डेली न्यूज़ (01 Feb, 2020)



ड्रोन द्वारा रासायनिक छिड़काव

प्रीलिम्स के लिये:

कीटनाशी अधिनियम, 1968, केंद्रीय कीटनाशक बोर्ड

मेन्स के लिये:

ड्रोन द्वारा कीटनाशकों के छिड़काव से होने वाली हानि

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्र सरकार ने ड्रोन का प्रयोग कर फसलों पर रासायनिक छिड़काव करने की प्रक्रिया को अवैध बताया है।

मुख्य बिंदु:

  • केंद्र सरकार ने यह स्पष्टीकरण ड्रोन द्वारा हवाई छिड़काव के बढ़ते उपयोग पर और पर्यावरण को होने वाले नुकसान के संदर्भ में एक कार्यकर्त्ता द्वारा दायर याचिका के संदर्भ में दिया है।
  • कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय (Ministry of Agriculture and Farmers’ Welfare) द्वारा नवंबर 2019 में भी इस बात पर प्रकाश डाला गया था कि कृषि-रासायनिक छिड़काव के लिये ड्रोन का उपयोग बढ़ गया है और इससे भविष्य में बहुत सारी पर्यावरणीय समस्याएँ उत्पन्न होंगी।

क्या थी याचिका?

  • ड्रोन द्वारा हवाई छिड़काव कीटनाशकों की प्रभावकारिता को कम करते हुए एक बड़े क्षेत्र को विपरीत रूप से प्रभावित करता है।
  • याचिकाकर्त्ता ने कहा कि केरल के कासरगोड में 25 वर्ष से अधिक समय से एंडोसल्फान (Endosulfan) नामक रसायन के ड्रोन द्वारा हवाई छिड़काव के कारण इस तरह के प्रभावों को देखा गया है।
  • किसानों या अन्य स्प्रेयर द्वारा प्रतिकूल मौसम और हवा की स्थिति को ध्यान में रखे बिना तथा सुरक्षा सावधानियों का पालन किये बिना छिड़काव किया जाता है।
  • अधिक मात्रा में छिड़काव खतरनाक रसायनों को उनकी अधिकतम निर्धारित सीमा से बाहर ले जा सकता है जो कि पर्यावरण तथा कृषि भूमि के लिये हानिकारक सिद्ध हो सकता है।
  • याचिकाकर्त्ता ने कहा कि अभी तक यह वैज्ञानिक रूप से सिद्ध नहीं हो पाया है कि कि ड्रोन सटीक छिड़काव में सहायता करते हैं।
  • ड्रोन और मानवरहित मशीनें कई तरह से खतरनाक रसायनों के छिड़काव के लिये हानिकारक उपकरण सिद्ध हो सकते हैं।
  • कीटनाशी अधिनियम, 1968 (Insecticides Act, 1968) भी फसलों में हवाई छिड़काव की अनुमति नहीं देता है।
  • ड्रोन निर्माताओं, आपूर्तिकर्त्ताओं को कृषि रसायनों के हवाई छिड़काव के लिये ड्रोन का उपयोग करने से बचना होगा।

केंद्र सरकार का पक्ष:

  • केंद्र सरकार ने स्पष्ट किया है कि फसलों में ड्रोन द्वारा रासायनिक छिड़काव करना अवैध है।
  • कीटनाशी अधिनियम 1968 के प्रावधानों के अनुसार, कीटनाशकों के हवाई छिड़काव के लिये केंद्रीय कीटनाशक बोर्ड (Central Insecticides Board-CIB) के अनुमोदन/अनुमति की आवश्यकता होती है।

केंद्रीय कीटनाशक बोर्ड

(Central Insecticides Board-CIB):

  • केंद्रीय कीटनाशी बोर्ड की स्थापना कीटनाशी अधिनियम, 1968 की धारा 4 के तहत की गई है।

इस बोर्ड द्वारा किये जाने वाले कार्य निम्नलिखित हैं-

  • उद्योग (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1951 [Industries (Development and Regulation) Act, 1951] के तहत कीटनाशकों के निर्माण के संदर्भ में केंद्र सरकार को सलाह देना।
  • विषाक्तता के आधार पर कीटनाशकों का वर्गीकरण करते हुए उनके हवाई अनुप्रयोग के लिये उपयुक्त होने का उल्लेख करना।
  • फसलों की कीटनाशकों के प्रति सहिष्णुता सीमा और कीटनाशकों के छिड़काव के बीच न्यूनतम अंतराल के संबंध में जानकारी देना।
  • कीटनाशकों की जीवन के संदर्भ में प्रभावकारिता को निर्दिष्ट करना।
  • अत्यधिक विषाक्त प्रकृति के कीटनाशकों में उचित सांद्रता के साथ मिश्रित रंगों का निर्धारण करना।
  • ऐसे अन्य कार्यों को करना जो अधिनियम या नियमों द्वारा प्रदत्त किसी भी कार्य के पूरक, आकस्मिक या परिणामी प्रवृत्ति के हैं।
  • अभी तक कीटनाशकों के छिड़काव के लिये ड्रोन के उपयोग संबंधी कोई भी अनुमति/अनुमोदन CIB द्वारा नहीं दिया गया है।

एक दूरदर्शी कृषि नीति विषाक्त रसायनों के उपयोग को न्यून करने में अहम योगदान कर सकती है। इसके अतिरिक्त उन स्थानों पर हवाई छिड़काव विधियों को बढ़ावा दिया जाना चाहिये जहाँ पर वे प्रभावी हों। स्पष्ट है कि इससे किसानों और उपभोक्ताओं दोनों को ही लाभ पहुँचेगा।

स्रोत- द हिंदू


गंगा पारिस्थितिकी प्रवाह मानदंड

प्रीलिम्स के लिये:

केंद्रीय जल आयोग

मेन्स के लिये:

केंद्रीय जल आयोग के कार्य

चर्चा में क्यों:

केंद्रीय जल आयोग (Central Water Commission-CWC) के अनुसार, गंगा की सहायक नदियों के ऊपरी बहाव क्षेत्रों में स्थित 11 जल विद्युत परियोजनाओं में से 4 जल विद्युत परियोजनाएँ पारिस्थितिक प्रवाह [Ecological flow (e-flow)] संबंधी मानदंडों का उल्लंघन कर रही हैं।

मुख्य बिंदु:

  • केंद्र सरकार द्वारा लगभग एक वर्ष पहले गंगा और उसकी सहायक नदियों में जल के प्रवाह की मात्रा निर्धारित करने के एक वर्ष बाद भी ये जल विद्युत परियोजनाएँ मानदंडों को पूरा करने में असफल रही हैं।
  • केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित 11 परियोजनाओं में से चार ऐसी परियोजनाएँ है जो मानसून के बाद भी जल प्रवाह मानदंडों को पूरा नही करतीं।

गंगा नदी हेतु निर्धारित प्रवाह/ई-प्रवाह मानदंड:

  • पर्यावरणीय प्रवाह वास्तव में वह स्‍वीकार्य जल प्रवाह की मात्रा है जो किसी नदी को अपेक्षित पर्यावरणीय स्थिति अथवा पूर्व निर्धारित स्थिति में बनाए रखने के लिये आवश्‍यक होता है।
  • शुष्क मौसम के दौरान गंगा के प्रवाह क्षेत्र के ऊपरी हिस्सों अर्थात इसके उदगम स्थल से लेकर हरिद्वार तक मार्च और नवंबर के बीच शुरुआती 10 दिनों में 20 % पारिस्थितिक प्रवाह निर्धारित किया गया है।
  • लीन सीज़न (Lean Season) के दौरान अर्थात अक्तूबर, अप्रैल और मई में ई-प्रवाह औसतन 25% निर्धारित किया गया है।
  • मानसून के महीनों में अर्थात जून से सितंबर के दौरान मासिक औसत का 30% ई-प्रवाह निर्धारित है।

गंगा प्रवाह मानदंड का उल्लंघन करने वाली 4 परियोजनाएँँ निम्न हैं-

  • मनेरी भाली चरण-2 परियोजना (Maneri Bhali Phase- 2 Project), उत्तराखंड- उत्तरकाशी
  • विष्णुप्रयाग जलविद्युत परियोजना (Vishnuprayag Hydroelectric Project), उत्तराखंड- चमोली
  • श्रीनगर जलविद्युत परियोजना (Srinagar Hydroelectric Project), उत्तराखंड
  • पशुलोक बैराज परियोजना (Pashulok Barrage Project), उत्तराखंड -ऋषिकेश
  • विष्णुप्रयाग जलविद्युत परियोजना और श्रीनगर जलविद्युत परियोजना अलकनंदा नदी पर स्थित है।
  • मनेरी भाली चरण 2 परियोजना भागीरथी पर स्थित है।
  • पशुलोक बैराज परियोजना गंगा नदी की मुख्य धारा पर स्थित है।

गंगा प्रवाह के लिये निर्धारित समयसीमा:

  • समयसीमा के निर्धारण हेतु यह अधिसूचना अक्तूबर 2018 में जारी की गई थी। इसके तहत कंपनियों को अपनी परियोजना से संबंधित डिज़ाइन में बदलाव करने के लिये अक्तूबर 2021 तक का समय दिया गया था जिसे बाद में दिसंबर 2019 कर दिया गया था ।
  • सरकार द्वारा सितंबर 2019 तक गंगा प्रवाह मानदंडों के पूरा न होने पर समय सीमा को बढ़ाकर फिर से दिसंबर 2019 से अक्तूबर 2021 तक कर दिया गया।
  • इसके बाद CWC द्वारा विभिन्न परियोजनाओं की समीक्षा की गई।
  • समीक्षा में पाया गया कि अधिकांश पावर प्रोजेक्ट को निर्धारित मानदंडों को पूरा करने के लिये तीन वर्ष की समयसीमा की आवश्यकता नहीं हैं, अर्थात् तीन वर्ष से कम समयावधि में ही पानी के न्यूनतम प्रवाह हेतु उनके डिज़ाइन प्लान को संशोधित किया जा सकता है।

प्रवाह अधिसूचना का महत्त्व

  • बांधों के निर्माण से नदियों में जल की उपलब्धता कम होती है। इससे नदी के मार्ग में तथा तटों पर उपस्थित प्रजातियों के प्राकृतिक अधिवास पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इस अधिसूचना के लागू होने से इसे नियंत्रित किया जा सकेगा।
  • नदियों में वर्ष भर पानी की उपलब्धता से जलीय पारिस्थितिकी का विकास होगा क्योंकि नदियों के जल स्तर में कमी से नदी के किनारे स्थित स्थानीय गैर-जलीय प्रजातियों का विस्तार होता है तथा जलीय जीवों के अस्तित्व को खतरा पहुँचता है।
  • इससे जलीय पारिस्थितिकी में उपस्थित खाद्य शृंखला तथा पर्यावरण संतुलन का विकास होगा।
  • इस अधिसूचना द्वारा जलीय पारिस्थितिकी तथा जैव विविधता के संरक्षण में मदद मिलेगी।

मानकों के पूरा न होने की स्थिति पर:

मानकों का निर्धारित समयावधि में पूरा न होने की स्थिति में सरकार परियोजना को संचालित करने वाली कंपनी को परियोजना बंद करने हेतु नोटिस जारी कर सकती है या जुर्माना आरोपित कर सकती है।

केंद्रीय जल आयोग:

  • केंद्रीय जल आयोग जल संसाधन के क्षेत्र में भारत का एक प्रमुख तकनीकी संगठन है।
  • वर्तमान में यह जल शक्ति मंत्रालय (Ministry of Jal Shakti ), जल संसाधन विभाग (Department of Water Resources) और नदी विकास एवं गंगा कायाकल्प विभाग ( River Development and Ganga Rejuvenation) के साथ मिलकर भारत सरकार के संलग्न कार्यालय के रूप में कार्य करता है।
  • इसका मुख्य कार्य बाढ़ नियंत्रण, सिंचाई, नेविगेशन, पेयजल आपूर्ति के संबंध में राज्य सरकारों को योजना, नियंत्रण और संरक्षण के लिये परामर्श देना है।
  • आयोग देश में जल संसाधनों के उचित उपयोग के लिये सामान्य जानकारियाँ भी उपलब्ध करता हैं।
  • इसकी स्थापना वर्ष 2001 में की गई थी तथा इसका मुख्यालय नई दिल्ली में स्थित है।

स्रोत: द हिंदू


अग्रिम ज़मानत

प्रीलिम्स के लिये:

अग्रिम ज़मानत, सर्वोच्च न्यायालय, भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता

मेन्स के लिये:

अग्रिम ज़मानत से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने अपने एक निर्णय में कहा कि अग्रिम ज़मानत (Anticipatory Bail) के लिये कोई समयसीमा निर्धारित नहीं की जा सकती है और यह मुकदमे के अंत तक भी जारी रह सकती है।

महत्त्वपूर्ण बिंदु:

  • सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार, अग्रिम या पूर्व-गिरफ्तारी ज़मानत की सुरक्षा को किसी भी समयसीमा या निश्चित अवधि तक सीमित नहीं किया जा सकता है क्योंकि इससे व्यक्ति की व्यक्तिगत स्वतंत्रता बाधित होगी।
  • जस्टिस अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली पाँच न्यायाधीशों की पीठ ने यह स्वीकार किया है कि अग्रिम ज़मानत प्रभावशाली व्यक्तियों को झूठे मामलों में फँसाने से रोकने में मदद करती है।
  • न्यायालय के अनुसार, वर्तमान समय में बढ़ती राजनैतिक प्रतिद्वंदिता एवं झूठी आपराधिक शिकायतों की बढ़ती प्रवृत्ति के कारण अग्रिम ज़मानत लोगों के सम्मान की रक्षा हेतु अत्यंत महत्त्वपूर्ण होती जा रही है।

अग्रिम ज़मानत क्या है?

  • अग्रिम ज़मानत (Anticipatory bail) न्यायालय का वह निर्देश है जिसमें किसी व्यक्ति को उसके गिरफ्तार होने के पहले ही ज़मानत दे दी जाती है अर्थात् आरोपित व्यक्ति को इस मामले में गिरफ्तार नहीं किया जाएगा।
  • भारत के आपराधिक कानून के अंतर्गत गैर-ज़मानती अपराध के आरोप में गिरफ्तार होने की आशंका पर कोई भी व्यक्ति अग्रिम ज़मानत के लिये आवेदन कर सकता है।
  • गौरतलब है कि न्यायालय सुनवाई के बाद सशर्त अग्रिम ज़मानत दे सकती है तथा यह ज़मानत पुलिस की जाँच होने तक जारी रह सकती है।
  • अग्रिम ज़मानत का प्रावधान भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 438 में किया गया है। ध्यातव्य है कि भारतीय विधि आयोग ने अपने 41वें प्रतिवेदन में इस प्रावधान को दंड प्रक्रिया संहिता में सम्मिलित करने की अनुशंसा (सिफारिश) की थी।

Advance-bail

अग्रिम ज़मानत के पक्ष में तर्क

  • राजनीति में प्रभावशाली व्यक्तियों द्वारा अपने प्रतिद्वंदियों को अपमानित करने के लिये झूठे आरोपों में फँसाने एवं गिरफ्तार करवाने संबंधी घटनाएँ प्रायः देखी जाती हैं। इस प्रकार इस प्रावधान के माध्यम से झूठे आरोपों में फँसाए गए लोगों को राहत दी जा सकती है तथा उनके सम्मान की रक्षा की जा सकती है।
  • वर्ष 1980 में गुरबख्श सिंह सिब्बिया बनाम पंजाब राज्य के मामले में सुप्रीम कोर्ट की पाँच न्यायाधीशों की पीठ ने कहा था कि धारा 438 (1) की व्याख्या संविधान के अनुच्छेद 21 (प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता) को ध्यान में रखकर की जानी चाहिये।

अग्रिम ज़मानत के विपक्ष में तर्क

  • आलोचकों का मानना है कि यह प्रावधान प्रभावशाली लोगों के लिये मामले को अनायास ही खींचने का एक प्रमुख साधन बन गया है।
  • आलोचकों का यह भी तर्क है कि अग्रिम ज़मानत प्राप्त प्रभावशाली व्यक्ति मामले से संबंधित सबूतों से छेड़छाड़ कर सकते हैं।

अग्रिम ज़मानत के लिये शर्तें

  • धारा 438 में निहित प्रावधान केवल सत्र न्यायालय और उच्च न्यायालय को ही अग्रिम ज़मानत देने का अधिकार देता है।
  • धारा 438 की उपधारा (2) में अग्रिम ज़मानत देने से संबंधित शर्तों का उल्लेख है जो इस प्रकार हैं:
    • आरोपित व्यक्ति किसी भी पुलिस अधिकारी द्वारा पूछताछ के लिये सदैव उपलब्ध रहेगा।
    • आरोपित व्यक्ति मामले से संबंधित किसी भी साक्ष्य से छेड़छाड़ या व्यक्ति को धमकी, अभद्रता या अन्य माध्यमों से प्रभावित करने की कोशिश नहीं करेगा।
    • आरोपित व्यक्ति न्यायालय की अनुमति के बिना भारत से बाहर नहीं जाएगा।
    • धारा 438 की उपधारा (3) में निहित अन्य शर्तें।
  • सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार, अग्रिम ज़मानत से संबंधित याचिका ठोस सबूतों पर आधारित होनी चाहिये न कि अस्पष्ट या सामान्य आरोपों पर तथा आवेदन में अपराध से संबंधित सभी आवश्यक तथ्य होने चाहिये और आवेदक की यथोचित गिरफ्तारी क्यों न हो इसका भी जवाब स्पष्ट रूप में आवेदन में होना चाहिये।
  • इस प्रकार उपर्युक्त शर्तों को पूरा करने के पश्चात् ही न्यायालय द्वारा अग्रिम ज़मानत दी जा सकती है।

आगे की राह

  • यह ध्यान देने की आवश्यकता है कि इस प्रावधान का उपयोग प्रभावशाली वर्ग द्वारा स्वयं को बचाने के लिये एक आवरण के रूप में न होकर विशेष परिस्थितियों में निर्दोष लोगों की रक्षा के लिये होना चाहिये।
  • ज़मानत की शर्तों का उल्लंघन होने पर पुलिस को संबंधित व्यक्ति को गिरफ्तार करने का अधिकार दिया जाना चाहिये।

स्रोत: द हिंदू, इंडियन एक्सप्रेस


OCI कार्ड धारक और मौलिक अधिकार

प्रीलिम्स के लिये:

OCI, सूचना का अधिकार, विदेशी अंशदान विनियमन अधिनियम, 2010, मौलिक अधिकार

मेन्स के लिये:

मौलिक अधिकार से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत सरकार ने दिल्ली उच्च न्यायालय में सूचना के अधिकार के तहत दायर एक याचिका के जवाब में कहा है कि भारत के समुद्रपारीय नागरिकों (Overseas Citizen of India- OCI) को मौलिक अधिकार प्राप्त नहीं हैं।

मुख्य बिंदु

  • सरकार की यह प्रतिक्रिया रैनबैक्सी के पूर्व कार्यकारी अधिकारी द्वारा सूचना के अधिकार (Right To Information- RTI) के तहत दायर याचिका के संदर्भ में आई है।

क्या है याचिका?

केंद्र सरकार का पक्ष:

  • केंद्र सरकार ने दिल्ली उच्च न्यायालय में अपना जवाब दाखिल करते हुए कहा है कि OCI कार्ड-धारकों को नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 7B के अंतर्गत प्रदत्त अधिकार केवल वैधानिक अधिकार हैं न कि संवैधानिक या मौलिक।
  • केंद्र सरकार ने यह जवाब OCI कार्ड-धारक को भारत में धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार के संबंध में नहीं दिया है, हालाँकि सरकार ने यह कहा है कि उन्हें कोई मौलिक अधिकार प्राप्त नहीं है।
  • ध्यातव्य है कि सरकार का यह रुख वर्ष 2018 में दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा OCI कार्ड-धारकों के संदर्भ में दिये गए उस निर्णय, जिसमें उच्च न्यायालय ने कहा था कि OCI कार्ड-धारकों को भी भारतीय नागरिकों की भाँति समानता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार है, के बावजूद है।

इस संदर्भ में पूर्व के घटनाक्रम

  • वर्ष 2018 में दिल्ली उच्च न्यायालय ने डॉ. क्रिस्टो थॉमस फिलिप बनाम भारत संघ एवं अन्य (Dr. Christo Thomas Philip vs Union Of India & Others) मामले में डॉ. क्रिस्टो थॉमस फिलिप के OCI कार्ड को बहाल करते हुए कहा था कि एक विदेशी नागरिक को भी संविधान के तहत व्यक्तियों को दिये गए मौलिक अधिकार प्राप्त हैं।
  • ध्यातव्य है कि भारत में मिशनरी गतिविधियों में शामिल होने के कारण डॉ. फिलिप के OCI कार्ड को सरकार ने रद्द कर दिया था।

भारत में नागरिकों और विदेशियों को प्राप्त मौलिक अधिकार

  • भारतीय संविधान में प्राप्त मौलिक अधिकारों में से कुछ अधिकार केवल भारतीय नागरिकों तक सीमित हैं जबकि कुछ अधिकार भारतीय नागरिकों के साथ विदेशियों को भी प्रदान किये गए हैं।
केवल भारतीय नागरिकों को प्राप्त मौलिक अधिकार भारतीय नागरिकों के साथ विदेशियों को भी प्राप्त मौलिक अधिकार

• अनुच्छेद 15: धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर विभेद से निषेध।
• अनुच्छेद 16: लोक नियोजन में अवसर की समानता।
• अनुच्छेद 19: वाक्- स्वातंत्र्य आदि विषयक कुछ अधिकारों का संरक्षण।
• अनुच्छेद 29: अल्पसंख्यक वर्गों के हितों का संरक्षण।
• अनुच्छेद 30: शिक्षण संस्थाओं की स्थापना व प्रशासन के संदर्भ में अल्पसंख्यक वर्गों का अधिकार।

• अनुच्छेद 14: विधि के समक्ष समता।
• अनुच्छेद 20: अपराधों के लिये दोषसिद्धि के संबंध में संरक्षण।
• अनुच्छेद 21: प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता का अधिकार।
• अनुच्छेद 21A: शिक्षा का अधिकार
(6-14 वर्ष की आयु तक के सभी बच्चों के लिये निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा)।
• अनुच्छेद 22: कुछ मामलों में गिरफ्तारी और निवारक निरोध के खिलाफ संरक्षण।
• अनुच्छेद 23: बलात् श्रम व मानव के दुर्व्यापार का निषेध।
• अनुच्छेद 24: जोखिमपूर्ण कार्यों में बाल श्रम आदि का निषेध।
• अनुच्छेद 25-28: धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार।

स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस


ब्रेक्ज़िट और उसके निहितार्थ

प्रीलिम्स के लिये:

ब्रेक्ज़िट

मेन्स के लिये:

ब्रेक्ज़िट के वैश्विक प्रभाव

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ब्रिटेन औपचारिक तौर पर 28 सदस्यीय यूरोपीय यूनियन (European Union- EU) से अलग हो गया है।

मुख्य बिंदु:

  • ब्रिटेन 28 सदस्यीय यूरोपीय यूनियन के समूह को छोड़ने वाला पहला देश बन गया है।
  • 23 जनवरी, 2020 को ब्रिटिश संसद और 29 जनवरी, 2020 को यूरोपीय यूनियन की संसद ने ब्रेक्ज़िट (Brexit) समझौते पर अपनी अनुमति दी।

पृष्ठभूमि:

  • ब्रिटेन सबसे पहले वर्ष 1973 में यूरोपियन इकोनॉमिक कम्युनिटी (European Economic Community-EEC) में शामिल हुआ था।
  • EU में शामिल होने के कुछ ही वर्षों में ब्रिटेन के कुछ नेताओं ने इसका विरोध शुरू कर दिया और यह मांग की कि जनमत संग्रह (Referendum) के माध्यम से तय किया जाए कि ब्रिटेन EU में रहेगा या नहीं।
  • लिस्बन संधि का अनुच्छेद 50 यूरोपीय संघ के मौजूदा सदस्यों को संघ छोड़ने का अधिकार देता है।
  • अगले 30 वर्षों तक इस क्षेत्र में कोई महत्त्वपूर्ण विकास नहीं हुआ, परंतु वर्ष 2010 में घटनाक्रम में कुछ ऐसे बदलाव हुए कि जनमत संग्रह की मांग तेज़ होने लगी।
  • ब्रिटेन की कंज़र्वेटिव पार्टी, जो कि वर्ष 2010 से 2015 के बीच सत्ता में रही, ने एक चुनावी वादा किया कि यदि कंज़र्वेटिव पार्टी पुनः सत्ता में आती है तो वह सर्वप्रथम जनमत संग्रह कराएगी कि ब्रिटेन को EU में रहना चाहिये या नहीं।
  • चुनाव जीतने के बाद डेविड कैमरून पर वादा पूरा करने का दबाव पड़ने लगा और जून 2016 में ब्रिटेन में जनमत संग्रह कराया गया जिसमें 52 प्रतिशत लोगों ने ब्रेक्ज़िट के पक्ष में मतदान किया, जबकि 48 प्रतिशत लोगों ने ब्रेक्ज़िट के विपक्ष में मतदान किया और कंज़र्वेटिव पार्टी के लिये ब्रेक्ज़िट का रास्ता साफ हो गया

ब्रेक्ज़िट की प्रक्रिया:

  • जून 2016 में ब्रेक्ज़िट के लिये ब्रिटेन में जनमत संग्रह कराया गया था। इसमें 71 प्रतिशत मतदान के साथ 30 मिलियन से अधिक लोगों ने मतदान किया था और इस प्रकार 52 फीसदी लोगों ने ब्रेक्ज़िट के पक्ष में मतदान किया।

क्या है ब्रेक्ज़िट?

  • यह मुख्यत: दो शब्दों Britain और Exit से मिलकर बना है जिसका अर्थ है ब्रिटेन का यूरोपीय संघ (European Union-EU) से बाहर निकलना।
  • ब्रिटेन की जनता ने ब्रिटेन की पहचान, आज़ादी और संस्कृति को बनाए रखने के उद्देश्य से यूरोपीय संघ से बाहर जाने का फैसला लिया।
  • 27 मार्च, 2017 को ब्रिटिश सरकार ने यूरोपीय यूनियन से अलग होने की प्रक्रिया शुरू की।
  • यूरोपीय यूनियन से ब्रिटेन के अलग होने की समयसीमा को पहली बार 29 मार्च, 2019 से बढ़ाकर 12 अप्रैल, 2019 किया गया।
  • उसके बाद इस समयसीमा को 31 अक्तूबर 2019 और फिर 31 जनवरी, 2020 तक बढ़ाया गया।
  • 23 जनवरी, 2020 को ब्रिटिश संसद और 29 जनवरी, 2020 को यूरोपीय यूनियन की संसद ने ब्रेक्ज़िट समझौते पर अनुमति दी।
  • यूरोपीय यूनियन से ब्रिटेन के अलग होने की पूरी प्रक्रिया में एक वर्ष का समय लगेगा।
  • इस अवधि के दौरान दोनों पक्ष अपने भावी संबंधों की रूपरेखा को अंतिम रुप देंगे।

ब्रेक्ज़िट का प्रभाव:

ब्रिटेन पर:

  • EU हर वर्ष सदस्यता शुल्क के तौर पर ब्रिटेन से कई बिलियन पाउंड लेता है तथा बदले में उसे बहुत कम राशि मिलती है। इस समझौते से ब्रिटेन इस राशि को देने से मुक्त हो जाएगा।
  • ब्रिटेन में कोई भी प्रशासनिक कार्य करने के दौरान आने वाली अड़चनें समाप्त होंगी।
  • ब्रिटेन को अपने अधिकारों और स्वयं के कानून बनाने में बाधाएँ उत्पन्न नहीं होंगी।
  • ब्रिटेन को अपनी खुद की इमीग्रेशन नीति तय करने का अधिकार होगा।\
  • ब्रेक्ज़िट के कारण पौंड के मूल्य में गिरावट भी आ सकती है
  • ब्रिटेन के अलग होने से EU को आर्थिक तौर पर नुकसान का सामना करना पड़ेगा। उसकी अर्थव्यवस्था में लगभग 15 प्रतिशत की कमी आ जाएगी।

भारत पर प्रभाव:

  • सकारात्मक प्रभाव:
    • दीर्घकाल में ब्रेक्ज़िट भारत-ब्रिटेन संबंधों को मजबूत करेगा क्योंकि ब्रिटेन यूरोपीय संघ के बाज़ारों तक अपनी पहुँच के नुकसान की क्षतिपूर्ति करना चाहेगा।
    • भारत के एक निर्यातक देश की तुलना में अधिक आयातक देश होने के कारण यह समझौता भारत के लिये सकारात्मक हो सकता है।
    • पौंड के मूल्य में गिरावट के कारण कई कंपनियाँ ब्रिटेन में संपत्ति खरीदने में सक्षम हो सकेंगी।
    • ब्रेक्ज़िट समझौते जैसे अशांत समय में निवेशकों के लिये भारत स्थिरता और विकास दोनों पैमानों पर सुरक्षित गंतव्य बनकर उभर सकता है।
    • ब्रेक्ज़िट भारत और ब्रिटेन के बीच पारस्परिक व्यापारिक संबंधों को बढ़ावा दे सकता है क्योंकि अब ब्रिटेन भारत के साथ द्विपक्षीय व्यापार समझौते पर चर्चा के लिये स्वतंत्र होगा।
    • ब्रिटेन भारतीय कंपनियों के लिये कर ढाँचे को सरल बनाकर, विनिमय दर घटाकर एवं अन्य वित्तीय सुविधाएँ प्रदान कर अपने यहाँ निवेश को प्रोत्साहित कर सकता है।
  • नकारात्मक प्रभाव:
    • विदेशी पूंजी निकालने और डॉलर की कीमत बढ़ने से रुपए का मूल्य गिर सकता है।
    • अल्पावधि में भारतीय शेयर बाज़ार में तीव्र गिरावट आ सकती है।
    • पौंड का गिरता हुआ मूल्य कई मौजूदा अनुबंधों के लिये घाटे का सौदा हो सकता है।
    • देश के सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र पर अल्पकाल में नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
    • पौंड की कीमतों में गिरावट के कारण ब्रिटेन से होने वाले भारतीय निर्यात को नुकसान होगा।
    • यूरोपीय संघ में प्रवेश के लिये ब्रिटेन सदैव भारत के लिये प्रवेश द्वार रहा है, अतः ब्रेक्ज़िट के बाद भारतीय कंपनियों के लिये यह अल्पकालिक संकट उत्पन्न करेगा।
    • भारतीय आईटी कंपनियों को अलग-अलग कार्यालय स्थापित करने और यूरोप तथा ब्रिटेन के लिये अलग-अलग टीमें नियुक्त करने की आवश्यकता पड़ेगी जिससे आईटी कंपनियों पर भारी वित्तीय बोझ पड़ेगा।

अन्य वैश्विक प्रभाव:

  • ब्रेक्ज़िट समझौते से निर्यात के क्षेत्र में अग्रणी देश प्रभावित हो सकते हैं।
  • ब्रिटेन का सबसे बड़ा व्यापारिक सहयोगी होने के कारण सर्वाधिक प्रभाव अमेरिका पर देखने को मिल सकता है।
  • हालाँकि वैश्विक स्तर पर इस समझौते का प्रभाव तात्कालिक रूप से सैद्धांतिक ही होगा लेकिन व्यावहारिक रूप से अभी किसी भी अर्थव्यवस्था पर इसका प्रभाव पड़ने की आशंका नगण्य है।

स्रोत- द हिंदू


केला क्लस्टर

प्रीलिम्स के लिये:

कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण, जवाहरलाल नेहरू पोर्ट, कृषि निर्यात नीति

मेन्स के लिये:

किसानों की आय दोगुनी करने से संबंधित मुद्दा

चर्चा में क्यों?

भारत सरकार ने कृषि निर्यात नीति- 2018 (Agri Export Policy-2018) के तहत आंध्र प्रदेश के अनंतपुर और कडप्पा ज़िलों को केला क्लस्टर (Banana Cluster) के तौर पर अधिसूचित किया है।

Andhra-Pradesh

मुख्य बिंदु:

  • आंध्र प्रदेश सरकार, निर्यातक कंपनी तथा कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (Agricultural and Processed Food Products Export Development Authority-APEDA), ने अनंतपुर ज़िले के ताड़िपत्री रेलवे स्टेशन से 890 टन उच्च गुणवत्ता केलों के 43 वातानुकूलित कंटेनरों को ट्रेन के द्वारा वैश्विक बाज़ारों में निर्यात करने के लिये मुंबई के जवाहरलाल नेहरू पोर्ट भेजा।
  • निर्यातक कंपनी केला उत्पादन की गुणवत्ता बढ़ाने के लिये आंध्र प्रदेश के केला उत्पादकों को विशेषज्ञता एवं आधुनिक तकनीक प्रदान कर रही है।
    • इसके तहत अनंतपुर और इसके आसपास के ज़िलों में फलों के उत्पादन एवं उनके निर्यात को बढ़ावा देने के उद्देश्य से 1800 हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में केले की खेती करने वाले 500 से अधिक किसानों को प्रशिक्षित किया गया है।

कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण

(Agricultural and Processed Food Products Export Development Authority-APEDA):

  • इसकी स्थापना भारत सरकार द्वारा कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण अधिनियम, 1985 के अंतर्गत की गई थी।
  • इस प्राधिकरण ने ‘संसाधित खाद्य निर्यात प्रोत्साहन परिषद’ का स्थान लिया।
  • यह वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय (Ministry of Commerce & Industry) के अधीन कार्य करता है।
  • इस प्राधिकरण का मुख्यालय नई दिल्ली में है।
  • ट्रेन के द्वारा कंटेनरों को मुंबई के जवाहरलाल नेहरू पोर्ट तक भेजने से समय और ईंधन दोनों की बचत होगी क्योंकि अभी तक कंटेनरों को सड़क के माध्यम से लगभग 900 किमी. दूर जवाहरलाल नेहरू पोर्ट (मुंबई) भेजा जाता था।
  • राज्य सरकार ने आंध्र प्रदेश से 30,000 मीट्रिक टन फलों के निर्यात का लक्ष्य तय कर रखा है और स्थानीय किसानों के साथ मिलकर उत्पादकता बढ़ाने, उपज की गुणवत्ता, उपज का रखरखाव एवं पैकेजिंग तथा किसानों को बाज़ार से जोड़ने के लिये छह प्रमुख कॉर्पोरेट कंपनियों के साथ मिलकर काम कर रही है।

कृषि निर्यात नीति- 2018

(Agri Export Policy-2018):

  • कृषि निर्यात नीति, 2018 का उद्देश्य वर्ष 2022 तक कृषि निर्यात को 60 अरब अमेरिकी डॉलर से अधिक करना है।
  • कृषि निर्यात नीति से चाय, कॉफी और चावल जैसे कृषि उत्पादों के निर्यात को बढ़ावा मिलने के साथ-साथ यह वैश्विक कृषि व्यापार में देश की हिस्सेदारी को बढ़ाएगी।
  • कृषि निर्यात नीति में की गईं सिफारिशों को दो श्रेणियों में व्यवस्थित किया गया है-

सामरिक (Strategic): सामरिक श्रेणी में तहत निम्नलिखित उपाय शामिल होंगे-

• नीतिगत उपाय
• अवसंरचना एवं रसद समर्थन
• निर्यात को बढ़ावा देने के लिये समग्र दृष्टिकोण
• कृषि निर्यात में राज्य सरकारों की बड़ी भागीदारी
• मूल्य वर्द्धित निर्यात को बढ़ावा देना
• ‘ब्रांड इंडिया’ का विपणन और प्रचार

परिचालन (Operational): परिचालन के तहत निम्नलिखित कार्य शामिल होंगे-

• उत्पादन और प्रसंस्करण में निजी निवेश को आकर्षित करना
• मज़बूत नियमों की स्थापना
• अनुसंधान एवं विकास
• विविध

आगे की राह:

  • आंध्रप्रदेश सरकार, निर्यातक कंपनी एवं कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण के संयुक्त प्रयासों से भारत को केले के विश्व व्यापार में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए एक अच्छा अवसर प्राप्त होने की संभावना है।

स्रोत: PIB


आर्थिक सर्वेक्षण (सामान्य जानकारी)

प्रीलिम्स के लिये:

आर्थिक सर्वेक्षण, सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय, आर्थिक मामलों का विभाग, GDP, GVA

मेन्स के लिये:

भारत की आर्थिक स्थिति से संबंधित मुद्दे, राजकोषीय नीति एवं सरकारी रणनीति

चर्चा में क्यों?

वित्त मंत्री द्वारा 31 जनवरी, 2020 को वित्तीय वर्ष 2019-20 के लिये आर्थिक सर्वेक्षण (Economic Survey) संसद के समक्ष पेश किया गया।

महत्त्वपूर्ण बिंदु:

  • केंद्रीय बजट पेश होने से एक दिन पहले देश के मुख्य आर्थिक सलाहकार (Chief Economic Adviser- CEA) द्वारा आर्थिक सर्वेक्षण जारी किया जाता है।

आर्थिक सर्वेक्षण क्या है?

  • आर्थिक सर्वेक्षण सरकार द्वारा पिछले एक साल में अर्थव्यवस्था की स्थिति पर प्रस्तुत एक रिपोर्ट है जो प्रमुख आर्थिक चुनौतियों का अनुमान लगाती है और उनके संभावित समाधान प्रस्तुत करती है।
  • इस दस्तावेज़ को आर्थिक मामलों के विभाग (Department of Economic Affairs- DEA) के आर्थिक प्रभाग द्वारा CEA के मार्गदर्शन में तैयार किया जाता है। ध्यातव्य है कि वर्तमान में भारत के मुख्य आर्थिक सलाहकार डॉ. कृष्णमूर्ति सुब्रमण्यन (Dr. Krishnamurthy Subramanian) हैं।
  • आर्थिक सर्वेक्षण तैयार होने के बाद इसे वित्त मंत्री द्वारा अनुमोदित किया जाता है।
  • पहला आर्थिक सर्वेक्षण वर्ष 1950-51 में प्रस्तुत किया गया था। ध्यातव्य है कि वर्ष 1964 तक इस दस्तावेज़ को बजट के साथ प्रस्तुत किया जाता था किंतु अब बजट प्रस्तुत करने के एक दिन पहले प्रस्तुत किया जाता है।
  • पिछले कुछ वर्षों से आर्थिक सर्वेक्षण को दो खंडों में प्रस्तुत किया जाता है। उदाहरण के लिये 2019-20 में खंड-1 (Volume-1) में भारतीय अर्थव्यवस्था के सामने आने वाली चुनौतियों के अनुसंधान और विश्लेषण पर ध्यान केंद्रित किया गया है, जबकि खंड-2 (Volume 2) में अर्थव्यवस्था के सभी प्रमुख क्षेत्रों को कवर करते हुए वित्तीय वर्ष की अधिक विस्तृत समीक्षा की गई है।

आर्थिक सर्वेक्षण क्यों महत्वपूर्ण है?

  • यह देश की आर्थिक स्थिति पर सरकार के कदम का एक विस्तृत आधिकारिक संस्करण प्रदान करता है जिससे यह स्पष्ट होता है कि सरकार देश की समस्याओं से निपटने की दिशा में क्या कदम उठा रही है।
  • इसका उपयोग कुछ प्रमुख चिंताओं या फोकस क्षेत्रों को उजागर करने के लिये भी किया जा सकता है। उदाहरण के लिये वर्ष 2018 में तत्कालीन CEA द्वारा प्रस्तुत सर्वेक्षण में लैंगिक समानता पर ज़ोर दिया गया था और इसलिये इसे संकेत के रूप में गुलाबी रंग में प्रस्तुत किया गया था।

क्या यह सरकार के लिये बाध्यकारी है?

  • सरकार संवैधानिक रूप से आर्थिक सर्वेक्षण प्रस्तुत करने या इसमें की गई सिफारिशों का पालन करने के लिये बाध्य नहीं है। अर्थात् इसमें की गई सिफारिशों को मानने से सरकार मना कर सकती है।
  • किंतु इसके महत्त्व को देखते हुए सरकार इसे प्रतिवर्ष जारी करती है।

स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस


आर्थिक समीक्षा 2019-20

प्रीलिम्स के लिये:

आर्थिक समीक्षा के महत्त्वपूर्ण बिंदु, शब्दावलियाँ

मेन्स के लिये:

आर्थिक समीक्षा

चर्चा में क्यों?

केंद्रीय वित्त एवं कॉरपोरेट कार्य मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण द्वारा 31 जनवरी, 2020 को संसद में आर्थिक समीक्षा 2019-20 पेश की गई।

महत्त्वपूर्ण बिंदु:

उद्यमिता, धन सृजन एवं बाज़ार अनुकूलन

  • उदारीकरण के बाद भारत की GDP और प्रति व्‍यक्ति GDP में उल्‍लेखनीय वृद्धि के साथ-साथ धन सृजन भी हो रहा है।
  • अदृश्‍य सहयोग को प्रोत्साहित करने की ज़रूरत है, जो वर्ष 2011 से वर्ष 2013 तक की अवधि के दौरान वित्तीय सेक्‍टर के प्रदर्शन से परिलक्षित होता है। आर्थिक समीक्षा में भारत को 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्‍यवस्‍था बनाने हेतु बाज़ार के अदृश्‍य सहयोग की मज़बूती और आश्वासन का उल्लेख किया गया है। व्यापार अनुकूल नीतियों को बढ़ावा देकर अदृश्‍य सहयोग को मज़बूत करना एवं नीतियाँ ऐसी होनी चाहिये जो डेटा एवं प्रौद्यो‍गिकी के उपयोग के ज़रिये पारदर्शिता को सुनिश्चित करे।
  • 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्‍यवस्‍था बनने संबंधी भारत की आकांक्षा प्रतिस्पर्द्धी बाज़ारों की क्षमता और स्वस्थ बाज़ार प्रतिस्पर्द्धा जैसे बिंदुओं पर निर्भर करती है।
  • विश्व‍ बैंक के अनुसार, नई गठित कंपनियों की संख्‍या के मामले में वैश्विक स्तर पर भारत तीसरे पायदान पर है तथा वर्ष 2014 के बाद से ही भारत में नई कंपनियों के गठन में उल्‍लेखनीय बढ़ोतरी हुई है।
    • वर्ष 2014 से लेकर वर्ष 2018 तक की अवधि के दौरान औपचारिक क्षेत्र में नई कंपनियों की संचयी वार्षिक वृद्धि दर 12.2% रही।
    • सेवा क्षेत्र में गठित नई कंपनियों की संख्‍या विनिर्माण, अवसंरचना या कृषि क्षेत्र में गठित नई कंपनियों की तुलना में काफी अधिक है।
    • किसी भी ज़िले में भौतिक अवसंरचना की गुणवत्ता, कारोबार में सुगमता और लचीले श्रम कानून का नई कंपनियों के गठन पर काफी असर होता है। किसी भी ज़िले में साक्षरता और शिक्षा की उचित व्यवस्था से स्‍थानीय स्‍तर पर उद्यमिता को काफी बढ़ावा मिलता है।
    • आर्थिक समीक्षा में यह सुझाव दिया गया है कि कारोबार में सुगमता बढ़ाने और लचीले श्रम कानूनों को लागू करने से ज़िलों और राज्‍यों में अधिकतम रोज़गारों का सृजन हो सकता है।

खाद्यान्‍न बाज़ार में हस्‍तक्षेप

  • खाद्यान्‍न बाज़ार में सरकारी हस्‍तक्षेप के कारण सरकार गेहूँ और चावल की सबसे बड़ी खरीदार होने के साथ ही सबसे बड़ी जमाखोर भी हो गई है।
  • खाद्यान्न नीति को अधिक गतिशील बनाना तथा अनाजों के वितरण के लिये पारंपरिक पद्धति के स्‍थान पर नकद अंतरण, फूड कूपन तथा स्‍मार्ट कार्ड का इस्‍तेमाल करना।

कर्ज़ माफी

  • पूरी तरह से कर्ज़ माफी की सुविधा वाले लाभार्थी कम खपत, कम बचत, कम निवेश करते हैं जिससे आंशिक रूप से कर्ज़ माफी वाले लाभार्थियों की तुलना में उनका उत्‍पादन भी कम होता है। इसके अतिरिक्त कर्ज़ माफी का लाभ प्राप्‍त करने वाले किसान औपचारिक ऋण प्रवाह को कम करते हैं और इस तरह कर्ज़ माफी के औचित्‍य को खत्‍म कर देते हैं।
  • ऐसी परिस्थितियों में आर्थिक समीक्षा में यह सुझाव दिया गया कि सरकार को अपने अनावश्‍यक हस्‍तक्षेप वाले बाज़ार क्षेत्रों की व्‍यवस्थित तरीके से जाँच करनी चाहिये।

विकास और रोज़गार सृजन

  • आर्थिक समीक्षा के अनुसार, भारत के पास श्रम आधारित निर्यात को बढ़ावा देने के लिये चीन के समान अभूतपूर्व अवसर हैं।
  • भारत में एसेम्‍बल इन इंडिया और मेक इन इंडिया योजना को एक साथ मिलाने से निर्यात बाज़ार में भारत की हिस्‍सेदारी वर्ष 2025 तक 3.5% तथा वर्ष 2030 तक 6% हो जाएगी।
  • भारत की ओर से निर्यात किये गए कुल उत्‍पादों में 10.9% जबकि विनिर्माण उत्‍पादों के निर्यात में 13.4% की वृद्धि हुई। कुल आयातित उत्‍पादों में 8.6% तथा विनिर्माण उत्‍पादों के आयात में 12.7% की बढ़ोतरी हुई।

कारोबार सुगमता

  • विश्‍व बैंक के कारोबारी सुगमता रैंकिंग में भारत वर्ष 2014 में जहाँ 142वें स्‍थान पर था, वहीं वर्ष 2019 में वह 63वें स्‍थान पर पहुँच गया। हालाँकि इसके बावजूद भारत कारोबार शुरू करने की सुगमता के मामले में अभी भी संपत्ति के रजिस्‍ट्रेशन, करों का भुगतान और अनुबंधों को लागू करने के पैमाने पर काफी पीछे है।
  • कारोबारी सुगमता को बेहतर बनाने के लिये दिये गए सुझावों में वाणिज्‍य और उद्योग मंत्रालय, केंद्रीय अप्रत्‍यक्ष कर और सीमा शुल्‍क बोर्ड, जहाज़रानी मंत्रालय और अन्‍य बंदरगाह प्राधिकरणों के बीच करीबी सहयोग स्थापित करना शामिल है।
  • सुझाव में यह भी कहा गया है कि पर्यटन या विनिर्माण जैसे क्षेत्रों में अवरोध खड़े करने वाली नियामक प्रक्रियाओं को सरल बनाने के लिये ज़्यादा लक्षित उपायों की ज़रूरत है।
  • वस्‍तुओं के निर्यात में लॉजिस्टिक सेवाओं का प्रदर्शन निर्यात की तुलना में आयात के क्षेत्र में ज़्यादा रहा।

बैंकों के राष्‍ट्रीयकरण की स्‍वर्ण जयंती एक समीक्षा

  • आर्थिक समीक्षा में चिंता व्यक्त की गई कि वर्ष 1969 से जिस रफ्तार से देश की अर्थव्‍यवस्‍था का विकास हुआ उस हिसाब से बैंकिंग क्षेत्र विकसित नहीं हो सका।
  • वर्तमान में भारत का केवल एक बैंक विश्‍व के 100 शीर्ष बैंकों में शामिल है। यह स्थिति भारत को उन देशों की श्रेणी में ले जाती है जिनकी अर्थव्‍यवस्‍था का आकार भारत के मुकाबले कई गुना कम है।
  • सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को अधिक सक्षम बनाने हेतु सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के शेयरों में कर्मचारियों के लिये हिस्‍सेदारी की योजना, बैंक के बोर्ड में कर्मचारियों का प्रतिनिधित्‍व बढ़ाना तथा बैंक के शेयर-धारकों को वित्‍तीय प्रोत्‍साहन जैसे उपायों की प्रासंगिकता को चिह्नित किया गया है।
  • GSTN जैसी व्‍यवस्‍था करना ताकि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों से उपलब्‍ध आँकड़ों का संकलन किया जा सके और बैंक से कर्ज़ लेने वालों पर बेहतर निगरानी रखने के लिये आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस और मशीन लर्निंग जैसी प्रौद्योगिकी का इस्‍तेमाल करना।

NBFC क्षेत्रक:

  • बैंकिंग क्षेत्र में नकदी के मौजूदा संकट के साथ आस्ति देयता प्रबंधन (ALM) जोखिम, अंतर संयोगी जोखिम, गैर-वित्तीय कंपनियों के वित्तीय संचालन में लचीलापन एवं अल्पावधि में बड़े फंडिंग पर अत्यधिक निर्भरता जैसे शेडों बैंकिंग के खतरों को स्पष्ट करने जैसे महत्त्वपूर्ण मुद्दे NBFC क्षेत्रक के लिये आवश्यक हैं।

निजीकरण और धन सृजन

  • सरकार की विनिवेश रणनीति से केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के नेटवर्थ, परिसंपत्तियों से आय, इक्विटी पर लाभ आदि में वृद्धि देखी जा रही है।
  • अधिक लाभ, दक्षता, प्रतिस्पर्द्धा, व्यवसायवाद जैसे कारकों को बढ़ावा देने हेतु समीक्षा में केंद्रीय उपक्रमों के विनिवेश का सुझाव दिया गया है।

भारत का आर्थिक प्रदर्शन: 2019-20

भारत की GDP 4.8% (कमज़ोर वैश्विक विनिर्माण, व्यापार और मांग)
दूसरी छमाही में 5.0% रहने का अनुमान
वास्तविक उपभोग वृद्धि बेहतर (सरकारी खपत में वृद्धि)
कृषि, लोक प्रशासन और रक्षा सेवा वृद्धि
चालू खाता घाटा कमी (वर्तमान में GDP का 1.5%)
विदेशी प्रत्यक्ष निवेश, पोर्टफॉलियो प्रवाह और विदेशी मुद्रा भंडार मज़बूत
महँगाई दर वर्ष के अंत तक कमी
CPI तथा WPI वृद्धि

वैदेशिक क्षेत्र

  • भुगतान संतुलन (BOP):
    • भारत की BOP की स्थिति में सुधार हुआ है। भारत का विदेशी मुद्रा भंडार सितंबर 2019 के अंत में 433.7 बिलियन डॉलर का हो गया था।
    • चालू खाता घाटा (CAD) वर्ष 2018-19 में 2.1% था जो वर्ष 2019-20 की पहली छमाही में घटकर 1.5% हो गया।
  • वैश्विक व्यापार
    • वर्ष 2019 में वैश्विक उत्पादन में 2.9% अनुमानित वृद्धि के अनुरूप वैश्विक व्यापार में 1.0% वृद्धि दर का अनुमान है, जबकि 2017 में यह 5.7% के शीर्ष स्तर तक पहुँचा था।
    • भारत के शीर्ष पाँच व्यापारिक साझेदार अमेरिका, चीन, संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब और हॉन्गकॉन्ग हैं।
  • निर्यातः
    • शीर्ष निर्यात मदें- पेट्रोलियम उत्पाद, बहुमूल्य पत्थर, औषधि, स्वर्ण और अन्य बहुमूल्य धातुएँ।
    • 2019-20 (अप्रैल-नवंबर) में सबसे बड़े निर्यात स्थलः अमेरिका, उसके बाद संयुक्त अरब अमीरात, चीन और हॉन्गकॉन्ग।
    • वर्ष 2009-14 और 2014-19 के बीच गैर पेट्रोलियम उत्पादों के निर्यात में देखी वृद्धि में अब कमी आई है।
  • आयातः
    • शीर्ष आयात मदें- कच्चा पेट्रोलियम, सोना, पेट्रोलियम उत्पाद, कोयला, कोक एवं ब्रिकेट्स।
    • भारत का सर्वाधिक आयात चीन से जारी रहेगा, उसके बाद अमेरिका, संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब का स्थान है।
  • कच्चे तेल की कीमत में वृद्धि से कुल आयात में कच्चे तेल का हिस्सा बढ़ता है साथ ही आयात और GDP अनुपात में वृद्धि होती है।
  • गैर-पेट्रोलियम उत्पाद, गैर-सोना आयात सकारात्मक रूप से GDP में वृद्धि से जुड़ा है।
    • निवेश दर में निरंतर गिरावट के कारण GDP वृद्धि की गति कम हुई, खपत में कमज़ोरी आई, निवेश परिदृश्य निराशाजनक रहा, जिसके परिणामस्वरूप GDP में कमी आई।
  • विश्व बैंक के लॉजिस्टिक्स प्रदर्शन सूचकांक के अनुसार, वर्ष 2018 में भारत विश्व में 44वें रैंक पर रहा। वर्ष 2014 में भारत 54वें स्थान पर था।
  • विदेशों में रहने वाले अप्रवासी भारतीयों से रकम की प्राप्ति में वृद्धि होती रही। वर्ष 2019-20 की पहली छमाही में 38.4 बिलियन डॉलर की प्राप्ति हुई, जो पिछले वर्ष के स्तर से 50% से अधिक है।
  • बाह्य ऋणः
    • सितंबर 2019 के अंत में यह GDP के 20.1% के निचले स्तर पर रहा।
    • वर्ष 2014-15 से गिरावट के बाद भारत की बाहरी देनदारियाँ (ऋण तथा इक्विटी) जून 2019 के अंत में GDP की तुलना में बढ़ी। ऐसा एफडीआई पोर्टफोलियो प्रवाह तथा बाहरी वाणिज्यिक उधारियों (ECB) में वृद्धि के कारण हुआ।

मौद्रिक प्रबंधन तथा वित्तीय मध्यस्थता

  • मौद्रिक नीतिः
    • कम वृद्धि तथा कम मुद्रास्फीति के कारण वित्तीय वर्ष में एमपीसी की चार बैठकों में रेपो दर में 110 बेसिस प्वाइंट की कटौती की गई।
    • वर्ष 2019-20 के शुरुआती दो महीनों में नकदी की स्थिति कमज़ोर रही; लेकिन कुछ समय बाद यह सामान्य हो रही है।
  • सकल गैर-निष्पादित अग्रिम अनुपात :
    • मार्च-दिसंबर 2019 के बीच अनुसूचित व्यवसायिक बैंकों के लिये बिना किसी बदलाव के यह 9.3% रहा।
    • गैर-बैंकिंग वित्तीय निगमों (NBFC) के लिये यह मार्च 2019 के 6.1% से मामूली वृद्धि के साथ सितंबर 2019 में 6.3% हो गया।
  • ऋण वृद्धि :
    • अर्थव्यवस्था के लिये वित्तीय आवक सीमित रही क्योंकि दोनों बैंकों और NBFC के लिये ऋण वृद्धि में गिरावट आई।
    • बैंक ऋण वृद्धि अप्रैल 2019 में 12.9% थी जो 20 दिसंबर, 2019 में 7.1% हो गई।

मूल्य और मुद्रास्फीति

  • मुद्रास्फीति प्रवृत्तियाँ:
    • वर्ष 2014 के बाद मुद्रास्फीति नियंत्रित रही, उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) मुद्रास्फीति वर्ष 2018-19 (अप्रैल से दिसंबर 2018) में 3.7% थी।
    • थोक मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति 2018-19 (अप्रैल से दिसंबर 2018) में 4.7% से गिरकर 2019-20 (अप्रैल से दिसंबर 2019) में 1.5% हो गई।
  • उपभोक्ता मूल्य सूचकांक मिश्रित (CPI-C):
    • इसमें वर्ष 2019-20 के दौरान (अप्रैल-दिसंबर) खाद्य और पेय पदार्थों ने प्रमुख योगदान दिया।
  • कीमतों में अस्थिरता
    • वर्ष 2009-14 की अवधि की तुलना में 2014-19 की अवधि में विपणन चैनलों, भंडार सुविधाओं तथा कारगर MSP प्रणाली के कारण दालों को छोड़कर आवश्यक खाद्य वस्तुओं के मूल्यों के उतार-चढ़ाव में कमी आई।

सतत विकास और जलवायु परिवर्तन

  • भारत अपने विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से एसडीजी क्रियान्वयन के मार्ग पर अग्रसर है।
  • एसडीजी भारत सूचकांकः
    • हिमाचल प्रदेश, केरल, तमिलनाडु और चंडीगढ़ अग्रणी राज्य।
    • असम, बिहार तथा उत्तर प्रदेश आकांक्षी श्रेणी में।
  • भारत ने यूएनसीसीडी के तहत सीओपी-14 की मेज़बानी की, जिसमें “दिल्ली घोषणाः भूमि में निवेश और अवसरों के द्वार खोलना” को अपनाया गया।
  • मैड्रिड में UNFCCC के अंतर्गत COP-25
    • भारत ने पेरिस समझौते को लागू करने का अपना संकल्प दोहराया।
    • सीओपी-25 के निर्णयों में जलवायु परिवर्तन शमन, अनुकूलन और विकासशील देशों द्वारा विकसित देशों के क्रियान्वयन उपायों को अपनाना तथा लागू करना शामिल है।
  • वन और वृक्ष कवरः
    • वन और वृक्ष कवर वृद्धि के साथ यह 80.73 मिलियन हेक्टेयर हो गया है जो कि देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 24.56% है।
  • कृषि अवशेषों को जलाने से प्रदूषण स्तर में वृद्धि तथा वायु गुणवत्ता में गिरावट अभी भी चिंता का विषय है। यद्यपि विभिन्न प्रयासों के कारण कृषि अवशेषों को जलाने की घटना में कमी आई है।
  • कृषि तथा खाद्य प्रबंधन
    • भारतीय आबादी का बड़ा हिस्सा प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से अन्य क्षेत्रों की तुलना में रोज़गार अवसरों के लिये कृषि पर निर्भर है।
    • देश के कुल मूल्यवर्द्धन (जीवीए) में कृषि तथा संबद्ध क्षेत्रों की हिस्सेदारी गैर-कृषि क्षेत्रों की अधिक वृद्धि के कारण कम हो रही है। यह विकास प्रक्रिया का स्वभाविक परिणाम है।
    • कृषि में मशीनीकरण का स्तर कम होने से कृषि उत्पादकता में कमी देखी जाती है। भारत में कृषि का मशीनीकरण 40% है, जो चीन के 59.5% तथा ब्राज़ील के 75% से काफी कम है।
    • भारत में कृषि ऋण के क्षेत्रीय वितरण में भी असमानता विद्यमान है।
      • पर्वतीय तथा पूर्वोत्तर राज्यों में कम ऋण (कुल कृषि ऋण वितरण का 1% से भी कम)।
    • लाखों ग्रामीण परिवारों के लिये पशुधन आय का दूसरा महत्त्वपूर्ण साधन है। किसानों की आय दोगुनी करने के लक्ष्य को प्राप्त करने में इसकी महत्त्वपूर्ण भूमिका है। पिछले 5 वर्षों के दौरान पशुधन क्षेत्र की औसत वार्षिक वृद्धि दर (सीएजीआर) के 7.9% की दर से बढ़ रहा है।
  • यद्यपि जनसंख्या के कमज़ोर वर्गों के हितों को सुरक्षित रखने की आवश्यकता है फिर भी आर्थिक समीक्षा में निम्नलिखित उपायों से खाद्य सुरक्षा की स्थिति को स्थिर बनाने पर बल दिया गया है।
    • बढ़ती खाद्य सब्सिडी बिल की समस्या सुलझाना।
    • एनएफएसए के अंतर्गत दरों तथा कवरेज में संशोधन।
  • उद्योग तथा आधारभूत संरचना
    • औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (IIP) के अनुसार 2018-19 (अप्रैल-नवंबर) के 5.0% की तुलना में 2019-20 (अप्रैल-नवंबर) के दौरान औद्योगिक क्षेत्र में 0.6% की वृद्धि दर्ज की गई।
    • 2018-19 (अप्रैल-नवंबर) के 1.3% की तुलना में 2019-20 (अप्रैल-नवंबर) के दौरान उर्वरक क्षेत्र में 4% की वृद्धि हुई।
    • इस्पात क्षेत्र में 2019-20 (अप्रैल-नवंबर) के दौरान 5.2% वृद्धि दर्ज की गई है, जबकि 2018-19 (अप्रैल-नवंबर) के दौरान यह 3.6% थी।
    • 30 सितंबर , 2019 को भारत में कुल 119.43 करोड़ टेलीफोन कनेक्शन थे।
    • बिजली उत्पादन की स्थापित क्षमता बढ़कर 31 अक्तूबर, 2019 को 3,64,960 मेगावाट हो गई, जो 31 मार्च, 2019 को 3,56,100 मेगावाट थी।

सेवा क्षेत्र

  • भारतीय अर्थव्यवस्था में सेवा क्षेत्र का महत्त्व लगातार बढ़ रहा है:
    • सकल संवर्द्धन मूल्य और सकल संवर्द्धन मूल्य वृद्धि में इसका हिस्सा 55% है।
    • यह भारत के कुल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का दो-तिहाई है।
    • यह कुल निर्यात का लगभग 38% है।
    • सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में से 15 राज्यों में सेवा क्षेत्र का योगदान 50% से अधिक है।
  • वर्ष 2019-20 की शुरुआत में सेवा क्षेत्र में सकल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में बेहतरी देखी गई है।

सामाजिक अवसंरचना, रोज़गार और मानव विकास

  • केंद्र और राज्यों द्वारा सामाजिक सेवाओं (स्वास्थ्य, शिक्षा एवं अन्य) पर GDP के अनुपात में होने वाला व्यय 6.2% (वर्ष 2014-15 में) से बढ़कर वर्ष 2019-20 (बजटीय अनुमान) में 7.7% हो गया है।
  • वर्ष 2018 में मानव विकास सूचकांक में भारत की रैंकिंग 129 हो गई, जो कि वर्ष 2017 में 130 थी। वार्षिक मानव विकास सूचकांक में औसत 1.34% की वृद्धि के साथ भारत तीव्रतम सुधार वाले देशों में शामिल है।
  • माध्यमिक, उच्चतर माध्यमिक तथा उच्चतर शिक्षा स्तर पर सकल नामांकन अनुपात में सुधार की ज़रूरत है।
  • नियमित मज़दूरी/ वेतनभोगी कर्मचारियों की हिस्सेदारी में 5% की वृद्धि दर्ज की गई है, जो पूर्ववर्ती 18% की वृद्धि की तुलना में 2017-18 में 23% हो गई।
    • इस श्रेणी में ग्रामीण क्षेत्रों में 1.21 करोड़ तथा शहरी क्षेत्रों में 1.39 करोड़ नए रोज़गारों सहित लगभग 2.62 करोड़ नए रोज़गारों का सृजन होना एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है।
    • अर्थव्यवस्था में कुल औपचारिक रोज़गार 2011-12 में 8% थे, जो कि 2017-18 में बढ़कर 9.98% हो गए।
    • महिला श्रमिक बल की प्रतिभागिता में गिरावट आने की वजह से भारत के श्रमिक बाज़ार में लिंग असमानता का अंतर और बढ़ गया है। विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में लगभग 60% महिला जनांकिकी (15-59 वर्ष) पूर्णकालिक घरेलू कार्यों में लगी हुई है।
    • देश भर में आयुष्मान भारत और मिशन इंद्रधनुष के माध्यम से स्वास्थ्य सेवाओं की पहुँच में सुधार हुआ है।
    • गाँवों में लगभग 76.7% और शहरों में 96% परिवारों के पास पक्के घर हैं।
    • स्वच्छता संबंधी व्यवहार में बदलाव लाने तथा ठोस एवं तरल कचरा प्रबंधन की पहुँच बढ़ाने पर ज़ोर देने के उद्देश्य से एक 10 वर्षीय ग्रामीण स्वच्छता रणनीति (2019-2029) की शुरुआत की गई।

स्रोत: पी.आई.बी.


Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 01 फरवरी, 2020

भारतीय तटरक्षक बल स्थापना दिवस

भारतीय तटरक्षक बल 1 फरवरी, 2020 को अपना स्थापना दिवस मना रहा है इस अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बधाई देते हुए कहा कि भारतीय तटीय सीमा को सुरक्षित रखने के लिये तटरक्षक बल ने महत्त्वपूर्ण प्रयास किये हैं। भारतीय तटरक्षक बल एक सशस्त्र बल है, यह भारत की समुद्री सीमाओं की रक्षा करता है जिसकी स्थापना 1 फरवरी, 1978 को की गयी थी। इसका मुख्यालय नई दिल्ली में स्थित है। इसका आदर्श वाक्य “वयम् रक्षामः” है।

अंतर्राष्ट्रीय बाल फिल्मोत्सव

13वें अंतर्राष्ट्रीय बाल फिल्मोत्सव का 31 जनवरी, 2020 को समापन हो गया। 24 जनवरी से शुरू हुए इस फिल्मोत्सव के दौरान 39 देशों की कुल 179 फिल्मों को ढाका के पाँच स्थानों पर प्रदर्शित किया गया। समापन समारोह के दौरान विभिन्न श्रेणियों में 11 पुरस्कार दिये गए। फिनलैंड के निर्देशक मेरजा मेजेनन को फिल्म गुड गर्ल के लिये सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का पुरस्कार दिया गया। अंतर्राष्ट्रीय खंड में सर्वश्रेष्ठ फीचर फिल्म का पुरस्कार डच फिल्म ‘रोमीज़ सैलून’ को दिया गया। यह फिल्म एक बच्चे रोमी की कहानी है जो डिमेंसिया रोग से ग्रस्त अपनी दादी के सैलून में जाता है।

अजय बिसारिया

राजनयिक अजय बिसारिया को कनाडा में भारत का नया उच्चायुक्त नियुक्त किया गया। इससे पूर्व अजय बिसारिया पाकिस्तान में भारत के उच्चायुक्त के रूप में सेवारत थे किंतु बीते वर्ष अगस्त जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे को समाप्त करने के निर्णय के पश्चात् पाकिस्तान ने उन्हें भारत वापस भेज दिया था। 1987 बैच के IFS अधिकारी अजय बिसारिया ने भारत-पाकिस्तान के संबंधों को सुधारने और करतारपुर गलियारे जैसे मुद्दों में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की थी। ज्ञात हो कि अजय बिसारिया वर्ष 1999 से 2004 के मध्य तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के निजी सचिव के रूप में भी कार्य कर चुके हैं।

अरविंद कृष्णा

भारतीय मूल के अरविंद कृष्णा को प्रसिद्ध IT कंपनी IBM का नया मुख्य कार्यकारी अधिकारी (CEO) नियुक्त किया गया है। गौरतलब है कि इससे पूर्व लंबे समय से वजीर्निया रोमेटी इस पद पर कार्यरत थीं। अरविंद कृष्णा वर्तमान में IBM में एग्जीक्यूटिव के तौर पर कार्य कर रहे हैं। IIT कानपुर में पढ़े अरविंद कृष्णा ने वर्ष 1990 में IBM कंपनी ज्वाॅइन की थी।