भूगोल
सबसे गर्म दशक: 2010-2019
- 17 Jan 2020
- 7 min read
प्रीलिम्स के लिये:नासा, भारत मौसम विज्ञान विभाग मेन्स के लिये:पिछले दशक के सबसे गर्म होने के कारण |
चर्चा में क्यों?
भारत मौसम विज्ञान विभाग (India Meteorological Department-IMD) ने वर्ष 1901 के बाद वर्ष 2010-2019 के दशक को भारत का सबसे गर्म दशक घोषित किया है।
मुख्य बिंदु:
- वर्ष 2010-2019 के दशक का औसत तापमान पिछले 30 वर्षों (1981-2010) के औसत तापमान से 0.36 डिग्री सेल्सियस अधिक रहा।
- वर्ष 2010-2019 के दशक के दौरान वर्ष 2019 भारत में सातवाँ सबसे गर्म वर्ष रहा।
- इस दशक के संदर्भ में यह घोषणा यूरोपियन मौसम एजेंसी (European Weather Agency) के कॉपरनिकस जलवायु परिवर्तन कार्यक्रम (Copernicus Climate Change Programme) के तहत की गई थी।
- यूरोपियन मौसम एजेंसी ने COP-25 मैड्रिड जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में विश्व मौसम संगठन द्वारा (World Meteorological Organisation) वर्ष 2019 को निश्चित रूप से दशक के दूसरे या तीसरे सबसे गर्म वर्ष होने के अनुमान को सही प्रमाणित किया है।
- राष्ट्रीय वैमानिकी एवं अंतरिक्ष प्रशासन (National Aeronautics and Space Administration-NASA), नेशनल ओशनिक एंड एटमोस्फियरिक एडमिनिस्ट्रेशन (National Oceanic and Atmospheric Administration-NOAA) द्वारा किये गए विश्लेषण के अनुसार, वर्ष 2019 में सतह का वैश्विक औसत तापमान पिछली सदी के मध्य के औसत तापमान से लगभग 1 डिग्री सेल्सियस अधिक था।
NASA, NOAA तथा यूरोपियन मौसम एजेंसी द्वारा आँकड़ों का एकत्रीकरण:
- NASA और NOAA ज़्यादातर समान तापमान संबंधी आँकड़ों का उपयोग करते हैं।
- ये दोनों संस्थाएँ समुद्री तापमान संबंधी आँकड़े जहाज़ों और प्लवकों (Buoys)के माध्यम से एकत्रित करती हैं तथा भूमि तापमान संबंधी आँकड़े अमेरिकी सरकार की मौसम संबंधी एजेंसियों के अवलोकन केंद्रों से एकत्रित करती हैं।
- यूरोपियन सेंटर फॉर मीडियम रेंज वेदर फोरकास्टिंग (European Centre for Medium Range Weather Forecasting) द्वारा चलाए जाने वाले कॉपरनिकस कार्यक्रम (Copernicus programme) का निष्कर्ष NASA और NOAA के अवलोकित आँकड़ों के विपरीत कंप्यूटर मॉडलिंग के आँकड़ों पर अधिक आधारित था।
1960 के दशक से अब तक तापमान में परिवर्तन:
- 1960 के दशक के बाद प्रत्येक दशक पिछले दशक की तुलना में अधिक गर्म रहा है।
- यह प्रवृत्ति 2010 के दशक में भी जारी रही और इस दशक के दूसरे भाग के पाँच वर्ष सर्वाधिक गर्म रहे।
वर्ष 2010-2019 के दशक के गर्म रहने का कारण:
- वर्ष 2010-2019 के दशक के गर्म रहने का कारण काफी हद तक कार्बन डाइऑक्साइड गैस का उत्सर्जन और जीवाश्म ईंधन के जलने से उत्पन्न तापमान में वृद्धि करने वाली गैसों का उत्सर्जन है।
- तापमान में इस गति से वृद्धि का अर्थ है कि विश्व विनाशकारी जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये निर्धारित लक्ष्यों को पूरा करने में निश्चित रूप से विफल है।
- अत्यधिक तापमान के कारण दक्षिणी अफ्रीका में इस दशक में सर्वाधिक सूखे की स्थिति देखी गई।
- अफ्रीकी देश ज़ाम्बिया (Zambia) और ज़िम्बाब्वे (Zimbabwe) में मक्का तथा अन्य अनाज के उत्पादन में 30% या उससे अधिक की गिरावट आई है एवं ज़ांबेजी (Zambezi) नदी का जल स्तर गिरने के कारण जलविद्युत आपूर्ति खतरे में है।
वैश्विक औसत तापमान से कम तापमान वाले स्थल:
- वर्ष 2019 के जलवायु हॉटस्पॉट (Climate Hotspots of 2019) में शामिल आस्ट्रेलिया, अलास्का, दक्षिणी अफ्रीका, मध्य कनाडा और उत्तरी अमेरिका जैसे स्थानों पर वैश्विक औसत तापमान से कम तापमान का अनुभव किया गया।
- ऑस्ट्रेलिया में वर्ष 2019 सबसे गर्म वर्ष रिकॉर्ड किया गया। इसका औसत तापमान 20वीं शताब्दी के मध्य के औसत तापमान से 1.5 डिग्री सेल्सियस अधिक था।
- यह औसत वर्षा के संदर्भ में भी सबसे सूखा वर्ष था। वर्ष 2017 के बाद से अधिकांश देश भयंकर सूखे की चपेट में हैं और न्यू साउथ वेल्स वर्तमान में 20 वर्षों की सबसे विनाशकारी वनाग्नि से प्रभावित है।
- अलास्का में भी वर्ष 2019 सबसे गर्म वर्ष रिकॉर्ड किया गया। दीर्घकालिक तापमान वृद्धि की प्रवृत्ति के परिणामस्वरूप राज्य के हजारों ग्लेशियर तथा पर्माफ्रॉस्ट (Permafrost) पिघल रहे हैं।
पर्माफ्रॉस्ट
(Permafrost):
भूविज्ञान में स्थायी तुषार या पर्माफ्रॉस्ट (Permafrost) ऐसे स्थान को कहते हैं जो कम-से-कम लगातार दो वर्षों तक पानी जमने के तापमान (अर्थात शून्य डिग्री सेंटीग्रेड) से कम तापमान पर होने के कारण जमा हुआ हो।
- बेरिंग सागर में वर्ष 2019 में अधिकांश समय बर्फ की उपस्थिति नहीं देखी गई तथा मार्च के अंत में ली गई उपग्रह छवियों में भी बड़े पैमाने पर इस समुद्र में बर्फ की अनुपस्थिति देखी गई जबकि पहले इस यह समुद्र सामान्य रूप से पूरी तरह बर्फ से ढका रहता था।