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भूजल पुनर्भरण चुनौतियाँ

  • 26 Apr 2024
  • 3 min read

स्रोत: डाउन टू अर्थ 

एक हालिया अध्ययन में क्लोराइड मास बैलेंस (Chloride Mass Balance- CMB) पद्धति का उपयोग करके ऑस्ट्रेलिया में भूजल पुनर्भरण दरों (Groundwater Recharge Rates) का अनुमान लगाया गया है, जो दर्शाता है कि जलवायु और वनस्पति पुनर्भरण दरों को महत्त्वपूर्ण रूप से प्रभावित करते हैं।

  • CMB एक ट्रेसर तकनीक है जिसका उपयोग वर्षा और भूजल दोनों की क्लोराइड सामग्री का उपयोग करके शुष्क वातावरण में भूजल कुओं के लिये पुनर्भरण दरों को मापने के लिये किया जाता है।
  • शोधकर्ताओं का कहना है कि भूजल पुनर्भरण दर जलवायु और वनस्पति कारकों से प्रभावित होती है।
    • जलवायु-संबंधित चर में वर्षा वितरण और वाष्पीकरण-उत्सर्जन शामिल हैं, जबकि वनस्पति-संबंधी कारकों में वनस्पति का स्वास्थ्य व घनत्व शामिल है।
    • मिट्टी के गुण और भौगोलिक विविधता भी भूजल पुनर्भरण की दर को प्रभावित करते हैं।
  • अध्ययन में भूजल पुनर्भरण दरों को बढ़ाने के लिये विशेष रूप से तेज़ी से शहरीकरण से प्रभावित होने वाले क्षेत्रों में भूमि-उपयोग प्रतिरूप में बदलाव पर विचार करने के महत्त्व पर ज़ोर दिया गया।
  • भारत के संदर्भ में, बंगलुरु के तेज़ी से हो रहे शहरीकरण के कारण हरित स्थानों एवं जल निकायों में अत्यधिक कमी आई है और निर्मित क्षेत्र 1973 में 8% से बढ़कर 2020 में 93% हो गए हैं। इसके परिणामस्वरूप भूजल का गंभीर संकट उत्पन्न हो गया है और हर वर्ष स्तर में गिरावट आ रही है।
  • भारत में, कुछ अध्ययनों में CMB का उपयोग करके भूजल पुनर्भरण दरों का अनुमान लगाया गया है और क्लोराइड जमाव के बड़े पैमाने पर विश्लेषण का प्रयास अभी तक नहीं किया गया है। 
    • भारत में जलस्तर में उतार-चढ़ाव (Water Table Fluctuation- WTF) विधि सामान्य है, जो कुओं के जलस्तर में परिवर्तन की माप करके भूजल पुनर्भरण का अनुमान लगाती है।
  • भारतीय शहरों के लिये भूजल पुनर्भरण दरों का सटीक अनुमान लगाना और वैज्ञानिक माप विधियों का पता लगाना महत्त्वपूर्ण है।

और पढ़ें: भूजल की सुरक्षा: एक सतत भविष्य के लिये एक प्राथमिकता, बेंगलुरु जल संकट: भारत के लिये चेतावनी

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