शासन व्यवस्था
डिटेंशन सेंटर
- 06 Jan 2020
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संदर्भ:
नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 पारित होने के बाद देश में डिटेंशन सेंटर (Detention Centre) को लेकर बहस तेज़ हो गई है। डिटेंशन सेंटर को लेकर सरकार और विपक्ष के दावों में अंतर है। ऐसी स्थिति में डिटेंशन सेंटर व उसकी कार्यप्रणाली को समझना हमारे लिये बेहद आवश्यक हो जाता है।
इसके साथ ही हमें इस तथ्य पर भी विचार करना होगा कि प्रगतिशीलता और मानवाधिकारों की इस सदी में डिटेंशन सेंटर जैसी अवधारणा कितनी प्रासंगिक है? क्या अवैध आप्रवासन जैसी समस्या से निपटने के लिये अब यही अंतिम विकल्प शेष रह गया है या कहीं ऐसा तो नहीं कि अवैध आप्रवासन जैसी समस्या के समाधान की इस प्रक्रिया को संदेह के रूप में देखा जा रहा है। इस चर्चा को आगे बढ़ाते हुए अब हम इन प्रश्नों का उत्तर जानने का प्रयास करेंगे।
क्या है डिटेंशन सेंटर?
- डिटेंशन सेंटर उस स्थान को कहते हैं जहाँ विधि विरुद्ध तरीके (वैध दस्तावेज़ो का अभाव) से देश में प्रवेश करने वाले विदेशी लोगों को रखा जाता है।
- यद्यपि डिटेंशन सेंटर एक नवीन अवधारणा है परंतु पुरातन काल में भी इससे मिलती-जुलती व्यवस्थाओं के साक्ष्य प्राप्त होते हैं, आधुनिक काल में जर्मनी, इटली और संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे देशों में डिटेंशन सेंटर के स्पष्ट प्रमाण मिलते हैं।
- विश्व का पहला इमिग्रेशन डिटेंशन सेंटर वर्ष 1892 में अमेरिका के न्यू जर्सी में स्थापित किया गया था।
- वर्ष 1970 में यूरोप का पहला डिटेंशन सेंटर इंग्लैंड में प्रारंभ किया गया।
- वर्ष 1982 में अफ्रीका महाद्वीप का पहला डिटेंशन सेंटर दक्षिण अफ्रीका में स्थापित किया गया ।
- वर्ष 2012 में इजराइल ने होलोट डिटेंशन सेंटर प्रारंभ किया।
- भारत में वर्ष 2008 तक डिटेंशन सेंटर जैसी व्यवस्था नहीं थी परंतु जुलाई 2008 में गुवाहाटी उच्च न्यायालय ने एक निर्णय देते हुए कहा कि “अक्सर लोग विदेशी घोषित होने के बाद ग़ायब हो जाते हैं, इसलिये उन्हें पकड़कर रखने के लिये राज्य सरकार डिटेंशन सेंटर की व्यवस्था करे ताकि उन्हें यहाँ से निर्वासित किया जा सके"।
- तदुपरांत असम सरकार ने केंद्र सरकार से परामर्श कर 17 जून 2009 को राज्य में डिटेंशन सेंटर स्थापित करने की अधिसूचना जारी की।
- इस तरह देश का पहला अस्थायी डिटेंशन सेंटर ग्वालपाड़ा जेल में स्थापित किया गया।
निर्वासन के वैधानिक पक्ष:
- विदेशी अधिनियम (The Foreigners Act),1946 की धारा 3(2)(c) के अनुसार देश में अवैध रूप से रह रहे विदेशी नागरिकों को निर्वासित करने की शक्ति केंद्र में निहित है।
- संविधान का अनुच्छेद 258 राज्य सरकारों को भी इस तरह के कदम उठाने में सक्षम बनाता है।
- संविधान के अनुच्छेद 258(1) में उपबंधित है कि “संविधान में किसी बात के होते हुए भी, राष्ट्रपति, किसी राज्य की सरकार की सहमति से उस सरकार को या उसके अधिकारिओं को ऐसे किसी विषय से संबंधित कृत्य, जिन पर संघ की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार है, सशर्त या बिना शर्त सौंप सकेगा”।
- जनवरी 2019 में गृह मंत्रालय द्वारा मॉडल डिटेंशन सेंटर पर एक विस्तृत मैनुअल जारी किया गया, जिसका उद्देश्य जेल और डिटेंशन सेंटर के मध्य अंतर स्पष्ट करना था।
देश में डिटेंशन सेंटर्स की वस्तुस्थिति:
- दिल्ली के वाह्य क्षेत्र लामपुर में एक डिटेंशन सेंटर स्थापित किया गया है, जिसका परिचालन नियंत्रण क्षेत्रीय विदेशी पंजीकरण कार्यालय (Foreigners Regional Registration Office) और रखरखाव दिल्ली सरकार द्वारा किया जाता है।
- गोवा के मापुसा में एक डिटेंशन सेंटर की स्थापना की गई है तो वहीं राजस्थान के अलवर में स्थित केंद्रीय कारागार में एक डिटेंशन सेंटर स्थापित किया गया है।
- मई 2020 तक पंजाब के तरनतारन में स्थित डिटेंशन सेंटर के परिचालन की संभावना है जबकि कर्नाटक के बंगलूरु में स्थित डिटेंशन सेंटर 1 जनवरी 2020 से परिचालन में है।
- वहीं असम में क्रमशः ग्वालपाड़ा केंद्रीय कारागार, कोकराझार, सिलचर, डिब्रूगढ़, जोरहाट, तेजपुर में डिटेंशन सेंटर स्थापित किये गए है।
क्या डिटेंशन सेंटर आवश्यक हैं ?
- जब कोई व्यक्ति किसी अन्य देश में विधि विरुद्ध तरीके से निवास करता है तो उस पर अभियोग चलाया जाता है और उसके द्वारा निर्धारित सजा पूरी करने के बाद उस अन्य देश के पास प्रथम विकल्प के रूप में उस व्यक्ति को उसके मूल देश में निर्वासित करने का अधिकार होता है ।
- यदि अवैध प्रवासी व्यक्ति को उसके मूल देश द्वारा अपना नागरिक मानने से इनकार कर दिया जाता है तब ऐसी स्थिति में उसके समक्ष राज्यहीनता (Stateless) का संकट उत्पन्न हो जाता है। इस विषम परिस्थिति में मानवीय दृष्टिकोण के आधार पर उस व्यक्ति की पहचान को सुनिश्चित करने के लिये उसे डिटेंशन सेंटर में रखा जाता है।
- डिटेंशन सेंटर में रह रहे व्यक्तियों को भारत के “नागरिकों” की भाँति सभी मूल अधिकार नहीं प्राप्त होते परंतु भारत के संविधान में “व्यक्तियों” को प्राप्त मूल अधिकार उन्हें भी प्राप्त होते हैं।
निष्कर्ष:
वस्तुतः भारत में डिटेंशन सेंटर की स्थापना गुवाहाटी उच्च न्यायालय के निर्णय के अधीन रहते हुए “विदेशी व्यक्तियों” की पहचान और उन्हें सुरक्षित रखने हेतु की गई। इसका भारत के किसी भी नागरिक से कोई संबंध नहीं है। सरकार को अफवाह फैलाने वाले असामाजिक तत्वों पर कठोर कार्रवाई करनी चाहिये तथा नागरिक समाज को इस संबंध में जागरूकता फ़ैलाने का कार्य करना चाहिये।