बिहार के गंगा के मैदानों में पानी के कारण कैंसर का खतरा | 13 Dec 2024
चर्चा में क्यों?
हाल ही में महावीर कैंसर संस्थान, पटना के वैज्ञानिकों द्वारा किये गए एक अध्ययन से पता चला है कि पानी में मैंगनीज़ (Mn) प्रदूषण बिहार के गंगा के मैदानी इलाकों में कैंसर का कारण बन रहा है।
मुख्य बिंदु
- बिहार में कैंसर के मामलों में वृद्धि
- पिछले कुछ दशकों में बिहार में कैंसर के मामलों में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।
- कैंसर के लिये अनेक योगदानकर्त्ता, जिनमें मैंगनीज़ विषाक्तता को कार्सिनोजेनेसिस को प्रभावित करने वाले एक ट्रेस तत्त्व के रूप में रेखांकित किया गया है।
- अध्ययन के निष्कर्ष:
- नमूना आकार: पटना, वैशाली, पूर्वी चंपारण, मुजफ्फरपुर, सीवान और सारण में 1,146 कैंसर रोगियों के रक्त के नमूने।
- लिंग वितरण: 67% महिलाएँ, 33% पुरुष, आयु 2-92 वर्ष।
- कैंसर के प्रकार:
- स्तन कैंसर: 33.25%
- हेपेटोबिलरी और गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल कैंसर: 26.96%
- गर्भाशय ग्रीवा कैंसर: 5.58%
- अन्य कैंसर (मौखिक, नाक, आदि): 34.78%
- कैंसर वर्गीकरण:
- कार्सिनोमा: 84.8%
- ल्यूकेमिया: 9.86%
- लिम्फोमा: 3%
- सारकोमा: 2.27%
- अवलोकन:
- कैंसर रोगियों के रक्त के नमूनों में Mn संदूषण पाया गया, जिसका स्तर गंभीर मामलों में 6,022 µg/L तक पहुँच गया।
- घरेलू हैंडपंप के पानी में बढ़े हुए Mn स्तर ने रोगियों के रक्त में Mn के साथ दृढ़ संबंध दर्शाया।
- हैंडपंप के पानी में मैंगनीज़:
- 84.8% नमूने भारतीय मानक ब्यूरो (BIS) की निर्धारित सीमा (100 µg/L) के भीतर थे।
- 15.2% नमूने स्वीकार्य स्तर से अधिक थे, जिनमें से कुछ 400 µg/L से भी अधिक थे।
- भू-स्थानिक विश्लेषण:
- मध्य गंगा के मैदान और दक्षिण-पश्चिमी-उत्तरपूर्वी बिहार में उच्च Mn स्तर पाया गया।
- भू-मानचित्रण से जल में मैग्नीशियम की सांद्रता और कैंसर की घटनाओं के बीच संबंध पर प्रकाश डाला गया है।
- मैंगनीज़ की विषाक्तता:
- मैंगनीज़ शरीर के होमियोस्टेसिस के लिये महत्त्वपूर्ण है, लेकिन इसकी अधिकता से यह विषाक्त हो सकता है।
- जोखिम के स्रोत तलछटी या आग्नेय चट्टान जमा, औद्योगिक प्रदूषण आदि हो सकते हैं।
- भारत में पहला मामला 1957 में महाराष्ट्र के खनिकों में दर्ज किया गया था, जिसमें कमज़ोरी, भावनात्मक अस्थिरता और चलने-फिरने में कठिनाई जैसे लक्षण थे।
- अन्य प्रभावित क्षेत्र पश्चिम बंगाल, कर्नाटक तथा विश्व स्तर पर नाइजीरिया, बांग्लादेश और चीन जैसे देश हैं।
भारी धातु प्रदूषण
- भारी धातु (Heavy Metals):
- भारी धातुओं को ऐसे तत्त्वों के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जिनकी परमाणु संख्या 20 से अधिक और परमाणु घनत्व 5 ग्राम सेमी -3 से अधिक हो और जिनमें धातु जैसी विशेषताएँ होनी चाहिये। उदाहरण: आर्सेनिक, कैडमियम, क्रोमियम, तांबा, सीसा, मैंगनीज़, पारा, निकल, यूरेनियम आदि।
- भारी धातु प्रदूषण:
- तेज़ी से बढ़ते कृषि और धातु उद्योग, अनुचित अपशिष्ट प्रबंधन, उर्वरकों और कीटनाशकों के भारी उपयोग के परिणामस्वरूप हमारी नदियों, मिट्टी और पर्यावरण में भारी धातु प्रदूषण हुआ है।
- कृषि और औद्योगिक कार्य, लैंडफिलिंग, खनन और परिवहन भूजल में भारी धातुओं के प्राथमिक स्रोत हैं।
- कृषि जल के माध्यम से भारी धातुएँ नदी तक पहुँचती हैं।
- उद्योगों से निकलने वाले अपशिष्ट जल (जैसे चमड़े का कारखाना उद्योग, जो क्रोमियम भारी धातुओं का एक बड़ा स्रोत है) को सीधे नदी निकायों में छोड़े जाने से भारी धातु प्रदूषण की गंभीरता बढ़ गई है।
- भारी धातुओं में पौधों, जानवरों और पर्यावरण में लंबे समय तक बने रहने का गुण होता है।