दिल्ली सल्तनत-III: तुगलक वंश (1320-1413) | 04 Sep 2023
प्रिलिम्स के लिये:तुगलक वंश मेन्स के लिये:मुहम्मद बिन तुगलक के प्रयोग, फिरोज़ शाह तुगलक द्वारा अपनाई गई नीतियाँ, कृषि सुधार और मुहम्मद तुगलक के शासनकाल के दौरान कुलीनता में परिवर्तन |
खिलजी वंश के बाद दिल्ली में तुगलक वंश (1320-1413) सत्ता में आया। तुगलक वंश ने सल्तनत के इतिहास और संस्कृति में एक महत्त्वपूर्ण काल का गठन किया।
कारखानों या फैक्टरी की स्थापना के कारण जहाँ आर्थिक जीवन में तेज़ी आई वहीं नहरों के निर्माण से कृषि सिंचाई की सुविधा प्राप्त हुई। अंतर्देशीय तथा समुद्री व्यापार में वृद्धि हुई एवं शहरीकरण की प्रक्रिया तेज़ हो गई। शहरी केंद्रों, स्कूलों, मस्जिदों और सार्वजनिक भवनों का भी प्रसार हुआ।
तुगलक वंश के महत्त्वपूर्ण शासक:
गयासुद्दीन तुगलक (गाज़ी मलिक)
- तुगलक वंश का संस्थापक गाज़ी मलिक था जो 1320 ई. में गयासुद्दीन तुगलक के रूप में सिंहासन पर बैठा।
- कुछ समय शासन करने के बाद 1325 ई. में उसकी मृत्यु हो गई और उसका पुत्र मुहम्मद तुगलक गद्दी पर बैठा।
- तुगलक के अधीन दिल्ली सल्तनत और अधिक सुदृढ़ हुई। कई बाहरी क्षेत्रों को सल्तनत के सीधे नियंत्रण में लाया गया।
- उन्होंने तुगलकाबाद के किले वाले शहर का निर्माण किया जो राजधानी और रक्षा के लिये बनाया गया एक मज़बूत किला था।
मुहम्मद बिन तुगलक
- अपने पिता की मृत्यु के बाद वह दिल्ली का सुल्तान बना, हालाँकि कुछ इतिहासकारों द्वारा उसे अपने पिता की मृत्यु के लिये दोषी ठहराया गया है।
- सुल्तान राजत्व के दैवी अधिकार सिद्धांत में विश्वास करता था। उदार नीति का पालन करते हुए उसने जाति, पंथ या धर्म से परे अधिकारियों की नियुक्ति की।
- उसने अपनी हिंदू प्रजा के साथ भी कोई भेदभाव नहीं किया।
- उसने विजय की नीति अपनाई और खुरासान, नगरकोट, कराजाल, मेवाड़, तेलंगाना तथा मालाबार में अभियान दल भेजे। कई एशियाई देशों के साथ राजनयिक संबंध स्थापित किये गए।
- उसका साम्राज्य मध्यकालीन सुल्तानों में सबसे व्यापक था।
- उसने बेगमपुरी मस्जिद के साथ-साथ जहाँपनाह का शाही निवास भी बनवाया।
फिरोज़ शाह तुगलक
- मुहम्मद तुगलक का चचेरा भाई फिरोज़ (या फिरुज ) शाह तुगलक वर्ष 1351 में सिंहासन पर बैठा और वर्ष 1388 तक शासन किया। हालाँकि सुल्तान अपने पूर्ववर्तियों की तरह एक सक्षम सैन्य नेता नहीं था, फिर भी वह शहरों, स्मारकों और सार्वजनिक भवनों का एक महान निर्माता था।
- सुल्तान ने गैर-मुसलमानों पर कर सहित इस्लामी कानूनों द्वारा स्वीकृत चार कर लगाए। वर्ष 1361 में जाजनगर (ओडिशा) में उसके अभियान ने प्रसिद्ध पुरी जगन्नाथ मंदिर को नष्ट कर दिया।
फिरोज़ शाह की उपलब्धियाँ
- फिरोज़ शाह तुगलक ने अपने राज्य में बुनियादी ढाँचे के विकास हेतु प्रमुखता से कार्य किया।
- दीवान-ए-खैरात: दान के लिये कार्यालय
- दीवान-ए-बुंदगान: गुलामों का विभाग
- सराय (विश्रामगृह): व्यापारियों और अन्य यात्रियों के लाभ के लिये
- चार नए शहर: फिरोजाबाद, फतेहाबाद, जौनपुर और हिसार
- उसने निम्न नहरों का निर्माण किया:
- फिरोज़ शाह तुगलक द्वारा लगाए गए कर:
- खराज: भूमि कर जो भूमि की उपज के दसवें हिस्से के बराबर होता था
- ज़कात: मुसलमानों से संपत्ति पर वसूला जाने वाला ढाई प्रतिशत कर
- खम: लूट के पाँचवें हिस्से पर कब्ज़ा (एक पाँचवाँ हिस्सा सैनिकों के लिये छोड़ दिया गया)
- अन्य कर: सिंचाई कर, उद्यान कर, चुंगी कर और बिक्री कर
मुहम्मद बिन तुगलक के प्रयोग:
पूंजी का स्थानांतरण
- अलाउद्दीन खिलजी के बाद मुहम्मद बिन तुगलक (1324 - 1351) को एक ऐसे शासक के रूप में याद किया जाता है जिसने कई साहसिक प्रयोग किये और कृषि में गहरी रुचि दिखाई।
- मुहम्मद बिन तुगलक ने अपने राज्यारोहण के तुरंत बाद जो सबसे विवादास्पद कदम उठाया, वह था राजधानी को दिल्ली से देवगीर (बाद में इसका नाम बदलकर दौलताबाद) में स्थानांतरित करना ।
- केवल उच्च वर्गों जैसे- शेखों, रईसों और उलेमाओं को दौलताबाद जाने की आवश्यकता थी, जबकि बाकी आबादी दिल्ली में ही रही।
- अंततः बढ़ते असंतोष और इस एहसास के कारण कि दक्षिण से उत्तरी क्षेत्रों को नियंत्रित करना मुश्किल था, अतः मुहम्मद बिन तुगलक ने दौलताबाद को राजधानी बनाने का फैसला किया।
- इसने संचार व्यवस्था में सुधार कर उत्तर और दक्षिण भारत को एक साथ लाने में मदद की। इनमें कई धार्मिक मान्यताओं को मानने वाले लोग भी शामिल थे, जो कि दौलताबाद गए और वहीं बस गए। इन लोगों को तुर्क अपने साथ उत्तर भारत लाए थे एवं इन्होंने दक्कन में सांस्कृतिक, धार्मिक और सामाजिक विचारों के प्रसार में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- इसके परिणामस्वरूप उत्तर भारत के साथ-साथ दक्षिण भारत में भी सांस्कृतिक संपर्क की एक नई प्रक्रिया शुरू हुई।
टोकन मुद्रा:
- मुहम्मद बिन तुगलक द्वारा शुरू की गई एक और विवादास्पद परियोजना "टोकन मुद्रा" थी। बरनी के अनुसार, सुल्तान ने टोकन मुद्रा की शुरुआत की क्योंकि सुल्तान की विजय अभियानों के साथ-साथ उसकी असीम उदारता के कारण खज़ाना खाली हो गया था।
- चौदहवीं शताब्दी में विश्व में चाँदी की कमी हो गई और भारत को संकट का सामना करना पड़ा। इसलिये सुल्तान को चाँदी के स्थान पर तांबे के सिक्के जारी करने के लिये मजबूर होना पड़ा।
- उसने चाँदी के सिक्के (टंका) के स्थान पर तांबे का सिक्का (जीतल) चलाया और आदेश दिया कि इसे टंका के समतुल्य स्वीकार किया जाएगा। हालाँकि भारत में टोकन मुद्रा का विचार नया था और इसे स्वीकार कर पाना व्यापारियों तथा आम लोगों के लिये कठिन था।
- राज्य ने टकसालों द्वारा जारी सिक्कों की नकल को रोकने के लिये भी उचित सावधानी नहीं बरती। सरकार लोगों को नए जाली सिक्के बनाने से रोक नहीं सकी और जल्द ही बाज़ारों में नए जाली सिक्के बहुतायत में आ गए।
- बरनी के अनुसार, लोगों ने अपने घरों में टोकन मुद्रा ढालना शुरू कर दिया था। हालाँकि आम आदमी शाही खज़ाने द्वारा जारी किये गये तांबे के सिक्कों और स्थानीय स्तर पर बने जाली सिक्कों के बीच अंतर करने में विफल हो रहे थे। अंततः सुल्तान को टोकन मुद्रा वापस लेने के लिये विवश होना पड़ा।
खुरासान और कराचिल अभियान
- 14वीं शताब्दी की शुरुआत में मुहम्मद बिन तुगलक के नेतृत्व में दिल्ली सल्तनत ने अपनी सीमाओं को सुरक्षित करने और सीमा विवादों को सुलझाने के लिये कई सैन्य अभियान शुरू किये।
- खुरासान अभियान का उद्देश्य पश्चिम में अधिक रक्षात्मक/रक्षणीय सीमाएँ स्थापित करना था। हालाँकि यह अभियान कार्यान्वित होने में असफल रहा।
- कराचिल अभियान उन पड़ोसी पहाड़ी राज्यों के साथ सीमा विवाद को सुलझाने का एक प्रयास था जो चीन के प्रभाव में थे।
- हालाँकि यह अभियान अंततः विफल हुआ। इस असफलता के बावजूद बाद में चीन और दिल्ली के मध्य कूटनीतिक वार्तालाप शुरू हुआ।
मुहम्मद तुगलक के शासनकाल के दौरान कृषि सुधार और कुलीनता की स्थिति में हुए परिवर्तन:
- कृषि सुधार:
- मुहम्मद तुगलक ने कृषि में सुधार के लिये कई लक्षित उपाय खोजने का कार्य किया। इनमें से अधिकांश का परीक्षण दोआब क्षेत्र में किया गया।अलाउद्दीन खिलजी की नीति के अंतर्गत क्षेत्र के ज़मींदार-जिन्हें खुत और मुकद्दम कहा जाता था, के लिये भी अन्य लोगों के समान ही कर का भुगतान करने का प्रावधान था परंतु मुहम्मद तुगलक इसमें विश्वास नहीं करता था। परंतु वह राज्य के लिये भू-राजस्व का पर्याप्त हिस्सा अवश्य ही चाहता था।
- सत्ता में रहने के दौरान उसने जिन नीतियों को बढ़ावा दिया, वे बुरी तरह विफल रहीं, हालाँकि उन नीतियों का दीर्घकालिक प्रभाव सकारात्मक था।
- मुहम्मद तुगलक के शासनकाल की शुरुआत में ही गंगा के दोआब में अत्यधिक कर निर्धारण के कारण गंभीर किसान विद्रोह हुआ था। किसान गाँवों से भाग गए और मुहम्मद तुगलक ने उन्हें पकड़ने एवं दंडित करने हेतु कठोर कदमों का सहारा लिया।
- लगभग छह वर्षों तक इस क्षेत्र को तबाह करने वाले भीषण अकाल ने स्थिति को और भी बदतर बना दिया।
- मवेशियों और बीजों तथा कुएँ खोदने के लिये अग्रिम राशि देकर राहत के प्रयास बहुत देर से किये गए। दिल्ली में मौतों की संख्या इस कदर बढ़ गई कि हवा भी प्रदूषित हो गई।
- सुल्तान ने दिल्ली छोड़ दी और ढाई साल तक दिल्ली से 100 मील दूर कन्नौज के पास गंगा के तट पर स्वर्गद्वारी नामक शिविर में जीवन बिताया।
- दिल्ली लौटने के पश्चात् मुहम्मद तुगलक ने दोआब में खेती के विस्तार और सुधार के लिये एक योजना का शुभारंभ किया। उसने दीवान-ए-अमीर कोही नामक एक अलग विभाग की स्थापना की।
- क्षेत्र को एक अधिकारी की अध्यक्षता में ब्लॉकों में विभाजित किया गया था, जिनका कार्य किसानों को ऋण देकर खेती का विस्तार करना और उन्हें बेहतर फसलें उगाने के लिये प्रेरित करना था जिनमें जौ के स्थान पर गेहूँ, गेहूँ के स्थान पर गन्ना, गन्ना के स्थान पर अंगूर तथा खजूर आदि फसल शामिल थे।
- यह योजना बड़े पैमाने पर विफल रही क्योंकि इस उद्देश्य के लिये चयनित व्यक्ति अनुभवहीन और बेईमान थे तथा उन्होंने अपने स्वयं के उपयोग के लिये धन का दुरुपयोग किया।
- इस बीच मुहम्मद तुगलक की मृत्यु हो गई और फिरोज़ ने ऋण माफ कर दिया लेकिन खेती के विस्तार एवं सुधार की मुहम्मद तुगलक की नीति की फिरोज़ ने और बाद में अकबर ने और भी मज़बूती से लागू किया।
- विविध कुलीनता की चुनौतियाँ:
- परिणामस्वरूप उसके शासनकाल में दिल्ली सल्तनत का चरमोत्कर्ष और विघटन, दोनों का आरंभ हुआ।
- मुहम्मद तुगलक को जिस दूसरी समस्या का सामना करना पड़ा वह थी ‘कुलीन’ वर्ग की समस्या। चहलगानी तुर्कों के पतन और खिलजियों के उदय के साथ कुलीन वर्ग में विभिन्न नस्लों के मुसलमानों का वर्चस्व कम हुआ, जिनमें भारतीय धर्मांतरित लोग भी शामिल थे।
- मुहम्मद तुगलक ने उन लोगों को महत्त्व दिया जो गैर-कुलीन परिवार से थे, इनमें नाई, रसोइया, बुनकर, शराब बनाने वाली आदि जातियाँ शामिल थीं। उसने उन्हें महत्त्वपूर्ण कार्य क्षेत्र सौंपे।
- उसके कुलीन वर्ग में कुछ हिंदू सहित धर्मांतरित मुस्लिमों के वंशज और साथ ही नियुक्त विदेशी दरबारी शामिल थे। कुलीन वर्ग में इस विविधता के कारण उनके मध्य एकजुटता और उनकी राज-भक्ति में कमी देखी गई।
- विशाल साम्राज्य के कारण कुलीन वर्ग को विद्रोह और सत्ता के स्वतंत्र क्षेत्रों की स्थापना करने का अवसर मिला। मुहम्मद तुगलक के कठोर दंडों ने इस प्रवृत्ति को और बढ़ावा दिया।
फिरोज़ शाह तुगलक कैसे सत्ता में आया?
- मुहम्मद तुगलक के शासनकाल के दौरान उसके साम्राज्य में, विशेषकर दक्षिण भारत में, बार-बार विद्रोह हुए। ये विद्रोह स्थानीय राज्यपालों द्वारा आयोजित किये गए थे और इससे उसकी सेनाओं पर बहुत दबाव पड़ा।
- विनाशकारी प्लेग के कारण मुहम्मद तुगलक की सेना और कमज़ोर हो गई, जिसके परिणामस्वरूप उसकी दो-तिहाई सैनिकों की मृत्यु हो गई। दक्षिण भारत से लौटने के बाद हरिहर एवं बुक्का के नेतृत्व में एक और विद्रोह के कारण विजयनगर साम्राज्य की स्थापना हुई, जबकि दक्कन में प्रभावशाली विदेशियों ने बहमनी साम्राज्य का गठन किया।
- बंगाल को भी आज़ादी मिल गई थी। हालाँकि मुहम्मद तुगलक अवध, गुजरात और सिंध में विद्रोहों को दबाने में कामयाब रहा लेकिन अंततः सिंध में उसकी मृत्यु हो गई तथा उसका चचेरा भाई फिरोज़ तुगलक उसका उत्तराधिकारी बना गया।
- चूँकि मुहम्मद तुगलक की नीतियों ने कुलीनों, सेना और प्रभावशाली मुस्लिम धर्मशास्त्रियों तथा सूफी संतों में असंतोष पैदा कर दिया था।
- सत्ता में आने के बाद फिरोज़ तुगलक को दिल्ली सल्तनत के विघटन को रोकने की चुनौती का सामना करना पड़ा। उसने आसानी से प्रबंधनीय क्षेत्रों पर अधिकार जताते हुए कुलीनों, सेना और धर्मशास्त्रियों के तुष्टिकरण की नीति अपनाई।
- उसने दक्षिण भारत और दक्कन पर पुनः नियंत्रण पाने का प्रयास नहीं किया।
फिरोज़ शाह तुगलक द्वारा अपनाई गई नीतियाँ:
- फिरोज़ तुगलक एक उल्लेखनीय सैन्य नेता नहीं था लेकिन उसके शासनकाल में शांति और क्रमिक विकास का दौर देखा गया। उसने मृत कुलीनों के बेटों, दामादों और दासों को पदों के उत्तराधिकार एवं इक्ता (भूमि अनुदान) की अनुमति देने वाला एक फरमान लागू किया।
- उसने खाता लेखापरीक्षा के समय कुलीनों और अधिकारियों को प्रताड़ित करने की प्रथा को समाप्त कर दिया। इन उपायों से कुलीन प्रसन्न हुए तथा विद्रोह कम हो गए।
- हालाँकि वंशानुगत कार्यालयों और इक्ता की नीति में दीर्घकालिक कमियाँ थीं। इसने सक्षम व्यक्तियों की भर्ती को एक छोटे दायरे से बाहर सीमित कर दिया तथा सुल्तान को एक संकीर्ण कुलीनतंत्र पर निर्भर बना दिया।
- उसने सेना में आनुवंशिकता के सिद्धांत का विस्तार किया, जिसमें पुराने सैनिकों को उनके बेटों, दामादों या दासों द्वारा प्रतिस्थापित करने की अनुमति दी गई। सैनिकों को अब नकद भुगतान नहीं, बल्कि उन्हें गाँवों से भू-राजस्व की वसूली का कार्यभार मिलता था।
- फलस्वरूप, अंततः सैनिकों को कोई लाभ नहीं हुआ और सैन्य प्रशासन ढीला पड़ गया तथा भ्रष्टाचार बढ़ गया।
- उसने स्वयं को एक सच्चा मुस्लिम राजा और अपने राज्य को वास्तव में इस्लामी घोषित करके धर्मशास्त्रियों को खुश करने का लक्ष्य रखा। इल्तुतमिश के समय से ही राज्य की प्रकृति एवं गैर-मुसलमानों के प्रति उसकी नीतियों को लेकर रूढ़िवादी धर्मशास्त्रियों तथा सुल्तानों के बीच संघर्ष होता रहा था।
- धर्मशास्त्रियों की संतुष्टि के लिये कुछ को उच्च पदों पर नियुक्त किया गया, हालाँकि न्यायपालिका और शैक्षिक प्रणाली उसके नियंत्रण में रही।
- उसने राज्य में उन प्रथाओं का बहिष्कार किया, जिन्हें विद्वान गैर-इस्लामी मानते थे। उसने ही जज़िया कर लगाने की शुरुआत की थी।
- फिरोज़ तुगलक पहला शासक था जिसने हिंदू विचारों और प्रथाओं को बेहतर ढंग से समझने के लिये हिंदू धार्मिक कार्यों का संस्कृत से फारसी में अनुवाद करने के लिये कदम उठाए।
- उसके शासनकाल के दौरान संगीत, चिकित्सा और गणित पर कई पुस्तकों का भी संस्कृत से फारसी में अनुवाद किया गया था।