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आदि कैलाश, ओम पर्वत यात्रा स्थगित
चर्चा में क्यों?
अधिकारियों के अनुसार, उत्तराखंड के पिथौरागढ़ ज़िले में आदि कैलाश और ओम पर्वत की तीर्थयात्रा 25 जून, 2024 से अस्थायी रूप से निलंबित कर दी जाएगी।
मुख्य बिंदु:
मानसून के कारण उच्च ऊँचाई वाले स्थलों की तीर्थयात्रा में व्यवधान उत्पन्न होने की आशंका के कारण यात्रा को अस्थायी रूप से स्थगित कर दिया गया था। यात्रा की बुकिंग पुनः सितंबर 2024 में प्रारंभ की जाएगी।
आदि कैलाश और ओम पर्वत
- आदि कैलाश को शिव , छोटा कैलाश, बाबा कैलाश या जोंगलिंगकोंग चोटी के नाम से जाना जाता है, यह उत्तराखंड के पिथौरागढ़ ज़िले में हिमालय पर्वत शृंखला में स्थित एक पर्वत है।
- ओम पर्वत कैलाश मानसरोवर यात्रा का भी एक हिस्सा है, जिसमें तिब्बत में कैलाश पर्वत और मानसरोवर झील की यात्रा शामिल है।
- आदि कैलाश और ओम पर्वत के पूजनीय पर्वत उत्तराखंड के पिथौरागढ़ ज़िले में भारत-चीन सीमा पर स्थित हैं।
- भगवान शिव के भक्तों के लिये दोनों चोटियाँ धार्मिक महत्त्व रखती हैं।
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खलंगा आरक्षित वन
चर्चा में क्यों?
हाल ही में देहरादून के स्थानीय निवासी खलंगा आरक्षित वन में 2,000 साल वृक्षों को बचाने के लिये एकजुट हुए। वृक्षों की कटाई के खिलाफ जनता के विरोध के कारण, राज्य सरकार नियोजित पेयजल संयंत्र को जंगल से स्थानांतरित करेगी।
मुख्य बिंदु:
- पर्यावरण कार्यकर्त्ताओं ने सोंग बाँध पेयजल परियोजना के लिये खलंगा आरक्षित वन में 2000 साल वृक्षों को चिह्नित करने का विरोध किया, जिससे स्थानीय लोगों में गहरी नाराज़गी उत्पन्न हो गई और उन्होंने परियोजना के खिलाफ विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया।
- जागरूकता फैलाने के लिये सोशल मीडिया पर अभियान चलाया गया और कुछ समूहों ने वृक्षों पर रक्षासूत्र बाँधे।
- देहरादून में सोंग बाँध परियोजना के अंतर्गत 524 करोड़ रुपए की पेयजल परियोजना बनाई जाएगी, जिसकी अनुमानित कुल लागत 3000 करोड़ रुपए है।
- इस परियोजना में सोंग बाँध के निकट एक जलाशय का निर्माण तथा 4.2 हेक्टेयर भूमि पर 150 MLD (मेगालिटर प्रतिदिन) जल उपचार संयंत्र का निर्माण शामिल है।
- इस परियोजना का उद्देश्य कनार गाँव से राजधानी के 60 वार्डों को पेयजल आपूर्ति करना है, जिससे अंततः देहरादून के 60 वार्डों को लाभ होगा।
साल वृक्ष
- शोरिया रोबस्टा (Shorea robusta) या साल वृक्ष, डिप्टेरोकार्पेसी परिवार का एक वृक्ष प्रजाति है।
- यह वृक्ष भारत, बांग्लादेश, नेपाल, तिब्बत और हिमालयी क्षेत्रों का मूल निवासी है।
- विवरण
- यह 40 मीटर तक ऊँचा हो सकता है तथा इसके तने का व्यास 2 मीटर होता है।
- पत्तियाँ 10-25 सेमी. लंबी और 5-15 सेमी. चौड़ी होती हैं।
- आर्द्र क्षेत्रों में साल सदाबहार होता है; शुष्क क्षेत्रों में यह शुष्क ऋतु में पर्णपाती होता है, जिसके अधिकांश पत्ते फरवरी से अप्रैल तक गिर जाते हैं और अप्रैल तथा मई में पुनः पत्ते निकल आते हैं।
- साल वृक्ष को मध्य प्रदेश, ओडिशा और झारखंड सहित उत्तरी भारत में सखुआ के नाम से भी जाना जाता है।
- यह दो भारतीय राज्यों- छत्तीसगढ़ और झारखंड का राज्य वृक्ष है।
- संस्कृति
- हिंदू परंपरा में साल वृक्ष को पवित्र माना जाता है। इसे भगवान विष्णु से भी जोड़ा जाता है।
- इस वृक्ष का सामान्य नाम 'साल' शब्द 'शाला' से आया है, जिसका संस्कृत में अर्थ 'प्राचीर' होता है।
- जैन धर्मावलंबियों का मानना है कि 24वें तीर्थंकर महावीर को साल वृक्ष के नीचे ज्ञान की प्राप्ति हुई थी।
- बंगाल की कुछ संस्कृतियों में सरना बूढ़ी की पूजा की जाती है, जो साल वृक्षों के पवित्र उपवनों से जुड़ी देवी है।
- बौद्ध परंपरा के अनुसार शाक्य की रानी माया ने दक्षिण नेपाल के लुंबिनी के एक बगीचे में साल वृक्ष या अशोक वृक्ष की शाखा को पकड़ते हुए गौतम बुद्ध को जन्म दिया था।
- बौद्ध परंपरा के अनुसार, बुद्ध की मृत्यु के समय वे साल वृक्षों के बीच विश्राम कर रहे थे।
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