उत्तर प्रदेश में इको-पर्यटन | उत्तर प्रदेश | 28 Apr 2025
चर्चा में क्यों?
उत्तर प्रदेश सरकार ने राज्य में ईको टूरिज्म को बढ़ावा देने के लिये बाँधों और जलाशयों को पर्यटन स्थलों के रूप में विकसित करने का निर्णय लिया है।
मुख्य बिंदु
- पहल के बारे में:
- इस पहल के तहत चित्रकूट, महोबा, सोनभद्र, हमीरपुर, झाँसी, सिद्धार्थनगर और बाँदा ज़िलों के सात प्रमुख बाँधों और झीलों पर बुनियादी ढाँचे का निर्माण किया जाएगा।
- इन स्थानों पर जल और साहसिक क्रीड़ा गतिविधियों को प्रोत्साहित करने के लिये सिंचाई एवं जल संसाधन विभाग का सहयोग सुनिश्चित किया गया है।
- जिन जलाशयों और बाँधों को चुना गया है, उनमें शामिल हैं:
- गुंता बाँध (चित्रकूट)
- अर्जुन डैम (महोबा)
- धंधरौल डैम (सोनभद्र)
- मौदहा डैम (हमीरपुर)
- गढ़मऊ झील (झाँसी)
- मझौली सागर (सिद्धार्थनगर)
- नवाब टैंक (बाँदा)
- सरकार का उद्देश्य इन जलाशयों के प्राकृतिक सौंदर्य को आधुनिक पर्यटन सुविधाओं जैसे रिसॉर्ट, बोटिंग, वाटर स्पोर्ट्स, ट्रैकिंग और कैंपिंग के माध्यम से और भी आकर्षक बनाना है।
- इस योजना से स्थानीय स्तर पर रोज़गार सृजन और आर्थिक विकास को मज़बूती मिलेगी।
- सिंचाई एवं जल संसाधन विभाग इन परियोजनाओं के लिये तकनीकी सहायता और आवश्यक अनुमतियाँ देगा, साथ ही बाँधों की सुरक्षा और संरचना को सुरक्षित रखने के मानकों का पालन सुनिश्चित करेगा।
- जल क्रीड़ा गतिविधियों के दौरान पर्यावरण और सुरक्षा मानकों का भी विशेष ध्यान रखा जाएगा।
इको टूरिज्म
- परिचय
- इको टूरिज्म पर्यटन का एक ऐसा रूप है, जो पर्यावरण के अनुकूल, सतत और प्राकृतिक क्षेत्रों पर केंद्रित होता है। इसमें प्राकृतिक क्षेत्रों जैसे राष्ट्रीय उद्यानों, वन्यजीव अभयारण्यों, वर्षावनों आदि का इस तरह से भ्रमण किया जाता है कि वहाँ की जैवविविधता और संस्कृति को कोई क्षति न पहुँचे।
- उद्देश्य
- इसका उद्देश्य संरक्षण प्रयासों का समर्थन करते हुए, स्थानीय समुदायों को आर्थिक लाभ पहुँचाना और आगंतुकों को प्रकृति के प्रति जागरूक करना है।
- इको टूरिज्म के प्रकार:
- वन्यजीव पर्यटन: राष्ट्रीय उद्यानों और अभयारण्यों में जानवरों का अवलोकन।
- वन पर्यटन: वर्षावनों और पर्णपाती वनों की खोज।
- समुद्री पर्यटन: समुद्री जीवों का निरीक्षण।
- सांस्कृतिक पर्यटन: स्वदेशी समुदायों के रीति-रिवाजों को जानना।
- साहसिक पर्यटन: ट्रैकिंग, पर्वतारोहण आदि पर्यावरणीय दृष्टि से सतत गतिविधियाँ।
- इको टूरिज्म का वैश्विक परिप्रेक्ष्य:
कान्हा गौशाला | उत्तर प्रदेश | 28 Apr 2025
चर्चा में क्यों?
उत्तर प्रदेश के आगरा नगर निगम की कान्हा गोशाला में दो मेगावाट क्षमता का सौर ऊर्जा संयंत्र स्थापित किया जाएगा, जिससे यह प्रदेश की पहली ऐसी गोशाला बन जाएगी जो बड़े पैमाने पर नवीकरणीय ऊर्जा का उत्पादन और उपयोग करेगी।
मुख्य बिंदु
- कान्हा गोशाला के बारे में:
- यह परियोजना नगर निगम द्वारा वर्ष 2025 तक हरित भविष्य के लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए म्यूनिसिपल बॉण्ड योजना के तहत क्रियान्वित की जा रही है।
- इससे न केवल गोशाला की ऊर्जा आवश्यकताएँ स्वच्छ स्रोत से पूरी होंगी, बल्कि पर्यावरणीय संरक्षण को भी मज़बूती मिलेगी।
- गोशाला में पहले से ही 100 सोलर स्ट्रीट लाइटें लगी हुई हैं, जो स्वच्छ ऊर्जा का उदाहरण हैं।
- गोशाला में गोबर से गोकाष्ठ बनाया जा रहा है, जिसका उपयोग धार्मिक अनुष्ठानों और अंतिम संस्कार में लकड़ी के विकल्प के रूप में किया जा रहा है। इससे वनों की कटाई को रोकने और पर्यावरण संरक्षण में मदद मिल रही है।
- अस्थिति
- गोशाला ऐसी भूमि पर स्थित है, जहाँ मिट्टी बंजर और भूजल खारा है। इसके बावजूद, यहाँ मियावाकी तकनीक द्वारा 5000 वर्ग मीटर क्षेत्र में घना जंगल विकसित किया गया है, जो जैवविविधता को बढ़ावा देता है और एक प्राकृतिक ऑक्सीजन ज़ोन के रूप में कार्य करता है।
- यह गोशाला अब ऊर्जा, हरियाली और नवाचार का एक प्रमुख मॉडल बन चुकी है।
नगर निगम बॉण्ड
- यह वे ऋण उपकरण हैं, जो शहरी स्थानीय निकाय (ULBs) द्वारा बुनियादी ढाँचे और विकास परियोजनाओं के लिये निधि जुटाने के उद्देश्य से जारी किये जाते हैं।
- लाभ: सरकारी निधियों पर निर्भरता कम करना, वित्तीय स्वायत्तता बढ़ाना, निजी निवेश को आकर्षित करना और दीर्घकालिक शहरी वित्तपोषण को सक्षम बनाना।
- चुनौतियाँ: राज्य अनुदानों पर भारी निर्भरता (वित्त वर्ष 24 में राजस्व का 38%) के कारण कम निर्गम। पुणे, अहमदाबाद, सूरत, हैदराबाद और लखनऊ जैसे कुछ ही शहरों ने बॉण्ड जारी किये हैं।
- व्यय पैटर्न (वित्त वर्ष 2018-2025): नगरपालिकाओं द्वारा बॉण्ड के माध्यम से जुटाई गई अधिकांश धनराशि शहरी जल आपूर्ति और सीवरेज के लिये आवंटित की गई, इसके बाद नवीकरणीय ऊर्जा और नदी विकास का स्थान रहा।
मियावाकी वृक्षारोपण विधि:
- मियावाकी पद्यति के प्रणेता जापानी वनस्पति वैज्ञानिक अकीरा मियावाकी (Akira Miyawaki) हैं। इस पद्यति से बहुत कम समय में जंगलों को घने जंगलों में परिवर्तित किया जा सकता है।
- यह कार्यविधि 1970 के दशक में विकसित की गई थी, जिसका मूल उद्देश्य भूमि के एक छोटे से टुकड़े के भीतर हरित आवरण को सघन बनाना था।
- इस कार्यविधि में पेड़ स्वयं अपना विकास करते हैं और तीन वर्ष के भीतर वे अपनी पूरी लंबाई तक बढ़ जाते हैं।
- मियावाकी पद्धति में उपयोग किये जाने वाले पौधे ज़्यादातर आत्मनिर्भर होते हैं और उन्हें खाद एवं जल देने जैसे नियमित रख-रखाव की आवश्यकता नहीं होती है।