जलवायु परिवर्तन, ग्रीष्म लहर और वनाग्नि | 29 Jan 2020
संदर्भ
उबलते पानी के मेंढक की कहानी के बारे में सबने सुना होगा, उबलते पानी में एक मेंढक ऐसे कूदता है मानो वह पानी से कूदकर स्वयं को बचा लेगा, लेकिन वह मेंढक जो पानी में है, वह धीरे-धीरे गर्म हो जाता है और अंत में उसकी मौत हो जाती है। वैश्विक ऊष्मन अर्थात् ग्लोबल वार्मिंग का संकट भी हमें इसी तरह दिनों-दिन घेरता जा रहा है ऐसे में यह आवश्यक हो गया है कि हम स्वयं को सुरक्षित रखने के लिये महत्त्वपूर्ण कदम उठाएँ।
वर्तमान स्थिति
- 15 जनवरी 2020 को विश्व मौसम विज्ञान संगठन (World Meteorological Organization) के प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय डेटासेट के समेकित विश्लेषण के अनुसार, संगठन ने पुष्टि की कि वर्ष 2016 के बाद वर्ष 2019 दशक का दूसरा सबसे गर्म वर्ष रहा।
औसत तापमान
- पाँच वर्ष (2015-2019) और दस वर्ष (2010-2019) के लिये औसत तापमान रिकॉर्ड स्तर पर काफी अधिक रहा। 1980 के दशक से हर एक दशक पिछले दशक की तुलना में गर्म रहा है। इस प्रवृत्ति के आगे भी जारी रहने की उम्मीद है क्योंकि वायुमंडल में ऊष्मा को रोकने वाली ग्रीनहाउस गैसों के रिकॉर्ड स्तर के कारण पृथ्वी की जलवायु में परिवर्तन आ रहा है।
- इस समेकित विश्लेषण में इस्तेमाल किये गए पाँच डेटा सेटों के अनुमान के अनुसार, वर्ष 2019 में वार्षिक वैश्विक तापमान वर्ष 1850-1900 के औसत तापमान से 1.1 डिग्री सेल्सियस अधिक रहा, जिसका उपयोग पूर्व-औद्योगिक परिस्थितियों का प्रतिनिधित्व करने के लिये किया जाता था। वर्ष 2016 एक मज़बूत अल नीनो (El Niño) के कारण रिकॉर्ड स्तर पर सबसे गर्म वर्ष रहा है, जिससे ऊष्मन और दीर्घकालिक जलवायु परिवर्तन प्रभाव अधिक होता है।
- वर्ष 2019 में जुलाई माह को यूरोप में सबसे गर्म माह के रूप दर्ज किया गया (जब से वर्ष के तापमान के विषय में रिकॉर्ड दर्ज किया जा रहा है, तब से अभी तक का सबसे गर्म माह), इसके चलते बहुत-से लोगों की मौत हो गई, दफ्तरों के साथ-साथ कई आवश्यक सेवाओं को भी बंद रखा गया।
प्रभाव
- तपती गर्मी ने न केवल पूरे गोलार्द्ध के मौसम में परिवर्तन किया, बल्कि ऑस्ट्रेलिया में अभी तक के सबसे गर्म एवं शुष्क वर्ष के रूप में दर्ज किये गए वर्ष 2019 ने वनाग्नि जैसी खतरनाक स्थिति को भी जन्म दिया जिसकी व्यापकता एवं भयावता ने संपूर्ण विश्व को झकझोर कर रख दिया।
- अत्यधिक तापमान, ग्रीष्म लहर या हीटवेव और रिकॉर्ड स्तर पर सूखे की स्थिति कोई विसंगतियाँ नहीं हैं बल्कि ये सभी एक बदलती जलवायु की व्यापक प्रवृत्तियाँ हैं। यदि वैश्विक तापमान में और अधिक वृद्धि होती है तो इससे उत्पन्न होने वाले प्रभावों की भयावहता की कल्पना अतिशयोक्ति नहीं होगी।
3.2 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि
- UNEP की उत्सर्जन गैप रिपोर्ट 2019 के अनुसार, कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन के मौजूदा स्तर पर, यदि हम केवल पेरिस समझौते की वर्तमान जलवायु प्रतिबद्धताओं पर निर्भर करते हैं और उन्हें पूरी तरह से लागू करते हैं, तो 66 प्रतिशत संभावना यह है कि सदी के अंत तक वैश्विक ऊष्मन में 3.2 डिग्री सेल्सियस तक की वृद्धि होगी।
क्या किया जा सकता है?
- सरकार, कंपनियाँ, उद्योग और जी20 देशों की जनता, जो ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के 78 प्रतिशत के लिये ज़िम्मेदार हैं, के डीकार्बोनाइज़ेशन (अर्थात् किसी पदार्थ से कार्बन या कार्बनिक अम्ल को अलग करना) के लिये सटीक लक्ष्य और समयसीमा तय की जानी चाहिये ताकि इस दिशा में प्रभावी कार्यवाही संभव हो सके।
- इसके अतिरिक्त दक्ष प्रौद्योगिकियों, स्मार्ट खाद्य प्रणालियों और शून्य-उत्सर्जन क्षमता तथा अक्षय ऊर्जा से संचालित इमारतों को विकसित करना चाहिये, साथ ही इसी के अनुरूप अन्य विकल्प अथवा उपाय अपनाने चाहिये ताकि आने वाली पीढ़ी के अस्तित्व को सुरक्षित रखा जा सके।
वर्ष 2020 में विश्व जलवायु परिवर्तन से संबंधित अपनी प्रतिबद्धताओं को पूर्ण करने की दिशा में प्रभावी कार्यवाही सुनिश्चित कर सकता है। यह एक ऐसा वर्ष है जब वैश्विक तापमान में 1.5 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि को सीमित करने के लिये वैश्विक उत्सर्जन में 7.6 प्रतिशत की कटौती करने की आवश्यकता है, वर्ष 2030 तक इसमें प्रत्येक वर्ष 7.6 प्रतिशत की गिरावट आनी चाहिये। इससे पहले की वर्ष 2020 में चरम मौसमी घटनाएँ समुदायों और पारिस्थितिक तंत्रों पर उनकी क्षमता से अधिक दबाव बनाए, एक वैश्विक समुदाय के रूप में हमारे पास पृथ्वी को मेंढक की तरह उबलने से बचाने के लिये पर्याप्त साधन और अवसर मौजूद हैं, लेकिन अब समय केवल नीतियाँ बनाने का नहीं है, बल्कि उनका प्रभावी क्रियान्वयन करने का है, इसकी और अधिक अनदेखी का परिणाम कितना भयावह हो सकता है इसकी कल्पना ऑस्ट्रेलियाई वनाग्नि से की जा सकती है।