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डेली न्यूज़

  • 02 Sep, 2020
  • 36 min read
भारतीय राजनीति

असम सरकार द्वारा NRC के पुनर्सत्यापन की मांग

प्रिलिम्स के लिये: 

राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर, डी-वोटर

मेन्स के लिये:

राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर और विदेशी अधिकरण से जुड़े मुद्दे 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में असम सरकार ने वर्ष 2019 में जारी ‘राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर’ (National Register of Citizens- NRC) में शामिल 10-20% नामों के पुनः सत्यापन की अपनी मांग को दोहराया है। 

प्रमुख बिंदु:

  • जुलाई, 2019 में असम सरकार ने उच्चतम न्यायलय में एक हलफनामा (Affidavit) दायर किया था, जिसमें राज्य सरकार ने बांग्लादेश सीमा से सटे ज़िलों से NRC में शामिल 20% नामों और शेष ज़िलों से 10% नामों के पुनः सत्यापन किये जाने की मांग की थी। 
  • हालाँकि असम के एनआरसी समन्वयक (NRC Coordinator) द्वारा 27% नामों के पुनर्सत्यापन की बात कहे जाने के बाद सर्वोच्च न्यायलय ने राज्य सरकार की मांग को खारिज कर दिया था।
  • ध्यातव्य है कि वर्ष 2018 के एक निर्णय में सर्वोच्च न्यायालय ने पुन: सत्यापन की संभावना का उल्लेख करते हुए कहा था कि वह NRC में शामिल 10% नामों को पुनः सत्यापित करने पर विचार कर सकता है।
  • गौरतलब है कि अगस्त 2019 में प्रकाशित NRC में 19 लाख लोगों को इस रजिस्टर से बाहर कर दिया गया था। 

NRC की प्रक्रिया का प्रभाव:

  • असम सरकार द्वारा विधान सभा में प्रस्तुत किये गए आँकड़ों के अनुसार,  वर्तमान में राज्य में सक्रिय विदेशी अधिकरणों (Foreigners’ Tribunals) द्वारा अब तक 1,36,149 लोगों को विदेशी नागरिक घोषित किया जा चुका है।  
  • साथ ही 13 मार्च, 2013 से लेकर 31 जुलाई 2020 के बीच केवल 227 विदेशी नागरिकों को निर्वासित किया गया है।  
  • गौरतलब है कि वर्तमान में असम राज्य में 100 विदेशी अधिकरण सक्रिय हैं।  
  • वर्तमान में कुल 425 लोगों को राज्य के 6 अलग-अलग निरोध केंद्र अथवा डिटेंशन सेंटर (Detention Centre) में रखा गया है।

पुनर्सत्यापन की आवश्यकता: 

  • राज्य सरकार ने लोगों द्वारा सही NRC की मांग को पुनर्सत्यापन का प्रमुख आधार बताया है।
  • वर्तमान में NRC से बाहर 19 लाख लोगों को ‘अस्वीकृति आदेश’ (Rejection Order) भी नहीं जारी किया जा सका है।  
    • गौरतलब है कि यह आदेश लोगों को अपने बहिष्कार के खिलाफ विदेशी अधिकरण में अपील की अनुमति प्रदान करेगा।     
  • सरकार के अनुसार, COVID-19 और राज्य में बाढ़ की चुनौतियों के कारण लोगों को ‘अस्वीकृति आदेश’ जारी करने की प्रक्रिया बाधित हुई है।  

डी-वोटर की समस्या:

  • असम सरकार के अनुसार, राज्य के विभिन्न विदेशी अधिकरणों के समक्ष ‘संदिग्ध’ (Doubtful) या  ‘डी-वोटर’ (D-Voter) के 83,008 मामले लंबित हैं। 
  • डी-वोटर ऐसे लोगों की सूची है जिन्हें निर्वाचन आयोग द्वारा विदेशी नागरिक होने के संदेह के आधार पर असम की मतदाता सूची से बाहर कर दिया गया है। 
  • ऐसे मामलों को विदेशी अधिकरणों के पास भेजा जाता है जो उनकी नागरिकता के संदर्भ में निर्णय लेती है। 

राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर’

(National Register of Citizens- NRC):

  • राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर या एनआरसी एक ऐसा रजिस्टर है जिसमें भारतीय नागरिकों के विवरण को शामिल किया गया है। 
  • राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर को सबसे पहले वर्ष 1951 में तैयार किया गया था। 
  • NRC को अद्यतन या अपडेट (Update) करने की प्रक्रिया वर्ष 2013 में सर्वोच्च न्यायालय के एक निर्णय के बाद शुरू की गई। 
  • असम में NRC में ऐसे लोगों को शामिल किया जाएगा जो ये प्रमाणित कर सकें कि वे 24 मार्च, 1971 से पहले भारत के नागरिक रहें हों। 

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय अर्थव्यवस्था

कोर अवसंरचना क्षेत्र में 9.6 की गिरावट

प्रिलिम्स के लिये:

क्रय प्रबंधक सूचकांक, आठ कोर उद्योग, औद्योगिक उत्पादन सूचकांक

मेन्स के लिये:

कोर अवसंरचना क्षेत्र

चर्चा में क्यों?

जुलाई 2020 में आठ कोर अवसंरचना क्षेत्रों के आउटपुट में 9.6% की गिरावट देखी गई है। यह संकुचन पिछले पाँच महीनों से जारी है।

प्रमुख बिंदु:

  • विगत वर्ष जुलाई माह में आठ कोर क्षेत्र के उत्पादन में 2.6% की वृद्धि देखी गई थी।
  • जुलाई 2020 में, उर्वरक क्षेत्र के अलावा सभी सात कोर क्षेत्रों- कोयला, कच्चे तेल, प्राकृतिक गैस, रिफाइनरी उत्पाद, इस्पात, सीमेंट और विद्युत, में नकारात्मक वृद्धि दर्ज की गई है।
  • स्टील के उत्पादन में सबसे ज्यादा (16.5%) गिरावट देखी गई। इसके बाद रिफाइनरी उत्पादों (13.9%) में गिरावट देखी गई है।
  • न्यूनतम गिरावट (2.3%) विद्युत क्षेत्र में देखी गई है।

Core-Industries

क्रय प्रबंधक सूचकांक पर विनिर्माण का प्रदर्शन:

  • ‘क्रय प्रबंधक सूचकांक’ (Purchasing Managers’ Index- PMI) अगस्त माह में पिछले महीने की तुलना में 46 अंक से बढ़कर 52 हो गया है। जो लगातार चार महीनों के संकुचन के बाद विनिर्माण क्षेत्र में परिचालन स्थितियों में सुधार का संकेत है।
    • यहाँ ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि अप्रैल 2020 से पूर्व, पिछले 32 महीनों से विनिर्माण क्रय प्रबंधक सूचकांक में निरंतर बढ़ोतरी हो रही थी।
  • भारतीय विनिर्माण क्षेत्र के 'क्रय प्रबंधक सूचकांक' में सकारात्मक संकेतों के बावज़ूद इस क्षेत्र में 'नौकरियों की छंटनी' जारी है।

क्रय प्रबंधक सूचकांक

(Purchasing Managers’ Index- PMI):

  • PMI को ‘आपूर्ति प्रबंधन संस्थान’ (Institute for Supply Management- ISM) द्वारा मासिक रूप से संकलित और जारी किया जाता है। 
    • ISM, विश्व का सबसे पुराना और सबसे बड़ा आपूर्ति प्रबंधन संघ है।
  • 'क्रय प्रबंधक सूचकांक' (PMI) व्यावसायिक गतिविधियों का एक संकेतक है, जिसमें विनिर्माण और सेवा क्षेत्रों दोनों शामिल हैं।
  • यह एक सर्वेक्षण-आधारित प्रणाली है, जिसमें उत्तरदाताओं (Respondents) से कुछ प्रमुख व्यावसायिक क्रियाओं के प्रति उनकी धारणा में आए बदलाव (Changes in Their Perception) के बारे में पूछा जाता है।
  • PMI की गणना विनिर्माण और सेवा क्षेत्रों के लिये अलग-अलग की जाती है, उसके बाद एक समग्र सूचकांक का निर्माण किया जाता है।

PMI का महत्त्व:

  • PMI को आमतौर पर महीने की शुरुआत में जारी कर दिया जाता है। यह IIP द्वारा जारी मासिक आँकड़ों से पहले उपलब्ध कर दिया जाता है, इसलिये इसे आर्थिक गतिविधि का एक अच्छा संकेतक माना जाता है।
  • PMI को 0 से 100 तक के सूचकांक पर मापा जाता है। 50 से ऊपर का आँकड़ा व्यावसायिक गतिविधि में विस्तार या विकास को दर्शाता है, जबकि 50 से नीचे का आँकड़ा संकुचन (गिरावट) को प्रदर्शित करता है।

अवसंरचना संकुचन के कारण:

  • अवसंरचना क्षेत्र में संकुचन का कारण मुख्यत: स्टील, रिफाइनरी उत्पाद, और सीमेंट के उत्पादन में गिरावट का होना है।
  • COVID-19 महामारी के कारण वैश्विक और घरेलू आपूर्ति श्रंखलाओं में उत्पन्न व्यवधानों  से आर्थिक संसाधनों की गतिशीलता में बाधा लगातार बनी हुई है। 
  • जुलाई माह में ईंधन के उच्च मूल्य, देश के कुछ हिस्सों में नए सिरे से लॉकडाउन को लगाने, और तेज़ मानसून के कारण परिवहन, औद्योगिक और निर्माण की गतिविधियाँ प्रभावित हुई है, जिसके कारण स्थानीय मांग में कमी देखी गई है।

आठ कोर उद्योग:

  • आठ कोर क्षेत्र के उद्योगों में कोयला, कच्चा तेल, प्राकृतिक गैस, रिफाइनरी उत्पाद, उर्वरक, इस्पात, सीमेंट और विद्युत शामिल हैं।
  • औद्योगिक उत्पादन सूचकांक ( Index of Industrial Production-IIP) में आठ कोर उद्योगों का योगदान 40.27 प्रतिशत है।
  • आठ प्रमुख उद्योगों का उनके भार का घटता क्रम: रिफाइनरी उत्पाद> विद्युत> इस्पात> कोयला> कच्चा तेल> प्राकृतिक गैस> सीमेंट> उर्वरक।

उद्योग 

भार (प्रतिशत में)

पेट्रोलियम और रिफाइनरी उत्पादन 

28.04

विद्युत उत्पादन

19.85 

इस्पात उत्पादन

17.92

कोयला उत्पादन

10.33 

कच्चा तेल उत्पादन

8.98

प्राकृतिक गैस उत्पादन 

6.88 

सीमेंट उत्पादन 

5.37

उर्वरक उत्पादन

2.63


औद्योगिक उत्पादन सूचकांक

(Index of Industrial Production-IIP):

  • 'औद्योगिक उत्पादन सूचकांक' अर्थव्यवस्था के विभिन्न उद्योग समूहों में एक निश्चित समय अवधि में विकास दर को प्रदर्शित करता है।
  • इसका संकलन तथा प्रकाशन मासिक आधार पर 'राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय', 'सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय' द्वारा किया जाता है।
  • IIP एक समग्र संकेतक है जो वर्गीकृत किये गए उद्योग समूहों की वृद्धि दर को मापता है जिनमें शामिल है: 
    • व्यापक क्षेत्र (Broad sectors)- खनन, विनिर्माण और विद्युत। 
    • उपयोग आधारित क्षेत्र (Use-based Sectors)- मूलभूत वस्तुएँ, पूँजीगत वस्तुएँ और मध्यवर्ती वस्तुएँ।
  • IIP के आकलन के लिये आधार वर्ष 2011-2012 है।

औद्योगिक उत्पादन सूचकांक का महत्व: 

  • इसका उपयोग नीति-निर्माण के लिये  वित्त मंत्रालय, भारतीय रिज़र्व बैंक सहित अन्य सरकारी एजेंसियों द्वारा किया जाता है। 
  • IIP, त्रैमासिक और अग्रिम सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के अनुमानों की गणना के लिये अत्यंत प्रासंगिक बना हुआ है।

स्रोत: द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

समायोजित सकल राजस्व (AGR) चुकाने हेतु 10 वर्ष का समय

प्रिलिम्स के लिये:

समायोजित सकल राजस्व, स्पेक्ट्रम उपयोग शुल्क  

मेन्स के लिये:

समायोजित सकल राजस्व विवाद, दूरसंचार क्षेत्र से संबंधित चुनौतियाँ और मुद्दे

चर्चा में क्यों?

हाल ही में उच्चतम न्यायलय ने दूरसंचार कंपनियों को अपने बकाया ‘समायोजित सकल राजस्व’ (Adjusted Gross Revenue- AGR) को चुकाने के लिये 10 वर्ष का समय देने का निर्णय लिया है।

प्रमुख बिंदु:

  • सर्वोच्च न्यायालय ने यह निर्णय COVID-19 के कारण उत्पन्न हुई आर्थिक चुनौतियों को देखते हुए लिया है।
  • गौरतलब है कि मार्च 2020 में केंद्र सरकार ने दूरसंचार कंपनियों को AGR के बकाया भुगतान हेतु 20 वर्ष का समय देने का सुझाव दिया था।
  • सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के अनुसार, दूरसंचार कंपनियों को अपने कुल बकाया AGR की 10% राशि 31 मार्च 2021 तक जमा करनी होगी।
  • इसके बाद दूरसंचार कंपनियाँ बची हुई राशि वर्ष 2021 से वर्ष 2031 के बीच कर वार्षिक (प्रतिवर्ष 31 मार्च को) रूप से कर सकेंगी।
    • गौरतलब है कि वर्तमान में देश में दूरसंचार क्षेत्र की अलग-अलग कंपनियों का बकाया AGR लगभग 1.4 लाख करोड़ रुपए तक पहुँच गया है। 
  • किसी भी वर्ष में देय राशि के भुगतान में देरी या चूक होने पर संबंधित कंपनी पर जुर्माने के साथ यह न्यायालय के आदेश की अवमानना के तहत दंडनीय भी होगा। 
  • अगले 10 वर्षों के दौरान दूरसंचार कंपनियों और दूर-संचार विभाग को प्रतिवर्ष 7 अप्रैल को न्यायालय के आदेश के अनुपालन की रिपोर्ट देनी होगी।     
  • इस मामले में दूरसंचार कंपनियों (जिनका AGR बकाया है) के प्रबंध निदेशकों को चार सप्ताह के अंदर एक व्यक्तिगत गारंटी देनी होगी।
  • इसके साथ ही सर्वोच्च न्यायलय ने ‘दिवाला और दिवालियापन संहिता’ (Insolvency and Bankruptcy Code- IBC) के तहत स्पेक्ट्रम की बिक्री के संदर्भ में ‘राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय न्यायाधिकरण’ (National Company Law Appellate Tribunal-NCLAT) को अगले दो माह के अंदर निर्णय लेने का निर्देश दिया है।  

पृष्ठभूमि:

  • गौरतलब है कि ‘राष्ट्रीय दूरसंचार नीति, 1994’ के तहत देश में दूरसंचार क्षेत्र के उदारीकरण के पश्चात एक निश्चित शुल्क के भुगतान के आधार पर दूरसंचार कंपनियों को लाइसेंस जारी किये गए।
  • हालाँकि वर्ष 1999 में सरकार ने एकमुश्त शुल्क के दबाव से बचने के लिये कंपनियों को राजस्व साझा करने का विकल्प उपलब्ध कराया।
  • इसके तहत कंपनियों को वार्षिक लाइसेंस शुल्क और स्पेक्ट्रम उपयोग शुल्क के रूप में अपने समायोजित सकल राजस्व (AGR) का एक हिस्सा सरकार के साथ साझा करना था।   
  • दूरसंचार कंपनियों के सकल राजस्व की गणना दूरसंचार विभाग और दूरसंचार कंपनियों के बीच हुए लाइसेंस समझौते के आधार पर की जाती है, इसके साथ ही लाइसेंस समझौते के प्रावधानों के अनुरूप कुछ कटौतियों के पश्चात AGR की गणना की जाती है।
  • इसके आधार पर लाइसेंस शुल्क (License Fee- LF) और स्पेक्ट्रम उपयोग शुल्क (Spectrum Usage Charges- SUC) को क्रमशः कंपनी के AGR का 8% (LF )और 3-5% (SUC) निर्धारित किया गया था।

AGR विवाद:  

  • दूर-संचार विभाग के अनुसार, AGR की गणना में दूर संचार कंपनियों द्वारा सभी स्रोतों से प्राप्त राजस्व को शामिल किया जाना चाहिये, जिनमें गैर-दूरसंचार संबंधी स्रोतों से प्राप्त राजस्व जैसे- कंपनी द्वारा जमा राशि पर प्राप्त ब्याज या संपत्ति की बिक्री से प्राप्त धन आदि शामिल हैं।
  • वर्ष 2005 में सेलुलर ऑपरेटर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (Cellular Operators Association of India-COAI)  ने सरकार द्वारा दी गई AGR की इस परिभाषा को चुनौती दी।
  • वर्ष 2015 में ‘दूरसंचार विवाद समाधान एवं अपील प्राधिकरण’ (Telecom Disputes Settlement and Appellate Tribunal- TDSAT) ने दूरसंचार कंपनियों के पक्ष में अपना फैसला सुनाया और कहा कि पूंजीगत प्राप्तियों तथा गैर-प्रमुख स्रोतों से प्राप्त राजस्व जैसे- किराया, अचल संपत्तियों की बिक्री पर लाभ, लाभांश, ब्याज आदि को AGR से बाहर रखा जाएगा।
  • 24 अक्तूबर, 2019 को उच्चतम न्यायालय ने AGR के संदर्भ में दूरसंचार विभाग द्वारा दी गई परिभाषा का समर्थन करते हुए सभी कंपनियों को कुल बकाया AGR, बकाया राशि पर जुर्माना और विलंब के लिये जुर्माने पर ब्याज भी जमा करने का आदेश दिया।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने दूरसंचार कंपनियों को यह राशि जमा करने के लिये तीन माह का समय दिया था।

निर्णय का प्रभाव:  

  • सर्वोच्च न्यायालय के इस निर्णय वर्तमान में वित्तीय चुनौतियों से जूझ रही कई दूरसंचार कंपनियों के लिये एक बड़ी राहत होगी।
  • इस निर्णय के पश्चात दूर-संचार क्षेत्र के बड़े विवाद के समाधान के साथ ही सरकार को भी बकाया धन प्राप्त हो सकेगा। 
  • उदाहरण के लिये भारती एयरटेल के कुल 36,000 करोड़ रुपए के AGR में से 21,000 करोड़ रुपए बकाया हैं, अतः उच्चतम न्यायालय के हालिया निर्णय के तहत कंपनी को 31 मार्च तक लगभग 2,160 करोड़ रुपए के बाद प्रतिवर्ष लगभग 19,440 करोड़ रुपए का भुगतान करना होगा।
  • हालाँकि वोडाफोन-आइडिया के लिये अभी भी लगभग 58,000 करोड़ के AGR का भुगतान एक बड़ी चुनौती होगा, क्योंकि अब तक कंपनी द्वारा अपने कुल बकाया AGR में से मात्र 7850 करोड़ रुपए का भुगतान किया है।
  • बकाया राशि की भुगतान अवधि को 10 वर्ष तक बढ़ाए जाने से कंपनियों को 5G जैसी नवीन तकनीकों में निवेश के लिये धन जुटाने में आसानी होगी।

चुनौतियाँ:  

  • वोडाफोन जैसी कुछ दूर-संचार कंपनियों के अनुसार, वे वर्तमान में बकाया AGR के भुगतान पर नई बैंक गारंटी देने की स्थिति में नहीं हैं।
  • गौरतलब है कि वोडाफोन और आइडिया ने इससे पहले बकाया AGR के भुगतान हेतु 15 वर्ष की अवधि दिये जाने की मांग की थी।
  • दूरसंचार कंपनियों पर बढ़ते आर्थिक दबाव के कारण भविष्य में फोन और इंटरनेट रिचार्ज की दरों में वृद्धि हो सकती है।

आगे की राह:

  • वर्तमान समय में देश के विकास में फोन और इंटरनेट की भूमिका बहुत ही महत्त्वपूर्ण हो गई है, इसके साथ ही आने वाले दिनों में देश में 5G की शुरुआत के दौरान स्थानीय कंपनियों का मज़बूत होना अत्यधिक आवश्यक है। 
  • दूरसंचार क्षेत्र में कई कंपनियों के बीच प्रतिस्पर्द्धा से सरकार को आर्थिक लाभ के साथ लोगों को भी कम कीमत पर नवीन तकनीकों का लाभ मिल सकेगा। 
  • वर्तमान में दूरसंचार कंपनियों के आर्थिक दबाव को देखते हुए सरकार को जुर्माने की राशि में कटौती पर विचार करना चाहिये। 

दूरसंचार विवाद समाधान एवं अपील प्राधिकरण

(Telecom Disputes Settlement and Appellate Tribunal- TDSAT):

  • दूरसंचार विवाद समाधान एवं अपील प्राधिकरण की स्थापना वर्ष 2000 में ‘भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण अधिनियम, 1997’ में संशोधन के माध्यम से की गई थी।
  • TDSAT की स्थापना का उद्देश्य दूरसंचार क्षेत्र के सेवा प्रदाताओं और उपभोक्ताओं की हितों की रक्षा हेतु अपीलों और विवादों के निपटारों के साथ दूरसंचार क्षेत्र के क्रमिक विकास को सुनिश्चित करना था।

संरचना: 

  • TDSAT में एक अध्यक्ष और दो सदस्य होते हैं जिन्हें केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त किया जाता है।
  • TDSAT का अध्यक्ष सर्वोच्च न्यायालय का न्यायाधीश या उच्च नयायालय का मुख्य नयायाधीश (सेवारत अथवा सेवानिवृत्त) होना चाहिये। 

कार्य:  

  • TDSAT ‘भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण अधिनियम, 1997’ (संशोधित), ‘सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2008’ और भारतीय विमानपत्तन आर्थिक नियामक प्राधिकरण अधिनियम, 2008  के तहत अपने अधिकारों का प्रयोग करता है। 
  • TDSAT के अधिकार क्षेत्र में दूरसंचार, प्रसारण, सूचना प्रौद्योगिकी और एयरपोर्ट टैरिफ से जुड़े मामले आते हैं।

स्रोत: द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

स्वयं सहायता समूहों में NPA की समस्या

प्रिलिम्स के लिये

स्वयं सहायता समूह, गैर-निष्पादित परिसंपत्ति, दीनदयाल अंत्योदय योजना-राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन

मेन्स के लिये 

ग्रामीण भारत के विकास में स्वयं सहायता समूहों की भूमिका

चर्चा में क्यों?

बैंकों द्वारा स्वयं सहायता समूहों (Self-Help Groups-SHGs) को दिया गया ऋण तेज़ी से गैर-निष्पादित परिसंपत्ति (Non-Performing Assets-NPA) में परिवर्तित हो रहा है, इस समस्या के मद्देनज़र केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय ने राज्यों से ज़िलेवार NPAs की निगरानी करने और बकाया राशि की वसूली के लिये आवश्यक उपाय करने को कहा है।

प्रमुख बिंदु

  • दरअसल ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा दीनदयाल अंत्योदय योजना-राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन की समीक्षा की जा रही थी, इसी मिशन के तहत सरकार स्वयं सहायता समूहों (SHGs) को बैंकों से जोड़कर उन्हें वित्तीय सहायता प्रदान करती है।
  • बैठक के दौरान स्वयं सहायता समूहों (SHGs) द्वारा लिये गए ऋण के वापस न आने अर्थात् उनके गैर-निष्पादित परिसंपत्ति (NPA) के रूप में परिवर्तित हो जाने के मुद्दे पर भी चर्चा की गई।

स्वयं सहायता समूहों में NPAs की समस्या

  • आँकड़े बताते हैं कि कुछ राज्यों में स्वयं सहायता समूहों (SHGs) द्वारा बैंकों से लिया गया एक-चौथाई से अधिक ऋण गैर-निष्पादित परिसंपत्ति (NPA) में परिवर्तित हो चुका है।
  • मार्च माह के अंत तक देश भर के तकरीबन 54.57 लाख स्वयं सहायता समूहों (SHGs) पर 91,130 करोड़ रुपए बकाया थे, जिसमें से जिनमें से 2,168 करोड़ रुपए अर्थात् 2.37 प्रतिशत NPAs के रूप में परिवर्तित हो चुके हैं। 
    • यह आँकड़ा वित्तीय वर्ष 2018-19 की तुलना में देश भर के स्वयं सहायता समूहों द्वारा लिये गए ऋणों के NPAs में समग्र तौर पर 0.19 प्रतिशत की वृद्धि दर्शाता है।
  • गैर-निष्पादित परिसंपत्ति (NPA) के विश्लेषण में सबसे खराब प्रदर्शन अरुणाचल प्रदेश का रहा, जहाँ स्वयं सहायता समूहों द्वारा लिये गए ऋण का 43.34 प्रतिशत हिस्सा NPA के रूप में परिवर्तित हो गया।
  • उत्तर प्रदेश में स्वयं सहायता समूहों द्वारा लिये गए ऋण का 36.02 प्रतिशत हिस्सा मार्च 2020 के अंत तक NPA में परिवर्तित हो गया, जबकि बीते वर्ष वर्ष की शुरुआत में यह केवल  22.16 प्रतिशत था। 
  • उत्तर प्रदेश के बाद पंजाब और उत्तराखंड का स्थान है, जहाँ स्वयं सहायता समूहों द्वारा लिये गए ऋण का क्रमशः 19.25 प्रतिशत और 18.32 प्रतिशत हिस्सा NPA में परिवर्तित हो गया। इनके बाद हरियाणा का स्थान है जहाँ स्वयं सहायता समूहों का 10.18 प्रतिशत ऋण NPA में बदल गया।

गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों में वृद्धि के कारण

  • समन्वय का अभाव: विशेषज्ञ मानते हैं कि स्वयं सहायता समूह के सदस्यों के बीच समन्वय का अभाव उस समूह के डिफॉल्टर होने का सबसे बड़ा कारण है। 
    • कई बार यह भी देखा गया है कि समूह के नेता बिना समूह को सूचित किये ऋण ले लेते हैं और ऋण चुकाने की उनकी असमर्थता पर पूरे समूह को डिफॉल्टर घोषित कर दिया जाता है।
  • ऋण माफी की उम्मीद: कई बार स्वयं सहायता समूह सरकार द्वारा ऋण माफी की घोषणा का इंतज़ार करते रहते हैं और प्रायः इस इंतज़ार में उनके द्वारा लिया गया ऋण गैर-निष्पादित परिसंपत्ति में परिवर्तित हो जाता है।
  • पारिवारिक विवाद: स्वयं सहायता समूह की महिलाओं को प्रायः तब भी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है, जब उनके परिवार के सदस्य कुछ विशिष्ट मामलों खासतौर पर वित्तीय मामलों में उनके साथ सहयोग नहीं करते हैं।
  • प्राकृतिक आपदा: प्राकृतिक आपदाएँ जैसे- सूखा, अत्यधिक वर्षा, बाढ़, भूकंप आदि भी स्वयं सहायता समूहों के बढ़ते NPA का एक कारण हो सकते हैं, क्योंकि इन प्राकृतिक आपदाओं के कारण ग्रामीणों की आय पर प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है और वे ऋण चुकाने में असमर्थ हो जाते हैं।
  • इसके अलावा विवाह, समारोह और चिकित्सीय आपात स्थिति आदि पर व्यय करने हेतु लिया गया ऋण भी प्रायः गैर-निष्पादित परिसंपत्ति में बदल जाता है, इसका मुख्य कारण यह है कि इस प्रकार के खर्चों से ग्रामीणों की कोई आय नहीं होती है।

स्वयं सहायता समूह और उसका महत्त्व

  • सरल शब्दों में कहें तो स्वयं सहायता समूह (SHG) कुछ ऐसे लोगों का एक अनौपचारिक संघ होता है जो अपनी रहन-सहन की परिस्थितियों में सुधार करने के लिये स्वैच्छा से एक साथ आते हैं।
  • सामान्यतः एक ही सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि से आने वाले लोगों का ऐसा स्वैच्छिक संगठन स्वयं सहायता समूह (SHG) कहलाता है, जिसके सदस्य एक-दूसरे के सहयोग के माध्यम से अपनी साझा समस्याओं का समाधान करते हैं।
  • स्वयं सहायता समूहों में सामान्यतः 10-20 सदस्य होते हैं। प्रायः कम सदस्यों वाले समूह को अधिक प्राथमिकता दी जाती है, क्योंकि अधिक सदस्यों वाले समूह में सभी सदस्य सक्रिय रूप से समूह की गतिविधियों में हिस्सा नहीं ले पाते हैं।
  • स्वयं सहायता समूह (SHG) ग्रामीण भारत में दहेज और शराबबंदी जैसी प्रथाओं का मुकाबला करने के लिये सामूहिक प्रयासों को प्रोत्साहित करते हैं।
  • स्वयं सहायता समूहों के गठन से समाज और परिवार में महिलाओं की स्थिति में काफी सुधार हुआ है, जिससे उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ है और महिलाओं के आत्मसम्मान में बढ़ोतरी हुई है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

इंद्र-2020 द्विपक्षीय नौसैनिक अभ्यास

प्रिलिम्स के लिये

इंद्र-2020 द्विपक्षीय नौसैनिक अभ्यास, कवकाज़- 2020

मेन्स के लिये

भारत-रूस संबंध और युद्धाभ्यास का महत्त्व

चर्चा में क्यों?

बहुराष्ट्रीय त्रिकोणीय सर्विस अभ्यास- कवकाज़- 2020 (Kavkaz- 2020) में शामिल न होने के निर्णय के पश्चात् जल्द ही भारतीय नौसेना, रूस की नौसेना के साथ अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह के पास द्विपक्षीय नौसैनिक अभ्यास, इंद्र-2020 (Indra-2020) का आयोजन करेगी।

प्रमुख बिंदु

  • यह युद्धाभ्यास कोरोना वायरस (COVID-19) महामारी की शुरुआत के पश्चात् पहला द्विपक्षीय नौसैनिक अभ्यास होगा।
  • इससे पूर्व व्लादिवोस्तोक में आयोजित होने वाले इंद्र-2020 द्विपक्षीय नौसैनिक अभ्यास को कोरोना वायरस (COVID-19) महामारी के कारण स्थगित कर दिया गया था।

इंद्र युद्धाभ्यास-2020

  • इंद्र सैन्य अभ्यास शृंखला की शुरुआत वर्ष 2003 में हुई थी और भारत के पश्चिमी और पूर्वी, दोनों तटों पर मई 2003 में पहले भारत-रूस द्विपक्षीय नौसैनिक अभ्यास का आयोजन किया गया था।
    • वर्ष 2017 में रूस के व्लादिवोस्टोक में पहला संयुक्त सैन्य अभ्यास का आयोजन किया गया जिसमें दोनों देशों की थल, वायु एवं जल सेनाओं ने भाग लिया।
  • 4 और 5 सितंबर, 2020 को आयोजित होने वाले इंद्र-2020 द्विपक्षीय नौसैनिक अभ्यास में रूस की नौसैनिक की ओर से तीन नौसैनिक जहाज़ हिस्सा लेंगे, वहीं भारत की ओर से भी इस अभ्यास में कुछ नौसैनिक जहाज़ और विमान हिस्सा लेंगे।
  • इंद्र-2020 (Indra-2020) द्विपक्षीय नौसैनिक अभ्यास के हिस्से के रूप में उड़ान भरने, सतह और हवाई लक्ष्यों पर गन फायरिंग और ट्रैकिंग आदि गतिविधियों के कार्यान्वयन की योजना बनाई गई है।

उद्देश्य:

  • इस द्विपक्षीय नौसैनिक अभ्यास का उद्देश्य दोनों देशों की सेनाओं के बीच सामरिक कौशल, अनुभव और सैन्य तकनीक को साझा करना है।
  • इसके अलावा यह सैन्य अभ्यास भारत और रूस के बीच रणनीतिक सहयोग को बढ़ावा देगा।
    • भारत अपने समावेशी इंडो-पैसिफिक कंस्ट्रक्ट के सिद्धांत के आधार पर भारत-प्रशांत क्षेत्र में रूस के साथ एक साझेदारी विकसित करने का इच्छुक है। 

कवकाज़ अभ्यास और इसमें शामिल न होने के कारण

  • यह एक रणनीतिक कमांड-पोस्ट अभ्यास है, जिसे काकेशस- 2020 (Caucasus-2020) के रूप में भी जाना जाता है।
  • यह त्रि-सेवा अभ्यास रूसी सेना द्वारा प्रति चार वर्ष में किया जाने वाला अभ्यास का हिस्सा है। यह अभ्यास पूर्व में वर्ष 2012 और वर्ष 2016 में आयोजित किया गया था। वर्ष 2020 का अभ्यास दक्षिणी रूस के अस्त्राखान प्रांत (Astrakhan province) में आयोजित किया जाएगा।
  • 15 से 27 सितंबर, 2020 को आयोजित होने वाले इस अभ्यास में 'शंघाई सहयोग संगठन' (SCO) के सदस्य देश और अन्य मध्य एशियाई देश भाग लेंगे।
  • भारत ने आधिकारिक रूप से मौजूदा महामारी को अभ्यास में हिस्सा न लेने का कारण बताया है, किंतु इसके पीछे अनेक कूटनीतिक कारकों को ज़िम्मेदार माना जा रहा है। इसका एक मुख्य कारण यह भी है कि इस अभ्यास में चीन, तुर्की और पाकिस्तान भी हिस्सा ले रहे हैं, और इन देशों के साथ बीते कुछ दिनों में भारत के संबंध काफी तनावपूर्ण रहे हैं।

स्रोत: द हिंदू


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