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झारखंड स्टेट पी.सी.एस.

  • 01 Apr 2025
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छत्तीसगढ़ Switch to English

सरहुल महोत्सव

चर्चा में क्यों?

1 अप्रैल 2025 को झारखंड और छोटे नागपुर क्षेत्र के आदिवासियों ने सरहुल त्योहार के साथ नए साल और वसंत के आगमन का उत्सव मनाया। 

मुख्य बिंदु

  • प्रकृति और साल वृक्ष की पूजा:
    • आदिवासी साल वृक्षों (शोरिया रोबस्टा) की पूजा करते हैं, उनका मानना ​​है कि ये सरना माँ का निवास स्थान है, जो गाँवों को प्राकृतिक आपदाओं से बचाती हैं।
    • सरहुल, जिसका अर्थ है "साल वृक्ष की पूजा", सबसे पूजनीय आदिवासी त्योहारों में से एक है, जो सूर्य और पृथ्वी के मिलन का प्रतीक है।
      • पाहन (गाँव का पुजारी) सूर्य का प्रतिनिधित्व करता है, जबकि उसकी पत्नी (पाहेन) पृथ्वी का प्रतीक है।
    • इस पवित्र मिलन को जीवन को बनाए रखने के लिये आवश्यक माना जाता है, क्योंकि यह सूर्य की किरणों का मिट्टी से मिलकर विकास को सक्षम बनाता है।
    • आदिवासी सरहुल अनुष्ठान पूरा करने के बाद ही अपने खेतों की जुताई, फसल बोना और वन उपज एकत्र करना शुरू करते हैं।
    • यह त्योहार उरांव, मुंडा, संथाल, खड़िया और हो जनजातियों द्वारा मनाया जाता है, जिनमें से प्रत्येक की अलग-अलग परंपराएँ हैं।
  • सरहुल का विकास और इसका राजनीतिक महत्त्व:
    • 1960 के दशक में आदिवासी नेता बाबा कार्तिक उरांव ने सामाजिक न्याय और आदिवासी पहचान संरक्षण की वकालत करते हुए राँची में सरहुल उत्सव शुरू किया। 
    • पिछले 60 वर्षों में यह उत्सव सरहुल का एक महत्त्वपूर्ण पहलू बन गया है तथा राँची में सिरम टोली सरना स्थल एक प्रमुख सभा स्थल बन गया है।
    • यह त्योहार राजनीतिक रूप से भी महत्त्वपूर्ण हो गया है तथा आदिवासी पहचान को विकसित करने के लिये एक मंच के रूप में कार्य कर रहा है।

साल वृक्ष

  • परिचय:
    • शोरिया रोबस्टा या साल वृक्ष, डिप्टेरोकार्पेसी परिवार का एक वृक्ष प्रजाति है।
    • यह वृक्ष भारत, बांग्लादेश, नेपाल, तिब्बत और हिमालयी क्षेत्रों का मूल निवासी है।

  • विवरण:
    • यह 40 मीटर तक ऊँचा हो सकता है तथा इसके तने का व्यास 2 मीटर होता है। 
    • पत्तियाँ 10-25 सेमी लंबी और 5-15 सेमी चौड़ी होती हैं।
    • आर्द्र क्षेत्रों में साल सदाबहार होता है; शुष्क क्षेत्रों में यह शुष्क ऋतु में पर्णपाती होता है, जिसके अधिकांश पत्ते फरवरी से अप्रैल तक गिर जाते हैं तथा अप्रैल और मई में पुनः पत्ते निकल आते हैं।
    • साल के वृक्ष को मध्य प्रदेश, ओडिशा और झारखंड सहित उत्तरी भारत में सखुआ के नाम से भी जाना जाता है।
    • यह दो भारतीय राज्यों– छत्तीसगढ़ और झारखंड का राज्य वृक्ष है।


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