उत्तर प्रदेश Switch to English
7 नए एक्सप्रेस-वे को मंजूरी
चर्चा में क्यों?
उत्तर प्रदेश सरकार ने राज्य में सड़क परिवहन को सुगम बनाने हेतु 7 नए एक्सप्रेस-वे के निर्माण की मंज़ूरी दी है।
मुख्य बिंदु
- एक्सप्रेस-वे के बारें में:
- मुख्यमंत्री इस परियोजना पर 50 हजार करोड़ रुपए निवेश करने की घोषणा की है।
- ये 7 एक्सप्रेस-वे लखनऊ SCR और दिल्ली NCR के बीच उत्तर प्रदेश के 56 ज़िलों को आपस में जोड़ेंगे। इन सात एक्सप्रेस-वे की कुल लंबाई 866 किमी. होगी। ये एक्सप्रेस-वे आने वाले 2-3 वर्ष में बनकर तैयार हो जाएंगे।
- यह कदम उत्तर प्रदेश सरकार के राज्य की अर्थव्यवस्था को एक ट्रिलियन डॉलर करने की दिशा मेंअहम भूमिका निभाएगा।
- प्रस्तावित 7 एक्सप्रेस-वे:
- चित्रकूट लिंक एक्सप्रेस-वे: 120 किमी लंबा यह एक्सप्रेस-वे बुंदेलखंड के विभिन्न ज़िलों को आपस में जोड़ने का कार्य करेगा।
- झाँसी लिंक एक्सप्रेस-वे: इसकी लंबाई 100 किलोमीटर होगी और इसके माध्यम से बुंदेलखंड के प्रमुख ज़िलों को एक्सप्रेस-वे से सीधे संपर्क मिलेगा।
- जेवर लिंक एक्सप्रेस-वे: 76 किमी. लंबा यह एक्सप्रेस-वे जेवर एयरपोर्ट को यमुना एक्सप्रेस-वे से जोड़ेगा जिससे लोग सीधे एयरपोर्ट से जुड़ सकेंगे।
- विंध्य एक्सप्रेस-वे: इसकी लंबाई 320 किमी है और इस एक्सप्रेस-वे से उत्तर प्रदेश के पिछड़े ज़िलों को बेहतर यातायात की सुविधा मिलेगी। इसमें मिर्ज़ापुर, बनारस, जौनपुर जैसे ज़िले प्रयागराज से जुड़ेंगे।
- विंध्य पूर्वांचल लिंक एक्सप्रेस-वे: इसकी लंबाई 100 किमी है और विंध्याचल क्षेत्र को पूर्वांचल से जोड़ने के लिये मिर्ज़ापुर से गाज़ीपुर के बीच निर्मित होगा।
- लखनऊ लिंक एक्सप्रेस-वे: 50 किमी लंबा यह एक्सप्रेस-वे पूर्वांचल और आगरा एक्सप्रेस-वे को जोड़ेगा।
- आगरा-लखनऊ गंगा एक्सप्रेस-वे लिंक रोड: इस लिंक एक्सप्रेस-वे की लंबाई 90 किमी होगी, जिसे प्रयागराज से मेरठ के बीच गंगा एक्सप्रेस-वे को लखनऊ से जोड़ने के लिये बनाया जाएगा।
- अपेक्षित लाभ:
- आर्थिक विकास: इन एक्सप्रेस-वे के निर्माण से राज्य के विभिन्न हिस्सों में बेहतर कनेक्टिविटी स्थापित होगी, जिससे व्यापार और उद्योग को बढ़ावा मिलेगा और अर्थव्यवस्था को मज़बूती मिलेगी।
- यात्रा में सुविधा: यात्रा की गति और समय में काफी कमी आएगी, जिससे लोगों को यात्रा में अधिक सुविधा होगी।
- स्थानीय विकास: इन एक्सप्रेस-वे के बनने से उन क्षेत्रों में स्थानीय विकास होगा, जिनसे ये मार्ग गुजरेंगे। विशेषकर पिछड़े और दूर-दराज़ के क्षेत्रों में अवसंरचना सुधारने में मदद मिलेगी।
- राज्य की कनेक्टिविटी: इन एक्सप्रेस-वे के जरिये राज्य के विभिन्न ज़िलों और प्रमुख शहरों को एक दूसरे से जोड़ने से राज्य के सडक परिवहन में सुधार होगा।
- रोजगार के अवसर: इन परियोजनाओं के निर्माण और संचालन से रोज़गार के कई नए अवसर सृजित होंगे।
उत्तर प्रदेश में एक्सप्रेस-वे नेटवर्क:
- देश में सर्वाधिक एक्सप्रेस-वे नेटवर्क उत्तर प्रदेश में है। उत्तर प्रदेश के प्रमुख एक्सप्रेस-वे निम्नलिखित हैं-
- यमुना एक्सप्रेस-वे: उत्तर प्रदेश का पहला एक्सप्रेस-वे
- गंगा एक्सप्रेस-वे: उत्तर प्रदेश का सबसे लंबा एक्सप्रेस-वे
- आगरा-लखनऊ एक्सप्रेस-वे: उत्तर प्रदेश का ग्रीनफील्ड एक्सप्रेस-वे
- दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेस-वे
- पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे
- बुंदेलखंड एक्सप्रेस-वे
- गोरखपुर लिंक एक्सप्रेस-वे
- लखनऊ कानपुर एक्सप्रेस-वे


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गुरु रविदास जयंती
चर्चा में क्यों?
उत्तर प्रदेश में 12 फरवरी को गुरु रविदास जयंती मनाई गई। इस अवसर पर मुख्यमंत्री ने प्रदेशवासियों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ दीं।
मुख्य बिंदु
- रविदास जयंती हिंदू चंद्र कैलेंडर के अनुसार माघ महीने की पूर्णिमा को मनाई जाती है। इस वर्ष यह 12 फरवरी को मनाई गई।
- गुरु रविदास अथवा रैदास 14वीं शताब्दी के संत और उत्तर भारत में भक्ति आंदोलन के सुधारक थे।
- ऐसा माना जाता है कि उनका जन्म वाराणसी में एक मोची परिवार में हुआ था। एक ईश्वर में विश्वास और निष्पक्ष धार्मिक कविताओं के कारण उन्हें प्रसिद्धि मिली।
- उन्होंने अपना पूरा जीवन जाति व्यवस्था के उन्मूलन के लिये समर्पित कर दिया और ब्राह्मणवादी समाज की धारणा का खुले तौर पर तिरस्कार किया।
- उनके भक्ति गीतों ने भक्ति आंदोलन पर तत्काल प्रभाव डाला और उनकी लगभग 41 कविताओं को सिखों के धार्मिक ग्रंथ 'गुरु ग्रंथ साहिब' में शामिल किया गया।
- संत रैदास स्वामी रामानंद के शिष्य थे। जबकि मीराबाई को संत रैदास की शिष्या कहा जाता है।
- उन्होंने रैदासिया या रविदासिया पंथ की स्थापना की थी।
भक्ति आंदोलन
- भक्ति आंदोलन का विकास तमिलनाडु में 7वीं और 9वीं शताब्दी के बीच हुआ।
- यह नयनारों (शिव के भक्त) और अलवर (विष्णु के भक्त) की भावनात्मक कविताओं में परिलक्षित होता है। इन संतों ने धर्म को एक ठंडी औपचारिक पूजा के रूप में नहीं बल्कि पूजा और पूजा करने वाले के बीच प्रेम पर आधारित एक प्रेमपूर्ण बंधन के रूप में देखा।
- समय के साथ दक्षिण के विचार उत्तर की ओर बढ़े लेकिन यह बहुत धीमी प्रक्रिया थी।
- भक्ति विचारधारा को फैलाने का एक और प्रभावी तरीका स्थानीय भाषाओं का उपयोग था। भक्ति संतों ने स्थानीय भाषाओं में अपने पद रचे।
- उन्होंने संस्कृत की रचनाओं का अनुवाद भी किया ताकि उन्हें व्यापक दर्शकों के लिये समझा जा सके।
- उदाहरणों में शामिल हैं ज्ञानदेव ने मराठी में लिखा, कबीर, सूरदास और तुलसीदास ने हिंदी में, शंकरदेव ने असमिया को लोकप्रिय बनाया, चैतन्य और चंडीदास ने बंगाली में अपना संदेश फैलाया, मीराबाई ने हिंदी और राजस्थानी में लेखन शामिल है।

