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डेली न्यूज़

  • 02 Jun, 2022
  • 69 min read
भारतीय अर्थव्यवस्था

भारत द्वारा विश्व व्यापार संगठन में ई-ट्रांसमिशन पर अधिस्थगन का विरोध

प्रिलिम्स के लिये:

ई-ट्रांसमिशन पर अधिस्थगन, विश्व व्यापार संगठन। 

मेन्स के लिये:

ई-कॉमर्स पर अधिस्थगन से संबंधित मुद्दे। 

चर्चा में क्यों? 

भारत जून 2022 से शुरू होने वाले विश्व व्यापार संगठन (WTO) के 12वें मंत्रिस्तरीय सम्मेलन (MC12) में इलेक्ट्रॉनिक ट्रांसमिशन (ई-ट्रांसमिशन) पर सीमा शुल्क को लेकर अधिस्थगन का विरोध करेगा क्योंकि इसके प्रावधान केवल विकसित देशों के पक्ष में हैं। 

  • वर्ष 2017 में अर्जेंटीना में 11वें मंत्रिस्तरीय सम्मेलन पर स्थगन को दो वर्ष के लिये बढ़ा दिया गया था। दिसंबर 2019 में हुई सामान्य परिषद की बैठक में सदस्यों ने मौजूदा प्रावधानों को 12वीं मंत्रिस्तरीय सम्मेलन तक बनाए रखने पर सहमति जताई थी। 

ई-ट्रांसमिशन पर अधिस्थगन: 

  • विश्व व्यापार संगठन के सदस्य देश वर्ष 1998 से इलेक्ट्रॉनिक प्रसारण पर सीमा अधिस्थगन पर सहमत हुए थे और स्थगन की अवधि को समय-समय पर मंत्रिस्तरीय सम्मेलनों में बढ़ाया जाता रहा है, जो कि 164 सदस्यीय संगठन (WTO) का सर्वोच्च निर्णय लेने वाला निकाय है। 
    • यह स्थगन फोटोग्राफिक फिल्मों, सिनेमैटोग्राफिक फिल्मों, प्रिंटेड विषय-वस्तु, संगीत, मीडिया, सॉफ्टवेयर और वीडियो गेम जैसे डिजिटल उत्पादों पर लागू है। 
  • वर्ष 1998 में दूसरे मंत्रिस्तरीय सम्मेलन में मंत्रियों ने वैश्विक इलेक्ट्रॉनिक व्यापार पर घोषणा को अपनाया, जिसमें ई-कॉमर्स पर एक कार्यक्रम का आह्वान किया गया था, जिसे कुछ वर्ष पश्चात् अपनाया गया था। 
    • चूंँकि अधिकांश देशों में ई-कॉमर्स पर मज़बूत नीतियांँ नहीं थीं, जो 1998 में विकसित देशों में भी व्यापार का एक उभरता हुआ क्षेत्र था, उन्होंने इस पर गहन बातचीत करने और इलेक्ट्रॉनिक्स ट्रांसमिशन के सीमा शुल्क पर रोक लगाने के लिये वर्क प्रोग्राम आयोजित करने का निर्णय लिया था। 
  • विश्व व्यापार संगठन की सामान्य परिषद ने 1998 में उभरती अर्थव्यवस्थाओं की आर्थिक, वित्तीय और विकास आवश्यकताओं पर विचार करके वैश्विक ई-कॉमर्स से संबंधित सभी व्यापार मुद्दों की व्यापक जांँच करने के लिये ई-कॉमर्स पर वर्क प्रोग्राम की स्थापना की। 
    • विश्व व्यापार संगठन वर्क प्रोग्राम ई-कॉमर्स को "इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों से वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन, विपणन, बिक्री या वितरण" के रूप में परिभाषित करता है। 

बैठक में भारत की मांग: 

  • जून 2022 में 12वीं मंत्रिस्तरीय सम्मेलन में कई WTO सदस्य 13वीं मंत्रिस्तरीय सम्मेलन तक स्थगन के अस्थायी विस्तार की मांग पर विचार कर सकते हैं, लेकिन भारत नहीं चाहता कि इस बार इसे और जारी रखा जाए। 
  • भारत और दक्षिण अफ्रीका ने कई अवसरों पर संगठन से इस मुद्दे पर फिर से विचार करने के लिये कहा है और विकासशील देशों पर स्थगन के प्रतिकूल प्रभाव को उजागर किया है। 
  • भारत चाहता है कि विश्व व्यापार संगठन ई-कॉमर्स क्षेत्र पर वर्क प्रोग्राम को तेज़ करे। 
  • भारत ने यह भी कहा है कि काउंसिल फॉर ट्रेड इन गुड्स, काउंसिल फॉर ट्रेड इन सर्विसेज़, काउंसिल फॉर ट्रिप्स (बौद्धिक संपदा अधिकारों के व्यापार संबंधित पहलू-TRIPS) तथा व्यापार और विकास समिति को मूल रूप से निर्धारित अपने संबंधित जनादेश के अनुसार ई-कॉमर्स पर चर्चा करनी चाहिये।  
  • भारत का मानना था कि मौजूदा वैश्विक ई-कॉमर्स क्षेत्र की अत्यधिक विषम प्रकृति और संबंधित बहुआयामी मुद्दों के निहितार्थ समझ की कमी को देखते हुए ई-कॉमर्स में नियमों और विषयों पर डब्ल्यूटीओ में औपचारिक बातचीत शुरू होनी चाहिये।

अधिस्थगन से संबंधित मुद्दे: 

  • भारत इलेक्ट्रॉनिक ट्रांसमिशन के आयात में तेज़ी से वृद्धि कर रहा है, मुख्य रूप से फिल्में, संगीत, वीडियो गेम और मुद्रित सामग्री जैसे- उपकरण, जिनमें से कुछ स्थगन के दायरे में आ सकते हैं। 
  • विकासशील देशों के लिये अपनी डिजिटल उन्नति हेतु नीतिगत योजनाओं को संरक्षित करने, आयात को विनियमित करने और सीमा शुल्क के माध्यम से राजस्व उत्पन्न करने के लिये अधिस्थगन की अनुमति देना महत्त्वपूर्ण है। 
  • विकासशील देशों को संभावित टैरिफ राजस्व हानि वार्षिक 10 अरब अमेरिकी डॉलर होने का अनुमान है। 
  • जबकि डिजिटल अभिकर्त्ताओं का मुनाफा और राजस्व लगातार बढ़ रहा है, इन आयातों की जाँच करने तथा अतिरिक्त टैरिफ राजस्व उत्पन्न करने की सरकारों की क्षमता ई-कॉमर्स पर स्थगन के कारण 'गंभीर रूप से' सीमित हो रही है। 
  • इसका प्रभाव विनिर्माण में 3डी प्रिंटिंग जैसी डिजिटल तकनीकों के उपयोग और अन्य कर्त्तव्यों एवं शुल्कों के नुकसान व औद्योगीकरण पर पड़ेगा। 

आगे की राह 

  • विकासशील देशों को डिजिटल क्षेत्र में विकसित देशों के साथ तालमेल बिठाने के लिये नीतियों को लागू करने में लचीलेपन को बनाए रखने की आवश्यकता है। हमें सबसे पहले घरेलू भौतिक और डिजिटल बुनियादी ढांँचे में सुधार पर ध्यान देने की ज़रूरत है। 
  • विकासशील देशों के लिये फिल्मों, संगीत और वीडियो गेम जैसे अपने लक्जरी आयात को विनियमित करना अत्यंत आवश्यक है। अधिस्थगन को हटाने से सरकारों को  नीतिगत लाभ मिलेगा। 

विगत वर्ष के प्रश्न: 

प्रश्न. भारत में माल के भौगोलिक संकेत (रजिस्ट्रेशन और संरक्षण) अधिनियम, 1999 को निम्नलिखित में से किससे संबंधित दायित्वों के अनुपालन के लिये' लागू किया गया?  

(a) आईएलओ 
(b) आईएमएफ 
(c) यूएनसीटीएडी 
(d) डब्ल्यूटीओ 

उत्तर: D 


प्रश्न. 'एग्रीमेंट ऑन एग्रीकल्चर (Agreement on Agriculture)' एग्रीमेंट ऑन दि एप्लीकेशन ऑफ सैनिटरी एंड फाइटोसैनिटरी मेज़र्स (Agreement on Application of Sanitary and Phytosanitary Measures)' और 'पीस क्लॉज (Peace Clause)' शब्द प्रायः समाचारों में किसके मामलों के संदर्भ में आते हैं? 

(a) खाद्य और कृषि संगठन 
(b) जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र का रूपरेखा सम्मेलन 
(c) विश्व व्यापार संगठन 
(d) संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम 

उत्तर: C 

स्रोत: द हिंदू 


कृषि

लिक्विड नैनो यूरिया

प्रिलिम्स के लिये:

लिक्विड नैनो यूरिया, इंडियन फार्मर्स फर्टिलाइज़र कोऑपरेटिव लिमिटेड। 

 मेन्स के लिये:

पारंपरिक यूरिया की तुलना में लिक्विड नैनो यूरिया का महत्त्व। 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में प्रधानमंत्री ने गुजरात के कलोल में पहले लिक्विड नैनो यूरिया (LNU) संयंत्र का उद्घाटन किया। 

भारतीय किसान उर्वरक सहकारी लिमिटेड (IFFCO) 

  • परिचय: 
    • यह भारत की सबसे बड़ी सहकारी समितियों में से एक है जिसका पूर्ण स्वामित्व भारतीय सहकारी समितियों के पास है। 
    • वर्ष 1967 में केवल 57 सहकारी समितियों के साथ इसकी स्थापना की गई थी, वर्तमान में यह 36,000 से अधिक भारतीय सहकारी समितियों का एक समूह है, जिसमें उर्वरकों के निर्माण और बिक्री संबंधी मुख्य व्यवसाय के अतिरिक्त सामान्य बीमा से लेकर ग्रामीण दूरसंचार तक विविध व्यावसायिक हित निहित हैं। 
  • उद्देश्य:  
    • भारतीय किसानों को पर्यावरणीय दृष्टिकोण से टिकाऊ,  विश्वसनीय, उच्च गुणवत्ता वाले कृषि इनपुट और सेवाओं की समय पर आपूर्ति के माध्यम से समृद्ध होने और उनके कल्याण के लिये अन्य गतिविधियों को शुरू करने में सक्षम बनाना। 

लिक्विड नैनो यूरिया: 

  • परिचय: 
    • यह नैनो कण के रूप में यूरिया का एक प्रकार है। यह यूरिया के परंपरागत विकल्प के रूप में पौधों को नाइट्रोजन प्रदान करने वाला एक पोषक तत्त्व (तरल) है। 
      • यूरिया सफेद रंग का एक रासायनिक नाइट्रोजन उर्वरक है, जो कृत्रिम रूप से नाइट्रोजन प्रदान करता है तथा पौधों के लिये एक आवश्यक प्रमुख पोषक तत्त्व है। 
    • नैनो यूरिया को पारंपरिक यूरिया के स्थान पर विकसित किया गया है और यह पारंपरिक यूरिया की आवश्यकता को न्यूनतम 50 प्रतिशत तक कम कर सकता है। 
      • इसकी 500 मिली.की एक बोतल में 40,000 मिलीग्राम/लीटर नाइट्रोजन होता है, जो सामान्य यूरिया के एक बैग/बोरी के बराबर नाइट्रोजन पोषक तत्त्व प्रदान करेगा। 
  • निर्माण: 
    • इसे स्वदेशी रूप से नैनो बायोटेक्नोलॉजी रिसर्च सेंटर ( कलोल, गुजरात) में आत्मनिर्भर भारत अभियान और आत्मनिर्भर कृषि के अनुरूप विकसित किया गया है। 
      • भारत अपनी यूरिया की ज़रूरतों को पूरा करने के लिये आयात पर निर्भर है। 
  • उद्देश्य: 
    • इसका उद्देश्य पारंपरिक यूरिया के असंतुलित और अंधाधुंध उपयोग को कम करना, फसल उत्पादकता में वृद्धि करना तथा मिट्टी, पानी व वायु प्रदूषण को कम करना है। 
  • महत्त्व: 
    • पौधों के पोषण में सुधार: 
      • नैनो यूरिया लिक्विड को पौधों के पोषण के लिये प्रभावी और कुशल पाया गया है। यह बेहतर पोषण गुणवत्‍ता के साथ उत्‍पादन बढ़ाने में भी सक्षम है। 
      • यह मृदा में यूरिया अनुप्रयोग के अतिरिक्त उपयोग को कम करके संतुलित पोषण कार्यक्रम को बढ़ावा देगा, साथ ही फसलों को मज़बूत एवं स्वस्थ बनाएगा और उन्हें लॉजिंग प्रभाव से बचाएगा। 
        • लॉजिंग प्रभाव से फसल के तने ज़मीन की तरफ झुक जाते है, जिससे फसलों की कटाई करना बहुत मुश्किल हो जाता है और उपज में नाटकीय रूप से कमी आ सकती है। 
    • पर्यावरण में सुधार: 
    • किसानों की आय में वृद्धि: 
      • यह किसानों का पॉकेट फ्रेंडली है और किसानों की आय बढ़ाने में कारगर होगा। इससे लॉजिस्टिक्स एवं वेयरहाउसिंग की लागत में भी काफी कमी आएगी। 

पारंपरिक यूरिया की तुलना में LNU की गुणवत्ता: 

  • उच्च दक्षता: 
    • पारंपरिक यूरिया की दक्षता लगभग 25% है, तरल नैनो यूरिया की दक्षता 85-90% तक हो सकती है। 
    • परंपरागत यूरिया फसलों पर वांछित प्रभाव डालने में विफल रहता है क्योंकि इसे प्रायः गलत तरीके से इस्तेमाल किया जाता है और इसमें नाइट्रोजन वाष्पीकृत हो जाती है या गैस के रूप में नष्ट हो जाती है। सिंचाई के दौरान भी बहुत सारा नाइट्रोजन बह जाता है। 
  • फसलों को पोषक  तत्त्वों की लक्षित आपूर्ति: 
    • लिक्विड नैनो यूरिया को सीधे पत्तियों पर छिड़का जाता है और पौधे द्वारा अवशोषित कर लिया जाता है। 
    • नैनो रूप में उर्वरक फसलों को पोषक तत्त्वों की लक्षित आपूर्ति प्रदान करते हैं, क्योंकि वे पत्तियों के एपिडर्मिस पर पाए जाने वाले रंध्रों द्वारा अवशोषित होते हैं। 
  • आर्थिक रूप से वहनीय: 
    • नैनो यूरिया की एक बोतल,  परंपरागत  यूरिया के कम-से-कम एक बोरी की मात्रा के बराबर प्रभावी होती है। 
      • लिक्विड नैनो यूरिया आधा लीटर की बोतल में उपलब्ध होता है जिसकी कीमत 240 रुपए है और वर्तमान में इस पर सब्सिडी भी भारित नहीं है। 
      • इसके विपरीत एक किसान भारित सब्सिडी वाले यूरिया के 50 किलोग्राम की एक बोरी के लिये लगभग 300 रुपए का भुगतान करता है। 

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस  


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

इज़रायल-संयुक्त अरब अमीरात मुक्त व्यापार समझौत

प्रिलिम्स के लिये:

मध्य-पूर्व के देशं, खाड़ी देश, अब्राहम समझौेता, एफटीए। 

मेन्स के लिये:

व्यापार समझौते, द्विपक्षीय समझौते, भारत-इज़रायल संबंध, पश्चिम एशिया के मुद्दे और चुनौतियाँ, मध्य-पूर्व। 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में इज़रायल ने संयुक्त अरब अमीरात (UAE) के साथ मुक्त व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर किये, जो वर्ष 2020 के यूएस-मध्यस्थता संबंधों के सामान्यीकरण पर आधारित है। 

  • UAE इज़रायल के साथ संबंधों को सामान्य करने वाला पहला खाड़ी देश है, साथ ही मिस्र और जॉर्डन के बाद तीसरा अरब देश है। 

Saudi-Arabia

प्रमुख बिंदु 

  • दोनों देशों के बीच व्यापार: वर्ष 2020 की तुलना में इज़रायल के केंद्रीय सांख्यिकी ब्यूरो ने संयुक्त अरब अमीरात से हीरे को छोड़कर वस्तुओं के आयात और निर्यात में 30% से अधिक की वृद्धि दर्ज की। 
    • वर्ष 2021 में दोतरफा व्यापार कुल 900 मिलियन अमेरिकी डॉलर का था। 
    • गैर-तेल व्यापार वर्ष 2022 के पहले तीन महीनों में 1.06 बिलियन अमेरिकी डॉलर को पार कर गया, यह पिछले वर्ष की इसी अवधि से पांँच गुना वृद्धि को प्रदर्शित करता है। 
  • मुक्त व्यापार समझौते का महत्त्व: 
    • यूएस-मध्यस्तता संबंधों के सामान्यीकरण पर आधारित है: यह समझौत वर्ष 2020 में राजनयिक सौदों की शृंखला के स्थायित्व को दर्शाता है जिसे अब्राहम समझौते के रूप में जाना जाता है, इसने इज़रायल और चार मुस्लिम देशों- संयुक्त अरब अमीरात, बहरीन, मोरक्को और सूडान के बीच संबंधों को सामान्य बनाने में मदद की। 
    • आर्थिक क्षमता: 
      • लोगों के बीच भौगोलिक और सांस्कृतिक निकटता के साथ-साथ संयुक्त अरब अमीरात की अनूठी विशेषताओं के कारण UAE के साथ इज़रायल के संबंधों में काफी आर्थिक संभावनाएंँ हैं। 
      • संयुक्त अरब अमीरात अरब दुनिया में दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है (सऊदी अरब के बाद) वहीं प्रौद्योगिकी, उत्पादों, उन्नत समाधानों के साथ इज़रायल महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है 
    • बाज़ार और कम टैरिफ तक तेज़ी से पहुँच: 
      • दोनों देशों के व्यवसायों को तेज़ी से बाज़ारों तक पहुंँच और कम टैरिफ का लाभ प्राप्त होगा क्योंकि ये देश व्यापार बढ़ाने, रोज़गार सृजित करने, नए कौशल को बढ़ावा देने तथा सहयोग को प्रगाढ़ करने के लिये मिलकर काम करते हैं। 
      • इस समझौते में दोनों पक्षों के बीच आदान-प्रदान होने वाले 96% उत्पादों पर सीमा शुल्क को समाप्त कर दिया गया है। 
      • यह समझौता नियामक और मानकीकरण के मुद्दों, सीमा शुल्क, सहयोग, सरकारी खरीद, ई-कॉमर्स और बौद्धिक संपदा अधिकारों से भी संबंधित है। 
    • व्यापार को बढ़ावा देना:  
      • यह समझौता इज़रायल और संयुक्त अरब अमीरात के बीच गैर-तेल द्विपक्षीय व्यापार को 10 अरब डॉलर से अधिक तक पहुंँचाएगा। 
      • UAE-इज़रायल के बीच व्यापार वर्ष 2022 में 2 बिलियन डॉलर से अधिक का होने का अनुमान है, जिसके पांँच वर्षों में बढ़कर लगभग 5 बिलियन डॉलर होने की उम्मीद है, यह नवीकरणीय ऊर्जा, उपभोक्ता वस्तुओं, पर्यटन और जीव विज्ञान के क्षेत्रों में सहयोग से मज़बूत होगा। 
    • अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में इज़रायल की भूमिका में वृद्धि: 
      • दोनों देशों के लिये एक दीर्घकालिक संभावना यह है कि इज़रायली कंपनियांँ संयुक्त अरब अमीरात में विनिर्माण स्थापित करेंगी जो कि मध्य-पूर्व, एशिया और अफ्रीका के बाज़ारों के लिये एक केंद्र के रूप में कार्य करता है, ऐसे में इज़रायल अपनी स्थिति को मज़बूत कर रहा है। 
  • भारत के लिये महत्त्व:  
    • भारत और संयुक्त अरब अमीरात के बीच हस्ताक्षरित व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौते (CEPA) के साथ संयुक्त रूप से इस समझौते से व्यापक त्रिपक्षीय सहयोग एवं व्यावसायिक भागीदारी की संभावना है। 
    • इसने अमेरिका के साथ विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग के अवसर भी उत्पन्न किये हैं। 
      • यह अब्राहम समझौते से संभव हुआ, जो सभी के लिये शांति और समृद्धि को बढ़ावा देने में एक महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। 
    • इज़रायल, भारत, संयुक्त अरब अमीरात और अमेरिका भी एक नए समूह, पश्चिम एशियाई क्वाड का हिस्सा हैं, जिसे आर्थिक सहयोग के लिये एक मंच के रूप में स्थापित किया गया था। 
      • वे अर्थव्यवस्था, विशेष रूप से बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं पर केंद्रित एक रचनात्मक एजेंडा का अनुसरण कर रहे हैं। 
  • मुक्त व्यापार समझौता: 
    • FTA दो या दो से अधिक देशों या व्यापारिक ब्लॉकों के बीच एक व्यवस्था है जो मुख्य रूप से उनके बीच पर्याप्त व्यापार पर सीमा शुल्क और गैर-टैरिफ बाधाओं को कम करने या समाप्त करने का प्रावधान करती है 
    • FTA आमतौर पर माल (जैसे- कृषि या औद्योगिक उत्पाद) या सेवाओं में व्यापार (जैसे- बैंकिंग, निर्माण, व्यापार आदि) पर लागू होता है।  
    • FTA अन्य क्षेत्रों जैसे- बौद्धिक संपदा अधिकार (आईपीआर), निवेश, सरकारी खरीद और प्रतिस्पर्द्धा नीति आदि को भी कवर कर सकता है। 
    • उदाहरण: भारत ने कई देशों के साथ FTA पर बातचीत की है, उदाहरण- श्रीलंका और आसियान जैसे विभिन्न व्यापारिक ब्लॉकों के साथ। 
    • FTA को तरजीही व्यापार समझौता, व्यापक आर्थिक सहयोग समझौता, व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौता (CEPA) के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है। 

आगे की राह 

  • इज़रायल के साथ यह व्यापार समझौता पश्चिम एशियाई क्षेत्र के लिये एक नया प्रतिमान तैयार करेगा और महत्त्वपूर्ण भागीदारी सुनिश्चित करेगा। 
  • यह निकट भविष्य में महत्त्वपूर्ण राजनयिक संबंधों की पेशकश करेगा और मध्य-पूर्व क्षेत्र में इज़रायल और पश्चिम एशिया के कई देशों के बीच लंबे संघर्षों पर काबू पाने में मदद करेगा। 

विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs): 

प्रश्न. निम्नलिखित देशों पर विचार कीजिये: (2018) 

  1. ऑस्ट्रेलिया
  2. कनाडा
  3. चीन
  4. भारत
  5. जापान
  6. अमेरिका

उपर्युक्त में से कौन आसियान के 'मुक्त-व्यापार भागीदारों' में शामिल हैं? 

(a) 1, 2, 4 और 5 
(b) 3, 4, 5 और 6 
(c) 1, 3, 4 और 5 
(d) 2, 3, 4 और 6 

उत्तर: C 

व्याख्या: 

  • दक्षिण पूर्व एशियाई राष्ट्र संघ (ASEAN) के मुक्त-व्यापार भागीदारों में 6 देश चीन,  दक्षिण कोरिया, जापान, भारत, ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड शामिल हैं। अत: कथन 1, 3, 4 और 5 सही हैं। 
  • आसियान की स्थापना 8 अगस्त 1967 को बैंकॉक, थाईलैंड में आसियान पर हस्ताक्षर के साथ हुई थी। 
  • आसियान की स्थापना बैंकॉक घोषणा द्वारा इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलीपींस, सिंगापुर और थाईलैंड  द्वारा की गई। ब्रुनेई दारुस्सलाम 7 जनवरी, 1984 को, वियतनाम 28 जुलाई, 1995 को, लाओ पीडीआर और म्याँँमार 23 जुलाई, 1997 को और कंबोडिया 30 अप्रैल, 1999 को इसमें शामिल हुए, वर्तमान में आसियान में दस सदस्य देश शामिल हैं। अतः विकल्प (C) सही है। 

स्रोत: द हिंदू   


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

तालिबान शासन पर संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट

प्रिलिम्स के लिये:

अफगानिस्तान, तालिबान, इस्लामिक स्टेट, अफगानिस्तान का स्थान। 

मेन्स के लिये:

भारत और उसके पड़ोसी, भारत के हितों पर देशों की नीतियों और राजनीति का प्रभाव, अफगानिस्तान संकट और इसके प्रभाव। 

चर्चा में क्यों? 

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) की विश्लेषणात्मक सहायता और प्रतिबंध निगरानी दल के अनुसार, नए तालिबान शासन के तहत विदेशी आतंकवादी संगठन सुरक्षित स्थान पर रहने का लाभ उठा रहे हैं। 

Afghanistan

UNSC के निगरानी दल का मिशन: 

  • निगरानी दल UNSC प्रतिबंध समिति की सहायता करता है और इसकी रिपोर्ट समिति के सदस्यों के बीच परिचालित अफगानिस्तान में संयुक्त राष्ट्र की रणनीति के निर्माण की सूचना देती है।  
  • भारत वर्तमान में प्रतिबंध समिति का अध्यक्ष है, जिसमें सभी 15 UNSC सदस्य शामिल हैं। 
  • अगस्त 2021 में तालिबान के सत्ता में लौटने के बाद यह पहली रिपोर्ट है। 
    • इसमें आधिकारिक अफगान ब्रीफिंग द्वारा सहायता नहीं दी गई यह इसकी पहली रिपोर्ट है। 
  • टीम ने संयुक्त राष्ट्र के सदस्य राज्यों, अंतर्राष्ट्रीय और क्षेत्रीय संगठनों, निजी क्षेत्र के वित्तीय संस्थानों तथा अफगानिस्तान में संयुक्त राष्ट्र सहायता मिशन जैसे निकायों के साथ परामर्श करके डेटा एकत्र किया। 
    • UNAMA संयुक्त राष्ट्र का एक विशेष राजनीतिक मिशन है जिसकी स्थापना स्थायी शांति और विकास की नींव रखने में राज्य व अफगानिस्तान के लोगों की सहायता के लिये की गई है। 

तालिबान शासन के बाद भारत द्वारा अफगानिस्तान के साथ संबंध स्थापित करने की पहल:  

  • संबंधों की प्रगाढ़ता बढ़ाने के उपाय:  
    • तालिबान के अधिग्रहण के बाद भारत अपनी नीति में एक रणनीतिक प्राथमिकता के रूप में अफगानिस्तान से संबंध बहाल करने में व्यावहारिक बाधाओं के कारण दुविधा में है।  
    • वर्तमान में भारत अफगानिस्तान के साथ संभावित जुड़ाव के तीन व्यापक उपायों का आकलन कर रहा है: 
      • मानवीय सहायता प्रदान करना, अन्य भागीदारों के साथ संयुक्त आतंकवाद विरोधी प्रयासों की खोज करना और तालिबान के साथ बातचीत में शामिल होना। 
    • इन सभी का अंतिम लक्ष्य जनसंपर्क बहाल करना और पिछले दो दशकों में अफगानिस्तान में भारत द्वारा विकासात्मक परियोजनाओं के संभावित लाभ के अवसर को बनाए रखना है। 
    • भारत ने सभी 34 अफगान प्रांतों में 400 से अधिक प्रमुख बुनियादी ढाँचागत परियोजनाएँ शुरू की हैं तथा व्यापार और द्विपक्षीय संबंधों को बढ़ाने के लिये रणनीतिक समझौतों पर हस्ताक्षर किये हैं। 

आतंकवाद का दोनों देशों के मध्य संबंधों पर प्रभाव: 

  • अफगानिस्तान के प्रति भारत की नीतियों को पाकिस्तान से उत्पन्न होने वाले आतंकवाद के खतरे से रेखांकित किया गया है। 
    • भारत एक आतंकवादी गलियारे की आशंका को लेकर सतर्क है जिसे पूर्वी अफगानिस्तान से कश्मीर क्षेत्र को जोड़ा जा सकता है, अतः भारत-अफगानिस्तान के मध्य इस मुद्दे पर ज़मीनी स्तर पर विचार किया जाना चाहिये। 
  • भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् के प्रस्ताव संख्या 2593 के लिये अपने समर्थन की लगातार पुष्टि की है और दृढ़ता से कहा कि भारत विरोधी आतंकवादी गतिविधियों के लिये अफगानिस्तान की धरती का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिये। 
  • आतंकवाद का मुकाबला करने का प्रयास अफगानिस्तान के साथ भारत की नीतियों को आकार देने में एक प्रासंगिक भूमिका निभा सकता है, हालाँकि भारत अपने हिंद-प्रशांत क्षेत्र के दायित्वों और इसके तत्काल दक्षिण एशियाई लक्ष्यों में एकरूपता चाहता है। 
  • भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद और शंघाई सहयोग संगठन सहित विभिन्न बहुपक्षीय मंचों पर अधिक मज़बूती से आतंकवाद रोधी दृष्टिकोण विकसित करने में बढ़ती रुचि का प्रदर्शन किया है। 

अफगानिस्तान का भारत के लिये महत्त्व: 

  • आर्थिक और रणनीतिक हित: अफगानिस्तान तेल और खनिज समृद्ध मध्य एशियाई गणराज्यों का प्रवेश द्वार है। 
    • अफगानिस्तान भू-रणनीतिक दृष्टि से भी भारत के लिये महत्त्वपूर्ण है क्योंकि अफगानिस्तान में जो भी सत्ता में रहता है, वह भारत को मध्य एशिया (अफगानिस्तान के माध्यम से) से जोड़ने वाले भू- मार्गों को नियंत्रित करता है।  
    • ऐतिहासिक सिल्क रोड के केंद्र में स्थित: अफगानिस्तान लंबे समय से एशियाई देशों के बीच वाणिज्य का केन्द्र था, जो उन्हें यूरोप से जोड़ता था तथा धार्मिक, सांस्कृतिक और वाणिज्यिक संपर्कों को बढ़ाव देता था। 
  • विकास परियोजनाएंँ: इस देश के लिये बड़ी निर्माण योजनाएँ भारतीय कंपनियों को बहुत सारे अवसर प्रदान करती हैं। 
  • तीन प्रमुख परियोजनाएंँ: अफगान संसद, जरंज-डेलाराम राजमार्ग और अफगानिस्तान-भारत मैत्री बांध (सलमा बांध) के साथ-साथ सैकड़ों छोटी विकास परियोजनाओं (स्कूलों, अस्पतालों और जल परियोजनाओं) में 3 बिलियन अमेरीकी डॅालर से अधिक की भारत की सहायता ने अफगानिस्तान में भारत की स्थिति को मज़बूत किया है।  
  • सुरक्षा हित: भारत इस क्षेत्र में सक्रिय पाकिस्तान समर्थित आतंकवादी समूह (जैसे हक्कानी नेटवर्क) से उत्पन्न राज्य प्रायोजित आतंकवाद का शिकार रहा है। इस प्रकार अफगानिस्तान में भारत की दो प्राथमिकताएंँ हैं: 
    • पाकिस्तान को अफगानिस्तान में मित्रवत सरकार बनाने से रोकने के लिये। 
    • अलकायदा जैसे जिहादी समूहों की वापसी से बचने के लिये, जो भारत में हमले कर सकता है। 

आगे की राह 

  • अधिकांश देश अफगानिस्तान में तालिबान को आधिकारिक मान्यता देने के मामले में भारत की वेट एंड वाॅच नीति से सहमत हैं। 
  • भारत तालिबान शासन के तरीकों पर तीखी प्रतिक्रिया करने के प्रति अनिच्छुक है। 
    • हालांँकि भारत को प्रासंगिक बने रहने के लिये इस क्षेत्र में अपने प्रभाव को बनाए रखना चाहिये। 
  • जबकि दिल्ली ने तालिबान के लिये एकीकृत क्षेत्रीय प्रतिक्रिया हेतु महत्त्वपूर्ण हितधारकों को बुलाने और नया राजनीतिक रोडमैप तैयार करने की मांग की, इसने दक्षिण एशियाई देशों को अपने नेतृत्व के साथ शामिल करने के लिये कई बाधाओं का अनुभव किया। 
  • अफगानिस्तान के प्रति ये विरोधी दृष्टिकोण भविष्य में भी मौजूद रहेंगे। रणनीतिक रूप से स्थायी अफगानिस्तान नीति विकसित करने के लिये इसके दीर्घकालिक और अल्पकालिक लक्ष्यों के साथ-साथ पुन: समायोजन की एक यथार्थवादी मूल्यांकन की आवश्यकता है। 

स्रोत: द हिंदू 


जैव विविधता और पर्यावरण

कोसी नदी प्रणाली में अस्थिरता

प्रिलिम्स के लिये:

कोसी नदी प्रणाली, अस्थिरता, जलवायु परिवर्तन, ब्रह्मपुत्र नदी। 

मेन्स के लिये:

नदी की अस्थिरता के कारण और परिणाम तथा आगे की राह। 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में एक शोध अध्ययन में बताया गया है कि कोसी नदी के दोनों ओर तटबंधों के निर्माण के बाद से अस्थिरता देखी गई है। 

नदी प्रणाली अस्थिरता: 

  • परिचय: 
    • नदी प्रणाली अस्थिरता नदी के प्रवाह के दौरान परिवर्तन की घटना को संदर्भित करती है जिसके अंतर्गत पुरानी स्थापित नदी प्रणाली के स्थान पर एक नई नदी प्रणाली का निर्माण होता है। 
  • घटना: 
    • उष्णकटिबंधीय और मरुस्थलीय क्षेत्रों की नदियाँ के अस्थिर होने की अधिक संभावना रहती है। 
    • ऐसी घटना बहुत ही कम होती है, एक दशक या एक सदी में एक बार, या उससे भी कम। 
    • बार-बार होने वाली चरम मौसम की घटनाओं और समुद्र के स्तर में वृद्धि के निरंतर प्रभाव की तुलना में उनके विनाशकारी प्रभावों के बावजूद अस्थिरता की घटना दुर्लभ है। 

शोध के प्रमुख निष्कर्ष: 

  • वैश्विक परिदृश्य: 
    • 1973-2020 के सैटेलाइट चित्रों और ऐतिहासिक नक्शों के अनुसार, दुनिया भर में 113 नदी प्रणाली अस्थिरता की घटनाएँ दर्ज की गई हैं। 
    • 33 उदाहरणों में अपुष्ट घाटियों या खुले समुद्रों पर प्रवाहित होते समय नदियाँ पर्वतीय आधारों में अपना मार्ग बदल देती हैं। 
      • कोसी नदी भी इसी श्रेणी में आती है। 
    • यह परिवर्तन डेल्टा क्षेत्रों में भी हो सकता है। एक पश्चजल क्षेत्र के साथ नदी का यह हिस्सा नीचे की ओर समुद्र के प्रभाव के कारण अलग तरह से प्रवाहित होता है। 
    • दुनिया के कुछ सबसे बड़े जलमार्गों, जैसे कि ओरिनोको, येलो, नील और मिसिसिपी नदी इसके उदाहरण हैं। 
    • 30 मामलों में अत्यधिक तलछट भार वाली नदियों में उफान आया। नदी के तल तलछट से भरे होने के कारण बाढ़ के दौरान नदियाँ नए चैनलों की तलाश करती हैं। 
  • कोसी नदी  केस-स्टडी: 
    • कोसी जैसी प्रणालियाँ हिमालय से बहुत अधिक तलछट लाती हैं। 1950 के दशक में नदी के दोनों ओर तटबंध बनाए जाने के बाद यह और अधिक अस्थिर हो गई। 
    • वर्ष 2008 में एक बड़ी बाढ़ ने कोसी नदी को अपने स्थापित पुराने मार्ग को छोड़ने के लिये मजबूर कर दिया। इसके कारण 3 मिलियन लोग विस्थापित हुए तथा 250 से अधिक लोगों की मृत्यु हो गई। 
    • कोसी नदी का उफान प्राकृतिक नहीं है। तटबंध-निर्माण से पहले नदी जिस 200 किमी क्षेत्र में तलछट वितरित करती थी, उसे अब घटाकर 10 किमी कर दिया गया है। 
    • हालांँकि तलछट-प्रवाह के मार्ग में कोई बदलाव नहीं आया है, लेकिन इसके संचलन के लिये उपलब्ध क्षेत्र संकुचित हो गया है। 
    • तटबंधों जैसे अस्थायी समाधान के कारण ही सुरक्षा की झूठी धारणा पैदा होती है। क्योंकि ये सुरक्षा के बजाय प्राकृतिक तलछट फैलाव को सीमित करके नदी प्रणाली को  नकारात्मक रूप से प्रभावित करते हैं। 

कोसी नदी प्रणाली: 

  • कोसी एक सीमा-पार नदी है जो तिब्बत, नेपाल और भारत से होकर प्रवाहित होती है। 
  • इसका स्रोत तिब्बत में है जिसमें दुनिया की सबसे ऊँचाई पर स्थित भू-भाग शामिल है; इसके बाद यह गंगा के मैदानों में उतरने से पहले नेपाल के एक बड़े भाग से प्रवाहित होती है। 
  • इसकी तीन प्रमुख सहायक नदियाँ- सूर्य कोसी, अरुण और तैमूर हिमालय की तलहटी से कटी हुई 10 किमी की घाटी के ठीक ऊपर एक बिंदु पर मिलती हैं। 
  • यह नदी भारत के उत्तरी बिहार में कटिहार ज़िले के कुर्सेला के पास गंगा में मिलने से पहले कई शाखाओं में बँट जाती है। 
  • भारत में ब्रह्मपुत्र के बाद कोसी में अधिकतम मात्रा में गाद और रेत पाई जाती है।  
  • इसे "बिहार का शोक" के रूप में भी जाना जाता है क्योंकि वार्षिक बाढ़ लगभग 21,000 वर्ग किमी. क्षेत्र को प्रभावित करती है। उपजाऊ कृषि भूमि के कारण ग्रामीण अर्थव्यवस्था प्रभावित हो रही है। 

Kosi-River

आगे की राह 

  • दुनिया भर में लगभग 330 मिलियन लोग नदी डेल्टा क्षेत्र में निवास करते हैं और इससे भी अधिक नदी के गलियारों में रहते हैं। इसलिये यह समझने का समय आ गया है कि जलवायु परिवर्तन और मानवजनित हस्तक्षेप नदी की गतिशीलता को कैसे प्रभावित कर रहे हैं।  
  • जलवायु परिवर्तन और नदी के उच्छेदन के बीच संबंध को समझने के लिये एक पूर्ण वैश्विक तस्वीर खींची जानी चाहिये।  
  • बाढ़ से बचाव के लिये नदियों के किनारे बनाए गए तटबंधों/बाधाओं की भूमिका को इसकी अस्थिरता के संबंध में समझा जाना चाहिये। 
  • नदियों के अतिरिक्त चैनल बनाने के लिये विभिन्न इंजीनियरिंग हस्तक्षेपों को नियोजित किया जा सकता है। यह चैनलों में जल और तलछट के प्रवाह को वितरित करके बाढ़ एवं  नदी मार्ग परिवर्तन को रोकेगा। 

विगत वर्ष के प्रश्न: 

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सी ब्रह्मपुत्र की सहायक नदी/नदियाँ है/हैं? (2016) 

  1. दिबांग
  2. कामेंग
  3. लोहित

नीचे दिये गए कूट का उपयोग कर सही उत्तर का चयन कीजिये: 

(a) केवल 1  
(b) केवल 2 और 3 
(c) केवल 1 और 3 
(d) 1, 2 और 3 

उत्तर: (d)  

व्याख्या: 

  • ब्रह्मपुत्र बेसिन तिब्बत (चीन), भूटान, भारत और बांग्लादेश देशों में फैला हुआ है। भारत में यह अरुणाचल प्रदेश, असम, पश्चिम बंगाल, मेघालय, नगालैंड और सिक्किम राज्यों में फैला हुआ है। 
  • ब्रह्मपुत्र नदी उत्तर में हिमालय की कैलाश पर्वतमाला से कोंगगुत्शो झील के दक्षिण में 5,150 मीटर की ऊंँचाई से निकलती है और लगभग 2,900 किमी तक प्रवाहित होती है। यह नामचा बरवा (अरुणाचल प्रदेश) में भारत में प्रवेश करती है और 916 किमी तक प्रवाहित होती है। 
  • दाहिनी ओर से मिलने वाली प्रमुख सहायक नदियाँ कामेंग, सुबनसिरी, मानस, संकोश और तीस्ता हैं, जबकि लोहित, दिबांग, बूढ़ी दिहिंग, देसांग, दिखो, धनसिरी बाईं ओर से इसमें मिलती हैं। अत: 1, 2 और 3 सही हैं। 
  • अतः विकल्प (d) सही उत्तर है। 

स्रोत: डाउन टू अर्थ 


जैव विविधता और पर्यावरण

स्टॉकहोम +50

प्रिलिम्स के लिये:

स्टॉकहोम घोषणा, जलवायु परिवर्तन, पेरिस समझौता, सतत् विकास, संयुक्त राष्ट्र, यूएनईपी, यूएनएफसीसीसी, यूएनसीसीडी, सीबीडी 

मेन्स के लिये:

स्टॉकहोम घोषणा और उसके परिणाम, चुनौतियाँ और आगे की राह 

चर्चा में क्यों?  

स्टॉकहोम+50 का आयोजन स्टॉकहोम, स्वीडन में हो रहा है। यह मानव पर्यावरण पर वर्ष 1972 के संयुक्त राष्ट्र (UN) सम्मेलन (स्टॉकहोम सम्मेलन के रूप में भी जाना जाता है) के 50वीं वर्षगाँंठ का उत्सव है 

  • संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा इस अंतर्राष्ट्रीय बैठक का आयोजन किया जा रहा है। 
  • यह ऐसे समय में आयोजित किया जा रहा है जब दुनिया स्टॉकहोम घोषणा के 50 वर्ष बाद भी जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण और अपशिष्ट प्रकृति तथा जैवविविधता की क्षति के तिहरे ग्रहीय संकट के साथ-साथ अन्य मुद्दों का सामना कर रही है। यह सतत विकास लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये खतरा है। 
  • कोविड-19 महामारी से एक सतत् रिकवरी भी एजेंडा बिंदुओं में से एक रहेगा। 

स्टॉकहोम सम्मेलन, 1972: 

  • पृष्ठभूमि:  
    • वर्ष 1968 में संयुक्त राष्ट्र महासभा में उभरते हुए वैज्ञानिक प्रमाणों का उपयोग करते हुए पहली बार जलवायु परिवर्तन पर चर्चा की गई थी। 
      • वर्ष 1967 में एक शोध अध्ययन ने CO2 स्तरों के आधार पर वैश्विक तापमान का वास्तविक अनुमान प्रदान किया। साथ ही यह भी भविष्यवाणी की गई थी कि वर्तमान स्तर से CO2 के दोगुने होने से वैश्विक तापमान में लगभग 2 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होगी। 
    • स्टॉकहोम सम्मेलन का विचार सबसे पहले स्वीडन द्वारा प्रस्तावित किया गया था। इसलिये इसे "स्वीडिश इनिशिएटिव" भी कहा जाता है। 
  • परिचय: 
    • स्टॉकहोम में मानव पर्यावरण पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन 5 से 16 जून, 1972 तक आयोजित किया गया था। 
    • यह ग्रहीय पर्यावरण पर पहला वैश्विक अभिसमय था। 
    • इसका विषय 'Only One Earth' था। 
    • सम्मेलन में 122 देशों ने भाग लिया। 
  • लक्ष्य: 
    • ग्रहीय पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधनों के लिये एक सामान्य शासन ढांँचा तैयार करना। 
  • स्टॉकहोम घोषणा और मानव पर्यावरण के लिये कार्य योजना: 
    • स्टॉकहोम घोषणा: 
      • 122 प्रतिभागी देशों में से 70 विकासशील और गरीब देशों ने स्टॉकहोम घोषणा को अपनाया। 
      • स्टॉकहोम घोषणा में 26 सिद्धांत शामिल थे जो विकसित और विकासशील देशों के बीच संवाद की शुरुआत को चिह्नित करते हैं। 
      • इसने "विकास, गरीबी और पर्यावरण के बीच अंतर्संबंध" का निर्माण किया। 
    • कार्ययोजना:  
      • कार्ययोजना में तीन मुख्य श्रेणियाँं शामिल थीं जिन्हें आगे 109 सिफारिशों में विभाजित किया गया: 
        • वैश्विक पर्यावरण मूल्यांकन कार्यक्रम (वाच प्लान) 
        • पर्यावरण प्रबंधन गतिविधियाँ 
        • राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर किये गए मूल्यांकन और प्रबंधन गतिविधियों का समर्थन करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय उपाय। 
  • सम्मेलन के तीन आयाम: 
    • देशों ने "एक-दूसरे के पर्यावरण या राष्ट्रीय अधिकार क्षेत्र से परे क्षेत्रों को नुकसान नहीं पहुंचाने" पर सहमति व्यक्त की। 
    • पृथ्वी के पर्यावरणीय खतरों का अध्ययन करने के लिये एक कार्ययोजना। 
    • देशों के बीच सहयोग स्थापित करने के लिये संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) नामक अंतर्राष्ट्रीय निकाय की स्थापना। 

स्टॉकहोम घोषणा के प्रमुख समझौते: 

  • वर्तमान और भावी पीढ़ियों के लाभ के लिये सावधानीपूर्वक योजना बनाकर प्राकृतिक संसाधनों जैसे- वायु, जल, भूमि, वनस्पतियों और जीवों की रक्षा की जानी चाहिये। 
  • विषाक्त पदार्थों की निकासी और ऊष्मा के उत्सर्जन को पर्यावरण की क्षमता से अधिक नहीं होने देना चाहिये। 
  • प्रदूषण के खिलाफ संघर्ष में गरीब और विकासशील देशों का समर्थन किया जाना चाहिये। 
  • राज्यों की पर्यावरणीय नीतियों को विकासशील देशों की वर्तमान या भविष्य की विकास क्षमता का समर्थन करना चाहिये। 
  • पर्यावरणीय उपायों को लागू करने के परिणामस्वरूप संभावित राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक परिणामों को पूरा करने के लिये एक समझौते पर पहुंँचने हेतु राज्यों व अंतर्राष्ट्रीय संगठनों द्वारा उचित कदम उठाए जाने चाहिये। 
  • संयुक्त राष्ट्र के चार्टर और अंतर्राष्ट्रीय कानून के सिद्धांतों के अनुसार, राज्यों को अपनी पर्यावरण नीतियों के तहत अपने संसाधनों का दोहन करने का संप्रभु अधिकार है। 
    • हालांँकि राज्यों की यह ज़िम्मेदारी है कि वे यह सुनिश्चित करें कि उनके अधिकार क्षेत्र या नियंत्रण के भीतर की गतिविधियाँ अन्य राज्यों के पर्यावरण या राष्ट्रीय क्षेत्राधिकार की सीमाओं से परे के क्षेत्रों को कोई नुकसान न पहुंँचाएंँ। 

स्टॉकहोम, 1972 का महत्त्व: 

  • पर्यावरण पर पहला वैश्विक सम्मेलन तब हुआ जब पर्यावरण वैश्विक चिंता या किसी राष्ट्र के लिये महत्त्व का विषय नहीं था। 
  • इससे पहले संयुक्त राष्ट्र चार्टर में कभी भी निपटने के लिये पर्यावरण का क्षेत्र शामिल नहीं था।  
  • वर्ष 1972 तक किसी भी देश में पर्यावरण मंत्रालय नहीं था।  
    • बाद में नॉर्वे और स्वीडन जैसे देशों ने पर्यावरण के लिये अपने मंत्रालय स्थापित किये। 
    • वर्ष 1985 में भारत ने पर्यावरण और वन मंत्रालय की स्थापना की। 
  • वर्ष 1972 के बाद प्रजातियों के विलुप्त होने और पारा विषाक्तता जैसे पर्यावरणीय मुद्दे सुर्खियों में आने लगे और सार्वजनिक चेतना बढ़ी। 
  • स्टॉकहोम सम्मेलन ने समकालीन "पर्यावरण युग" की शुरुआत की। 
  • पर्यावरण संकट पर आज के कई सम्मेलन स्टॉकहोम घोषणा में अपने मूल का पता लगाते हैं। 

चुनौतियाँ: 

  • शुरुआत से ही वैश्विक राजनीति ने सम्मेलन पर प्रतिकूल प्रभाव डाला।  
  • कुछ देशों ने अमीर देशों के प्रभुत्व के बारे में अपनी चिंता व्यक्त की और कहा कि नीतियाँ अमीर, औद्योगिक देशों के हित में अधिक हैं। 
  • राष्ट्रों की एक असंगठित प्रतिक्रिया ने इस तथ्य में योगदान दिया है कि दुनिया 2100 तक पूर्व-औद्योगिक स्तरों से कम-से-कम 3˚C अधिक तापन की राह पर है जो पेरिस समझौते में अनिवार्य रूप से 1.5˚C वार्मिंग से दोगुना है। 
  • अगले 50 वर्षों के भीतर 1-3 बिलियन लोगों के जलवायु परिस्थितियों से बाहर रहने का अनुमान है। 
  • एक स्वस्थ पर्यावरण के लिये स्थायी उपायों को अपनाने के रास्ते में गरीबी सबसे बड़ी बाधा है, क्योंकि विज्ञान और प्रौद्योगिकी के उपयोग के बिना गरीबी का उन्मूलन नहीं किया जा सकता है। 
  • जब तक गरीब या विकासशील देश रोज़गार प्रदान करने और लोगों की दैनिक आवश्यकताओं को पूरा करने की स्थिति में नहीं होंगे, स्थायी पर्यावरण की नीतियों को उचित रूप से लागू नहीं किया जा सकता है। 

आगे की राह 

  • दुनिया के अधिकांश लोगों को यह समझने की ज़रूरत है कि पारिस्थितिकी और संरक्षण उनके हितों के खिलाफ काम नहीं करेगा। इसके बजाय यह उनके जीवन में सुधार लाएगा। 
  • औद्योगिक राष्ट्र मूल रूप से वायु और जल प्रदूषण के बारे में चिंतित हैं, जबकि विकासशील राष्ट्र पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुँचाये बिना गरीबी उन्मूलन के लिये सहायता की उम्मीद कर रहे हैं। 
  • इसलिये विकासशील देशों की अर्थव्यवस्थाओं के उत्थान को सुनिश्चित करने के लिये पर्यावरण संरक्षण के उपायों को अपनाया जाना चाहिये। 
  • स्टॉकहोम+50 के लिये एक स्थायी वातावरण की ओर प्रेरित लक्ष्यों को प्राप्त करने हेतु विशिष्ट समय-सीमा निर्धारित करने के लिये  यह एक उचित समय है। 

विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs): 

प्रश्न. 'वैश्विक पर्यावरण सुविधा' के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं? (2014) 

(a) यह 'जैविक विविधता पर कन्वेंशन' और 'जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन' के लिये वित्तीय तंत्र के रूप में कार्य करती है। 
(b) यह वैश्विक स्तर पर पर्यावरणीय मुद्दों पर वैज्ञानिक अनुसंधान करती है। 
(c) यह OECD के अंतर्गत शासित एक एजेंसी है जो अविकसित देशों को उनके पर्यावरण की रक्षा के विशिष्ट उद्देश्य के साथ प्रौद्योगिकी और धन के हस्तांतरण की सुविधा प्रदान करती है। 
(d) A और B दोनों 

उत्तर: A 

व्याख्या: 

  • 'वैश्विक पर्यावरण सुविधा (GEF) की स्थापना 1992 के रियो अर्थ सम्मलेन की पूर्व संध्या पर जैविक विविधता सम्मेलन (CBD) और जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC) के लिये एक वित्तीय तंत्र के रूप में की गई थी। 
  • उपरोक्त दो सम्मेलनों के अलावा यह स्थायी कार्बनिक प्रदूषकों पर स्टॉकहोम सम्मेलन, मरुस्थलीकरण का मुकाबला करने के लिये संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन और मरकरी पर मिनामाता सम्मेलन हेतु एक वित्तीय तंत्र के रूप में भी कार्य करती है। 
  • यह कोई वैज्ञानिक शोध नहीं करती है। 
  • यह OECD की एजेंसी नहीं है। इसकी अपनी स्वतंत्र, संगठित संरचना है, जिसमें विधानसभा (जिसमें 184 देश शामिल हैं), परिषद् (प्रबंधन निकाय), सचिवालय, 18 एजेंसियाँ, मूल्यांकन कार्यालय और एक वैज्ञानिक और तकनीकी सलाहकार पैनल (STAP) शामिल हैं। 
  • अतः विकल्प A सही उत्तर है। 

स्रोत: डाउन टू अर्थ 


शासन व्यवस्था

जाति आधारित जनगणना

प्रिलिम्स के लिये:

जनगणना, एसईसीसी, ओबीसी। 

मेन्स के लिये:

जाति आधारित जनगणना और संबंधित मुद्दे, जनसंख्या और संबद्ध मुद्दे। 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में बिहार सरकार ने घोषणा की है कि वह सभी जातियों और समुदायों (SECC) का सामाजिक-आर्थिक सर्वेक्षण करेगी। 

जनगणना और SECC के बीच अंतर: 

  • जनगणना: 
    • भारत में जनगणना की शुरुआत औपनिवेशिक शासन के दौरान वर्ष 1881 में हुई। 
    • जनगणना का आयोजन सरकार, नीति निर्माताओं, शिक्षाविदों और अन्य लोगों द्वारा भारतीय जनसंख्या से संबंधित आँकड़े प्राप्त करने, संसाधनों तक पहुँचने, सामाजिक परिवर्तन, परिसीमन से संबंधित आँकड़े आदि का उपयोग करने के लिये किया जाता है। 
    • हालाँकि 1940 के दशक की शुरुआत में वर्ष 1941 की जनगणना के लिये भारत के जनगणना आयुक्त ‘डब्ल्यू. डब्ल्यू. एम. यीट्स’ ने कहा था कि जनगणना एक बड़ी, बेहद मज़बूत अवधारणा है लेकिन विशेष जाँच के लिये यह एक अनुपयुक्त साधन है। 
  • सामाजिक-आर्थिक और जातिगत जनगणना (SECC): 
    • वर्ष 1931 के बाद वर्ष 2011 में इसे पहली बार आयोजित किया गया था। 
    • SECC का आशय ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में प्रत्येक भारतीय परिवार की निम्नलिखित स्थितियों के बारे में पता करना है: 
      • आर्थिक स्थिति पता करना ताकि केंद्र और राज्य के अधिकारियों को वंचित वर्गों के क्रमचयी और संचयी संकेतकों की एक शृंखला प्राप्त करने तथा उन्हें इसमें शामिल करने की अनुमति दी जा सके, जिसका उपयोग प्रत्येक प्राधिकरण द्वारा एक गरीब या वंचित व्यक्ति को परिभाषित करने के लिये किया जा सकता है। 
      • इसका अर्थ प्रत्येक व्यक्ति से उसका विशिष्ट जातिगत नाम पूछना है, जिससे सरकार को यह पुनर्मूल्यांकन करने में आसानी हो कि कौन से जाति समूह आर्थिक रूप से सबसे खराब स्थिति में थे और कौन बेहतर थे। 
    • SECC में व्यापक स्तर पर ‘असमानताओं के मानचित्रण’ की जानकारी देने की क्षमता है। 
  • जनगणना और SECC के बीच अंतर: 
    • जनगणना भारतीय आबादी का एक समग्र चित्र प्रस्तुत करती है, जबकि SECC राज्य द्वारा सहायता के योग्य लाभार्थियों की पहचान करने का एक उपाय/साधन है। 
    • चूँकि जनगणना, वर्ष 1948 के जनगणना अधिनियम के अंतर्गत आती है, इसलिये सभी आँकड़ों को गोपनीय माना जाता है, जबकि SECC की वेबसाइट के अनुसार, “SECC में दी गई सभी व्यक्तिगत जानकारी का उपयोग कर सरकारी विभाग परिवारों को लाभ पहुँचाने और/या प्रतिबंधित करने के लिये स्वतंत्र हैं। 

जाति आधारित जनगणना आयोजित करने के पक्ष और विपक्ष में तर्क: 

  • पक्ष में तर्क: 
    • सामाजिक समानता कार्यक्रमों के प्रबंधन में सहायक: 
      • भारत के सामाजिक समानता कार्यक्रम डेटा के बिना सफल नहीं हो सकते हैं और जाति जनगणना इसे ठीक करने में मदद करेगी। 
      • डेटा की कमी के कारण ओबीसी की आबादी, ओबीसी के भीतर के समूह  के लिये कोई उचित अनुमान उपलब्ध नहीं है। 
      • मंडल आयोग ने अनुमान लगाया कि ओबीसी आबादी 5% है, जबकि कुछ अन्य ने ओबीसी आबादी के 36 से 65% तक होने का अनुमान लगाया। 
      • जाति आधारित जनगणना के माध्यम से 'OBC आबादी के आकार के बारे में जानकारी  के अलावा OBC की आर्थिक स्थिति (घर के प्रकार, संपत्ति, व्यवसाय) के बारे में नीति संबंधी प्रासंगिक जानकारी, जनसांख्यिकीय जानकारी (लिंग अनुपात, मृत्यु दर, जीवन प्रत्याशा), शैक्षिक डेटा (पुरुष और महिला साक्षरता, स्कूल जाने वाली आबादी का अनुपात, संख्या) प्राप्त होगा। 
    • आरक्षण पर वस्तुनिष्ठता उपाय: 
      • जाति-आधारित जनगणना आरक्षण पर वस्तुनिष्ठता का उपाय लाने में लंबा रास्ता तय कर सकती है। 
      • OBC के लिये 27% कोटा के समान पुनर्वितरण की जाँच के लिये गठित रोहिणी आयोग के अनुसार, ओबीसी आरक्षण के तहत लगभग 2,633 जातियांँ शामिल हैं। 
      • हालाँकि 1992 से केंद्र की आरक्षण नीति इस बात पर ध्यान नहीं देती है कि OBC के भीतर अत्यंत पिछड़ी जातियों की एक अलग श्रेणी मौजूद है, जो अभी भी हाशिये पर हैं।  
  • विपक्ष में तर्क: 
    • जाति आधारित जनगणना के दुष्प्रभाव: जाति में एक भावनात्मक तत्त्व निहित होता है और इस प्रकार जाति आधारित जनगणना के राजनीतिक व सामाजिक दुष्प्रभाव भी उत्पन्न हो सकते हैं।   
      • ऐसी आशंकाएँ प्रकट होती रही हैं कि जाति संबंधित गणना से उनकी पहचान की सुदृढ़ता या कठोरता को मदद मिल सकती है। 
      • इन दुष्प्रभावों के कारण ही सामाजिक, आर्थिक और जातिगत जनगणना, 2011 के लगभग एक दशक बाद भी इसके आँकड़े के बड़े अंश अप्रकाशित रहे हैं या ये केवल अंशों में ही जारी किये गए हैं। 
    • जाति संदर्भ-विशिष्ट होती है: जाति कभी भी भारत में वर्ग या वंचना का छद्म रूप नहीं रही; यह एक विशिष्ट प्रकार के अंतर्निहित भेदभाव का गठन करती है जो प्रायः वर्ग के भी पार चला जाता है। उदाहरण के लिये:   
      • दलित उपनाम वाले लोगों को नौकरी हेतु साक्षात्कार के लिये बुलाए जाने की संभावना कम होती है, भले ही उनकी योग्यता उच्च जाति के उम्मीदवार से बेहतर हो। 
      • ज़मींदारों द्वारा उन्हें पट्टेदारों के रूप में स्वीकार किये जाने की संभावना भी कम होती है।  
      • एक पढ़े-लिखे, संपन्न दलित व्यक्ति से विवाह अभी भी उच्च जाति की महिलाओं के परिवारों में हिंसक प्रतिशोध को जन्म देता है। 

आगे की राह 

  • एक जाति जनगणना जातिविहीन समाज के लक्ष्य के लिये भले ही अनुकूल न हो लेकिन यह समाज में असमानताओं को दूर करने के साधन के रूप में काम कर सकती है। 
  • जाति के आँकड़े न केवल इस सवाल पर स्वतंत्र शोध करने में सक्षम होंगे कि सकारात्मक कार्रवाई की आवश्यकता किसे है और किसे नहीं, बल्कि यह आरक्षण की प्रभावशीलता में भी वृद्धि लाएगा। 
    • निष्पक्ष डेटा और उसके बाद के शोध सबसे पिछड़े वर्गों के उत्थान के वास्तविक प्रयासों को जाति व वर्ग की राजनीति से बचा सकते हैं तथा यह उन दोनों पक्षों के लोगों के लिये सही सूचना के स्रोत हो सकते हैं जो आरक्षण के पक्ष या उसके विपक्ष में हैं। 
    • आरक्षण का प्रावधान नहीं बल्कि आरक्षण का दुरुपयोग हमारे समाज में विभाजन पैदा करता है। 

विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs): 

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2009) 

  1. 1951 की जनगणना और 2001 की जनगणना के बीच भारत के जनसंख्या घनत्व में तीन गुना से अधिक की वृद्धि हुई है।
  2. 1951 की जनगणना और 2001 की जनगणना के बीच भारत की जनसंख्या की वार्षिक वृद्धि दर (घातीय) तीन गुना हो गई है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? 

(a) केवल 1 
(b) केवल 2 
(c) 1 और 2 दोनों 
(d) न तो 1 और न ही 2 

उत्तर: D 

व्याख्या:  

  • जनसंख्या की सघनता के महत्त्वपूर्ण संकेतकों में से एक जनसंख्या का घनत्व है। इसे प्रति वर्ग किलोमीटर पर व्यक्तियों की संख्या के रूप में परिभाषित किया जाता है। 
  • वर्ष 2001 में भारत का जनसंख्या घनत्व 324 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर था और 1951 में यह 117 था। इस प्रकार घनत्व में दोगुने से अधिक की वृद्धि हुई, न कि तीन गुना। अतः कथन 1 सही नहीं है। 
  • बीसवीं सदी की शुरुआत यानी वर्ष 1901 में भारत का जनसंख्या घनत्व 77 था और यह लगातार एक दशक से बढ़कर वर्ष 2001 में 324 तक पहुँच गया। 
  •  वर्ष 2001 में औसत वार्षिक वृद्धि दर 1.93 थी, जबकि 1951 में यह 1.25 थी। इस प्रकार इसमें वृद्धि तो हुई लेकिन यह वृद्धि दोगुनी नहीं थी। अतः कथन 2 सही नहीं है।  

अतः  विकल्प (D) सही है। 

स्रोत: द हिंदू  


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