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झाबुआ में बाघ ST-2303
चर्चा में क्यों?
हाल ही में बाघ ST-2303 सरिस्का टाइगर रिज़र्व से निकल कर हरियाणा के रेवाड़ी के झाबुआ के घने वनों में पहुँच गया है।
मुख्य बिंदु
- नीलगाय और जंगली सूअर जैसे शिकार से समृद्ध झाबुआ वन, बाघ को प्रचुर मात्रा में भोजन का स्रोत तथा घना आवरण प्रदान करता है, जिससे वन अधिकारियों के लिये उसे पकड़ना या स्थानांतरित करना चुनौतीपूर्ण हो जाता है।
- गाँवों के निकट बाघ की उपस्थिति से सुरक्षा संबंधी चिंताएँ तथा संभावित मानव-वन्यजीव संघर्ष का भय उत्पन्न हो गया है।
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वन अधिकारी बाघ को सुरक्षित रूप से सरिस्का वापस लाने के लिये राजस्थान स्थित अपने समकक्षों के साथ समन्वय कर रहे हैं।
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सरिस्का टाइगर फाउंडेशन ने केंद्रीय पर्यावरण मंत्री से बाघों की उनके मूल पर्यावास में वापसी सुनिश्चित करने का आग्रह किया है, क्योंकि अन्य रिज़र्व में उनके स्थानांतरण की संभावना है।
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यह घटना भविष्य में बाघों के प्रवास के लिये सरिस्का और हरियाणा अरावली के बीच वन्यजीव गलियारों के संरक्षण के महत्त्व को उजागर करती है।
सरिस्का टाइगर रिज़र्व
- सरिस्का टाइगर रिज़र्व अरावली पहाड़ियों में स्थित है और राजस्थान के अलवर ज़िले का एक हिस्सा है।
- इसे वर्ष 1955 में वन्यजीव अभयारण्य घोषित किया गया तथा बाद में वर्ष 1978 में इसे टाइगर रिज़र्व घोषित कर दिया गया, जिससे यह भारत के प्रोजेक्ट टाइगर का हिस्सा बन गया।
- इसमें खंडहर मंदिर, किले, मंडप और एक महल शामिल हैं।
- कंकरवाड़ी किला रिज़र्व के केंद्र में स्थित है।
- ऐसा कहा जाता है कि मुगल बादशाह औरंगज़ेब ने गद्दी के उत्तराधिकार के संघर्ष में अपने भाई दारा शिकोह को इसी किले में कैद किया था।
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कृषि क्षेत्र में लगी आग को कम करने के लिये हरियाणा की योजना
चर्चा में क्यों?
हाल ही में हरियाणा सरकार ने धान की फसल की कटाई के बाद अवशिष्ट पराली का उपयोग करने के लिये एक रूपरेखा विकसित की है।
- इस पहल का उद्देश्य खेतों में आग लगने की घटनाओं को कम करना है, जो प्रतिवर्ष सर्दियों के मौसम में उत्तर भारत में खतरनाक वायु प्रदूषण का कारण बनती है।
मुख्य बिंदु:
- कृषि विभाग ने अनुमान लगाया है कि वर्ष 2024 में हरियाणा में 38.8 लाख एकड़ कृषि भूमि का उपयोग धान की खेती के लिये किया जाएगा। इन फसलों से 81 लाख मीट्रिक टन (LMT) अवशेष उत्पन्न होने का अनुमान है।
- किसान धान की कटाई के बाद जो अवशेष या पुआल बच जाता है, उसे वे जला देते हैं ताकि अगली बुवाई के लिये भूमि को जल्दी से जल्दी तैयार कर सकें।
- राज्य सरकार फसल अवशेष प्रबंधन योजना शुरू करने जा रही है जिसमें शामिल हैं:
- स्व-स्थाने (In-Situ) पराली प्रबंधन में पराली को काटकर खाद के रूप में मृदा में मिलाना शामिल है। इसके लिये सरकार स्लेशर सहित 90,000 मशीनें उपलब्ध कराएगी और किसानों को परिचालन शुल्क के रूप में प्रति एकड़ 1,000 रुपए देगी।
- बाह्य-स्थाने (Ex-Situ) प्रबंधन उद्योग पराली के उपयोग को प्रोत्साहित करता है, जैसे कि जैव ईंधन के लिये बायोमास या पैकेजिंग और कार्डबोर्ड इकाइयों के लिये कच्चा माल। यह पराली जलाने का एक आर्थिक विकल्प बनाता है, क्योंकि उद्योग किसानों से फसल अवशेष खरीदते हैं।
- सरकार की योजना ज़िलों को 1,405 बेलर मशीनें वितरित करने की है, जो बाद में किसानों को उपलब्ध कराई जाएंगी
- इसका उद्देश्य फसल अवशेषों के संग्रह और भंडारण को और अधिक सुविधाजनक बनाना है। इसके अलावा, अधिकारी इन फसल अवशेषों को खरीदने के लिये उद्योगों के साथ साझेदारी स्थापित करने पर भी काम कर रहे हैं।
पराली दहन
- पराली दहन धान की फसल के अवशेषों को खेत से हटाने की एक विधि है, जिसका उपयोग सितंबर के अंतिम सप्ताह से नवंबर तक गेहूँ की बुवाई के लिये किया जाता है, जो दक्षिण-पश्चिम मानसून की वापसी के साथ ही होता है।
- पराली दहन धान, गेहूँ आदि जैसे अनाज की कटाई के बाद बचे पुआल के ठूँठ को आग लगाने की प्रक्रिया है। आमतौर पर इसकी आवश्यकता उन क्षेत्रों में होती है जहाँ संयुक्त कटाई पद्धति का उपयोग किया जाता है, जिससे फसल अवशेष बच जाते हैं।
- अक्तूबर और नवंबर में यह उत्तर-पश्चिमी भारत, विशेषकर पंजाब, हरियाणा एवं उत्तर प्रदेश में प्रचलित है।
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