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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    भारत में बाढ़, चक्रवात और भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाओं की आवृत्ति और गंभीरता में वृद्धि हो रही है। इस संदर्भ में ऐसी आपदाओं के प्रबंधन में देश के समक्ष आने वाली चुनौतियों पर चर्चा कीजिये। (250 शब्द)

    29 Mar, 2023 सामान्य अध्ययन पेपर 3 आपदा प्रबंधन

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • भारत में प्राकृतिक आपदाओं के प्रभावों का संक्षेप में परिचय देते हुए अपना उत्तर प्रारंभ कीजिये।
    • प्राकृतिक आपदाओं के प्रबंधन में भारत के समक्ष आने वाली चुनौतियों पर चर्चा करते हुए उन्हें दूर करने के उपायों का सुझाव दीजिये।
    • तदनुसार निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय

    • प्राकृतिक आपदाएँ ऐसी घटनाएँ हैं जो मानव जीवन, आजीविका और पारिस्थितिकी तंत्र के लिये व्यापक विनाश, व्यवधान और संकट का कारण बनती हैं। ये अक्सर भूकंप, बाढ़, चक्रवात, सूखा, भूस्खलन, हिमस्खलन आदि जैसी प्राकृतिक घटनाओं से उत्पन्न होती हैं, जो मानव नियंत्रण से परे हैं।
      • हालाँकि वनों की कटाई, शहरीकरण, जलवायु परिवर्तन, आदि जैसी मानवीय गतिविधियों से भी प्राकृतिक खतरों के प्रति लोगों की भेद्यता को बढ़ावा मिलता है।

    मुख्य भाग:

    • पृष्ठभूमि:
      • भारत अपने विविध भूगोल, जलवायु और जनसंख्या के कारण विश्व के सबसे अधिक आपदा-प्रवण देशों में से एक है। राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) के अनुसार भारत 30 विभिन्न प्रकार की प्राकृतिक आपदाओं के प्रति संवेदनशील है जिनमें से 12 को प्रमुख आपदाओं के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
        • भारत का कई विनाशकारी प्राकृतिक आपदाओं का इतिहास रहा है जैसे कि वर्ष 2004 की हिंद महासागर की सुनामी, वर्ष 2001 का गुजरात का भूकंप, वर्ष 2013 की उत्तराखंड की बाढ़, वर्ष 2018 की केरल की बाढ़ आदि। इससे हजारों लोगों की मृत्यु होने के साथ व्यापक आर्थिक नुकसान हुआ था।
    • प्राकृतिक आपदाओं का प्रबंधन एक जटिल और चुनौतीपूर्ण कार्य है जिसके लिये विभिन्न स्तरों पर विभिन्न हितधारकों के बीच प्रभावी समन्वय और सहयोग की आवश्यकता होती है। प्राकृतिक आपदाओं के प्रबंधन में भारत के समक्ष आने वाली कुछ प्रमुख चुनौतियाँ निम्नलिखित हैं:
      • तैयारी और पूर्व चेतावनी प्रणाली का अभाव: भारत में प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के लिये पर्याप्त तैयारी और पूर्व चेतावनी प्रणाली का अभाव है।
        • कई आपदा-प्रवण क्षेत्रों में उचित आपदा प्रबंधन योजनाएँ, जोखिम आकलन, आकस्मिक योजनाएँ आदि का अभाव होता है, जो आपदाओं के प्रभाव को कम करने में मदद कर सकती हैं।
        • इसके अलावा बहुत से लोगों को आने वाली आपदाओं के बारे में समय पर सटीक जानकारी और चेतावनी नहीं मिल पाती है जिससे समय पर निवारक और सुरक्षात्मक उपाय नहीं हो पाते हैं।
      • इस संदर्भ में अपर्याप्त प्रतिक्रिया और राहत अभियान: भारत को प्राकृतिक आपदाओं के दौरान और बाद में प्रभावित लोगों तथा क्षेत्रों को त्वरित एवं प्रभावी प्रतिक्रिया और राहत अभियान प्रदान करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
        • बचाव और राहत कार्यों के लिये आवश्यक कर्मियों, उपकरणों, वाहनों, संचार प्रणालियों, चिकित्सा सुविधाओं जैसे संसाधनों की उपलब्धता और पहुँच में भी अंतराल बना रहता है।
          • इसके अलावा आपदा प्रतिक्रिया और राहत में शामिल विभिन्न एजेंसियों और संगठनों के बीच बेहतर समन्वय भी नहीं रह पाता है।
      • बहाली और पुनर्वास उपायों का कमजोर होना: भारत को प्राकृतिक आपदाओं के बाद प्रभावित लोगों और क्षेत्रों की बहाली और पुनर्वास में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
        • भारत में वित्तीय सहायता, मुआवजा, बीमा, आजीविका सहायता, आवास पुनर्निर्माण, बुनियादी ढाँचे के पुनर्निमाण में भी देरी देखने को मिलती है जो सामान्य स्थितियों को बहाल करने के लिये आवश्यक हैं।
        • इसके अलावा आपदा राहत और पुनर्वास के लिये आवंटित धन और संसाधनों के उपयोग में भ्रष्टाचार, कुप्रबंधन और पारदर्शिता की कमी देखने को मिलती है।
      • जागरूकता और भागीदारी की कमी: भारत में आपदा प्रबंधन में लोगों और समुदायों के बीच जागरूकता की कमी के साथ भागीदारी की कमी की समस्या बनी रहती है।
        • बहुत से लोगों के पास आपदा जोखिम में कमी और इसके शमन तथा क्षति के बाद पुनर्निर्माण के बारे में पर्याप्त ज्ञान और कौशल का अभाव रहता है।
        • इसके अलावा बहुत से लोग आपदा प्रबंधन गतिविधियों जैसे इसके बचाव से संबंधित प्रशिक्षण में रूचि नहीं लेते हैं, जिनसे आपदाओं से निपटने के लिये लोगों की क्षमता और आत्मविश्वास को बढ़ावा मिल सकता है।
    • इन चुनौतियों से निपटने के लिये भारत को आपदा प्रबंधन हेतु एक समग्र और सक्रिय दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है जिसमें निम्नलिखित उपाय शामिल हो सकते हैं:
      • राष्ट्रीय, राज्य और स्थानीय स्तर पर आपदा प्रबंधन के लिये संस्थागत और कानूनी ढाँचे को मजबूत करना।
      • आपदा जोखिम मूल्यांकन, पूर्व चेतावनी, निगरानी और पूर्वानुमान के लिये वैज्ञानिक एवं तकनीकी क्षमताओं को मजबूत करना।
      • इसकी रोकथाम, शमन, राहत और पुनर्वास के लिये व्यापक एवं एकीकृत आपदा प्रबंधन योजनाओं, नीतियों तथा कार्यक्रमों का विकास और कार्यान्वयन करना।
      • आपदा प्रबंधन में सरकारी एजेंसियों, गैर-सरकारी संगठनों, निजी क्षेत्र, मीडिया, अकादमिक संस्थाओं आदि जैसे विभिन्न हितधारकों के बीच समन्वय और सहयोग में सुधार करना।
      • शिक्षा, प्रशिक्षण एवं जागरूकता अभियानों के माध्यम से आपदा प्रबंधन में लोगों और समुदायों की क्षमता निर्माण को बढ़ावा देना।
      • आपदा प्रबंधन में महिलाओं, बच्चों, बुजुर्गों, विकलांगों जैसे कमजोर समूहों की भागीदारी और सशक्तिकरण को बढ़ावा देना।
      • आपदा प्रबंधन में स्थिरता, समानता और समावेशिता के सिद्धांतों को शामिल करना।

    निष्कर्ष

    • भारत विभिन्न प्राकृतिक आपदाओं के प्रति संवेदनशील है जो जीवन और संपत्ति की हानि का कारण बनती हैं। ऐसी आपदाओं के प्रबंधन में भारत को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। ऐसे में आपदा प्रबंधन के लिये व्यापक और सक्रिय दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है जिसमें संस्थागत और कानूनी तंत्र को मजबूत करना शामिल है।
    • इसके अलावा आपदा प्रतिरोधी बुनियादी ढाँचे के लिये गठबंधन (CDRI) इस दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है क्योंकि यह आपदा-अनुकूल भविष्य के निर्माण की दिशा में सहायक होगा।

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