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भारत में नदियों का महत्त्व

इस लेख में हम भारत में नदियों के सांस्कृतिक, धार्मिक और आर्थिक महत्त्व के बारे में जानेंगे।

प्राचीन काल से ही नदियाँ माँ की तरह हमारा भरण-पोषण करती आ रही हैं। नदियों की वजह से सभ्यताएँ पनपती हैं, बस्तियाँ बसती हैं और कहानियाँ बनती हैं। ये नदियों का कल-कल निनाद करता हुआ जल ही है जो मनुष्य और धरती की प्यास बुझाता है। इसके अलावा, हम जब भी समस्याओं में उलझे होते हैं तो इन नदी रूपी माताओं के पास जाकर ही सुकून और शांति की तलाश करते हैं। नदियाँ सकारात्मकता में वृद्धि करती हैं, हमारे ऋषि-मुनि नदियों के किनारे एकांत में बैठकर सालों तक तपस्या करते थे। आज भी हम कई उत्सव और त्यौहार अपने विशाल हृदय में सबको समेटने वाली, सभी को अपनी धन-संपदा का समान रूप से वितरण करने वाली जीवनदायिनी नदियों के साथ मनाते हैं। हिन्दू धर्म में तो मनुष्य के जीवन की अंतिम यात्रा भी इनकी गोद में खत्म होती है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि नि:स्वार्थ भाव से मानव जाति को अपना सर्वस्व न्योछावर कर देने वाली इन नदियों को बदले में हम प्लास्टिक कचरा और गंदगी दे रहे हैं। शायद ईश्वर के इस अनमोल खजाने को सहेजने के लिये हम गंभीर इसलिए नहीं हैं क्योंकि हमें इसकी महत्ता का अंदाजा नहीं है। जिस दिन हम पूरी तरह से इनके महत्त्व को समझ जाएँगे उस दिन खुद से नदियों को स्वच्छ और संरक्षित रखना शुरू कर देंगे। तो चलिये जानते हैं भारत में नदियों का सांस्कृतिक, धार्मिक और आर्थिक महत्त्व क्या है?

वैसे तो भारत में छोटी-बड़ी मिलाकर करीब 200 से अधिक नदियाँ हैं। लेकिन यहाँ पर हम कुछ महत्त्वपूर्ण नदियों की चर्चा करेंगे-

गंगा

Ganga

उत्तराखंड राज्य में गोमुख के निकट गंगोत्री हिमनद से (3,900 मीटर की ऊँचाई) निकलने वाली गंगा नदी देश में अपना पौराणिक, आर्थिक, धार्मिक और सांस्कृतिक महत्त्व रखती है। इसकी लंबाई करीब 2525 किलोमीटर है। यह नदी उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल से होकर बहती है। इसके दाहिने किनारे की प्रमुख सहायक नदियाँ यमुना और सोन हैं जबकि रामगंगा, गोमती, घाघरा, गंडक, कोसी और महानंदा बाएँ किनारे की महत्त्वपूर्ण सहायक नदियाँ हैं। भारत के करीब एक चौथाई भू-क्षेत्र से बहते हुए यह नदी गंगा सागर द्वीप के पास बंगाल की खाड़ी में गिरती है।

धार्मिक एवं सांस्कृतिक महत्त्व- ऋग्वेद, रामायण, महाभारत, स्कंदपुराण एवं अन्य ब्राह्मण ग्रंथों में गंगा की महिमा का वर्णन किया गया है। हिंदुओं के धार्मिक ग्रंथ विष्णु पुराण के अनुसार गंगा की उत्पत्ति भगवान विष्णु के बाएँ पैर के अँगूठे से हुई है। गंगा को भारत की सबसे पवित्र नदियों में एक माना जाता है। इसके साथ ही यह मान्यता है कि गंगा में स्नान करने से मनुष्य के सभी पाप धुल जाते हैं। तभी तो कुंभ और पूर्णिमा जैसे अवसरों पर गंगा में डुबकी लगाने के लिये लाखों श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है। पंचामृत में भी गंगाजल को अमृत माना गया है। इसके अलावा, गंगा नदी के किनारे बसे हरिद्वार, प्रयाग और काशी जैसे तीर्थस्थलों पर हज़ारों लोग प्रतिदिन गंगा स्नान के पश्चात् पूजा-अर्चना और ध्यान करते देखे जा सकते हैं। ऐसी धार्मिक मान्यता है कि इस नदी की ख्याति पृथ्वीलोक पर ही नहीं बल्कि नक्षत्रलोक पर भी है।

आर्थिक महत्त्व

  • गंगा नदी बारहमासी है अर्थात् इसमें साल भर पानी बहता रहता है, जिसके चलते इसके आस-पास के क्षेत्रों में धान, गन्ना, दाल, तिलहन,आलू, गेहूँ, सरसों और जूट जैसी फसलों की पैदावार अधिक मात्रा में होती है। ये फसलें देश की कृषि व्यवस्था को मज़बूत करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। गंगा नदी प्रणाली भारत की सबसे बड़ी नदी प्रणाली है इसलिए इसमें मत्स्य उद्योग भी ज़ोरों पर चलता है।
  • गंगा के किनारे प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर कई पर्यटन स्थल हैं जो राष्ट्रीय आय में प्रमुख भूमिका निभाते हैं।
  • गंगा नदी पर फ़रक्का, भीमगोडा और टिहरी जैसे बड़े बाँध बनाए गए हैं। 260.5 मीटर ऊँचे टिहरी बाँध की कुल विद्युत उत्पादन क्षमता 2400 मेगावाट है। वहीं इसके जलाशय की लंबाई 42 वर्ग किलोमीटर है। इस बाँध से प्रतिदिन 2,70,000 हेक्टेयर क्षेत्र की सिंचाई और102.20 करोड़ लीटर पेयजल दिल्ली, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड को उपलब्ध कराने का लक्ष्य है।
  • कुल मिलाकर यह कहना गलत नहीं होगा कि गंगा नदी उत्तर भारत की अर्थव्यवस्था का मेरुदण्ड है।

गोदावरी

गोदावरी नदी भारत की महत्त्वपूर्ण नदियों में से एक है। हिंदू पौराणिक कथाओं की 'पवित्र सात नदियों' में इसका उल्लेख मिलता है। इसे 'दक्षिण की गंगा' भी कहा जाता है। गंगा के बाद यह देश की दूसरी सबसे लंबी (1,465 किलोमीटर) नदी है। भारत में गोदावरी की यात्रा बेहद शानदार है। यह पवित्र नदी महाराष्ट्र के नासिक जिले में त्र्यंबकेश्वर के पास मध्य भारत के पश्चिमी घाट से निकलती है और आंध्र प्रदेश के पश्चिम गोदावरी व पूर्वी गोदावरी जिले में प्रवेश करते हुए बंगाल की खाड़ी में गिर जाती है। वर्तमान में इस नदी का अपवाह क्षेत्र भारत के छह राज्यों छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, कर्नाटक और उड़ीसा में फैला है। जब गोदावरी अपने स्रोत से पूर्वी घाट तक बहती है, उस दौरान रास्ते में दारना, पूर्णा, मंजरा, प्राणहिता, मनेर, सबरी, पेनगंगा, वेनगंगा और इंद्रावती जैसी नदियाँ आकर उसमें मिल जाती हैं।

धार्मिक एवं सांस्कृतिक महत्त्व - गंगा और यमुना के अलावा गोदावरी का भी भारत में असाधारण धार्मिक महत्त्व है। यह नदी उत्तर और दक्षिण भारत की संस्कृतियों का संगम है। इस नदी के तट पर त्रयंबकेश्वर, भद्राचलम, नांदेड़ जैसे बड़े तीर्थ स्थल हैं। प्रत्येक बारह वर्षों के बाद गोदावरी के तट पर एक प्रमुख स्नान पर्व का आयोजन किया जाता है, जिसे पुष्करम् कहते हैं। इसके अलावा भी कई त्योहार व अनुष्ठान इस नदी के तट पर मनाए जाते हैं। नासिक में गोदावरी के तट पर कुंभ मेले का आयोजन उसके सांस्कृतिक महत्त्व को दर्शाता है।

आर्थिक महत्त्व

  • गोदावरी नदी बेसिन भारत में सबसे अधिक खेती योग्य भूमि में से एक है। इसकी धारा के निचले द्वीपों का उपयोग कई प्रकार की फसलें उगाने के लिए किया जाता है, जिसमें तंबाकू सबसे प्रमुख है।
  • उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य में ब्रिटिश इंजीनियर सर आर्थर थॉमस कॉटन ने आंध्र प्रदेश में राजमुंदरी शहर के पास गोदावरी नदी पर पहली बड़ी सिंचाई परियोजना के तहत एक बांध का निर्माण करवाया था। 1947 के बाद से कई परियोजनाओं को इस पाइपलाइन से जोड़ा जा चुका है जो सिंचाई और जलविद्युत शक्ति प्रदान करती हैं। इसमें पश्चिम-मध्य महाराष्ट्र का जयकवाड़ी बांध भी शामिल है।
  • गोदावरी नदी के बेसिन में राईस मिल, कपास कताई और बुनाई जैसे कृषि उत्पादों पर आधारित उद्योग, सीमेंट और कुछ छोटे इंजीनियरिंग उद्योग मौजूद हैं।
  • यही नहीं, गोदावरी पर पोलावरम् सिंचाई, कालेश्वरम्, श्रीराम सागर, इंचमपल्ली और सदरमत अनिकुट जैसी बड़ी परियोजनाएँ चल रही हैं।

यमुना

गंगा नदी की सबसे लंबी सहायक नदी यमुना उत्तराखंड के यमुनोत्री से निकलती है और 1376 किमी की यात्रा करके उत्तर प्रदेश के प्रयागराज (इलाहाबाद) में गंगा में समाहित हो जाती है। हिंडन, शारदा, चंबल, बेतवा, केन आदि इसकी प्रमुख सहायक नदियाँ हैं। यह नदी 3,66,223 वर्ग किमी की घाटी का निर्माण करती है। इसके केंद्रीय शहर इटावा, औरैया, मथुरा और नई दिल्ली हैं।

धार्मिक एवं सांस्कृतिक महत्त्व- भारत की सबसे पवित्र और प्राचीन नदियों में यमुना का नाम गंगा के साथ लिया जाता है। पौराणिक धर्मग्रंथों विष्णु पुराण, रामायण आदि में यमुना को सूर्य पुत्री, यम की बहन और भगवान श्री कृष्ण की अर्धांगिनी का दर्जा दिया गया है। यमुना और गंगा के दोआब की पुण्यभूमि में ही आर्यों की पुरातन संस्कृति का विकास हुआ था। वहीं, ब्रज में यमुना लोगों की धार्मिक भावना का प्रमुख आधार है।

आर्थिक महत्त्व

  • यमुना हरियाणा और उत्तर प्रदेश की नहरों का प्रमुख स्रोत है।
  • इसके अलावा, दिल्ली या आगरा जैसे बड़े शहरों के लाखों लोग यमुना के पानी पर निर्भर हैं।

कृष्णा नदी

भारत की सबसे लंबी नदियों में से एक कृष्णा नदी सह्याद्रि में महाबलेश्वर के निकट से निकलती है और आंध्र प्रदेश के हमसलादेवी में बंगाल की खाड़ी में गिरती है। इसकी कुल लंबाई 1401 किलोमीटर है। इसकी सहायक नदियाँ कोयना, तुंगभद्रा, भीमा, पंचगंगा, मालप्रभा, दूधगंगा, वेन्ना, डिंडी और मूसी हैं। यह नदी देश के चार राज्यों महाराष्ट्र, कर्नाटक, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में बहती है।

धार्मिक महत्त्व- परंपरागत रूप से कृष्णा नदी को गाय की मूर्ति के मुख से उत्पन्न माना जाता है। यह भी कहते हैं कि भगवान दत्तात्रेय ने अपने कुछ दिन कृष्णा नदी के तट पर स्थित औडम्बर में बिताए थे।

आर्थिक महत्त्व

  • कृष्णा नदी बेसिन सबसे उपजाऊ क्षेत्रों में से एक है और इसमें वन भंडार भी शामिल है। भद्रा वन्यजीव अभयारण्य, नागार्जुन-श्रीशैलम टाइगर रिजर्व, कोयना वन्यजीव अभयारण्य और ग्रेट इंडियन बस्टर्ड अभयारण्य इस नदी बेसिन के कुछ प्रमुख वन्यजीव अभयारण्य हैं। ये सभी क्षेत्र इस नदी को अन्य नदियों से अलग बनाते हैं।
  • कृष्णा नदी पर श्रीशैलम, नागार्जुन व अलमट्टी नामक बाँध और श्रीरंगपट्टनम व शिवसमुद्रम नामक दो जलप्रपात भी बने हुए हैं। शिवसमुद्रम जलप्रपात से सर्वाधिक मात्रा में विद्युत पैदा की जाती है।
  • कृष्णा नदी न केवल सिंचाई और जल विद्युत परियोजनाओं में बल्कि पर्यटन की दृष्टि से भी लोगों के लिये उपयोगी है। कृष्णा और उसकी सहायक नदियों पर बने प्रसिद्ध जलप्रपात माणिक्याधरा, गोकक, एथिपोथला, कलहटी और मलेला थीर्थम हैं।
  • इस प्रकार कृष्णा नदी अपने आप में कई विविधताओं को समेटे हुए है।

ब्रह्मपुत्र

कई संस्कृति और सभ्यताओं का मिलन कराने वाली ब्रह्मपुत्र भारत की ही नहीं, बल्कि पूरे विश्व की सबसे बड़ी नदियों में से एक है। इसकी कुल लंबाई 2900 किलोमीटर और द्रोणी क्षेत्र 5,80,0000 वर्ग किलोमीटर है। वहीं, भारत में इसकी लंबाई 916 किलोमीटर और द्रोणी क्षेत्र 1,87,00 वर्ग किलोमीटर है। उत्पत्ति की बात करें तो यह नदी कैलाश पर्वत श्रेणी में मानसरोवर झील के पास चेमायुंगडुंग हिमनद से निकलती है। यहाँ से यह नदी पूर्व दिशा में वृहत हिमालय के समांतर दक्षिणी तिब्बत के शुष्क और समतल मैदान में लगभग 1200 किलोमीटर की दूरी तय करती है, जहाँ इसे सांग्पो के नाम से जाना जाता है। भारत में यह नदी अरुणाचल प्रदेश में प्रवेश करके असम से गुजरते हुए बंगाल की खाड़ी में जा गिरती है।

ब्रह्मपुत्र को विभिन्न स्थानों पर अलग-अलग नामों से जाना जाता है। अरुणाचल प्रदेश में इस नदी को सियांग, दिहांग, डिहं, असम में ब्रह्मपुत्र, बांग्लादेश में जमुना और चीन में या-लू-त्सांग-पू चियांग और यरलुंग जैगंबो जियांग के नाम से जाना जाता है। इसके अलावा, अरुणाचल में बाएँ तट पर ब्रह्मपुत्र की सहायक नदियाँ दिबांग और लोहित हैं, जबकि असम घाटी में बाएँ तट से बूढ़ी दिहिंग व धनसरी (दक्षिण) और दाएँ तट से सुबनसिरी, कामेग, मानस और संकोश जैसी सहायक नदियाँ आकर मिल जाती हैं।

धार्मिक एवं सांस्कृतिक महत्व

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार ब्रह्मपुत्र नदी को 'ब्रह्मा का पुत्र' माना जाता है। यह नदी आर्य-अनार्य, मंगोल-तिब्बती, बर्मी-द्रविण, मुगल-आहोम संस्कृतियों की टकराहट और मिलन की गवाह रही है।

आर्थिक महत्व

  • असम के अधिकांश बड़े शहर जैसे- डिब्रूगढ़, जोरहाट, तेजपुर, गुवाहाटी, धुबड़ी और ग्वालापाड़ा इसी नदी के किनारे बसे हुए हैं। जिसके चलते एक बड़ी आबादी का जीवन इस नदी पर निर्भर है।
  • असम में इस नदी के क‍िनारे कामख्या देवी जैसे कई बड़े मंद‍िर व अन्‍य धार्मि‍क स्‍थल हैं, जहां लाखों लोग दर्शन के लिए जाते हैं।

सिंधु

दुनिया की सबसे बड़ी नदियों में से एक सिंधु नदी के बिना भारतीय नदी तंत्र अधूरा है। यह जानकर अच्छा लगेगा कि, भारत को अपना नाम 'हिंदुस्तान’ इसी नदी के नाम से मिला है। भारत में यह हिमालय की नदियों में सबसे पश्चिमी भाग में प्रवाहित होती है। इस नदी की कुल लंबाई 28,80 किलोमीटर और कुल क्षेत्रफल 11,65,000 वर्ग किलोमीटर है। जबकि भारत में इसकी लंबाई 1,114 किलोमीटर और कुल क्षेत्रफल 321,289 वर्ग किलोमीटर है। यह नदी तिब्बती क्षेत्र में स्थित कैलाश पर्वत श्रेणी में बोखर चू के पास एक हिमनद से निकलती है और लद्दाख व जास्कर श्रेणियों के मध्य से गुजरते हुए नंगा पर्वत को पार कर पाकिस्तान में प्रवेश कर जाती है। पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में सिंधु पाँच मुख्य सहायक नदियों सतलज, व्यास, रावी, चेनाब और झेलम से मिलती है और अंत में कराची के पूर्व में अरब सागर में जा गिरती है।

इन पंचनद के बहाव वाले क्षेत्र को मुख्य तौर पर भारत और पाकिस्‍तान साझा करते हैं। जिसके कारण दोनों देशों के बीच होने वाले विवाद का निपटारा सिंधु जल संधि के रूप में हुआ है।

धार्मिक एवं सांस्कृतिक महत्त्व

भारतीय संस्कृति और सभ्यता का पालन-पोषण करने वाली सिंधु नदी के तट पर कई वेद और पुराणों की रचना हुई है। यही नहीं, ऋग्वेद में वर्णित नदियों में सिंधु का भी जिक्र है। इसी नदी से भारत की सबसे पुरानी सभ्यता यानी सिंधु घाटी सभ्यता की शुरुआत हुई थी।

आर्थिक महत्व

  • सतलज नदी पर बना भाखड़ा-नांगल बाँध, भारत का दूसरा सबसे ऊँचा बाँध हैं। यह सिंचाई के लिए बड़ी मात्रा में जल उपलब्ध कराता है। इसके अलावा, भारत में व्यास नदी पर पोंग और पंडोह बाँध तथा रावी नदी पर रणजीत सागर (थीन) बाँध का निर्माण किया गया है।
  • भारत में सिंधु नदी बेसिन पर पाकल दुल, रातले, किशनगंगा, मियार और लोअर कालनई जैसी कई परियोजनाओं पर काम चल रहा है। साथ ही, पानी के बेहतर इस्तेमाल के लिए व्यास-सतलुज लिंक, इंदिरा गांधी नहर और माधोपुर-ब्यास लिंक जैसी अन्य परियोजनाएँ भी चल रही हैं। इससे भारत को पूर्वी नदियों (रावी, ब्यास और सतलज) के करीब 95 प्रतिशत पानी का उपयोग करने में मदद मिली है।

इनके अलावा कावेरी, घाघरा, गंडक, महानदी आदि नदियों का भी भारत में बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान है।

नदी प्रदूषण

river-pollution

तेजी से हो रही जनसंख्या वृद्धि के कारण घरेलू, औद्योगिक और कृषि के क्षेत्र में नदियों के जल की मांग बढ़ी है जिसके कारण इसकी गुणवत्ता प्रभावित हुई है। जब नदियों से अधिक जल निकाला जाता है तो इनका आयतन घटता जाता है। दूसरी ओर, उद्योगों का प्रदूषण और अपरिष्कृत कचरे को नदीयों में डालने से वे प्रदूषित हो रही हैं। यह भी बताना ज़रूरी है कि आस्था एवं मान्यताओं के अनुसार मानव शवों को, मूर्तियों व फूलों को गंगा में डालने से नदियों का जल प्रदूषित होता है। औद्योगीकरण एवं शहरीकरण के कारण कई नदियों में प्रदूषण का स्तर बढ़ता जा रहा है। उदाहरण के तौर पर यमुना को देख सकते हैं।

भारत में नदियों की ही नहीं वरन झीलों और तालाबों जैसे अन्य जलस्रोतों की स्थिति भी अत्यंत खराब है।

नदियों को स्वच्छ बनाने के लिये सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाएँ

भारत में नदियों को प्रदूषण से मुक्त बनाने के लिये राष्ट्रीय नदी संरक्षण और रिवर फ्रंट डेवलपमेंट जैसी योजनाएँ चलाई जा रही हैं। हालाँकि गंगा नदी बेसिन प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से एक बड़ी आबादी यानी 53 करोड़ से अधिक लोगों को प्रभावित करता है इसलिए सरकार द्वारा गंगा को स्वच्छ बनाने पर अधिक जोर दिया जा रहा है। इसके लिये सरकार ने गंगा एक्शन प्लान, राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन, नमामि गंगे जैसी कई परियोजनाएँ शुरू की हैं। इसके अलावा यमुना सफाई अभियान भी प्रमुख है।

इतना ही नहीं, गंगा नदी को स्वच्छ बनाने तथा समुचित कानून की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिये सरकार द्वारा गिरधर मालवीय समिति और चितले समिति का गठन किया गया है।

निष्कर्ष

संपूर्ण मानव इतिहास में शुरू से ही नदियों का अत्यधिक महत्त्व रहा है। नदियों का जल मूल प्राकृतिक संसाधन है और कई मानवीय क्रियाकलापों के लिये बेहद ज़रूरी है। भारत जैसे देश में जहाँ की अधिकांश जनसंख्या जीविका के लिये कृषि पर निर्भर है, वहां सिंचाई, नौसंचालन और जलविद्युत निर्माण के लिये नदियों को संरक्षित रखना हम सबका कर्त्तव्य है। नदियों को स्वच्छ बनाने के लिये सरकार द्वारा भले ही कितने ही कदम उठाए जाएँ, लेकिन अगर हम जागरुक नहीं होंगे और अपने स्तर पर उन्हें स्वच्छ रखने में कोई पहल नहीं करेंगे तब तक नदियाँ कभी भी पूरी तरह से स्वच्छ नहीं हो पाएँगी। अगर ऐसे ही हम भौतिक संपदा की अंधी दौड़ में मुफ़्त में मिले इस बहुमूल्य खजाने का अंधाधुंध दोहन करते रहेंगे तो धीरे-धीरे हमारी नदियाँ मर जाएँगी, जिसके बाद पृथ्वी पर जीवित सभी प्राणियों को अपने जीवन का निर्वाह करना मुश्किल हो जाएगा।

शालिनी बाजपेयी

शालिनी बाजपेयी यूपी के रायबरेली जिले से हैं। इन्होंने IIMC, नई दिल्ली से हिंदी पत्रकारिता में पीजी डिप्लोमा करने के बाद जनसंचार एवं पत्रकारिता में एम.ए. किया। वर्तमान में ये हिंदी साहित्य की पढ़ाई के साथ साथ लेखन का कार्य कर रही हैं।

स्रोत:

कक्षा-11 के लिये भूगोल की NCERT

कक्षा-9 के लिये भूगोल की NCERT

https://www.indiatoday.in/education-today/gk-current-affairs/story/important-rivers-of-india-1372859-2018-10-22

https://www.drishtiias.com/hindi/daily-news-analysis/godavari-river-2

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