उत्तराखंड
उत्तराखंड में सोपस्टोन खनन
- 10 Jan 2025
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चर्चा में क्यों?
हाल ही में उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने स्वतः संज्ञान लिया और उत्तराखंड के बागेश्वर ज़िले में सोपस्टोन खनन को विनियमित करने में विफल रहने के लिये अधिकारियों की आलोचना की।
मुख्य बिंदु
- पर्यावरणीय चिंता:
- भूमि अवतलन:
- उत्तराखंड में भू-धँसाव एक गंभीर समस्या है, जो बागेश्वर के कांडा-कन्याल जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में खनन गतिविधियों के कारण और भी गंभीर हो गई है।
- खनन कार्य, मृदा अपरदन, संसाधनों का निष्कासन और भूकंप इस समस्या को बढ़ाते हैं।
- ढलान अस्थिरता:
- निचली ढलानों पर खनन से संरचनात्मक अखंडता दुर्बल होती है, जिससे ऊपरी ढलानों पर स्थित गाँव प्रभावित होते हैं।
- दोमट और ढीली मृदा से कटाव की संभावना बढ़ जाती है, विशेषकर मानसून के दौरान।
- अपर्याप्त सुरक्षा उपाय:
- हरित पट्टियों, अवरोधक दीवारों, बफर जोन, ढलान निगरानी और सुरक्षात्मक संरचनाओं का अभाव कटाव को बढ़ाता है।
- जल और वायु प्रदूषण:
- खनन गतिविधियों के कारण क्षेत्र में जल की कमी, प्रदूषण और वायु प्रदूषण होता है।
- सांस्कृतिक चिंताएँ:
- पारंपरिक वास्तुकला पर प्रभाव:
- भूमि धँसने से कुमाऊँनी बाखली आवास स्थानों को नुकसान पहुँचा है, जो ऐतिहासिक रूप से भूकंपरोधी क्षमता रखते थे।
- विरासत को क्षति:
- सांस्कृतिक और धार्मिक महत्त्व के 10वीं सदी के स्थल कांडा में कालिका मंदिर के फर्श में दरारें खनन से संबंधित गिरावट का संकेत देती हैं।
- लोक संगीत, नृत्य और हस्तशिल्प सहित क्षेत्र की सांस्कृतिक प्रथाएँ भी प्रभावित होती हैं।
- प्रशासनिक चूक:
- राज्य और केंद्र सरकारें "अर्द्ध-यंत्रीकृत खनन" को परिभाषित करने में विफल रहीं, फिर भी उन्होंने ऐसी गतिविधियों के लिये पर्यावरणीय मंज़ूरी दे दी।
- स्पष्ट नीतिगत सीमाओं के बिना भारी उपकरणों के उपयोग से स्थिति और खराब हो गई है।
- भूमि अवतलन:
सोपस्टोन
- सोपस्टोन एक नरम रूपांतरित चट्टान है जो टेल्क तथा क्लोराइट, डोलोमाइट और मैग्नेसाइट की भिन्न-भिन्न मात्राओं से बनी होती है।
- उपयोग:
- सोपस्टोन का उपयोग इसकी स्थायित्व और सौंदर्य अपील के कारण उद्योगों में मूर्तियाँ, काउंटरटॉप्स, सिंक और टाइलें बनाने के लिये व्यापक रूप से किया जाता है।
- इसकी उत्कृष्ट ऊष्मा प्रतिरोधकता के कारण इसका उपयोग स्टोव, फायरप्लेस और प्रयोगशाला काउंटरटॉप्स में किया जाता है।
- पिसा हुआ सोपस्टोन कागज, सौंदर्य प्रसाधन और पेंट में भराव के रूप में काम आता है।
- इसका उपयोग बर्तन, हस्तशिल्प और मूर्तियाँ बनाने के लिये भी किया जाता है।
- भारत में उपलब्धता:
- भारतीय खान ब्यूरो के अनुसार, राजस्थान (57%) और उत्तराखंड (25%) में महत्त्वपूर्ण भंडार हैं।
- राजस्थान: सबसे बड़ा उत्पादक, विशेष रूप से उदयपुर, डूंगरपुर और भीलवाड़ा क्षेत्र में।
- उत्तराखंड: बागेश्वर, पिथोरागढ़ और अल्मोडा ज़िलों में उल्लेखनीय जमा।
- तमिलनाडु और कर्नाटक: यहाँ भी छोटे भंडार मौजूद हैं।