भारत के पवित्र उपवनों का संरक्षण | झारखंड | 09 Dec 2024
चर्चा में क्यों?
पवित्र उपवन सक्रिय रूप से जैवविविधता को बढ़ावा देते हैं तथा कार्बन सिंक के रूप में कार्य करते हैं, लेकिन बढ़ते खतरे उनके अस्तित्व को खतरे में डाल रहे हैं।
- झारखंड, राजस्थान, छत्तीसगढ़ उन राज्यों में से हैं जो पवित्र उपवनों से समृद्ध हैं।
प्रमुख बिंदु
- पवित्र उपवन के बारे में:
- स्वदेशी समुदायों द्वारा अपने पूर्वजों की आत्माओं या देवताओं को समर्पित पवित्र उपवन प्राकृतिक वनस्पति वाले क्षेत्र होते हैं।
- झारखंड में इन्हें सरना, छत्तीसगढ़ में देवगुड़ी और राजस्थान में ओरण के नाम से जाना जाता है।
- इन उद्यानों का आकार भिन्न-भिन्न है, जो छोटे वृक्ष समूहों से लेकर कई एकड़ तक फैले विशाल क्षेत्र तक विस्तृत हैं। कुछ में एक ही पवित्र वृक्ष होता है, जैसे झारखंड में साल का वृक्ष।
- वन्यजीव (संरक्षण) संशोधन अधिनियम, 2002 के तहत पवित्र उपवनों को 'सामुदायिक रिज़र्व' के अंतर्गत कानूनी रूप से संरक्षित किया गया है।
- सामुदायिक रिज़र्व वे क्षेत्र हैं जिन्हें संरक्षण के लिये नामित किया गया है, जिनमें प्राकृतिक संसाधनों और वन्य जीवन के संरक्षण में स्थानीय समुदायों की प्रत्यक्ष भागीदारी होती है।
- विस्तार और वितरण:
- पवित्र उपवन अनुमानतः 33,000 हेक्टेयर क्षेत्र में फैले हुए हैं, जो भारत के कुल भूमि क्षेत्र का मात्र 0.01% है।
- भारत में 13,000 से ज़्यादा पवित्र उपवन हैं, जिनके बारे में प्रमाणिक तौर पर बताया गया है। उपवनों की प्रचुरता वाले राज्य केरल, पश्चिम बंगाल, झारखंड, महाराष्ट्र, मेघालय, राजस्थान और तमिलनाडु हैं।
- महाराष्ट्र लगभग 3,000 पवित्र उपवनों के साथ अग्रणी है।
- जैवविविधता और सांस्कृतिक महत्त्व:
- पवित्र उपवन जैवविविधता वाले क्षेत्र हैं जो अत्यधिक पारिस्थितिक मूल्य रखते हैं।
- जनजातीय समुदाय इन वृक्षों की पूजा करते रहे हैं तथा इनके साथ गहरा संबंध बनाए रखा है।
- ऐतिहासिक रूप से वे पर्यावरण संरक्षण के प्रतीक थे, जो प्रथागत नियमों और शासन प्रणालियों में संहिताबद्ध आध्यात्मिक संहिताओं द्वारा निर्देशित थे।
- जलवायु लक्ष्यों में भूमिका:
- पवित्र वन प्राकृतिक कार्बन सिंक के रूप में कार्य करके जलवायु परिवर्तन शमन में योगदान देते हैं।
- भारत के वर्ष 2070 तक शुद्ध-शून्य लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये सरकारी स्वामित्व वाले वनों के साथ-साथ इनका संरक्षण भी महत्वपूर्ण है।
- उपवनों के प्रभावी प्रबंधन से मानव-प्रकृति के बीच संबंध को बनाए रखा जा सकता है तथा स्थानांतरण के कारण होने वाले सामुदायिक अलगाव को रोका जा सकता है।
- जैवविविधता संरक्षण में पवित्र उपवनों की भूमिका:
- महाराष्ट्र के रायगढ़ ज़िले में वाघोबा हैबिटेट फाउंडेशन द्वारा संरक्षित एक पवित्र उपवन में हाल ही में एक तेंदुए की वापसी देखी गई, जो पारिस्थितिकी सुधार का संकेत है।
- संरक्षण दृष्टिकोण:
- सरकारी पहल:
- झारखंड में घेराबंदी की शुरुआत वर्ष 2019 में पवित्र उपवनों की रक्षा के लिये चारदीवारी बनाकर की गई थी।
- छत्तीसगढ़ में वृक्षों के जीर्णोद्धार के लिये पुनरोद्धार परियोजनाएँ पिछली सरकार के दौरान शुरू की गई थीं।
- संरक्षण योजनाओं में सामुदायिक भागीदारी की कमी और आरक्षित वनों को प्राथमिकता देने के कारण प्रायः पवित्र वनों की उपेक्षा की जाती है।
कार्बन सिंक
- ये पादपों, मृदाओं, भूगर्भिक संरचनाओं और महासागर में कार्बन का दीर्घकालिक भंडारण हैं।
- यह प्राकृतिक रूप से तथा मानवजनित गतिविधियों के परिणामस्वरूप घटित होता है तथा आमतौर पर कार्बन के भंडारण को संदर्भित करता है।
- प्राकृतिक कार्बन सिंक:
- इसके तहत प्रकृति ने हमारे वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड का संतुलन हासिल किया है जो जीवन को बनाए रखने के लिये आवश्यक है। जंतु कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जित करते हैं, जैसे पौधे रात के समय करते हैं।
- इस ग्रह पर सभी जैविक जीवन कार्बन आधारित है और जब पौधों और जंतुओं की मृत्यु हो जाती हैं, तो अधिकांश कार्बन वापस जमीन में चला जाता है, जहाँ ग्लोबल वार्मिंग में योगदान देने में इसका बहुत कम प्रभाव पड़ता है।