हरियाणा Switch to English
अरावली सफारी पार्क
चर्चा में क्यों?
हाल ही में देश भर से कई सेवानिवृत्त भारतीय वन सेवा अधिकारियों ने प्रधानमंत्री को एक ज्ञापन सौंपकर गुरुग्राम और नूह के कुछ हिस्सों में प्रस्तावित 10,000 एकड़ के अरावली सफारी पार्क परियोजना का विरोध किया।
- उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि पारिस्थितिकी-संवेदनशील क्षेत्र में किसी भी हस्तक्षेप में विनाश के बजाए "संरक्षण और पुनर्स्थापन" को प्राथमिकता दी जानी चाहिये।
मुख्य बिंदु
- अरावली सफारी पार्क:
- पारिस्थितिकीय चिंताएँ:
- इस परियोजना से पारिस्थितिकी संवेदनशील क्षेत्र में वाहनों का आवागमन और निर्माण कार्य बढ़ने से पर्यावरण को हानि हो सकती है।
- उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि अरावली की पहाड़ियाँ गुरुग्राम और नूंह के जल-संकटग्रस्त क्षेत्रों के लिये महत्त्वपूर्ण जल भंडार के रूप में काम करती हैं।
- पार्क में प्रस्तावित “अंडरवाटर जोन” जल स्तर को प्रभावित सकता है, जिससे उस क्षेत्र में और जल की कमी हो सकती है, जिसे पहले से ही केंद्रीय भूजल बोर्ड द्वारा “अतिदोहित” के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
- कानूनी और पर्यावरणीय प्रतिबंध:
- इस बात पर ज़ोर दिया गया कि सफारी पार्क "वन" श्रेणी के अंतर्गत आता है, जहाँ पर्यावरण कानून वनों की कटाई, भूमि की सफाई और निर्माण पर सख्त प्रतिबंध लगाते हैं।
- उन्होंने वन संरक्षण अधिनियम, 1980 के तहत सर्वोच्च न्यायालय और राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) के कई आदेशों का हवाला दिया, जो ऐसी गतिविधियों पर प्रतिबंध लगाते हैं।
- हरियाणा के वन क्षेत्र और स्थिरता पर प्रभाव:
- हरियाणा में भारत में सबसे कम वन क्षेत्र है और अरावली पर्वतमाला एक महत्त्वपूर्ण पारिस्थितिकी बफर के रूप में कार्य करती है।
- अधिकारियों ने चेतावनी दी कि क्षेत्र में खनन और मानव बस्तियाँ पर्यावरण संतुलन को बिगाड़ देंगी, सतत विकास लक्ष्यों (SDG) का उल्लंघन करेंगी और दीर्घकालिक पारिस्थितिक स्थिरता को नुकसान पहुँचाएंगी।
- पारिस्थितिकी संवेदनशील क्षेत्र:
- पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की राष्ट्रीय वन्यजीव कार्य योजना (2002-2016) में यह प्रावधान किया गया था कि राज्य सरकारों को पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के तहत राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभयारण्यों की सीमाओं के 10 किलोमीटर के भीतर आने वाले क्षेत्र को पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र (ESZ) घोषित करना चाहिये।
- जबकि 10 किलोमीटर का नियम एक सामान्य सिद्धांत के रूप में लागू किया जाता है, इसके आवेदन की सीमा अलग-अलग हो सकती है। 10 किलोमीटर से परे के क्षेत्रों को भी केंद्र सरकार द्वारा ESZ के रूप में अधिसूचित किया जा सकता है, अगर वे पारिस्थितिक रूप से महत्त्वपूर्ण "संवेदनशील गलियारे" रखते हैं।
अरावली पर्वतमाला
- उत्तर-पश्चिमी भारत की अरावली पर्वतमाला, जो विश्व के सबसे पुराने वलित पर्वतों में से एक है, अब 300 से 900 मीटर की ऊँचाई वाले अवशिष्ट पर्वतों का रूप ले चुकी है।
- इसका विस्तार गुजरात के हिम्मतनगर से शुरू होकर हरियाणा, राजस्थान और दिल्ली (लगभग 720 किमी.) तक है।
- पर्वतों को दो मुख्य श्रेणियों में विभाजित किया गया है- सांभर सिरोही श्रेणी और राजस्थान में सांभर खेतड़ी श्रेणी, जहाँ इनका विस्तार लगभग 560 किलोमीटर है।
- दिल्ली से हरिद्वार तक फैली अरावली की छिपी हुई शाखा गंगा और सिंधु नदियों के जल निकासी के बीच विभाजन पैदा करती है
- यह एक वलित पर्वत है, जिनमें चट्टानें मुख्य रूप से वलित भूपर्पटी से बनती हैं, जब दो अभिसारी प्लेटें पर्वतजनित गति नामक प्रक्रिया द्वारा एक दूसरे की ओर गति करती हैं।
- अरावली की उत्पत्ति लाखों साल पहले हुई थी, जब भारतीय उपमहाद्वीप की मुख्य भूमि यूरेशियन प्लेट से टकराई थी। कार्बन डेटिंग से पता चला है कि पर्वतमाला में खनन किये गए ताँबे और अन्य धातुएँ कम-से-कम 5वीं शताब्दी ईसा पूर्व की हैं।
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