उत्तराखंड के समान नागरिक संहिता विधेयक की मुख्य विशेषताएँ | उत्तराखंड | 10 Feb 2024
चर्चा में क्यों?
हाल ही में राज्य द्वारा नियुक्त पैनल ने अपनी अंतिम रिपोर्ट प्रस्तुत करने के बाद, उत्तराखंड राज्य विधानमंडल ने समान नागरिक संहिता ((UCC) विधेयक पारित किया दिया।
- आज़ादी के बाद ऐसा कानून लागू करने वाला उत्तराखंड भारत का पहला राज्य है।
नोट:
उत्तराखंड के नक्शेकदम पर चलते हुए मध्य प्रदेश और गुजरात ने UCC का निर्माण शुरू करने के लिये समितियाँ नियुक्त की हैं।
मुख्य बिंदु:
- विधेयक में आदिवासी समुदाय को इसके दायरे से बाहर रखते हुए, सभी नागरिकों के लिये, उनकी धार्मिक संबद्धता की परवाह किये बिना, विवाह, तलाक, संपत्ति की विरासत और सहवास पर एक समान कानून का प्रस्ताव है।
- संविधान के अनुच्छेद 44 में वर्णित है कि राज्य भारत के पूरे क्षेत्र में नागरिकों के लिये एक समान नागरिक संहिता सुनिश्चित करने का प्रयास करेगा।
- यह प्रावधान राज्य की नीति के निदेशक तत्त्व (Directive Principles of State Policy- DPSP) का अंग है, हालाँकि लागू करने योग्य नहीं है लेकिन देश के शासन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- विधेयक का उद्देश्य लिव-इन रिलेशनशिप को पंजीकृत करने की बाध्यता लगाकर उन्हें विनियमित करना है।
- यदि लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाले जोड़े अपना बयान प्रस्तुत नहीं करते हैं, तो उन्हें नोटिस दिया जाएगा जिसके बाद उनके खिलाफ आपराधिक मुकदमा शुरू किया जा सकता है।
- धारा 4 के अनुसार, "विवाह के समय किसी भी पक्ष का जीवनसाथी जीवित न हो तभी वह विवाह मान्य होता है", इस प्रकार यह धारा द्विविवाह या बहुविवाह पर रोक लगती है।
- तलाक के संबंध में पुरुषों और महिलाओं को समान अधिकार दिये गए हैं।
- धारा 28 तलाक की कार्यवाही शुरू करने पर रोक लगाती है जब तक कि शादी को एक वर्ष न हो गया हो।
- हालाँकि एक अपवाद बनाया जा सकता है यदि याचिकाकर्त्ता को "असाधारण कठिनाई" का सामना करना पड़ा हो या यदि प्रतिवादी ने "असाधारण भ्रष्टता" का प्रदर्शन किया हो।
- विवाह और तलाक को नियंत्रित करने वाली मौजूदा मुस्लिम पर्सनल लॉ प्रथाएँ, जैसे– निकाह हलाला, इद्दत एवं तीन तलाक को स्पष्ट रूप से नाम दिये बिना विधेयक के तहत अपराध घोषित कर दिया गया है।
- यह विधेयक सभी वर्गों के बेटों और बेटियों के लिये समान संपत्ति अधिकारों का विस्तार करता है।
- विधेयक LGBTQIA+ समुदाय के सदस्यों को इसके दायरे से बाहर रखता है और केवल विषमलैंगिक संबंधों पर लागू होता है।
उत्तराखंड के हलद्वानी में हिंसा | उत्तराखंड | 10 Feb 2024
चर्चा में क्यों?
हाल ही में उत्तराखंड के हलद्वानी में एक अवैध मदरसे में तोड़फोड़ के बाद हिंसा भड़क गई थी।
मुख्य बिंदु:
- नगर निगम द्वारा यह विध्वंस न्यायालय के आदेश के अनुसार किया गया था, जिसमें मदरसे को सरकारी भूमि पर अतिक्रमण घोषित किया गया था।
- विध्वंस से दो समुदायों के बीच विरोध और झड़पें शुरू हो गईं, जिसके परिणामस्वरूप पुलिस कर्मियों सहित कई लोग घायल हो गए।
- राज्य सरकार ने आगे की हिंसा को रोकने के लिये हलद्वानी और अन्य संवेदनशील इलाकों में कर्फ्यू लगा दिया तथा देखते ही गोली मारने का आदेश (Shoot-at-sight) जारी कर दिया।
- देखते ही गोली मारने का आदेश (Shoot-at-sight Order):
- यह एक ऐसा शब्द है जो एक ऐसे आदेश को संदर्भित करता है जो पुलिस या अन्य सुरक्षा बलों को आदेश का उल्लंघन करने वाले किसी भी व्यक्ति को बिना किसी चेतावनी या गिरफ्तार करने के प्रयास के गोली मारने का अधिकार देता है।
- इस आदेश का उपयोग केवल अत्यंत दुर्लभ और खतरनाक स्थितियों में किया जाता है, जब अधिकारियों को लगता है कि सार्वजनिक शांति तथा सुरक्षा के लिये गंभीर खतरा है एवं जब घातक बल बिल्कुल आवश्यक है।
- कुछ कानूनी प्रावधान जो देखते ही गोली मारने के आदेश जारी करने की अनुमति देते हैं:
- दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 46 (2) जो गिरफ्तारी का विरोध करने या भागने वाले व्यक्ति को गिरफ्तार करने के दौरान बल के प्रयोग को सक्षम बनाती है।
- CrPC की धारा 144, जो आदेश जारी करने के माध्यम से "आशंकित खतरे" या उपद्रव के तत्काल मामलों से निपटने के दौरान व्यापक शक्तियों के उपयोग को सक्षम बनाती है।
- भारतीय दंड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 81, ऐसे कार्य से संबंधित है जिससे अपहानि होने की संभावना है, लेकिन आपराधिक आशय के बिना किया गया है और अन्य अपहानि को रोकने के लिये किया जाता है।
- IPC की धारा 76 ऐसे कृत्यों से छूट देती है, यदि ऐसा किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा किया जाता है जो स्वयं को ऐसा करने के लिये कानून द्वारा बाध्य मानता है।