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पटना में मौर्य साम्राज्य का उत्खनन
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने कुम्हरार में '80 स्तंभों वाले सभा भवन' की खुदाई शुरू की है, जिसे भारतीय उपमहाद्वीप में मौर्य सम्राटों की स्थापत्य उपलब्धियों का एकमात्र जीवित साक्ष्य माना जाता है।
मुख्य बिंदु
- कुम्हरार में मौर्य महल का अनावरण:
- ASI के अनुसार, 1 दिसंबर, 2024 को पटना के कुम्हरार संरक्षित स्थल पर खुदाई शुरू हुई, जिसमें अशोकन सभा घर पर ध्यान केंद्रित किया गया।
- इसका प्राथमिक उद्देश्य दफन मौर्य पत्थर स्तंभों की वर्तमान स्थिति का आकलन करना है।
- जल स्तर मापने के लिये केंद्रीय भूजल बोर्ड के साथ सहयोग सहित विस्तृत वैज्ञानिक विश्लेषण किया जाएगा।
- निष्कर्षों के आधार पर, सभी 80 स्तंभों को उजागर करने की संभावना पर विचार किया जाएगा।
- ऐतिहासिक संदर्भ और विगत उत्खनन:
- मौर्यकालीन हॉल, जिसके बारे में माना जाता है कि इसका उपयोग सम्राट अशोक ने तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में तृतीय बौद्ध संगीति के लिये किया था, पहली बार 1912-1915 और 1951-1955 के बीच खुदाई के दौरान सामने आया था।
- चुनौतियाँ:
- 1990 के दशक के अंत में भूजल रिसाव के कारण खंडहरों में जलभराव हो गया, जिससे संरचना को नुकसान पहुँचा।
- आगे और अधिक गिरावट को रोकने के लिये, वर्ष 2004 में इस स्थल को मृदा और रेत से ढक दिया गया।
- शुरुआत में, स्थिति के आकलन के लिये कुछ स्तंभों को उजागर किया जाएगा। यदि स्थिति अनुमति देती है, तो और भी स्तंभों को जनता के सामने लाया जा सकता है।
- कुम्हरार का महत्त्व:
- पटना में स्थित कुम्हरार में मौर्य साम्राज्य की राजधानी पाटलिपुत्र के प्राचीन शहर के अवशेष मौजूद हैं।
- कुम्हरार में 600 ईसा पूर्व की पुरातात्विक खोजें, अजातशत्रु, चंद्रगुप्त मौर्य और अशोक जैसे शासकों के इतिहास की जानकारी प्रदान करती हैं।
- इस स्थल में 600 ईसा पूर्व से लेकर 600 ईसवी तक की चार ऐतिहासिक अवधियों की कलाकृतियाँ शामिल हैं, जो इसके ऐतिहासिक महत्त्व को उजागर करती हैं।
मौर्य राजवंश
- चंद्रगुप्त मौर्य (321-297 ईसा पूर्व): मौर्य साम्राज्य के प्रवर्तक, जिन्होंने नंद वंश का अंत किया और हिंदू कुश जैसे क्षेत्रों पर कब्ज़ा करके साम्राज्य का विस्तार किया।
- 305-303 ईसा पूर्व में, उन्होंने सेल्यूकस निकेटर के साथ एक संधि की, जिससे उन्हें अतिरिक्त क्षेत्र प्राप्त हुए। बाद के जीवन में, चंद्रगुप्त जैन धर्म के अनुयायी बन गए।
- चाणक्य, चंद्रगुप्त मौर्य (322 ईसा पूर्व- 297 ईसा पूर्व) और उनके उत्तराधिकारी बिंदुसार के शासनकाल में प्रधानमंत्री थे। साम्राज्य की सफलता में चाणक्य ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- बिंदुसार (298-272 ई.पू.): साम्राज्य का विस्तार दक्कन तक किया, जिसे "अमित्रघात" (शत्रुओं का नाश करने वाला) के नाम से जाना जाता है। आजीविक संप्रदाय को अपनाया। डेमाकस उनके दरबार में एक यूनानी राजदूत था।
- अशोक (272-232 ईसा पूर्व): कलिंग युद्ध के बाद, जिसमें बड़े पैमाने पर जनहानि हुई, उन्होंने बौद्ध धर्म अपना लिया और अपने धम्म (नैतिक कानून) के माध्यम से शांति को बढ़ावा दिया। उन्होंने तीसरी बौद्ध परिषद का आयोजन किया और बौद्ध धर्म को वैश्विक स्तर पर प्रसारित किया।
- दशरथ (232-224 ईसा पूर्व): शाही शिलालेख जारी करने वाले अंतिम मौर्य शासक। क्षेत्रीय नुकसान का सामना करना पड़ा।
- सम्प्रति (224-215 ईसा पूर्व): विघटित क्षेत्रों पर मौर्य नियंत्रण पुनः स्थापित किया और जैन धर्म को बढ़ावा दिया।
- शालिशुक (215-202 ईसा पूर्व): एक झगड़ालू शासक के रूप में जाना जाता था जिसकी नकारात्मक प्रतिष्ठा थी।
- देववर्मन (202-195 ईसा पूर्व): संक्षिप्त शासनकाल, पुराणों में उल्लेखित।
- शतधन्वन (195-187 ईसा पूर्व): बाहरी आक्रमणों के कारण खोए हुए क्षेत्र।
- बृहद्रथ (187-185 ईसा पूर्व): अंतिम मौर्य सम्राट, पुष्यमित्र शुंग द्वारा हत्या, मौर्य राजवंश के अंत का प्रतीक।
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