अंतर्राष्ट्रीय संबंध
ब्रेक्ज़िट के भँवर में फँसा ब्रिटेन
- 01 Apr 2019
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संदर्भ
ब्रेक्ज़िट पर ब्रिटेन की प्रधानमंत्री थेरेसा मे द्वारा संसद में लाया गया मसौदा प्रस्ताव वहाँ के हाउस ऑफ कॉमंस ने लगातार तीसरी बार खारिज कर दिया। 29 मार्च को हुए मतदान में उनके प्रस्ताव के विरोध में 344 और समर्थन में 286 वोट पड़े। इससे पहले भी दो बार उनके इस प्रस्ताव को ‘हाउस ऑफ कॉमंस' में हार का सामना करना पड़ा था।
और उलझ गई है स्थिति
इसके बाद यूरोपीय संघ से ब्रिटेन के बाहर होने को लेकर स्थिति और उलझ गई है। यह मतदान ब्रेक्ज़िट के भविष्य पर नहीं, बल्कि इससे जुड़े कुछ मुद्दों पर किया गया था, जिनमें आयरलैंड सीमा को लेकर हुआ समझौता, यूरोपीय संघ से ब्रिटेन के अलग होने पर पैसों के लेनदेन और नागरिकों के अधिकार शामिल थे। आपको बता दें कि 29 मार्च, 2017 को ब्रिटेन सरकार ने अनुच्छेद-50 लागू किया था जिसके तहत ठीक दो साल बाद ब्रेक्ज़िट लागू होना था। लेकिन यह तभी हो पाता जब हाउस ऑफ कॉमंस में ब्रिटेन की प्रधानमंत्री का प्रस्ताव पारित हो जाता। अब 12 अप्रैल तक ब्रिटेन को इसका कोई-न-कोई हल निकालना है क्योंकि ऐसा करना कानूनी रूप से बाध्यकरी है। ब्रेक्ज़िट की इस विषम स्थिति पर विचार करने के लिये यूरोपीय परिषद के अध्यक्ष डोनाल्ड टस्क ने 10 अप्रैल को यूरोपीय नेताओं का एक आपातकालीन शिखर सम्मेलन बुलाया है।
ब्रिटेन की संसद में क्यों पहुँचा यह मुद्दा?
दरअसल, 2017 में ब्रिटेन के सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि ब्रेक्ज़िट पर संसद में मतदान होना चाहिये कि क्या सरकार इसकी प्रक्रिया शुरू कर सकती है या नहीं? और इस मुद्दे पर स्कॉटलैंड, वेल्स तथा उत्तरी आयरलैंड की संसद से मंज़ूरी लेने की आवश्यकता नहीं है। कोर्ट ने कहा था कि ब्रेक्ज़िट पर संसद की राय नहीं लेना अलोकतांत्रिक होगा। इस निर्णय के बाद ब्रिटिश सरकार लिस्बन संधि के अनुच्छेद 50 को आत्मनिर्णय के आधार पर लागू नहीं कर पाई और यह मामला संसद में लाना पड़ा। आपको बता दें कि लिस्बन संधि के अनुच्छेद 50 के तहत किसी सदस्य देश के यूरोपीय संघ से अलग होने की औपचारिक प्रक्रिया शुरू होती है।
क्या है ब्रेक्ज़िट?
ब्रेक्ज़िट (Brexit) दो शब्दों- Britain+Exit से मिलकर बना है, जिसका शाब्दिक अर्थ है ब्रिटेन का बाहर निकलना। दरअसल, यूरोपीय संघ में रहने या न रहने के सवाल पर यूनाइटेड किंगडम में 23 जून, 2016 को जनमत संग्रह कराया गया था, जिसमें लगभग 52 फीसदी वोट यूरोपीय संघ से बाहर होने के पक्ष में पड़े थे। जनमत संग्रह में केवल एक प्रश्न पूछा गया था- क्या यूनाइटेड किंगडम को यूरोपीय संघ का सदस्य बने रहना चाहिये या इसे छोड़ देना चाहिये? इसके पीछे ब्रिटेन की संप्रभुता, संस्कृति और पहचान बनाए रखने का तर्क देते हुए इसे Brexit नाम दिया गया। आपको बता दें कि ब्रेक्ज़िट पर जनमत संग्रह तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड कैमरन का चुनावी वादा था, इसीलिये यह जनमत संग्रह हुआ और इसके बाद उन्हें इस्तीफा देना पड़ा क्योंकि वह ब्रिटेन के यूरोपीय संघ में बने रहने के पक्षधर थे।
29 मार्च तक पूरी हो जानी थी प्रक्रिया
यूरोपीय संघ से ब्रिटेन के बाहर निकलने की प्रक्रिया 29 मार्च, 2019 तक पूरी हो जानी थी, लेकिन हालत यह है कि इसकी मंज़ूरी देने वालाअन्य और सर्वमान्य फॉर्मूला बनाया नहीं जा सका है। यदि हाउस ऑफ कॉमंस में प्रधानमंत्री का प्रस्ताव स्वीकार हो जाता तो 29 मार्च की समय सीमा को 22 मई तक बढ़ाया जा सकता था, लेकिन अब ब्रिटेन को अलग होने के लिये 12 अप्रैल तक का ही वक्त मिलेगा...और तब तक उसके सामने सभी विकल्प खुले रहेंगे। यानी वह चाहे तो थेरेसा मे वाला समझौता स्वीकार करे या बिना किसी समझौते के यूरोपीय संघ छोड़ दे या लंबे समय तक इसका सदस्य बना रहे या फिर अनुच्छेद 50 को पूरी तरह रद्द कर दे।
क्या है अनुच्छेद 50?
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद ब्रिटिश सरकार लिस्बन संधि के अनुच्छेद 50 को आत्मनिर्णय के आधार पर लागू नहीं कर पाई और यह मामला संसद में लाना पड़ा। आपको बता दें कि लिस्बन संधि के अनुच्छेद 50 के तहत किसी सदस्य देश के यूरोपीय संघ से अलग होने की औपचारिक प्रक्रिया शुरू होती है। अर्थात् लिस्बन संधि का अनुच्छेद 50 यूरोपीय संघ के मौजूदा सदस्यों को संघ छोड़ने का अधिकार देता है। संघ से बाहर निकलने की रूपरेखा भी इसी अनुच्छेद के तहत निर्धारित होती है। इसके अंतर्गत बाहर निकल रहे देश को आपसी बातचीत कर सहमति के लिये दो साल का समय मिलता है। अनुच्छेद 50 लागू हो जाने के बाद उसे वापस नहीं लिया जा सकता, यह केवल वापस तभी होगा जब सभी सदस्य देश इसके लिये सहमत होंगे।
अनुच्छेद के प्रमुख बिंदु
- सबसे पहले बाहर जाने वाले देश को यूरोपीय परिषद को औपचारिक रूप से सूचित करना होगा।
- यह बताना होगा कि वह किसी समझौते तक पहुँचने के लिये दो साल का समय दे रहा है।
- वह देश यूरोपीय संघ की उन आंतरिक चर्चाओं का हिस्सा नहीं होगा, जिनमें उस देश पर बातचीत होगी।
- बाहर निकलने के फैसले को बहुमत से मंज़ूरी मिलनी चाहिये।
- इसके लिये यूरोपीय संसद के सदस्यों का सहयोग भी आवश्यक है।
यूरोपीय संघ
यूरोपीय संघ 28 देशों की एक आर्थिक और राजनीतिक पार्टनरशिप है, जो एक संधि के द्वारा आपस में जुड़े हुए हैं। दरअसल, द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद यूरोप में यह कोशिश की गई कि महाद्वीप के सभी देश आर्थिक रूप से एक साथ आएँ और एकजुट होकर एक व्यापार समूह का गठन करें। इसी को मद्देनज़र रखते हुए 1993 में यूरोपीय संघ का जन्म हुआ और 2004 में जब यूरो करेंसी लॉन्च की गई तब यह पूरी तरह से राजनीतिक और आर्थिक रूप से एकजुट हो गया। यूरोपीय संघ एकल बाज़ार सिद्धांत पर काम करता है अर्थात् किसी भी तरह का सामान और व्यक्ति बिना किसी टैक्स या बिना किसी रुकावट के कहीं भी आ-जा सकते हैं एवं बिना रोक-टोक के नौकरी, व्यवसाय तथा स्थायी तौर पर निवास कर सकते हैं।
आगे की राह
- चूँकि सांसदों ने समझौते को नकार दिया है, तो अब ब्रिटेन सरकार यूरोपीय संघ के साथ नए सिरे से चर्चा का प्रस्ताव रख सकती है।
- यूरोपीय आयोग कह चुका है कि यूरोपीय संघ अब बिना किसी समझौते के ब्रेक्ज़िट के लिये पूरी तरह से तैयार है। यूरोपीय संघ दिसंबर 2017 से इसके लिये तैयारी कर रहा है और अब 12 अप्रैल की आधी रात को 'बिना किसी समझौते के अलग होने के' परिदृश्य के लिये पूरी तरह से तैयार है।
- एक अन्य उपाय के तहत इस मुद्दे पर दोबारा जनमत संग्रह भी कराया जा सकता है, लेकिन यह अपने आप नहीं हो सकता। इसके लिये चुनाव और जनमत संग्रह एक्ट 2000 के नियमों का पालन करना होगा।
- वर्तमान परिस्थितियों में अगर 12 अप्रैल तक ब्रिटिश संसद में आम सहमति नहीं बन पाती है तो ब्रिटेन अपने आप यूरोपीय संघ से बाहर हो जाएगा।
- इस अनिश्चितता की वज़ह से ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था प्रभावित हो रही है, जो पिछली तिमाही में 0.4% सिकुड़ गई। ब्रिटेन की सालाना विकास दर छह साल के सबसे निचले स्तर पर आ गई है।
नए चुनावों से भी यह दुविधा शायद ही खत्म हो, इसलिये एक विकल्प यह सुझाया जा रहा है कि यूरोपीय संघ छोड़ने को लेकर एक और जनमत संग्रह कराया जाए। इसके पीछे सोच यह है कि पिछले ढाई साल में लोगों का यह भ्रम टूट गया है कि इससे कोई हानि नहीं होगी। लेकिन अब एक बात जो तय है, वह यह कि निर्णय ब्रिटेन को करना है और जल्द करना है। लेकिन अनिर्णय और अनिश्चय की जिस स्थिति में वह फँसा है, उससे निकलना आसान नहीं है।