जून 2020 | 07 Jul 2020

PRS के प्रमुख हाइलाइट्स 

  • कोविड-19
    • वर्ष 2020-21 में नई योजनाओं को शुरू करने पर प्रतिबंध लगाया
    • मुद्रा योजना के अंतर्गत ऋणों के पुनर्भुगतान पर ब्याज अनुदान को मंज़ूरी
    • कोविड-19 के मद्देनज़र CRR और MSF में बदलाव की समय सीमा बढ़ाई गई
    • विभिन्न कर अनुपालनों की समय सीमा बढ़ाई गई
    • डायग्नॉस्टिक किट्स, PPE, सैनिटाइजर्स, हाइड्रोक्लोरोक्वीन के लिये निर्यात नीतियों में संशोधन
    • रेहड़ी-पटरी वाले दुकानदारों (स्ट्रीट वेंडर्स) के लिये विशेष सूक्ष्म वित्त सुविधा 
    • प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना की समयसीमा में वृद्धि 
    • गरीब कल्याण रोजगार अभियान 
    • कोविड-19 के लिये शॉर्ट टर्म हेल्थ इंश्योरेंस के दिशा-निर्देश 
    • कंपनी अधिनियम, 2013 के अंतर्गत कुछ समय सीमाओं को बढ़ाया गया 
    • अन्य पिछड़ा वर्गों के उप-वर्गीकरण की जाँच हेतु गठित आयोग की अवधि को बढ़ाने को मंज़ूरी 
    • मसौदा पर्यावरण प्रभाव आकलन अधिसूचना, 2020 पर फीडबैक 
  • समष्टि आर्थिक (मैक्रोइकोनॉमिक) विकास

    • वर्ष 2019-20 की चौथी तिमाही में मौजूदा खाता घाटा जीडीपी के 0.1% पर
  • वित्त
    • बैंकिंग विनियमन (संशोधन) अध्यादेश, 2020
    • रेगुलेटरी सैंडबॉक्स के लिये फ्रेमवर्क
    • मसौदा पेंशन फंड (विदेशी निवेश) नियम, 2020
    • निजी क्षेत्र के बैंकों के स्वामित्व की समीक्षा के लिये वर्किंग ग्रुप का गठन
    • भुगतान अवसंरचना विकास कोष’ के निर्माण की घोषणा
  • कृषि
    • आवश्यक वस्तु (संशोधन) अध्यादेश, 2020
    • उत्पाद की बिक्री हेतु हस्ताक्षरित कृषि समझौतों को रेगुलेट करने के लिये अध्यादेश
    • कृषि उपज व्यापार और वाणिज्य अध्यादेश, 2020
    • वर्ष 2020-21 खरीफ फसल के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्यों को मंज़ूरी
    • पशुपालन अवसंरचना विकास कोष को मंज़ूरी
  • MSME
    • सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों के वर्गीकरण में संशोधन
    • MSME के लिये गौण ऋण हेतु क्रेडिट गारंटी योजना शुरू
  • कॉरपोरेट मामले
    • CSR की पात्र गतिविधियों की सूची बढ़ाई गई
  • इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी
    • राष्ट्रीय सुरक्षा एवं सार्वजनिक व्यवस्था के आधार पर 59 मोबाइल एप्स पर पाबंदी
    • इलेक्ट्रॉनिक मैन्यूफैक्चरिंग को बढ़ावा देने वाली योजनाओं के लिये दिशा-निर्देश
  • परिवहन
    • मोटर वाहन नियमों में मसौदा संशोधन
  • खनन
    • कोयला लिंकेज के रैशनलाइजेशन के लिये नई तकनीक
    • पूर्व मंज़ूरियों के साथ खनिज ब्लॉक्स की नीलामी के लिये दिशा-निर्देश
  • बिजली
    • इलेक्ट्रिक वाहनों के लिये चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर के दिशा-निर्देशों और मानदंडों में संशोधन
  • पर्यावरण
    • प्लास्टिक कचरा प्रबंधन नियम, 2016 के अंतर्गत उत्पादकों की ज़िम्मेदारियों के लिये दिशा-निर्देश
  • स्वास्थ्य
    • भारतीय चिकित्सा और होम्योपैथी के लिये फार्माकोपिया आयोग
  • महिला एवं बाल विकास
    • मातृत्व और शैशव से संबंधित मुद्दों की जाँच हेतु टास्क फोर्स
  • सामाजिक न्याय और सशक्तीकरण
    • नशा मुक्त भारत: वार्षिक कार्य योजना (2020-21) 
  • युवा मामले और खेल
    • राज्य और ज़िला स्तर पर खेलो इंडिया केंद्र 
  • अंतरिक्ष
    • अंतरिक्ष क्षेत्र में निजी क्षेत्र की भागीदारी 

कोविड-19

वर्ष 2020-21 में नई योजनाओं को शुरू करने पर प्रतिबंध लगाया

वित्त मंत्रालय ने वित्तीय वर्ष 2020-21 में नई योजनाओं को शुरू करने के प्रस्तावों पर प्रतिबंध लगाया है। उसने सभी मंत्रालयों/विभागों को नई योजनाओं/उप-योजनाओं को शुरू करने से प्रतिबंधित किया है जिसमें वे योजनाएँ भी शामिल हैं जिनमें वित्त मंत्रालय (Ministry of Finance) से पहले ही सैद्धांतिक मंज़ूरी मिल चुकी है। यह प्रतिबंध आत्मनिर्भर भारत आर्थिक पैकेज और दूसरे अन्य विशेष पैकेज/घोषणाओं के अंतर्गत आने वाली योजनाओं पर लागू नहीं होगा। कोविड-19 महामारी के कारण सार्वजनिक वित्तीय संसाधनों की अप्रत्याशित मांग के कारण यह प्रतिबंध लगाया गया है। 

मुद्रा योजना के अंतर्गत ऋणों के पुनर्भुगतान पर ब्याज अनुदान को मंज़ूरी 

केंद्रीय कैबिनेट ने प्रधानमंत्री मुद्रा योजना (Pradhan Mantri Mudra Yojana- PMMY) के अंतर्गत सभी शिशु लोन एकाउंट उधारकर्त्ताओं को 2% का ब्याज अनुदान (ब्याज सबसिडी) देने की योजना को मंज़ूरी दी है। 

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RBI ने कोविड-19 के मद्देनज़र CRR और MSF में बदलाव की समय सीमा बढ़ाई  

RBI ने कोविड-19 के निरंतर प्रभाव को ध्यान में रखते हुए कैश रिज़र्व रेशो (Cash Reserve Ratio- CRR) के न्यूनतम दैनिक रख-रखाव और सीमांत स्थायी सुविधा (Marginal Standing Facility- MSF) के अंतर्गत उधार की सीमा को अगले तीन महीनों के लिये बढ़ा दिया है। 

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विभिन्न कर अनुपालनों की समय सीमा बढ़ाई

वित्त मंत्रालय ने कराधान और अन्य कानून (विभिन्न प्रावधानों में राहत) अध्यादेश, 2020 [Taxation and Other Laws (Relaxation of Certain Provisions) Ordinance, 2020] की शक्तियों के ज़रिये आयकर अधिनियम, 1961 (Income Tax Act, 1961) के अंतर्गत विभिन्न अनुपालनों की समय सीमा बढ़ाई है। इस अध्यादेश को मार्च 2020 में जारी किया गया था ताकि कर अनुपालन से संबंधित राहत दी जा सके, जैसे कोविड-19 के मद्देनज़र समय सीमा को बढ़ाना और जुर्माने से छूट इत्यादि।

  • IT अधिनियम: अध्यादेश के अंतर्गत कुछ अनुपालनों और कार्यों को करने की समय सीमा, जिन्हें 20 मार्च, 2020 से 29 जून, 2020 के दौरान करना था, को 30 जून, 2020 तक बढ़ाया गया था। इनमें निम्नलिखित कार्य शामिल हैं: 
    (i) नोटिस और अधिसूचनाएँ जारी करना, कार्यवाहियों को पूरा करना और अथॉरिटीज़ एवं ट्रिब्यूनलों द्वारा आदेश जारी करना।
    (ii) अपील फाइल करना, जवाब देना और आवेदन, तथा दस्तावेज़ प्रस्तुत करना। 
  • इस अवधि को 31 मार्च, 2021 तक बढ़ाया गया है। यह समय सीमा उन कार्यों पर भी लागू होगी जिन्हें 30 जून, 2020 से 31 दिसंबर, 2020 के बीच पूरा किया जाना है।
  • अध्यादेश सरकार को इस बात की अनुमति देता है कि वह विभिन्न कार्यों को पूरा करने के लिये अलग-अलग नियत तिथियों को अधिसूचित कर सकती है। जैसे आकलन वर्ष (Assessment Year- AY) 2019-20 (यानी वित्तीय वर्ष 2018-19) के लिये इनकम का रिटर्न फाइल करने की नियत तारीख को बढ़ाकर 31 जुलाई, 2020 कर दिया गया है। आकलन वर्ष 2020-21 के लिये रिटर्न फाइल करने की तारीख 30 नवंबर, 2020 तक बढ़ा दी गई है। हालाँकि 2020 में उन लोगों के मामले में जिनके पास एक लाख रुपए से अधिक का कर भुगतान बकाया है (पहले से चुकाए गए या काटे गए टैक्स की एकाउंटिंग के बाद), बकाया टैक्स पर 12% ब्याज लगेगा, अगर IT अधिनियम के अंतर्गत निर्दिष्ट मूल देय तिथि (व्यक्तियों के लिये 31 जुलाई और कंपनियों के लिये 31 अक्टूबर) के बाद रिटर्न दाखिल किया जाता है। 

अगर किसी को वित्तीय वर्ष 2019-20 के लिये IT अधिनियम के 80C से 80 GGC धारा के अंतर्गत कुछ कटौतियों का दावा करना है तो वह 31 जुलाई, 2020 तक निवेश कर सकता है (कुछ पूंजीगत लाभ कटौतियों का मामले में यह तारीख 30 सितंबर, 2020 है)।  

  • GST: अध्यादेश ने केंद्रीय वस्तु एवं सेवा कर अधिनियम, 2017 में संशोधन किये थे, ताकि केंद्र सरकार GST परिषद के सुझाव के आधार पर अधिनियम के अंतर्गत आने वाले GST अनुपालनों की समय सीमा को बढ़ाने की अधिसूचना जारी कर सके। इस प्रकार सरकार ने 20 मार्च, 2020 से 29 जून, 2020 के बीच किये जाने वाले कार्यों की समय सीमा 30 जून, 2020 कर दी थी।  इस समय सीमा को 31 अगस्त, 2020 कर दिया गया है। 31 अगस्त, 2020 की समय सीमा उन कार्यों पर भी लागू होगी, जिन्हें 30 जून, 2020 से 30 अगस्त, 2020 के दौरान पूरा किया जाना है।

डायग्नॉस्टिक किट्स, PPE, सैनिटाइजर्स, हाइड्रोक्लोरोक्वीन के लिये निर्यात नीतियों में संशोधन

वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय ने कोविड-19 की रोकथाम, निदान और उपचार में उपयोग की जाने वाली निम्नलिखित वस्तुओं की निर्यात नीतियों में संशोधन किये हैं: 

  • एल्कोहल आधारित सैनिटाइजर्स: मार्च 2020 में सभी प्रकार के सैनिटाइजर्स के निर्यात पर प्रतिबंध लगाया गया था। मई 2020 में एल्कोहल आधारित सैनिटाइजर्स के अतिरिक्त दूसरे सभी प्रकार के सैनिटाइजर्स के निर्यात पर लगा प्रतिबंध हटा दिया गया। एल्कोहल आधारित हैंड सैनिटाइजर्स के निर्यात को अब मुक्त कर दिया गया है, पर डिस्पेंसर पंप वाले कंटेनरों में पैक किये गए सैनिटाइजर्स अब भी निर्यात नहीं किये जा सकते।
  • डायग्नॉस्टिक किट्स: डायग्नॉस्टिक किट्स और प्रयोगशाला अभिकर्मकों के निर्यात पर अप्रैल 2020 में लगे प्रतिबंध में राहत दी गई है और अब इन वस्तुओं को निर्यात किया जा सकता है। हालाँकि RNA एक्सट्रैक्शन किट्स और अभिकर्मकों तथा RT-PCR किट्स और रीजेंट्स सहित कुछ विशिष्ट डायग्नॉस्टिक किट्स के निर्यात पर अब भी पाबंदी है।
  • कुछ डायग्नॉस्टिक उपकरणों, अपरेटस और अभिकर्मकों की निर्यात नीति में संशोधन किये गए हैं ताकि उन्हें प्रतिबंध से मुक्त किया जा सके। इनमें कोविड-19 परीक्षण और विभिन्न प्रकार के स्वैब्स के लिये उपयोग होने वाले प्रोब्स और प्राइमर्स शामिल हैं।
  • हाइड्रोक्लोरोक्वीन: मार्च 2020 में हाइड्रोक्लोरोक्वीन और उसके फॉर्मूलेशन के निर्यात पर कुछ मामलों को छोड़कर प्रतिबंध लगाया गया था। इनमें पड़ोसी देशों को निर्यात भी शामिल था जोकि दवाओं के लिये भारत पर निर्भर हैं और ऐसे देश जोकि कोविड-19 से गंभीर रूप से प्रभावित हैं। इस दवा के निर्यात पर लगे प्रतिबंध को हटा दिया गया है।  
  • PPE: जनवरी में क्लोथिंग और मास्क कवरऑल्स सहित व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण (Personal Protection Equipment- PPE) के निर्यात पर प्रतिबंध लगाया गया था। हालाँकि मई में गैर-सर्जिकल और गैर-चिकित्सा मास्क के निर्यात पर लगे प्रतिबंध को हटा दिया गया। अब सभी PPE को मुक्त रूप से निर्यात किया जा सकता है, लेकिन निम्नलिखित पर अब भी प्रतिबंध है: 
    (i) सभी प्रकार के मेडिकल कवरऑल्स।
    (ii) मेडिकल गॉगल्स।
    (iii) गैर-चिकित्सा और गैर-सर्जिकल मास्क को छोड़कर सभी मास्क्स।
    (iv) नाइट्राइल ग्लव्स।
    (v) फेस शील्ड्स।  

रेहड़ी-पटरी वाले दुकानदारों (स्ट्रीट वेंडर्स) के लिये विशेष सूक्ष्म वित्त सुविधा की शुरुआत 

आवासन और शहरी मामलों के मंत्रालय (Ministry of Housing and Urban Affairs- MoHUA) ने प्रधानमंत्री स्ट्रीट वेंडर्स आत्मनिर्भर निधि (PM Street Vendor’s AtmaNirbhar Nidhi) योजना की शुरुआत की। इस योजना के ज़रिये रेहड़ी-पटरी वाले दुकानदारों के लिये वर्किंग कैपिटल लोन दिया जाएगा जिनका कारोबार कोविड-19 के कारण बुरी तरह प्रभावित हुआ है। 

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प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना को नवंबर 2020 तक के लिये बढ़ाया गया 

केंद्र सरकार ने प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (Pradhan Mantri Garib Kalyan Anna Yojana) को 5 महीने के लिये नवंबर 2020 तक बढ़ा दिया है। इस योजना की घोषणा मार्च 2020 में की गई थी जिसका उद्देश्य कोविड-19 महामारी और लॉकडाउन के मद्देनज़र गरीबों को राहत देना था। 

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गरीब कल्याण रोज़गार अभियान शुरू

प्रधानमंत्री ने गरीब कल्याण रोज़गार अभियान को शुरू किया था। इस अभियान का उद्देश्य उन प्रवासी श्रमिकों को जीविकोपार्जन के अवसर प्रदान करना है जो कोविड-19 के कारण अपने गाँवों को लौट गए। 

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कोविड-19 के लिये शॉर्ट टर्म हेल्थ इंश्योरेंस के दिशा-निर्देश 

भारतीय बीमा नियामक एवं विकास प्राधिकरण (Insurance Regulatory and Development Authority of India- IRDAI) ने कोविड-19 के संपर्क में आने वाले व्यक्तियों के कवरेज हेतु अल्पकालिक स्वास्थ्य बीमा पॉलिसी शुरू करने संबंधी दिशा-निर्देश जारी किये हैं। इन दिशा-निर्देशों में बीमा कंपनियों को कोविड-19 विशिष्ट अल्पकालिक (3 महीने और 11 महीने) जीवन, स्वास्थ्य या सामान्य बीमा पॉलिसी शुरू करने की अनुमति दी गई है।  

दिशा-निर्देशों के अनुसार, पॉलिसी को एक व्यक्तिगत उत्पाद या समूह उत्पाद के रूप में पेश किया जा सकता है, लेकिन यह केवल कोविड-19 के लिये विशिष्ट होना चाहिये। इस तरह की पॉलिसी के लिये अलग से ऐड-ऑन की अनुमति नहीं है। ये दिशा-निर्देश 31 मार्च, 2021 तक मान्य रहेंगे।

कंपनी अधिनियम, 2013 के अंतर्गत कुछ समय सीमाओं को बढ़ाया गया 

कोविड-19 के मद्देनज़र कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय (Ministry of Corporate Affairs) ने कंपनी अधिनियम, 2013 (Companies Act, 2013) के अंतर्गत कुछ समय सीमाओं को बढ़ाया है। इनमें निम्नलिखित शामिल हैं:

  • सामान्य और विशेष प्रस्तावों को पारित करना: अधिनियम में कंपनियों को इस बात की अनुमति देने वाले विशिष्ट प्रावधान नहीं हैं कि वे वीडियो कांफ्रेंसिंग या दूसरे ऑडियो-विजुअल मोड के ज़रिये अपने शेयरधारकों की सामान्य बैठकें कर सकती हैं। मंत्रालय ने वीडियो कांफ्रेंसिंग और अन्य ऑडियो-विजुअल तरीके से मीटिंग करने और पोस्टल बैलेट के माध्यम से व्यवसाय करने की अनुमति देने के लिये दिशा-निर्देश सर्कुलेट किये थे। ये दिशा-निर्देश 30 जून, 2020 तक वैध थे। मंत्रालय ने इन दिशा-निर्देशों की वैधता को 30 सितंबर, 2020 तक बढ़ा दिया है।  
  • शुल्क संबंधी फॉर्म भरने में रियायत की योजना: अधिनियम के अंतर्गत अगर कंपनियों की संपत्तियों पर कोई सुरक्षा ब्याज बनाया जाता है या शुल्क संशोधित होता है तो कंपनियों को कई फॉर्म भरने होते हैं। सुरक्षा ब्याज बनाए जाने के 30 दिनों के अंदर ये फॉर्म भरे जाने चाहिये (इस अवधि को अतिरिक्त फीस चुकाकर 300 दिन तक बढ़ाया जा सकता है)। इन फॉर्म को भरने के लिये एक निश्चित समय अवधि का गणना किया जाता है। इस समय अवधि से मार्च से सितंबर 2020 की अवधि को बाहर रखने के लिये एक योजना शुरू की गई है।

अन्य पिछड़ा वर्गों के उप-वर्गीकरण की जाँच हेतु गठित आयोग की अवधि को बढ़ाने को मंज़ूरी

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने अन्य पिछड़ा वर्गों (Other Backward Classes- OBC) के उप-वर्गीकरण की जाँच हेतु गठित आयोग की अवधि को बढ़ाने को मंज़ूरी दी। इस आयोग को वर्ष 2017 में गठित किया गया था।

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दिल्ली उच्च न्यायालय ने मसौदा पर्यावरण प्रभाव आकलन अधिसूचना, 2020 पर फीडबैक 

मार्च 2020 में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने मसौदा पर्यावरण प्रभाव आकलन अधिसूचना, 2020 जारी की थी। मसौदा अधिसूचना पर्यावरण प्रभाव आकलन अधिसूचना, 2006 का स्थान लेने का प्रयास करती है। यह वर्ष 2006 की अधिसूचना में कुछ परिवर्तनों को प्रस्तावित करती है जैसे कुछ परियोजनाओं को सार्वजनिक परामर्श से बाहर रखना। इनमें सभी इमारतें, निर्माण एवं क्षेत्र विकास परियोजनाएँ, राष्ट्रीय राजमार्गों का विस्तार या उन्हें बड़ा करना, और सिंचाई परियोजनाओं का आधुनिकीकरण शामिल हैं। 

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समष्टि आर्थिक (मैक्रोइकोनॉमिक) विकास

वर्ष 2019-20 की चौथी तिमाही में मौजूदा खाता घाटा GDP के 0.1% पर

वर्ष 2018-19 की चौथी तिमाही (जनवरी-मार्च) में भारत के मौजूदा खाता शेष (Current Account Balance- CAB) में 4.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर (GDP का 0.7%) का घाटा दर्ज किया गया था, इसकी तुलना में वर्ष 2019-20 में इसी अवधि के दौरान CAB में 0.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर (GDP का 0.1%) का मामूली अधिशेष हुआ है। वर्ष 2019-20 की पिछली तिमाही (अक्तूबर-दिसंबर) के CAB में 2.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर (GDP का 0.4%) का घाटा हुआ था। चौथी तिमाही में अधिशेष के मुख्य कारण हैं: 

(i) निम्न व्यापार घाटा (देश के निर्यात और आयात का अंतर), जोकि 35.0 बिलियन अमेरिकी डॉलर है, और 
(ii) पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में 35.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर के साथ शुद्ध अदृश्य प्राप्तियों में जबरदस्त वृद्धि। 

अदृश्य प्राप्तियों में ट्रेड इन सर्विसेज़ (जैसे सॉफ्टवेयर और ट्रैवल सेवाएँ) और निजी हस्तांतरण, जैसे विदेशों में कार्यरत भारतीयों के प्रेषण से होने वाली प्राप्तियाँ शामिल हैं।

वर्ष 2019-20 की चौथी तिमाही में विदेशी मुद्रा कोष 18.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर बढ़ गया जबकि पिछले वर्ष की इसी अवधि में 14.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर की वृद्धि हुई थी। इसकी तुलना में वर्ष 2019-20 की तीसरी तिमाही में विदेशी मुद्रा भंडार में 21.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर की वृद्धि हुई थी। निम्नलिखित तालिका में वर्ष 2019-20 की चौथी तिमाही में भुगतान संतुलन प्रदर्शित है।

तालिका: 2019-20 की चौथी तिमाही में भुगतान संतुलन (बिलियन USD) 

 

तिमाही 4

 2018-19

तिमाही 3

2019-20

तिमाही 4

2019-20

मौजूदा खाता

-4.6

-2.6

0.6

पूंजी खाता

19.2

23.6

17.4

भूल चूक-लेनी देनी

-0.4

0.6

  0.9

कोष में परिवर्तन

14.2

21.6

18.8

 वित्तीय वर्ष 2019-20 में CAB ने GDP का 0.9% घाटा दर्ज किया, जबकि वर्ष 2018-19 में यह घाटा 2.1% था। वर्ष 2019-20 में भारत का व्यापार घाटा पिछले वर्ष के 180.3 बिलियन डॉलर के घाटे की तुलना में 157.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया। विदेशी मुद्रा कोष वर्ष 2019-20 में 59.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर बढ़ गया, जबकि 2018-19 में इसमें 3.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर की गिरावट हुई थी।  

तालिका: वर्ष 2019-20 में भुगतान संतुलन (बिलियन अमेरिकी डॉलर) 

 

2018-19

2019-20

मौजूदा खाता

-57.2

-24.6

पूंजी खाता

54.4

83.2

भूल चूक- लेनी देनी

-0.5

1.0

कोष में परिवर्तन 

-3.3

59.5


वित्त

बैंकिंग विनियमन (संशोधन) अध्यादेश, 2020 

बैंकिंग विनियमन (संशोधन) अध्यादेश, 2020 [Banking Regulation (Amendment) Ordinance, 2020] को जारी किया गया। यह अध्यादेश बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949 (Banking Regulation Act, 1949) में संशोधन करता है। अधिनियम बैंकों के कामकाज को रेगुलेट करता है और बैंकों की लाइसेंसिंग, प्रबंधन और संचालन जैसे विभिन्न पहलुओं का विवरण प्रदान करता है। अध्यादेश की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:

  • मोरटोरियम के बिना पुनर्गठन या एकीकरण: अधिनियम के अंतर्गत भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India- RBI) केंद्र सरकार को आवेदन कर सकता है कि वह किसी बैंकिंग कंपनी को मोरटोरियम में रख सकती है। मोरटोरियम के दौरान अगर RBI को यह प्रतीत होता है कि बैंक के उचित प्रबंधन के लिये, या जमाकर्त्ताओं, आम लोगों या बैंकिंग प्रणाली के हित के लिये ऐसा आदेश जरूरी है तो वह बैंक के पुनर्गठन या एकीकरण के लिये योजना बना सकता है। अध्यादेश RBI को इस बात की अनुमति देता है कि वह मोरटोरियम के बिना भी पुनर्गठन या एकीकरण के लिये योजना शुरू कर सकता है। 
  • निदेशक मंडल का अधिनिर्णय: अधिनियम कहता है कि RBI कुछ स्थितियों में बहु-राज्य सहकारी बैंक के निदेशक मंडल का अधिकतम 5 वर्षों के लिये अधिरोपित कर सकता है। इन स्थितियों में ऐसे मामले शामिल हैं जहाँ RBI के लिये जनहित में या जमाकर्त्ताओं की सुरक्षा के लिये बोर्ड का सुपरसेशन जरूरी है। अध्यादेश कहता है कि अगर सहकारी बैंक किसी राज्य के रजिस्ट्रार ऑफ कोऑपरेटिव सोसायटीज में पंजीकृत है तो RBI संबंधित राज्य सरकार की सलाह से बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स को सुपरसीड करेगा और उस अवधि के लिये ऐसा करेगा, जिसे निर्दिष्ट किया गया हो। 
  • एक्सक्लूजन्स: अधिनियम कुछ कोऑपरेटिव सोसायटीज़ पर लागू नहीं होता, जैसे प्राथमिक कृषि ऋण सोसायटीज़ और कोऑपरेटिव लैंड मॉर्गेज बैंक। अध्यादेश निम्नलिखित को अधिनियम के प्रावधानों से हटाने के लिये संशोधन करता है: 
    (i) प्राइमरी कृषि ऋण सोसायटीज़। 
    (ii) कृषि विकास के लिये दीर्घकालीन वित्त प्रदान करने वाली कोऑपरेटिव सोसायटीज़, अगर वे अपने नाम में ‘बैंक,’ ‘बैंकर’ या ‘बैंकिंग’ का इस्तेमाल नहीं करती और चेक क्लीयर करने वाली एंटिटीज़ के तौर पर व्यवहार नहीं करती। 
  • सहकारी बैंकों को छूट देने की शक्ति: अध्यादेश कहता है कि RBI अधिसूचना के ज़रिये सहकारी बैंक या सहकारी बैंकों की किसी श्रेणी को अधिनियम के कुछ प्रावधानों से छूट दे सकता है। ये कुछ प्रकार के रोज़गार पर प्रतिबंध, बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स के क्वालिफिकेशन और चेयरपर्सन की नियुक्ति से जुड़े प्रावधान हैं। छूट की समय अवधि और शर्तों को RBI द्वारा निर्दिष्ट किया जाएगा।

रेगुलेटरी सैंडबॉक्स के लिये फ्रेमवर्क 

भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (Securities and Exchange Board of India- SEBI) ने नियामक सैंडबॉक्स के लिये रूपरेखा पेश किया। नियामक सैंडबॉक्स एक ऐसा परिवेश प्रदान करता है जिसमें बाज़ार प्रतिभागी को एक नियंत्रित परिवेश में ग्राहकों के साथ नए फिनटेक समाधान (प्रॉडक्ट्स, सेवाएँ या बिज़नेस मॉडल) का परीक्षण करने का मौका मिलता है। सेबी में पंजीकृत सभी एंटिटीज़ सैंडबॉक्स में परीक्षण के लिये पात्र होंगे।  

  • मानदंड: सेबी निम्नलिखित मानदंडों के आधार पर एप्लिकेंट्स का मूल्यांकन करेगा: 
    (i) नई तकनीक का प्रयोग। 
    (ii) निवेशकों या बाज़ारों को लाभ। 
    (iii) जोखिम को मापने और उसे कम करने के मानदंड। 
    (iv) स्पष्टतया वर्णित शिकायत निवारण प्रणाली। 
    (v) परीक्षण के बाद सॉल्यूशन के प्रयोग की व्यावहारिकता। 
  • छूट: नए प्रयोग के साथ विनियामक अनुपालन कम-से-कम हो, इसे बढ़ावा देने के लिये सेबी प्रस्तावित फिनटेक सॉल्यूशन के आधार पर एंटिटीज़ को छूट देगा, जोकि मामलों को देखकर दी जाएगी। लेकिन KYC और एंटी मनी लॉन्ड्रिंग रेगुलेशंस से कोई छूट नहीं दी जाएगी।
  • परीक्षण: मंज़ूरी के बाद आवेदक को अपने उपयोगकर्त्ताओं को यह बताना चाहिये कि समाधान सैंडबॉक्स में ऑपरेट होगा और परीक्षण शुरू करने से पहले उपयोगकर्त्ता से इससे जुड़े खतरे की स्वीकृति लेगा। परीक्षण की अधिकतम अवधि 12 महीने है जिसे आगे बढ़ाया जा सकता है। परीक्षण के दौरान आवेदक को सेबी को परिणाम/प्रदर्शन संकेतकों और चिन्हित मुद्दों के साथ अंतरिम रिपोर्ट्स देनी होंगी। परीक्षण पूरा होने के बाद सेबी यह तय करेगा कि क्या सॉल्यूशन को बड़े पैमाने पर बाज़ार में उतारना चाहिये। वैकल्पिक तौर पर आवेदक एक्सटेंशन का अनुरोध कर सकता है, या एक एग्ज़िट स्ट्रैटेजी का इस्तेमाल कर सकता है। 
  • मंज़ूरी रद्द होना: सेबी कुछ स्थितियों में प्रतिभागियों की मंज़ूरी को रद्द कर सकता है, जैसे (i) अगर वे जोखिम कम करने का काम नहीं कर पाते, (ii) गलत सूचना देते हैं, या (iii) लिक्विडी में जाते हैं। 

मसौदा पेंशन फंड (विदेशी निवेश) नियम, 2020 

वित्त मंत्रालय ने ड्राफ्ट पेंशन फंड (विदेशी निवेश) नियम, 2020 [Draft Pension Fund (Foreign Investment) Rules, 2020] जारी किया। नियम निर्दिष्ट करते हैं कि भारत में पेंशन फंड्स में कितने विदेशी निवेश की अनुमति है। नियमों के अनुसार, विदेशी निवेशकों द्वारा इक्विटी शेयरों में कुल विदेशी निवेश फंड की पेडअप इक्विटी पूंजी के 49% से अधिक नहीं होना चाहिये। इस सीमा तक ऑटोमैटिक रूट से विदेशी निवेश की अनुमति होगी। उल्लेखनीय है कि FDI नीति के अंतर्गत ऑटोमैटिक रूट से पेंशन क्षेत्र के लिये प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (Foreign Direct Investment- FDI) की सीमा 49% है।

नियमों के अनुसार, अगर निवेश करने वाली एंटिटी चीन सहित सीमावर्ती देशों की है तो विदेशी निवेश के लिये सरकारी मंज़ूरी जरूरी होगी। 

निजी क्षेत्र के बैंकों के स्वामित्व की समीक्षा के लिये वर्किंग ग्रुप का गठन 

भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India- RBI) ने भारतीय निजी क्षेत्र के बैंकों के स्वामित्व और कॉरपोरेट ढाँचे पर दिशा-निर्देशों की समीक्षा के लिये आंतरिक कार्यदल का गठन किया। 

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भुगतान अवसंरचना विकास कोष के निर्माण की घोषणा 

RBI ने टियर-III से टियर-VI केंद्रों और पूर्वोत्तर राज्यों में प्वाइंट-ऑफ-सेल (Point of Sale- PoS) से संबंधित अवसंरचना (भौतिक या डिजिटल) स्थापित करने हेतु भुगतान अवसंरचना विकास कोष (Payments Infrastructure Development Fund-PIDF) बनाने की घोषणा की। 

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कृषि

आवश्यक वस्तु (संशोधन) अध्यादेश, 2020 

आवश्यक वस्तु (संशोधन) अध्यादेश, 2020 [Essential Commodities (Amendment) Ordinance, 2020] को जारी किया गया। यह अध्यादेश आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 में संशोधन करता है। अधिनियम केंद्र सरकार को कुछ वस्तुओं के उत्पादन, आपूर्ति, वितरण, व्यापार और वाणिज्य को नियंत्रित करने का अधिकार देता है। अध्यादेश कृषि क्षेत्र में प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ाने और किसानों की आय में वृद्धि करने का प्रयास करता है। मुख्य विशेषताओं में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • खाद्य पदार्थों का विनियमन: अधिनियम केंद्र सरकार को कुछ वस्तुओं (जैसे खाद्य पदार्थ, उर्वरक और पेट्रोलियम उत्पाद) को अनिवार्य वस्तुओं के रूप में निर्दिष्ट करने का अधिकार देता है। केंद्र सरकार ऐसी अनिवार्य वस्तुओं के उत्पादन, सप्लाई, वितरण, व्यापार और वाणिज्य को रेगुलेट या प्रतिबंधित कर सकती है। अध्यादेश में यह प्रावधान किया गया है कि केंद्र सरकार केवल असामान्य परिस्थितियों में कुछ खाद्य पदार्थों, जैसे अनाज, दालों, आलू, प्याज, खाद्य तिलहन और तेलों की सप्लाई को विनियमित कर सकती है। इन परिस्थितियों में निम्नलिखित शामिल हैं:
    (i) युद्ध। 
    (ii) अकाल। 
    (iii) असामान्य मूल्य वृद्धि। 
    (iv) गंभीर प्रकृति की प्राकृतिक आपदा। 
  • स्टॉक लिमिट लागू करना: अधिनियम के अंतर्गत केंद्र सरकार यह विनियमित कर सकती है कि कोई व्यक्ति किसी अनिवार्य वस्तु का कितना स्टॉक रख सकता है। अध्यादेश में यह अपेक्षा की गई है कि विशिष्ट वस्तुओं की स्टॉक की सीमा मूल्य वृद्धि पर आधारित होनी चाहिये। स्टॉक की सीमा निम्नलिखित स्थितियों में लागू की जा सकती है: 
    (i) अगर बागवानी उत्पाद के रीटेल मूल्य में 100% की वृद्धि होती है। 
    (ii) नष्ट न होने वाले कृषि खाद्य पदार्थों के खुदरा मूल्य में 50% की वृद्धि होती है। वृद्धि की गणना, पिछले 12 महीने के मूल्य, या पिछले 5 महीने के औसत रीटेल मूल्य (इनमें से जो भी कम होगा) के आधार पर की जाएगी। 
  • अध्यादेश में प्रावधान है कि कृषि उत्पाद के प्रोसेसर या वैल्यू चेन के हिस्सेदार व्यक्ति पर स्टॉक की सीमा लागू नहीं होगी, अगर उस व्यक्ति का स्टॉक निम्नलिखित से कम है: 
    (i) प्रोसेसिंग की इंस्टॉल्ड क्षमता की सीमा। 
    (ii) निर्यातक की स्थिति में निर्यात की मांग। 

वैल्यू चेन के हिस्सेदार का अर्थ है, ऐसा व्यक्ति जो उत्पादन में संलग्न है या कृषि उत्पाद की प्रोसेसिंग, पैकेजिंग, स्टोरेज, परिवहन या वितरण के किसी चरण में उसका मूल्य संवर्द्धन करता है।

उत्पाद की बिक्री हेतु हस्ताक्षरित कृषि समझौतों को रेगुलेट करने के लिये अध्यादेश 

मूल्य आश्वासन और कृषि सेवाओं पर किसान (सशक्तीकरण और सुरक्षा) समझौता अध्यादेश, 2020 को जारी किया गया। यह अध्यादेश कृषि उत्पादों की बिक्री और खरीद के संबंध में किसानों को संरक्षण देने और उनके सशक्तीकरण हेतु फ्रेमवर्क प्रदान करता है। इस अध्यादेश के प्रावधान राज्यों के APMC एक्ट्स के प्रावधानों के होते हुए भी लागू रहेंगे। अध्यादेश के मुख्य प्रावधानों में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • कृषि समझौता: अध्यादेश में प्रावधान है कि किसी कृषि उत्पाद के उत्पादन या पालन से पहले कृषि समझौता किया जाएगा, जिसका उद्देश्य यह है कि किसान अपने कृषि उत्पादों को स्पॉन्सर्स को आसानी से बेच सकें। स्पान्सर में व्यक्ति, पार्टनरशिप फर्म, कंपनियाँ, लिमिटेड लायबिलिटी ग्रुप्स और सोसाइटियाँ शामिल हैं। ये समझौते निम्नलिखित के बीच हो सकते हैं: 
    (i) किसान और स्पान्सर।
    (ii) किसान, स्पॉन्सर, और तीसरा पक्ष। 

तीसरे पक्ष में एग्रीगेटर भी शामिल हैं और कृषि समझौते में उनकी भूमिका और सेवाओं का स्पष्ट रूप से उल्लेख होगा। एग्रीगेटर वे होते हैं जो एग्रीगेशन से संबंधित सेवाएँ प्रदान करने के लिये किसान और स्पॉन्सर के बीच बिचौलिये का काम करते हैं। समझौते में कृषि उत्पाद की सप्लाई, गुणवत्ता, मानदंड और मूल्य से संबंधित नियमों और शर्तों तथा कृषि सेवाओं की सप्लाई से संबंधित नियमों का उल्लेख हो सकता है। ये नियम और शर्तें खेती और पालन की प्रक्रिया के दौरान, या डिलिवरी के समय निरीक्षण और सर्टिफिकेशन का विषय हो सकते हैं।

  • समझौते की अवधि: समझौते की अवधि एक फसल मौसम या पशु का एक प्रजनन चक्र होगा। अधिकतम अवधि 5 वर्ष होगी। 5 वर्ष के बाद उत्पादन चक्र के लिये, समझौते की अधिकतम अवधि को किसान और स्पॉन्सर आपस में तय करेंगे।
  • मौजूदा कानूनों से छूट: कृषि समझौते के अंतर्गत कृषि उत्पाद को उन सभी राज्य कानूनों से छूट मिलेगी, जो कृषि उत्पाद की बिक्री और खरीद को रेगुलेट करते हैं। इन उत्पादों को अनिवार्य वस्तु अधिनियम, 1955 के प्रावधानों से छूट मिलेगी और उन पर स्टॉक सीमा की कोई बाध्यता लागू नहीं होगी।
  • कृषि उत्पाद का मूल्य निर्धारण: अध्यादेश में यह अपेक्षा की गई है कि कृषि उत्पाद की खरीद का मूल्य समझौते में दर्ज होगा। यह कृषि उत्पादों के भुगतान और वितरण के बारे में विवरण भी प्रदान करता है। मूल्य परिवर्तन होने की स्थिति में उनके मूल्य निर्धारण का तरीका कृषि समझौते में उल्लिखित होगा।
  • विवाद निपटारा: अध्यादेश विवाद निपटान के लिये त्रिस्तरीय व्यवस्था प्रदान करता है। सबसे पहले, सभी विवादों को समाधान के लिये एक बोर्ड को भेजा जाना चाहिये। यदि तीस दिनों के बाद विवाद अनसुलझा रहता है, तो पक्ष रेज़ोल्यूशन के लिये उप-विभागीय मजिस्ट्रेट से संपर्क कर सकते हैं। मजिस्ट्रेट के निर्णयों के खिलाफ पक्षों को अपीलीय अथॉरिटी के पास अपील करने का अधिकार होगा।

कृषि उपज व्यापार और वाणिज्य अध्यादेश, 2020 जारी

कृषि उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्द्धन और सुविधा) अध्यादेश, 2020 को जारी किया गया। यह अध्यादेश राज्यों के कृषि उत्पाद मार्केट कानूनों (राज्य APMC अधिनियम) के अंतर्गत अधिसूचित बाज़ारों के बाहर किसानों की उपज के निर्बाध व्यापार का प्रावधान करता है। इस अध्यादेश के प्रावधान राज्यों के APMC अधिनियम के प्रावधानों के होते हुए भी लागू रहेंगे। मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:

  • उत्पाद का व्यापार: अध्यादेश अनुमति देता है कि उपज का राज्यों के बीच और राज्य के भीतर व्यापार निम्नलिखित के बाहर भी किया जा सकता है: 
    (i) राज्य APMC अधिनियम के अंतर्गत गठित मार्केट कमिटी द्वारा संचालित मार्केट यार्ड्स के भौतिक परिसर
    (ii) राज्य APMC अधिनियम के अंतर्गत अधिसूचित अन्य बाज़ार, जैसे निजी मार्केट यार्ड्स और मार्केट सब यार्ड्स, प्रत्यक्ष मार्केटिंग कलेक्शन सेंटर्स और निजी किसान उपभोक्ता मार्केट यार्ड्स। 

उपज के उत्पादन, उसे जमा और एकत्र करने वाली किसी भी जगह पर व्यापार किया जा सकता है, जिसमें फार्म गेट्स, कारखाने के परिसर, वेयरहाउस, सिलो, और कोल्ड स्टोरेज शामिल हैं।

  • व्यापार के लिये पात्रता: अध्यादेश किसानों, किसान उत्पादक संगठनों और किसान उपज की खरीद करने वालों को राज्यों के बीच और राज्य के भीतर व्यापार में निम्नलिखित की अनुमति देता है: 
    (i) थोक व्यापार। 
    (ii) रीटेल। 
    (iii) एंड यूज। 
    (iv) मूल्य संवर्द्धन। 
    (v) प्रोसेसिंग। 
    (vi) मैन्यूफैक्चरिंग।
    (vii) निर्यात।
    (viii) उपभोग।
  • हालाँकि अधिसूचित किसान उपज (राज्य APMC अधिनियम के अंतर्गत निर्दिष्ट और रेगुलेटेड कृषि उत्पाद) का व्यापार करने के लिये एंटिटी को निम्नलिखित में से एक होना चाहिये: 
  • (i) एक किसान उत्पादक संगठन या कृषि सहकारी संघ। 
  • (ii) एक कृषि सहकारी संघ
  • (iii) एक ऐसा व्यक्ति जिसके पास आयकर अधिनियम के अंतर्गत परमानेंट एकाउंट नंबर हो या ऐसा कोई दस्तावेज़ जिसे केंद्र सरकार ने अधिसूचित किया हो। 
  • इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग: अध्यादेश निर्दिष्ट व्यापार क्षेत्र में किसान उपज की इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग की अनुमति देता है। इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग और ट्रांज़ैक्शन प्लेटफॉर्म को तैयार किया जा सकता है ताकि किसान उपज को प्रत्यक्ष और ऑनलाइन खरीदा एवं बेचा जा सके। केंद्र सरकार ऐसे प्लेटफॉर्म्स के लिये मोडैलिटी तय कर सकती हैं, जैसे-
    (i) प्रक्रिया, नियम और पंजीकरण का तरीका
    (ii) आचार संहिता, गुणवत्ता का आकलन, और भुगतान का तरीका।
  • राज्यों द्वारा कोई फीस नहीं वसूली जाएगी: अध्यादेश के अंतर्गत कोई भी व्यापार करने पर राज्य सरकार किसानों, व्यापारियों और इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म्स से कोई बाज़ार फीस, सेस या प्रभार नहीं वसूलेगी। 

वर्ष 2020-21 खरीफ फसल के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्यों को मंज़ूरी 

केंद्रीय कैबिनेट ने 2020-21 मौसम के लिये खरीफ फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्यों को मंज़ूरी दी। 

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पशुपालन अवसंरचना विकास कोष को मंज़ूरी दी

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 15,000 करोड़ रुपए के पशुपालन अवसंरचना विकास कोष (Animal Husbandry Infrastructure Development Fund) की स्थापना को मंज़ूरी दे दी, जिसे आत्मानिभर भारत आर्थिक पैकेज के अंतर्गत घोषित किया गया था।

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MSME

सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों के वर्गीकरण में संशोधन 

सरकार ने सूक्ष्म, लघु और मध्यम दर्जे के उद्यमों की परिभाषा में परिवर्तन को अधिसूचित किया। वर्तमान में MSME को सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम विकास अधिनियम, 2006 के अंतर्गत परिभाषित किया जाता है। यह अधिनियम उन्हें निम्नलिखित के आधार पर सूक्ष्म, लघु और मध्यम दर्जे के उद्यमों में वर्गीकृत करता है: 

(i) माल की मैन्यूफैक्चरिंग या उत्पादन में संलग्न उद्यमों द्वारा प्लांट और मशीनरी में निवेश। 
(ii) सेवाएँ प्रदान करने वाले उद्यमों द्वारा उपकरणों में निवेश। 

संशोधित परिभाषा के अनुसार, निवेश सीमा को बढ़ाया गया है और उद्यमों के वार्षिक टर्नओवर को MSME के वर्गीकरण के अतिरिक्त मानदंड के रूप में इस्तेमाल किया जाएगा। संशोधित निवेश और टर्नओवर की सीमाओं को निम्न तालिका में निर्दिष्ट किया गया है। यह 1 जुलाई, 2020 से प्रभावी होगा। 

तालिका: MSME को परिभाषित करने के मानदंड 

 

2006 अधिनियम के मानदंड

संशोधित मानदंड

 

निवेश (रुपए में)

निवेश और टर्नओवर (रुपए में)

प्रकार

मैन्यूफैक्चरिंग

सेवा

मैन्यूफैक्चरिंग और सेवाएँ, दोनों

सूक्ष्म

25 लाख रु तक

10 लाख रु तक

निवेश: 1 करोड़ रु तक टर्नओवर: 5 करोड़ रु तक

लघु

25 लाख रु से 5 करोड़ रु 

10 लाख रु से 2 करोड़ रु

निवेश: 1 करोड़ रु से 10 करोड़ रु - टर्नओवर: 5 करोड़ रु से 50 करोड़ रु 

मध्यम

5 करोड़ रु से  10 करोड़ रु

2 करोड़ रु से 5 करोड़ रु

निवेश: 10 करोड़ रु से 50 करोड़ रु- टर्नओवर: 50 करोड़ रु से 250 करोड़ रु

  • प्लांट और मशीनरी में निवेश के कैलकुलेशन को पिछले वर्षों के दौरान आयकर अधिनियम, 1961 के अंतर्गत दायर रिटर्न से जोड़ा जाएगा। नए उद्यमों के लिये निवेश उद्यम के प्रमोटर की स्वघोषणा पर आधारित होगा।  
  • टर्नओवर की जानकारी GST आइडेंटिफिकेशन नंबर (GSTIN) से जुड़ी होगी। वर्गीकरण के लिये किसी भी उद्यम के कारोबार को कैलकुलेट करते समय वस्तुओं या सेवाओं के निर्यात को बाहर रखा जाएगा। सूचीबद्ध GSTIN वाली सभी इकाइयों, जिनका एक ही परमानेंट एकाउंट नंबर होगा, को टर्नओवर और निवेश के आँकड़ों के लिये एक उद्यम के रूप में माना जाएगा।

MSME के लिये गौण ऋण हेतु क्रेडिट गारंटी योजना शुरू

MSME मंत्रालय ने गौण ऋण के लिये क्रेडिट गारंटी योजना शुरू की है जिसके अंतर्गत सरकार प्रमोटर्स को स्ट्रेस्ड MSME में निवेश के लिये 20,000 करोड़ रुपए की गारंटी प्रदान करेगी। इस योजना को आत्मनिर्भर भारत योजना के अंतर्गत मई 2020 में वित्त मंत्री द्वारा घोषित किया गया था।

  • योजना के अंतर्गत स्ट्रेस्ड MSME (जोकि 30 अप्रैल, 2020 को NPA बने हैं) के प्रमोटर्स को उनके हिस्से (इक्विटी और ऋण) या 75 लाख रुपए, जो भी कम हो, के बराबर ऋण दिया जाएगा। प्रमोटर इस राशि को इक्विटी के रूप में MSME में डालेंगे ताकि लिक्विडी में इज़ाफा हो और ऋण-इक्विटी अनुपात बरकरार रहे। मूल राशि के भुगतान पर सात वर्ष का मोरटोरियम दिया जाएगा। पुनर्भुगतान की अधिकतम अवधि 10 वर्ष होगी। योजना का संचालन सूक्ष्म और लघु उद्यमों के लिये क्रेडिट गारंटी फंड ट्रस्ट के माध्यम से किया जाएगा। 

कॉरपोरेट मामले

CSR की पात्र गतिविधियों की सूची बढ़ाई गई

कंपनी अधिनियम, 2013 (Companies Act, 2013) के अंतर्गत एक निर्दिष्ट राशि से अधिक नेट वर्थ, टर्नओवर या लाभ वाली कंपनियों को पिछले तीन वत्तीय वर्षों के दौरान अपने औसत शुद्ध लाभ का 2% कॉरपोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी (Corporate Social Responsibility- CSR) पर खर्च करना होगा। इस धन राशि को कुछ अधिसूचित गतिविधियों पर खर्च किया जाना चाहिये, जैसे शिक्षा को बढ़ावा देना। कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय ने इस सूची में अतिरिक्त मदों को शामिल किया है। इसमें केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों और केंद्रीय अर्धसैनिक बलों के पूर्व सैनिकों तथा विधवा सहित उनके आश्रितों के लाभ हेतु योगदान शामिल है।  


इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी

राष्ट्रीय सुरक्षा एवं सार्वजनिक व्यवस्था के आधार पर 59 मोबाइल एप्स पर पाबंदी

इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने 59 एप्स को इस आधार पर प्रतिबंधित कर दिया कि वे राज्य की संप्रभुता, अखंडता, सुरक्षा और सार्वजनिक व्यवस्था के लिये खतरा हैं। 

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इलेक्ट्रॉनिक मैन्यूफैक्चरिंग को बढ़ावा देने वाली योजनाओं के लिये दिशा-निर्देश 

मार्च 2020 में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने इलेक्ट्रॉनिक विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिये कुछ योजनाओं को मंज़ूरी दी है। 

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परिवहन

मोटर वाहन नियमों में मसौदा संशोधन 

सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय ने केंद्रीय मोटर वाहन नियम, 1989 (Central Motor Vehicles Rules, 1989) में प्रस्तावित विभिन्न संशोधनों से संबंधित सुझाव आमंत्रित किये हैं। ये नियम मोटर वाहन अधिनियम, 1988 (Motor Vehicles Act, 1988) के अंतर्गत जारी किये गए हैं। मुख्य मसौदा संशोधनों में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • पड़ोसी देशों के साथ परिवहन: मंत्रालय ने हस्ताक्षरित समझौता ज्ञापन के अनुसार पड़ोसी देशों के साथ यात्री या माल वाहनों की आवाजाही को सुविधाजनक बनाने के लिये संशोधनों का प्रस्ताव किया। संशोधनों में निम्नलिखित से संबंधित प्रावधान हैं
    (i) सीमा पार वाहनों के परिवहन की शर्तें और परमिट। 
    (ii) ड्राइवर और कंडक्टर के लिये शर्तें। 
    (iii) परिवहन वाहनों पर प्रदर्शित होने वाले विवरण।
    (iv) संबंधित राज्यों के परिवहन एवं स्वास्थ्य विभागों, इंटेलिजेंस ब्यूरो और राज्य पुलिस सहित विभिन्न एंटिटीज़ की ज़िम्मेदारियाँ। 
  • BS-IV उत्सर्जन नियमों के लिये मोहलत: मंत्रालय ने निर्माण उपकरण वाहनों, ट्रैक्टर और हार्वेस्टर के लिये BS (CEV/TREM) -IV उत्सर्जन नियमों के अनुपालन में मोहलत से संबंधित संशोधन भी प्रस्तावित किये। इनमें निम्नलिखित के प्रावधान वाले संशोधन शामिल हैं: 
    (i) क्रमशः राष्ट्रीय रजिस्ट्रार ऑफ ड्राइविंग लाइसेंस और मोटर वाहन के पोर्टल। 
    (ii) सीखने के लाइसेंस प्राप्त करने के तरीके में परिवर्तन। 
    (iii) परीक्षण एजेंसियों के लिये गुणवत्ता मानकों। 
    (iv) खराब मोटर वाहनों के निर्देश और रीकॉल का तरीका। 

खनन

कोयला लिंकेज के रैशनलाइजेशन के लिये नई तकनीक अधिसूचित 

कोयला मंत्रालय (Ministry of Coal) ने कोल लिंकेज/कोयले की स्वैपिंग के रैशनलाइजेशन के लिये नई पद्धति को अधिसूचित किया है। कोयला लिंकेज विद्युत एवं इस्पात संयंत्रों जैसे उपभोक्ताओं को कोयला आपूर्ति हेतु कोयला खदानों का आबंटन होता है। कोयला कंपनी और कोयला उपभोक्ता के बीच एक अनुबंध के माध्यम से कोयले की आपूर्ति की जाती है। रैशनलाइजेशन में कोयले की आपूर्ति के स्रोत का हस्तांतरण एक खदान से दूसरे खदान में इस प्रकार किया जाता है कि उपभोक्ता को अपने निकट के स्रोत से कोयला प्राप्त हो। इसका उद्देश्य कोयला परिवहन लागत को कम करना है। इस नई कार्यप्रणाली की मुख्य विशेषताएँ इस प्रकार हैं:

  • पात्रता: रैशनलाइजेशन का अर्थ यह है कि दो इच्छुक उपभोक्ता अपनी निश्चित मात्रा का पूरा या उसका कुछ हिस्सा अदल-बदल लें। पहले की पद्धति के अनुसार, केवल बिजली क्षेत्र (पावर प्लांट) के उपभोक्ता ही इसके पात्र थे। नई पद्धति प्रावधान करती है कि अन्य सभी क्षेत्र (जैसे स्टील और सीमेंट क्षेत्र) भी इसके पात्र होंगे। यह व्यवस्था केवल समान क्षेत्र के उपभोक्ताओं को प्राप्त होगी, यानी बिजली से बिजली और रेगुलेटरी से रेगुलेटरी। इस पद्धति के अंतर्गत केवल गैर-कोकिंग कोयले पर विचार किया जाएगा। इसके अतिरिक्त ई-नीलामी योजनाओं और कैप्टिव कोयला ब्लॉकों से खरीदा गया कोयला इस योजना का पात्र नहीं होगा। केवल घरेलू कोयला लिंकेज और आयातित कोयले से रैशनलाइजेशन किया जा सकता है। हालाँकि आयातित कोयले के दो उपभोक्ताओं के बीच ऐसी किसी भी व्यवस्था की अनुमति नहीं दी जाएगी। 
  • रैशनलाइजेशन की शर्तें: रैशनलाइजेशन ग्रॉस कैलोरिफिक वैल्यू इक्विलेंस में गणना की गई मात्रा पर आधारित होगा। इसलिये कोयले की मात्रा पर भी विचार किया जाएगा। लिंकेज धारक मौजूदा अनुबंध के आधार पर मूल्य चुकाएगा और वाणिज्यिक शर्तों में कोई परिवर्तन नहीं होगा। इस समझौते की न्यूनतम अवधि छह महीने होगी। इसकी अधिकतम अवधि दोनों पक्षों के मौजूदा अनुबंधों की समाप्ति का विषय होगी, जो भी पहले हो।
  • बचत का लेखा-जोखा: रैशनलाइजेशन से होने वाली बचत निम्नलिखित को दी जाएगी: 
    (i) अगर कोयला पावर परचेज एग्रीमेंट के अंतर्गत सप्लाई किया गया है तो विद्युत वितरण कंपनी को। 
    (ii) गैर रेगुलेटेड क्षेत्र के उपभोक्ताओं (जैसे स्टील और सीमेंट) की स्थिति में भारतीय रेलवे को।

पूर्व मंजूरियों के साथ खनिज ब्लॉक्स की नीलामी के लिये दिशा-निर्देश अधिसूचित 

खनन मंत्रालय ने पूर्व मंज़ूरियों (प्री-एम्बेडेड क्लीयरेंस) के साथ ग्रीनफील्ड खनिज ब्लॉक्स की नीलामी के लिये दिशा-निर्देश जारी किये हैं। इन खनिज ब्लॉक्स के लिये खनन का काम शुरू करने के लिये वैधानिक मंज़ूरियों को राज्य सरकारों से हासिल किया जाएगा और नीलामी में खदान के साथ सफल बोली लगाने वाले को दिया जाएगा। इससे निम्नलिखित संभव होगा: 

(i) नीलामी के बाद उत्पादन शुरू करने में विलंब नहीं होगा, 
(ii) व्यापार सुगमता में सुधार होगा, 
(iii) भागीदारी बढ़ेगी और नीलामी में उच्च दरें प्राप्त होंगी। 

इस योजना को राज्यों द्वारा पायलट आधार पर लागू किया जाएगा। प्रत्येक राज्य पूर्व मंज़ूरियों के साथ नीलामी के लिये कम से कम पाँच खनिज ब्लॉक्स को चिन्हित करेंगे। दिशा-निर्देशों की मुख्य विशेषताएँ इस प्रकार हैं:

मंज़ूरी हासिल करने के लिये एजेंसी: राज्य सरकार अपेक्षित मंज़ूरी और अनुमोदन प्राप्त करने के लिये एक परियोजना निगरानी इकाई (Project Monitoring Unit- PMU) स्थापित कर सकती है। PMU खनन योजना तैयार और मंज़ूर करवाएगी। सफल बोली दाता को उत्पादन सीमा को 25% तक बढ़ाने या कम करने की अनुमति दी जाएगी। PMU सरकारी और निजी स्वामित्व वाली भूमि दोनों के लिये खनन हेतु भूमि अधिकार भी प्राप्त करेगी।

  • वन मंज़ूरी: खनन कार्यों सहित गैर-वन उद्देश्य के लिये वन भूमि के इस्तेमाल हेतु मंज़ूरी प्राप्त करना आवश्यक है। वन मंज़ूरी को इन-प्रिंसिपल अप्रूवल और फॉर्मल अप्रूवल के रूप में प्रदान किया जाता है और इसे चरण-I एवं चरण-II की मंज़ूरी के लिये भेजा जाता है। PMU केवल चरण-I की मंज़ूरी प्राप्त करेगा। सफल बोली लगाने वाले को नीलामी के बाद चरण II की मंज़ूरी प्राप्त करनी होगी। 
  • पर्यावरणीय मंज़ूरी: सफल बोलीदाता को नई पर्यावरणीय मंज़ूरी प्राप्त किये बिना अपनी उत्पादन सीमा को 25% बढ़ाने या कम करने की अनुमति दी जाएगी।
  • खर्चों का लेखा-जोखा: मंज़ूरी प्राप्त करने के लिये PMU द्वारा भुगतान की गई फीस, प्रारंभिक रूप से राज्य सरकार द्वारा वहन की जाएगी। राज्य सरकार PMU की संलग्नता और मंज़ूरी प्राप्त करने के लिये जितना धन खर्च करेगी, उसे बाद में बोलीकर्त्ता से वसूला जाएगा।

विद्युत

इलेक्ट्रिक वाहनों के लिये चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर के दिशा-निर्देशों और मानदंडों में संशोधन

विद्युत मंत्रालय ने इलेक्ट्रिक वाहनों के चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर के दिशा-निर्देशों और मानदंडों में संशोधनों को अधिसूचित किया है। मूल दिशा-निर्देश दिसंबर 2018 में जारी किये गए थे और उन्हें अक्तूबर 2019 में संशोधित किया गया था। मुख्य परिवर्तन इस प्रकार हैं:

  • विद्युत आपूर्ति के लिये टैरिफ: संशोधित दिशा-निर्देशों के अनुसार, केंद्रीय या राज्य विद्युत रेगुलेटरी आयोग विद्युत अधिनियम, 2003 (Electricity Act, 2003) के अंतर्गत जारी टैरिफ नीति के अनुसार सार्वजनिक चार्जिंग स्टेशनों को विद्युत की आपूर्ति के लिये टैरिफ का निर्धारण करेंगे। संशोधनों में कहा गया है कि टैरिफ सप्लाई की औसत लागत तथा 15% से अधिक नहीं होगा, जब तक कि टैरिफ नीति द्वारा अन्यथा निर्दिष्ट न किया गया हो। 
  • चार्जिंग स्टेशन के प्रकार: संशोधनों में चार्जिंग स्टेशनों के विभिन्न प्रकारों को स्पष्ट किया गया है। ये एंटिटीज़ मौजूदा दिशा-निर्देशों में स्पष्ट नहीं थी। संशोधनों में प्रावधान है कि बैटरी चार्जिंग स्टेशन को पब्लिक चार्जिंग स्टेशन के समान माना जाएगा और दोनों प्रकार के चार्जिंग स्टेशन पर विद्युत सप्लाई के लिये एक समान टैरिफ लागू होगा।

तालिका 5: विभिन्न प्रकार के चार्जिंग स्टेशनों की परिभाषा

एंटिटी

परिभाषा

पब्लिक चार्जिंग स्टेशन

जहाँ कोई भी इलेक्ट्रिक वाहन अपनी बैटरी को रीचार्ज कर सकता है

बैटरी चार्जिंग स्टेशन

जहाँ इलेक्ट्रिक वाहनों की डिस्चार्ज या आंशिक रूप डिस्चार्ज बैटरियों को रीचार्ज किया जा सकता है

कैप्टिव चार्जिंग स्टेशन

जहाँ चार्जिंग स्टेशन के मालिक के स्वामित्व या नियंत्रण वाले वाहनों की सर्विसिंग होती है

बैटरी स्वैपिंग स्टेशन

जहाँ इलेक्ट्रिक वाहन अपनी डिस्चार्ज बैटरी को चार्ज बैटरी से बदल सकते हैं


पर्यावरण

प्लास्टिक कचरा प्रबंधन नियम, 2016 के अंतर्गत उत्पादकों की ज़िम्मेदारियों के लिये दिशा-निर्देश 

पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (Ministry of Environment, Forest and Climate Change) ने प्लास्टिक कचरा प्रबंधन के लिये विस्तारित निर्माता ज़िम्मेदारी (Extended Producer Responsibility- EPR) के यूनिफॉर्म फ्रेमवर्क पर दिशा-निर्देश जारी किये। प्लास्टिक कचरा प्रबंधन नियम में EPR का अर्थ है, उत्पाद के पूरे जीवन चक्र में उत्पादक की पर्यावरणीय प्रबंधन की ज़िम्मेदारी। इस फ्रेमवर्क का आधार यह है कि उत्पादक प्लास्टिक कचरा एकत्र प्रणालियों तथा रीसाइकलिंग उद्योग को वित्तीय प्रोत्साहन देने के लिये ज़िम्मेदार है ताकि वे सरकार के लक्ष्यों को पूरा करने के लिये प्लास्टिक कचरे को जमा और प्रसंस्करित करें।

  • EPR को लागू करने की प्रणाली का मूल्यांकन करने हेतु गठित समिति ने कहा था कि कचरे को जमा करने और उसे अलग-अलग करने की ज़िम्मेदारी शहरी स्थानीय निकायों (Urban Local Bodies- ULB) की है। उसने कहा था कि उत्पादकों को यह ज़िम्मेदारी देना अप्रभावी साबित होगा।
  • उसने EPR के लिये यूनिफॉर्म फ्रेमवर्क का सुझाव दिया था जोकि राष्ट्रीय रजिस्ट्रेशन और डेटाबेस रेपोजिटरी तैयार करने पर आधारित होना चाहिये। EPR के अंतर्गत सभी लेन-देन वेब पोर्टल से प्रबंधित होने चाहिये।
  • इसके अतिरिक्त समिति ने कहा था कि EPR के लिये एक सिंगल विंडो पूरे देश के लिये काम नहीं करेगा। उसने EPR अनुपालन के लिये विभिन्न मॉडल्स का सुझाव दिया था। इनमें निम्नलिखित शामिल हैं: 
    • फी आधारित मॉडल: यह मॉडल ऐसे उत्पादकों (आयातकों और ब्रांड ओनर्स सहित) पर लागू हो सकता है जो पैकेजिंग के लिये प्लास्टिक की कम मात्रा (सरकार द्वारा निर्धारित कट-ऑफ से कम) का इस्तेमाल करते हैं। उन्हें केंद्रीय स्तर पर EPR कॉरपस फंड में योगदान करना चाहिए। कोई उत्पादक कितनी राशि का योगदान करेगा, यह प्लास्टिक कचरे के उत्सर्जन और ULB द्वारा उस कचरे को हैंडिल करने में किये गए प्रयास और खर्च किये गए धन पर आधारित होगा।
    • प्लास्टिक क्रेडिट मॉडल: इस मॉडल के अंतर्गत उत्पादक को अपनी पैकेजिंग को खुद रीसाइकिल करने की ज़रूरत नहीं, बल्कि उसे यह सुनिश्चित करना होगा कि इस बाध्यता को पूरा करने के लिये उसने उतने ही पैकेजिंग कचर को रिकवर और रीसाइकल किया है। उत्पादक के लिये यह अनिवार्य है कि वह सत्यापित प्रोसेसर या निर्यातक से रीसाइकलिंग का प्रमाण (प्लास्टिक क्रेडिट) हासिल करे।
    • निर्माता जिम्मेदारी संगठन: उत्पादक निर्माता ज़िम्मेदारी संगठन (Producer Responsibility Organization- PRO) का सदस्य बन सकते हैं जोकि अपनी सदस्य कंपनियों की ओर से कानूनी ज़रूरतों को पूरा करते हैं। PRO उत्पादक की कॉन्ट्रैक्टर सेवा के तौर पर काम करेंगे। हालाँकि प्लास्टिक पैकेजिंग की पुन: प्रसंस्करण का प्रमाण देने की अंतिम ज़िम्मेदारी उत्पादक की ही होगी।

स्वास्थ्य

भारतीय चिकित्सा और होम्योपैथी के लिये फार्माकोपिया आयोग की स्थापना 

केंद्रीय कैबिनेट ने आयुष मंत्रालय के अधीनस्थ कार्यालय के तौर पर भारतीय चिकित्सा और होम्योपैथी के लिये फार्माकोपिया आयोग (Pharmacopoeia Commission for Indian Medicine and Homoeopathy- PCIM&H) की स्थापना को मंज़ूरी दी।

  • भारतीय चिकित्सा की फार्माकोपिया प्रयोगशाला और होम्योपैथिक फार्माकोपिया प्रयोगशाला के साथ इसका विलय किया जाएगा। इन दोनों केंद्रीय प्रयोगशालाओं को वर्ष 1975 में गाजियाबाद में स्थापित किया गया था।
  • विलय से पूर्व PCIM&H आयुष मंत्रालय के अंतर्गत एक स्वायत्त संगठन था। पुनर्गठन के बाद PCIM&H आयुष दवाओं और फॉर्मूलेशंस के लिये मानकों का एक समान रूप से विकसित करने, दवाओं के स्टैंडर्डाजेशन वर्क के डुप्लिकेशन को रोकने और संसाधनों के अधिक से अधिक उपयोग को बढ़ावा देने का काम करेगा। 

महिला एवं बाल विकास

मातृत्व और शैशव से संबंधित मुद्दों की जाँच के लिये टास्क फोर्स 

वर्ष 2020-21 के लिये केंद्रीय बजट में वित्त मंत्री ने मातृत्व और शैशव से संबंधित मुद्दों पर टास्क फोर्स गठित करने का प्रस्ताव रखा था जोकि छह महीने में अपनी रिपोर्ट सौंप देगी। इसके बाद केंद्र सरकार ने इन मुद्दों की जाँच के लिये टास्क फोर्स बनाई। यह निम्नलिखित के साथ विवाह की उम्र और मातृत्व के बीच अंतर संबंध की भी जाँच करेगी: 

(i) माँ और बच्चे का स्वास्थ्य, चिकित्सकीय कल्याण और पोषण की स्थिति। 
(ii) मुख्य मापदंड, जैसे शिशु मृत्यु दर, मातृत्व मृत्यु दर और बच्चों का लिंग अनुपात।
(iii) इस संबंध में स्वास्थ्य एवं पोषण से संबंधित अन्य प्रासंगिक मुद्दे। 

इसके अतिरिक्त वह महिलाओं में उच्च शिक्षा को बढ़ावा देने के लिये उपाय सुझा सकती है। अपने अध्ययन के आधार पर टास्क फोर्स यह भी सलाह दे सकती है कि उसके सुझावों को लागू करने के लिये क्या कानूनी बदलाव किये जाए।


सामाजिक न्याय और सशक्तीकरण

नशा मुक्त भारत: वार्षिक कार्य योजना (2020-21) प्रारंभ

सामाजिक न्याय और सशक्तीकरण मंत्रालय ने 2020-21 के लिये नशा मुक्त भारत: वार्षिक कार्य योजना की शुरुआत की। योजना देश के 272 सर्वाधिक प्रभावित ज़िलों में मादक पदार्थों के सेवन की समस्या पर केंद्रित है। 

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युवा मामले और खेल

राज्य और ज़िला स्तर पर खेलो इंडिया केंद्र 

युवा मामले और खेल मंत्रालय (Ministry of Youth Affairs and Sports) प्रत्येक राज्य और केंद्र शासित प्रदेश में खेलो भारत राज्य उत्कृष्टता केंद्र (Khelo India State Centre of Excellence- KISCE) की स्थापना करेगा। ये एलीट और ओलंपिक स्तर के एथलीट्स को प्रशिक्षित करेंगे। 

  • आठ राज्यों में राज्य के स्वामित्व वाले खेल संगठनों की पहचान की गई है जिन्हें KISCE में अपग्रेड किया जाएगा। इन राज्यों में कर्नाटक, ओडिशा, केरल, तेलंगाना, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मिज़ोरम और नगालैंड शामिल हैं। राज्य और केंद्र शासित प्रदेश KISCE चलाएँगे, जबकि केंद्र सरकार सुविधाओं को अपग्रेड करने के लिये धन मुहैया कराएगी।
  • इसके अलावा मंत्रालय वित्त वर्ष 2020-21 में स्थापित होने वाले 100 KIC के साथ ज़िला स्तर पर 1,000 खेलो इंडिया सेंटर (Khelo India Centres- KIC) स्थापित करेगा। मौजूदा स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया के एक्सटेंशन सेंटरों को KIC में बदलने का विकल्प दिया जाएगा।
  • इसके अलावा अपनी अकादमियों को स्थापित करने के लिये पूर्व चैंपियन की पहचान की जाएगी। प्रत्येक KIC को कोचों के पारिश्रमिक, उपकरणों की खरीद, खेल किट प्रतियोगिता और कार्यक्रमों में भाग लेने के लिये अनुदान प्रदान किया जाएगा।

अंतरिक्ष

अंतरिक्ष क्षेत्र में निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ावा देने के लिये सुधारों को मंज़ूरी  

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने अंतरिक्ष क्षेत्र में निजी क्षेत्र की भागीदारी को मज़बूती देने के लिये कुछ सुधारों को मंज़ूरी दी। भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्द्धन और प्राधिकरण केंद्र नामक स्वायत्त नोडल एजेंसी अंतरिक्ष विभाग के अंतर्गत स्थापित की जाएगी, जो अंतरिक्ष क्षेत्र में निजी उद्योग की गतिविधियों को अनुमति देने और विनियमित करने के लिये एक अलग ऊर्ध्वाधर होगा। 

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