स्टार प्रचारक एवं आदर्श आचार संहिता
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत निर्वाचन आयोग (Election Commission of India- ECI) ने पूर्व दूरसंचार मंत्री ए. राजा के नाम को स्टार प्रचारकों की सूची से हटा दिया है।
- चुनाव के समय टिप्पणी करने के लिये उन्हें आदर्श आचार संहिता (Model Code of Conduct- MCC) के उल्लंघन हेतु भी फटकार लगाई गई है।
प्रमुख बिंदु:
स्टार प्रचारक:
- एक स्टार प्रचारक किसी पार्टी के लिये चुनाव में एक सेलिब्रिटी के तौर पर वोट मांग सकता है। यह व्यक्ति कोई भी हो सकता है, एक राजनीतिज्ञ या यहाँ तक कि एक फिल्म स्टार भी।
- स्टार प्रचारक बनाने या न बनाए जाने के संबंध में कोई कानून उपलब्ध नहीं है।
- वे संबंधित राजनीतिक दलों द्वारा अपने निर्वाचन क्षेत्रों की स्थिति और अवधि को निर्दिष्ट करके नामित किये जाते हैं
- ECI आदर्श चुनाव आचार संहिता के तहत दिशा-निर्देश जारी करता है ताकि चुनाव अभियान को नियंत्रित किया जा सके।
स्टार प्रचारकों की संख्या:
- ECI द्वारा किसी मान्यता प्राप्त ’राष्ट्रीय या राज्य स्तरीय दल’ के अधिकतम 40 स्टार प्रचारक नामित किये जा सकते हैं।
- एक गैर-मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल अधिकतम 20 स्टार प्रचारकों को नामित कर सकता है।
स्टार प्रचारकों की आवश्यकता:
- ECI चुनाव अभियान के दौरान अलग-अलग उम्मीदवारों द्वारा किये गए खर्च पर नज़र रखता है। एक निर्वाचन क्षेत्र में प्रत्येक उम्मीदवार द्वारा किये जाने वाले खर्च की सीमा का निर्धारण निम्नलिखित प्रकार से किया गया है-
- लोकसभा चुनाव के लिये-
- चुनाव खर्च की अधिकतम सीमा अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग होती है। भारत के बड़े राज्यों को छोटे राज्यों की तुलना में अधिक खर्च करने की अनुमति है।
- लोकसभा चुनाव में एक उम्मीदवार 70 लाख रुपए तक खर्च कर सकता है।
- बड़े राज्यों जैसे- आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और कर्नाटक आदि में व्यय सीमा 70 लाख रुपए है।
- छोटे राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों जैसे- अरुणाचल प्रदेश, गोवा, सिक्किम, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, चंडीगढ़, दादरा और नगर हवेली, दमन और दीव, लक्षद्वीप तथा पुददुचेरी में यह व्यय सीमा 54 लाख रुपए है।
- उल्लेखनीय है कि दिल्ली लोकसभा चुनाव के मामले में भी यह सीमा 70 लाख रुपए है।
- विधानसभा चुनाव के लिये:
- उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार, पश्चिम बंगाल और आंध्र प्रदेश जैसे बड़े भारतीय राज्यों के विधानसभा चुनावों में खर्च सीमा 28 लाख रुपए है। जबकि छोटे राज्यों जैसे- अरुणाचल प्रदेश, गोवा, मणिपुर, मेघालय, मिज़ोरम, नगालैंड, सिक्किम, त्रिपुरा और पुददुचेरी के लिये यह सीमा 20 लाख रुपए तय की गई है।
- स्टार प्रचारक पर किये गए व्यय को एक उम्मीदवार के चुनाव व्यय में नहीं जोड़ा जाता है, जिससे चुनाव पर किये जाने वाले व्यय को बढ़ाने की अधिक गुंजाइश होती है।
- हालाँकि एक व्यक्तिगत उम्मीदवार को अभियान के खर्च से राहत पाने के लिये स्टार प्रचारक को पार्टी के सामान्य चुनाव अभियान तक सीमित करना होगा।
- जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के अनुसार, यह खर्च राजनीतिक दलों द्वारा वहन किया जाएगा।
एक स्टार प्रचारक के तौर पर प्रधानमंत्री:
- MCC दिशा-निर्देशों के अनुसार, जब कोई प्रधानमंत्री या पूर्व प्रधानमंत्री स्टार प्रचारक होता है, तो बुलेट-प्रूफ वाहनों सहित सुरक्षा पर होने वाला खर्च सरकार द्वारा वहन किया जाएगा और इसे पार्टी या उम्मीदवार के चुनाव खर्चों में नहीं जोड़ा जाएगा।
- हालाँकि यदि कोई अन्य प्रचारक प्रधानमंत्री के साथ यात्रा करता है, तो सुरक्षा व्यवस्था पर किये गए खर्च का 50% उम्मीदवार को वहन करना होगा।
स्टार प्रचारक सूची से हटाने के संबंध में चुनौती:
- जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 77, जो कि एक उम्मीदवार के चुनाव खर्च से संबंधित है, राजनीतिक पार्टी को नेता तय करने का अधिकार देती है और हर पार्टी को अपने 'स्टार प्रचारकों' की सूची चुनाव अधिकारी के समक्ष प्रस्तुत करने की अनुमति देती है।
- चूँकि स्टार प्रचारकों पर खर्च संबंधित उम्मीदवार के खर्च में शामिल नहीं है, ECI का एक आदेश स्टार प्रचारक की स्थिति को रद्द कर सकता है।
आदर्श आचार संहिता:
- MCC चुनावों से पहले राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों को विनियमित करने के लिये ECI द्वारा जारी दिशा-निर्देशों का एक समूह है।
- आदर्श आचार संहिता (MCC) भारतीय संविधान के अनुच्छेद 324 के अनुरूप है, जिसके तहत निर्वाचन आयोग (EC) को संसद तथा राज्य विधानसभाओं में स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनावों की निगरानी और संचालन करने की शक्ति दी गई है।
- प्रवर्तन की अवधि:
- नियमों के मुताबिक, आदर्श आचार संहिता उस तारीख से लागू हो जाती है जब निर्वाचन आयोग द्वारा चुनाव की घोषणा की जाती है और यह चुनाव परिणाम घोषित होने की तारीख तक लागू रहती है।
- कानूनी स्थिति: MCC वैधानिक नहीं है, लेकिन राजनीतिक दलों, उम्मीदवारों और मतदान एजेंटों से अपेक्षा की जाती है कि वे चुनाव घोषणा पत्र, भाषणों और जुलूसों की सामग्री से लेकर सामान्य आचरण आदि तक के मानदंडों का पालन करें।
- भारतीय दंड संहिता 1860, आपराधिक प्रक्रिया संहिता 1973 और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 (जैसी विधियों में संबंधित प्रावधानों के माध्यम से MCC के कुछ प्रावधानों को लागू किया जा सकता है।
- MCC से संबंधित अनुशंसाएँ:
- वर्ष 2013 में कार्मिक, लोक शिकायत, कानून और न्याय संबंधी स्थायी समिति ने MCC को कानूनी रूप से बाध्यकारी बनाने की सिफारिश की अर्थात् MCC को RPA 1951 का हिस्सा बनाया जाएगा।
- वर्ष 2015 में भारतीय विधि आयोग (LCI) की रिपोर्ट 255 में देखा गया कि चूँकि MCC केवल उसी तारीख से परिचालन में रहती है जिस दिन ECI चुनाव की घोषणा करता है, इसलिये सरकार चुनावों की घोषणा से पहले विज्ञापन जारी कर सकती है।
- रिपोर्ट में सिफारिश की गई कि सदन/विधानसभा की समाप्ति की तारीख से छह महीने पहले तक सरकार द्वारा प्रायोजित विज्ञापनों पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिये।
स्रोत- द हिंदू
विशिष्ट भूमि पहचान संख्या
चर्चा में क्यों?
केंद्र की योजना एक वर्ष के भीतर देश के प्रत्येक भूखंड हेतु 14 अंकों की ‘विशिष्ट भूखंड पहचान संख्या’ (Unique Land Parcel Identification Number) जारी करने की है।
- वर्ष 2021 में ‘विशिष्ट भूखंड पहचान संख्या’ (Unique Land Parcel Identification Number- ULPIN) योजना को 10 राज्यों में शुरू किया गया है जिसे मार्च 2022 तक संपूर्ण देश में लागू किया जाना है।
प्रमुख बिंदु:
ULPIN के बारे में:
- ULPIN को ‘भूमि की आधार संख्या’ के रूप में वर्णित किया जाता है। यह एक ऐसी संख्या है जो भूमि के उस प्रत्येक खंड की पहचान करेगी जिसका सर्वेक्षण हो चुका है, विशेष रूप से ग्रामीण भारत में, जहाँ सामान्यतः भूमि-अभिलेख काफी पुराने एवं विवादित होते हैं। इससे भूमि संबंधी धोखाधड़ी पर रोक लगेगी।
- इसके तहत भूखंड की पहचान, उसके देशांतर और अक्षांश के आधार पर की जाएगी जो विस्तृत सर्वेक्षण और संदर्भित भू संपत्ति-मानचित्रीकरण पर निर्भर होगी।
- यह वर्ष 2008 में शुरू हुए डिजिटल इंडिया भू-अभिलेख आधुनिकीकरण कार्यक्रम (Digital India Land Records Modernisation Programme- DILRMP) का अगला चरण है।
- ULPIN के माध्यम से उचित भूमि सांख्यिकी (Land Statistics) और भूमि लेखांकन ( Land Accounting) के कार्यों को संपन्न किया जा सकता है जो भूमि विकास बैंकों को विकसित करने में सहायक होगा तथा एकीकृत भूमि सूचना प्रबंधन प्रणाली (Integrated Land Information Management System- ILIMS) की ओर ले जाने में मदद करेगा।
लाभ:
- ULPIN द्वारा सभी प्रकार के लेन-देन में विशिष्टता सुनिश्चित की जा सकती है और भूमि रिकॉर्ड को समय-समय पर अद्यतन किया जा सकता है।
- इससे संपत्ति के लेन-देन में एक कड़ी या तारतम्यता स्थापित की जा सकेगी।
- सिंगल विंडो (Single Window) के माध्यम से भूमि रिकॉर्ड से संबंधित नागरिक सेवाओं का वितरण हो सकेगा।
- भूमि रिकॉर्ड डेटा को विभागों, वित्तीय संस्थानों और सभी हितधारकों के साथ साझा किया जा सकेगा।
डिजिटल इंडिया भू-अभिलेख आधुनिकीकरण कार्यक्रम:
- यह एक केंद्रीय क्षेत्र की योजना है जिसे 950 करोड़ रुपए की कुल लागत के साथ वर्ष 2020-21 तक बढ़ा दिया गया है।
- भूमि संसाधन विभाग (ग्रामीण विकास मंत्रालय) ने अपने मूल लक्ष्यों को पूरा करने सहित नई योजनाओं की एक शृंखला के साथ अपने दायरे को बढ़ाने हेतु ULPIN का विस्तार वर्ष 2023-24 तक किये जाने का प्रस्ताव दिया है।
- ULPIN, एकीकृत भूमि सूचना प्रबंधन प्रणाली (Integrated Land Information Management System- ILIMS) के विकास हेतु विभिन्न राज्यों में भूमि रिकॉर्ड्स के क्षेत्र में मौजूद समानता पर आधारित होगा, जिसमें अलग-अलग राज्य अपनी विशिष्ट ज़रूरतों के अनुसार, प्रासंगिक और उचित चीज़ों को जोड़ सकेंगे।
- एकीकृत भूमि सूचना प्रबंधन प्रणाली: इस प्रणाली में भूखंड का स्वामित्व, भूमि उपयोग, कराधान, स्थान सीमा, भूमि मूल्य, ऋण भार और कई अन्य जानकारियाँ शामिल होंगी।
- इस कार्यक्रम के तहत कुछ नई पहलें भी शामिल की गई हैं जैसे- नेशनल जेनेरिक डॉक्यूमेंट रजिस्ट्रेशन सिस्टम ( National Generic Document Registration System- NGDRS), ULPIN, राजस्व न्यायालय को भू-अभिलेखों से जोड़ना तथा सहमति के आधर पर भू-अभिलेखों को आधार नंबर के साथ एकीकरण करना आदि।
- NGDRS: इसका उद्देश्य नागरिकों को सशक्त ’बनाने हेतु दस्तावेज़ों और संपत्तियों के पंजीकरण के लिये ‘एक राष्ट्र एक सॉफ्टवेयर’ (One Nation One Software) सुविधा प्रदान करना है।
- DILRMP के अगले चरण में बैंकों के साथ भूमि रिकॉर्ड डेटाबेस (Land Record Databases) को लिंक किया जाएगा।
- यह देश के नागरिकों तक सेवाओं की पहुँच में वृद्धि करेगा तथा कृषि, वित्त, आपदा प्रबंधन आदि अन्य क्षेत्रों से संबंधित योजनाओं के इनपुट के रूप में भी कार्य करेगा।
स्रोत: द हिंदू
प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों को क्षमता बढ़ाने का आदेश
चर्चा में क्यों?
हाल ही में राष्ट्रीय हरित अधिकरण (National Green Tribunal) ने हरियाणा राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (Haryana State Pollution Control Board) को निर्देश दिया है कि वह अपनी क्षमता को मज़बूत करे, साथ ही केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (Central Pollution Control Board) से कहा कि वह एक समान भर्ती मापदंड अपनाए।
- यह निर्देश पर्यावरणीय मानदंडों के अनुपालन हेतु बेहतर निगरानी सुनिश्चित करने के लिये दिया गया।
- इससे पहले सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) ने जनवरी 2021 में हरियाणा में अनुपचारित सीवेज द्वारा जल निकायों में प्रदूषण पर स्वतः संज्ञान लिया था।
प्रमुख बिंदु
पृष्ठभूमि:
- याचिका:
- राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड्स (State Pollution Control Boards) द्वारा वर्ष 2018 में मौजूदा निगरानी तंत्र को संशोधित करने के लिये NGT की प्रमुख पीठ के समक्ष एक मामला दायर किया गया था।
- इसमें जल (प्रदूषण निवारण तथा नियंत्रण) अधिनियम, 1974 के साथ-साथ वायु (प्रदूषण निवारण और नियंत्रण) अधिनियम, 1981 के तहत अत्यधिक प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों के अनिवार्य निरीक्षण और स्वतः नवीनीकरण के लिये कंसेंट टू ऑपरेट (Consent to Operate) प्रमाणपत्र शामिल है।
- इस याचिका में कहा गया है कि केंद्रीय भूजल बोर्ड (Central Ground Water Board) की एक पूर्व रिपोर्ट ने हरियाणा में भूजल की गुणवत्ता में गिरावट की तरफ इशारा किया था।
- भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (Comptroller and Auditor General) की वर्ष 2016 की रिपोर्ट में भी बताया गया था कि निगरानी तंत्र की कमज़ोरी से कई परियोजनाएँ बिना सीटीओ प्रमाणपत्र के संचालित हैं।
- राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड्स (State Pollution Control Boards) द्वारा वर्ष 2018 में मौजूदा निगरानी तंत्र को संशोधित करने के लिये NGT की प्रमुख पीठ के समक्ष एक मामला दायर किया गया था।
- एनजीटी की कार्रवाई:
- एनजीटी ने हरियाणा सरकार को अपनी निरीक्षण नीति को फिर से लागू करने और कानून का प्रभावी प्रवर्तन सुनिश्चित करने के लिये एक आदेश पारित किया।
- हरियाणा का प्रस्ताव:
- एनजीटी के आदेश का पालन करते हुए हरियाणा सरकार ने निरीक्षण की आवृत्ति में वृद्धि, रियल टाइम डेटा के लिये ऑनलाइन निगरानी उपकरणों की स्थापना करने और दस्तावेज़ों के नवीनीकरण से पूर्व उनके सत्यापन हेतु एक संशोधित नीति का प्रस्ताव किया।
वर्तमान आदेश:
- निरीक्षण की आवृत्ति में वृद्धि करना।
- SPCB की क्षमता में वृद्धि करना/प्रदूषण नियंत्रण समितियों (Pollution Control Committees) की क्षमता में वृद्धि करना।
- पर्यावरण क्षतिपूर्ति निधि का उपयोग करने के लिये CPCB की क्षमता में वृद्धि।
- राज्य PCB/PCC के वार्षिक निष्पादन का लेखापरीक्षा करना।
- CPCB के प्रमुख पदों के लिये योग्यता, न्यूनतम पात्रता मानदंड और आवश्यक अनुभव का प्रारूप तैयार करना।
महत्त्व:
- SPCB की शक्ति और प्राधिकारियों के साथ 'ईज़ ऑफ डूइंग' के नाम पर समझौता किया गया। यह एनजीटी के हालिया निर्णय CPCB/SPCB/PCCs को मज़बूत करने की लंबे समय से विलंबित पहल की शुरुआत है।
- एनजीटी के फैसले को ऐतिहासिक करार दिया जा सकता है। एनजीटी ने उन अड़चनों को दूर करने की कोशिश की है, जिनका इस्तेमाल पर्यावरण नियमन की मज़बूती को रोकने के लिये किया जा रहा था।
- CPCB को मानक भर्ती नियमों को लाने लिये कहा गया, इस फैसले का महत्त्वपूर्ण हिस्सा है, जिसका सभी राज्यों द्वारा पालन किया जा सकता है। मौजूदा SPCBs भर्ती नियमों का दशकों से नवीनीकरण नहीं किया गया है।
नोट:
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड:
- इसका गठन एक सांविधिक संगठन के रूप में जल (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1974 के अंतर्गत सितंबर 1974 को किया गया।
- इसके पश्चात् केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को वायु (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1981 के अंतर्गत शक्तियाँ व कार्य सौंपे गए।
- यह बोर्ड पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के प्रावधानों के अंतर्गत पर्यावरण एवं वन मंत्रालय को तकनीकी सेवाएँ भी उपलब्ध कराता है।
राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड:
- ये बोर्ड CPCB के पूरक और सांविधिक होते हैं जो संबंधित राज्य के अधिकार क्षेत्र के भीतर पर्यावरण कानूनों और नियमों को लागू करने के लिये अधिकृत होते हैं।
पर्यावरण मुआवज़ा:
- पर्यावरण क्षतिपूर्ति पर्यावरण के संरक्षण का एक साधन है जो “पॉल्यूटर पे प्रिंसिपल” (Polluter Pays Principle) पर काम करता है।
पर्यावरण क्षतिपूर्ति कोष:
- यह पर्यावरण के उल्लंघन के चलते वसूले गए धन का एक विशेष प्रकार का कोष है।
- उदाहरण: जल निकायों में अवैध निर्वहन।
स्रोत: डाउन टू अर्थ
शिवकुमार स्वामीगलु
चर्चा में क्यों?
1 अप्रैल, 2021 को शिवकुमार स्वामीगलु (स्वामी जी) की जयंती मनाई गई।
- शिवकुमार स्वामी जी प्रसिद्ध लिंगायत विद्वान, शिक्षक और आध्यात्मिक गुरु थे।
प्रमुख बिंदु:
जन्म:
- उनका जन्म 1 अप्रैल, 1907 को कर्नाटक के रामनगर ज़िले में स्थित वीरापुरा ग्राम में हुआ था।
प्रारंभिक जीवन:
- वह अपने माता-पिता की तेरहवीं संतान थे और जन्म के समय उनका नाम शिवन्ना रखा गया था।
- धर्म में उनकी रुचि की शुरुआत बचपन में माता-पिता के साथ धार्मिक केंद्रों में जाने के कारण हुई।
- गाँव से प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने के बाद वे माध्यमिक शिक्षा के लिये नागवल्ली चले गए।
- इसके साथ ही वह कुछ समय के लिये सिद्धगंगा मठ में एक निवासी छात्र के रूप में रहे।
- श्री सिद्धगंगा मठ एक प्राचीन आश्रम है जो ‘शिव योगी सिद्ध पुरुषों’ की प्रसिद्धि के लिये जाना जाता है। 15वीं शताब्दी ईस्वी में श्री गोशाला सिद्धेश्वरा स्वामी जी ने इस मठ की स्थापना की थी।
- यह मठ बंगलूरू (कर्नाटक) से 63 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
- वर्ष 1930 में उन्होंने बंगलूरू के सेंट्रल कॉलेज से कला में स्नातक की उपाधि प्राप्त की। वह अंग्रेज़ी, कन्नड़ और संस्कृत भाषा के ज्ञानी थे।
- 1965 में उन्हें कर्नाटक विश्वविद्यालय द्वारा साहित्य की उपाधि से सम्मानित किया गया।
शिवकुमार स्वामीगलु का परिचय:
- वे कर्नाटक में स्थित सिद्धगंगा मठ के प्रमुख तथा लिंगायत समुदाय के व्यक्ति थे। उन्हें लिंगायतवाद के सबसे सम्मानित अनुयायी के रूप में जाना जाता है।
- 3 मार्च,1930 को उन्होंने संत या विरक्त आश्रम के रुप में सिद्धगंगा मठ में प्रवेश किया।
- वे अपने अनुयायियों के बीच ‘नादेदुदेव देवरु'’ अथवा ‘भगवान’ के रूप में जाने जाते थे।
- उन्हें 12वीं शताब्दी के समाज सुधारक, बसवेश्वरा के अवतार के रूप में भी माना जाता था, क्योंकि उन्होंने सभी धर्म या जाति के लोगों को स्वीकार किया।
सामाजिक कार्य
- उन्होंने शिक्षा और प्रशिक्षण के लिये 132 संस्थानों की स्थापना की थी।
- यहाँ बच्चों को मुफ्त आश्रय, भोजन और शिक्षा प्रदान की जाती है।
- मठ में आने वाले श्रद्धालुओं और तीर्थयात्रियों को भी मुफ्त भोजन मिलता है।
- उन्होंने श्री सिद्धगंगा एजुकेशन सोसायटी की स्थापना की।
- स्वामी जी के मार्गदर्शन में स्थानीय लोगों की सहायता के लिये प्रतिवर्ष एक कृषि मेला भी आयोजित किया जाता था।
पुरस्कार
- वर्ष 2007 में उन्हें कर्नाटक रत्न (कर्नाटक में सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार) से सम्मानित किया गया था।
- वर्ष 2015 में पद्म भूषण (भारत में तीसरा सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार) से सम्मानित किया गया था।
मृत्यु
- उनका निधन 21 जनवरी, 2019 को लगभग 112 वर्ष की आयु में हुआ था।
लिंगायत
- बारहवीं सदी में कर्नाटक में ‘बासवन्ना’ के नेतृत्व में एक धार्मिक आंदोलन चला जिसमें बासवन्ना के अनुयायी ‘लिंगायत’ कहलाए।
- बसवेश्वरा पूर्णतः जाति व्यवस्था और वैदिक अनुष्ठानों के विरुद्ध थे।
- लिंगायत पूर्णतः एकेश्वरवादी होते हैं। वे केवल एक ही ईश्वर ‘लिंग’ (शिव) की पूजा करते हैं।
- ‘लिंग’ शब्द का अर्थ मंदिरों में स्थापित लिंग से नहीं है, बल्कि सार्वभौमिक ऊर्जा (शक्ति) द्वारा प्राप्त सार्वभौमिक चेतना से है।
- वीरशैव तथा लिंगायत को एक ही माना जाता है किंतु लिंगायतों का तर्क है कि वीरशैव का अस्तित्व लिंगायतों से पहले का है तथा वीरशैव मूर्तिपूजक हैं।
- कर्नाटक में लगभग 18 प्रतिशत आबादी लिंगायतों की है। ये लंबे समय से हिंदू धर्म से पृथक् धर्म का दर्जा चाहते हैं।
स्रोत: पी.आई.बी.
एसीटी एक्सलरेटर
चर्चा में क्यों?
कार्ल बिल्ट (Carl Bildt) को ‘एक्सेस टू कोविड-19 टूल्स एक्सलरेटर’ (ACT-Accelerator) के लिये विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के विशेष दूत के रूप में नियुक्त किया गया है।
- ‘एसीटी एक्सलरेटर’ कोविड-19 परीक्षण, उपचार और टीकों के विकास, उत्पादन तथा न्यायसंगत पहुँच में तेज़ी लाने के लिये एक वैश्विक सहयोग है।
प्रमुख बिंदु:
एसीटी एक्सलरेटर:
- इसे अप्रैल 2020 में WHO के महानिदेशक, फ्राँस के राष्ट्रपति, यूरोपीय आयोग के अध्यक्ष और बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में लॉन्च किया गया था।
- यह सरकारों, वैज्ञानिकों, व्यवसायों, नागरिक समाज और समाज सेवी वैश्विक स्वास्थ्य संगठनों को एक साथ लाता है।
- इसके प्रतिभागियों में बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन, सेपी (CEPI), फाउंडेशन फॉर इनोवेटिव न्यू डायग्नोस्टिक्स (FIND), गावी (GAVI), द ग्लोबल फंड, यूनिटेड (Unitaid), वेलकम ट्रस्ट (लंदन), WHO और विश्व बैंक शामिल हैं।
- इसका उद्देश्य महामारी को समाप्त करना, विश्व स्तर पर सामाजिक और आर्थिक गतिविधियों को पूर्ण रूप से बहाल करना तथा कोविड-19 रोग के उच्च-स्तरीय नियंत्रण की सुविधा प्रदान करना है।
- एसीटी एक्सलरेटर के कार्यों को चार स्तंभों में व्यवस्थित किया जाता है:
- निदान, उपचार, टीका और स्वास्थ्य प्रणाली को मज़बूत बनाना।
- प्रत्येक स्तंभ समग्र प्रयास के लिये महत्त्वपूर्ण है और इसमें नवाचार एवं सहयोग शामिल है।
कोवैक्स:
- कोवैक्स (COVAX) ‘एसीटी एक्सलरेटर’ के चार स्तंभों में से एक है।
- यह विश्व के सभी कोनों में लोगों की मुफ्त कोविड-19 वैक्सीन तक पहुँच सुनिश्चित करने का प्रयास है।
- इसका प्रारंभिक उद्देश्य वर्ष 2021 के अंत तक 2 बिलियन खुराक उपलब्ध कराना है, जो उच्च जोखिम वाले और कमज़ोर लोगों के साथ फ्रंटलाइन स्वास्थ्यकर्मियों की सुरक्षा के लिये पर्याप्त रूप से उपलब्ध होनी चाहिये।
- विकसित और विकासशील देशों के वैक्सीन निर्माताओं के साथ साझेदारी में काम कर रहे गावी (GAVI), ‘कोलेशन फॉर एपिडेमिक रेडीनेस इनोवेशन’ (CEPI) और WHO के सह-नेतृत्व में इसका विकास किया गया है।
- भारत की भूमिका:
- भारत ने COVAX सुविधा के तहत अफ्रीका को कोविड-19 टीके भेजना शुरू कर दिया है।
- ‘सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया’ (SII) ने ‘गावी’ तथा ‘बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन’ से भारत और अन्य गरीब देशों को कोविड-19 वैक्सीन (200 मिलियन खुराक) की आपूर्ति को दोगुना करने के लिये ‘गावी कोवैक्स सुविधा’ (Gavi COVAX Facility) के तहत धन प्राप्त किया।
एसीटी एक्सलरेटर का महत्त्व:
- एसीटी एक्सलरेटर के लिये यह एक महत्त्वपूर्ण समय है जब दुनिया कोविड-19 के टीके तथा निदान पेश कर रही है।
- यह विश्व स्तर पर टीकों के असमान वितरण और नई समस्याओं का समाधान करने में मदद करेगा।
कॉर्टिकोस्टेरॉइड्स:
- कॉर्टिकोस्टेरॉइड्स दवा का एक वर्ग है जो शरीर में उत्तेजक क्रियाओं को कम करता है। यह प्रतिरक्षा प्रणाली गतिविधि को भी कम करता है।
- सूजन, खुजली, लालिमा और एलर्जी जैसी प्रतिक्रियाओं को कम करता है, इस प्रकार इसका उपयोग अस्थमा, गठिया, एलर्जी आदि के उपचार में किया जाता है।
- कॉर्टिकोस्टिरॉइड्स कोर्टिसोल से मिलता-जुलता है, जो शरीर की एड्रीनल ग्रंथियों द्वारा स्वाभाविक रूप से निर्मित एक हार्मोन है। स्वस्थ रहने के लिये शरीर को कोर्टिसोल की आवश्यकता होती है।
- कोर्टिसोल शरीर में प्रक्रियाओं की एक विस्तृत शृंखला है, जिसमें उपापचय, प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया और तनाव संबंधी प्रक्रियाएँ शामिल हैं।
स्रोत- डाउन टू अर्थ
संविधान का अनुच्छेद 244(A)
चर्चा में क्यों?
असम में कुछ वर्गों द्वारा संविधान के अनुच्छेद 244A के प्रावधानों के तहत एक स्वायत्त राज्य की मांग उठाई जा रही है।
प्रमुख बिंदु
पृष्ठभूमि
- 1950 के दशक में अविभाजित असम की आदिवासी आबादी के कुछ वर्गों के बीच एक अलग पहाड़ी राज्य की मांग उठने लगी।
- लंबे समय तक चले आंदोलन के बाद वर्ष 1972 में मेघालय को राज्य का दर्जा मिला।
- कार्बी आंगलोंग और उत्तरी कछार पहाड़ियों के नेता भी इस आंदोलन का हिस्सा थे। उन्हें असम में रहने या मेघालय में शामिल होने का विकल्प दिया गया था।
- हालाँकि वे असम में ही रहे क्योंकि केंद्र सरकार द्वारा उन्हें अनुच्छेद 244(A) समेत कई अन्य शक्तियाँ देने का वादा किया गया था।
- 1980 के दशक में अधिक शक्ति/स्वायत्तता की मांग ने कई कार्बी समूहों के बीच एक हिंसक आंदोलन का रूप ले लिया।
- जल्द ही यह एक सशस्त्र अलगाववादी विद्रोह बन गया, जिसमें पूर्ण राज्य का दर्जा दिये जाने की मांग की जाने लगी।
अनुच्छेद 244A
- यह अनुच्छेद संसद को शक्ति प्रदान करता है कि वह विधि द्वारा असम के कुछ जनजातीय क्षेत्रों को मिलाकर एक स्वायत्त राज्य की स्थापना कर सकती है।
- यह अनुच्छेद स्थानीय प्रशासन के लिये एक स्थानीय विधायिका या मंत्रिपरिषद अथवा दोनों की स्थापना की भी परिकल्पना करता है।
- इस अनुच्छेद को 22वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1969 के माध्यम से संविधान में शामिल किया गया था।
- अनुच्छेद 244A, भारतीय संविधान की छठी अनुसूची की तुलना में आदिवासी क्षेत्रों को अधिक स्वायत्त शक्तियाँ प्रदान करता है। इनमें सबसे महत्त्वपूर्ण शक्ति कानून व्यवस्था पर नियंत्रण से संबंधित है।
- जबकि छठी अनुसूची के तहत स्वायत्त परिषद में आदिवासी क्षेत्रों के पास कानून व्यवस्था का अधिकार क्षेत्र नहीं है।
छठी अनुसूची
- संविधान की छठी अनुसूची असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिज़ोरम में जनजातीय क्षेत्रों के प्रशासन के लिये इन राज्यों में जनजातीय लोगों के अधिकारों की रक्षा का प्रावधान करती है।
- ये विशेष प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 244(2) और अनुच्छेद 275(1) के तहत प्रदान किये गए हैं।
- असम में डिमा हसाओ, कार्बी आंग्लोंग तथा पश्चिम कार्बी और बोडो प्रादेशिक क्षेत्र के पहाड़ी ज़िले इस प्रावधान के तहत शामिल हैं।
- राज्यपाल को स्वायत्त ज़िलों के गठन और पुनर्गठन का अधिकार है। अतः राज्यपाल इनके क्षेत्रों को बढ़ा या घटा सकता है या इनका नाम परिवर्तित कर सकता है अथवा सीमाएँ निर्धारित कर सकता है। जहाँ एक ओर पाँचवीं अनुसूची के तहत अनुसूचित क्षेत्रों का प्रशासन संघ की कार्यकारी शक्तियों के अधीन आता है, वहीं छठी अनुसूची, राज्य सरकार की कार्यकारी शक्तियाँ के तहत आती हैं।
- पाँचवीं अनुसूची असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिज़ोरम के अतिरिक्त किसी भी राज्य में अनुसूचित क्षेत्रों एवं अनुसूचित जनजातियों के प्रशासन एवं नियंत्रण से संबंधित है।
- इस व्यवस्था के मुताबिक, एक राज्य में कार्यरत संपूर्ण सामान्य प्रशासनिक तंत्र, अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तारित नहीं होता है।
- वर्तमान में 10 राज्य यथा- आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, राजस्थान और तेलंगाना को पाँचवीं अनुसूची के तहत शामिल किया गया है।
- वहीं केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश और जम्मू-कश्मीर में जनजातीय क्षेत्रों को पाँचवीं या छठी अनुसूची के तहत नहीं लाया गया है।
- पाँचवीं अनुसूची असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिज़ोरम के अतिरिक्त किसी भी राज्य में अनुसूचित क्षेत्रों एवं अनुसूचित जनजातियों के प्रशासन एवं नियंत्रण से संबंधित है।
- स्वायत्त ज़िलों और स्वायत्त क्षेत्रों पर संसद या राज्य विधायिका के कानून लागू नहीं होते हैं अथवा कुछ निर्दिष्ट संशोधनों और अपवादों के साथ लागू होते हैं।
- इन परिषदों को व्यापक नागरिक और आपराधिक न्यायिक शक्तियाँ भी प्रदान की गई हैं, उदाहरण के लिये ग्राम न्यायालय आदि की स्थापना। हालाँकि इन परिषदों का न्यायिक क्षेत्राधिकार संबंधित उच्च न्यायालय के क्षेत्राधिकार के अधीन है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
राजनीति का अपराधीकरण
चर्चा में क्यों?
हाल ही में नेशनल इलेक्शन वॉच (National Election Watch) और एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (Association of Democratic Reforms- ADR) के अनुसार असम, केरल, पुद्दुचेरी, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनावों में 6,318 उम्मीदवारों में से कम-से-कम 1,157 उम्मीदवारों पर आपराधिक मामले दर्ज हैं।
- भारत में लोकतंत्र, शासन और चुनावी सुधार के लिये वर्ष 2002 से एक न्यू (NEW) नामक राष्ट्रव्यापी अभियान चल रहा है, जिसमें 1200 से अधिक गैर-सरकारी संगठन (NGO) और ऐसे ही अन्य नागरिक संगठन शामिल हैं।
- ADR एक गैर-सरकारी संगठन है, जिसकी स्थापना वर्ष 1999 में नई दिल्ली में की गई थी।
प्रमुख बिंदु
राजनीति का अपराधीकरण के बारे में:
- इसका अर्थ राजनीति में अपराधियों की बढ़ती भागीदारी से है, यानी अपराधी चुनाव लड़कर संसद या राज्य विधानमंडलों में सदस्यों के रूप में निर्वाचित हो सकते हैं। यह मुख्य रूप से नेताओं और अपराधियों के बीच साँठ-गाँठ के कारण होता है।
आपराधिक उम्मीदवारों की अयोग्यता का कानूनी पहलू
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अपराधीकरण का कारण:
- राजनीतिक इच्छाशक्ति का अभाव:
- लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम में संशोधन के बावजूद राजनीतिक दलों के बीच एक सामान्य सहमति बन गई है जो संसद को राजनीति के अपराधीकरण को रोकने के लिये मज़बूत कानून बनाने से रोकती है।
- कार्यान्वयन का अभाव:
- राजनीति में अपराधीकरण को रोकने के लिये बने कानूनों और निर्णयों के कार्यान्वयन की कमी के कारण इसमें बहुत मदद नहीं मिली है।
- संकीर्ण स्वार्थ:
- राजनीतिक दलों द्वारा चुने गए उम्मीदवारों के संपूर्ण आपराधिक इतिहास का प्रकाशन बहुत प्रभावी नहीं हो सकता है, क्योंकि मतदाताओं का एक बड़ा हिस्सा जाति या धर्म जैसे सामुदायिक हितों से प्रभावित होकर मतदान करता है।
- बाहुबल और धन का उपयोग:
- गंभीर आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों के पास अक्सर धन और संपदा काफी अधिक मात्रा में होती है, इसलिये वे दल के चुनावी अभियान में अधिक-से-अधिक पैसा खर्च करते हैं और उनकी राजनीति में प्रवेश करने तथा जीतने की संभावना बढ़ जाती है।
- इसके अतिरिक्त कभी-कभी तो मतदाताओं के पास कोई विकल्प नहीं होता है, क्योंकि सभी प्रतियोगी उम्मीदवार आपराधिक प्रवृत्ति के होते हैं।
प्रभाव:
- स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के सिद्धांत के विरुद्ध:
- यह एक अच्छे उम्मीदवार का चुनाव करने के लिये मतदाताओं की पसंद को सीमित करता है।
- यह स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के लोकाचार के खिलाफ है जो कि लोकतंत्र का आधार है।
- सुशासन पर प्रभाव:
- प्रमुख समस्या यह है कि कानून तोड़ने वाले ही कानून बनाने वाले बन जाते हैं, इससे सुशासन स्थापित करने में लोकतांत्रिक प्रक्रिया की प्रभावकारिता प्रभावित होती है।
- भारतीय लोकतांत्रिक प्रणाली में यह प्रवृत्ति यहाँ के संस्थानों की प्रकृति तथा विधायिका के चुने हुए प्रतिनिधियों की गुणवत्ता की खराब छवि को दर्शाती है।
- लोक सेवकों के कार्य पर प्रभाव
- इससे चुनावों के दौरान और बाद में काले धन का प्रचलन बढ़ जाता है, जिससे समाज में भ्रष्टाचार बढ़ता है तथा लोक सेवकों के काम पर असर पड़ता है।
- सामाजिक भेदभाव को बढ़ावा:
- यह समाज में हिंसा की संस्कृति को प्रोत्साहित करता है और भावी जनप्रतिनिधियों के लिये एक गलत उदाहरण प्रस्तुत करता है।
राजनीति के अपराधीकरण पर अंकुश लगाने के लिये सर्वोच्च न्यायालय के हालिया कदम:
- सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) ने फरवरी, 2020 में राजनीतिक दलों को विधानसभा और लोकसभा चुनावों के लिये अपने उम्मीदवारों के संपूर्ण आपराधिक इतिहास को प्रकाशित करने का आदेश दिया, साथ ही उन कारणों को भी जिनसे उन्हें अपराधिक कृत्य करने के लिये मजबूर होना पड़ा था।
- न्यायालय ने पब्लिक इंटरेस्ट फाउंडेशन बनाम भारत संघ (Public Interest Foundation vs Union Of India), 2018 में राजनीतिक दलों को अपने उम्मीदवारों के लंबित आपराधिक मामलों को ऑनलाइन प्रकाशित करने का भी निर्देश दिया था।
आगे की राह
- चुनाव सुधार पर बनी विभिन्न समितियों (दिनेश गोस्वामी, इंद्रजीत समिति) ने राज्य द्वारा चुनावी खर्च वहन किये जाने की सिफारिश की, जिससे काफी हद तक चुनावों में काले धन के उपयोग पर अंकुश लगाने में मदद मिलेगी और परिणामस्वरूप राजनीति के अपराधीकरण को सीमित किया जा सकेगा।
- एक स्वच्छ चुनावी प्रक्रिया हेतु राजनीतिक पार्टियों के मामलों को विनियमित करना आवश्यक है, जिसके लिये निर्वाचन आयोग (Election Commission) को मज़बूत करना ज़रूरी है।
- मतदाताओं को चुनाव के दौरान धन, उपहार जैसे अन्य प्रलोभनों के प्रति सतर्क रहने की आवश्यकता है।
- भारत के राजनीतिक दलों की राजनीति के अपराधीकरण और भारतीय लोकतंत्र पर इसके बढ़ते हानिकारक प्रभावों को रोकने के प्रति अनिच्छा को देखते हुए यहाँ के न्यायालयों को अब गंभीर आपराधिक प्रवृत्ति वाले उम्मीदवारों के चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगाने जैसे फैसले पर विचार करना चाहिये।