बिहार
सर्वोच्च न्यायालय ने पटना उच्च न्यायालय के निर्णय पर अंतरिम रोक लगाने से किया इनकार
- 30 Jul 2024
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चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने पटना उच्च न्यायालय के उस निर्णय पर रोक लगाने से इनकार कर दिया, जिसमें बिहार में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति, पिछड़ा वर्ग और अत्यंत पिछड़ा वर्ग के लिये लोक नियोजन तथा शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण को 50% से बढ़ाकर 65% करने के निर्णय को रद्द कर दिया गया था।
मुख्य बिंदु
- पटना उच्च न्यायालय ने बिहार में संशोधित आरक्षण कानून को रद्द कर दिया, जिसके तहत दलितों, आदिवासियों और पिछड़े वर्गों के लिये कोटा 50% से बढ़ाकर 65% कर दिया गया था। न्यायालय ने संशोधनों को संविधान के "अधिकारातीत" (Ultra Vires), "विधि की दृष्टि से दोषपूर्ण" (Bad in Law) और "समता खंड का उल्लंघन" करार दिया।
- ये संशोधन एक जाति सर्वेक्षण के बाद किये गए थे, जिसमें अन्य पिछड़ा वर्ग और अत्यंत पिछड़ा वर्ग का प्रतिशत राज्य की कुल जनसंख्या का 63% था जबकि अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति का प्रतिशत 21% से अधिक था।
- आरक्षण कोटा बढ़ाए जाने के बाद, आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों के लिये आरक्षण सहित राज्य में कुल 75% सीटें आरक्षित हुईं।
आरक्षण
- आरक्षण, निश्चयात्मक विभेद का एक रूप है, जिसे हाशियाई वर्गों में समता को बढ़ावा देने और उन्हें सामाजिक तथा दीर्घकालिक अन्याय से संरक्षण प्रदान करने के लिये निरूपित किया गया है।
- यह रोज़गार और शिक्षा तक पहुँच में समाज के हाशियाई वर्गों को अधिमानी सुविधा प्रदान करता है।
- इसे मूल रूप से वर्षों जारी भेदभाव को समाप्त करने और वंचित समूहों को बढ़ावा देने के लिये विकसित किया गया था।