संविधान एवं बाल अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन के अनुरूप हों।
- यह शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 के तहत एक बच्चे के मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा के अधिकार से संबंधित शिकायतों की जाँच करता है।
- यह यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (POCSO) अधिनियम, 2012 के कार्यान्वयन की निगरानी करता है।
स्रोत: द हिंदू
विश्व दुग्ध दिवस
प्रीलिम्स के लियेविश्व दुग्ध दिवस तथा उमंग प्लेटफॉर्म के बारे में तथ्यात्मक जानकारी, डेयरी क्षेत्र से संबंधित विभिन्न पहल, ऑपरेशन फ्लड (श्वेत क्रांति) मेन्स के लियेकिसानों की आय दोगुनी करने में डेयरी उद्योग की भूमिका |
चर्चा में क्यों?
प्रतिवर्ष 1 जून को विश्व दुग्ध दिवस मनाया जाता है।
- इस अवसर पर मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय ने गोपाल रत्न पुरस्कार शुरू करने और उमंग प्लेटफॉर्म के साथ ई-गोपाला एप के एकीकरण की घोषणा की।
उमंग प्लेटफॉर्म
- उमंग (UMANG) का पूर्ण रूप ‘नए युग के शासन के लिये एकीकृत मोबाइल एप्लीकेशन’ (Unified Mobile Application for New-age Governance) है। यह भारत सरकार का ऑल-इन-वन सिंगल, एकीकृत, सुरक्षित, मल्टी-चैनल, मल्टी-प्लेटफॉर्म, बहुभाषी, मल्टी सर्विस मोबाइल एप है जिसे इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (Ministry of Electronics and Information Technology- MeitY) द्वारा नागरिकों तक एक ही मोबाइल एप के माध्यम से प्रमुख सरकारी सेवाओं की पहुँच सुनिश्चित करने के लिये वर्ष 2017 में लॉन्च किया गया था।
- यह एक एकीकृत एप्लीकेशन है जिसका उपयोग कई अखिल भारतीय ई-सरकारी सेवाओं जैसे: आयकर दाखिल करना, कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (EPFO) सेवाएँ, आधार, पेंशन, ई-पाठशाला, ई-भूमि रिकॉर्ड, फसल बीमा आदि का लाभ उठाने के लिये किया जा सकता है।
प्रमुख बिंदु
विश्व दुग्ध दिवस के बारे में:
- विश्व दुग्ध दिवस वर्ष 2001 में खाद्य और कृषि संगठन (FAO) द्वारा स्थापित किया गया था। इस दिन का उद्देश्य डेयरी क्षेत्र से जुड़ी गतिविधियों पर ध्यान आकर्षित करने का अवसर प्रदान करना है।
- FAO संयुक्त राष्ट्र की विशिष्ट एजेंसियों में से एक है जो भुखमरी को समाप्त करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय प्रयासों का नेतृत्त्व करता है।
वर्ष 2021 की थीम:
- इसकी थीम पर्यावरण, पोषण और सामाजिक-आर्थिक के संदेशों के साथ डेयरी क्षेत्र में स्थिरता पर केंद्रित होगी।
- ऐसा करने से यह विश्व में डेयरी फार्मिंग को फिर से पेश करेगा।
गोपाल रत्न पुरस्कार:
- केंद्रीय मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्री ने डेयरी क्षेत्र के लिये राष्ट्रीय पुरस्कार, गोपाल रत्न पुरस्कार (Gopal Ratna Awards) शुरू करने की घोषणा की। जिसकी तीन श्रेणियाँ हैं:
- सर्वश्रेष्ठ डेयरी किसान।
- सर्वश्रेष्ठ कृत्रिम गर्भाधान तकनीशियन (AIT)।
- सर्वश्रेष्ठ डेयरी सहकारी/दुग्ध उत्पादक कंपनी/किसान उत्पादक संगठन।
ई-गोपाला (उत्पादक पशुधन के माध्यम से धन का सृजन) एप:
- यह किसानों के प्रत्यक्ष उपयोग के लिये एक समग्र नस्ल सुधार, बाज़ार और सूचना पोर्टल है।
- यह निम्नलिखित पहलुओं पर समाधान प्रदान करता है:
- देश में पशुधन के सभी रूपों (वीर्य, भ्रूण आदि) में रोग मुक्त जीवाणु (जर्मप्लाज़्म) को खरीदना और बेचना।
- गुणवत्तापूर्ण प्रजनन सेवाओं की उपलब्धता (कृत्रिम गर्भाधान, पशु प्राथमिक चिकित्सा, टीकाकरण, उपचार आदि) और पशु पोषण के लिये किसानों का मार्गदर्शन करना।
डेयरी क्षेत्र से संबंधित अन्य पहलें:
- डेयरी विकास पर राष्ट्रीय कार्य योजना 2022: यह दूध उत्पादन बढ़ाने और डेयरी किसानों की आय को दोगुना करने का प्रयास करता है।
- राष्ट्रीय पशु रोग नियंत्रण कार्यक्रम और राष्ट्रीय कृत्रिम गर्भाधान कार्यक्रम: इसे देश में पशुओं में खुरपका-मुँहपका रोग (Foot & Mouth Disease- FMD) और ब्रुसेलोसिस को नियंत्रित करने तथा समाप्त करने के लिये शुरू किया गया था।
- पशु-आधार: यह पशुओं के लिये एक UID या पशु-आधार (Pashu Aadhaar) जारी करता है।
- राष्ट्रीय गोकुल मिशन: इसे वर्ष 2019 में एकीकृत पशुधन विकास केंद्रों के रूप में 21 गोकुल ग्राम स्थापित करने के लिये लॉन्च किया गया था।
ऑपरेशन फ्लड (श्वेत क्रांति)
श्वेत क्रांति के बारे में:
- भारत में श्वेत क्रांति डॉ वर्गीज़ कुरियन (Dr Verghese Kurein) के दिमाग की उपज थी। उनके अधीन गुजरात सहकारी दुग्ध विपणन संघ लिमिटेड और राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (NDDB) जैसे कई महत्त्वपूर्ण संस्थान स्थापित किये गए थे।
- श्वेत क्रांति NDDB द्वारा 1970 के दशक में शुरू की गई थी और ऑपरेशन फ्लड की आधारशिला ग्राम दुग्ध उत्पादकों की सहकारी समितियाँ हैं।
क्रांति के चरण:
- चरण I:
- यह वर्ष 1970 से शुरू हुआ और 10 वर्ष यानी वर्ष 1980 तक चला। इस चरण को विश्व खाद्य कार्यक्रम के माध्यम से यूरोपीय संघ द्वारा दान किये गए बटर ऑयल और स्किम्ड मिल्क पाउडर की बिक्री से वित्तपोषित किया गया था।
- चरण II:
- यह वर्ष 1981 से वर्ष 1985 तक पाँच वर्ष चला। इस चरण के दौरान दूध केंद्रों की संख्या 18 से बढ़कर 136 हो गई, दूध 290 नगरों के बाज़ारों में उपलब्ध होने लगा, वर्ष 1985 के अंत तक 43,000 आत्मनिर्भर ग्राम दुग्ध सहकारी समितियों की व्यवस्था की जा चुकी थी, जिसमें 42.50 लाख दूध उत्पादक शामिल थे।
- चरण III:
- यह भी लगभग 10 वर्ष यानी वर्ष 1985-1996 तक चला। इस चरण ने डेयरी सहकारी समितियों को विस्तार करने में सक्षम बनाया और कार्यक्रम को अंतिम रूप दिया। इसने दूध की बढ़ती मात्रा की खरीद और बाज़ार के लिये आवश्यक बुनियादी ढाँचे को भी मज़बूत किया।
उद्देश्य:
- दूध उत्पादन में वृद्धि।
- ग्रामीण क्षेत्र की आय में वृद्धि।
- उपभोक्ताओं को उचित दाम पर दूध उपलब्ध कराना
महत्त्व:
- इसने डेयरी किसानों को अपने स्वयं के हाथों बनाए गए संसाधनों पर नियंत्रण रखने के लिये अपने स्वयं के विकास को निर्देशित करने में मदद की।
- इसने वर्ष 2016-17 में भारत को विश्व में सबसे बड़ा दूध का उत्पादक बनने में मदद की है।
- वर्तमान में भारत विश्व का सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक है, जिसका वैश्विक उत्पादन 22% है।
स्रोत: पीआईबी
भारतीय मानक ब्यूरो की SDO मान्यता योजना
प्रिलिम्स के लियेअनुसंधान डिज़ाइन और मानक संगठन, भारतीय मानक ब्यूरो, ‘एक राष्ट्र एक मानक’ मिशन मेन्स के लिये‘एक राष्ट्र एक मानक’ मिशन का महत्त्व और आवश्यकता |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय रेलवे का ‘अनुसंधान डिज़ाइन और मानक संगठन’ (RDSO) भारतीय मानक ब्यूरो (BIS) के ‘एक राष्ट्र एक मानक’ मिशन के तहत ‘मानक विकास संगठन’ (SDO) घोषित होने वाला पहला संस्थान बन गया है।
- ‘अनुसंधान डिज़ाइन और मानक संगठन’ ने BSI SDO मान्यता योजना के तहत ‘मानक विकास संगठन’ (SDO) के रूप में मान्यता प्राप्त करने की पहल की है।
अनुसंधान डिज़ाइन और मानक संगठन
- यह लखनऊ (उत्तर प्रदेश) स्थित रेल मंत्रालय का एकमात्र अनुसंधान एवं विकास विंग है, जो रेलवे क्षेत्र के लिये मानकीकरण का कार्य करने वाले प्रमुख निकाय के रूप में कार्य कर रहा है।
प्रमुख बिंदु
परिचय
- ‘एक राष्ट्र एक मानक’ मिशन के विचार की कल्पना पहली बार वर्ष 2019 में की गई थी, इसकी परिकल्पना देश में गुणवत्तापूर्ण उत्पादों को सुनिश्चित करने के लिये ‘एक राष्ट्र, एक राशन कार्ड’ योजना की तर्ज पर की गई थी।
- भारत सरकार के ‘एक राष्ट्र एक मानक’ विज़न के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये भारतीय मानक ब्यूरो (BIS) ने एक योजना शुरू की है, जिसके तहत ‘मानक विकास संगठन’ (SDO) की मान्यता प्रदान की जाती है।
- यह मान्यता 3 वर्ष के लिये वैध है और वैधता अवधि पूरी होने के बाद नवीनीकरण की आवश्यकता होगी।
उद्देश्य
- विशिष्ट क्षेत्रों में मानकों के विकास में संलग्न विभिन्न संगठनों के पास उपलब्ध क्षमताओं और समर्पित डोमेन विशिष्ट विशेषज्ञता को एकत्रित और एकीकृत करना।
- इसका उद्देश्य किसी दिये गए उत्पाद के लिये एक मानक टेम्पलेट विकसित करना है, बजाय इसके कि विभिन्न एजेंसियों द्वारा विभिन्न प्रकार के मानक विकसित किये जाएँ।
- देश में सभी मानक विकास गतिविधियों के अभिसरण को सक्षम करना, जिसके परिणामस्वरूप देश में एक विषय के लिये एक राष्ट्रीय मानक मौजूद होगा।
- यह लंबे समय तक ब्रांड इंडिया को स्थापित करने में मदद करेगा। यह भारतीय मानकों के लिये बाज़ार की प्रासंगिकता भी सुनिश्चित करेगा।
BSI की अन्य पहलें:
- BSI-केयर एप
- इस एप के माध्यम से उपभोक्ता ISI-चिह्नित और हॉलमार्क वाले उत्पादों की प्रमाणिकता की जाँच कर सकते हैं और शिकायत दर्ज करा सकते हैं।
- कोविड-19 मानक
- BSI ने कवर-ऑल और वेंटिलेटर के लिये कोविड-19 मानकों को विकसित किया है और एन95 मास्क तथा सर्जिकल मास्क के लिये लाइसेंस प्रदान करने हेतु मानदंड जारी किये हैं, जिसके परिणामस्वरूप ISI-चिह्नित व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरणों (PPEs) का उत्पादन बढ़ा है।
- गुणवत्ता नियंत्रण आदेश
- BSI मानकों को अनिवार्य बनाने के लिये गुणवत्ता नियंत्रण आदेश (QCO) तैयार करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
- उपभोक्ता जुड़ाव के लिये पोर्टल
- BSI उपभोक्ता जुड़ाव को लेकर एक पोर्टल विकसित कर रहा है, जो उपभोक्ता समूहों के ऑनलाइन पंजीकरण, प्रस्तावों को प्रस्तुत करने और उनके अनुमोदन एवं शिकायत प्रबंधन की सुविधा प्रदान करेगा।
भारतीय मानक ब्यूरो
- इसे वस्तुओं के मानकीकरण, अंकन और गुणवत्ता प्रमाणन जैसी गतिविधियों के सामंजस्यपूर्ण विकास तथा इससे संबंधित गतिविधियों की देखरेख के लिये स्थापित किया गया है।
- यह भारतीय मानक ब्यूरो अधिनियम, 1986 द्वारा स्थापित किया गया था, जो दिसंबर 1986 में लागू हुआ था। यह उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय के तत्त्वावधान में कार्य करता है।
- एक नया भारतीय मानक ब्यूरो अधिनियम 2016 को अक्तूबर 2017 से लागू किया गया है।
- यह अधिनियम भारतीय मानक ब्यूरो (BSI) को भारत के राष्ट्रीय मानक निकाय के रूप में स्थापित करता है।
स्रोत: पी.आई.बी.
सकारात्मक स्वदेशीकरण सूची
प्रिलिम्स के लियेरक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया, 2020; डिफेंस इंडिया स्टार्टअप चैलेंज, आयुध निर्माणी बोर्डों का निगमीकरण, रक्षा औद्योगिक गलियारा, नकारात्मक आयात सूची मेन्स के लियेभारतीय रक्षा क्षेत्र: चुनौती और संभावनाएँ, रक्षा क्षेत्र संबंधी FDI नीति |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में रक्षा मंत्रालय (Ministry of Defence) ने 108 वस्तुओं की दूसरी ‘नकारात्मक आयात सूची’ (Negative Import List) जारी की, जिसका नाम परिवर्तित कर अब ‘सकारात्मक स्वदेशीकरण सूची‘ (Positive Indigenisation List) कर दिया गया है।
- 101 वस्तुओं वाली 'प्रथम नकारात्मक स्वदेशीकरण' (First Negative Indigenisation) सूची को अगस्त 2020 में अधिसूचित किया गया था।
प्रमुख बिंदु
दूसरी सकारात्मक स्वदेशीकरण सूची के विषय में:
- खरीद: सभी 108 वस्तुओं की खरीद अब रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया (Defence Acquisition Procedure- DAP), 2020 में दिये गए प्रावधानों के अनुसार स्वदेशी स्रोतों से की जाएगी।
- समय-सीमा: इसे दिसंबर 2021 से दिसंबर 2025 तक प्रभावी रूप से लागू करने की योजना है।
- शामिल वस्तुएँ:
- इस सूची में सेंसर, सिम्युलेटर, हथियार और गोला-बारूद जैसे- हेलीकॉप्टर, नेक्स्ट जेनरेशन कॉर्वेट, एयरबोर्न अर्ली वार्निंग एंड कंट्रोल (AEW&C) सिस्टम, टैंक इंजन, मीडियम रेंज सरफेस टू एयर मिसाइल (MRSAM) आदि को शामिल किया गया है।
- संभावित लाभ:
- यह आत्मनिर्भरता (आत्मनिर्भर भारत) प्राप्त करने और रक्षा निर्यात को बढ़ावा देने के दोहरे उद्देश्यों को पूरा करने के लिये सार्वजनिक तथा निजी क्षेत्र की सक्रिय भागीदारी के साथ स्वदेशीकरण को बढ़ावा देगी।
- इसमें गोला-बारूद के आयात प्रतिस्थापन पर विशेष ध्यान दिया गया है।
- यह सूची न केवल स्थानीय रक्षा उद्योग की क्षमता को महत्त्व देती है, बल्कि प्रौद्योगिकी और विनिर्माण क्षमताओं में नए निवेश को आकर्षित करके घरेलू अनुसंधान तथा विकास को भी गति प्रदान करेगी।
- यह सूची 'स्टार्ट-अप' के लिये एक उत्कृष्ट अवसर भी प्रदान करती है, क्योंकि इस पहल से सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSMEs) को अत्यधिक बढ़ावा मिलेगा।
रक्षा उपकरणों के घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने के लिये अन्य पहलें:
- घरेलू क्षेत्र के लिये बढ़ा हुआ पूंजी अधिग्रहण बजट: रक्षा मंत्रालय ने वर्ष 2021-22 के पूंजी अधिग्रहण बजट के अंतर्गत अपने आधुनिकीकरण कोष के लगभग 64% (70,221 करोड़ रुपए) घरेलू क्षेत्र से खरीदने का निर्णय लिया है।
- वित्त वर्ष 2020-21 के लिये घरेलू विक्रेताओं हेतु पूंजी बजट आवंटन 58% (52,000 करोड़ रुपया) किया गया था।
- रक्षा औद्योगिक गलियारा: भारत ने "मेक इन इंडिया" कार्यक्रम को बढ़ावा देने के बदले में निवेश को आकर्षित करने और साथ ही रोज़गार सृजन को प्रोत्साहित करने के लिये दो रक्षा औद्योगिक गलियारों (एक तमिलनाडु में और दूसरा उत्तर प्रदेश में) का उद्घाटन किया है।
- केंद्र सरकार ने स्वचालित मार्ग के अंतर्गत रक्षा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) की सीमा 49% से बढ़ाकर 74% और सरकारी मार्ग से 74% से अधिक कर दी है।
- आयुध निर्माणी बोर्डों का निगमीकरण: यह बेहतर प्रबंधन के लिये घोषित किया गया था, ताकि इन्हें शेयर बाज़ार में सूचीबद्ध किया जा सके और लोग इनके शेयर खरीद सकें।
- डिफेंस इंडिया स्टार्टअप चैलेंज: इसका उद्देश्य राष्ट्रीय रक्षा और सुरक्षा के क्षेत्र में प्रोटोटाइप बनाने और/या उत्पादों/समाधानों का व्यवसायीकरण करने के लिये स्टार्ट-अप/एमएसएमई/इनोवेटर्स का समर्थन करना है।
- इसे रक्षा मंत्रालय ने अटल इनोवेशन मिशन (Atal Innovation Mission) के साथ साझेदारी में लॉन्च किया है।
- सृजन पोर्टल: यह वन स्टॉप शॉप ऑनलाइन पोर्टल है जो विक्रेताओं को स्वदेशी वस्तुओं तक पहुँच प्रदान करता है।
रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया, 2020
- यह उन हथियारों या प्लेटफार्मों की सूची की अधिसूचना को सक्षम बनाता है जिन्हें आयात के लिये प्रतिबंधित किया जाएगा।
- यह रक्षा निर्माण और विनिर्माण कीमतों के स्वदेशीकरण (Indigenization of the Manufacturing Price) में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश पर केंद्रित है।
- यह कई नए विचारों को भी प्रस्तुत करती है जैसे कि प्लेटफॉर्मों और प्रणालियों में कृत्रिम बुद्धिमत्ता को शामिल करने की आवश्यकता, रक्षा उपकरणों में स्वदेशी सॉफ्टवेयर का उपयोग तथा स्टार्ट-अप एवं एमएसएमई द्वारा रक्षा अधिग्रहण की एक नई श्रेणी के रूप में 'नवाचार'।
- इसमें निम्नलिखित खरीद श्रेणियाँ शामिल हैं: स्वदेशी रूप से विकसित और निर्मित खरीदें, विदेशी द्वारा भारत में विकसित और निर्मित खरीदें।
- इसने सभी श्रेणियों में स्वदेशी सामग्री (Indigenous Content- IC) की आवश्यकता को 40% से बढ़ाकर 50% कर दिया गया है, जिसे सामग्री के आधार पर 50% से 60% भी किया जा सकेगा।
- केवल भारतीय कंपनियों से खरीद के माध्यम से विदेशी विक्रेताओं के पास 30% स्वदेशी सामग्री हो सकती है।
आगे की राह
- रक्षा मंत्रालय, रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (Defence Research and Development Organisation- DRDO) तथा सेवा मुख्यालय यह सुनिश्चित करने के लिये सभी आवश्यक कदम उठाएंगे कि सूची में उल्लेखित समय-सीमा का पालन हो।
- इससे सरकार के 'मेक इन इंडिया' विज़न में भारतीय रक्षा निर्माताओं को विश्व स्तरीय बुनियादी ढाँचा तैयार करने, भारत को रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने और निकट भविष्य में रक्षा निर्यात की क्षमता विकसित करने से मदद मिलेगी।
- रक्षा मंत्रालय द्वारा 'रक्षा उत्पादन और निर्यात संवर्द्धन नीति (Defence Production and Export Promotion Policy- DPEPP), 2020' का अंतिम संस्करण भी जारी किये जाने की उम्मीद है।
- डीपीईपीपी को आत्मनिर्भर बनने और निर्यात के लिये देश की रक्षा उत्पादन क्षमताओं पर ध्यान केंद्रित करने हेतु एक अतिव्यापी मार्गदर्शक दस्तावेज़ के रूप में परिकल्पित किया गया है।
स्रोत: द हिंदू
भारत-ऑस्ट्रेलिया बैठक
प्रिलिम्स के लियेक्वाड, कॉमनवेल्थ, हिंद महासागर रिम एसोसिएशन, आसियान क्षेत्रीय मंच, नेशनल इनोवेशन फॉर क्लाइमेट रेजिलिएंट एग्रीकल्चर, मालाबार नौसैनिक अभ्यास, AUSINDEX मेन्स के लियेफसल कटाई के बाद अनाज प्रबंधन, भारत का ऑस्ट्रेलिया के साथ द्विपक्षीय संबंध |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत और ऑस्ट्रेलिया ने कृषि और रक्षा के क्षेत्रों में सहयोग की समीक्षा की।
प्रमुख बिंदु
कृषि के क्षेत्र में:
- भारत-ऑस्ट्रेलिया अनाज साझेदारी (India-Australia Grains Partnership) का उद्देश्य ग्रामीण अनाज भंडारण और आपूर्ति शृंखला को मज़बूत करने के लिये फसल कटाई के बाद प्रबंधन में ऑस्ट्रेलिया की विशेषज्ञता का उपयोग करना है ताकि नुकसान तथा अपव्यय को कम किया जा सके।
- इस काम के लिये भारत की ओर से राष्ट्रीय कृषि विपणन संस्थान (National Institute of Agricultural Marketing) नोडल संगठन होगा।
- इस बैठक के दौरान भारत द्वारा नेशनल इनोवेशन फॉर क्लाइमेट रेजिलिएंट एग्रीकल्चर (National Innovation for Climate Resilient Agriculture- NICRA) के प्रमुख कार्यक्रम का उल्लेख किया गया और ऑस्ट्रेलिया के अनुसंधान संगठनों के साथ सहयोग स्थापित करने की उम्मीद व्यक्त की गई।
- एनआईसीआरए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) की एक नेटवर्क परियोजना है जिसे फरवरी 2011 में शुरू किया गया था।
- इस परियोजना का उद्देश्य रणनीतिक अनुसंधान और प्रौद्योगिकी प्रदर्शन के माध्यम से भारतीय कृषि की जलवायु परिवर्तन तथा जलवायु भेद्यता के प्रति अनुकूलता को बढ़ाना है।
- इस अनुकूलन और शमन पर अनुसंधान में फसल, पशुधन, मत्स्य पालन और प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन शामिल हैं।
रक्षा सहयोग पर:
- मालाबार नौसैनिक अभ्यास में ऑस्ट्रेलिया की भागीदारी।
- भारत ने इस अभ्यास में चीन के साथ लद्दाख गतिरोध के बाद ऑस्ट्रेलिया को शामिल होने के लिये आमंत्रित किया जिससे एक ऑस्ट्रेलियाई दल ने वर्ष 2020 के मालाबार नौसैनिक अभ्यास में भाग लिया।
- इस बैठक में AUSINDEX, म्यूचुअल लॉजिस्टिक सपोर्ट एग्रीमेंट (MLSA) और डिफेंस साइंस एंड टेक्नोलॉजी इंप्लीमेंटिंग अरेंजमेंट (DSTIA) जैसी विभिन्न द्विपक्षीय रक्षा सहयोग पहलों की समीक्षा की गई।
- 2+2 मंत्रिस्तरीय वार्ता बुलाने की मंशा व्यक्त की गई।
- यह वार्ता संवाद का एक प्रारूप है जहाँ रक्षा और विदेश मंत्री दूसरे देश के अपने समकक्षों से मिलते हैं। यह दोनों देशों के बीच उच्चतम स्तरीय संस्थागत तंत्र है।
भारत-ऑस्ट्रेलिया सहयोग:
- कोविड-19 के मुद्दे पर ऑस्ट्रेलिया ने तत्काल सहायता पैकेज के हिस्से के रूप में भारत को ऑक्सीजन, वेंटिलेटर और व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण (पीपीई) किट भेजे हैं।
- भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया के व्यापार मंत्रियों ने औपचारिक रूप से सप्लाई चेन रेज़ीलिएंस इनीशिएटिव (SCRI) शुरू किया है।
- हाल ही में भारत-ऑस्ट्रेलिया सर्कुलर इकॉनामी हैकथॉन (I-ACE) का आयोजन किया गया।
- दोनों देशों ने अपने संबंधों को एक व्यापक रणनीतिक साझेदारी के क्षेत्र में उन्नत किया और वर्ष 2020 में कई रक्षा समझौतों पर हस्ताक्षर किये।
- भारत और ऑस्ट्रेलिया विभिन्न बहुपक्षीय मंचों पर आपसी सहयोग साझा करते हैं।
- ऑस्ट्रेलिया विस्तारित संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की उम्मीदवारी का समर्थन करता है।
- भारत और ऑस्ट्रेलिया दोनों क्वाड, कॉमनवेल्थ, हिंद महासागर रिम एसोसिएशन (IORA), आसियान क्षेत्रीय मंच, जलवायु और स्वच्छ विकास पर एशिया-प्रशांत साझेदारी के सदस्य हैं, और उन्होंने पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन में भाग लिया है।
- दोनों देश विश्व व्यापार संगठन के संदर्भ में पाँच इच्छुक पार्टियों (FIP) के सदस्यों के रूप में भी सहयोग कर रहे हैं।
- ऑस्ट्रेलिया एशिया-प्रशांत आर्थिक सहयोग (APEC) का एक महत्त्वपूर्ण भागीदारी है और यह संगठन में भारत की सदस्यता का समर्थन करता है।
- सितंबर 2014 में दोनों देशों के बीच एक असैन्य परमाणु सहयोग समझौते पर हस्ताक्षर किये गए थे।
- पारस्परिक कानूनी सहायता संधि (MLAT) और भारत तथा ऑस्ट्रेलिया के बीच प्रत्यर्पण संधि, जिस पर जून 2008 में हस्ताक्षर किये गए थे, की दोनों सरकारों द्वारा पुष्टि की गई है।
- दोनों पक्षों द्वारा खुफिया सूचनाओं से संबंधित और उच्च प्रौद्योगिकी एवं बाहरी अंतरिक्ष जैसे अन्य क्षेत्रों में अन्य विकल्पों का पता लगाने की भी संभावना है।