उत्तर प्रदेश
धार्मिक स्थलों पर लाउडस्पीकर
- 19 Mar 2025
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चर्चा में क्यों?
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने धार्मिक स्थलों पर लाउडस्पीकर के लिये स्थायी ध्वनि प्रदूषण नियंत्रण उपायों की जरूरत पर ज़ोर दिया।
मुख्य बिंदु
- महत्त्वपूर्ण निर्देश
- मुख्यमंत्री ने अधिकारियों को धार्मिक और सार्वजनिक आयोजनों में ध्वनि स्तर को तय मानकों के अनुरूप रखने के निर्देश दिये।
- साथ ही उन्होंने धार्मिक स्थलों पर लाउडस्पीकरों के इस्तेमाल को लेकर स्थायी समाधान सुनिश्चित करने के भी निर्देश दिये।
- हाईकोर्ट का निर्णय
- न्यायालय ने स्पष्ट किया कि प्रार्थना के लिये लाउडस्पीकर का उपयोग कोई कानूनी अधिकार नहीं है, क्योंकि इससे अन्य लोगों को असुविधा हो सकती है। अतः लाउडस्पीकर का प्रयोग अधिकार की श्रेणी में नहीं आता।
- पूर्व में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने भी धार्मिक स्थलों पर लाउडस्पीकरों के उपयोग को लेकर एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया है।
- न्यायालय ने स्पष्ट किया कि प्रार्थना के लिये लाउडस्पीकर का उपयोग कोई कानूनी अधिकार नहीं है, क्योंकि इससे अन्य लोगों को असुविधा हो सकती है। अतः लाउडस्पीकर का प्रयोग अधिकार की श्रेणी में नहीं आता।
- ध्वनि प्रदूषण
- किसी भी प्रकार की असहज या अत्यधिक तेज़ आवाज़ को ध्वनि प्रदूषण कहा जाता है।
- यह अनियमित कंपन वाला शोर होता है, जो सुनने में अप्रिय लगता है।
- ध्वनि की तीव्रता को डेसिबल (dB) में मापा जाता है और इसके स्तरों को निर्धारित करने के लिये एक डेसिबल पैमाना प्रयोग किया जाता है।
- 20 dB तक की ध्वनि तीव्रता को फुसफुसाहट के समान माना जाता है।
- विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, 70 dB से कम की ध्वनि तीव्रता जीवित प्राणियों के लिये हानिकारक नहीं होती, भले ही वह कितनी भी लंबी अवधि तक बनी रहे।
- हालाँकि, यदि कोई व्यक्ति 85 dB से अधिक के शोर के संपर्क में लगातार 8 घंटे से अधिक समय तक रहता है, तो यह स्वास्थ्य के लिये जोखिमपूर्ण हो सकता है।
- ध्वनि प्रदूषण के मुख्य स्रोतों में तेज़ संगीत, परिवहन, निर्माण कार्य आदि शामिल हैं, जो मानव जीवन पर नकारात्मक प्रभाव डालते हैं।
- इसके दुष्प्रभावों में उच्च रक्तचाप, श्रवण विकलांगता, नींद संबंधी विकार और हृदय रोग शामिल हैं।