भारत का भूजल संकट
यह एडिटोरियल 10/01/2025 को द हिंदुस्तान टाइम्स में प्रकाशित “Make country’s groundwater sustainable” पर आधारित है। यह लेख खेती के लिये सिंचाई में वृद्धि के कारण भारत के भूजल पर बढ़ते दबाव का उल्लेख करता है, जो जनसंख्या वृद्धि से और भी बदतर हो गया है। अटल भूजल योजना जैसी पहलों के बावजूद, बढ़ते जल संकट को दूर करने के लिये तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता है।
प्रिलिम्स के लिये:भूजल संसाधन, केंद्रीय भूजल प्राधिकरण, केंद्रीय भूजल बोर्ड, बिजली के लिये सब्सिडी, जल शक्ति अभियान, कायाकल्प और शहरी परिवर्तन के लिये अटल मिशन, प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना, मिशन अमृत सरोवर, जलभृत के कृत्रिम पुनर्भरण के लिये मास्टर प्लान, राष्ट्रीय जल नीति मेन्स के लिये:भारत में भूजल उपयोग का वर्तमान परिदृश्य, भूजल की कमी और इसके प्रदूषण के लिये ज़िम्मेदार प्रमुख कारक। |
भारत के सीमित भूजल संसाधनों को इसकी कृषि क्षमता, विशेष रूप से धान जैसी जल-गहन फसलों की कृषि के परिणामस्वरूप बहुत नुकसान पहुँच रहा है। वर्ष 2016 और 2024 के दौरान, जबकि देश की आबादी 1.29 बिलियन से बढ़कर 1.45 बिलियन हो गई, सिंचाई के लिये भूजल का उपयोग में भी उल्लेखनीय रूप से 38% से 52% तक वृद्धि हुई। पंजाब, हरियाणा और राजस्थान जैसे प्रमुख धान उत्पादक राज्य एक गंभीर स्थिति का सामना कर रहे हैं, जहाँ अधिकांश ज़िले अपनी भूजल क्षमता का अत्यधिक दोहन कर रहे हैं, जिससे लवणीकरण और रासायनिक संदूषण की समस्याएँ उत्पन्न हो रही हैं। जबकि अटल भूजल योजना जैसी सरकारी पहलों ने ज़िलों में अस्थिर भूजल स्तर को 23% से घटाकर 19% करने में मदद की है, बढ़ती जनसंख्या वृद्धि के अनुमान जल सुरक्षा के लिये तत्काल और बड़े पैमाने पर हस्तक्षेप की मांग करते हैं।
भारत में भूजल उपयोग का वर्तमान परिदृश्य क्या है?
- निष्कर्षण और उपलब्धता: भारत विश्व के लगभग 25% भूजल का निष्कर्षण करता है, जिससे यह विश्व स्तर पर भूजल का सबसे बड़ा उपयोगकर्त्ता बन गया है।
- वार्षिक भूजल निष्कर्षण (वर्ष 2023): 241.34 bcm
- अतिदोहित इकाइयाँ: 736 आकलन इकाइयाँ ( 11.23%) पुनःपूर्ति योग्य पुनर्भरण से अधिक निष्कर्षण दर्शाती हैं। (सक्रिय भूजल संसाधन मूल्यांकन रिपोर्ट- 2023)
- निर्भरता: भूजल भारत की जल आवश्यकताओं की रीढ़ है:
- सिंचाई की 62% ज़रूरतें भूजल से पूरी होती हैं।
- ग्रामीण जल आपूर्ति का 85% तथा शहरी जल आपूर्ति का 50% भूजल पर निर्भर है।
भारत में भूजल प्रबंधन के लिये वर्तमान नियामक कार्यढाँचा क्या है?
- केंद्रीय स्तर का विनियमन
- केंद्रीय भूजल प्राधिकरण (CGWA): पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत वर्ष 1997 में स्थापित।
- अधिसूचित क्षेत्रों में दिशा-निर्देश जारी करने, परमिट देने और भूजल निष्कर्षण को विनियमित करने के लिये ज़िम्मेदार।
- अत्यधिक दोहन वाले क्षेत्रों की निगरानी करना तथा उद्योगों, आवास और शहरी परियोजनाओं में वर्षा जल संचयन को अनिवार्य बनाना।
- केंद्रीय भूजल बोर्ड (CGWB): भूजल संसाधनों का आकलन, मैपिंग और कृत्रिम पुनर्भरण परियोजनाएँ संचालित करता है।
- जलभृत के कृत्रिम पुनर्भरण के लिये मास्टर प्लान (वर्ष 2020) को लागू किया गया, जिसका लक्ष्य 1.42 करोड़ पुनर्भरण संरचनाएँ बनाना है।
- केंद्रीय भूजल प्राधिकरण (CGWA): पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत वर्ष 1997 में स्थापित।
- राज्य स्तरीय विनियमन
- राज्य भूजल अधिनियम: गुजरात, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश जैसे कई राज्यों ने भूजल निष्कर्षण एवं संरक्षण को विनियमित करने के लिये विशिष्ट भूजल अधिनियम बनाए हैं।
- ये कानून आमतौर पर स्थानीय प्राधिकारियों को भूजल की निगरानी और प्रबंधन का अधिकार देते हैं।
- आदर्श भूजल विधेयक: राज्यों के लिये स्थायी भूजल प्रथाओं के अंगीकरण हेतु वर्ष 2017 की रूपरेखा, जिसमें भागीदारीपूर्ण और न्यायसंगत उपयोग पर ध्यान केंद्रित किया जाता है।
- राज्य भूजल अधिनियम: गुजरात, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश जैसे कई राज्यों ने भूजल निष्कर्षण एवं संरक्षण को विनियमित करने के लिये विशिष्ट भूजल अधिनियम बनाए हैं।
भूजल की कमी और प्रदूषण के लिये ज़िम्मेदार प्रमुख कारक क्या हैं?
- जल-प्रधान कृषि पद्धतियाँ: भारत की कृषि पद्धतियों में धान और गन्ना जैसी उच्च उपज वाली फसलों को प्राथमिकता दी जाती है, जो जल-गहन फसलें हैं, जिसके कारण भूजल का अत्यधिक दोहन होता है।
- पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों में बिजली के लिये सब्सिडी और निशुल्क जल आपूर्ति से अनियमित पंपिंग को बढ़ावा मिलता है।
- परिणामस्वरूप, वर्ष 2023 में भूजल निष्कर्षण 241.34 bcm तक पहुँच गया, जिसमें से 90% का उपयोग सिंचाई के लिये किया गया। उदाहरण के लिये, हरियाणा को प्रतिवर्ष 14 बिलियन क्यूबिक मीटर जल की कमी का सामना करना पड़ता है तथा कुल जल की मांग प्रतिवर्ष 35 बिलियन क्यूबिक मीटर तक पहुँच जाती है।
- जनसंख्या वृद्धि और शहरीकरण: बढ़ती जनसंख्या और तेज़ी से हो रहे शहरीकरण ने पेयजल, स्वच्छता एवं औद्योगिक उपयोग के लिये भूजल की मांग को बढ़ा दिया है।
- वर्ष 2016 और 2023 के दौरान भारत की जनसंख्या 1.29 बिलियन से बढ़कर 1.45 बिलियन हो गई है तथा शहरी प्रवास ने शहरी जलभृतों पर दबाव डाला है।
- शहरी जल व्यय में भूजल का योगदान लगभग 45% है। बंगलूरू जैसे बड़े शहर अब भूजल स्तर में क्षरण के कारण टैंकरों पर निर्भर हैं।
- जलवायु परिवर्तन और अनियमित वर्षा: जलवायु परिवर्तन अनियमित मानसून और बढ़ते वाष्पीकरण के कारण पुनर्भरण दरों को कम करके भूजल तनाव को बढ़ाता है।
- दक्षिण-पश्चिम मानसून, जो भारत के भूजल पुनर्भरण में 60% का योगदान देता है, अप्रत्याशित हो गया है, वर्ष 2023 में कुल वर्षा में 5.6% की कमी दर्ज की गई और 200 से अधिक ज़िलों में कम वर्षा हुई।
- उदाहरण के लिये, मानसून की कम वर्षा के कारण तमिलनाडु की भूजल पर निर्भरता बढ़ गई है, जिससे जलभृतों का अधिक दोहन हो रहा है।
- औद्योगिक अपशिष्ट निर्वहन: अनियमित औद्योगिक निर्वहन और अनुपचारित शहरी अपशिष्ट जल, सीसा, पारा और क्रोमियम जैसे भारी धातुओं एवं रसायनों से भूजल को दूषित करते हैं।
- उदाहरण के लिये, कानपुर के औद्योगिक क्षेत्रों से आने वाले दूषित जल, विशेष रूप से चमड़े के कारखानों से आने वाले जल में क्रोमियम और पारा जैसी भारी धातुएँ होती हैं, जिससे व्यापक स्वास्थ्य समस्याएँ उत्पन्न होती हैं।
- उर्वरक और कीटनाशकों का रिसाव: उर्वरकों एवं कीटनाशकों के अत्यधिक उपयोग से नाइट्रेट और फॉस्फेट का रिसाव भूजल में हो गया है।
- सरकार के हालिया अनुमान बताते हैं कि सत्र 2015-16 और 2020-21 के दौरान रासायनिक उर्वरकों की खपत में लगभग 16% की वृद्धि हुई है।
- परिणामस्वरूप, भारत के लगभग 56% ज़िलों के भूजल में नाइट्रेट की मात्रा सुरक्षित सीमा 45 मिलीग्राम/लीटर से अधिक पाई गई है।
- असंवहनीय खनन गतिविधियाँ: खनन कार्य विशेष रूप से झारखंड और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में, भारी धातु संदूषण एवं जलभृत रिक्तीकरण का कारण बनते हैं।
- खदानों से यूरेनियम और फ्लोराइड का रिसाव भूजल को दूषित करता है, जिससे गंभीर स्वास्थ्य जोखिम उत्पन्न होता है।
- उदाहरण के लिये, कर्नाटक के बेल्लारी, कलबुर्गी, कोलार, मांड्या और रायचूर में भूजल में यूरेनियम का स्तर स्वीकार्य सीमा से अधिक पाया गया है।
- राजस्थान, हरियाणा, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में स्वीकार्य सीमा से अधिक फ्लोराइड सांद्रता एक महत्त्वपूर्ण चिंता का विषय है।
- तटीय क्षेत्रों में लवणता का अंतर्वेधन: तटीय क्षेत्रों में अत्यधिक पंपिंग और समुद्र के बढ़ते स्तर के कारण जलभृतों में लवणीय जल का अंतर्वेधन होता है।
- CGWB की एक हालिया रिपोर्ट में कहा गया है कि लवणता के कारण गुजरात में भूजल संदूषण 33 में से 28 ज़िलों (85%) को प्रभावित करता है, जिससे कृषि और पेयजल की उपलब्धता प्रभावित होती है।
भूजल प्रबंधन के लिये भारत में प्रमुख सरकारी पहल क्या हैं?
- जल शक्ति अभियान (JSA): वर्ष 2019 में लॉन्च किया गया और अब इसके 5वें चरण ("कैच द रेन" वर्ष 2024) में, JSA विभिन्न योजनाओं के अभिसरण के माध्यम से ग्रामीण एवं शहरी ज़िलों में वर्षा जल संचयन तथा जल संरक्षण पर केंद्रित है।
- कायाकल्प और शहरी परिवर्तन के लिये अटल मिशन (AMRUT) 2.0: यह मिशन तूफानी नालियों के माध्यम से वर्षा जल संचयन का समर्थन करता है तथा 'एक्विफर प्रबंधन योजनाओं' के माध्यम से भूजल पुनर्भरण को बढ़ावा देता है।
- अटल भूजल योजना (वर्ष 2020): यह पहल 7 राज्यों के 80 ज़िलों में जल-तनावग्रस्त ग्राम पंचायतों को लक्षित करती है, जो भूजल प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित करती है।
- प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (PMKSY): PMKSY का उद्देश्य हर खेत को जल, जल निकायों की मरम्मत, नवीनीकरण और पुनरुद्धार एवं सतही लघु सिंचाई योजनाओं जैसे घटकों के माध्यम से सिंचाई कवरेज का विस्तार करना तथा जल उपयोग दक्षता में सुधार करना है।
- जल उपयोग दक्षता ब्यूरो (BWUE): वर्ष 2022 में राष्ट्रीय जल मिशन के तहत स्थापित, BWUE सिंचाई, पेयजल आपूर्ति, बिजली उत्पादन और उद्योग जैसे क्षेत्रों में जल उपयोग दक्षता को बढ़ावा देता है।
- मिशन अमृत सरोवर (वर्ष 2022): इस मिशन का उद्देश्य जल संचयन और संरक्षण को बढ़ाने के लिये प्रत्येक ज़िले में 75 अमृत सरोवरों का निर्माण या पुनरुद्धार करना है।
- राष्ट्रीय जलभृत मानचित्रण (NAQUIM): केंद्रीय भूजल बोर्ड (CGWB) द्वारा 25 लाख वर्ग किलोमीटर से अधिक क्षेत्र में पूरा किया गया यह प्रयास भूजल पुनर्भरण और संरक्षण योजना में सहयोग करता है।
- राष्ट्रीय जल नीति (वर्ष 2012): जल संसाधन विभाग द्वारा तैयार की गई यह नीति वर्षा जल संचयन, जल संरक्षण और वर्षा के प्रत्यक्ष उपयोग के माध्यम से जल उपलब्धता बढ़ाने का समर्थन करती है।
- PMKSY का वाटरशेड विकास घटक (WDC-PMKSY): यह घटक वर्षा सिंचित और बंजर भूमि पर केंद्रित है तथा मृदा संरक्षण, वर्षा जल संचयन एवं आजीविका विकास जैसी गतिविधियों को एकीकृत करता है।
भारत में प्रभावी भूजल प्रबंधन के लिये क्या उपाय अपनाए जा सकते हैं?
- जल-कुशल कृषि को बढ़ावा देना: ड्रिप सिंचाई, सूक्ष्म सिंचाई और शून्य जुताई जैसी जल-बचत प्रथाओं के अंगीकरण से कृषि के लिये भूजल निष्कर्षण में काफी कमी आ सकती है।
- प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (PMKSY) को अटल भूजल योजना के साथ जोड़ने से यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि भूजल की कमी वाले गंभीर क्षेत्रों में कुशल सिंचाई पद्धतियाँ अपनाई जा सकें।
- प्रबंधित जलभृत पुनर्भरण (MAR) के साथ सौर विलवणीकरण: खारे या दूषित जलभृतों वाले क्षेत्रों में, भूजल की गुणवत्ता और मात्रा को बढ़ाने के लिये प्रबंधित जलभृत पुनर्भरण (MAR) को सौर ऊर्जा चालित विलवणीकरण संयंत्रों के साथ संयोजित किया जा सकता है।
- सौर विलवणीकरण जलभृतों को पुनःभरण करने से पहले अतिरिक्त लवणों और प्रदूषकों को हटा देता है।
- उदाहरण के लिये, गुजरात के कच्छ क्षेत्र में विलवणीकरण के साथ-साथ MAR, लवणता अंतर्वेधन और जल की कमी दोनों को दूर कर सकता है तथा शुष्क तटीय क्षेत्रों के लिये एक स्थायी समाधान प्रदान कर सकता है।
- AI और IoT के साथ जलभृत मैपिंग: जलभृत स्वास्थ्य की मैपिंग करने तथा पुनर्भरण और निष्कर्षण पैटर्न का अनुमान करने के लिये कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) एवं इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT) प्रौद्योगिकियों का उपयोग किया जाना चाहिये।
- जल स्तर और इसकी गुणवत्ता की रियल टाइम मॉनिटरिंग के लिये एक केंद्रीय AI-संचालित निर्णय लेने वाले प्लेटफॉर्म में एकीकृत IoT-सक्षम सेंसरों को तैनात किया जाना चाहिये।
- उदाहरण के लिये, महाराष्ट्र के विदर्भ में संकटग्रस्त जलभृतों की निगरानी करने तथा सक्रिय रूप से सुधारात्मक कार्रवाई करने के लिये इसे अपनाया जा सकता है।
- जलभृत पुनर्भरण के लिये बायोचार: जल की गुणवत्ता बढ़ाने तथा भारी धातुओं एवं नाइट्रेट जैसे प्रदूषकों को हटाने के लिये जलभृत पुनर्भरण परियोजनाओं के लिये बायोचार-आधारित निस्पंदन प्रणालियों को लागू किये जाने की आवश्यकता है।
- कृषि अवशेषों से प्राप्त बायोचार एक प्राकृतिक फिल्टर के रूप में कार्य करता है तथा पुनर्भरण के दौरान प्रदूषण को कम करता है।
- इस विधि का परीक्षण पंजाब के धान के खेतों में उर्वरक अपवाह से होने वाले नाइट्रेट संदूषण को कम करने के लिये किया जा सकता है।
- वर्षा जल संचयन और जलभृत पुनर्भरण: शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में वर्षा जल संचयन संरचनाओं का विस्तार करने से जलभृतों को पुनर्भरण करने में मदद मिल सकती है।
- महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम (MGNREGA) को भूजल पुनर्भरण परियोजनाओं के साथ जोड़ने से सामुदायिक प्रयासों को गति मिल सकती है।
- उदाहरण के लिये, तमिलनाडु की प्राचीन व्यापक वर्षा जल संचयन प्रणाली को पूरे देश में विस्तारित किया जा सकता है।
- फसल विविधीकरण: किसानों को धान और गन्ना जैसी अधिक जल की खपत वाली फसलों के स्थान पर कम जल की खपत वाली फसलों जैसे: बाजरा, दलहन तथा तिलहन की खेती के लिये प्रोत्साहित करने से भूजल तनाव को कम किया जा सकता है।
- राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (NFSM) को राज्य फसल बीमा योजनाओं से जोड़ने तथा दालों और बाजरा पर उच्च MSP से किसानों को फसल विविधीकरण के अंगीकरण के लिये प्रोत्साहित किया जा सकता है।
- बिजली सब्सिडी में संशोधन: भूजल के अनियमित पम्पिंग को प्रोत्साहित करने वाली निशुल्क या सब्सिडी वाली बिजली नीतियों में सुधार आवश्यक है।
- मीटरयुक्त विद्युत कनेक्शन शुरू करना तथा उन्हें जल के कुशल उपयोग के लिये सब्सिडी से जोड़ना, संरक्षण को प्रोत्साहित कर सकता है।
- उदाहरण के लिये, गुजरात की ज्योतिग्राम योजना, जिसने कृषि और उपभोक्ता प्रयोग के बीच अलग-अलग बिजली फीडर शुरू किये जिसे पूरे देश में विस्तारित किया जा सकता है।
- भूजल निगरानी को सुदृढ़ करना:भूजल-स्तर सेंसर के साथ रियल टाइम मॉनिटरिंग नेटवर्क में सुधार करके नीति-निर्माताओं के लिये कार्रवाई योग्य डेटा उपलब्ध कराया जा सकता है।
- भारत की जल संसाधन सूचना प्रणाली (WRIS) को स्थानीय भूजल निगरानी तंत्र के साथ एकीकृत करने से बेहतर निर्णय लेने की प्रक्रिया सुनिश्चित हो सकती है।
- उदाहरण के लिये, तेलंगाना का मिशन काकतीय जलभृत स्वास्थ्य पर नज़र रखने के लिये स्थानीय डेटा अंतर्दृष्टि को जोड़ता है तथा इसका उद्देश्य लघु सिंचाई टैंकों और झीलों का पुनरुद्धार करना है।
- शहरी जल प्रबंधन: औद्योगिक शीतलन और सिंचाई जैसे गैर-पेय उपयोगों के लिये शहरी अपशिष्ट जल पुनर्चक्रण को बढ़ावा देने से शहरों में भूजल पर निर्भरता कम हो सकती है।
- अपशिष्ट जल पुनर्चक्रण नीतियों के साथ अमृत 2.0 (अटल कायाकल्प और शहरी परिवर्तन मिशन) को एकीकृत करने से शहरी जल का संवहनीय उपयोग सुनिश्चित किया जा सकता है।
- उदाहरण के लिये, बंगलूरू जल आपूर्ति और सीवरेज बोर्ड (BWSSB) का लक्ष्य कावेरी पर दबाव को 50% तक कम करने के लिये 1 करोड़ MLD सीवेज को रिसाइकिल करना है, जो सही दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है।
- निजी क्षेत्र की भागीदारी को प्रोत्साहित करना: भूजल पुनर्भरण परियोजनाओं में कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR) निवेश को प्रोत्साहित करने से अतिरिक्त संसाधन जुटाए जा सकते हैं।
- CSR को अटल भूजल योजना जैसी योजनाओं के साथ जोड़ने से सामुदायिक स्तर पर हस्तक्षेप के लिये धन आकर्षित किया जा सकता है।
- जलवायु-लचीली रणनीतियाँ: भूजल बैंकिंग और अनुकूली पुनर्भरण प्रणालियों के साथ अनियमित मानसून के लिये तैयारी करना जलवायु जोखिमों को कम करने के लिये महत्त्वपूर्ण है।
- जलवायु परिवर्तन के लिये राष्ट्रीय अनुकूलन कोष (NAFCC) के अंतर्गत जलवायु-अनुकूल कृषि पद्धतियों को भूजल पुनर्भरण परियोजनाओं के साथ जोड़ने से समुत्थानशक्ति दृढ़ हो सकती है।
- दूषित जलभृतों के लिये फाइटोरिमेडिएशन: दूषित भूजल को साफ करने के लिये पादप-आधारित विधि, फाइटोरिमेडिएशन को अपनाए जाने की आवश्यकता है।
- इसमें जलकुंभी या वेटिवर जैसे पौधों का चयन किया जाना चाहिये जो अपनी जड़ों के माध्यम से भारी धातुओं और रसायनों को अवशोषित करते हैं।
- चमड़े के कारखानों के अपशिष्टों से प्रभावित कानपुर जैसे अत्यधिक प्रदूषित क्षेत्रों में इस पद्धति को लागू करने से भूजल की गुणवत्ता में प्रभावी रूप से सुधार हो सकता है।
- सामुदायिक जागरूकता और भागीदारी: अभियानों और प्रशिक्षण कार्यक्रमों के माध्यम से समुदायों को संवहनीय भूजल प्रथाओं के बारे में शिक्षित करने से उन्हें संरक्षण उपायों के अंगीकरण के लिये सशक्त बनाया जा सकता है।
- जल शक्ति अभियान को स्थानीय स्वयं सहायता समूहों (SHG) और गैर-सरकारी संगठनों के साथ जोड़कर इसकी पहुँच बढ़ाई जा सकती है।
भूजल प्रबंधन के लिये भारत अन्य देशों से क्या सीख सकता है?
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निष्कर्ष:
भारत का भूजल संकट, सिंचाई के लिये भूजल का अत्यधिक प्रयोग, जनसंख्या वृद्धि एवं प्रदूषण के कारण और भी गंभीर हो गया है, जिसके लिये तत्काल और निरंतर कार्रवाई की आवश्यकता है। यद्यपि अटल भूजल योजना एवं जल शक्ति अभियान जैसी पहलों से उम्मीदें जगी हैं, फिर भी भूजल प्रबंधन कार्यढाँचे को और भी सुदृढ़ करना, जल-कुशल कृषि पद्धतियों का अंगीकरण, जलभृत मैपिंग और बायोचार निस्पंदन जैसे अभिनव समाधान आवश्यक हैं।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न1. "भारत, भूजल का सबसे बड़ा उपभोक्ता होने के नाते, अतिदोहन और प्रदूषण से संबंधित चुनौतियों का सामना कर रहा है"। प्रभावी भूजल प्रबंधन के लिये संवहनीय समाधान सुझाइये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न 1. निम्नलिखित में से कौन-से भारत के कुछ भागों में पीने के जल में प्रदूषक के रूप में पाए जाते हैं? (2013)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 3 उत्तर: (c) प्रश्न 2. निम्नलिखित में से कौन-सा प्राचीन नगर अपने उन्नत जल संचयन और प्रबंधन प्रणाली के लिये सुप्रसिद्ध है, जहाँ बाँधों की शृंखला का निर्माण किया गया था और संबद्ध जलाशयों में नहर के माध्यम से जल को प्रवाहित किया जाता था? (2021) (a) धौलावीरा उत्तर: (a) प्रश्न 3. 'वॉटरक्रेडिट' के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2021)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (c) मेन्सप्रश्न 1. जल संरक्षण एवं जल सुरक्षा हेतु भारत सरकार द्वारा प्रवर्तित जल शक्ति अभियान की प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं? (2020) प्रश्न 2. रिक्तीकरण परिदृश्य में विवेकी जल उपयोग के लिये जल भंडारण और सिंचाई प्रणाली में सुधार के उपायों को सुझाइये। (2020) |