अरब सागर में चक्रवात निसर्ग
प्रीलिम्स के लिये:चक्रवात निसर्ग, विक्षोभों का वर्गीकरण, मौसम विभाग की चेतावनी के प्रकार मेन्स के लिये:चक्रवात के प्रकार |
चर्चा में क्यों:
'भारत मौसम विज्ञान विभाग' (India Meteorological Department- IMD) ने महाराष्ट्र तथा गुजरात में ‘चक्रवात निसर्ग’(Nisarga) के कारण खराब मौसम की चेतावनी जारी की है।
प्रमुख बिंदु:
- हाल ही में अरब सागर में भारत के मध्य-पश्चिम तटीय क्षेत्र में अवदाब (Depression) क्षेत्र का निर्माण हुआ है।
- भारत के मौसम विभाग ने महाराष्ट्र के मुंबई, ठाणे, पालघर और रायगढ़ के लिये ‘रेड अलर्ट’ जारी किया है।
चक्रवात की वर्तमान स्थिति:
- IMD ने विक्षोभ को वर्तमान में (Depression) अवदाब के रूप में वर्गीकृत किया है। हालाँकि अवदाब की तीव्रता में लगातार वृद्धि हो रही है तथा यह लगातार उत्तर तथा उत्तर-पश्चिम की ओर बढ़ रहा है।
- वर्तमान में अवदाब का केंद्र अरब सागर में मुंबई तट के 630 किमी. दक्षिण-पश्चिम में है।
- अवदाब की तीव्रता में वृद्धि होने पर यह गहन अवदाब (Deep Depression) में तथा आगे इसके चक्रवात में बदलने की संभावना है। चक्रवात में बदलने के बाद इसे ‘निसर्ग’ नाम दिया जाएगा।
- ‘भारत मौसम विज्ञान विभाग’ (IMD) द्वारा चक्रवातों को बंगाल की खाड़ी तथा अरब सागर में बनने वाली निम्न दबाव प्रणाली तथा उनकी नुकसान की क्षमता के आधार पर वर्गीकृत किया गया है।
चक्रवातों का तीव्रता के आधार पर वर्गीकरण:
विक्षोभ का प्रकार |
वायु की गति (किमी/घंटा में) |
न्यून दाब (Low Pressure) |
31 से कम |
अवदाब (Depression) |
31-49 |
गहन अवदाब (Deep Depression) |
49-61 |
चक्रवाती तूफान (Cyclonic Storm) |
61-88 |
गंभीर चक्रवाती तूफान (Severe Cyclonic Storm) |
88-117 |
सुपर साइक्लोन (Super Cyclone) |
221 से अधिक |
चक्रवात का मार्ग:
- चक्रवात वर्तमान में उत्तर तथा उत्तर-पूर्व की ओर बढ़ रहा है तथा 3 जून तक उत्तरी महाराष्ट्र तथा दक्षिण गुजरात के तटों को पार करने की संभावना है।
- चक्रवात के कारण महाराष्ट्र के पूर्वी मुंबई, ठाणे तथा रायगढ़ ज़िलों में ऑरेंज अलर्ट जारी किया गया है। जबकि नासिक, धुले, नंदुरबार ज़िलों में ‘रेड अलर्ट’ जारी किया गया है।
- IMD ने इन क्षेत्रों में तेज़ हवाओं; जिन्हे ‘गेल विंड’ (Gale Wind) भी कहा जाता है, की चेतावनी जारी की है । गेल विंड की गति 34-47 नॉट के बीच होती है। 1 नॉट, 1.85 किमी प्रति घंटे के बराबर होता है।
मौसम विभाग की चेतवानी के प्रकार:
- IMD द्वारा मौसम से संबंधित चेतावनी देने के लिये रेड अलर्ट, ऑरेंज अलर्ट, येलो अलर्ट और ग्रीन अलर्ट को जारी किया जाता है। इन अलर्ट को मौसम के खराब होने की तीव्रता के आधार पर जारी किया जाता है।
- रेड अलर्ट:
- जब हवा की गति 130 किमी./घंटा से अधिक होती है तो IMD द्वारा ‘रेड अलर्ट’ जारी किया जाता है और प्रशासन से ज़रूरी कदम उठाने के लिये कहा जाता है। यहाँ ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि इस प्रकार की चेतवानी जारी करने का आधार एकमात्र वायु की गति नहीं है।
- ऑरेंज अलर्ट:
- जब चक्रवात में वायु की गति लगभग 65 से 75 किमी. प्रति घंटा होती है और 15 से 33 मिमी. तक तीव्र बारिश होने की संभावना रहती है।
- येलो अलर्ट:
- मौसम विभाग द्वारा येलो अलर्ट का प्रयोग सामान्यत: लोगों को सचेत करने के लिये किया जाता है। हालाँकि इस क्षेत्र के आपदा से प्रभावित होने की बहुत कम संभावना होती है।
- ‘येलो वाॅर्निंग’ तटीय क्षेत्रों में प्रतिकूल मौसम की संभावना से कम-से-कम 48 घंटे पूर्व जारी की जाती है।
- ग्रीन अलर्ट:
- मौसम विभाग द्वारा ग्रीन अलर्ट सामान्यत: तब जारी किया जब संबंधित क्षेत्र को आपदा से कोई खतरा नहीं होता है।
सरकार की प्रतिक्रिया:
- राज्य आपदा प्रतिक्रिया टीमों को अलर्ट पर रखा गया है तथा ज़रूरत पड़ने पर चक्रवात प्रभावित राज्यों में भेजा जाएगा।
- राज्य सरकारों ने संभावित चक्रवात प्रभावित क्षेत्रों में रेड अलर्ट जारी किया है।
- निचले इलाकों में रहने वाले लोगों की निकासी के लिये 'राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल’ (NDRF) की 10 टीमों को तैनात किया गया है।
स्रोत: द हिंदू
पीएम स्वनिधि योजना
प्रीलिम्स के लिये:पीएम स्वनिधि योजना मेन्स के लिये:भारतीय अर्थव्यवस्था और असंगठित क्षेत्र, COVID-19 से उत्पन्न चुनौतियों से निपटने हेतु सरकार के प्रयास |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में ‘केंद्रीय आवास एवं शहरी विकास मंत्रालय’ (Ministry of Housing and Urban Affairs- MoHUA) द्वारा छोटे दुकानदारों और फेरीवालों (Street Venders) को आर्थिक रूप से सहयोग प्रदान करने हेतु ‘प्रधानमंत्री स्ट्रीट वेंडर्स आत्मनिर्भर निधि (The Pradhan Mantri Street Vendor’s AtmaNirbhar Nidhi- PM SVANidhi) या पीएम स्वनिधि नामक योजना की शुरुआत की गई है।
प्रमुख बिंदु:
- इस योजना के तहत छोटे दुकानदार 10,000 रुपए तक के ऋण के लिये आवेदन कर सकेंगे।
- ऋण प्राप्त करने के लिये आवेदकों को किसी प्रकार की ज़मानत या कोलैट्रल (Collateral) की आवश्यकता नहीं होगी।
- इस योजना के तहत प्राप्त हुई पूंजी को चुकाने के लिये एक वर्ष का समय दिया जाएगा, विक्रेता इस अवधि के दौरान मासिक किश्तों के माध्यम से ऋण का भुगतान कर सकेंगे।
- साथ ही इस योजना के तहत यदि लाभार्थी लिये गए ऋण पर भुगतान समय से या निर्धारित तिथि से पहले ही करते हैं तो उन्हें 7% (वार्षिक) की ब्याज सब्सिडी प्रदान की जाएगी, जो ‘प्रत्यक्ष लाभ अंतरण’ (Direct Benefit Transfer- DBT) के माध्यम से 6 माह के अंतराल पर सीधे लाभार्थी के बैंक खाते में जमा की जाएगी।
- पीएम स्वनिधि के तहत निर्धारित तिथि से पहले ऋण के पूर्ण भुगतान पर कोई ज़ुर्माना नहीं लागू होगा।
- इस योजना के तहत ऋण जारी करने की प्रक्रिया जुलाई माह से शुरू की जाएगी।
- इस योजना के लिये सरकार द्वारा 5,000 करोड़ रुपए की राशि मंज़ूर की गई है, यह योजना मार्च 2022 तक लागू रहेगी।
- यह पहली बार है जब सूक्ष्म-वित्त संस्थानों (Micro finance Institutions- MFI)/ गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (Non Banking Financial Company- NBFC)/स्वयं सहायता समूह (Self Help Group-SHG), बैंकों को शहरी क्षेत्र की गरीब आबादी से जुड़ी किसी योजना में शामिल किया गया है।
- इन संस्थानों को ज़मीनी स्तर पर उनकी उपस्थिति और छोटे व्यापारियों व शहरों की गरीब आबादी के साथ निकटता के कारण इस योजना में शामिल किया गया है।
- तकनीकी का प्रयोग और पारदर्शिता:
- इस योजना के प्रभावी वितरण और इसके क्रियान्वयन में पारदर्शिता लाने के लिये वेब पोर्टल और मोबाइल एप युक्त एक डिजिटल प्लेटफॉर्म का विकास किया जा रहा है।
- यह प्लेटफॉर्म क्रेडिट प्रबंधन के लिये वेब पोर्टल और मोबाइल एप को भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक (सिडबी) के ‘उद्यम मित्र’ पोर्टल से तथा ब्याज सब्सिडी के स्वचालित प्रबंधन हेतु MoHUA के ‘पैसा पोर्टल’ (PAiSA Portal) से जोड़ेगा।
लाभ:
- इस योजना के माध्यम से विभिन्न क्षेत्रो और पृष्ठभूमि के 50 लाख से अधिक लोगों को प्रत्यक्ष रूप से लाभ प्राप्त होगा।
- इस योजना को विशेष रूप से छोटे दुकानदारों (ठेले और रेहड़ी-पटरी वाले) के लिये तैयार किया गया है, इस योजना के माध्यम से छोटे व्यापारी COVID-19 के कारण प्रभावित हुए अपने व्यापार को पुनः शुरू कर सकेंगे।
- डिजिटल बैंकिंग को बढ़ावा:
- इस योजना के माध्यम से सरकार द्वारा छोटे व्यापारियों के बीच डिजिटल बैंकिंग को बढ़ावा देने का प्रयास किया जाएगा।
- इसके तहत ऋण चुकाने के लिये डिजिटल भुगतान करने वाले लाभार्थियों को हर माह कैश-बैक प्रदान कर उन्हें अधिक-से-अधिक डिजिटल बैंकिंग अपनाने के लिये प्रोत्साहित किया जाएगा।
- क्षमता विकास:
- इस योजना के तहत MoHUA द्वारा जून माह में पूरे देश में राज्य सरकारों, दीनदयाल अंत्योदय योजना-राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन (Deendayal Antyodaya Yojna - National Urban Livelihood Mission or DAY-NULM) के राज्य कार्यालय, भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम, शहरी स्थानीय निकायों, सूक्ष्म एवं लघु उद्यमों के लिए क्रेडिट गारंटी निधि ट्रस्ट और अन्य हितधारकों के सहयोग से क्षमता विकास और वित्तीय साक्षरता कार्यक्रम की शुरुआत की जाएगी।
निष्कर्ष:
COVID-19 महामारी के कारण देश की औद्योगिक इकाइयों और संगठित क्षेत्र के अन्य व्यवसायों के अतिरिक्त असंगठित क्षेत्र और छोटे व्यापारियों को भारी आर्थिक नुकसान का सामना करना पड़ा है। देश में बड़े पैमाने पर असंगठित क्षेत्र के प्रमाणिक आँकड़े उपलब्ध न होने से इससे जुड़े लोगों को सहायता पहुँचाना एक बड़ी चुनौती रही है। साथ ही इस क्षेत्र के लिये किसी विशेष आर्थिक तंत्र के अभाव में छोटे व्यापारियों को स्थानीय कर्ज़दारों से महँगी दरों पर ऋण लेना पड़ता है। पीएम स्वनिधि योजना के माध्यम से छोटे व्यापारियों को आसान शर्तों पर ऋण उपलब्ध करा कर ऐसे लोगों को COVID-19 के कारण हुए नुकसान से उबरने में सहायता प्रदान की जा सकेगी।
स्रोत: द हिंदू
सार्वजनिक प्राधिकरण नहीं है पीएम-केयर्स फंड
प्रीलिम्स के लियेपीएम-केयर्स फंड, प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष, RTI अधिनियम के तहत सार्वजनिक प्राधिकरण मेन्स के लियेपीएम-केयर्स फंड से संबंधित बिंदु और इससे संबंधित चुनौतियाँ |
चर्चा में क्यों?
प्रधानमंत्री कार्यालय (Prime Minister's Office-PMO) ने पीएम-केयर्स फंड (PM-CARES Fund) के संबंध में RTI अधिनियम के तहत दायर आवेदन में मांगी गई सूचना को देने से यह कहते हुए इनकार कर दिया कि सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के तहत पीएम-केयर्स फंड एक 'सार्वजनिक प्राधिकरण' (Public Authority) नहीं है।
प्रमुख बिंदु
- हाल ही में केंद्र सरकार ने COVID-19 महामारी द्वारा उत्पन्न किसी भी प्रकार की आपातकालीन या संकटपूर्ण स्थिति से निपटने हेतु ‘आपात स्थितियों में प्रधानमंत्री नागरिक सहायता और राहत कोष (Prime Minister’s Citizen Assistance and Relief in Emergency Situations Fund)’ अर्थात् ‘पीएम-केयर्स फंड’ (PM-CARES Fund) की स्थापना की थी।
- इस फंड की घोषणा के बाद याचिकाकर्त्ता ने अपने RTI आवेदन में ‘पीएम-केयर्स फंड’ की ट्रस्ट डीड और इसके निर्माण तथा संचालन से संबंधित सभी सरकारी आदेशों, अधिसूचनाओं और परिपत्रों की प्रतियाँ मांगी थीं।
- ट्रस्ट डीड (Trust Deed) के तहत ट्रस्ट का व्यवस्थापक ट्रस्ट की संपत्ति को ट्रस्ट के संरक्षकों अर्थात ट्रस्टियों (Trustees) को हस्तांतरित करता है और ट्रस्टियों को ट्रस्ट डीड में निर्दिष्ट नियमों और शर्तों के अनुसार कार्य कार्य करना अनिवार्य बनाता है।
- ट्रस्ट डीड में मुख्यतः निम्नलिखित तथ्य शामिल होते हैं- (1) ट्रस्ट के गठन का उद्देश्य (2) फंड कहाँ से लिया जा सकता है और कहाँ से नहीं (3) ट्रस्टी की शक्तियाँ।
- इस संबंध में प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा दिये गए जवाब के अनुसार, ‘RTI अधिनियम, 2005 की धारा 2(h) के दायरे में ‘पीएम-केयर्स फंड’ एक ‘सार्वजनिक प्राधिकरण’ नहीं है। हालाँकि इस फंड से जुड़ी प्रासंगिक जानकारियाँ संबंधित वेबसाइट से प्राप्त की जा सकती हैं।
- उल्लेखनीय है कि इससे पूर्व भी कई अवसरों पर प्रधानमंत्री कार्यालय ने ‘पीएम-केयर्स फंड’ के संबंध में आवश्यक जानकारी उपलब्ध कराने से इनकार कर दिया था।
RTI अधिनियम, 2005 की धारा 2(h)
- ज्ञातव्य है कि सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 की धारा 2(h) के तहत सार्वजनिक प्राधिकरण से तात्पर्य ऐसी संस्थाओं से है:
- जो संविधान या इसके अधीन बनाई गए किसी अन्य विधान द्वारा निर्मित हो;
- राज्य विधानमंडल द्वारा या इसके अधीन बनाई गई किसी अन्य विधि द्वारा निर्मित हो;
- केंद्र या राज्य सरकार द्वारा जारी किसी अधिसूचना या आदेश द्वारा निर्मित हो;
- पूर्णत: या अल्पत: सरकारी सहायता प्राप्त हो।
RTI आवेदक का पक्ष
- आवेदक के अनुसार, यदि देश में पहले से ही प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष (Prime Minister’s National Relief Fund) है तो फिर एक अन्य फंड का गठन क्यों किया गया।
- आवेदक के मुताबिक इस फंड में ऐसे विभिन्न तथ्य हैं जो इसे एक ‘सार्वजनिक प्राधिकरण’ बनाते हैं, उदाहरण के लिये पीएम-केयर्स फंड एक सार्वजनिक धर्मार्थ ट्रस्ट (Public Charitable Trust) है और प्रधानमंत्री इसके पदेन अध्यक्ष हैं।
- साथ ही रक्षा मंत्री, गृह मंत्री और वित्त मंत्री इसमें पदेन ट्रस्टीयों के रूप में शामिल हैं, जो कि स्पष्ट तौर पर इसके सार्वजनिक प्राधिकरण होने का संकेत देता है।
- इस प्रकार ट्रस्ट की संरचना यह दर्शाने के लिये पर्याप्त है कि सरकार का ट्रस्ट पर अत्यधिक नियंत्रण है, जिससे यह एक सार्वजनिक प्राधिकरण बन जाता है।
- विदित हो कि इस फंड के संबंध में जारी आवश्यक दिशा-निर्देशों में भी यह काफी अस्पष्ट है कि पीएम-केयर्स फंड सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत आता है अथवा नहीं?
प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष
(Prime Minister’s National Relief Fund)
- पाकिस्तान से विस्थापित लोगों की मदद करने के लिये जनवरी, 1948 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की अपील पर जनता के अंशदान से प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष की स्थापना की गई थी।
- प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष की धनराशि का इस्तेमाल अब प्रमुखतया बाढ़, चक्रवात और भूकंप आदि जैसी प्राकृतिक आपदाओं में मारे गए लोगों के परिजनों तथा बड़ी दुर्घटनाओं एवं दंगों के पीड़ितों को तत्काल राहत पहुँचाने के लिये किया जाता है।
- प्रधान मंत्री राष्ट्रीय राहत कोष में किये गये अंशदान को आयकर अधिनियम, 1961 (Income Tax Act, 1961) के तहत कर योग्य आय से पूरी तरह छूट हेतु अधिसूचित किया जाता है।
स्रोत: द हिंदू
चैंपियंस पोर्टल
प्रीलिम्स के लिये:चैंपियंस पोर्टल मेन्स के लिये:‘सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों’ के विकास हेतु सरकार के प्रयास |
चर्चा में क्यों?
भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा 1 जून, 2020 को ‘सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों’ (Micro, Small & Medium Enterprises- MSME) की समस्याओं के समाधान में सहायता करने हेतु ‘चैंपियंस’ (CHAMPIONS) नामक एक पोर्टल को लॉन्च किया गया है।
प्रमुख बिंदु:
- ‘चैंपियंस’ (CHAMPIONS) का विस्तृत रूप ‘उत्पादन और राष्ट्रीय शक्ति बढ़ाने हेतु आधुनिक प्रक्रियाओं का निर्माण और उनका सामंजस्यपूर्ण अनुप्रयोग’ (Creation and Harmonious Application of Modern Processes for Increasing the Output and National Strength) है।
- यह ‘सूचना और संचार प्रौद्योगिकी’ (Information and Communications Technology - ICT) पर आधारित एक प्रबंधन सूचना प्रणाली है।
- इस प्रणाली को ‘राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र’ (National Informatics Centre- NIC) की सहायता से पूर्ण रूप से स्वदेशी तकनीकी द्वारा तैयार किया गया है।
- टेलीफोन, इंटरनेट और वीडियो कॉन्फ्रेंस जैसे ICT उपकरणों के अलावा इस प्रणाली को ‘कृत्रिम बुद्धिमत्ता’ (Artificial Intelligence- AI), ‘डेटा विश्लेषण’ (Data Analytics) और मशीन लर्निंग (Machine Learning) जैसी नवीन तकनीकों से भी जोड़ा गया है।
- साथ ही इसे केंद्र सरकार की केंद्रीकृत लोक शिकायत निवारण और निगरानी प्रणाली (Centralized Public Grievances Redress and Monitoring System- CPGRAMS) को भी जोड़ा गया है।
- इस प्रणाली के तहत ‘हब और स्पोक मॉडल’ (Hub & Spoke model) के आधार पर नियंत्रण कक्षों के एक तंत्र की स्थापना की गई है।
- इसके तहत किसी पहिये की धुरी की तरह इस प्रणाली का केंद्र (Hub) राजधानी दिल्ली में स्थित है।
- जबकि पहिये की तीलियों (Spokes) की तरह ही विभिन्न राज्यों में स्थित एमएसएमई मंत्रालय के अलग-अलग कार्यालयों और संस्थानों में इसके नियंत्रण कक्ष स्थापित किये गए हैं।
- वर्तमान में इस प्रणाली के तहत 66 राज्य स्तरीय नियंत्रण कक्षों की स्थापना की गई है।
उद्देश्य:
- इसका उद्देश्य वर्तमान की कठिन परिस्थितियों से उबरने में MSME क्षेत्र के उद्यमों की सहायता करना है।
- साथ ही इस पोर्टल का उद्देश्य MSMEs को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मज़बूत बनाने में सहयोग करना है।
MSME क्षेत्र की वर्तमान चुनौतियाँ:
- पिछले कुछ वर्षों में देश में सक्रिय MSME श्रेणी के उद्यमों की निगरानी करने, उनकी समस्याओं को समझने और इसके निवारण हेतु एक सक्रिय तंत्र का अभाव रहा है।
- MSME श्रेणी के अधिकांश उद्यमों का पंजीकरण भी नहीं किया गया है जिससे उनकी चुनौतियों की पहचान करना और उन्हें समय पर सहायता पहुँचाना बहुत ही कठिन होता है।
- अंतर्राष्ट्रीय वित्त निगम (International Finance Corporation- IFC) द्वारा वर्ष 2018 में जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, MSMEs को औपचारिक बैंकिंग प्रणाली से उनकी आवश्यकता का एक-तिहाई ऋण ही प्राप्त हो पाता है। जबकि बैंकों द्वारा यह ऋण बहुत ही आसानी से उपलब्ध कराया जा सकता है।
- औपचारिक बैंकिंग प्रणाली से न जुड़े होने के कारण अधिकांश MSMEs को केंद्र सरकार की योजनाओं का लाभ नहीं मिल पता है।
लाभ:
- केंद्र सरकार के अनुसार, यह प्रणाली MSMEs की आर्थिक, श्रमिक, कच्चे माल और नियमकीय अनुमतियों से जुड़ी समस्याओं को दूर करने में सहायक होगी।
- यह पोर्टल MSMEs को उनकी क्षमता की पहचान करने तथा उन्हें प्रोत्साहित करने में सहायता करेगा।
- यह पोर्टल MSMEs को बाज़ार में उपलब्ध नए अवसरों की पहचान करने, उसके उत्पादन और राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में उसकी आपूर्ति करने में सहयोग करेगा। जैसे वर्तमान में चिकित्सीय उपकरणों एवं व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण की मांग आदि।
निष्कर्ष:
हाल के वर्षों में MSME क्षेत्र के उद्यमों से जुड़ी समस्याओं के निवारण हेतु किसी विशेष सहयोग के अभाव में इन उद्यमों की चुनौतियों में लगातार वृद्धि हुई है। पिछले दो महीनों से देश में लागू लॉकडाउन से MSMEs को गंभीर आर्थिक क्षति हुई है। चैंपियंस पोर्टल के माध्यम से देश के विभिन्न हिस्सों में स्थित MSMEs को एक प्रणाली से जोड़कर निवेश से लेकर बाज़ार में उत्पादों की पहुँच से जुड़ी समस्याओं का समाधान संभव हो सकेगा। साथ ही इस प्रणाली के माध्यम से हाल ही में सरकार द्वारा आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत जारी विभिन्न योजनाओं को सफलतापूर्वक लागू करा कर, MSMEs को वर्तमान संकट से उबरने में सहायता प्राप्त होगी।
स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस
लेज़र लेखन प्रक्रिया
प्रीलिम्स के लिये:रमन प्रभाव, नैनो प्रौद्योगिकी के बारे में सामान्य जानकारी मेन्स के लिये:नैनो प्रौद्योगिकी द्वारा निर्मित नियंत्रित नैनो संरचना का महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, ‘विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग’ (Department of Science and Technology- DST) के अधीन स्थित स्वायत्त संस्थान ‘इंस्टीट्यूट ऑफ नैनो साइंस एंड टेक्नोलॉजी’ (Institute of Nano Science and Technology-INST), मोहाली के शोधकर्त्ताओं द्वारा ‘ए रैपिड वन-स्टेप लो पावर लेज़र राइटिंग प्रोसिस’(A Rapid One-Step Low Power Laser Writing Process) के माध्यम से, 2D सामग्री पर उचित ज्यामिति एवं स्थान के साथ नियंत्रित नैनो संरचना को विकसित करने का एक नया तरीका विकसित किया गया है।
प्रमुख बिंदु:
- INST के शोधकर्त्ताओं द्वारा एक हाइब्रिड ‘सर्फेस-एन्हांस्ड रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी’ (Surface-Enhanced Raman Spectroscopy- SERS) प्लेटफॉर्म विकसित किया गया, जिस पर मोलिब्डेनम डाइ सल्फ़ाइड (Molybdenum disulfide-MoS2) नैनोसंरचना को सोने के नैनोप्रार्टिकल्स (Gold NanoParticles- AuNPs) से सजाया गया।
- SERS आमतौर पर इस्तेमाल की जाने वाली एक सेंसिंग तकनीक है, जिसमें अणुओं द्वारा बिखरे हुए इनलेस्टिक लाइट (Aelastic Light) की तीव्रता को तब बढ़ाया जाता है, जब तक अणुओं को सिल्वर या गोल्ड नैनोपार्टिकल्स (NPs) जैसी नालीदार धातु की सतहों पर अवशोषित किया जाता है।
- यह अणुओं में रमन प्रकीर्णन प्रकाश (Raman Scattering Light) की तीव्रता को तेज़ करता है, जिससे अणुओं का प्रभावी विश्लेषण होता है।
- प्रत्यक्ष लेज़र लेखन (माइक्रोस्कोपिक वर्ड के लिये 3 डी प्रिंटिंग) का उपयोग मोलिब्डेनम डाइ सल्फाइड की सतह पर कृत्रिम किनारों को बनाने में किया गया जिन्होंने सटीकता और नियंत्रण के साथ स्थानीयकृत हॉटस्पॉट (Localized Hotspots) का निर्माण किया।
- इस प्रक्रिया में एक पारंपरिक रमन स्पेक्ट्रोमीटर की कम तीव्रता वाली केंद्रित लेज़र बीम का उपयोग किया गया जो कृत्रिम किनारों के निर्माण के साथ-साथ गोल्ड नैनोपार्टिकल्स के बेहतर चित्रण में भी सक्षम है।
- इस नैनो संरचना को 2 डी मोलिब्डेनम डाइ सल्फाइड की शीट पर बनाया गया।
- हाइब्रिड सर्फेस-एन्हांस्ड रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी प्लेटफॉर्म, (Analytes) (ऐसा पदार्थ जिसके रासायनिक घटकों को पहचाना और मापा जा रहा है) को अतिसंवदेनशील और पुनरुत्पादनीय रूप में प्रस्तुत करने के लिये नियंत्रित स्थानीयकृत हॉटस्पॉट प्रदान करता है।
शोध का महत्त्व:
- SERS डिटेक्शन अपनी उच्च संवेदनशीलता और फिंगरप्रिंटिंग पहचान क्षमताओं के कारण विभिन्न प्रकार के एनालिटिक्स का पता लगाने के लिये एक शक्तिशाली उपकरण के रूप में उभर रहा है।
- प्रौद्योगिकी का उपयोग विभिन्न बायोमार्करों के स्पेक्ट्रोस्कोपिक का पता लगाने के लिये एक एंटीबॉडी के साथ संयोजन में किया जा सकता है (एक उद्देश्य माप जो किसी सेल या किसी जीव में एक पल में क्या हो रहा है, उसे पहचान लेता है)।
रमन प्रभाव:
- यह एक स्पेक्ट्रोस्कोपी अवधारणा है, जिसे 28 फरवरी 1928 में प्रख्यात भौतिक वैज्ञानिक सर चंद्रशेखर वेंकट रमन द्वारा खोजा गया।
- रमन प्रभाव अणुओं द्वारा फोटॉन का एक अव्यवस्थित प्रकीर्णन है जिसमे उच्च कंपन या घूर्णी ऊर्जा स्तर विद्यमान होते हैं जिसे रमन स्कैटरिंग प्रभाव भी कहा जाता है।
- दूसरे शब्दों में, यह प्रकाश की तरंग दैर्ध्य में एक प्रकार का परिवर्तन है जो तब होता है जब प्रकाश की किरणें अणुओं द्वारा विक्षेपित हो जाती है।
- रमन प्रभाव रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी के लिये एक आधार निर्मित करता है, जो सामग्री के बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिये दवाई विक्रेत्ताओं तथा भौतिकविदों द्वारा प्रयोग में लाया जाता है।
स्रोत: पीआईबी
सोशल स्टॉक एक्सचेंज
प्रीलिम्स के लियेसोशल स्टॉक एक्सचेंज मेन्स के लियेसमिति की प्रमुख सिफारिशें, सोशल स्टॉक एक्सचेंज की आवश्यकता |
चर्चा में क्यों?
भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (Securities and Exchange Board of India-SEBI) द्वारा गठित कार्यकारी समूह ने गैर-लाभकारी संगठनों (Non-Profit Organisations) को बॉण्ड जारी करके सीधे सोशल स्टॉक एक्सचेंज (Social Stock Exchanges-SSE) पर सीधे सूचीबद्ध होने की अनुमति देने की सिफारिश की है।
प्रमुख बिंदु
- उल्लेखनीय है कि वित्तीय वर्ष 2019-20 के बजट भाषण के दौरान वित्त मंत्री ने सामाजिक उद्यम और स्वैच्छिक संगठनों (Voluntary Organisations) को सूचीबद्ध करने के लिये SEBI के विनियामक दायरे के तहत एक सोशल स्टॉक एक्सचेंज (SSE) गठित करने की दिशा में कदम उठाने का प्रस्ताव दिया था।
- वित्त मंत्री के निर्देशानुसार, SEBI सितंबर, 2019 में इशरात हुसैन की अध्यक्षता में सोशल स्टॉक एक्सचेंज (Social Stock Exchanges-SSE) पर एक कार्यकारी समूह का गठन किया था, जिसमें सामाजिक कल्याण (Social Welfare) की दिशा में सक्रिय हितधारक तथा वित्त मंत्रालय, स्टॉक एक्सचेंज और गैर-सरकारी संगठनों के प्रतिनिधि शामिल थे।
- इस कार्यकारी समूह ने देश में सोशल स्टॉक एक्सचेंज (SSE) के निर्माण के लिये निम्नलिखित सिफारिशें की हैं-
- गैर-लाभकारी संगठन सीधे बॉण्ड जारी करने के माध्यम से SSE पर सूचीबद्ध हो सकते हैं।
- वैकल्पिक निवेश कोष (Alternative Investment Funds) के तहत कुछ मौजूदा तंत्रों जैसे कि सामाजिक उद्यम निधि (Social Venture Funds-SVFs) समेत विभिन्न फंडिंग तंत्रों की सिफारिश की गई है।
- उन संगठनों के लिये एक नया न्यूनतम रिपोर्टिंग मानक प्रस्तावित किया गया है जो SSE के तहत धन एकत्रित करेंगे।
- इसके अतिरिक्त कार्यकारी समूह ने सोशल स्टॉक एक्सचेंज (SSE) पर भागीदारी को प्रोत्साहन देने के लिये कुछ कर प्रोत्साहन देने की भी सिफारिश की है।
- कार्यकारी समूह ने प्रतिभूति लेन-देन कर (Securities Transaction Tax-STT) और पूंजीगत लाभ कर (Capital Gains Tax-CGT) को समाप्त करने की सिफारिश की है।
- साथ ही परोपकारी दानकर्त्ताओं (Philanthropic Donors) को 100 प्रतिशत कर छूट देने की भी सिफारिश की गई है।
- कार्यकारी समूह के अनुसार, लाभ कमाने वाले सामाजिक संगठन भी सोशल स्टॉक एक्सचेंज (SSE) पर सूचीबद्ध हो सकेंगे, किंतु उन्हें कुछ अधिक रिपोर्टिंग मानकों का पालन करना होगा।
सोशल स्टॉक एक्सचेंज (SSE) की अवधारणा
- सोशल स्टॉक एक्सचेंज (SSE) एक ऐसा प्लेटफॉर्म है जो निवेशकों को सामाजिक उद्यमों में शेयर खरीदने की अनुमति देता है।
- केंद्रीय बजट-2019 में भारत में अपनी तरह के पहले सोशल स्टॉक एक्सचेंज (SSE) की स्थापना का प्रस्ताव रखा गया था।
- इस संबंध में घोषणा करते हुए वित्तीय मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा था कि ‘यह समय पूंजी बाज़ार को आम जनता के और अधिक करीब ले जाने और समावेशी विकास तथा वित्तीय समावेशन से संबंधित विभिन्न सामाजिक कल्याण उद्देश्यों को पूरा करने का समय है।
- अपने गठन के बाद सोशल स्टॉक एक्सचेंज (SSE) एक सामान्य मंच के रूप में कार्य करेगा जहाँ सामाजिक उद्यम आम जनता और निवेशकों से धन जुटा सकते हैं।
- यह देश के प्रमुख स्टॉक एक्सचेंज जैसे बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (BSE) और नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE) आदि की तर्ज पर ही कार्य करेगा, हालाँकि सोशल स्टॉक एक्सचेंज (SSE) का उद्देश्य लाभ कमाना न होकर सामाजिक कल्याण करना होगा।
सोशल स्टॉक एक्सचेंज (SSE) की आवश्यकता
- संयुक्त राष्ट्र जैसे विभिन्न वैश्विक निकायों द्वारा निर्धारित मानव विकास लक्ष्यों को पूरा करने के लिये आगामी वर्षों में भारत को बड़े पैमाने पर निवेश की आवश्यकता होगी और यह केवल सरकारी व्यय अथवा निवेश के माध्यम से नहीं किया जा सकता है।
- सामाजिक क्षेत्र में कार्य करने वाले निजी उद्यमों को भी अपनी गतिविधियों को आगे बढ़ाने की आवश्यकता है।
- वर्तमान में, भारत में सामाजिक उद्यम बहुत सक्रिय हैं, हालाँकि उन्हें धन जुटाने में काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जिसमें सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है आम निवेशकों में विश्वास की कमी।
- इस विषय पर प्रस्तुत एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में एक संपन्न सामाजिक उद्यम पारिस्थितिकी तंत्र है, हालाँकि देश में कई संगठनों को अपनी ज़रूरत की पूंजी प्राप्त करने के लिये संघर्ष का सामना करना पड़ता है।
- सोशल स्टॉक एक्सचेंज (SSE) एक ऐसा मंच प्रदान करने का प्रयास करेगा जहाँ निवेशक स्टॉक एक्सचेंज द्वारा अधिकृत सामाजिक उद्यमों में निवेश कर सकेंगे, जिससे निवेशकों में विश्वास पैदा होगा।
- ऐसे सामाजिक उद्यमों को अपनी गतिविधियों और निवेशों का विवरण पारदर्शी तरीके से आम जनता के साथ साझा करना होगा।
आगे की राह
- आँकड़ों के अनुसार, भारत में दो मिलियन से भी अधिक सामाजिक उद्यम हैं। इसलिये सामाजिक उद्यमों हेतु सोशल स्टॉक एक्सचेंज (SSE) का निर्माण करते समय काफी सावधानीपूर्वक योजना के निर्माण की आवश्यकता है।
- इस संबंध में विश्व के अन्य देशों द्वारा प्रयोग किये जा रहे मॉडल का भी अध्ययन किया जा सकता है और उसे भारतीय परिस्थितियों के अनुरूप परिवर्तित किया जा सकता है।
स्रोत: द हिंदू
मूडीज़ ने भारतीय अर्थव्यवस्था की रेटिंग घटाई
प्रीलिम्स के लिये:सकल घरेलू उत्पाद, क्रेडिट रेटिंग एजेंसी मेन्स के लिये:मूडीज़ द्वारा रेटिंग घटाने से भारत पर प्रभाव |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में क्रेडिट रेटिंग एजेंसी (Credit Rating Agency) मूडीज़ ने भारत की सावरेन क्रेडिट रेटिंग को ‘Baa2’ से घटाकर ‘Baa3’ कर दिया है, साथ ही चालू वित्तीय वर्ष 2020-21 में देश की सकल घरेलू उत्पाद (Gross Domestic Product-GDP) दर में गिरावट का भी अनुमान लगाया है।
प्रमुख बिंदु:
- उल्लेखनीय है कि मूडीज़ ने भारत के लिये विदेशी मुद्रा (Foreign-Currency) और स्थानीय मुद्रा दीर्घकालिक जारीकर्त्ता (Local-Currency Long-Term Issuer Rating) रेटिंग को Baa2 से घटाकर Baa3 करने के साथ ही भारतीय अर्थव्यवस्था हेतु ‘निगेटिव आउटलुक’ (Negative Outlook) दृष्टिकोण बनाए रखा है।
- किसी भी देश के ‘नेगेटिव आउटलुक’ से यह पता चलता है कि उस देश की अर्थव्यवस्था और वित्तीय प्रणाली बुरे दौर से गुजर रही है और आने वाले समय में राजकोषीय स्थिति पर दबाव बढ़ सकता है।
- मूडीज़ की रेटिंग प्रणाली में Baa3 निवेश ग्रेड में सबसे खराब स्तर की श्रेणी है।
- मूडीज़ ने नवंबर 2017 में भारत की रेटिंग को Baa3 से अद्यतन कर Baa2 किया था किंतु तीन वर्ष बाद वर्तमान में भारतीय अर्थव्यवस्था की स्थिति को देखते हुए इसे घटा दिया है।
- मूडीज़ के अनुसार, भारतीय अर्थव्यवस्था में बढ़ते जोखिमों और आर्थिक विकास दर पहले की तुलना में कम रहने के कारण ऐसा किया गया है।
- मूडीज़ ने मेक्सिको के लिये ‘निगेटिव आउटलुक’ दृष्टिकोण बनाए रखा है, जबकि सऊदी अरब को ‘स्थिर से निगेटिव आउटलुक’ में परिवर्तित कर दिया है। सऊदी अरब के मामले में वैश्विक तेल की मांग और कीमतों को देखते हुए ऐसा किया गया है।
मूडीज़ का अनुमान:
- देशभर में COVID-19 के प्रसार को रोकने हेतु लागू लॉकडाउन से वित्तीय वर्ष 2020-21 में देश की सकल घरेलू उत्पाद दर में 4% की गिरावट का अनुमान है।
- ध्यातव्य है कि वित्तीय वर्ष 2019-20 में भारत की सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि दर 11 वर्ष के निचले स्तर पर थी, जबकि राजकोषीय घाटा, सकल घरेलू उत्पाद के अनुमानित 3.8% से बढ़कर 4.6% हो गया था।
- मूडीज़ के अनुसार, COVID-19 से पहले एवं हाल ही में जारी आर्थिक पैकेज आगामी दिनों में वास्तविक जीडीपी वृद्धि दर को 8% करने में सहायक साबित नहीं हो सकते हैं।
- बैंकिंग और गैर-बैंक वित्तीय संस्थान उपभोग तथा निवेशकर्त्ताओं के लिये ऋण की आपूर्ति के माध्यम से संचालित होते हैं या उनका विकास होता है। लेकिन वर्तमान दौर की हालत को देखते हुए इनकी समस्या का समाधान शीघ्रता से होने की उम्मीद नहीं है।
- भारत की कम आय वाली आबादी सरकार के कर राजस्व आधार को सीमित कर देगी। साथ ही धीमा आर्थिक विकास सरकार के ऊपर ऋण के बोझ को कम करने की क्षमता को कम कर देगा। महामारी के कारण चालू वित्तीय वर्ष में सरकार के ऊपर कर्ज़ का बोझ सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 74% से बढ़कर 84% हो जाएगा।
गिरावट के कारण:
- देशभर में लॉकडाउन से आर्थिक गतिविधियाँ बुरी तरह से प्रभावित हुई हैं।
- शिक्षा, यात्रा और पर्यटन क्षेत्र को प्रतिबंधित करना भी अर्थव्यवस्था की गिरावट के प्रमुख कारणों में से एक हैं।
- निज़ी क्षेत्रों में निरंतर निवेश की कमी।
- नौकरियों का सृजन न हो पाना।
निष्कर्ष:
- भारत के सामने गंभीर आर्थिक सुस्ती का खतरा है जिसके कारण राजकोषीय लक्ष्य पर दबाव बढ़ रहा है। नीति निर्माताओं के समक्ष आने वाले समय में निम्न आर्थिक वृद्धि, बिगड़ती वित्तीय स्थिति और वित्तीय क्षेत्र के जोखिम को कम करना चुनौतीपूर्ण होगा। लंबी अवधि तक वृद्धि दर में कमी से लोगों का जीवन स्तर (Living Standard) भी प्रभावित होगा।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
खरीफ फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य में वृद्धि
प्रीलिम्स क लिये:अधिदिष्ट फसलें मेन्स के लिये:न्यूनतम समर्थन मूल्य |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में 'आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति' (Cabinet Committee on Economic Affair- CCEA) द्वारा विपणन वर्ष 2020-21 के लिये खरीफ फसलों के 'न्यूनतम समर्थन मूल्य' (Minimum Support Prices- MSPs) में वृद्धि को मंज़ूरी प्रदान की गई।
प्रमुख बिंदु:
- बजट 2018-19 में MSP को बढ़ाकर भारित औसत उत्पादन लागत (Cost of Production- CoP) का कम-से-कम 1.5 गुना निर्धारित करने की घोषणा की गई थी।
- CCEA द्वारा कृषि तथा संबद्ध गतिविधियों के 3 लाख रुपए तक के मानक अल्पकालिक ऋणों (Standard Short-Term) के पुनर्भुगतान की तारीख को 31 अगस्त, 2020 तक बढ़ा दिया गया है।
न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP):
- ‘न्यूनतम समर्थन मूल्य’ कृषि मूल्य में किसी भी प्रकार की तीव्र गिरावट के खिलाफ कृषि उत्पादकों को सुरक्षा प्रदान करने हेतु भारत सरकार द्वारा अपनाई जाने वाली बाज़ार हस्तक्षेप की एक प्रणाली है।
- ‘कृषि लागत और मूल्य आयोग’ की सिफारिशों के आधार पर कुछ फसलों की बुवाई के मौसम की शुरुआत में भारत सरकार द्वारा न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा की जाती है।
अधिदिष्ट फसल (Mandated Crops):
- सरकार 22 अधिदिष्ट फसलों (Mandated Crops) के लिये ‘न्यूनतम समर्थन मूल्य’ तथा गन्ने के लिये 'उचित और लाभकारी मूल्य' की घोषणा करती है। अधिदिष्ट फसलों में 14 खरीफ की फसल, 6 रबी फसल और दो अन्य वाणिज्यिक फसल शामिल हैं। सरकार इस सूची में समय-समय पर वृद्धि करती है।
अधिदिष्ट फसलों के MSP में वृद्धि:
- धान की फसल के लिये MSP को 1,815 रुपए प्रति क्विंटल से बढ़ाकर 1,868 रुपए कर दिया गया है।
- कपास की मध्यम रेशे वाली फसल के लिये MSP को 5,255 रुपए प्रति क्विंटल से बढ़ाकर 5,515 कर दिया गया है।
- जबकि कपास की लंबे रेशे वाली फसल के लिये MSP को 5,550 रुपए प्रति क्विंटल से बढ़ाकर 5,825 कर दिया गया है।
- MSP में अधिकतम वृद्धि नाइजरसीड (काला तिल) (755 रुपए प्रति क्विंटल), तिल (370 रुपए प्रति क्विंटल) तथा उड़द (300 रुपए प्रति क्विंटल) में की गई।
- उच्चतम प्रतिशत वृद्धि बाजरा (83%), उड़द (64%), तूर (58%) मक्का (53%) आदि में की गई है।
कुछ फसलों का MSP:
क्र.सं |
फसल |
संभावित लागत |
MSP |
MSP में वृद्धि |
लागत पर प्रतिफल (%) |
1. |
धान |
1,245 |
1,868 |
53 |
50 |
2. |
बाजरा |
1,175 |
2,150 |
150 |
83 |
3. |
मक्का |
1,213 |
1,850 |
90 |
53 |
4. |
उड़द |
3,660 |
6,000 |
300 |
64 |
5. |
तिल |
4,570 |
6,855 |
370 |
50 |
MSP निर्धारण का महत्त्व:
- देश में कृषि-जलवायु परिस्थितियों के अनुरूप फसल प्रतिरूप पद्धतियों को अपनाने के लिये किसानों को प्रोत्साहित करना।
- जैव विविधता का संरक्षण करते हुए सतत् कृषि प्रणालियों को अपनाना।
- कृषि उत्पादन को बढ़ावा देना।
- किसानों की आय सुरक्षा की दिशा में नीतियों को अपनाना।
- 'उत्पादन-केंद्रित दृष्टिकोण' (Production-Centric Approach) के स्थान पर 'आय-केंद्रित दृष्टिकोण' (Income-Focused Approach) को अपनाना।
- तिलहन, दलहन, मोटे अनाज जैसी फसलों के उत्पादन को बढ़ावा देकर मांग-आपूर्ति के मध्य असंतुलन में सुधार करना।
- क्षेत्र की भूजल स्थिति को ध्यान में रखकर विशिष्ट फसलों के उत्पादन को बढ़ावा देना।
- पोषण सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिये विशिष्ट फसलों जैसे मोटे अनाज की कृषि को बढ़ावा देना।
MSP वृद्धि का अर्थव्यवस्था पर प्रभाव:
- MSP में वृद्धि के परिणामस्वरूप ‘उपभोक्ता मूल्य सूचकांक’ में वृद्धि होने की उम्मीद है। इससे लोगों को महँगाई का सामना करना पड़ सकता है।
- MSP में वृद्धि का देश की राजकोषीय स्थिति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है, क्योंकि COVID-19 महामारी के कारण देश की अर्थव्यवस्था पहले ही खराब स्थिति में है।
किसानों की आय सुरक्षा की दिशा में अन्य पहल:
- ‘प्रधानमंत्री अन्नदाता आय संरक्षण अभियान’ (Pradhan Mantri Annadata Aay SanraksHan Abhiyan- PM-AASHA) योजना का उद्देश्य किसानों को उनकी उपज के लिये उचित मूल्य दिलाना है, जिसकी घोषणा वर्ष 2018 के केंद्रीय बजट में की गई है। यह योजना किसानों को उनकी उपज का उचित प्रतिफल प्रदान करने में मदद करेगी।
- ‘प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि’ (PM-KISAN) योजना की शुरुआत लघु एवं सीमांत किसानों को आर्थिक सहायता प्रदान करने के उद्देश्य से की गई थी। COVID- 19 महामारी के तहत लगाए गए लॉकडॉउन अवधि के दौरान 'प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि' योजना के तहत लगभग 8.89 करोड़ किसान परिवारों को मई 2020 तक 17,793 करोड़ रुपए की आर्थिक सहायता प्रदान की जा चुकी है।
- ‘प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना’ के तहत पात्र परिवारों को लगभग 1,07,077.85 मीट्रिक टन दाल की आपूर्ति की गई है।
निष्कर्ष:
- न्यूनतम समर्थन मूल्य में वृद्धि से कृषि उत्पादन में वृद्धि होगी। पोषक अनाजों का न्यूनतम मूल्य वृद्धि से पोषण सुरक्षा और किसानों की आय में सुधार होगा। किसानों की आय बढ़ाने में फसलों की विविधता, पशुधन और बागवानी क्षेत्र सर्वाधिक लाभप्रद साबित हो सकते हैं।
स्रोत: पीआईबी
Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 02 जून, 2020
हिंदी पत्रकारिता दिवस
देश भर में प्रत्येक वर्ष 30 मई को हिंदी पत्रकारिता दिवस (Hindi Journalism Day) मनाया जाता है। उल्लेखनीय है कि आज ही के दिन 1826 ई. में पंडित युगल किशोर शुक्ल ने हिंदी के प्रथम समाचार पत्र ‘उदंत मार्तण्ड' के प्रकाशन का शुभारंभ किया था। ‘उदंत मार्तण्ड’ का शाब्दिक अर्थ है ‘समाचार-सूर्य‘। ‘उदंत मार्तण्ड' का प्रकाशन प्रत्येक सप्ताह मंगलवार को किया जाता था। पुस्तकाकार में छपने वाले ‘उदंत मार्तण्ड' के केवल 79 अंक ही प्रकाशित हो सके और दिसंबर, 1827 में वित्तीय संसाधनों के अभाव में इसका प्रकाशन बंद हो गया। इस समाचार पत्र में ब्रज और खड़ी बोली दोनों भाषाओं के मिश्रित रूप का प्रयोग किया जाता था जिसे इस पत्र के संचालक ‘मध्यदेशीय भाषा’ कहते थे। कानपुर के रहने वाले पंडित युगल किशोर शुक्ल पेशे से एक वकील थे और औपनिवेशिक ब्रिटिश भारत में कलकत्ता में वकील के तौर पर कार्य कर रहे थे। इतिहासकार पंडित युगल किशोर शुक्ल को भारतीय पत्रकारिता का जनक मानते हैं। वहीं बंगाल से हिंदी पत्रकारिता की शुरुआत का श्रेय राजा राममोहन राय को दिया जाता है। हिंदी पत्रकारिता ने इतिहास में एक लंबा सफर तय किया है। 1826 ई. में पंडित युगल किशोर शुक्ल ने जब पत्रकारिता की शुरुआत की थी, तब यह कल्पना करना मुश्किल था कि भारत में पत्रकारिता भविष्य में इतना लंबा सफर तय करेगी।
तेलंगाना स्थापना दिवस
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘राज्य स्थापना दिवस’ पर तेलंगाना के लोगों को बधाई दी है। उल्लेखनीय है कि तेलंगाना का गठन आज के ही दिन वर्ष 2014 में किया गया था। तेलंगाना की राजधानी हैदराबाद है और इस राज्य का कुल क्षेत्रफल 112,077 वर्ग किलोमीटर है। तेलंगाना में कुल 33 ज़िले हैं और इसकी जनसंख्या लगभग 350 लाख है। तेलंगाना का गठन एक भौगोलिक और राजनीतिक इकाई के रूप में 2 जून, 2014 को भारत के 29वें और सबसे युवा राज्य के रूप में किया गया था। हालाँकि एक आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक इकाई के रूप में इसका 2500 या उससे अधिक वर्षों का शानदार इतिहास है। तेलंगाना के कई ज़िलों में पाए जाने वाले साक्ष्यों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि तकरीबन हज़ारों वर्ष पूर्व यहाँ के इस हिस्से में मानव निवास करते थे। 1990 के दशक के मध्य से ही तेलंगाना के लोगों ने स्वयं को एक अलग राज्य मांग के साथ विभिन्न संगठनों के तहत संगठित करना शुरू कर दिया था। वर्ष 2008-09 के आस-पास यह आंदोलन और अधिक तेज़ हो गया। 4 वर्ष के विरोध के बाद सरकार ने जुलाई 2013 में राज्य निर्माण की प्रक्रिया शुरू कर दी और फरवरी 2014 में संसद के दोनों सदनों में राज्य निर्माण का विधेयक पारित करके इस प्रक्रिया का समापन किया गया। इसके पश्चात् 2 जून, 2014 को औपचारिक रूप से तेलंगाना का गठन हुआ।
आर. के. चतुर्वेदी
मध्य प्रदेश कैडर के 1987 बैच के भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) के अधिकारी आर. के. चतुर्वेदी को रसायन और उर्वरक मंत्रालय के तहत रसायन एवं पेट्रो रसायन विभाग (Department of Chemicals and Petrochemicals) के सचिव के रूप में नियुक्त किया गया है। सचिव के पद पर नियुक्त किये जाने से पूर्व आर. के. चतुर्वेदी संस्कृति मंत्रालय में अतिरिक्त सचिव एवं वित्तीय सलाहकार के रूप में सेवारत थे। वे केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष और राष्ट्रीय कौशल विकास प्राधिकरण में महानिदेशक के रूप में भी कार्य कर चुके हैं। आर. के. चतुर्वेदी ने पी. राघवेंद्र राव का स्थान लिया है, जो 31 मई, 2020 को सेवानिवृत्त हुए हैं। देश में रसायन एवं पेट्रोरसायन क्षेत्रों की वृद्धि तथा विकास के लिये नीतियों और कार्यक्रमों को तैयार एवं कार्यान्वित करना इस विभाग का प्रमुख लक्ष्य है। इसके अतिरिक्त यह उद्योग के उपर्युक्त क्षेत्रों के समग्र विकास के लिये सार्वजनिक-निजी साझेदारी की भावना को भी बढ़ावा देता है।
रियल टाइम इलेक्ट्रिसिटी मार्केट
हाल ही में इंडियन एनर्जी एक्सचेंज (Indian Energy Exchange) ने रियल टाइम इलेक्ट्रिसिटी मार्केट (Real-Time Electricity Market-RTM) लॉन्च किया। इसका मुख्य उद्देश्य डिस्कॉम को अपनी बिजली आवश्यकताओं की योजना बनाने में मदद करना है। इसका उद्देश्य बिजली वितरण कंपनियों (डिस्कॉम) को अपनी बिजली संबंधित आवश्यकताओं को बेहतर ढंग से पूरा करने में मदद करना है। यह मार्केट एक दिन में कुल 48 नीलामी सत्र (Auction Sessions) आयोजित करेगा और सत्र बंद होने के एक घंटे के भीतर बिजली वितरित की जाएगी। यह बेहतर तरीके से बिजली आपूर्ति की ज़रूरतों को पूरा करने में भी मदद करेगा। यह रियल टाइम इलेक्ट्रिसिटी मार्केट बिजली उत्पादक कंपनियों को भी अपनी गैर-आवश्यक क्षमता की बिजली को बेचने का अवसर प्रदान करेगा जिससे उनकी उत्पादन क्षमता का कुशल उपयोग हो सके। इंडियन एनर्जी एक्सचेंज (Indian Energy Exchange) एक इलेक्ट्रॉनिक प्रणाली है जिसे केंद्रीय विद्युत नियामक आयोग (CERC) द्वारा विनियमित किया जाता है। इसकी शुरुआत वर्ष 2008 में की गई थी।