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डेली न्यूज़

  • 01 Mar, 2023
  • 39 min read
जैव विविधता और पर्यावरण

स्वच्छ ऊर्जा संक्रमण में कर्नाटक शीर्ष पर

प्रिलिम्स के लिये:

स्वच्छ ऊर्जा संक्रमण में कर्नाटक राज्य शीर्ष पर, स्वच्छ ऊर्जा संक्रमण, नवीकरणीय ऊर्जा, GDP।

मेन्स के लिये:

स्वच्छ ऊर्जा संक्रमण।

चर्चा में क्यों? 

इंस्टीट्यूट फॉर एनर्जी इकोनॉमिक्स एंड फाइनेंशियल एनालिसिस (IEEFA) और एम्बर की एक रिपोर्ट के अनुसार, स्वच्छ विद्युत संक्रमण के संदर्भ में भारत में कर्नाटक एवं गुजरात अग्रणी राज्य हैं।

  • IEEFA ऊर्जा बाज़ारों, प्रवृत्तियों और विनियमों से संबंधित विषयों का विश्लेषण करता है, जबकि एम्बर एक स्वतंत्र, गैर-लाभकारी समूह है जो जलवायु और ऊर्जा संबंधी चिंताओं पर केंद्रित है।

प्रमुख बिंदु 

  • मूल्यांकन की पद्धति: 
    • 'इंडियन स्टेट्स' एनर्जी ट्रांज़िशन' रिपोर्ट ने 16 राज्यों (भारत में विद्युत उत्पादन का 90% हिस्सा) के लिये एक स्कोरिंग प्रणाली तैयार की है, और उनके प्रदर्शन का मूल्यांकन चार व्यापक मापदंडों पर किया जाता है:
      • डीकार्बोनाइज़ेशन
      • विद्युत प्रणाली का प्रदर्शन
      • विद्युत पारिस्थितिकी तंत्र की तैयारियाँ
      • नीतियाँ और राजनीतिक प्रतिबद्धताएँ

Electricity-Transition

  • मूल्यांकन: 
    • विश्लेषण किये गए 16 राज्यों में से कर्नाटक एकमात्र ऐसा राज्य है जिसने स्वच्छ विद्युत संक्रमण के सभी चार आयामों में अच्छा स्कोर किया है।
      • साथ ही इन राज्यों ने स्मार्ट मीटर स्थापित करने के अपने लक्ष्य का 100% पूरा कर लिया है और फीडर लाइनों को अलग करने के अपने लक्ष्य से 16% अधिक कार्य किया।
    • गुजरात अपने विद्युत क्षेत्र को डीकार्बोनाइज़ करने के मामले में कर्नाटक से थोड़ा पीछे है। हरियाणा और पंजाब ने विद्युत संक्रमण के लिये आशाजनक तैयारी एवं कार्यान्वयन को दर्शाया है।
    • पश्चिम बंगाल, बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे राज्य इस क्षेत्र में काफी पीछे हैं।
      • पश्चिम बंगाल ने सभी मापदंडों में कम स्कोर प्राप्त किया तथा उत्पादकों को इसके बकाया भुगतान में मार्च 2018 से मार्च 2022 तक 500% की वृद्धि हुई है।  
    • राजस्थान और तमिलनाडु को अपनी विद्युत प्रणाली की तैयारी में सुधार करने की आवश्यकता है। 
  • सुझाव:
    • नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता और भंडारण को बढ़ावा देने के अलावा यह सुझाव दिया गया है कि राज्य स्वच्छ विद्युत संक्रमण की दिशा में एक बहु-आयामी दृष्टिकोण अपनाएँ, जिसमें मांग पक्ष के प्रयास शामिल हों।
    • वर्चुअल पावर परचेज़ एग्रीमेंट (VPPAs) तथा कॉन्ट्रैक्ट्स फॉर डिफरेंस (CfD) जैसे अभिनव द्विपक्षीय वित्तीय बाज़ार तंत्रों में बाज़ार को खोलने एवं खरीदारों तथा नियामकों को आंतरायिक नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन से निपटने हेतु आवश्यक आश्वासन प्रदान करने की बड़ी क्षमता है।  
    • प्रगति की प्रभावी ढंग से निगरानी करने तथा आवश्यक होने पर कार्यप्रणाली में सुधार के लिये इसने डेटा उपलब्धता एवं पारदर्शिता सुधार का आह्वान किया। 

भारत का स्वच्छ ऊर्जा लक्ष्य:

  • अपने अंतर्राष्ट्रीय दायित्त्वों के हिस्से के रूप में भारत गैर-जीवाश्म ईंधन स्रोतों से विद्युत उत्पादन का लगभग आधा हिस्सा प्राप्त करने तथा वर्ष 2030 तक अपने सकल घरेलू उत्पाद (GDP) की उत्सर्जन तीव्रता को 45% तक कम करने के लिये प्रतिबद्ध है।
  • इसे हासिल करना इस बात पर निर्भर करता है कि राज्य अपने बुनियादी ढाँचे में इस प्रकार परिवर्तन करें कि इसका उपयोग विद्युत आपूर्ति हेतु किया जा सके, ताकि सौर, पवन, जलविद्युत जैसे कई स्रोतों के साथ-साथ मौजूदा जीवाश्म ईंधन स्रोतों से प्राप्त उर्जा को कुशलतापूर्वक समायोजित किया जा सके। 
  • भारत के संशोधित राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC) ने देश में विद्युत क्षेत्र में लक्षित परिवर्तन हेतु सही निर्णय लिये हैं। 

Climate-Targets

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. अभीष्ट राष्ट्रीय निर्धारित अंशदान पद को कभी-कभी समाचारों में किस संदर्भ में देखा जाता है? (2016)

(a) युद्ध प्रभावित मध्य पूर्व के शरणार्थियों के पुनर्वास के लिये यूरोपीय देशों द्वारा दिये गए वचन 
(b) जलवायु परिवर्तन का सामना करने के लिये विश्व के देशों द्वारा बनाई गई कार्ययोजना 
(c) एशियाई अवसंरचना निवेश बैंक की स्थापना करने में सदस्य राष्ट्रों द्वारा लिया गया पूंजी योगदान
(d) धारणीय विकास लक्ष्यों के बारे में विश्व के देशों द्वारा बनाई गई कार्ययोजना 

उत्तर: (b) 

व्याख्या: 

  • ‘इच्छित राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान’, UNFCCC के तहत पेरिस समझौते पर हस्ताक्षर करने वाले सभी देशों में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कमी लाने के लिये व्यक्त की गई प्रतिबद्धता को बताता है।
  • CoP 21 में दुनिया भर के देशों ने सार्वजनिक रूप से उन कार्रवाइयों की रूपरेखा तैयार की, जिन्हें वे अंतर्राष्ट्रीय समझौते के अंतर्गत क्रियान्वयित करना चाहते थे। राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान पेरिस समझौते के दीर्घकालिक लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में अग्रसर है जो "वैश्विक औसत तापमान में वृद्धि को 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखने के लिये तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के प्रयासों को बढ़ावा देता है और इस शताब्दी के उत्तरार्द्ध में नेट ज़ीरो उत्सर्जन लक्ष्य को प्राप्त करने का प्रयास करता है।" 

अतः विकल्प (b) सही है।


प्रश्न. नवंबर 2021 में ग्लासगो में विश्व के नेताओं के शिखर सम्मेलन में CoP 26 संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में आरंभ की गई हरित ग्रिड पहल का प्रयोजन स्पष्ट कीजिये। अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) में यह विचार पहली बार कब दिया गया था? (मुख्य परीक्षा, 2021)

स्रोत: द हिंदू


शासन व्यवस्था

ग्लोबल इंटरनेट शट-ऑफ

प्रिलिम्स के लिये:

#KeepItOn गठबंधन, इंटरनेट शट-डाउन, (सार्वजनिक आपातकाल या सार्वजनिक सुरक्षा) नियम, 2017।

मेन्स के लिये:

इंटरनेट शट-डाउन और उनके निहितार्थ।

चर्चा में क्यों? 

एक्सेस नाउ एंड कीपइटऑन गठबंधन (Access Now and the KeepItOn Coalition) की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत ने वर्ष 2022 में 84 बार इंटरनेट शट-डाउन किया तथा लगातार पाँचवें वर्ष सूची में शीर्ष पर रहा। 

Internet-Shutdowns

रिपोर्ट के मुख्य बिंदु:

  • वैश्विक परिदृश्य:
    • वर्ष 2022 में 35 देशों में कम-से-कम 187 बार इंटरनेट शट-डाउन किया गया।  
    • इन 35 देशों में से 33 देशों में बार-बार शटडाउन की घटना दर्ज की गई। 
    • यूक्रेन वर्ष 2022 में 22 बार शट-डाउन करने के साथ दूसरे स्थान पर है, इसके बाद ईरान 18 तथा म्याँमार 7 इंटरनेट शटडाउन के साथ सूची में क्रमशः तीसरे और चौथे स्थान पर हैं। 
      • मार्च 2022 तक म्याँमार के कई क्षेत्रों में लोग 500 से अधिक दिनों तक अंधेरे में थे। 
    • वर्ष 2022 के अंत तक टिग्रे, इथियोपिया में लोगों ने 2 से अधिक वर्षों तक पूर्ण संचार ब्लैकआउट का सामना किया था तथा कई लोग संचार से डिस्कनेक्ट हो गए थे।
  • भारतीय परिदृश्य:
    • वर्ष 2022 में जम्मू-कश्मीर में 49 बार इंटरनेट शटडाउन किया गया, जो देश के किसी भी राज्य में सर्वाधिक है।
    • पश्चिम बंगाल के अधिकारियों द्वारा सात मौकों पर शटडाउन के आदेश के पश्चात् राजस्थान के अधिकारियों द्वारा 12 बार शट-डाउन का आदेश दिया गया।
  • डिजिटल अधिनायकवाद:
    • इंटरनेट शटडाउन डिजिटल अधिनायकवाद के गंभीर कार्यों में से एक है।
    • रिपोर्ट में कहा गया है कि अधिकारियों ने शट-डाउन का उपयोग अधिकारों के गंभीर  उल्लंघन और व्यक्तियों एवं समुदायों के मध्य खतरनाक संदेशों की पहुँच को बाधित करने के लिये किया, जिसने मानव अधिकारों की निगरानी को भी प्रभावित किया, जिसमें शट-डाउन ट्रैकिंग और मानवीय सहायता के प्रावधान शामिल हैं।
  • कारण: 
    • विरोध, संघर्ष, स्कूल परीक्षा और चुनाव सहित विभिन्न कारणों से शट-डाउन का आदेश दिया गया था। 

इंटरनेट शट-डाउन:

  • परिचय: 
    • इंटरनेट शट-डाउन ऑनलाइन संदेश को हटाने का एक माध्यम है, जो तीव्र गति से डिजिटल दुनिया में दिन-प्रतिदिन की कार्यप्रणाली को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करता है, यह  लोकतांत्रिक आंदोलनों को लेकर महत्त्वपूर्ण और परिणामी प्रभाव भी उत्पन्न करता है तथा  कभी-कभी हिंसा से सुरक्षा भी प्रदान करता है, जैसा कि अपराध के समय की  रिपोर्टिंग के लिये सुरक्षा हेतु संपर्क साधना कठिन हो जाता है।
  • प्रभाव: 
    • आर्थिक नुकसान: इंटरनेट शट-डाउन गंभीर आर्थिक नुकसान का कारण बन सकता है, विशेष रूप से उन व्यवसायों के लिये जो इंटरनेट पर पर निर्भर हैं।
    • सामाजिक व्यवधान: इंटरनेट महत्त्वपूर्ण संचार उपकरण है जो लोगों को एक-दूसरे से जुड़ने, जानकारी साझा करने और सामाजिक आंदोलनों में भाग लेने में सक्षम बनाता है।
    • राजनीतिक परिणाम: इंटरनेट शट-डाउन का उपयोग अक्सर सरकारों द्वारा असंतोष को दबाने, सूचना को नियंत्रित करने और राजनीतिक विरोध को सीमित करने हेतु किया जाता है।
    • शैक्षिक असफलताएँ: इंटरनेट शट-डाउन शैक्षिक गतिविधियों को भी बाधित कर सकता है, विशेष रूप से उन छात्रों हेतु जो सीखने के लिये ऑनलाइन संसाधनों पर निर्भर हैं।
    • स्वास्थ्य पर प्रभाव: कोविड-19 महामारी के दौरान स्वास्थ्य संबंधी जानकारी, टेलीमेडिसिन और ऑनलाइन सहायता समूहों तक पहुँचने हेतु इंटरनेट एक महत्त्वपूर्ण उपकरण बन गया है।

भारत में इंटरनेट शट-डाउन का नियमन 

  • इंटरनेट शट-डाउन आदेश भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम, 1885 के तहत दूरसंचार सेवाओं के अस्थायी निलंबन (सार्वजनिक आपातकालीन या सार्वजनिक सुरक्षा) नियम, 2017 के तहत शासित होते हैं।
    • वर्ष 2017 के नियम सार्वजनिक आपातकाल के आधार पर एक क्षेत्र में दूरसंचार सेवाओं को अस्थायी रूप से बंद करने का प्रावधान करते हैं और केंद्रीय एवं राज्य स्तर पर गृह मंत्रालय के वरिष्ठ नौकरशाहों को शट-डाउन का आदेश देने का अधिकार प्रदान करते हैं।
  • वर्ष 1885 का अधिनियम केंद्र सरकार को इंटरनेट सेवाओं सहित विभिन्न प्रकार की दूरसंचार सेवाओं को विनियमित करने और उनके लिये लाइसेंस प्रदान करने का अधिकार देता है।  

सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय और संशोधन:

  • अनुराधा भसीन बनाम भारत संघ (2020) मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि भारतीय कानून के तहत इंटरनेट बंद करने के आदेश के लिये आवश्यक और आनुपातिक आवश्यकताओं को पूरा किया जाना चाहिये तथा यह कि इंटरनेट सेवाओं का अनिश्चितकालीन निलंबन भारतीय कानून के खिलाफ होगा।
  • इसके बाद केंद्र सरकार द्वारा नवंबर 2020 में वर्ष 2017 के नियमों में कुछ संशोधन (इंटरनेट निलंबन आदेशों को अधिकतम 15 दिनों तक सीमित करना) किये गए।
  • हालाँकि दिसंबर 2021 में संचार और सूचना प्रौद्योगिकी पर स्थायी समिति इन संशोधनों से संतुष्ट नहीं थी और उसने 2017 के नियमों में और बदलावों की सिफारिश की।
    • इस समिति ने इंटरनेट शट-डाउन के सभी पहलुओं को कवर करने के लिये नियमों को संशोधित करने, साथ ही जनता के लिये न्यूनतम व्यवधान सुनिश्चित करने हेतु बदलती प्रौद्योगिकी के साथ सामंजस्य के लिये इंटरनेट शटडाउन करने से पहले राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों को लगातार दिशा-निर्देश जारी करने का सुझाव दिया।

आगे की राह

  • संयुक्त राष्ट्र जैसे अंतर्राष्ट्रीय संगठन, मानवाधिकारों की रक्षा और इंटरनेट की सुविधा सुनिश्चित करने के लिये उन सरकारों पर दबाव डाल सकते हैं जो यदा-कदा इंटरनेट को बंद कर देते हैं।
  • विभिन्न सरकारें ऐसे कानून और नियम पारित कर सकती हैं जो नागरिकों के इंटरनेट तक पहुँच संबंधी अधिकारों की रक्षा करते हैं और मनमाने शटडाउन को प्रतिबंधित करते हैं।
  • इंटरनेट बंद होने पर इंटरनेट की सुविधा तक पहुँच के वैकल्पिक साधन प्रदान करने के लिये मेश नेटवर्क और उपग्रह संचार जैसे तकनीकी समाधान का उपयोग किया जा सकता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


शासन व्यवस्था

गौ रक्षा एवं मॉब लिंचिंग

प्रिलिम्स के लिये:

वे राज्य जिन्होंने ने मॉब लिंचिंग के खिलाफ कानून पारित किये हैं, हरियाणा मॉब लिंचिंग, मॉब लिंचिंग के खिलाफ प्रावधान। 

मेन्स के लिये:

मॉब लिंचिंग के कारण और इसे दूर करने हेतु किये गए उपाय। 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में हरियाणा में गौ रक्षकों द्वारा गायों का अवैध परिवहन, तस्करी और वध के संदेह में दो लोगों की हत्या कर जलाए जाने की घटना मॉब लिंचिंग के मुद्दे को उजागर करती है।

मॉब लिंचिंग: 

  • मॉब लिंचिंग लोगों के एक बड़े समूह द्वारा लक्षित हिंसा को संदर्भित करती है जिसमें मानव शरीर या संपत्ति के खिलाफ अपराध शामिल हैं, फिर वह चाहे सार्वजनिक हो या निजी। 
  • भीड़ पूर्वग्रही धारणा से प्रेरित हो तथाकथित व्यक्ति को दंडित करती है, भले ही यह अवैध हो और इस तरह कानूनी नियमों और प्रक्रियाओं की अनदेखी करते हुए कानून को अपने हाथ में लेती है।

गौ रक्षा: गौ रक्षा के नाम पर लिंचिंग राष्ट्र के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने के लिये एक गंभीर खतरा है। सिर्फ गौमांस के संदेह में लोगों की हत्या गौ रक्षकों की असहिष्णुता को दर्शाती है। 

मॉब लिंचिंग का कारण:

  • पूर्वाग्रह: 
    • मॉब लिंचिंग एक घृणित अपराध है जो विभिन्न जातियों, वर्गों और धर्मों के बीच पक्षपात या पूर्वाग्रहों के कारण बढ़ रहा है।
  • गौ रक्षा को लेकर सतर्कता: 
    • हिंदू धर्म में गायों को पूजनीय मानने के साथ ही उनकी पूजा की जाती है। यह कभी-कभी गौ-रक्षा के प्रति सतर्कता को बढ़ावा देता है।
    • अल्पसंख्यकों के प्रति बहुसंख्यकों की यह धारणा है कि अल्पसंख्यक गाय के मांस का नियमित सेवन करते हैं।
  • त्वरित न्याय का अभाव: 
    • लोग क्यों कानून को अपने हाथ में लेते हैं और उन्हें परिणामों का डर नहीं होता, इसका प्राथमिक कारण यह है कि न्याय प्रदान करने वाले अधिकारी अक्षम हैं। 
  • पुलिस प्रशासन की अक्षमता: 
    • इसका कारण है अप्रभावी जाँच और कानूनी प्रक्रिया में विश्वास की कमी जो लोगों को कानून को अपने हाथ में लेने हेतु प्रोत्साहित करती है।

मॉब लिंचिंग से जुड़े मुद्दे: 

  • मॉब लिंचिंग मानव गरिमा का उल्लंघन है, यह संविधान का अनुच्छेद 21 और मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा का घोर उल्लंघन है।
  • इस प्रकार की घटना भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 का उल्लंघन है, जो समानता की गारंटी देते हैं और भेदभाव को प्रतिबंधित करते हैं।
  • हालाँकि इस प्रकार की घटना को लेकर देश के कानून में कोई भी प्रावधान नहीं है और इसलिये इसे केवल हत्या के रूप में चिह्नित किया गया है क्योंकि इसे अभी तक भारतीय दंड संहिता के तहत शामिल नहीं किया गया है। 

सरकार के कदम: 

  • निवारक उपाय:
    • जुलाई 2017 में सर्वोच्च न्यायालय ने तहसीन एस. पूनावाला बनाम भारत संघ मामले में लिंचिंग और भीड़ द्वारा की जाने वाली हिंसा से निपटने के लिये कई निवारक, उपचारात्मक और दंडात्मक उपाय निर्धारित किये थे।
      • इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने मॉब लिंचिंग को 'भीड़तंत्र का घृणित कार्य' बताया था।
  • विशेष फास्ट ट्रैक कोर्ट:
    • मॉब लिंचिंग से जुड़े मामलों से विशेष रूप से निपटने के लिये राज्यों को हर ज़िले में एक विशेष फास्ट ट्रैक कोर्ट स्थापित करने का निर्देश दिया गया था।
  • विशेष कार्य बल:
    • न्यायालय ने मॉब लिंचिंग की संभावनाओं को जन्म देने वाले नफरती भाषणों, भड़काऊ बयानों और फर्ज़ी खबरों को फैलाने वाले लोगों के विषय में खुफिया रिपोर्ट हासिल करने के उद्देश्य से एक विशेष कार्य बल के गठन पर भी विचार किया था।
  • पीड़ित के लिये मुआवज़ा योजनाएँ:
    • पीड़ितों को राहत और पुनर्वास के लिये पीड़ित मुआवज़ा योजनाएँ बनाने के भी निर्देश दिये गए।
    • जुलाई 2019 में सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र और कई राज्यों को नोटिस जारी कर उन्हें उपायों को लागू करने की दिशा में उठाए गए कदमों के बारे मे सूचित करने और अनुपालन रिपोर्ट जमा करने का आदेश दिया।
    • अब तक केवल तीन राज्यों मणिपुर, पश्चिम बंगाल और राजस्थान ने मॉब लिंचिंग के खिलाफ कानून निर्धारित किये हैं।
      • झारखंड विधानसभा द्वारा भीड़ हिंसा की रोकथाम एवं मॉब लिंचिंग बिल पारित किया गया, जिसे हाल ही में कुछ प्रावधानों पर पुनर्विचार के लिये राज्यपाल द्वारा वापस ले लिया गया है।

आगे की राह  

  • भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में मॉब लिंचिंग के लिये कोई स्थान नहीं है। लोकतांत्रिक होने के नाते स्वयं पर गर्व करने वाले देश के लिये यह ज़रूरी है कि भीड़ हिंसा को खत्म किया जाए। 
  • एक निराशाजनक स्थिति के रूप में भीड़ हिंसा के मामलों में पुलिस की निष्क्रियता और वैधानिक दंड के परे पुलिस द्वारा अतिरिक्त न्यायिक दंड की सार्वजनिक स्वीकृति का प्रायः उल्टा असर होता है। अतः इस समाजिक-न्यायिक दुष्चक्र को रोकने के लिये कानूनी प्रक्रिया के प्रति जनता का विश्वास प्राप्त करना अत्यंत आवश्यक है।
  • केंद्र और देश के अन्य सभी राज्यों को भी मणिपुर, पश्चिम बंगाल और राजस्थान जैसे राज्यों की तरह इन मामलों से निपटने हेतु व्यापक कानून लागू करने के लिये तत्पर रहना चाहिये। 
  • भ्रामक खबरों और अभद्र भाषा के प्रसार को रोकने के लिये भी उपाय किये जाने की आवश्यकता है। 

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 


भारतीय राजनीति

आत्म-अभिशंसन के खिलाफ अधिकार और संवैधानिक उपचार

प्रिलिम्स के लिये:

अनुच्छेद 32, अनुच्छेद 20, मौलिक अधिकार।

मेन्स के लिये:

आत्म-अभिशंसन, आत्म-अभिशंसन के खिलाफ अधिकार और संवैधानिक उपचार की गुंजाइश और सीमाएँ।

चर्चा में क्यों? 

सर्वोच्च न्यायालय ने आबकारी नीति के मामले में दिल्ली के उप मुख्यमंत्री द्वारा दायर जमानत याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया, क्योंकि उन्होंने CrPC की धारा 482 के तहत मामले को उच्च न्यायालय में ले जाने के पहले उपाय की बजाय संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत सीधे सर्वोच्च न्यायालय का रुख किया था।

  • सर्वोच्च न्यायालय ने तर्क दिया कि हालाँकि पिछले मामलों में याचिकाएँ सीधे अनुच्छेद 32 के तहत मनोरंजन की गई थीं, उन मामलों में मुक्त भाषण मुद्दे शामिल थे, जबकि यह मामला भ्रष्टाचार अधिनियम की रोकथाम के बारे में है।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि भले ही पहले याचिकाएँ सीधे अनुच्छेद 32 के तहत सुनी गई हों, उन मामलों का विषय स्वतंत्र अभिव्यक्ति से संबंधित था, जबकि इस मामले का संबंध भ्रष्टाचार रोकथाम अधिनियम से है।

पृष्ठभूमि: 

  • उप मुख्यमंत्री को केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (Central Bureau of Investigation- CBI) की हिरासत में इस आधार पर सौंपा गया क्योंकि वह CBI के प्रश्नों का उत्तर देने में विफल रहे थे।
  • इस प्रकार आत्म-अभिशंसन (Self Incrimination) के खिलाफ अधिकार के उल्लंघन के तर्क को न्यायालय ने खारिज़ कर दिया।

आत्म-अभिशंसन के खिलाफ व्यक्ति का अधिकार: 

  • संवैधानिक प्रावधान: 
    • अनुच्छेद-20 किसी भी अभियुक्त या दोषी करार दिये गए व्यक्ति, चाहे वह देश का नागरिक हो या विदेशी या कंपनी व परिषद का कानूनी व्यक्ति हो, को मनमाने और अतिरिक्त दंड से संरक्षण प्रदान करता है। इस संबंध में तीन प्रावधान हैं:  
    • इसमें कोई पूर्व-कार्योत्तर कानून नहीं, दोहरे दंड का निषेध, कोई आत्म-अभिशंसन नहीं से संबंधित प्रावधान हैं।
      •  कोई आत्म-अभिशंसन नहीं (No Self-incrimination): किसी अपराध के लिये अभियुक्त द्वारा किसी व्यक्ति को स्वयं के विरुद्ध साक्ष्य देने के लिये बाध्य नहीं किया जाएगा।  
        • आत्म-अभिशंसन के विरुद्ध सुरक्षा का मौखिक और लिखित साक्ष्य दोनों रूपों में प्रावधान है। 
        • यद्यपि इसमें निहित नहीं है
          • भौतिक वस्तुओं का अनिवार्य उत्पादन  
          • अँगूठे का निशान, हस्ताक्षर अथवा रक्त के नमूने देने की बाध्यता  
          • शारीरिक अंगों के प्रदर्शन की बाध्यता   
          • इसके अलावा यह केवल आपराधिक कार्यवाही तक ही सीमित है, न कि दीवानी कार्यवाही या गैर-आपराधिक प्रकृति की कार्यवाही तक। 

नोट:

  • कोई कार्योत्तर कानून नहीं (No ex-post-facto law): यह निम्नलिखित स्थितियों पर लागू नहीं होगा-  
    • अधिनियम के अधिकृत होने के समय लागू कानून के उल्लंघन के अलावा किसी भी व्यक्ति को किसी भी अपराध के लिए दोषी नहीं ठहराया जाएगा, न ही
    • कोई भी व्यक्ति अधिनियम के अधिकृत होने के समय लागू कानून द्वारा निर्धारित दंड से अधिक दंड के अधीन नहीं होगा।
      • हालाँकि यह सीमा केवल आपराधिक कानूनों पर लागू होती है, नागरिक कानून या कर कानूनों पर नहीं।
      • साथ ही इस प्रावधान का दावा निवारक निरोध या किसी व्यक्ति की सुरक्षा की मांग के मामले में नहीं किया जा सकता है।
  • दोहरे दंड का निषेध: किसी व्यक्ति को एक ही अपराध के लिये एक बार से अधिक अभियोजित और दंडित नहीं किया जाएगा ।
  • न्यायिक निर्णय:
    • वर्ष 2019 में रितेश सिन्हा बनाम उत्तर प्रदेश राज्य मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसले में आवाज के नमूनों को शामिल करने के लिये हस्तलेखन नमूनों के मापदंडों का विस्तार किया, जिसमें कहा गया कि यह आत्म-अभिशंसन के खिलाफ अधिकार का उल्लंघन नहीं करेगा।
    • इससे पहले सेल्वी बनाम कर्नाटक राज्य मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि आरोपी की सहमति के बिना नार्कोएनालिसिस टेस्ट देना आत्म-अभिशंसन के खिलाफ उसके अधिकार का उल्लंघन होगा।
    • हालाँकि अभियुक्त के DNA नमूना प्राप्त करने की अनुमति है। यदि कोई अभियुक्त नमूना देने से इनकार करता है, तो न्यायालय उसके खिलाफ साक्ष्य अधिनियम की धारा 114 के तहत प्रतिकूल निष्कर्ष निकाल सकता है।

अनुच्छेद 32 के तहत सर्वोच्च न्यायालय जाने का अधिकार:

  • अनुच्छेद 32 पीड़ित नागरिकों के मौलिक अधिकारों के प्रवर्तन के लिये सर्वोच्च न्यायालय से संपर्क करने का अधिकार प्रदान करता है। यह संविधान का एक मौलिक सिद्धांत है।
  • इस संबंध में सर्वोच्च न्यायालय का  मूल क्षेत्राधिकार है लेकिन अनन्य नहीं है। यह अनुच्छेद 226 के तहत उच्च न्यायालय के अधिकार क्षेत्र के साथ समवर्ती है।
  • मौलिक अधिकारों के अलावा जो अनुच्छेद 32 के तहत मान्यता प्राप्त नहीं हैं, अनुच्छेद 226 के तहत उच्च न्यायालय द्वारा शामिल किये गए हैं।
  • चूँकि अनुच्छेद 32 द्वारा गारंटीकृत अधिकार अपने आप में मौलिक अधिकार हैं, अतः वैकल्पिक उपाय की उपलब्धता अनुच्छेद 32 के तहत राहत हेतु बाधक नहीं है।
    • हालाँकि सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया है कि जहाँ अनुच्छेद 226 के तहत उच्च न्यायालय के माध्यम से राहत उपलब्ध है, तो पीड़ित पक्ष को पहले उच्च न्यायालय का रुख करना चाहिये।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत डेनमार्क सहयोग

प्रिलिम्स के लिये:

ग्रीन स्ट्रैटेजिक पार्टनरशिप, विश्व व्यापार संगठन, अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन, आर्कटिक काउंसिल।

मेन्स के लिये:

ग्रीन स्ट्रैटेजिक पार्टनरशिप, भारत-डेनमार्क संबंध।

चर्चा में क्यों?

केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री ने कहा कि भारत और डेनमार्क संयुक्त रूप से नई दिल्ली में 'इंडिया-डेनमार्क: पार्टनर्स फॉर ग्रीन एंड सस्टेनेबल प्रोग्रेस कॉन्फ्रेंस' के दौरान महत्त्वाकांक्षी जलवायु एवं सतत् ऊर्जा लक्ष्यों को प्राप्त करने की व्यवहार्यता प्रदर्शित कर सकते हैं।

Denmark

ग्रीन स्ट्रैटेजिक पार्टनरशिप: 

  • ग्रीन स्ट्रेटेजिक पार्टनरशिप एक पारस्परिक रूप से लाभकारी समझौता है जिसका उद्देश्य राजनीतिक सहयोग को आगे बढ़ाना, आर्थिक संबंधों और हरित विकास का विस्तार करना, रोज़गार सृजित करना एवं पेरिस समझौते तथा संयुक्त राष्ट्र सतत् विकास लक्ष्यों के महत्त्वाकांक्षी कार्यान्वयन पर ध्यान केंद्रित करने के साथ वैश्विक चुनौतियों व अवसरों को संबोधित करने में सहयोग को मज़बूत करना है।
  • विशिष्ट तकनीकों और विशेषज्ञता वाली डेनमार्क की कंपनियों ने प्रमुख रूप से  पराली जलाने की समस्या से निपटने सहित वायु प्रदूषण नियंत्रण लक्ष्यों को पूरा करने में भारत की मदद करने की पेशकश की है।
  • साझेदारी के तहत अन्य प्रमुख बिंदुओं में कोविड-19 महामारी से निपटना और जल दक्षता तथा जल संकट की स्थिति में सहयोग करना शामिल है।
  • बड़ी संख्या में डेनिश फर्मों वाले क्षेत्रों में भारत-डेनमार्क ऊर्जा पार्कों का निर्माण और भारतीय जनशक्ति को प्रशिक्षित करने के लिये एक ‘भारत-डेनमार्क कौशल संस्थान’ का प्रस्ताव किया गया है।
  • हरित रणनीतिक साझेदारी का गठन (The Green Strategic Partnership) मौजूदा संयुक्त आयोग और संयुक्त कार्य समूहों के सहयोग के लिये किया जाएगा। 

भारत-डेनमार्क सहयोग की स्थिति 

  • पृष्ठभूमि:  
    • सितंबर 1949 में स्थापित भारत और डेनमार्क के बीच राजनयिक संबंधों को नियमित उच्च-स्तरीय आदान-प्रदान द्वारा चिह्नित किया गया है।
    • दोनों देशों का उद्देश्य ऐतिहासिक संबंध, आम लोकतांत्रिक परंपराएँ, क्षेत्रीय, साथ ही अंतर्राष्ट्रीय शांति एवं स्थायित्व के लिये साझेदार के रूप में काम करना है।
    • वर्ष 2020 में आयोजित वर्चुअल शिखर सम्मेलन के दौरान द्विपक्षीय संबंधों को "हरित रणनीतिक साझेदारी" के स्तर तक उन्नत किया गया। 
  • वाणिज्यिक और आर्थिक संबंध:  
    • भारत और डेनमार्क के बीच वस्तुओं एवं सेवाओं का द्विपक्षीय व्यापार 78% बढ़कर वर्ष 2016 के 2.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर से वर्ष 2021 में 5 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया है। 
    • भारत से डेनमार्क को निर्यात की जाने वाली प्रमुख वस्तुओं में वस्त्र, परिधान एवं सूत से संबंधित, वाहन एवं पुर्जे, धात्विक वस्तुएँ, लौह-इस्पात, जूते एवं यात्रा की वस्तुएँ शामिल हैं। 
    • भारत में डेनमार्क से होने वाले प्रमुख आयात में औषधीय/दवा संबंधी वस्तुएँ, विद्युत उत्पन्न करने वाली मशीनरी, औद्योगिक मशीनरी, धातु अपशिष्ट एवं अयस्क तथा जैविक रसायन शामिल हैं। 
  • सांस्कृतिक आदान-प्रदान:  
    • भारत का 75वाँ स्वतंत्रता दिवस कोपेनहेगन में बड़े उत्साह के साथ मनाया गया जिसमें बड़ी संख्या में प्रवासी लोगों ने ध्वजारोहण समारोह तथा आज़ादी के अमृत महोत्सव के हिस्से के रूप में आयोजित रंगारंग कार्यक्रमों में भाग लिया।
    • इस संदर्भ में महत्त्वपूर्ण सड़कों और सार्वजनिक स्थानों का नाम भारतीय नेताओं के नाम पर रखा गया है, जिनमें आर्हस में आरहु विश्वविद्यालय के पास एक नेहरू रोड और कोपेनहेगन का गांधी पार्क शामिल हैं।
  • बौद्धिक संपदा सहयोग: 
    • वर्ष 2020 में हस्ताक्षर किये गए समझौता ज्ञापन का उद्देश्य दोनों देशों के बीच बौद्धिक संपदा सहयोग बढ़ाना, पेटेंट के लिये आवेदन निपटान हेतु प्रक्रियाओं संबंधी सूचना और सर्वोत्तम प्रथाओं का आदान -प्रदान, औद्योगिक डिज़ाइन, भौगोलिक संकेतक तथा पारंपरिक ज्ञान के संरक्षण के क्षेत्र में सहयोग करना है।
    • यह वैश्विक नवाचार में एक प्रमुख अभिकर्त्ता बनने और राष्ट्रीय बौद्धिक संपदा अधिकार नीति, 2016 के उद्देश्यों को आगे बढ़ाने की दिशा में भारत की विकास यात्रा में एक ऐतिहासिक कदम होगा।

आगे की राह

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


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