उत्तराखंड
अनियंत्रित निर्माण से उत्तराखंड के तराई क्षेत्र के पारिस्थितिकी तंत्र को खतरा
- 06 Jan 2025
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चर्चा में क्यों?
देहरादून में रियल एस्टेट का तेज़ी से विस्तार पारिस्थितिकी क्षरण और जैव विविधता हानि के संबंध में महत्त्वपूर्ण चिंताएँ उत्पन्न कर रहा है।
- राजपुर और मसूरी रोड पर बड़ी आवासीय परियोजनाओं के कारण निजी और सार्वजनिक दोनों ही भूमि पर अतिक्रमण की सूचना मिली हैं, जिसके कारण हरित क्षेत्र नष्ट हो रहा है और सार्वजनिक सुरक्षा को खतरा उत्पन्न हो रहा है।
मुख्य बिंदु
- निर्माण गतिविधियों में वन भूमि और निजी भूखंडों को साफ किया जा रहा है, जिनमें रिस्पना नदी तक जाने वाले प्राकृतिक निकासी प्रणाली (प्राकृतिक नालों) वाले क्षेत्र भी शामिल हैं।
- घाटियों को कीचड़ से भर दिया जा रहा है, जो वर्षा के दौरान बह जाता है तथा देशी वृक्षों को हटाने से स्थानीय जैव विविधता बाधित होती है तथा विकास क्षेत्र की वहन क्षमता से अधिक हो रहा है।
- अनियंत्रित निर्माण गतिविधियों के कारण राजपुर रिज क्षेत्र में जल स्रोत और नदियाँ नष्ट हो गई हैं तथा प्राकृतिक वनस्पति का स्थान शहरी विकास ने ले लिया है।
- यह स्थिति विकास और पर्यावरण संरक्षण के बीच संतुलन बनाने के लिये सतत् शहरी नियोजन की तत्काल आवश्यकता को रेखांकित करती है।
- ऊँचे क्षेत्रों में अनियंत्रित निर्माण के कारण अक्सर निचले क्षेत्रों में मलबा और भूस्खलन होता है, जिससे निवासियों और पर्यावरण को खतरा होता है।
- इन चुनौतियों से निपटने के लिये, विशेषज्ञ भवन निर्माण नियमों को लागू करने, पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA) करने और ज़िम्मेदार निर्माण प्रथाओं को बढ़ावा देने के महत्त्व पर ज़ोर देते हैं।
- उत्तराखंड के तराई क्षेत्रों की पारिस्थितिक अखंडता को संरक्षित करने वाले सतत् विकास की वकालत करने में जन जागरूकता और सामुदायिक भागीदारी भी महत्त्वपूर्ण है।
पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA)
- EIA एक संरचित पद्धति है जिसका उपयोग आगामी परियोजनाओं या गतिविधियों से उत्पन्न होने वाले संभावित पर्यावरणीय प्रभावों का विश्लेषण करने और समझने के लिये किया जाता है।
- इससे यह मूल्यांकन और पूर्वानुमान लगाने में सहायता मिलती है कि इन परियोजनाओं को क्रियान्वित करने से पहले इनका प्राकृतिक परिवेश पर क्या प्रभाव पड़ेगा।
- EIA की अवधारणा 1960 और 1970 के दशक में बड़े पैमाने पर विकास परियोजनाओं के पर्यावरणीय प्रभावों के संबंध में बढ़ती चिंताओं की प्रतिक्रिया के रूप में उभरी।
- 27 जनवरी, 1994 को केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय, भारत सरकार ने पहली EIA अधिसूचना जारी की।
- 1972 में स्टॉकहोम में मानव पर्यावरण पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन एक महत्त्वपूर्ण मील का पत्थर था, जिसमें निर्णय लेने में पर्यावरणीय मूल्यांकन की आवश्यकता पर बल दिया गया।
- अन्य उल्लेखनीय समझौतों में जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC) और जैविक विविधता पर कन्वेंशन (CBD) शामिल हैं, जो विभिन्न क्षेत्रों में पर्यावरणीय प्रभावों पर विचार करने के महत्त्व पर प्रकाश डालते हैं।