आक्रामक विदेशी प्रजातियों से खतरा

प्रिलिम्स के लिये:

आक्रामक विदेशी प्रजातियाँ, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, जैव-विविधता पर कन्वेंशन (CBD), वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972, IUCN लाल सूची

मेन्स के लिये:

आक्रामक प्रजातियों की वृद्धि और उनके प्रभाव, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, संरक्षण हेतु उत्तरदायी कारक

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 

चर्चा में क्यों?

हाल के वर्षों में आक्रामक विदेशी प्रजातियों (Invasive Alien Species- IAS) के मुद्दे ने मूलतः अंडमान और निकोबार द्वीप समूह जैसे क्षेत्रों में ध्यान आकर्षित किया है, जहाँ चीतल जैसी प्रजातियों का प्रसार देशी वनस्पतियों एवं जीवों के लिये एक महत्त्वपूर्ण खतरा बन गया है।

आक्रामक विदेशी प्रजातियाँ क्या हैं?

  • परिचय: 
    • आक्रामक विदेशी प्रजातियाँ (IAS) गैर-देशीय जीव हैं, जिनमें पौधे, जानवर, रोगजनक और अन्य शामिल हैं, जिन्हें उनके प्राकृतिक आवास के बाहर लाया गया है, जो आर्थिक, पर्यावरणीय एवं स्वास्थ्य जोखिम उत्पन्न करते हैं।
    • जैव-विविधता पर कन्वेंशन (CBD) के अनुसार, आक्रामक विदेशी प्रजातियों की पहचान संसाधनों के रूप में देशी प्रजातियों की तुलना में उनकी क्षमता से होती है। उन्हें "उत्पन्न होने, जीवित रहने और फलने-फूलने (arrive, survive, and thrive)" के रूप में भी पहचाना जाता है।
    • भारत में आक्रामक विदेशी प्रजातियों को वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 (2022 में संशोधित) के तहत गैर-देशी प्रजातियों के रूप में परिभाषित किया गया है, जो वन्यजीवों या आवासों के लिये खतरा उत्पन्न करते हैं।
    • ये प्रतिस्पर्द्धा, शिकार या रोगजनकों के संचरण के माध्यम से देशी प्रजातियों के ह्रास या उन्मूलन का कारण बनकर जैव-विविधता पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं।
    • आक्रामक प्रजातियाँ स्थानीय पारिस्थितिक तंत्र और पारिस्थितिकी तंत्र के कार्यों को बाधित करती हैं, जिससे पारिस्थितिक असंतुलन एवं निवास स्थान की हानि होती है।
    • आक्रामक प्रजातियाँ आजीविका को नकारात्मक रूप से प्रभावित करती हैं, विशेषतः विकासशील देशों में जहाँ कृषि, वानिकी और मत्स्य पालन आय के आवश्यक स्रोत हैं।
    • आक्रामक विदेशी प्रजातियाँ भूमि और समुद्र के उपयोग में परिवर्तन, जीवों के प्रत्यक्ष शोषण, जलवायु परिवर्तन एवं प्रदूषण के साथ-साथ विश्वस्तर पर जैव-विविधता हानि के पाँच प्रमुख प्रत्यक्ष संचालकों में से एक हैं।
  • उदाहरण:
    • अफ्रीकी कैटफिश, नील तिलापिया, रेड-बेलिड पिरान्हा और एलीगेटर गार जैसी प्रजातियाँ भारत में आक्रामक वन्यजीवों की सूची में प्रमुख हैं।
    • रेड इयर्ड स्लाइडर, एक उत्तरी अमेरिकी कछुआ, जो एक पालतू जानवर के रूप में लोकप्रिय है, को भारतीय जल निकायों में लाया गया है, जो भोजन और आवास के लिये देशी प्रजातियों को पीछे छोड़ रहा है।
  • मूल वनस्पति और जीवों पर प्रभाव:
    • IUCN रेड लिस्ट में शामिल 10 में से 1 प्रजाति को आक्रामक विदेशी प्रजातियों से खतरा होता है।
    • आक्रामक प्रजातियाँ खाद्य शृंखलाओं को बाधित करती हैं और पारिस्थितिकी तंत्र के संतुलन को बिगाड़ देती हैं, अक्सर प्राकृतिक प्रतिस्पर्धियों से रहित आवासों पर हावी हो जाती हैं।
    • 17वीं शताब्दी के बाद से, आक्रामक विदेशी प्रजातियों ने सभी ज्ञात जानवरों के विलुप्त होने में लगभग 40% का योगदान दिया है, जो जैवविविधता हानि में उनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका को उजागर करता है।
    • केस स्टडी: केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान, राजस्थान में अफ्रीकी कैटफिश जलपक्षी और प्रवासी पक्षियों का शिकार करती है, जिससे उद्यान की पारिस्थितिक गतिशीलता पर प्रभाव पड़ता है।
  • प्रवर्धित क्षति: 
    • जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण, आवास हानि और मानव-प्रेरित उपद्रव आक्रामक विदेशी प्रजातियों से होने वाले नुकसान को बढ़ाती है, जिससे पारिस्थितिक तंत्र एवं मानव कल्याण पर उनका प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
  • आक्रामक विदेशी प्रजातियों के आर्थिक प्रभाव:
    • जैवविविधता और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं पर अंतर सरकारी मंच (IPBES) ने दुनिया भर में 37,000 से अधिक स्थापित विदेशी प्रजातियों की सूचना दी, जिनकी वार्षिक आर्थिक लागत 423 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक है।
    • जर्नल ऑफ एप्लाइड इकोलॉजी में प्रकाशित एक अध्ययन में कहा गया है कि भारत में जैविक आक्रमण की अनुमानित आर्थिक लागत 182.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच सकती है, जो अर्थव्यवस्था और आजीविका के लिये दूरगामी परिणामों पर ज़ोर देती है।
    • उदाहरण: भारत में एक आक्रामक प्रजाति, कॉटन माइलबग (cotton mealybug), ने दक्कन क्षेत्र में कपास की फसलों की उपज को काफी हानि पहुँचाई है।

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आक्रामक विदेशी प्रजातियों के प्रबंधन से संबंधित पहल क्या हैं?

  • वैश्विक:
    • जैविक विविधता पर अभिसमय (CBD):
      • CBD और भारत सहित इसकी पक्ष आक्रामक विदेशी प्रजातियों के प्रभाव को संबोधित करने की तत्काल आवश्यकता को पहचानते हैं।
      • CBD के अनुच्छेद 8 (h) में कहा गया है कि प्रत्येक पक्ष को पारिस्थितिक तंत्र, आवास या प्रजातियों को संकट में डालने वाली विदेशी प्रजातियों के आगमन को रोकना, नियंत्रित करना या उनका उन्मूलन करना चाहिये।
      • CBD वैश्विक प्राथमिकताएँ, दिशानिर्देश निर्धारित करने के साथ ही जानकारी भी एकत्र करता है और आक्रामक विदेशी प्रजातियों पर अंतर्राष्ट्रीय कार्रवाई के समन्वय में सहायता प्रदान करता है।
    • कुनमिंग-मॉन्ट्रियल वैश्विक जैवविविधता ढाँचा:
      • हाल ही में अपनाए गए कुनमिंग-मॉन्ट्रियल वैश्विक जैवविविधता फ्रेमवर्क के लक्ष्य 6, जो UN-CBD के तहत एक अंतर्राष्ट्रीय समझौता है, जिसके अंर्तगत भारत सहित सदस्य देशों को वर्ष 2030 तक जैवविविधता तथा पारिस्थितिकी तंत्र की सेवाओं पर आक्रामक विदेशी प्रजातियों के प्रभाव को 50% तक कम करने की आवश्यकता है।
    • IUCN आक्रामक प्रजाति विशेषज्ञ समूह (ISSG):
      • वैश्विक आक्रामक प्रजाति डेटाबेस (GISD) के साथ प्रस्तुत तथा आक्रामक विदेशी प्रजातियों के वैश्विक पंजीकरण  का प्रबंधन भी करता है।
      • प्रबंधन प्रयासों का समर्थन करने के लिये वर्गीकरण समूहों में आक्रामक प्रजातियों पर जानकारी प्रदान करता है।
  • भारत:
    • राष्ट्रीय जैवविविधता कार्य योजना:
      • इसका लक्ष्य 4 विशेष रूप से आक्रामक प्रजातियों की रोकथाम एवं प्रबंधन पर केंद्रित है।
    • आक्रामक विदेशी प्रजाति पर राष्ट्रीय कार्य योजना(NAPINVAS):
      • पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) द्वारा शुरू किया गया, NAPINVAS नए परिचय को रोकने, स्थापित IAS की शीघ्र पहचान, नियंत्रण के साथ-साथ प्रबंधन पर केंद्रित है।
    • राष्ट्रीय आक्रामक प्रजाति सूचना केंद्र (NISIC):
      • यह केंद्र भारत में आक्रामक प्रजातियों के संबंध में जानकारी एवं संसाधन प्रदान करता है और साथ ही इस मुद्दे के बारे में जागरूकता में वृद्धि करता है।
    • पादप संगरोध (भारत में आयात का विनियमन) आदेश, 2003:
      • कृषि एवं सहयोग विभाग (DAC) के अंर्तगत आक्रामक विदेशी प्रजातियों की शुरुआत को रोकने हेतु पौधों के साथ-साथ पौधों की सामग्री के आयात को भी नियंत्रित करता है।

  प्रजातियों के प्रकार

परिभाषा

विदेशी प्रजातियाँ

एक प्रजाति, उप-प्रजाति, अथवा निचला टैक्सोन, जिसे उसके प्राकृतिक अतीत या वर्तमान वितरण के बाहर प्रस्तुत किया गया है, जिसमें इसके भाग, युग्मक, बीज, अंडे या प्रोपेग्यूल्स शामिल होते हैं।

आक्रामक विदेशी प्रजातियाँ

एक विदेशी प्रजाति जिसके आगमन अथवा प्रसार से क्षेत्र या निवास की जैवविविधता को खतरा होता है।

प्राकृतिकीकृत प्रजातियाँ

विदेशी प्रजातियाँ जो लोगों के सीधे हस्तक्षेप के बिना अथवा मानवीय हस्तक्षेप के बावजूद कई जीवन चक्रों या एक निश्चित अवधि के लिये स्वयं-प्रतिस्थापन आबादी को बनाए रखती हैं।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. विश्व स्तर पर और भारत के संदर्भ में आक्रामक विदेशी प्रजातियों के आर्थिक निहितार्थ का मूल्यांकन कीजिये। आक्रामक प्रजातियाँ कृषि, वानिकी और मत्स्य पालन जैसे क्षेत्रों को कैसे प्रभावित करती हैं?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. प्रकृति एवं प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के लिये अंतर्राष्ट्रीय संघ (IUCN) तथा वन्य प्राणिजात एवं वनस्पतिजात की संकटापन्न स्पीशीज़ के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर अभिसमय (CITES) के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2015)

  1.  IUCN संयुक्त राष्ट्र का एक अंग है तथा CITES सरकारों के बीच अंतर्राष्ट्रीय करार है।
  2.  IUCN प्राकृतिक वातावरण के बेहतर प्रबंधन के लिये विश्व भर में हज़ारों क्षेत्र-परियोजनाएँ चलाता है।
  3. CITES उन राज्यों पर वैध रूप से आबद्धकर है जो इसमें शामिल हुए हैं, लेकिन यह कन्वेंशन राष्ट्रीय विधियों का स्थान नहीं लेता है।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(A) केवल 1
(B) केवल 2 और 3
(C) केवल 1 और 3
(D) 1, 2 और 3

उत्तर: (B)


मेन्स:

प्रश्न. भारत में जैवविविधता किस प्रकार भिन्न है? जैवविविधता अधिनियम, 2002 वनस्पतियों और जीवों के संरक्षण में किस प्रकार सहायक है?  (2018)