प्रयागराज शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 29 जुलाई से शुरू
  संपर्क करें
ध्यान दें:

State PCS Current Affairs


उत्तर प्रदेश

उत्तर प्रदेश सार्वजनिक परीक्षा (अनुचित साधनों की रोकथाम)

  • 26 Jun 2024
  • 4 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में उत्तर प्रदेश सरकार ने एक अध्यादेश लाने का प्रस्ताव पारित किया है, जिसमें प्रश्नपत्र लीक करने वालों के लिये दो वर्ष से लेकर आजीवन कारावास तक की सज़ा तथा एक करोड़ रुपए तक के ज़ुर्माने का प्रावधान है।

मुख्य बिंदु

  • उत्तर प्रदेश सार्वजनिक परीक्षा (अनुचित साधनों की रोकथाम) अध्यादेश ने सभी अपराधों को संज्ञेय और गैर-ज़मानती बना दिया है।
    • इन अपराधों की सुनवाई सत्र न्यायालयों द्वारा की जाएगी और ये गैर-समझौता योग्य होंगे तथा इनमें ज़मानत के लिये सख्त प्रावधान होंगे।
  • अध्यादेश में उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग, उत्तर प्रदेश अधीनस्थ सेवा चयन बोर्ड, UP बोर्ड, राज्य विश्वविद्यालयों और उनके द्वारा नामित प्राधिकरणों, निकायों या एजेंसियों द्वारा आयोजित परीक्षाएँ शामिल हैं।
    • इसमें सरकारी नौकरियों में नियमितीकरण और पदोन्नति के लिये परीक्षाएँ भी शामिल होंगी।
  • अध्यादेश में फर्ज़ी प्रश्नपत्र वितरित करने और फर्ज़ी रोज़गार वेबसाइट बनाने पर भी दंड का प्रावधान है।
    • परीक्षाओं पर प्रतिकूल प्रभाव डालने का दोषी पाए जाने वाली कंपनियों और सेवा प्रदाताओं को ब्लैक लिस्ट में डालने की अनुमति देता है।
    • यदि कोई परीक्षा प्रभावित होती है, तो वित्तीय बोझ संबंधित लोगों से वसूला जाएगा।

अध्यादेश

  • यह राज्य या केंद्र सरकार द्वारा उस समय जारी किया गया आदेश या कानून है, जब विधानमंडल या संसद सत्र में नहीं होता है।
  • अध्यादेश जारी करने की विधायी शक्ति एक आपातकालीन शक्ति की प्रकृति है, जो केवल आपातकालीन स्थिति से निपटने के लिये कार्यपालिका को प्रदान की जाती है।
  • अध्यादेशों के संबंध में संवैधानिक प्रावधान:
  • COI का अनुच्छेद 123 राष्ट्रपति को संसद के अवकाश के दौरान अध्यादेश जारी करने का अधिकार देता है, जबकि अनुच्छेद 213 राज्यपालों को विधानमंडल के सत्र में न होने पर अध्यादेश जारी करने का अधिकार देता है।

संज्ञेय अपराध (Cognisable Offences)

  • संज्ञेय अपराधों में कोई अधिकारी न्यायालय से वारंट प्राप्त किये बिना ही किसी संदिग्ध व्यक्ति का संज्ञान ले सकता है और उसे गिरफ्तार कर सकता है, यदि उसके पास यह “विश्वास करने का कारण” है कि उस व्यक्ति ने अपराध किया है तथा वह इस बात से संतुष्ट है कि कुछ निश्चित आधारों पर गिरफ्तारी आवश्यक है।
  • गिरफ्तारी के 24 घंटे के भीतर अधिकारी को न्यायिक मज़िस्ट्रेट से हिरासत की पुष्टि करानी होगी।
  • विधि आयोग की 177वीं रिपोर्ट के अनुसार, संज्ञेय अपराध वे हैं जिनमें तत्काल गिरफ्तारी की आवश्यकता होती है।
  • संज्ञेय अपराध आमतौर पर जघन्य या गंभीर प्रकृति के होते हैं जैसे- हत्या, बलात्कार, अपहरण, चोरी, दहेज़ हत्या आदि।
  • प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) केवल संज्ञेय अपराधों में ही दर्ज की जाती है।

गैर-ज़मानती अपराध

  • कोई भी अपराध जो CrPC की प्रथम अनुसूची या किसी अन्य कानून के तहत ज़मानतीय नहीं बताया गया है, उसे गैर-ज़मानती अपराध माना जाता है।
  • गैर-ज़मानती अपराध का आरोपी व्यक्ति जमानत का अधिकार नहीं ले सकता। CrPC की धारा 437 में यह प्रावधान है कि गैर-ज़मानती अपराध के मामले में ज़मानत कब ली जा सकती है।
close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2