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हरियाणा

अरावली ग्रीन वॉल परियोजना

  • 05 Dec 2024
  • 5 min read

चर्चा में क्यों?

संयुक्त राष्ट्र मरुस्थलीकरण रोकथाम सम्मेलन (UNCCD) COP16 के एक भाग के रूप में आयोजित संयुक्त राष्ट्र जलवायु कार्यक्रम में, भारत ने अपनी महत्वाकांक्षी 'अरावली ग्रीन वॉल' परियोजना पर प्रकाश डाला, तथा वैश्विक स्तर पर क्षरित वन भूमि को बहाल करने के लिये नवीन दृष्टिकोण अपनाने के महत्त्व पर बल दिया।

प्रमुख बिंदु

  • अरावली ग्रीन वॉल परियोजना के बारे में प्रस्तुति:
    • अफ्रीका की ग्रेट ग्रीन वॉल पहल से प्रेरित होकर, अरावली ग्रीन वॉल परियोजना का उद्देश्य है-
      • वर्ष 2027 तक 1.1 मिलियन हेक्टेयर से अधिक क्षतिग्रस्त भूदृश्यों को पुनर्स्थापित करना।
      • देशी प्रजातियों के साथ वनरोपण, मृदा स्वास्थ्य सुधार और भूजल पुनःपूर्ति पर ध्यान केंद्रित करना।
      • शहरी उष्मीय द्वीपों को कम करने के लिये एक "इकोलॉजिकल वॉल" विकसित करना तथा एनसीआर के लिये कार्बन सिंक के रूप में कार्य करना।
  • अरावली पर्वतमाला का महत्त्व:
  • पुनर्बहाली की आवश्यकता:
    • इन खतरों से निपटने और गिरावट को रोकने के लिये तत्काल कार्यवाही की आवश्यकता है।
    • इस पुनरुद्धार प्रयास में हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान और गुजरात का सहयोग शामिल है।
  • कार्यान्वयन रणनीति:
    • राज्य सरकारें लाखों देशी वृक्ष और झाड़ियाँ लगाएँगी और मृदा संरक्षण को बढ़ावा देंगी।
    • हरियाणा में पहले चरण में गुड़गाँव, फरीदाबाद और भिवानी सहित प्रमुख ज़िलों में 66 जल निकायों का पुनरुद्धार किया जाएगा।
      • हरियाणा की योजना में 35,000 हेक्टेयर भूमि का पुनरुद्धार शामिल है, जिसमें से अकेले गुड़गाँव में 18,000 हेक्टेयर भूमि शामिल है।
  • वैश्विक अपील और विजन:
    • सरकारों, अंतर्राष्ट्रीय संगठनों और निजी संस्थाओं को शामिल करते हुए वैश्विक साझेदारियों से तकनीकी और वित्तीय संसाधनों के साथ इस पहल का समर्थन करने का आह्वान किया गया है।
    • इस परियोजना का उद्देश्य क्षीण हो चुके भूदृश्यों को पुनः स्थापित करने के वैश्विक प्रयासों के लिये एक "ब्लूप्रिंट" के रूप में कार्य करना है।
  • नवीन दृष्टिकोण:
    • इस परियोजना में प्रकृति आधारित समाधान शामिल किये गए हैं, जिनमें स्वदेशी प्रजातियों के साथ वनरोपण, मृदा स्वास्थ्य और नमी कायाकल्प, संरक्षण में सामुदायिक भागीदारी पर ध्यान केंद्रित किया गया है।

अरावली पर्वत शृंखला

  • अरावली, पृथ्वी पर सबसे पुराना वलित पर्वत है। भूवैज्ञानिक अध्ययनों से पता चलता है कि यह तीन अरब वर्ष पुराना है।
  • यह गुजरात से दिल्ली (राजस्थान और हरियाणा से होकर) तक 800 किलोमीटर से अधिक तक फैला हुआ है।
  • अरावली पर्वतमाला की सबसे ऊँची चोटी माउंट आबू पर स्थित गुरु शिखर है।
  • जलवायु पर प्रभाव:
    • अरावली पर्वतमाला का उत्तर-पश्चिम भारत और उससे आगे की जलवायु पर प्रभाव पड़ता है।
    • मानसून के दौरान, पर्वत शृंखला मानसून के बादलों को धीरे-धीरे शिमला और नैनीताल की ओर पूर्व की ओर ले जाती है, जिससे उप-हिमालयी नदियों और उत्तर भारतीय मैदानों को पोषण मिलता है।
    • सर्दियों के महीनों के दौरान, यह सिंधु और गंगा की उपजाऊ जलोढ़ नदी घाटियों को मध्य एशिया से आने वाली ठंडी पश्चिमी हवाओं से बचाता है।
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