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सामाजिक न्याय

बिहार आरक्षण कानून और 50% की सीमा का उल्लंघन

  • 13 Dec 2023
  • 8 min read

प्रिलिम्स के लिये:

बिहार आरक्षण कानून और 50% सीमा का उल्लंघन, सर्वोच न्यायालय  (SC), अनुसूचित जाति, अनुसूचित जाति और अन्य पिछड़ा वर्ग, 77वाँ संवैधानिक संशोधन अधिनियम, 1995।

मेंस के लिये:

बिहार आरक्षण कानून और 50% सीमा का उल्लंघन, विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये सरकारी नीतियाँ एवं हस्तक्षेप तथा उनके योजना एवं कार्यान्वयन से उत्पन्न होने वाले मुद्दे।

स्रोत: द हिंदू 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में बिहार विधानसभा में बिहार आरक्षण कानून पारित किया गया, जिससे राज्य में नौकरियों और शिक्षा में आरक्षण की मात्रा बढ़कर 75% हो गई, जो सर्वोच न्यायालय  (SC) द्वारा बरकरार रखे गए 50% नियम का उल्लंघन है।

  • इसने भारत में आरक्षण की अनुमेय सीमा के बारे में बहस छेड़ दी है, विशेष रूप से मंडल आयोग मामले (इंद्रा साहनी, 1992) में भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित "50%" सीमा के मद्देनज़र।

बिहार आरक्षण कानून की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?

  • ये कानून हैं बिहार पदों और सेवाओं में रिक्तियों का आरक्षण (अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़े वर्गों के लिये) संशोधन अधिनियम 2023 तथा बिहार (शैक्षिक संस्थानों में प्रवेश में) आरक्षण अधिनियम, 2023।
  • संशोधित अधिनियम के तहत, दोनों मामलों में कुल 65% आरक्षण होगा, जिसमें अनुसूचित जाति के लिये 20%, अनुसूचित जनजाति के लिये 2%, पिछड़ा वर्ग के लिये 18% और अत्यंत पिछड़ा वर्ग के लिये 25% आरक्षण होगा।
  • इसके अलावा केंद्रीय कानून के तहत पहले से मंज़ूरी प्राप्त EWS (आर्थिक रूप से कमज़ोर सामान्य वर्ग के लोगों) को 10% आरक्षण मिलता रहेगा।

50% नियम क्या है?

  • परिचय:
    • 50% नियम, जिसे ऐतिहासिक रूप से सर्वोच्च न्यायालय ने बरकरार रखा है, यह निर्देश देता है कि भारत में नौकरियों या शिक्षा के लिये आरक्षण कुल सीटों या पदों के 50% से अधिक नहीं होना चाहिये।
    • प्रारंभ में वर्ष 1963 के एम.आर. बालाजी मामले में सात-न्यायाधीशों की पीठ द्वारा स्थापित, आरक्षण को संवैधानिक ढाँचे के तहत एक “अपवाद” या “विशेष प्रावधान” माना जाता था, जिससे उपलब्ध सीटों की अधिकतम 50% तक सीमित थी।
    • हालाँकि आरक्षण की समझ वर्ष 1976 में विकसित हुई जब यह स्वीकार किया गया कि आरक्षण कोई अपवाद नहीं है बल्कि समानता का एक घटक है। परिप्रेक्ष्य में इस बदलाव के बावजूद 50% की सीमा अपरिवर्तित रही।
    • वर्ष 1990 में मंडल आयोग मामले में नौ-न्यायाधीशों की पीठ ने 50% की सीमा की फिर से पुष्टि की और कहा कि यह एक बाध्यकारी नियम है, न कि केवल विवेक का मामला है। हालाँकि यह अपवाद के बिना कोई नियम नहीं है।
    • राज्य हाशिये पर और सामाजिक मुख्यधारा से बाहर किये गए समुदायों को आरक्षण प्रदान करने के लिये विशिष्ट परिस्थितियों में सीमा को पार कर सकते हैं, विशेष रूप से भौगोलिक स्थिति के बावजूद
    • इसके अलावा, सर्वोच्च न्यायालय की 103वें संवैधानिक संशोधन की हालिया पुष्टि आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों (EWS) के लिये अतिरिक्त 10% आरक्षण को मान्य करती है।
      • इसका मतलब है कि 50% की सीमा केवल गैर-EWS आरक्षण पर लागू होती है और राज्यों को EWS आरक्षण सहित कुल 60% सीटें/पद आरक्षित करने की अनुमति है।
  • अन्य राज्य सीमा पार कर रहे हैं:
    • अन्य राज्य जो EWS कोटा को छोड़कर भी पहले ही 50% की सीमा को पार कर चुके हैं, वे हैं छत्तीसगढ़ (72%), तमिलनाडु (69%, वर्ष 1994 के अधिनियम के तहत संविधान की नौवीं अनुसूची के तहत संरक्षित) और कई उत्तर-पूर्वी राज्य जिसमें अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, मिज़ोरम और नगालैंड (80% प्रत्येक) शामिल हैं।
    • लक्षद्वीप में अनुसूचित जनजातियों के लिये 100% आरक्षण है।
    • महाराष्ट्र और राजस्थान के पिछले प्रयासों को न्यायालयों ने खारिज़ कर दिया है।

संविधान और आरक्षण

  • 77वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1995: इंद्रा साहनी मामले में कहा गया था कि आरक्षण केवल प्रारंभिक नियुक्तियों में होगा, पदोन्नति में नहीं।
  • हालाँकि संविधान में अनुच्छेद 16(4A) को जोड़ने से राज्य को SC/ST कर्मचारियों के लिये पदोन्नति के मामलों में आरक्षण के प्रावधान करने का अधिकार मिल गया, अगर राज्य को लगता है कि उनका पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है।
  • 81वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 2000: इसमें अनुच्छेद 16(4B) पेश किया गया, जिसके अनुसार किसी विशेष वर्ष का रिक्त SC/ST कोटा, जब अगले वर्ष के लिये आगे बढ़ाया जाएगा, तो उसे अलग से माना जाएगा एवं उस वर्ष की नियमित रिक्तियों के साथ नहीं जोड़ा जाएगा।
  • 85वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 2001: इसमें पदोन्नति में आरक्षण का प्रावधान किया गया है जिसे जून 1995 से पूर्वव्यापी प्रभाव से अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति के सरकारी कर्मचारियों के लिये ‘पारिणामिक वरिष्ठता’ के साथ लागू किया जा सकता है।
  • संविधान में 103वाँ संशोधन (2019): EWS (आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग) के लिये 10% आरक्षण।
  • अनुच्छेद 335: इसके अनुसार संघ या राज्य के कार्यों से संसक्त सेवाओं और पदों के लिये नियुक्तियाँ करने में प्रशासनिक प्रभावशीलता को बनाए रखते हुए अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जातियों के सदस्यों की मांगों को पूरी तरह से ध्यान में रखा जाना चाहिये

आगे की राह 

  • न्यायालयों को विकसित सामाजिक गतिशीलता, समानता सिद्धांतों तथा बदलते सामाजिक-आर्थिक परिदृश्य पर विचार करते हुए 50% आरक्षण सीमा का पुनर्मूल्यांकन करना चाहिये।
  • भौगोलिक सीमाओं के बावजूद, ऐतिहासिक क्षति का सामना करने वाले समुदायों के लिये व्यापक मानदंडों को शामिल करने के लिये सामाजिक बहिष्कार से परे अपवादों का विस्तार करने पर विचार-विमर्श करने की आवश्यकता है।
  • मौजूदा आरक्षण नीतियों की विस्तृत समीक्षा करना, उनकी प्रभावशीलता, प्रभाव एवं वर्तमान सामाजिक आवश्यकताओं के साथ संरेखण करना।

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