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उत्तर प्रदेश

नागरिक विवादों का अपराधीकरण

  • 23 Apr 2025
  • 5 min read

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में भारत के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने उत्तर प्रदेश सरकार की सामान्य नागरिक (सिविल) मामलों को आपराधिक मामलों में बदलने की बढ़ती प्रवृत्ति को लेकर कड़ी आलोचना की। 

मुख्य बिंदु 

  • नागरिक विवादों के अपराधीकरण के कारण
    • शीघ्र न्याय प्राप्ति की आकांक्षा:
      • सिविल न्याय प्रक्रिया में होने वाली देरी से हताश वादीगण आपराधिक मुकदमे की राह अपनाते हैं, ताकि दूसरे पक्ष पर दबाव बनाकर त्वरित समाधान प्राप्त किया जा सके।
    • आपराधिक धाराओं का रणनीतिक प्रयोग:
      • धारा 420 (धोखाधड़ी), 406 (आपराधिक न्यासभंग) जैसी आपराधिक धाराओं का प्रयोग कर, सिविल मामलों को आपराधिक रूप देने की प्रवृत्ति बढ़ रही है। इसका उद्देश्य अक्सर निजी या राजनीतिक लाभ लेना होता है।
    • विधिक समझ की अपर्याप्तता:
      • कई बार पुलिस व जाँच एजेंसियों को नागरिक और आपराधिक मामलों के बीच अंतर स्पष्ट नहीं होता। परिणामस्वरूप, सामान्य संविदात्मक या व्यापारिक विवादों को भी आपराधिक शिकायत के रूप में दर्ज कर लिया जाता है।
    • न्यायिक प्रक्रिया में विलंब:
      • सिविल न्यायालयों में निर्णय आने में वर्षों लग सकते हैं, जिससे वादीगण हतोत्साहित हो जाते हैं। ऐसी स्थिति में वे त्वरित राहत पाने की आशा में आपराधिक मुकदमा दर्ज करवा कर विरोधी पक्ष पर दबाव बनाते हैं, ताकि विवाद शीघ्र सुलझाया जा सके।

सिविल विवाद और आपराधिक विवाद के बीच अंतर 

अंतर के बिंदु

सिविल विवाद

आपराधिक विवाद

विवाद की प्रकृति

●   विवाद में आमतौर पर निजी पक्ष या संस्थाएँ शामिल होती हैं जो कानूनी अधिकारों या दायित्त्वों पर असहमति को हल करना चाहते हैं।

●   उदाहरण के लिये, संविदा विवाद, व्यक्तिगत क्षति का दावा, पारिवारिक कानून के मामले (विवाह-विच्छेद, बच्चे की अभिरक्षा) और संपत्ति विवाद।

●   इनमें उन कानूनों का उल्लंघन शामिल होता है जिन्हें राज्य या समाज के खिलाफ अपराध माना जाता है। अपराधों पर सरकारी अधिकारियों द्वारा अभियोजन चलाया जाता है और इसका उद्देश्य अपराधी को गलत काम के लिये दंडित करना होता है।

●   उदाहरण के लिये, चोरी, हमला, हत्या और ड्रग अपराध।

कार्यवाही का प्रारंभ

●   आमतौर पर निजी व्यक्तियों या संस्थाओं (वादी) द्वारा प्रारंभ किया जाता है जो किसी अन्य पक्ष (प्रतिवादी) के खिलाफ क्षतिपूर्ति, व्यादेश या अन्य उपचार की मांग करते हुए मुकदमा दायर करते हैं।

●   सरकार द्वारा प्रारंभ किया गया, एक अभियोजक द्वारा प्रतिनिधित्व किया गया, जो अपराध करने के अभियुक्त किसी व्यक्ति या इकाई के खिलाफ आरोप दायर करता है।

सबूत का भार

 

●   भार आमतौर पर वादी पर होता है, जिसे सबूतों की प्रबलता से अपना मामला स्थापित करना होता है।

●   इसका अर्थ यह है कि उन्हें यह दिखाना होगा कि इस बात की अधिक संभावना है कि प्रतिवादी उत्तरदायी है।

●   यह भार अभियोजन पक्ष पर होता है और इसे उचित संदेह से परे साबित किया जाना चाहिये।

●   यह अभियुक्त के अधिकारों की रक्षा के लिये बनाया गया एक अधिक मांग वाला मानक है।

कार्यवाही का उद्देश्य

 

●   क्षतिग्रस्त पक्ष या पक्षों को उपचार प्रदान करना।

●   उपचारों में मौद्रिक प्रतिकर (नुकसान), विनिर्दिष्ट पालन, या व्यादेश शामिल हो सकते हैं।

●   कानूनों के उल्लंघन के लिये अपराधी को दंडित करना और दूसरों को समान अपराध करने से भयोपरत करना।

●   समाज का पुनर्वास और सुरक्षा भी महत्त्वपूर्ण लक्ष्य हैं।

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