मध्य प्रदेश Switch to English
भारत बोत्सवाना से चीते लाएगा
चर्चा में क्यों?
भारत में चीतों के पुनर्वास प्रयासों को एक नई दिशा देने के लिये अफ्रीकी देश बोत्सवाना से आठ चीते दो चरणों में भारत लाए जाएंगे।
- नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी (NTCA) के अधिकारियों ने बताया कि भारत में दक्षिण अफ्रीका, और केन्या से भी और चीते लाने की प्रक्रिया जारी है।
मुख्य बिंदु
- चीतों का पुनर्वास:
- वर्ष 2022 में शुरू की गई चीता परियोजना, विलुप्त हो चुकी चीतों की प्रजातियों को जंगल में फिर से लाने की भारत की महत्वाकांक्षी पहल है। अब तक इस परियोजना पर 112 करोड़ रुपए से अधिक खर्च किये जा चुके हैं, जिसमें से लगभग 67% राशि अकेले मध्य प्रदेश में चीता पुनर्वास गतिविधियों के लिये आवंटित की गई है।।
- मध्य प्रदेश के गांधी सागर अभयारण्य में चीतों का पुनर्वास किया जाएगा।
- यह अभयारण्य राजस्थान की सीमा से सटा हुआ है, जिसमें मध्य प्रदेश और राजस्थान के बीच एक अंतरराज्यीय चीता संरक्षण क्षेत्र स्थापित किया जाएगा।
- कूनो और गांधी सागर अभयारण्य में चीता मित्रों को विशेष प्रशिक्षण दिया जा रहा है ताकि चीतों के संरक्षण और पुनर्वास में उनकी कार्यक्षमता बढ़ सके।
गांधी सागर वन्यजीव अभयारण्य:
- यह राजस्थान से सटे मंदसौर और नीमच ज़िलों की उत्तरी सीमा पर मध्य प्रदेश में स्थित है।
- इसकी विशेषता विशाल खुले परिदृश्य और चट्टानी इलाके हैं।
- वनस्पतियों में उत्तरी उष्णकटिबंधीय शुष्क पर्णपाती वन, मिश्रित पर्णपाती वन और झाड़ी शामिल हैं।
- अभयारण्य में पाई जाने वाली कुछ वनस्पतियाँ खैर, सलाई, करधई, धावड़ा, तेंदू और पलाश हैं।
- जीवों में चिंकारा, नीलगाय, चित्तीदार हिरण, धारीदार लकड़बग्घा, सियार और मगरमच्छ शामिल हैं।
राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA):
- यह पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के तहत एक वैधानिक निकाय है।
- इसकी स्थापना 2005 में टाइगर टास्क फोर्स की सिफारिशों के बाद की गई थी।
- इसका गठन वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 ( जैसा कि 2006 में संशोधित किया गया ) के प्रावधानों के तहत बाघ संरक्षण को मज़बूत करने के लिये, इसे सौंपी गई शक्तियों और कार्यों के अनुसार किया गया था।


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मध्य प्रदेश में जल गंगा संवर्द्धन अभियान
चर्चा में क्यों?
प्रदेश में प्रारंभ किये गए जल गंगा संवर्द्धन अभियान के अंतर्गत उद्यानिकी विभाग द्वारा गाँव-गाँव में आयोजित की जा रही "पानी चौपाल" आकर्षण का प्रमुख केंद्र बन गई है।
मुख्य बिंदु
- पानी चौपाल के बारे में:
- इस चौपाल में मैदानी अमला किसानों को जल संरक्षण, कम पानी से होने वाली फसलों, कृषि और उद्यानिकी फसलों के साथ अधिक लाभ कमाने की तकनीक और नवीन उद्यानिकी तकनीकों के बारे में समझाया जाता है।
- इसके साथ ही, अभियान के दौरान फलोद्यान, ड्रिप लाइन, प्लास्टिक मलचिंग, सब्जी क्षेत्र, मसाला क्षेत्र और पुष्प क्षेत्र विस्तार योजनाओं का लाभ लेने के लिये उद्यानिकी विभाग का ऑनलाइन पोर्टल से पंजीकरण भी कराया जा रहा है।
- प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना "पर ड्रॉप-मोर क्रॉप" के अंतर्गत उद्यानिकी एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग ने 13,500 कृषकों को 76.68 करोड़ रुपए की लागत से स्प्रिंकलर और ड्रिप सुविधा उपलब्ध कराने का लक्ष्य रखा है।
- इसके अलावा, 5,000 हैक्टेयर में फलदार पौधों का रोपण और सूक्ष्म सिंचाई के माध्यम से जल प्रबंधन पर कार्यशालाओं का आयोजन किया जाएगा।
- अभियान के लिये 25 लाख से अधिक फलदार पौधे उपलब्ध करने का लक्ष्य रखा गया है। इन लक्ष्यों की पूर्ति के लिये "पानी चौपाल" में ही किसानों को ऑनलाइन आवेदन प्रक्रिया की जानकारी भी दी जा रही है।
- जल गंगा संवर्द्धन अभियान
- यह अभियान 30 मार्च 2025 को क्षिप्रा नदी के तट से आरंभ हुआ और 30 जून 2025 तक चलेगा।
- उद्देश्य:
- जल स्रोतों का संरक्षण: जल गंगा अभियान का मुख्य उद्देश्य प्रदेश के जल-संरचनाओं (नदी, तालाब, कुए, बावड़ी आदि) का संरक्षण और पुनर्जीवन करना है।
- इसमें गंदे पानी के नालों को स्वच्छ भारत मिशन-2.0 के अंतर्गत शोधित करने की योजना भी शामिल है।
- जन-भागीदारी को बढ़ावा देना: इस अभियान में नगरीय निकायों द्वारा नागरिकों, विशेष रूप से महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित करने का प्रयास किया जा रहा है।
प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (PMKSY):
- इस योजना को वर्ष 2015 में खेती के लिये पानी की पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित करने, सिंचाई के तहत खेती योग्य क्षेत्र का विस्तार करने, जल उपयोग दक्षता में सुधार करने तथा सतत् जल संरक्षण प्रथाओं को बढ़ावा देने के लक्ष्य के साथ शुरू किया गया था।
- यह एक केंद्र प्रायोजित योजना है, जिसमें केंद्र-राज्यों के बीच हिस्सेदारी का अनुपात 75:25 है।
- पूर्वोत्तर क्षेत्र तथा पहाड़ी राज्यों के मामले में यह हिस्सेदारी 90:10 के अनुपात में है।

