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डेली न्यूज़

  • 01 Feb, 2021
  • 52 min read
शासन व्यवस्था

SARS-CoV-2 का नया रूप

चर्चा में क्यों?

हाल ही में कई देशों में SARS-CoV-2 का एक नया प्रतिरूप उभरकर सामने आया है। नवीनतम शोध से संकेत मिला है कि वायरस अपनी अवस्था में तेज़ी से उत्परिवर्तन (Mutatition) कर रहा है, जो COVID-19 के लिये वर्तमान में उपलब्ध टीकों को निष्प्रभावी कर सकता है।

  • SARS-CoV-2 वह वायरस है जो COVID-19 नामक बीमारी के लिये उत्तरदायी है।

प्रमुख बिंदु

उत्परिवर्तन का अर्थ:

  • उत्परिवर्तन एक जीव या किसी वायरस की कोशिका के जीनोम में एक परिवर्तन है जो कम या ज़्यादा स्थायी होता है और जिसे कोशिका या वायरस के वंशजों में संचारित किया जा सकता है।
  • जीवों के जीनोम की सभी सरंचनाएँ डीऑक्सी राइबोन्यूक्लिक एसिड (Deoxyribonucleic Acid- DNA) से बनी होती हैं, जबकि वायरल जीनोम की सरंचनाएँ DNA या राइबो न्यूक्लिक एसिड (Ribo Nucleic Acid- RNA) की बनी हो सकती हैं।

RNA उत्परिवर्तन बनाम DNA उत्परिवर्तन:

  • जब कोशिकाएँ वृद्धि करती हैं तो उनके भीतर का DNA कोशिकाओं की नई प्रतियाँ बनाने के लिये प्रतिकृति भी बनाता है। प्रतिकृति निर्माण के दौरान यादृच्छिक त्रुटियों को नए DNA में प्रवेश किया जाता है।
  • RNA वायरस में उत्परिवर्तन प्रायः तब होता है जब स्वयं की प्रतिकृति बनाते समय वायरस से कोई चूक हो जाती है।
    • यदि उत्परिवर्तन/म्यूटेशन के परिणामस्वरूप प्रोटीन संरचना में कोई महत्त्वपूर्ण परिवर्तन होता है तो ही किसी बीमारी के प्रकार में बदलाव हो सकता है।

उत्परिवर्तन का महत्त्व:

  • विकास:
    • अधिकांश उत्परिवर्तन वायरस के लिये हानिकारक होते हैं। परंतु अगर कोई वायरस इस स्थिति में लाभ प्राप्त करता है,  तो वह बेहतर संक्रामकता और संचरण की स्थिति में आ जाता है तथा प्रतिरक्षा विकसित कर चुकी आबादी भी इससे प्रभावित हो सकती है। 
    • उदाहरणार्थ: D614G नामक एक उत्परिवर्तन के कारण जनवरी 2020 में कोरोनोवायरस स्पाइक प्रोटीन के अमीनो अम्ल की स्थिति में परिवर्तन हुआ।
    • इस नए उत्परिवर्तित कोरोनावायरस की वजह से और अधिक संक्रामक वायरस सामने आया। वर्तमान में यह उत्परिवर्तित वायरस ही दुनिया भर में फैलने वाले कोरोनावायरस के 99% से अधिक मामलों के लिये ज़िम्मेदार है।
      • यह कोरोनोवायरस स्पाइक प्रोटीन है जो संक्रमण की प्रक्रिया को शुरू करने के लिये मानव प्रोटीन का प्रयोग करता है।
      • इसमें होने वाले परिवर्तन संभवतः वायरस की संक्रामक क्षमता, गंभीर बीमारी का कारण बनने की क्षमता या टीकों द्वारा विकसित की गई प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया संबंधी क्षमता को प्रभावित कर सकते हैं। 

कोरोनावायरस के RNA जीनोम की विशिष्ट विशेषताएँ:

  • कोरोनावायरस में दो विशिष्ट विशेषताओं के साथ एक RNA जीनोम होता है:
    • सबसे बड़ा जीनोम:
      RNA वायरस के 30,000 न्यूक्लियोटाइड्स (न्यूक्लिक एसिड यूनिट) में सबसे बड़ा जीनोम होता है।
    • स्थिरता:
      कोरोनावायरस में स्थिर जीनोम होते हैं, ये इन्फ्लूएंज़ा वायरस की तुलना में लगभग एक हज़ार गुना धीमी गति से बदलते हैं, जो कि श्वसन रोग के लिये ज़िम्मेदार RNA वायरस भी हैं।

कोरोनोवायरस प्रतिरूप में हालिया RBD उत्परिवर्तन:

  • कोरोनोवायरस के तीन प्रमुख ‘रिसेप्टर-बाइंडिंग डोमेन’ (RBD) उत्परिवर्तन रूप K417N /T, E484K और N501Y दक्षिण अफ्रीका और ब्राज़ील में पाए गए हैं। 
    • ब्रिटेन के प्रतिरूप में N501Y, P681H उत्परिवर्तन पाया गया है।
  • स्पाइक प्रोटीन के ‘रिसेप्टर-बाइंडिंग डोमेन’ उत्परिवर्तन से बने वायरस में प्राकृतिक संक्रमण या टीकाकरण के परिणामस्वरूप विकसित होने वाले एंटीबॉडी से बचने की सर्वाधिक क्षमता है।
  • ‘रिसेप्टर-बाइंडिंग डोमेन’ उत्परिवर्तन के माध्यम से ‘सेलुलर रिसेप्टर’ वायरस को कोशिकाओं को संक्रमित करने की अनुमति देता है और ‘एंटी-आरबीडी एंटीबॉडी वायरस’ को अप्रभावी करता है।

उभरते हुए प्रतिरूपों के खिलाफ वैक्सीन परीक्षण:

  • प्रयोगशालाओं में अप्रत्यक्ष परीक्षण के माध्यम से यह आकलन किया जाता है कि क्या एक उभरता हुआ प्रतिरूप प्राकृतिक संक्रमण या टीकाकरण के बाद विकसित एंटीबॉडी से बच सकता है।
    • COVID-19 बीमारी से ठीक हुए रोगियों या टीकाकृत लोगों से सीरम (रक्त घटक जिसमें एंटीबॉडी होते हैं) प्राप्त कर मूल वायरस को अप्रभावी करने के लिये ज्ञात की गई एंटीबॉडी का परीक्षण करके यह निर्धारित करने का प्रयास किया जाता है कि क्या ये वायरस प्रतिरूप विकसित एंटीबॉडीज़ से बच जाते हैं।
    • एक सीरम या एंटीबॉडी की प्रभावशीलता ‘निरोधात्मक एकाग्रता’ (आईसी) या ‘प्लेक रिडक्शन न्यूट्रलाइज़ेशन टाइटर’ (PRNT) मूल्य के रूप में व्यक्त की जाती है।
    • IC50 या PRNT50 सीरम या एंटीबॉडी की आपसी सांद्रता का मान है जो नमूने में 50% वायरस को अप्रभावी करता है।

उभरते हुए प्रतिरूप के खिलाफ टीके की प्रभावकारिता:

  • मॉडर्ना और फाइज़र/बायोटेक दोनों इस बात से सहमत हैं कि उनके टीकों ने दक्षिण अफ्रीकी प्रतिरूप के खिलाफ कम सुरक्षा प्रदान की है। कहा जा रहा है इन प्रतिरूपों को कवर करने के लिये दोनों कंपनियाँ नए टीके को विकसित करने पर काम कर रही हैं।
  • दक्षिण अफ्रीका में मूल वायरस के खिलाफ विकसित प्रतिरक्षा के बाद भी नए प्रतिरूपों से संक्रमित होने के मामले सामने आए हैं।

भारत के संदर्भ में:

  • भारत में अब तक केवल यात्रियों में कोरोनावायरस के ब्रिटेन प्रतिरूप के मामले सामने आए हैं। इसके स्थानीय प्रसारण संबंधी मामले सामने नहीं आए हैं।
  • साक्ष्य बताते हैं कि वर्तमान टीके अब भी कोरोनावायरस के ब्रिटेन प्रतिरूप के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करेंगे, भले ही उनकी प्रभावकारिता कम हो।
    • आईसीएमआर-नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी और भारत बायोटेक के वैज्ञानिकों ने कोरोनावायरस के ब्रिटेन प्रतिरूप के खिलाफ अपने टीके कोवैक्सिन का परीक्षण किया।
    • इन परिणामों में यह बात सामने आई है कि वैक्सीन ब्रिटेन प्रतिरूप पर समान रूप से काम करेगी।
  • कम हो रहे COVID-19 मामलों के साथ-साथ भारत को मास्क पहनने संबंधी नियमों को सख्ती से लागू करना चाहिये और भीड़-भाड़ को कम करके सक्रियता से ब्रिटेन प्रतिरूप से संक्रमित लोगों की पहचान करनी चाहिये।
  • भारत को अक्तूबर 2020 से दक्षिण अफ्रीका और दिसंबर 2020 से ब्राज़ील की यात्रा करने वाले लोगों की भी पहचान कर लेनी चाहिये।
  • जीनोमिक निगरानी बढ़ाने के लिये एक अंतर-मंत्रालयी समूह ‘इंडियन SARS-CoV-2 जीनोमिक्स कंसोर्टियम’ (INSACOG) की स्थापना इस दिशा में एक अच्छा कदम है।
    • जीनोमिक निगरानी राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय दोनों स्तरों पर रोगजनक संचरण और विकास पर नज़र रखने के लिये जानकारी का एक समृद्ध स्रोत उत्पन्न कर सकती है।

स्रोत-द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

‘फ्यूचर इन्वेस्टमेंट इनिशिएटिव फोरम’ का चौथा संस्करण

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री ने वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से ‘फ्यूचर इन्वेस्टमेंट इनिशिएटिव फोरम’ के चौथे संस्करण को संबोधित किया। 

  • रियाद (सऊदी अरब) में आयोजित किये जा रहे इस फोरम का उद्देश्य यह पता लगाना है कि सरकार और उद्योग किस प्रकार स्‍वास्‍थ्‍य सेवा तक पहुँच बढ़ा सकते हैं, स्‍वास्‍थ्‍यकर्मियों को प्रशिक्षित कर सकते हैं, नियामकीय बाधाओं को दूर कर सकते हैं और उन्नत स्वास्थ्य प्रौद्योगिकी में निवेश को प्रोत्साहित कर सकते हैं।

फ्यूचर इन्वेस्टमेंट इनिशिएटिव फोरम

  • फ्यूचर इन्वेस्टमेंट इनिशिएटिव (FII) को व्यापक रूप से ‘डेज़र्ट इन दावोस’ (Davos in the Desert) के रूप में वर्णित किया गया है। यह सऊदी अरब का प्रमुख निवेश सम्मेलन है।
    • इस फोरम का अनौपचारिक नाम यानी ‘डेज़र्ट इन दावोस’, वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम (WEF) की वार्षिक बैठक से लिया गया है, जो कि स्विट्ज़रलैंड के दावोस में आयोजित होती है, जहाँ विश्व के प्रमुख नेता अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों से संबंधित अपना एजेंडा तय करते हैं और उन पर चर्चा करते हैं।
  • फ्यूचर इन्वेस्टमेंट इनिशिएटिव (FII) की शुरुआत वर्ष 2017 में सऊदी अरब के सार्वजनिक निवेश कोष द्वारा की गई थी, जो कि सऊदी अरब का मुख्य संप्रभु धन कोष है।

Saudi-Arabia

प्रमुख बिंदु

  • भारत ने कोरोनावायरस महामारी के कारण उभरे और वैश्विक व्यापार को प्रभावित करने वाले पाँच बड़े रुझानों को रेखांकित किया:
    • प्रौद्योगिकी एवं नवाचार का प्रभाव
    • वैश्विक वृद्धि के लिये बुनियादी ढाँचे का महत्त्व
    • मानव संसाधन में हो रहे बदलाव और कार्य का भविष्य 
    • पर्यावरण के लिये सहानुभूति
    • संपूर्ण समाज और सरकार के दृष्टिकोण पर केंद्रित व्यापार अनुकूल प्रशासन

भारत द्वारा रेखांकित पहलें

  • स्वदेशी नवाचार के लिये
    • आरोग्य सेतु एप: इस एप्लीकेशन में कोरोना हॉटस्पॉट का विश्लेषण करने और संक्रमण का पता लगाने के लिये ब्लूटूथ ट्रैकिंग तकनीक का उपयोग किया जाता है और यह एप स्थानीय अधिकारियों को भी पहले से सचेत कर देता है।
  • बुनियादी ढाँचे को मज़बूत करने के लिये
    • भारत सरकार ने हाल ही में ‘आत्मनिर्भर भारत’ अभियान के तहत भारत के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के 10 प्रतिशत के बराबर यानी 2 मिलियन करोड़ रुपए का एक विशेष आर्थिक पैकेज लॉन्च किया था।
  • मानव संसाधन के लिये
    • भारत ने कुशल मानव संसाधन विकास हेतु एक व्यापक दृष्टिकोण विकसित किया है। उदाहरण के लिये हाल ही में भारत सरकार ने प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY) 3.0 लॉन्च की है।
  • पर्यावरण के लिये
    • जलवायु परिवर्तन को रोकने और स्वच्छ ईंधन की खपत बढ़ाने हेतु भारत द्वारा कई कदम उठाए गए हैं। उदाहरण के लिये जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना (NAPCC) और प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना (PMUY)
  • व्यापार-अनुकूल गवर्नेंस के लिये
    • भारत अनुसंधान और विकास (R&D) से लेकर तकनीकी-उद्यमिता तक एक व्यापक पारिस्थितिकी तंत्र विकसित कर रहा है।

स्वास्थ्य देखभाल पर ज़ोर

  • हाल ही में भारत ने कोरोना वायरस की दो वैक्सीन (कोविशील्ड और कोवैक्सीन) के साथ विश्व के सबसे बड़े टीकाकरण अभियान की शुरुआत की है।
  • सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया जल्द ही सऊदी अरब को कोविशील्ड वैक्सीन की डिलीवरी करेगा।
  • भारत द्वारा 'को-विन' डिजिटल प्लेटफॉर्म और ‘आयुष्मान भारत’ योजना (विश्व का सबसे बड़ा सरकारी स्वास्थ्य कार्यक्रम) को संदर्भित किया गया, जो कि सार्वजनिक स्वास्थ्य समुदायों के एकीकरण में प्रौद्योगिकी के उपयोग के बेहतर उदाहरण हैं।

स्रोत: पी.आई.बी.


शासन व्यवस्था

कोविड-19 प्रदर्शन सूचकांक

चर्चा में क्यों?

98 देशों के ‘कोविड-19 प्रदर्शन सूचकांक’ (Covid-19 Performance Index) में भारत का  86वाँ स्थान है।

प्रमुख बिंदु:

सूचकांक के बारे में:

  • शामिल संस्थान:
    • कोविड-19 प्रदर्शन सूचकांक को सिडनी स्थित लोवी संस्थान (Sydney-based Lowy Institute) जो कि एक ऑस्ट्रेलियाई थिंक टैंक है, द्वारा संकलित किया गया है। इस सूचकांक में महामारी के प्रति देशों की प्रतिक्रिया को मापा गया।
      • संस्थान द्वारा परिणामों के आकलन में भूगोल, राजनीतिक प्रणालियों और आर्थिक विकास के प्रभाव को भी ध्यान में रखा गया।
  • शामिल पैरामीटर: 
    • छह संकेतक
      1. पुष्टिकृत मामलों की संख्या।
      2. पुष्टिकृत मौतों की संख्या
      3. प्रति मिलियन आबादी पर मामलों की संख्या 
      4. प्रति मिलियन आबादी पर मरने वाले लोगों की संख्या 
      5. परीक्षणों  के अनुपात में मामलों की संख्या
      6. प्रति हज़ार जनसंख्या पर किये गए परीक्षणों की संख्या
    • कम मामलों और मौतों की संख्या, कुल और प्रति व्यक्ति दोनों अर्थों में वायरस की बेहतर प्रतिक्रिया की ओर इशारा करते हैं।
    • प्रति व्यक्ति आधार पर किये गए अधिक परीक्षणों से राष्ट्रीय स्तर पर महामारी की सीमा की सटीक तस्वीर सामने आती है।
    • सकारात्मक परीक्षणों की निम्न दर कोविड-19 के संचरण (Transmission of Covid-19) पर अधिक-से-अधिक नियंत्रण का संकेत देती है।
  • मूल्यांकन की विधि: 
    • 36 हफ्तों में 98 देशों द्वारा अपने यहाँ 100 मामलों का आकलन किया गया।
      • चीन को अध्ययन में शामिल नहीं किया गया क्योंकि इसकी सभी परीक्षण दर (Testing Rates) सार्वजनिक रूप से उपलब्ध नहीं हैं।
    • प्रत्येक अवधि में सूचकांक में शामिल सभी देशों के लिये अलग-अलग औसतन छह संकेतकों की गणना की गई और इसे 0 (सबसे खराब प्रदर्शन) से 100 (सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन) तक के स्कोर में वर्गीकृत किया गया।

परिणाम:

  • सूचकांक में बेहतर प्रदर्शन करने वाले देश: 
    • न्यूज़ीलैंड रैंकिंग में शीर्ष पर है इसके बाद वियतनाम, ताइवान, थाईलैंड और साइप्रस का स्थान है।
  • सूचकांक में निम्न प्रदर्शन करने वाले देश: 
    • ब्राज़ील सूचकांक में सबसे नीचे रहा। अमेरिका पाँचवाँ सबसे खराब प्रदर्शन करने वाला देश था जो 98 में से 94वें स्थान पर रहा।
  • दक्षिण एशियाई देशों का प्रदर्शन: 
    • दक्षिण एशिया में श्रीलंका का प्रदर्शन सर्वश्रेष्ठ रहा, जो सूचकांक में  10वे स्थान पर रहा, जबकि सूचकांक में मालदीव 25वें स्थान पर, पाकिस्तान 69वें स्थान पर, नेपाल 70वें स्थान पर और बांग्लादेश 84वें स्थान पर रहा।
  • भारत का प्रदर्शन: 
    • कोविड-19 प्रदर्शन सूचकांक में भारत 98 देशों में  86वें स्थान पर रहा।
    • एशिया-पैसिफिक क्षेत्र में भारत का औसत 24.3 है, जो इस क्षेत्र (एशिया-पैसिफिक) के औसत की तुलना में काफी कम है, क्योंकि क्षेत्रवार मूल्यांकन  के मामले में एशिया-पैसिफिक का स्कोर 58.2 है, जो कि क्षेत्रवार मूल्यांकन में श्रेष्ठ प्रदर्शन है।

विश्लेषण: 

  • छोटे देशों का बेहतर प्रदर्शन: सामान्य तौर पर कम आबादी वाले देश, सुसंगठित समाज और सक्षम संस्थान इस वैश्विक  महामारी के संकट से निपटने में तुलनात्मक रूप से लाभ की स्थिति में है।
    • 10 लाख  से कम आबादी वाले छोटे देशों ने 2020 तक लगातार अपने बड़े समकक्षों (Larger Counterparts) को पीछे छोड़ दिया।
  • नेतृत्व का महत्त्व: आर्थिक विकास के स्तर और राजनीतिक प्रणालियों में अंतर का कोरोनोवायरस प्रतिक्रिया पर अपेक्षित प्रभाव नहीं पड़ता है।
    • महामारी का उचित प्रबंधन शासन व्यवस्था पर बहुत अधिक निर्भर नहीं था, लेकिन फिर भी  या तो नागरिक अपने नेताओं पर भरोसा करते हैं, या फिर नेता एक सक्षम और प्रभावी राज्य की अध्यक्षता करते हैं।
  • वायरस के प्रसार को कम करने हेतु उपयोग किये जाने वाले अपेक्षाकृत ‘निम्न-तकनीकी’ 
  • स्वास्थ्य उपायों ने विकसित और विकासशील देशों के मध्य समान अवसर सुनिश्चित किया है।
    • हालाँकि महामारी के लिये अन्य देशों में टीकों का प्रसार अमीर देशों के हित में हो सकता है।

स्रोत: द हिंदू 


जैव विविधता और पर्यावरण

नीलगिरि हाथी कॉरिडोर का मामला

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) ने अक्तूबर 2020 में गठित एक तकनीकी समिति में संरक्षणवादी (Conservationist) की नियुक्ति की है। इस समिति का कार्य तमिलनाडु में अधिकारियों द्वारा नीलगिरि हाथी कॉरिडोर के क्षेत्रफल में मनमाना बदलाव करने और लोगों के घरों को ज़बरदस्ती सील करने के खिलाफ भूस्वामियों की शिकायतों की जाँच करना है।

प्रमुख बिंदु

अक्तूबर 2020 का मामला:

  • सर्वोच्च न्यायालय ने तमिलनाडु सरकार के हाथी कॉरिडोरकी अधिसूचना और नीलगिरि बायोस्फीयर रिज़र्व के मध्य से आने-जाने वाले जंगली जानवरों के प्रवासी मार्ग की सुरक्षा के अधिकार को बरकरार रखा था।
  • शीर्ष न्यायालय ने कहा था कि पर्यावरण के लिये बेहद महत्त्वपूर्ण "कीस्टोन प्रजाति" जैसे- हाथियों की रक्षा करना राज्य का कर्तव्य है।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने हाथी कॉरिडोर के संदर्भ में रिसॉर्ट मालिकों एवं निजी भूमि मालिकों की आपत्तियों पर सुनवाई के लिये एक समिति के गठन की अनुमति दी जिसमें उच्च न्यायालय के एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश एवं दो अन्य व्यक्ति शामिल होंगे।
  • सर्वोच्च न्यायालय का यह फैसला जुलाई 2011 के मद्रास उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ रिसॉर्ट्स/प्राइवेट ज़मींदारों द्वारा दायर अपील पर आधारित था।

मद्रास उच्च न्यायालय का फैसला:

  • मद्रास उच्च न्यायालय ने वर्ष 2011 में नीलगिरि ज़िले के सिगुर पठार में एलीफेंट कॉरिडोर के लिये तमिलनाडु सरकार की अधिसूचना (2010) की वैधता को  बरकरार रखा।
  • मद्रास उच्च न्यायालय ने जुलाई 2011 में घोषणा की थी कि तमिलनाडु सरकार को केंद्र सरकार के 'प्रोजेक्ट एलीफेंट' (Project Elephant) के साथ-साथ राज्य के नीलगिरि ज़िले में हाथी कॉरिडोर को अधिसूचित करने के लिये भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51A (G) के तहत अधिकार प्राप्त है। 
    • अनुच्छेद 51A(G) में कहा गया है कि भारत के प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य होगा कि वह वनों, झीलों, नदियों और वन्यजीवन सहित प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा तथा सुधार का कार्य करेगा एवं जीवित प्राणियों के प्रति दया का भाव रखेगा।
  • इस निर्णय द्वारा नीलगिरि हाथी गलियारे के भीतर आने वाली रिसॉर्ट मालिकों और अन्य निजी भूस्वामियों की भूमि को खाली कराने की अधिसूचना को बरकरार रखा गया।

नीलगिरि हाथी कॉरिडोर:

  • यह हाथी गलियारा, पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील सिगुर पठार (Sigur Plateau) में स्थित है, यह पठार परस्पर पश्चिमी और पूर्वी घाटों से संबद्ध है और हाथियों की आबादी तथा उनकी आनुवंशिक विविधता को बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • इस कॉरिडोर के दक्षिण-पश्चिम में नीलगिरि पहाड़ियाँ और उत्तर-पूर्वी भाग में मोयार (Moyar) नदी घाटी स्थित है। हाथी प्रायः भोजन और पानी की तलाश में पठार को पार करते हैं।
  • भारत में लगभग 100 हाथी कॉरिडोर हैं, जिनमें से लगभग 70% का उपयोग नियमित रूप से किया जाता है।
    • 75%  हाथी कॉरिडोर दक्षिणी, मध्य और उत्तर-पूर्वी जंगलों में है।
    • ब्रह्मगिरि-नीलगिरि-पूर्वी घाट पर्वतमाला में लगभग 6,500 हाथी रहते हैं।

हाथी कॉरिडोर के लिये चुनौतियाँ: अगस्त 2017 में जारी 800 पृष्ठ वाले एक अध्ययन 'राइट ऑफ पैसेज' (Right of Passage) में भारत में अवस्थित 101 हाथी गलियारों से संबंधित विवरणों की पहचान आदि के विषय में जानकारी प्रदान की गई थी।

  • पैसेज की चौड़ाई में कमी: वर्ष 2005 में 41% कॉरिडोरों की चौड़ाई तीन किलोमीटर थी लेकिन वर्ष 2017 में यह केवल 22% बचा था। इससे यह पता चलता है कि कैसे पिछले 12 वर्षों में कॉरिडोरों की चौड़ाई संकुचित होती रही है।
  • गलियारों पर मानव अतिक्रमण: वर्ष 2017 में 21.8% कॉरिडोर मानव बस्तियों से मुक्त थे, जबकि यह संख्या वर्ष 2005 में 22.8% थी।
  • बाधित क्षेत्र: उत्तर-पश्चिम भारत में लगभग 36.4% हाथी गलियारों में से मध्य भारत में 32%, उत्तरी पश्चिम बंगाल में 35.7% और पूर्वोत्तर में 13% हाथी गलियारों के पास से रेलवे लाइनें गुज़रती हैं। 
    • लगभग दो-तिहाई गलियारों के पास से या तो राष्ट्रीय या राज्य राजमार्ग गुज़रता है। स्पष्ट रूप से इससे न केवल हाथियों का निवास स्थान प्रभावित होता है बल्कि उनकी गतिविधियाँ भी बाधित होती हैं।
    • रेलवे पटरियों और राजमार्गों के अलावा 11% गलियारों के पास से नहरें गुज़रती हैं, जबकि 12% हाथी गलियारे खनन एवं पत्थरों के उत्खनन से प्रभावित हैं।
  • कॉरिडोर के साथ-साथ भूमि उपयोग: भूमि उपयोग के संदर्भ में वर्ष 2005 के 24% की तुलना में वर्ष 2017 में केवल 12.9% गलियारे पूरी तरह से वनावरण के अधीन हैं।
    • देश के हर तीन हाथी गलियारों में से दो अब कृषि गतिविधियों से प्रभावित हैं।

हाथियों के संरक्षण के लिये अन्य पहलें:

नीलगिरि बायोस्फीयर रिज़र्व

  • उत्पत्ति: 
    • ‘नीलगिरि’ का शाब्दिक अर्थ ’नीले पहाड़ों’ से है। इस नाम की उत्पत्ति नीलगिरि पठार के नीले फूलों वाले पहाड़ों से हुई है।
    • नीलगिरि बायोस्फीयर रिज़र्व भारत का पहला बायोस्फीयर रिज़र्व है। इसकी स्थापना  वर्ष 1986 में की गई थी।
  • भौगोलिक अवस्थिति:
    • नीलगिरि बायोस्फीयर रिज़र्व का कुल क्षेत्रफल 5,520 वर्ग किमी. है।
    • यह बायोस्फीयर रिज़र्व तमिलनाडु, केरल और कर्नाटक के कुछ हिस्सों को शामिल करता है।
  • पारिस्थितिक विशेषताएँ:
    • बायोटिक ज़ोन का संधि-स्थल: यह उष्णकटिबंधीय वन बायोम का उदाहरण है जो विश्व के एफ्रो-ट्रॉपिकल (Afro-Tropical) और इंडो-मलायन (Indo-Malayan) बायोटिक ज़ोन के संधि-स्थल को चित्रित करता है।
    • जैव विविधता हॉटस्पॉट: पश्चिमी घाट बायोग्राफिकल रूप से सबसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्र है और विख्यात जैव विविधता हॉटस्पॉट्स (बायोग्राफिकल क्षेत्रों में स्थानिक प्रजातियों का घनत्व अत्यधिक होता है) क्षेत्रों में में से एक है।
  • वनस्पति:
    • यह रिज़र्व पारिस्थितिकी तंत्र का एक विस्तृत क्षेत्र है। इसका कोर क्षेत्र केरल और तमिलनाडु में फैला हुआ है, जिसमें सदाबहार, अर्द्ध सदाबहार, पर्वतीय शोला वन और घास के मैदान पाए जाते हैं।
    • कर्नाटक के कोर क्षेत्र में ज़्यादातर शुष्क पर्णपाती, नम पर्णपाती, अर्द्ध सदाबहार  वन और झाड़ियाँ पाई जाती हैं।
  • जीव-जंतु:
    • इस रिज़र्व में नीलगिरि ताहर, नीलगिरि लंगूर, ब्लैकबक, टाइगर, भारतीय हाथी आदि जानवर पाए जाते हैं।
    • इस क्षेत्र में नीलगिरि डानियो (Nilgiri danio), नीलगिरि बार्ब (Nilgiri barb), बोवनी बार्ब (Bowany barb) आदि स्थानिक मछलियाँ पाई जाती हैं।
  • जल संसाधन:
    • रिज़र्व क्षेत्र में कावेरी नदी की कई प्रमुख सहायक नदियों जैसे- भवानी, मोयार, काबिनी साथ ही चालियार, पुनमपुझा आदि का उद्दगम स्रोत और जलग्रहण क्षेत्र है।
  • जनजातीय जनसंख्या:
    • नीलगिरि बायोस्फीयर रिज़र्व में कई आदिवासी समूह जैसे- टोडा, इरुल्लास, कुरुम्बस, पनियास, आदियंस, अल्लार, मलायन आदि रहते हैं।
  • NBR में संरक्षित क्षेत्र:
    • मुदुमलाई वन्यजीव अभयारण्य, वायनाड वन्यजीव अभयारण्य, बांदीपुर राष्ट्रीय उद्यान, नागरहोल राष्ट्रीय उद्यान, मुकुर्थी राष्ट्रीय उद्यान और साइलेंट वैली इस आरक्षित क्षेत्र में मौजूद संरक्षित क्षेत्र हैं।

स्रोत: द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

दावोस संवाद: वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम

चर्चा में क्यों?

हाल ही में प्रधानमंत्री ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम (WEF) के ‘दावोस संवाद’ को संबोधित किया।

  • दावोस (स्विट्ज़रलैंड) में आयोजित होने वाली वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम (WEF) की वार्षिक बैठक में वैश्विक, क्षेत्रीय और उद्योग एजेंडों को आकार देने के लिये दुनिया के शीर्ष नेताओं द्वारा हिस्सा लिया जाता है।
  • दावोस संवाद 2021 कोरोना वायरस महामारी की समाप्ति के बाद वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम (WEF) की ‘द ग्रेट रीसेट’ पहल की शुरुआत को चिह्नित करता है।

Davos

WEF की ‘द ग्रेट रीसेट’ पहल

  • परिचय
    • यह पहल इस आकलन पर आधारित है कि वर्तमान में विश्व अर्थव्यवस्था गहरे संकट का सामना कर रही है।
      • वैश्विक समाज पर महामारी के विनाशकारी प्रभावों और जलवायु परिवर्तन के परिणामों जैसे विभिन्न कारकों से स्थिति बहुत खराब हो गई है।
  • एजेंडा
    • विश्व के सभी देशों को हमारे समाजों और अर्थव्यवस्थाओं के सभी पहलुओं, जिसमें शिक्षा से लेकर सामाजिक अनुबंध और काम करने की स्थिति आदि शामिल हैं, में सुधार करने के लिये संयुक्त रूप से प्रयास करना चाहिये। इस प्रक्रिया में विश्व के सभी देशों को हिस्सा लेना चाहिये क्योंकि सभी उद्योगों में महत्त्वपूर्ण बदलाव किये जाने की आवश्यकता है।
    • संक्षेप में हम कह सकते हैं कि यह पूंजीवाद का 'रीसेट' है।

प्रमुख बिंदु

महामारी के विरुद्ध भारत की लड़ाई

  • भारत द्वारा महामारी से मुकाबले में सक्रिय सार्वजनिक भागीदारी का दृष्टिकोण अपनाया गया और एक कोविड-विशिष्ट स्वास्थ्य अवसंरचना विकसित करने और महामारी से मुकाबले के लिये मानव संसाधन को प्रशिक्षित करने पर ज़ोर दिया गया।
  • भारत, जहाँ विश्व की तकरीबन 18 प्रतिशत आबादी निवास करती है, ने न केवल अपने नागरिकों की ओर ध्यान दिया, बल्कि PPE किट और मास्क निर्यात करके अन्य देशों की मदद भी की है।
  • भारत ने विश्व का भी मार्गदर्शन किया कि किस प्रकार पारंपरिक चिकित्सा (आयुर्वेद) प्रतिरक्षा क्षमता में सुधार करने में मददगार हो सकती है।
  • भारत ने अब तक कोरोना वायरस के दो टीके विकसित किये हैं, जो अन्य देशों को भी प्रदान किये जा रहे हैं और आने वाले दिनों में दुनिया में कई अन्य ‘मेड इन इंडिया’ टीके दिखाई पड़ सकते हैं।

महामारी के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था

  • भारत ने अरबों रुपए की बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं और रोज़गार के लिये विशेष योजनाओं को शुरू करके आर्थिक गतिविधि को बल प्रदान करने का प्रयास किया है जैसे:
    • गरीब कल्याण रोज़गार अभियान: इस योजना का उद्देश्य कोरोना वायरस महामारी और लॉकडाउन के कारण अपने गृह राज्य वापस लौटे प्रवासी श्रमिकों और ग्रामीण नागरिकों को आजीविका के अवसर उपलब्ध कराना है।
  • भारत का ‘आत्मनिर्भर भारत’ अभियान ‘वैश्विकता’ की अवधारणा को मज़बूत करेगा और औद्योगिक क्रांति 4.0 में भी सहायक होगा।
    • भारत औद्योगिक क्रांति 4.0 के सभी चार पहलुओं यथा- कनेक्टिविटी, ऑटोमेशन, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस/मशीन लर्निंग और रियल-टाइम डेटा के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण कार्य कर रहा है।

भारत की डिजिटल अवसंरचना

  • भारत में तेज़ी से बढती डिजिटल अवसंरचना ने डिजिटल समाधान को हमारे रोज़मर्रा के जीवन का हिस्सा बना दिया है।
    • इसने सार्वजनिक सेवा वितरण को कुशल एवं अधिक पारदर्शी बनाया है।
      • आँकड़ों की मानें तो भारत में तकरीबन 1.3 बिलियन लोगों के पास ‘आधार’ है, जो कि उनके खाते और फोन नंबर से जुड़ा हुआ है।
      • दिसंबर 2020 में यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (UPI) के माध्यम से भारत में 4 ट्रिलियन रुपए का वित्तीय लेन-देन हुआ था।
  • भारत ने अपने नागरिकों को विशिष्ट हेल्थ आईडी प्रदान करके स्वास्थ्य देखभाल की सुविधा को आसान बनाने के लिये ‘राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य मिशन’ नाम से एक अभियान शुरू किया है।
    • राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य मिशन: यह एक पूर्ण डिजिटल स्वास्थ्य पारिस्थितिकी तंत्र है। डिजिटल प्लेटफॉर्म मुख्य तौर पर चार कारकों यथा- हेल्थ आईडी, व्यक्तिगत स्वास्थ्य रिकॉर्ड, डिजी डॉक्टर और स्वास्थ्य सुविधा रजिस्ट्री के साथ लॉन्च किया जाएगा।
  • भारत का लक्ष्य उपयोगकर्त्ताओं की गोपनीयता सुनिश्चित करते हुए समावेशन और सशक्तीकरण के माध्यम से देश में बड़े बदलाव लाना है।

वैश्विक व्यापार समर्थन के लिये भारत की नीतियाँ

  • ‘आत्मनिर्भर भारत’ अभियान वैश्विक आपूर्ति शृंखला के प्रति प्रतिबद्ध है, क्योंकि भारत के पास वैश्विक प्रौद्योगिकी शृंखला को मज़बूत करने की क्षमता के साथ ही उसकी विश्वसनीयता बनी हुई है।
    • भारत के विशाल उपभोक्ता आधार में आने वाले समय में काफी अधिक बढ़ोतरी होगी, जिससे देश की अर्थव्यवस्था को भी काफी लाभ मिलेगा।
    • भारत ने 26 बिलियन डॉलर की प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (PLI) योजना का लाभ उठाने के लिये वैश्विक कंपनियों को आमंत्रित किया है।
  • भारत व्यापार में सुगमता प्रदान करता है, क्योंकि देश में कर व्यवस्था से लेकर प्रत्यक्ष विदेशी निवेश मानदंड तक सभी के लिये अनुकूल वातावरण है। विदेशी निवेश सुविधा पोर्टल इसका एक प्रमुख उदाहरण है।
    • विदेशी निवेश सुविधा पोर्टल (FIFP) निवेशकों को FDI की सुविधा देने के लिये भारत सरकार का एक ऑनलाइन एकल बिंदु इंटरफेस है। यह ‘उद्योग और आंतरिक व्यापार, वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के संवर्द्धन विभाग’ द्वारा प्रशासित है।

भारत और जलवायु परिवर्तन:  

  • जलवायु परिवर्तन से निपटने हेतु कुछ भारतीय पहलें:
    • राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (National Clean Air Programme- NCAP): यह वायु प्रदूषण की रोकथाम के लिये व्यापक और समयबद्ध पाँच वर्षीय कार्यक्रम है। इस कार्यक्रम के तहत वर्ष 2017 को आधार वर्ष मानते हुए वर्ष 2024 तक पीएम10 और पीएम2.5 की सांद्रता में 20-30% की कमी का एक अस्थायी लक्ष्य निर्धारित किया गया है। 
    • इसके साथ ही भारत द्वारा 1 अप्रैल, 2020 से उत्सर्जन मानदंड भारत स्टेज- IV (BS-IV) को भारत स्टेज-VI (BS-VI)  से प्रतिस्थापित कर दिया गया है, जिसे पहले  वर्ष 2024 तक अपनाया जाना था।
    • इसने भारत सरकार की उजाला योजना (UJALA Scheme) के तहत 360 मिलियन से अधिक एलईडी बल्ब वितरित किये गए हैं, जिससे प्रतिवर्ष लगभग 47 बिलियन यूनिट बिजली की बचत और CO2 उत्सर्जन में प्रतिवर्ष 38 मिलियन टन की कमी हुई है।
  • भारत द्वारा ईज़ ऑफ लिविंग, ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस और जलवायु संवेदनशील विकास पर ज़ोर देते हुए स्थायी शहरीकरण पर ध्यान केंद्रित किया का रहा है।

विश्व आर्थिक मंच:   

  • परिचय:  
    • वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम (WEF) एक स्विस गैर-लाभकारी संस्थान है जिसकी स्थापना वर्ष 1971 में जिनेवा (स्विट्ज़रलैंड) में हुई थी।
    • स्विस सरकार द्वारा इसे सार्वजनिक-निजी सहयोग के लिये एक अंतर्राष्ट्रीय संस्था के रूप में मान्यता प्राप्त है।
  • लक्ष्य:  
    • WEF वैश्विक, क्षेत्रीय और उद्योग जगत की परियोजनाओं को आकार देने हेतु व्यापार, राजनीतिक, शिक्षा क्षेत्र और समाज के अन्य प्रतिनिधियों को शामिल करके विश्व की स्थिति में सुधार के लिये प्रतिबद्ध है।
  • संस्थापक और कार्यकारी अध्यक्ष:  क्लॉस  श्वाब (Klaus Schwab)
  • WEF द्वारा प्रकाशित प्रमुख रिपोर्टों में से कुछ निम्नलिखित हैं: 

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

पश्चिम एशिया शांति सम्मेलन

चर्चा में क्यों?

हाल ही में रूस ने पश्चिम एशिया शांति सम्मेलन (West Asia Peace Conference) के लिये फिलिस्तीनी प्रस्ताव का समर्थन किया। इस सम्मेलन का उद्देश्य दो-राज्य समाधान पर ध्यान केंद्रित करना है, जिसके तहत इज़राइल के साथ-साथ फिलिस्तीन राज्य भी अस्तित्व में होगा।

प्रमुख बिंदु:

पृष्ठभूमि:

  • डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन के दौरान अमेरिका ने इज़राइल का पक्ष लिया, परंतु अब संयुक्त राज्य अमेरिका का इरादा " इज़राइलियों के साथ-साथ फिलीस्तीनियों से भी विश्वसनीय संबंधो को बहाल करना है।"
  • सम्मेलन में भागीदार:
    • 10 प्रतिभागियों में इज़राइल, फिलीस्तीन, पश्चिम एशिया राजनयिक चौकड़ी के चार सदस्य (रूस, संयुक्त राष्ट्र, संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोपीय संघ) शामिल होंगे, साथ ही चार अरब राज्य- बहरीन, मिस्र, जॉर्डन और संयुक्त अरब अमीरात शामिल होंगे।

रूस का सुझाव:

  • रूस ने सुझाव दिया कि पश्चिम एशिया शांति सम्मेलन मंत्री स्तर पर आयोजित किया जा सकता है।

अन्य संबंधित पहल:

  • इज़राइल, संयुक्त अरब अमीरात और बहरीन के बीच अब्राहम समझौते की मध्यस्थता अमेरिका द्वारा की जाती है। यह 26 वर्षों में पहला अरब-इज़राइल शांति समझौता था।
  • फिलिस्तीन इस समझौते से पड़ने वाले प्रभावों के बारे में चिंतित हैं।

इज़राइल-फिलिस्तीन संघर्ष

पृष्ठभूमि:

Israel

ब्रिटिश चरण:

  • प्रथम विश्व युद्ध में मध्य-पूर्व के ओटोमन साम्राज्य की हार के बाद ब्रिटेन ने फिलिस्तीन के क्षेत्र पर नियंत्रण कर लिया।
  • यह क्षेत्र यहूदी अल्पसंख्यक और अरब बहुसंख्यक आबादी का निवास स्थान रहा है।
  • इज़राइल और फिलिस्तीन के मध्य संघर्ष का इतिहास लगभग 100 वर्ष पुराना है, जिसकी शुरुआत वर्ष 1917 में उस समय हुई जब तत्कालीन ब्रिटिश विदेश सचिव आर्थर जेम्स बल्फौर ने ‘बल्फौर घोषणा’ (Balfour Declaration) के तहत फिलिस्तीन में एक यहूदी ‘राष्ट्रीय घर’ (National Home) के निर्माण के लिये ब्रिटेन का आधिकारिक समर्थन व्यक्त किया।
    • यहूदियों के लिये यह उनका पैतृक निवास स्थान था, लेकिन फिलिस्तीनी अरबों ने भी इस ज़मीन पर दावा किया जिसका विरोध किया गया।
  • अरब और यहूदियों के बीच संघर्ष को समाप्त करने में असफल रहे ब्रिटेन ने वर्ष 1948 में फिलिस्तीन से अपने सुरक्षा बलों को हटा लिया और अरब तथा यहूदियों के दावों का समाधान करने के लिये इस मुद्दे को नवनिर्मित संगठन संयुक्त राष्ट्र (UN) के विचारार्थ प्रस्तुत किया।
  • वर्ष 1948 में यहूदियों ने स्वतंत्र इज़राइल की घोषणा कर दी और इज़राइल एक देश बन गया, इसके परिणामस्वरूप आस-पास के अरब राज्यों (इजिप्ट, जॉर्डन, इराक और सीरिया) ने इज़राइल पर आक्रमण कर दिया। युद्ध के अंत में इज़राइल ने संयुक्त राष्ट्र की विभाजन योजना के आदेशानुसार प्राप्त भूमि से  अधिक भूमि पर अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया।

ब्रिटिश के बाद का चरण: 

  • वर्ष 1967 में प्रसिद्ध ‘सिक्स डे वार’ (Six-Day War) हुआ, जिसमें इज़राइली सेना ने गोलन हाइट्स, वेस्ट बैंक तथा पूर्वी यरूशलम को अपने अधिकार क्षेत्र में कर लिया।
  • अधिकांश फिलिस्तीनी शरणार्थी और उनके वंशज गाजा तथा वेस्ट बैंक, साथ ही पड़ोसी जॉर्डन, सीरिया एवं लेबनान में भी रहते हैं।
    • न तो फिलिस्तीनी शरणार्थी और न ही उनके वंशजों को इज़राइल ने उनके घरों में लौटने की अनुमति दी है, इज़राइल का कहना है कि इससे देश का विकास अवरुद्ध होगा और यहूदी राज्य के रूप में देश के अस्तित्व को खतरा होगा।
  • वेस्ट बैंक पर अभी भी इज़राइल का कब्ज़ा है, हालाँकि यह गाजा से बाहर हो गया है, संयुक्त राष्ट्र (UN) अभी भी इस क्षेत्र को कब्ज़े वाले क्षेत्र के हिस्से के रूप में मानता है।
  • इज़राइल पूरे यरुशलम पर अपनी राजधानी के रूप में दावा करता है, जबकि फिलिस्तीनी पूर्वी यरूशलम को भविष्य के फिलिस्तीनी राज्य की राजधानी के रूप में दावा करते हैं।
  • पिछले 50 वर्षों में इज़राइल ने इन क्षेत्रों में बस्तियाँ स्थापित की हैं, जहाँ वर्तमान में 6,00,000 से अधिक यहूदी रहते हैं।
  • फिलिस्तीनियों का कहना है कि ये बस्तियाँ अंतर्राष्ट्रीय कानून के तहत अवैध हैं और शांति के मार्ग में बाधा हैं, लेकिन इज़राइल इससे इनकार करता है।

संयुक्त राज्य अमेरिका के रुख में बदलाव:

  • अमेरिका ने इज़राइल-फिलिस्तीन संघर्ष में पक्षपातपूर्ण भूमिका निभाई है।
  • पिछले कुछ वर्षों में संयुक्त राज्य अमेरिका ने अपने हितों के अनुसार, वेस्ट बैंक के बड़े हिस्से को अलग करने के समर्थन में इज़राइली योजनाओं का समर्थन करके ओस्लो समझौते में एक स्पष्ट बदलाव को चिह्नित किया है।
    • USA की शांति योजना की ज़िम्मेदारी होगी कि इज़राइल एक एकीकृत यरूशलम को अपनी राजधानी के रूप में नियंत्रित करेगा और वेस्ट बैंक में किसी भी बस्ती को हटाने के लिये इसकी आवश्यकता नहीं होगी।
      • यह योजना बिना किसी सार्थक फिलिस्तीनी भागीदारी के तैयार की गई थी और इसे इज़राइल के पक्ष में बनाया गया था।
    • वर्ष 1993 में ओस्लो समझौते के तहत इज़राइल और फिलिस्तीन लिबरेशन ऑर्गनाइज़ेशन (PLO) एक-दूसरे को आधिकारिक तौर पर मान्यता देने और हिंसा को त्यागने के लिये सहमत हुए।
    • ओस्लो समझौते ने फिलिस्तीनी प्राधिकरण की भी स्थापना की, जिसे गाजा पट्टी और वेस्ट बैंक के कुछ हिस्सों में सीमित स्वायत्तता मिली।
  • हालाँकि हाल ही में प्रशासन में बदलाव के बाद USA ने कहा कि वह फिलिस्तीनियों के साथ संबंधों को नवीनीकृत करने की दिशा में आगे बढ़ेगा।

भारत का रुख:

  • भारत ने आज़ादी के पश्चात् लंबे समय तक इज़राइल के साथ कूटनीतिक संबंध नहीं रखे, जिससे यह स्पष्ट था कि भारत, फिलिस्तीन की मांगों का समर्थन करता है, किंतु वर्ष 1992 में इज़राइल के साथ भारत के औपचारिक कूटनीतिक संबंध बने और अब ये रणनीतिक संबंधों में परिवर्तित हो गए हैं तथा अपने उच्च स्तर पर हैं।
  • भारत पहला गैर-अरब देश था, जिसने वर्ष 1974 में फिलिस्तीनी जनता के एकमात्र और कानूनी प्रतिनिधि के रूप में फिलिस्तीनी मुक्ति संगठन को मान्यता प्रदान की थी। 
    • साथ ही भारत वर्ष 1988 में फिलिस्तीनी राज्य को मान्यता देने वाले शुरुआती देशों में शामिल था।
  • वर्ष 2014 में भारत ने गाजा में इज़राइल के मानवाधिकारों के उल्लंघन की जाँच के लिये संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (UNHRC) के प्रस्ताव का समर्थन किया। जाँच का समर्थन करने के बावजूद भारत ने वर्ष 2015 में UNHRC में इज़राइल के खिलाफ मतदान करने से खुद को अलग रखा।
  • भारत ने वर्ष 2018 में लिंक वेस्ट पॉलिसी के एक हिस्से के रूप में इज़राइल और फिलिस्तीन दोनों देशों के साथ पारस्परिक रूप से स्वतंत्र और विशेष संबंध स्थापित किये।
  • जून 2019 में भारत ने संयुक्त राष्ट्र आर्थिक और सामाजिक परिषद (ECOSOC) में इज़राइल द्वारा पेश किये गए एक फैसले के पक्ष में मतदान किया, जिसमें फिलिस्तीनी गैर-सरकारी संगठन को परामर्शात्मक दर्जा देने पर आपत्ति जताई गई थी।
  • अब तक भारत ने फिलिस्तीनी स्वतंत्रता के संबंध में अपने ऐतिहासिक नैतिक समर्थक की छवि को बनाए रखने की कोशिश की है और साथ ही वह इज़राइल के साथ सैन्य, आर्थिक और अन्य रणनीतिक संबंधों में भी संलग्न है।

आगे की रह:

  • इज़राइल-फिलिस्तीन मुद्दे के शांतिपूर्ण तरीके से समाधान के लिये विश्व को एक साथ आने की ज़रूरत है परंतु इज़राइल की सरकार और अन्य शामिल दलों की अनिच्छा ने इस मुद्दे को और अधिक बढ़ा दिया है। इस प्रकार इज़राइल-फिलिस्तीन मुद्दे के प्रति एक संतुलित दृष्टिकोण अरब देशों के साथ-साथ इज़राइल से अनुकूल संबंध बनाए रखने में मदद करेगा।

स्रोत: द हिंदू


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