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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत द्वारा अफगानिस्तान को सहायता

  • 25 Nov 2020
  • 9 min read

प्रिलिम्स के लिये:

अफगानिस्तान-2020 सम्मेलन, अमेरिका और तालिबान शांति समझौता

मेन्स के लिये:

अफगानिस्तान को लेकर भारत की रणनीति में बदलाव, अमेरिका और तालिबान शांति समझौते का भारत पर प्रभाव

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ‘अफगानिस्तान-2020 सम्मेलन’ के अवसर पर भारत ने अफगानिस्तान में विकास कार्यों के लिये 80 मिलियन अमेरिकी डॉलर की लगभग 150 परियोजनाओं की घोषणा की है।

  • इस सम्मेलन में अफगानिस्तान के राष्ट्रपति, संयुक्त राष्ट्र और यूरोपीय संघ के अधिकारियों के साथ विश्व के अन्य देशों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। 
  • गौरतलब है कि अमेरिका ने 20 जनवरी, 2021 तक अफगानिस्तान में तैनात अपने सैनिकों की संख्या को 2500 तक सीमित करने का निर्णय लिया है।   

प्रमुख बिंदु:

भारत की वर्तमान सहायता: 

  • भारत द्वारा उच्च प्रभाव वाली सामुदायिक विकास परियोजनाओं के चौथे चरण की शुरुआत की जाएगी, जिसमें 80 मिलियन अमेरिकी डॉलर की लगभग 150 परियोजनाएँ शामिल हैं।
  • भारत ने अफगानिस्तान के साथ शहतूत बांध (Shahtoot Dam) के निर्माण के लिये एक समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं, गौरतलब है कि इस बांध  के माध्यम से काबुल शहर के 20 लाख लोगों को स्वच्छ जल की आपूर्ति सुनिश्चित हो सकेगी। 

पूर्व में दी गई सहायता: 

Helping-Hand

  • अफगानिस्तान में भारत की विकास परियोजनाएँ पाँच स्तंभों पर आधारित रही हैं:
    • बड़ी अवसंरचना परियोजनाएँ।
    • मानव संसाधन विकास और क्षमता निर्माण।
    • मानवीय सहायता।
    • उच्च प्रभाव वाली सामुदायिक विकास परियोजनाएँ।
    • हवाई और भू-संपर्क के माध्यम से व्यापार और निवेश में वृद्धि।
  • वर्ष 2002 से लेकर अब तक भारत ने  अफगानिस्तान के विकास और पुनर्निर्माण की दिशा में 3 बिलियन डॉलर (लगभग 2,200 करोड़ रुपए) खर्च किये हैं।
  • अफगानिस्तान की स्थलरुद्ध भगौलिक स्थिति इसके विकास में सबसे बड़ी बाधा रही है, साथ ही पाकिस्तान द्वारा परागमन को बाधित किये जाने से यह स्थिति और भी बदतर हो गई है  
  • भारत द्वारा ईरान के चाबहार बंदरगाह के माध्यम से अफगानिस्तान को संपर्क का एक वैकल्पिक मार्ग प्रदान किया गया है। 
  • महामारी सहयोग: COVID-19 महामारी की चुनौती से निपटने के लिये  भारत द्वारा अफगानिस्तान को 20 टन दवाइयों और अन्य आवश्यक उपकरणों के साथ 75,000 टन गेहूँ की आपूर्ति की गई है

भारत के दृष्टिकोण में बदलाव: 

  • ध्यातव्य है कि भारत द्वारा अफगानिस्तान में तालिबान के शासन के दौरान (वर्ष 1996 से वर्ष 2001) कोई निवेश नहीं किया गया। 
  • परंतु वर्तमान में जब यह स्पष्ट हो गया है कि भविष्य में तालिबान-अफगानिस्तान प्रमुख शक्ति बनकर उभर सकता है तो ऐसे समय में भारत द्वारा अफगानिस्तान में निवेश के निर्णय को इसके दृष्टिकोण में एक बड़े बदलाव के रूप में देखा जा रहा है। 
  • भारत ने सितंबर 2020 में कतर की राजधानी दोहा में आयोजित अंतर-अफगान वार्ता के प्रारंभ समारोह में भी भाग लिया था, जहाँ तालिबान की 21 सदस्यीय टीम भी उपस्थित थी। यह अफगानिस्तान की राजनीतिक शक्ति संरचना और ज़मीनी वास्तविकता में हो रहे बदलाव को लेकर भारत की स्वीकार्यता को दर्शाता है।  

अमेरिकी सैनिकों की संख्या में कटौती:

  • ध्यातव्य है कि फरवरी 2020 में दोहा में अमेरिका और तालिबान ने एक शांति समझौते पर हस्ताक्षर किये थे।  
    • इस समझौते के तहत अमेरिका ने अगले 14 महीनों के अंदर अफगानिस्तान में तैनात अपने सभी सैनिकों को वापस बुलाने और अफगान सरकार द्वारा गिरफ्तार किये गए तालिबानी लड़ाकों को रिहा करने पर सहमति व्यक्त की थी
    • इसके बदले में तालिबान ने आश्वासन दिया कि वह अफगानिस्तान को अल-कायदा और इस्लामिक स्टेट जैसे अंतर्राष्ट्रीय ज़िहादी संगठनों द्वारा अपने बेस के रूप में उपयोग करने की अनुमति नहीं देगा। इसकें साथ ही तालिबान ने अफगान सरकार के साथ सीधी बातचीत शुरू करने के लिये भी अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त की थी 
    • ऐसे महत्त्वपूर्ण समय में अमेरिका द्वारा अफगानिस्तान को छोड़कर जाना न सिर्फ अफगान सैनिकों को आवश्यक सहयोग (विशेषकर वायुशक्ति) से वंचित करेगा बल्कि यह उनके मनोबल को भी प्रभावित करेगा
    • उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) ने अफगान सैनिकों को अगले चार वर्षों के लिये वित्त पोषण प्रदान करने के लिये प्रतिबद्धता व्यक्त की है। 
    • हालाँकि यह निर्णय अफगानिस्तान को एक अनिश्चित भविष्य की और अग्रसर करेगा क्योंकि इस बात की संभावनाएँ बहुत अधिक हैं कि अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बाद तालिबान देश की सत्ता को अपने हाथों में लेने का प्रयास करेगा। 
      • वर्ष 2001 में अफगानिस्तान में अमेरिकी हमले के बाद सत्ता से हटाए जाने के बाद से विदेशी लड़ाकों और अफगान सरकार दोनों के बीच संघर्ष जारी है। 
      • वर्तमान में देश के आधे से अधिक हिस्से पर तालिबान का अधिकार है और वह इसके पूरे हिस्से को अपने अधिकार क्षेत्र में लेने के लिये संघर्ष कर रहा है। 
      • इस समझौते पर हस्ताक्षर के बाद से तालिबान ने देशभर में 13000 से अधिक हमले किये हैं।
      • अफगानिस्तान में संयुक्त राष्ट्र सहायता मिशन (UN Assistance Mission in Afghanistan-UMAMA) की एक रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2020 के शुरुआती 9 महीनों में लगभग 6,000 अफगान नागरिकों की हत्या हुई है और इसमें से 45% हत्याएँ तालिबान के द्वारा की गई थी। 

आगे की राह:

  • अफगानिस्तान में हिंसा का बढ़ता स्तर एक बड़ी चिंता का विषय है। हालाँकि अनेक, चुनौतियों के बावजूद, दोनों पक्ष (सरकार के प्रतिनिधि तथा तालिबान) बातचीत की राह पर अग्रसर हैं और ऐसा प्रतीत हो रहा है कि दोनों पक्ष एक प्रारंभिक सफलता तक पहुँच भी गए हैं।
  • भारत ने अफगानिस्तान में तत्काल एवं व्यापक युद्ध विराम का आह्वान किया है और भारत हमेशा से इस बात का समर्थक रहा है कि यह शांति प्रक्रिया अफगान के नेतृत्त्व, अफगान के स्वामित्त्व और अफगान के नियंत्रण में होनी चाहिये।
  • भारत एक शांतिपूर्ण, समृद्ध, संप्रभु, लोकतांत्रिक और एकजुट अफगानिस्तान की दिशा में काम करने हेतु अफगानिस्तान के लोगों तथा विश्व समुदाय के साथ हाथ-से-हाथ मिलाकर चलने के लिये तत्त्पर है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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