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पीआरएस कैप्सूल्स

विविध

नवंबर 2020

  • 08 Dec 2020
  • 46 min read

PRS के प्रमुख हाइलाइट्स

  • कोविड-19
    • आत्मनिर्भर भारत 3.0
  • समष्टि आर्थिक (मैक्रोइकोनॉमिक) विकास
    • 2020-21 की दूसरी तिमाही की GDP में 7.5% का संकुचन
  • वित्त
    • स्वामित्व और कॉर्पोरेट संरचना की समीक्षा
    • आधारभूत व्यवहार्यता अंतराल अनुदान
    • IFSC में खुदरा व्यापार के विकास पर समिति ने रिपोर्ट प्रस्तुत की
  • विधि एवं न्याय 
    • मध्यस्थता और सुलह (संशोधन) अध्यादेश, 2020
    • न्यायाधिकरण कानून 2020 
  • गृह मामले
    • विदेशी अंशदान से संबंधित नियमों में संशोधन 
  • आयुष
    • पोस्ट ग्रेजुएट आयुर्वेद शिक्षा पर रेगुलेशन अधिसूचित
  • सूचना एवं प्रसारण
    • 43 मोबाइल एप बैन 
    • टेलीविज़न रेटिंग एजेंसी
    • डिजिटल मीडिया और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म का कंटेंट 
  •  संचार
    • अन्य सेवा प्रदाताओं के लिये नए दिशा-निर्देश 
  • सड़क परिवहन
    • टैक्सी एग्रीगेटर्स
    • सड़क परिवहन मंत्रालय ने कई ड्राफ्ट नियम जारी किये
  • आवासन एवं शहरी मामले
    • राजस्व तटस्थ प्रस्ताव 
  • बिजली
    • बिजली की खरीद के लिये प्रतिस्पर्द्धात्मक बोली प्रक्रिया 
    • ट्रांसमिशन सेवा प्रदाता के चयन हेतु इक्विटी लॉक-इन अवधि में संशोधन
    • पीएम-कुसुम योजना 

कोविड-19

आत्मनिर्भर भारत 3.0 

केंद्रीय वित्त मंत्री ने नए आत्मनिर्भर भारत 3.0 (AtmaNirbhar Bharat 3.0) के तहत 12 नए उपायों की घोषणा की है।

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समष्टि आर्थिक (मैक्रोइकोनॉमिक) विकास

वर्ष 2020-21 की दूसरी तिमाही की GDP में 7.5% का संकुचन

वर्ष 2019-20 की दूसरी तिमाही (जुलाई-सितंबर) के मुकाबले वर्ष 2020-21 में इसी अवधि के दौरान सकल घरेलू उत्पाद (2011-12 के स्थिर मूल्यों पर) में 7.5% प्रतिशत का संकुचन हुआ। इससे पहले मौजूदा वित्त वर्ष की पहली तिमाही में GDP में 23.9% की गिरावट हुई थी और यह निरंतर दूसरी तिमाही है जब गिरावट दर्ज की गई है। इसकी तुलना में वर्ष 2019-20 की दूसरी तिमाही में GDP की वृद्धि 4.4% और पहली तिमाही में 5.2% थी। 

पिछले वर्ष की पहली छमाही के मुकाबले संचयी रूप से वर्ष 2020-21 की पहली छमाही में GDP में 15.7% का संकुचन हुआ। 

अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में GDP को सकल मूल्य संवर्द्धन (Gross Value Added- GVA) के लिहाज से मापा जाता है। वर्ष 2020-21 की पहली तिमाही में सबसे अधिक संकुचन वाले चार क्षेत्रों (निर्माण, व्यापार, विनिर्माण और खनन) के प्रदर्शन में दूसरी तिमाही के दौरान सुधार हुआ जबकि निर्माण, व्यापार और खनन में संकुचन जारी है, विनिर्माण क्षेत्र में 0.6% की दर से वृद्धि हुई। वर्ष 2020-21 की दूसरी तिमाही में जिन अन्य क्षेत्रों में वृद्धि दर्ज की गई, वे हैं, कृषि और विद्युत। 


वित्त

स्वामित्व और कॉर्पोरेट संरचना की समीक्षा 

निजी क्षेत्र के भारतीय बैंकों में मौजूदा स्वामित्व के दिशा-निर्देशों और कॉर्पोरेट संरचना की समीक्षा करने वाले कार्य समूह ने भारतीय रिज़र्व बैंक को अपनी रिपोर्ट सौंपी। समूह की संदर्भ शर्तों में निम्नलिखित की समीक्षा शामिल है:

(i) निजी बैंकों के स्वामित्व और नियंत्रण से संबंधित नियम। 
(ii) बैंकिंग लाइसेंस के लिये आवेदन करने वाले बैंकों के लिये पात्रता मानदंड। 
(iii) प्रमोटर शेयर होल्डिंग हेतु नियम। 

समूह के मुख्य सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • प्रमोटर शेयर होल्डिंग: मौजूदा दिशा-निर्देशों में नए बैंक के संचालन के पहले पाँच वर्षों में प्रमोटरों की हिस्सेदारी कम-से-कम 40% होनी चाहिये। इसके बाद प्रमोटर की हिस्सेदारी बैंक के संचालन के 10 वर्ष के भीतर अधिकतम 30% और 15 वर्ष के भीतर घटकर 15% हो जानी चाहिये। समूह ने सुझाव दिया कि 40% के मूल लॉक-इन को बरकरार रखा जाए, 15 वर्ष की हिस्सेदारी को 15% से बढ़ाकर 26% किया जाए और मध्यवर्ती लक्ष्यों को हटा दिया जाए।
  • नॉन-प्रमोटर शेयर होल्डिंग: मौजूदा दिशा-निर्देश निजी बैंकों में विभिन्न प्रकार के निवेशकों के लिये दीर्घावधिक हिस्सेदारी हेतु अलग-अलग सीमा तय करते हैं। उदाहरण के लिये कोई व्यक्ति और गैर-वित्तीय संस्थान निजी बैंकों में 10% तक शेयर रख सकते हैं, विविध सरकारी वित्तीय संस्थाएँ 40% तक शेयर रख सकती हैं। समूह ने लंबे समय तक नॉन प्रमोटर शेयर होल्डिंग पर एक समान 15% की सीमा तय करने का सुझाव दिया।
  • बैंकों पर बिज़नेस हाउस का स्वामित्व: समूह ने सुझाव दिया कि बड़े बिज़नेस हाउस को बैंकों का प्रमोटर बनने की अनुमति दी जाए। हालाँकि उसने कहा कि इसके लिये एक ही बिज़नेस हाउस की प्रमोटेड कंपनियों को बैंक द्वारा ऋण देने के लिये कानूनी ढाँचे की आवश्यकता होगी। बड़े बिज़नेस हाउस के स्वामित्व को भी समेकित पर्यवेक्षण के लिये एक रूपरेखा की आवश्यकता होगी।
  • बैंकों में रूपांतरण: सुचारु रूप से संचालित उन गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियाँ (NBFC), जिनकी संपत्ति का आकार 50,000 करोड़ रुपए से अधिक का है और जिन पर बड़े बिज़नेस हाउस का स्वामित्व है, को बैंक में रूपांतरित किया जा सकता है। 10 वर्षों से अधिक समय से संचालित NBFC को इसकी अनुमति दी जा सकती है और हितों के संभावित टकराव को दूर करने के लिये उपयुक्त सुरक्षा उपायों  (जिसे निर्दिष्ट किया जा सकता है) को अपनाया जा सकता है।  
  • नए बैंकों की लाइसेंसिंग: समूह ने सुझाव दिया कि नए बैंकों की लाइसेंसिंग के लिये न्यूनतम प्रारंभिक पूंजी की आवश्यकता को बढ़ाया जा सकता है: 
    (i) यूनिवर्सल बैंकों के लिये 500 करोड़ से 1,000 करोड़ रुपए।
    (ii) छोटे वित्तीय बैंकों के लिये 100 करोड़ रुपए से 300 करोड़ रुपए।

आधारभूत व्यवहार्यता अंतराल अनुदान

केंद्रीय कैबिनेट ने ‘आधारभूत व्यवहार्यता अंतराल अनुदान’ (Infrastructure Viability Gap Funding- VGF) योजना में सार्वजनिक निजी भागीदारी (Public Private Partnership- PPP) हेतु वित्तीय सहायता के लिये इसे जारी रखने और इसके पुनर्गठन की मंज़ूरी दी है।

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IFSC में खुदरा व्यापार के विकास पर समिति ने रिपोर्ट प्रस्तुत की

अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्र (International Financial Services Centre- IFSC) में ‘अंतर्राष्ट्रीय खुदरा व्यापार विकास’ पर अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्र प्राधिकरण (IFSCA) की विशेषज्ञ समिति ने अपनी अंतरिम रिपोर्ट IFSCA के अध्यक्ष को सौंप दी है। समिति ने IFSC के बैंकिंग, बीमा और पूंजी बाजार क्षेत्रों में खुदरा भागीदारी बढ़ाने के संबंध में सुझाव दिये हैं। मुख्य सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • बैंकिंग: IFSC द्वारा बैंकिंग इकाइयों को निवासी भारतीय खुदरा ग्राहकों को बैंकिंग सेवाएँ प्रदान करने की अनुमति दी जानी चाहिये। ग्राहकों को अपनी पसंद की मुद्रा में चालू, बचत और सावधि जमा खाता खोलने की भी अनुमति होनी चाहिये। भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India- RBI) का परिपत्र, जो कि IFSC द्वारा संचालित बैंकों को विनियमित करता है, उन्हें गैर-खुदरा ग्राहकों को सेवाएँ प्रदान करने की अनुमति देता है। समिति ने यह सुझाव भी दिया कि भारत के निवासियों को IFSC के खाते में धन राशि को भेजने के लिये उदारीकृत प्रेषण योजना (Liberalised Remittance Scheme- LRS) का उपयोग करने की अनुमति होनी चाहिये। LRS के तहत लोग स्वीकृत लेन-देन के लिये विदेशी करेंसी भेज सकते हैं। 
  • IFSCA ने RBI के परिपत्र के स्थान पर IFSC में संचालित होने वाली बैंकिंग इकाइयों के लिये बैंकिंग विनियम, 2020 को अधिसूचित किया। इन रेगुलेशंस में रेगुलेटर नियम दिये गए हैं और बैंकिंग इकाइयों के लिये स्वीकृत गतिविधियाँ भी दर्ज हैं। समिति के कुछ सुझावों को लागू करते हुए, यह भारत के निवासियों और अनिवासियों, जिनके पास कुल मिलाकर एक मिलियन अमेरिकी डॉलर से कम की संपत्ति है, को विदेशी करेंसी खाता खोलने की अनुमति देता है। यह भारतीय निवासियों को LRS का उपयोग करके स्वीकृत लेन-देन की अनुमति देता है।
  • बीमा: अनिवासी भारतीयों (Non-Resident Indians- NRI) और भारतीय मूल के व्यक्तियों (Persons of Indian Origin- PIO) को IFSC में कार्यरत बीमाकर्त्ताओं से भारत और विदेश में स्थित अपने और परिवार के सदस्यों के लिये बीमा पॉलिसी खरीदने की अनुमति दी जानी चाहिये। बीमा प्रीमियम किसी भी करेंसी और पोर्टेबल (बाद में भुगतान की करंसी में परिवर्तन की अनुमति देने के लिये) देय होना चाहिये। वर्तमान में IFSC में कार्यरत बीमाकर्त्ताओं को केवल विदेशी करंसी में लेन-देन करने की अनुमति है। समिति ने यह भी सुझाव दिया कि निवासी भारतीयों को विश्व में कहीं भी चिकित्सा उपचार के लिये विदेशी स्वास्थ्य बीमा खरीदने की अनुमति दी जानी चाहिये। वर्तमान में IFSC के अंतर्गत आने वाले बीमाकर्त्ताओं को IFSC के भीतर, भारत में अन्य विशेष आर्थिक क्षेत्रों के साथ या भारत के बाहर संस्थाओं के साथ लेन-देन करने की अनुमति है।

पूंजी बाज़ार: निवासी भारतीयों को निम्नलिखित में निवेश की अनुमति होनी चाहिये: 

(i) IFSC स्टॉक एक्सचेंजों में सूचीबद्ध कंपनियों में। 
(ii) IFSC में वैकल्पिक निवेश फंड और म्यूचुअल फंड (LRS मार्ग के माध्यम से) में। 

वर्तमान में निवासी भारतीय IFSC की संस्थाओं में निवेश कर सकते हैं, बशर्ते कि उनका निवल मूल्य कम-से-कम एक मिलियन अमेरिकी डॉलर हो और वे अपतटीय निवेश करने के लिये विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (फेमा) के अंतर्गत पात्र हों। 


विधि एवं न्याय 

मध्यस्थता और सुलह (संशोधन) अध्यादेश, 2020

मध्यस्थता और सुलह (संशोधन) अध्यादेश [Arbitration and Conciliation (Amendment) Ordinance], 2020 को जारी किया गया है। यह मध्यस्थता और सुलह अधिनियम (Arbitration and Conciliation Act), 1996 में संशोधन करता है। अधिनियम में घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता से संबंधित प्रावधान हैं और यह सुलह प्रक्रिया के संचालन से संबंधित कानून को स्पष्ट करता है। अध्यादेश की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं: 

  • फैसले पर ऑटोमैटिक स्टे: 1996 के अधिनियम में विभिन्न पक्षों को इस बात की अनुमति दी गई है कि वे मध्यस्थता संबंधी किसी फैसले (मध्यस्थता फैसला यानी मध्यस्थता की प्रक्रिया में दिया गया कोई आदेश) के निवारण (सेटिंग असाइड) के लिये आवेदन कर सकते हैं। न्यायालयों ने इस प्रावधान की व्याख्या इस तरह से की थी कि न्यायालय के समक्ष जैसे ही निवारण के लिये कोई आवेदन रखा जाता है, उसी क्षण मध्यस्थता के फैसले पर ऑटोमैटिक स्टे लग जाएगा। वर्ष 2015 में इस अधिनियम में संशोधन किया गया और कहा गया कि मध्यस्थता संबंधी किसी फैसले पर सिर्फ इस वजह से स्टे नहीं लगाया जाएगा, क्योंकि उसके निवारण के लिये अदालत में आवेदन किया गया है। 
  • अध्यादेश में निर्दिष्ट किया गया है कि मध्यस्थता संबंधी किसी फैसले पर रोक लगाई जा सकता है (आवेदन के लंबित रहने के बावजूद), अगर न्यायालय को इस बात का विश्वास है कि: 
    • संबंधित आर्बिट्रेशन एग्रीमेंट या कॉन्ट्रैक्ट, फैसला, धोखाधड़ी या भ्रष्टाचार से प्रेरित या प्रभावित था। 
  • मध्यस्थों की योग्यता: अधिनियम एक अलग अनुसूची में मध्यस्थों के लिये कुछ योग्यता, अनुभव और मान्यता मानदंडों को निर्दिष्ट करता है। अनुसूची के अंतर्गत शर्तों में कहा गया है कि मध्यस्थ को 

(i) अधिवक्ता अधिनियम, 1961 के अंतर्गत वकील होना चाहिये और उसे 10 वर्ष का अनुभव होना चाहिये।
(ii) उसे भारतीय कानूनी सेवा का अधिकारी होना चाहिये। 

इसके अतिरिक्त मध्यस्थों पर लागू सामान्य मानदंडों में यह भी शामिल है कि उन्हें भारतीय संविधान का जानकार होना चाहिये। 

  • अध्यादेश में इस अनुसूची को हटा दिया गया है और कहा गया है कि आर्बिट्रेटर्स की क्वालिफिकेशन, अनुभव और एक्रेडेशन के नियमों को रेगुलेशंस द्वारा निर्दिष्ट किया जाएगा।

न्यायाधिकरण कानून 2020 

सर्वोच्च न्यायालय ने न्यायाधिकरण, अपीलीय न्यायाधिकरण और अन्य प्राधिकरण (सदस्यों की अर्हता, अनुभव और अन्य सेवा-शर्तें) नियम [Tribunal, Appellate Tribunal and other Authorities (Qualification, Experience and other Conditions of Service of Members) Rules], 2020 के विभिन्न पहलुओं पर फैसला सुनाया। ये नियम 19 न्यायाधिकरण के सदस्यों की अर्हताओं, सेवा-शर्तों और कार्यकाल को निर्धारित करते हैं।

वर्ष 2019 में सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2017 में अधिसूचित नियमों के एक पूर्व संस्करण को रद्द कर दिया था। तब न्यायालय ने कहा था कि ये नियम संविधान के उन विभिन्न सिद्धांतों के विरोधी हैं जिनमें न्यायपालिका की स्वतंत्रता की रक्षा करने पर बल दिया गया है। सरकार को इन नियमों को दोबारा बनाने को कहा गया था ताकि ये न्यायालय के पूर्व फैसलों के अनुकूल हो सकें। इसके बाद 2020 के नियमों को अधिसूचित किया गया।  

इस फैसले की मुख्य झलकियाँ निम्नलिखित हैं:

  • स्वतंत्र निकाय: न्यायालय ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि वह न्यायाधिकरण में नियुक्तियों, साथ ही उनके कामकाज और प्रशासन के प्रबंधन के लिये एक स्वतंत्र निकाय का गठन करे, जिसे राष्ट्रीय न्यायाधिकरण आयोग का नाम दिया जाए। इसके लिये वित्त मंत्रालय के अंतर्गत एक अलग प्रभाग का गठन किया जा सकता है जो आयोग का गठन होने तक न्यायाधिकरण की आवश्यकताओं का पर्यवेक्षण करेगा।
  • चयन समिति: न्यायालय ने कहा कि चयन समिति निर्णय लेते समय न्यायिक सदस्यों को प्रमुखता नहीं देती। उसने निर्दिष्ट किया कि समिति में निम्नलिखित को शामिल किया जाना चाहिये: 

(i) भारत का मुख्य न्यायाधीश या उसका नॉमिनी (निर्णायक मत के साथ),
(ii) न्यायाधिकरण के पीठासीन अधिकारी या पीठासीन अधिकारी न्यायिक सदस्य न हो या वह पुनर्नियुक्ति की मांग कर रहा हो तो सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश या उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश। 
(iii) विधि एवं न्याय मंत्रालय सचिव। 
(iv)  नॉन पेरेंट मंत्रालय के केंद्र सरकार का सचिव।
(v) पेरेंट मंत्रालय का सचिव (निर्णायक मत के बिना)।

  • अधिवक्ताओं की योग्यता: 10 वर्ष के अनुभव वाले अधिवक्ता न्यायाधिकरण में न्यायिक सदस्य के रूप में नियुक्ति के पात्र होंगे (कुछ न्यायाधिकरणों में 25 वर्ष के अनुभव की वर्तमान शर्त के स्थान पर)। 
  • कार्यकाल: न्यायाधिकरण के सदस्यों का कार्यकाल चार वर्ष के बजाय पाँच वर्ष का होगा। इसके अतिरिक्त वाइस चेयरपर्सन, वाइस प्रेज़िडेंट और अन्य सदस्यों का कार्यकाल उनके 67 वर्ष के होने तक होगा (65 वर्ष के स्थान पर)। 
  • 2020 के नियमों का प्रभाव: 2020 के नियमों का प्रत्याशित प्रभाव होगा और ये नियम अधिसूचना की तारीख (12 फरवरी, 2020) से लागू होंगे। इसके अतिरिक्त निर्णय की तारीख तक नियमों के अंतर्गत नियुक्तियाँ वैध होंगी। 
  • नियुक्तियाँ: केंद्र सरकार को चयन समिति के सुझावों के तीन महीने के अंदर न्यायाधिकरण की सभी नियुक्तियाँ करनी होंगी। 

गृह मामले

विदेशी अंशदान से संबंधित नियमों में संशोधन 

गृह मामलों के मंत्रालय ने विदेशी अंशदान से संबंधित नियमों को और कठोर बनाने के उद्देश्य से विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम, 2010 के तहत नए नियम अधिसूचित किये हैं।

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आयुष

पोस्ट ग्रैजुएट आयुर्वेद शिक्षा पर रेगुलेशन अधिसूचित

भारतीय चिकित्सा केंद्रीय परिषद (Central Council of Indian Medicine - CCIM) ने भारतीय चिकित्सा केंद्रीय परिषद (स्नातकोत्तर आयुर्वेद शिक्षा) संशोधन विनियम, 2020 को अधिसूचित किया है। यह आयुर्वेद में स्नातकोत्तर शिक्षा को विनियमित करने के लिये जारी 2016 के नियमों में संशोधन करता है। 

2020 के विनियम में निर्दिष्ट किया गया है कि शल्य (सामान्य सर्जरी) और शालक्य (आँख, नाक, गला, सिर, मुँह और दाँत) के स्नातकोत्तर छात्रों को स्वतंत्र रूप से कुछ किस्म की सर्जरी करने के लिये व्यावहारिक रूप से प्रशिक्षित होना चाहिये। शल्य चिकित्सा छात्रों के लिये सर्जरी में निम्नलिखित शामिल हैं: 

(i) ड्रेनेज ऑफ अबसेसेज़।
(ii) स्किन ग्राफ्टिंग। 
(iii) एम्प्यूटेशन ऑफ गैंग्रीन। 

शालक्य चिकित्सा छात्रों के लिये सर्जरी में निम्नलिखित शामिल हैं: 

(i) टॉन्सिलेक्टॉमी।
(ii) डेविएटेड सेप्टम। 
(iii) मोतियाबिंद।
(iv) रूट कनाल ट्रीटमेंट। 


सूचना एवं प्रसारण

43 मोबाइल एप बैन 

इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने 43 एप्स पर इस आधार पर प्रतिबंध लगा दिया है कि उनसे राज्य की संप्रभुता, एकता, रक्षा और सुरक्षा तथा सार्वजनिक व्यवस्था को खतरा है। इन एप्स में अलीएक्सप्रेस (AliExpress), लालामोव (Lalamove) और स्नैक वीडियो (Snack Video) शामिल हैं। मोबाइल और गैर-मोबाइल इंटरनेट सक्षम उपकरणों पर इन एप्स के उपयोग को प्रतिबंधित किया गया है। मंत्रालय ने जून 2020 में 59 मोबाइल एप्स और सितंबर 2020 में 118 मोबाइल एप को इसी आधार पर प्रतिबंधित किया था। इन प्रतिबंधित एप्स में टिकटॉक, शेयरइट, यूसी ब्राउज़र और PUBG मोबाइल लाइट शामिल हैं।

टेलीविज़न रेटिंग एजेंसी

सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ( Ministry of Information and Broadcasting ) ने टेलीविज़न रेटिंग एजेंसियों के मौजूदा दिशा-निर्देशों की समीक्षा के लिये एक समिति का गठन किया है। दिशा-निर्देश टेलीविज़न रेटिंग एजेंसियों के लिये पात्रता मानदंड और पंजीकरण प्रक्रिया को निर्दिष्ट करते हैं। ये दर्शकों के मापन का तरीका भी निर्दिष्ट करते हैं।

टेलीविजन रेटिंग की माप के लिये मौजूदा दिशा-निर्देश (2014) घरों के पूल से चयनित एक पैनल का निर्धारण करते हैं जहाँ ऑडियंस मेजरमेंट डिवाइस रखा जाता है (रेटिंग के माप के लिये सैंपल साइज)। यह 20,000 घरों का सैंपल आकार निर्धारित करता है, जिसे 50,000 घरों तक पहुँचने के लिये प्रतिवर्ष 10,000 तक बढ़ाया जाना था।

मंत्रालय ने कहा था कि तकनीकी प्रगति को देखते हुए दिशा-निर्देशों की समीक्षा की आवश्यकता है, और इस संबंध में भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (Telecom Regulatory Authority of India- TRAI) को कुछ सुझाव दिये गए थे। इसने मौजूदा दिशा-निर्देशों में बदलाव की सिफारिश करने के लिये एक समिति (अध्यक्ष: शशि एस. वेमपति, सीईओ, प्रसार भारती) का गठन किया है। समिति के नियमों और संदर्भों में निम्नलिखित शामिल हैं: 

(i) इस विषय पर प्राप्त पहले के सुझावों का अध्ययन। 
(ii) पारदर्शी और जवाबदेह रेटिंग प्रणाली के लिये सुझाव देना। 
(iii) क्षेत्र में प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा देने के लिये उपायों को सुझाना।

उल्लेखनीय है कि अप्रैल 2020 में ट्राई ने भारत में टेलीविज़न रेटिंग प्रणाली पर सुझाव जारी किये थे। इसमें कहा गया है कि देश में टेलीविज़न रेटिंग करने वाली सिर्फ एक कंपनी मंत्रालय के साथ पंजीकृत है (ब्रॉडकास्ट ऑडियंस रिसर्च काउंसिल या BARC जो कि उद्योग की अपनी निकाय है)। उसने BARC के संयोजन में बदलाव करने का सुझाव दिया था ताकि हितों के टकराव को रोका जा सके। इसके अतिरिक्त उसने सुझाव दिया था कि वर्ष 2020 के अंत तक पैनल के आकार को 44,000 से बढ़ाकर 60,000 किया जाए और 2022 के अंत तक इसे एक लाख कर दिया जाए। ट्राई ने कहा कि बड़े सैंपल का आकार माप रेटिंग की मज़बूती को बेहतर बनाता है।

डिजिटल मीडिया और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म का कंटेंट 

केंद्र सरकार ने अपने एक महत्त्वपूर्ण निर्णय में ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के कुछ कंटेट को सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के अंतर्गत लाने की घोषणा की है।

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संचार

अन्य सेवा प्रदाताओं के लिये नए दिशा-निर्देश 

दूरसंचार विभाग (Department of Telecommunications- DoT) ने अन्य सेवा प्रदाताओं (Other Service Providers- OSP) के लिये नए दिशा-निर्देशों को जारी किया। नए दिशा-निर्देश बिज़नेस प्रोसेस आउटसोर्सिंग (Business Process Outsourcing- BPO) और आईटी-सक्षम सेवा उद्योग के लिये अनुपालन के बोझ को कम करने का प्रयास करते हैं। ये अगस्त 2008 में जारी दिशा-निर्देशों का स्थान लेते हैं। नए दिशा-निर्देशों की मुख्य विशेषताओं में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • OSP की परिभाषा: पहले OSP को ऐसी कंपनियों के रूप में परिभाषित किया गया था जो कि अधिकृत टेलीकॉम सेवा प्रदाताओं के दूरसंचार संसाधनों का उपयोग करते हुए विभिन्न एप्लीकेशन सेवाएँ जैसे- टेली बैंकिंग, टेली-कॉमर्स, कॉल सेंटर और अन्य आईटी-सक्षम सेवाएँ प्रदान करती हैं। नए दिशा-निर्देशों में कहा गया है कि OSP ऐसी कंपनियाँ होती हैं जो कि आवाज़-आधारित बिज़नेस प्रोसेस आउटसोर्सिंग सेवाएँ प्रदान करती हैं। इसलिये नए दिशा-निर्देशों के अनुसार, डेटा संबंधित कार्य करने वाले BPO, OSP दिशा-निर्देशों के दायरे से बाहर होंगे।
  • OSP का पंजीकरण: पूर्व दिशा-निर्देशों के अनुसार, देश में सेवाएँ प्रदान करने के लिये OSP को DoT में पंजीकरण करना होता था। नए दिशा-निर्देशों में पंजीकरण की जरूरत को हटा दिया गया है। 
  • वर्क फ्रॉम होम की सुविधा: OSP उन व्यक्तियों को नियुक्त कर सकते हैं जो घर से काम करते हैं। इससे पहले OSP को DoT से अनुमति लेने और वर्क फ्रॉम होम के लिये बैंक गारंटी प्रदान करने की आवश्यकता थी। नए दिशा-निर्देश वर्क फ्रॉम होम के लिये इन आवश्यकताओं को हटा देते हैं।
  • बुनियादी ढाँचे का साझाकरण: इससे पहले घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय OSP के बीच बुनियादी ढाँचे के साझाकरण को DoT से पूर्व अनुमोदन के साथ अनुमति दी गई थी। इसमें एक ही कंपनी की संस्थाओं के बीच साझाकरण की अनुमति दी गई थी। OSP को इस उद्देश्य के लिये बैंक गारंटी प्रदान करना आवश्यक था। नए दिशा-निर्देश घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय OSP के बीच बुनियादी ढाँचे के साझाकरण की अनुमति दी जाती है। इस उद्देश्य के लिये किसी बैंक गारंटी की आवश्यकता नहीं होगी।

सड़क परिवहन

टैक्सी एग्रीगेटर्स

सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय (Ministry of Road Transport and Highways) ने मोटर वाहन (संशोधन) अधिनियम (Motor Vehicles (Amendment) Act), 2019 के अनुसार, वाहन एग्रीगेटर दिशा-निर्देश (Vehicle Aggregator Guidelines) 2020 जारी किये। यह अधिनियम एग्रीगेटर्स को डिजिटल इंटरमीडियरी या मार्केटप्लेस के रूप में परिभाषित करता है, जिनका उपयोग यात्रियों द्वारा परिवहन (टैक्सी सेवाएँ) हेतु ड्राइवर के साथ जुड़ने के लिये किया जा सकता है। एग्रीगेटर्स को काम करने के लिये राज्य सरकार से लाइसेंस प्राप्त करना होगा। राज्य सरकारें केंद्र सरकार द्वारा जारी दिशा-निर्देशों के आधार पर एग्रीगेटर्स को विनियमित कर सकती हैं।

दिशा-निर्देश साझा मोबिलिटी को विनियमित करने, यातायात की भीड़ एवं प्रदूषण को सुगम तरीके से कम करने, ग्राहक सुरक्षा और ड्राइवर वेलफेयर सुनिश्चित करने का प्रयास करते हैं। दिशा-निर्देशों की मुख्य विशेषताओं में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • पात्रता: एक आवेदक को कंपनी अधिनियम, 2013 के अंतर्गत कंपनी के रूप में पंजीकृत होना चाहिये या सहकारी समिति अधिनियम (Co-operative Societies Act), 1912 के अंतर्गत एक सहकारी समिति होना चाहिये। उसके पास भारत में पंजीकृत एक कार्यालय भी होना चाहिये।
  • लाइसेंसिंग: एग्रीगेटर्स को जारी किया गया लाइसेंस पाँच वर्षों के लिये वैध होगा जिसके बाद संबंधित प्राधिकरण द्वारा उसे नवीनीकृत किया जाएगा। यदि एग्रीगेटर इन दिशा-निर्देशों का पालन नहीं करता है तो प्राधिकरण द्वारा लाइसेंस रद्द किया जा सकता है। संबंधित प्राधिकरण राज्य परिवहन प्राधिकरण के पोर्टल पर लाइसेंस की सूची अपडेट करेगा।
  • ड्राइवर के लिये दिशा-निर्देश: ड्राइवरों के संबंध में आवेदकों को विभिन्न दिशा-निर्देशों का पालन करना होगा: 
    (i) निर्धारित दिशा-निर्देशों के अनुसार, उनकी ड्राइविंग क्षमता का परीक्षण (जैसे मोटर वाहन एक्ट, 1988 से परिचित होना, जेंडर सेंसिटाइजेशन)। 
    (ii) एक वैध आईडी प्रूफ और ड्राइविंग लाइसेंस सुनिश्चित करना।
    (iii) पुलिस सत्यापन।
    (iv) निर्देशों के अनुसार प्रत्येक ड्राइवर का स्वास्थ्य और सावधि बीमा सुनिश्चित करना।
  • वाहन अनुपालन: आवेदकों को वाहनों के संबंध में निम्नलिखित अनुपालनों को सुनिश्चित करना होगा जैसे: 
    (i) वैध पंजीकरण, परमिट और फिटनेस प्रमाणपत्र। 
    (ii) वैध थर्ड पार्टी इंश्योरेंस। 
    (iii) ईंधन संबंधी मानदंडों का अनुपालन।  
    (iv) लागू करों का भुगतान।  
    (iv) सेंट्रल लॉकिंग सिस्टम के मैनुअल ओवरराइड को सक्षम करना। 
  • किराया विनियमन: मौजूदा वर्ष के लिये बेस किराया WPI द्वारा अनुक्रमित शहर की टैक्सी का किराया होगा। एग्रीगेटर को बेस फेयर से 50% कम और बेस फेयर के अधिकतम सर्ज प्राइसिंग (Surge Pricing) से 50% कम चार्ज करने की अनुमति होगी। एक ड्राइवर को एक राइड पर कम-से-कम 80% किराया मिलना चाहिये।

सड़क परिवहन मंत्रालय ने कई ड्राफ्ट नियम जारी किये

सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय ने केंद्रीय मोटर वाहन नियम, 1989 में संशोधन करने वाले कई मसौदा नियम जारी किये। इन मसौदा नियमों की मुख्य विशेषताओं में निम्नलिखित शामिल हैं:

विंटेज मोटर वाहन: वर्तमान में हेरिटेज वैल्यू के वाहनों के पंजीकरण की प्रक्रिया को विनियमित करने के लिये कोई नियम नहीं है। मसौदा नियम विंटेज मोटर वाहनों को उन सभी वाहनों (गैर-वाणिज्यिक/व्यक्तिगत उपयोग के लिये इस्तेमाल किये जाने वाले दोपहिया और चारपहिया) के रूप में परिभाषित करते हैं साथ ही उनका पंजीकरण 50 वर्ष से भी पहले हुआ हो (आयातित वाहनों सहित)। वाहन में बहुत अधिक फेरबदल (Overhaul) नहीं होनीना चाहिये।

राज्य सरकार एक विंटेज मोटर वाहन राज्य/केंद्रशासित प्रदेश समिति की नियुक्ति करेगी, जो पुराने मोटर वाहनों के अनुमोदन या अस्वीकृति के बारे में सभी निर्णयों को अंतिम रूप देगी। राज्य ऐसे वाहनों के पंजीकरण हेतु सभी आवेदनों को संसाधित करने के लिये एक नोडल अधिकारी नियुक्त करेगा। ऐसे पंजीकृत वाहनों की बिक्री और खरीद के लिये क्रेता और विक्रेता संबंधित राज्य परिवहन प्राधिकरण को सूचित करेंगे और नए मालिक के नाम पर पंजीकरण दर्ज किया जाएगा। 

एक विंटेज मोटर वाहन को केवल कुछ आधार जैसे- प्रदर्शनी, तकनीकी अनुसंधान, एक विंटेज कार रैली में भाग लेने,  ईंधन भरने और रखरखाव के लिये भारतीय सड़कों पर चलाने की अनुमति होगी।

मोटर वाहन मालिक के नॉमिनी का पंजीकरण: मसौदा नियमों में प्रावधान है कि मोटर वाहन का मालिक वाहन के पंजीकरण के समय एक व्यक्ति को नॉमिनी बनाएगा। इससे वाहन मालिक की मृत्यु होने पर मोटर वाहन को नॉमिनी के नाम पर पंजीकृत या स्थानांतरित करने में मदद मिलेगी।


आवासन एवं शहरी मामले

राजस्व तटस्थ प्रस्ताव 

आवासन एवं शहरी मामलों के मंत्रालय ( Ministry of Housing and Urban Affairs) ने स्टांप ड्यूटी और पंजीकरण शुल्क में बदलाव के कारण हुए असर पर एक रिपोर्ट जारी की। यह रिपोर्ट राज्यों को कम मूल्य के आवासों के लिये स्टांप ड्यूटी और पंजीकरण शुल्क कम करने का औचित्य प्रदान करती है, लेकिन इस बदलाव का असर उनके समूचे राजस्व पर नहीं पड़ेगा। 

रिपोर्ट में मुख्य निष्कर्षों में शामिल हैं: 

  • सभी के लिये आवास: इस नीति का उद्देश्य वर्ष 2022 तक सभी नागरिकों को आवास प्रदान करना है। इस नीति के अंतर्गत सरकार निजी डेवलपर्स को प्रोत्साहित कर आवासों की संख्या में वृद्धि करना चाहती है। हालाँकि नीति सीधे उच्च अचल संपत्ति की कीमतों के मुद्दे को संबोधित नहीं करती है। आवास की उच्च कीमतों के प्रमुख कारणों में से एक लेन-देन के समय राज्य सरकारों द्वारा लगाया जाने वाला उच्च स्टांप ड्यूटी और पंजीकरण शुल्क है। 
  • स्टांप शुल्क और पंजीकरण: इन कर दरों में पिछले कुछ वर्षों में गिरावट आई है, जबकि यह अभी भी अधिक है और संपत्ति के मूल्य का 5-13% है। हालाँकि इन करों से राज्य सरकारों को काफी राजस्व मिलता है (लगभग 7%), इसलिये वे इन करों को कम करने के इच्छुक नहीं हैं जो कि घर खरीदने की प्रभावी लागत को कम कर सकता है। इसकी तुलना में अन्य देशों (यूके, जापान, जर्मनी) में स्टांप शुल्क की दरें कम हैं। 
  • मुद्दे: स्टांप शुल्क के ज़्यादा होने से लेन-देन की पूरी जानकारी नहीं दी जाती और कर चोरी भी होती है। जानकारी न देने के कई परिणाम होते हैं जैसे: 
    (i) भूमि और संपत्ति को पूरी तरह से कोलेट्रलाइज नहीं किया जाता।
    (ii) सरकारी राजस्व में हानि। 
    (iii) काले धन के लेन-देन में वृद्धि। 
    (iv) बाज़ार मूल्यों में उतार-चढ़ाव (Bubbles) के लिये अतिसंवेदनशील होना। 
  • इससे निपटने के लिये सर्किल रेट या गाइडेंस वैल्यू को शुरू किया गया था, लेकिन ये सफल नहीं हुए। 
  • राजस्व तटस्थ प्रस्ताव: रिपोर्ट बताती है कि यदि राज्य आवास के मूल्यों को कम करने के लिये स्टांप शुल्क को कम करते हैं तो वे राजस्व तटस्थ (या राजस्व भी बढ़ा सकते हैं) रह सकते हैं। करों को कम करने से जितने राजस्व का नुकसान होता है, उसकी भरपाई सभी के लिये आवास के अंतर्गत बनाए गए हाउसिंग स्टॉक से प्राप्त अतिरिक्त कर राजस्व से की जाएगी। करों को कम करने से मांग बढ़ सकती है जो आवास नीति के बिना भी अतिरिक्त आपूर्ति को बढ़ावा देगी। प्रस्ताव यह सुनिश्चित करता है कि कम मूल्य के आवास के लिये स्टांप ड्यूटी या तो कम कर दी जाए या पूरी तरह से हटा दी जाए, जबकि उच्च मूल्य के आवास के लिये शुल्क पहले की तरह बने रहें। 

बिजली

बिजली की खरीद के लिये प्रतिस्पर्द्धात्मक बोली प्रक्रिया 

विद्युत मंत्रालय ने कोयला आधारित थर्मल पावर स्रोतों से बिजली के साथ ही अक्षय ऊर्जा (Renewable Energy- RE) स्रोतों से चौबीसों घंटे ( Round-The-Clock -RTC)) बिजली की खरीद के लिये टैरिफ-आधारित प्रतिस्पर्द्धी बोली प्रक्रिया के दिशा-निर्देशों में संशोधन किया। जुलाई 2020 में दिशा-निर्देश जारी किये गए थे ताकि अक्षय ऊर्जा की अनिरंतर प्रकृति के मद्देनज़र ऊर्जा के थर्मल स्रोतों के साथ अक्षय ऊर्जा की बंडलिंग (Bundling of Renewable Rnergy) को आसान बनाया जा सके। संशोधन ऊर्जा के किसी भी स्रोत के साथ अक्षय ऊर्जा की बंडलिंग को सक्षम बनाते हैं। इससे RTC खरीद के लिये सस्ती ऊर्जा उपलब्ध होगी। प्रमुख संशोधनों में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • नीलामी के मानदंड: पहले के मानदंडों के अनुसार, कंपोज़िट टैरिफ (बिजली के अन्य स्रोत के साथ अक्षय ऊर्जा हेतु टैरिफ) बोली प्रक्रिया का मानदंड था। संशोधन में मूल्यांकन के मानदंड के रूप में RTC बिजली की प्रति यूनिट आपूर्ति के भारित औसत स्तरीय (Weighted Average Levelized) टैरिफ निर्दिष्ट किया गया है।  भारित औसत स्तरित टैरिफ ऐसा शुल्क होता है जो बिजली खरीद समझौते (Power Purchase Agreement- PPA) में निर्दिष्ट RE स्रोतों और गैर-अक्षय ऊर्जा स्रोतों से प्राप्त ऊर्जा के अनुपात पर विचार करके निर्धारित किया गया है। इसमें निम्नलिखित शामिल होंगे: RE बिजली और गैर-अक्षय ऊर्जा बिजली (जैसे उपकरण और बुनियादी ढाँचे में निवेश) के निश्चित घटक। टैरिफ के निर्धारित घटक को PPA की अवधि के प्रत्येक वर्ष में प्रस्तुत किया जाना आवश्यक है। परिवर्तनशील घटक को कमीशनिंग की निर्धारित तिथि पर प्रस्तुत किया जाना आवश्यक है। 
  • बिजली की उपलब्धता में कमी पर ज़ुर्माना: जुलाई 2020 में जारी किये गए दिशा-निर्देशों में यह निर्दिष्ट किया गया है कि: 
    (i) सालाना कम-से-कम 51% बिजली अक्षय उर्जा स्रोतों से प्राप्त होनी चाहिये।
    (ii) अक्षय उर्जा उत्पादन एक वर्ष में और पीक आवर के दौरान कम-से-कम 85% उपलब्ध होनी चाहिये। 

यदि इन लक्ष्यों को प्राप्त नहीं किया जाता है तो बिजली उत्पादक इस कमी की 25% लागत को ज़ुर्माने के तौर पर चुकाएगा (इसे वर्ष के दौरान देय अधिकतम कंपोज़िट टैरिफ के आधार पर कैलुकेशन किया जाएगा)। संशोधनों में इसे 400% तक कर दिया गया है जिसकी गणना वर्ष के दौरान देय टैरिफ के आधार पर की जाएगी।  

  • पीक आवर्स: वर्तमान में पीक आवर्स में दिन के चार घंटों को गिना जाता है जो शाम के होते हैं या सुबह के, जैसा कि खरीदार के दस्तावेज़ों में लिखा हो। संशोधनों के अनुसार, पीक आवर दिन के वे चार घंटे होंगे जिन्हें क्षेत्रीय भार प्रेषण केंद्रों द्वारा निर्दिष्ट किया जाएगा।

ट्रांसमिशन सेवा प्रदाता के चयन हेतु इक्विटी लॉक-इन अवधि में संशोधन

विद्युत मंत्रालय (Ministry of Power) ने अंतर्राज्यीय ट्रांसमिशन प्रणाली को स्थापित करने के लिये टैरिफ आधारित प्रतिस्पर्द्धी नीलामी प्रक्रिया के माध्यम से ट्रांसमिशन सेवा प्रदाता के चयन हेतु मानक नीलामी दस्तावेज़ों में निर्दिष्ट इक्विटी लॉक-इन अवधि में संशोधन किया।

पहले के प्रावधान के अनुसार, चयनित बोलीदाता को वाणिज्यिक परिचालन की तारीख से दो वर्षों के लिये कम-से-कम 51% और उसके बाद तीन तीन वर्षों के लिये 26% पेड अप इक्विटी शेयर पूंजी को होल्ड करना होता था। संशोधनों में कहा गया है कि चयनित बोलीदाता को वाणिज्यिक परिचालन की तारीख से एक वर्ष के लिये कम-से-कम 51% पेड अप इक्विटी शेयर पूंजी को होल्ड करना होगा।

प्रस्तावों के अनुरोध के लिये बोली लगाने वाले कंसोर्टियम के मामले में कंसोर्टियम को वाणिज्यिक परिचालन की तारीख के बाद दो वर्ष के लिये 51% इक्विटी शेयर पूंजी को होल्ड करना आवश्यक था जिसमें मुख्य सदस्य के पास वाणिज्यिक परिचालन की तारीख से पाँच वर्ष तक 26% शेयर होल्डिंग होनी चाहिये। संशोधनों में इन दोनों के लिये एक वर्ष की अवधि तय की गई है।

पीएम-कुसुम योजना 

नवीन और अक्षय ऊर्जा मंत्रालय (Ministry of New and Renewable Energy) ने प्रधानमंत्री किसान ऊर्जा सुरक्षा एवं उत्थान महाभियान (Pradhan Mantri Kisan Urja Suraksha evam Utthaan Mahaabhiyaan) योजना के लक्ष्य में संशोधन किया है।

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